Thursday, July 16, 2009

एक नीलेकणी ही क्यों ?

अंततः केन्द्र सरकार ने देश के सभी नागरिकों के लिए विशिष्ट पहचानपत्र बनाने की परियोजना का जिम्मा इन्फोसिस के को-चेयरमैन नंदन नीलेकणी को सौंप दिया । इस परियोजना का नेतृत्व करने के लिए सरकार ने उनको कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया है । यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईएआई) चेयरमैन के तौर पर नियुक्‍ति होने के तुरंत बाद नीलेकणी ने इंफोसिस से इस्तीफा दे दिया कंपनी ने बजाप्रा बयान जारी कर कहा, ‘इंफोसिस के निदेशक मंडल ने नीलेकणी का इस्तीफा मंजूर कर लिया है जो ९ जुलाई २००९ से प्रभावी हो गया । सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने कैबिनेट के फैसले की जानकारी देते हुए बताया कि यह प्राधिकरण भारत सरकार की प्रमुख योजनाओं से लाभान्वित हो रहे लोगों का पहचानपत्र बनाने का काम करेगा ताकि सही व्यक्‍ति तक इन योजनाओं का लाभ पहुँच सके । इसके तहत देश के सभी नागरिकों को एक “यूनिक बायोमीट्रिक जिसके नंबर के आधार पर नागरिक की पूरी जानकारी सरकार के पास उपलब्ध होगी । आइडेंटिटी कार्ड दिया जाएगा । उद्योग जगत के सूत्रों के अनुसार इस परियोजना की लागत १०,००० करोड़ रूपए है । चालू वित्त वर्ष के अंतिम बजट में १०० करोड़ रूपए चिहित किए गए है । ५४ वर्षीय नीलकेणी ने १९७८ में आई आईटी बंबई से इलेक्टिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की । इन्फोसिस के को-चेयरमैन के पद से इस्तीफा देने के बाद ही नीलकेणी सार्वजनिक स्तर पर काफी कार्य कर रहे हैं । वे राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के सदस्य होने के साह ही ई-गवर्नेस के लिए बनाए गए राष्ट्रीय सलाहकार समूह के भी सदस्य हैं । इसके अतिरिक्‍त नीलेकणी जवाहरलाल नेहरू शहरी योजना की समीक्षा समिति के भी सदस्य हैं । अप्रैल २००८ में ही नीलेकणी एनसीएईआर के अध्यक्ष चुने गए थे । २८ वर्ष पहले एनाआर नारायणमूर्ति के साथ मिलकर इन्होंने इंफोसिस कंपनी की स्थापना की थी । यूएआईए का गठन जनवरी २००९ मेंयोजना आयोग के अंग के तौर पर किया गया था । इस पर देश भर में यूनिक आइडेंटिफिकेशन योजना लागू करने से संबंधित नीतियाँ और कार्यक्रम तय करने की जिम्मेवारी होगी । अथॉरिटी रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के साथ मिलकर काम करेगा, जो राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को अंतिम रूप देने में लगा है । सरकार की योजना के अनुसार सन्‌ २०११ तक सभी नागरिकों को यूनिक आइडेंटिफिकेशन संख्या जारी कर दी जाएगी । अथॉरिटी इन संख्याओं के डाटाबेस को नियंत्रित करेगा और साथ ही नियमित अंतराल पर इन्हें अपडेट करने और इनके रखरखाव का काम भी उसके जिम्मे होगा । यूआईडी परियोजना के जरिए देश की आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं के समाधान अलावा वस्तुओं और सेवाओं के सार्वजनिक बँटवारे के लिए एक व्यवस्थित तंत्र भी विकसित किया जा सकेगा । प्रारंभ में यूआईडी संख्या राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर या मतदाता सूची के आधार पर आवंटित की जाएगी तथा