Wednesday, July 15, 2009
नीतीश के बिहार को विशेष दर्जा का मतलब ?
चर्चित अर्थशास्त्री लॉर्ड मेघनाद देसाई की उपस्थिति में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अंग्रेजी में स्वलिखित किताब “स्पेशल कैटेगोरी स्टेटस : ए केस ऑफ बिहार’ विनिबंध जारी करने के बाद पटना में कहा था कि सभी दल और गठबंधन इस बात का दावा कर रहे हैं कि दिल्ली में अगली सरकार वे ही बनाऐंगे परंतु केंद्र सरकार बिहार के हितों की अनदेखी कर रही है । ऐसी स्थिति में आज बिहार के सभी दलों और राजनेताओं से मेरा आग्रह है कि वह प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की शर्त पर ही केंद्र में बनने वाली अगली सरकार को समर्थन दें। नीतीश कुमार के इस बयान के बाद से सत्ता हासिल करने वाली पार्टियों में हलचल मच गई थी । बाद में नीतीश ने अपने बयान पर सफाई देते हुए कहा था कि उनका बयान सभी दलों के लिए था । इसके बाद से एनडीए में दरार पड़ने की चर्चा गरम हो गई थी कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा था कि नीतीश मँझे हुए राजनेता हैं । उनकी माँग जायज है । नीतीश को मालूम है कि एनडीए ही उनकी माँग पूरी कर सकता है । बिहार के बक्सर जिला में हुए चुनावी रैली में भी नीतीश ने यह मुद्दा उठाया था कि “वह सत्ता में आने के बाद इस पर विचार करेंगे । नीतीश के बयान के बाद कांग्रेस जोश में दिखी । कांग्रेस ने भी नीतीश फॉर्मूले को स्वीकार करने के संकेत दिए । पार्टी के वरिष्ठ नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने कहा था कि विशेष दर्जा दिए जाने का क्या मतलब है, अगर नीतीश को कांग्रेस का साथ चाहिए तो उन्हें इसपर बात करनी चाहिए । पार्टी प्रवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा था कि यूपीए सरकार ने बिहार को उतना फंड दिया जितना आज से पहले उसे कभी नहीं मिला । उक्त समारोह में नीतीश ने यह भी कहा कि “केन्द्र सरकार को सब्सिडी देने का तरीका बदलना चाहिए । नीतीश ने कहा कि पीडीएस जैसी योजनाओं के लिए केन्द्र सरकार जो सब्सिडी देती है उसे इसके बदले गरीबों को सीधे नकदी देनी चाहिए तथा जो लोग सब्सिडी के हकदार हैं उनके नाम से बैंकों में खाते खुलने चाहिए और उसमें केन्द्र को पैसा डालना चाहिए । ” बिहार के हालात को लेकर उक्त पुस्तक में मूल रूप से इस बात का जिक्र किया गया है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों दिया जाए ? नीतीश मानते हैं कि बिहार के हितों की अनदेखी की जा रही है इसके साथ केन्द्र के भेदभावपूर्ण रवैये से वह खिन्न हैं । बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने के अथक प्रयास में विफल होने के बाद नीतीश ने यह किताब लिखी, जिसे पूरा करने में उन्हें करीब एक वर्ष लगा है । नीतीश के अनुसार उन्होंने यह बताने के लिए किताब लिखी है कि राज्य कि राज्य में अभी के हालात क्या हैं और बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की आवश्यकता क्यों है? अस्सी पृष्ठ वाली किताब के प्रकाशक ‘एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीच्यूट (आद्री) और एक स्वयंसेवी संगठन है । इस पुस्तक का विमोचन विगत 15 मई को पटना में जाने-माने अर्थशास्त्री और लेखक लार्ड मेघनाद देसाई एवं अध्यक्षता उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने किया था । मुख्यमंत्री ने यह किताब लिखने का मन उस समय बनाया जब राज्य सरकार के बार-बार अनुरोध के बावजूद केंद्र ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया । मुखयमंत्री ने कहा था कि बिहार एक पिछड़ा राज्य है और इसे आगे लाने की जिम्मेदारी उनकी है । कुछ दिनों पहले तक बिहार की स्थिति को लेकर देशभर