व्यक्‍ति की पहचान पर जालसाजी की संभावना खत्म करने के लिए इसमें तस्वीर और बायोमेट्रिक आँकड़े जोड़े जाऐंगे । साथ ही लोगों के फायदे के लिए इसके आसान पंजीकरण और जानकारियों में बदलाव की प्रक्रिया को आसान बनाने के तरीकों पर भी विचार किया जा रहा है । राष्ट्रपति के अभिभाषण में भी इस बात का जिक्र किया गया था कि इस कार्य को अंजाम देने के लिए एक अधिकार प्राप्त समूह का गठन किया जाएगा और तीन वर्षों में काम पूरा कर लिया जाएगा । इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए सरकार ने नीलेकणी को यह जिम्मा सौंपा है । प्रमुख बात यह है कि नीलेकणी को सरकार योजना आयोग में सदस्य बनाना चाहती थी परन्तु स्वयं नीलेकणी ने इसके लिए इनकार कर दिया था क्योंकि वहाँ उन्हें अपेक्षित परिणाम देने वाला काम नहीं दिख रहा था । इसके अलावा वह सेवानिवृत अफसरशाहों की श्रेणी में शामिल लोगों की जमात में भी खड़ा होना नहीं चाहते थे । अब “नेशनल अथॉरिटी फॉर यूनिक आइडेंटिफिकेशन” के चेयरमैन के तौर पर उन्हें न सिर्फ परिणाम दिखाने का मौका मिलेगा बल्कि यह उनकी विशेषज्ञता वाले क्षेत्र सूचना प्रौद्योगिकी से भी जुड़ा होगा । नंदन नीलेकणी आईटी की दुनियाँ में भारत की नाक समझी जानेवाली इंफोसिस के संस्थापकों में से हैं तथा उनकी पहचान लीक से हटकर चलनेवाले संस्था-निर्माता की है । लीक छोड़कर चलना और संस्था बनाना दोनों अलग-अलग गुण है । एक ही व्यक्‍ति में दोनों गुणों की मौजूदगी लगभग असंभव ही है परन्तु नारायणमूर्ति की छवि को खंडित किए बिना उससे अलग नीलेकणी ने पिछले कुछ वर्षों में सिद्ध किया है कि ये दोनों ही गुण अंदर प्रचुर मात्रा में मौजूद है । यूएआईए के चेयरमैन बनने के साथ ही, यह सर्वविदित हो गया कि अगले तीन वर्षों में यह संस्था के सभी नागरिकों को अद्वितीय पहचान देनेवाली है जिसके अंतर्गत वोटर‍आईटी, डाइविंग लाइसेंस और पासपोर्ट से कहीं आगे तक होगा । यह पहचान भारतीय नागरिकों को नेपाली और बांग्लादेशी आप्रवासियों और पाकिस्तानी घुसपैठियोंम को अलग करने के काम आने के साथ-साथ महत्वपूर्ण आर्थिक भूमिका भी निभाने जा रही है । इस पहचान का इस्तेमाल देश की एक-एक ईच जमीन की मिल्कियत पक्‍की करने में किया जा रहा है । गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को राहत बाँटने, हर बच्चे को स्कूल पहुँचाने अथवा जरूरतमंद किसानों को सस्ती खाद और बीज मुहैया कराने की सरकारी कोशिशें विचौलियों को पहले से ज्यादा अमीर बनाने में ही खर्च हो जाती हैं । राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (नरेगा) के तहत दी जानेवाली रकम भी दलालों के द्वारा मजदूरों के जाली हस्ताक्षर या अंगूठा निशान मे माध्यम से अपने खातों में स्थानांतरित करवा दी जाती है । उम्मीद है कि नीलेकणी के नेतृत्व में यूएआइए का कार्ड ऐसे घपलों के लिए कोई गुंजाईश नहीं हैं छोडेगा । बैंकों एवं बीमा कंपनियों का ही नहीं बल्कि सभी प्रकार के उपभोक्ता सामान बनाने वाली कंपनियाँ भी चाहती है कि सभी संभावित ग्राहकों की पूरी पहचान उनके सामने हो । वर्त्तमान में वे पहचानपत्र हेतु फोनसेवा प्रदाता कंपनियों पर निर्भर हैं । भविष्य में अपनी इस जरूरत को पूरा करने के लिए यूएआइए पर निर्भर होंगी । निश्‍चित रूप से इससे ग्राहकों की झुंझलाहट बढ़ेगी परन्तु स्पष्ट उद्देश्य होने के कारण यह दोनों पक्षों के हित में फायदेमंद ही होगा । सबसे जनजीवन में पूर्णरूपेण सूचना प्रौद्योगिकी का हस्तक्षेप बढेगा और माउस की दो-चार क्लिक के जरिए एक अरब १० करोड़ भारतीयों में से किसी एक तक भी पहुँचा जा सकेगा । एक अनुमान के मुताबिक भारत की आईटी कंपनियों को इस विशाल योजना में डेढ़ लाख करोड़ रूपे का कारोबार और एक लाख नौकरियाँ नजर आ रही है, जो ग्लोबल मंदी के इस दौर में उनके लिए सबसे बड़ी खुशखबरी है । नीलेकणी ने कहा है कि “अगले साल यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर जारी करने से संबंधित योजना वास्तव में सबके लिए सड़क-बिजली-पानी जैसा ही महत्वपूर्ण है और इसका आर्थिक विकास पर अहम असर पड़ेगा । वास्तव में अगर इस परियोजना पर सही तरीके से अमल किया गया तो यह देश के राजनीतिक हालात को बदलने की ताकत रखती है । उम्मीद की जा रही है कि अगर देश के हर नागरिक को १६ अंकों वाला यूनिक आइडेंटिफिकेशन कार्ड मिल गया तो सरकार को अपने कार्यक्रम को लागू करने और गरीबी उन्मूलन में बहुत आसानी हो जाएगी । सैद्धान्तिक रूप से इस कार्ड के बन जाने के बाद सब्सिडी और जरूरमंद तक सीधे धन हस्तांतरण की सुविधा मिल जाएगी । इस प्रक्रिया के अस्तित्व में आने के बाद लालफीताशाही से काफी हद तक छुटकारा मिल जाएगा और प्रक्रियागत खामियों से निपटने में मदद मिलेगी । सरकार का प्रस्ताव है कि इस तरह के कार्ड से देश के हर नागरिक के वित्तीय, शैक्षणिक और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी रखी जा सकेगी । सरकार ने इस महत्वपूर्ण कार्य हेतु नीलेकणी का चुनाव कर एक सर्वोत्तम कदम उठाया है, परन्तु इस कार्य में कुछ चुनौतियाँ भी है । इस अभियान के तहत लोगं को शामिल करना और उनकी सही पहचान दर्ज करना । सर्वविदित है कि देश में पहले से पहचान संबंधी दस्तावेज मसलन राशन कार्ड, पैन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र अथवा पासपोर्ट बनवाना साधारण प्रक्रिया है परन्तु यह काफी जटिल है । लोगों के पास एक से अधिक पैन कार्ड या मतदाता पहचान पत्र हैं । बायोमीट्रीक्स का इस्तेमाल इसके लिए मददगार साबित हो सकता है । इसके अलावे कार्ड से संबंधित शिकायतों के निपटारे में आनेवाली समस्याएं सुलझाना भी बड़ी चुनौती होगी । विगत अनुभवों के मद्‌देनजर एक और कार्ड बनवाने के लिए राजी करने में भी तमाम समस्याएँ आऐंगी । सबसे अधिक परेशानी लोगों से उनकी व्यक्‍तिगत जानकारी विशेषकर वित्तीय ब्यौरा जुटाने में आएगी । लोगों के मन में इस बात का डर समाया रहता है कि उनकी यह जानकारी सरकार के पास पहुंच जाएगी तो वे मुसीबत में पड़ सकते हैं । दुनियाँ के शायद सबसे बड़े इस प्रोजेक्ट के लिए डेटाबेस तैयार करने में आनेवाली चुनौतियाँ जगजाहिर है । इसे पारदर्शी बनाने और जालसाजी से बचाने की पूरी कोशिश जानी चाहिए जिससे कि इसे राशन कार्ड, पैन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र की तरह इस्तेमाल किया जा सके । आय और निवास भी जगह बदलने से संबंधित