में चिंता जताई जाती थी । आज बिहार में चल रहे विकास कार्यों की चर्चा देशभर में हो रही है, इसलिए यह सही मौका है जब बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की माँग उठानी चाहिए । उन्होंने कहा था कि मोनोग्राफ में बताया गया है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों मिलना चाहिए । योजना आयोग ने भी विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए जो शर्तें तय की हैं उनपर भी यह राज्य खरा उतरता है जिसे हमेशा से उपेक्षित रखा गया है । बिहार में डेढ़ करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं लेकिन केन्द्र सरकार कहती है कि यह संख्या 72 लाख ही है । अभी भी यहाँ किरासन तेल का कोटा बढ़ाने के लिए कहतें हैं तो उसका जबाब होता है कि कोटा तो नहीं बढेगा, एपीएल के लिए दिए जा रहे तेल में भी कटौती होगी । मुख्यमंत्री ने कहा कि देश में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत 612 यूनिट है और बिहार में मात्र 72 यूनिट है । संक्षेप में कहें तो “तेल देखो और तेल की धार देखो नीति के तहत यह माँग सही वक्त पर सही निर्णय ही है । सबसे महत्वपूर्ण “विशेष राज्य का दर्जा” के बारे में जानकारी ज्यादा अहम है । भारतीय संविधान कुछ विशेष राज्यों को कुछ विशेष जगहों से विशेष सुविधाएँ देता है । विशेष राज्य के दर्जे के तहत हर राज्य को उसकी जरूरतों के हिसाब से सहूलियत दी जाती है । संविधान के आर्टिकल 371 में ऐसी व्यवस्था है । मुख्यतः कुछ आधार को ध्यान में रखकर यह दर्जा दिया जाता है । इसके तहत है : राज्य की पड़ोसी देश से लगनेवाली सीमा पर स्ट्रटीजिक स्थिति, दुर्गम पहाड़ी इलाका, अपर्याप्त आर्थिक और सामाजिक इन्फ्रास्ट्रक्चर भी लचर है । झारखंड बनने के बाद प्राकृतिक संसाधनों का बड़ा हिस्सा भी बिहार से बाहर चला गया । बिहार में औद्योगीकरण का बेहतर वातावरण बनाने के बारे में सोचना चाहिए । बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की माँग पर अगर अमल हुआ तो देश में नया राजनैतिक बवंडर भी बन सकता है । इस माँग पर अमल से विशेष और सामान्य राज्यों के बीच केंद्रीय राशि के बँटवारे को लेकर टकराव बढ़ सकता है क्योंकि इन दो श्रेणियों के श्रेणियों के राज्यों को मिलनेवाले पैसे में से एक का हिस्सा कम होना तय होगा, जिससे कोई भी राज्य यह नहीं चाहेगा कि उसके हिस्से की राशि किसी और को दी जाए । इसके बावजूद भी यदि केन्द्र सरकार बिहार को विशेष दर्जा देती है तो फिर विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त करनेवाले अपने हिस्से को तीस प्रतिशत से बढ़ाकर चालीस या पचास प्रतिशत करने की माँग कर सकते हैं । उस परिस्थिति में सामान्य श्रेणी के राज्य अपना हिस्सा कम होता देख हंगामा कर सकते हैं जिससे केन्द्र और राज्यों के आपसी रिश्तों पर असर पड़ सकता है। सामान्य श्रेणी वाले राज्यों को केन्द्र सरकार योजना के माध्यम से केंद्रीय मदद के मद में जो राशि देती है उसमें से 70 प्रतिशत राशि ऋण के तौर पर दी जाती है जबकि तीस प्रतिशत राशि मदद के तौर पर दी जाती है । दूसरी ओर विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को 90 प्रतिशत राशि मदद और दस प्रतिशत राशि ऋण के तौर पर दी जाती है । इधर केन्द्र में सरकार को समर्थन के एवज में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की माँग पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजद और लोजपा खेमे में बेचैनी पैदा कर दी है । राहुल गाँधी द्वारा नीतीश के कार्यों की प्रशंसा और बढ़ती “राजनीतिक टीआरपी” से लालू और पासवान दोनों के माथे पर शिकन है ।
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