आँकड़े जमा अरना और बड़ी चुनौती है । वित्तीय सुविधाओं के दायरे में पूरी आबादी को लाना और बीपीएल सूची तैयार करना भी चुनौतीपूर्ण कार्य है । उम्मीद ही नहीं विश्‍वास है कि नीलेकणी इन जिम्मेवारियों को सफलतापूर्वक अंजाम देंगे । इनकी सफलता के उपरांत केवी कामथ (आइसीआईसी आई), एस रामदोराई (टीसीएस) या दीपक पारेख (एचडीएफसी) जैसे निजी क्षेत्र के कई समर्थ या दिग्गजों के लिए विशाल सार्वजनिक उद्यमों के संचालन का रास्ता खुल जाएगा । आखिर पेशेवर दक्षता का दायरा निजी क्षेत्रों तक ही क्यों रहता है? इससे राष्ट्रीय संसाधनों की बर्बादी हो न हो किंतु यथोचित सम्मान तो हुआ ही नहीं । ये दिग्गज अपने क्षेत्र के प्रतिस्पर्धी माहौल का ज्ञान, नेतृत्व, क्षमता, निष्ठा और कार्य के प्रति प्रतिबद्धता भी अपने साथ लाते हैं जिसका सरकार में अभी तक अभाव है । यह परियोजना भ्रष्टाचार व काहिली से ग्रस्त पारंपरिक नौकशाही नहीं चला सकती । आमदनी, विवाह एवं जाति जैसी निजी संवेदनशील जानकारियाँ एक स्मार्ट कार्ड में लोड करने की नाजुक जिम्मेदारी समझौता परस्त सरकारी मशीनरी को नहीं दी जा सकती । हमारी व्यवस्था में आयकर फाइले गैंगस्तरों के हाथों में पड़ जाती है । क्रेडिट कार्ड की जानकारी विभिन्‍न कंपनियों की टेलीकॉलर्स को मिल जाती है । यूनीक आईटी कार्ड की सार्वभौमिक साख स्थापित करने के लिए नीलेकणी को व्यवस्था बनानी होंगे जो निजी सूचनाओं के अवैध इस्तेमाल को रोक सकें । परियोजना के लिए जैसी जटिल डिजाईन व टेक्नोलॉजी चाहिए, उसके लिहाज से भी विषय के ज्ञाता होने के नाते नीलेकणी बिल्कुल उपयुक्‍त है परन्तु नीलेकणी परिणाम तभी दे पाऐंगे जब सरकारी एजेंसियाँ अपेक्षित सहयोग करे चूँकि इसको राज्य सरकारों और गृह, प्रतिरक्षा व वित्त जैसे कई मंत्रालयों से मंजूरियाँ लेनी होगी, इसलिए कोई भी विभाग या मंत्रालय इस परियोजना को ढप नहीं भी तो धीमा तो अवश्य कर सकता है । ऐसा इसलिए कि नागरिकता से लेकर टैक्स, पेंशन, मताधिकार, सरकारी सहायता प्राप्त शिक्षा और खाद्य इस कार्ड पर निर्भर हो सकते है । जिसे मंत्रालयों के सहयोग की जरूरत होगी । देश में मौजूद अवैध रूप से निवास करनेवालों को छाँटकर १.२ अरब लोगों का खाका तैयार करने जैसी विराट चुनौती दुनियाँ में दूसरी नहीं है । इसकी कामयाबी नीलेकणी प्रधानमंत्री एवं सोनिया गाँधी की संयुक्‍त राजनीतिक के साथ ताकत की संयुक्‍त शक्‍ति पर निर्भर करेगी । देश के हर नागरिकों का परम कर्तव्य है कि राष्ट्रहित की इस परियोजना को अपना हरसंभव सहयोग और समर्थन प्रदान करें तथा इसके लिए व्यापक रूप से जनजागरण का अभियान अभी से ही प्रारंभ कर दें । शांति एवं विकास का मूलमंत्र “स्पिरिचुअल मैन डिजिटल सोसाईटी” की परिकल्पना इस परियोजना से अवश्य पूर्ण होगी । सरकार को चाहिए किहर विभाग, हर क्षेत्र में एक नीलेकणी की नियुक्‍ति कर उसे व्यापक अधिकार से लॉस करे । वास्तव में बदलाव की धारा तभी बहेगी । अब जनता का सरकार से प्रश्न है कि “एक नीलेकणी ही क्यों?” देश में मौजूद अव्यवस्थाओं एवं चुनौतियों से निपटने के लिए हमें कई नीलेकणी की आवश्यकता है ।

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