Friday, June 26, 2009

प्रगति मैदान में दिखा शिक्षा के क्षितिज और उद्योग का वृहद दृश्य


प्रगति मैदान में विगत २० एवं २१ जून, २००९ को शिक्षा के क्षितिज और उद्योग वृहद दृश्य दृष्टिगोचर हुआ । FEPL द्वारा आयोजित ७ वीं इंफ्रा एजुका २००९ प्रदर्शनी में प्रत्येक शैक्षिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि के विद्यार्थियों को विभिन्‍न कैरियर विकल्पों से रूबरू होने का मौका मिला । इस पहलकदमी से विभिन्‍न कॉरपोरेट एवं सरकारी योजनाओं और नीतियों के बारे में विद्यार्थियों को जानकारी मिली । इस दौरान इग्नू को समर्थन ने यह सुनिश्‍चित कर दिया कि छात्रों को दूरस्थ शिक्षा पाठ्‌यक्रमों एवं कार्यक्रमों के माध्यम से अतिरिक्‍त लाभ एवं विकल्प कैसे प्राप्त हो । फ्रेंड्‌ज एजीबिशन्स एंड प्रमोशन्स प्रा० लि० की प्रोजेक्‍ट कोऑर्डिनेटर सुश्री मणि वशिष्ठ के अनुसार - “कैरियर संबंधी इस मेले में उच्चतर शिक्षा एवं विशेषकृत पाठ्‌यक्रमों, व्यावसायिक प्रशिक्षण, व्यावसायिक पाठ्‌यक्रमों कंप्यूटर शिक्षा प्रबंधन एवं शिक्षण संस्थानों, असामान्य क्षेत्रों यथा विमान, सत्कार, एनीमेशन आदि में पाठ्‌यक्रमों, अंतर्राष्ट्रीय विश्‍वविद्यालय और कार्यक्रम, शैक्षिक तथा वित्त सरकारी योजनाएँ एवं सहायता आदि पर ध्यान केंद्रित किया गया था । प्रदर्शनी में प्रचुर विकल्प दिखाए गए, इसलिए छात्रों के दाखिला पाने की सफलता दर बहुत अधिक रही । सशस्त्र बलों में कैरियर के विकल्प इस मेले की मुख्य आकर्षण रही । ओएनजीसी के मानव संसाधन निदेशक डॉ० ए० के० बल्यान ने कहा कि “सर्व शिक्षा अभियान का अनुसरण करते हुए साक्षरता फैलाने में ओएनजीसी सामाजिक गतिविधियों के प्रति अत्यधिक प्रतिबद्ध है इंफ्राएजुका २००९ में प्रतिष्ठित प्रोफेसर एवं व्यावसायिकों के साथ संगोष्ठियों, परामर्श एवं नेटवर्किंग सत्रों के माध्यम से अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया गया, जिसका उदेश्य ज्ञान को बाँटना और शिक्षा के क्षेत्र में नवीनतम अभिनव तकनीकों एवं रूझानों के बारे में जागरूकता का प्रसार था । विभिन्‍न क्षेत्रों में शिक्षा ः चुनौतियाँ एवं अवसर संगोष्ठी जिसे हाल ही में बिहार और राजस्थान के इंफ्रा एजुका २००९ संस्करण में बड़ी भारी सफलता मिली थी, दिल्ली प्रदर्शनी का भी एक हिस्सा बन गई । सुश्री वशिष्ठ ने कहा- “इस समारोह में सरकार में निर्णय लेने वालों, विभिन्‍न शिक्षा बोर्डों के सदस्य, व्यावसायिक संस्थानों एवं कॉलेजों के प्रतिनिधि, वैज्ञानिक एवं साहित्यविद, शिक्षा कंसलटेंट्‌स और आर्थिक संस्थाओं के प्रतिनिधि की साझेदारी देखने को मिली शिक्षा ऋणों के माध्यम से प्रबंधकीय एवं तकनीकी शिक्षा में उच्चतर शिक्षा के मायनों में विद्यार्थियो की अभिलाषाओं को पूर्ण करने में बैंक एक अहम भूमिका निभाते हैं । भारतीय स्टेट बैंक, स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर और जयपुर तथा शिक्षा के क्षेत्र में अन्य बड़े खिलाड़ी अपनी सरलीकृत ऋण व्यवस्था के साथ भाग लेकर उच्चतर शिक्षा प्राप्त करनेवाले विद्यार्थियों की मदद की । इस प्रदर्शनी में मुफ्त कंठ से प्रशंसित “ऐम फॉर यूनिटी” के स्टॉल पर विद्यार्थियों द्वारा बदलाव की प्रेरणा का संदेश प्रवाहित हो रहा था । ग्लोबल वार्मिंग के प्रति आम जनमानस को जागरूक करने के साथ-साथ सावधानियों/समाधानों का नुस्खा भी इनके माध्यम से दिया जा रहा था । इस संस्था से जुड़े कुणाल शर्मा एवं शुभम ने बताया कि "CFL बल्ब का इस्तेमाल, इलेक्टॉनिक यंत्रों द्वारा, टायरों में यथोचित हवा भरने, कारों के एयर फिल्टर की जाँच, रिसाइकल्ड पेपर के इस्तेमाल, फ्रीज में थर्मोस्टेट को एडजस्ट (जाड़ा में २ डिग्री नीचे एवं गमी में २ डिग्री उपर) , एसी फिल्टर को बदलने, वृक्षारोपण, न्यूनतम पैकेजिंग द्वारा सामान खरीदने, पुनर्व्यवहार वाले पानी की बोतलों के इस्तेमाल तथा उपयोग नहीं करने की अवधि में कंप्यूटर ऑफ रखकर हम ग्लोबल वार्मिंग को काफी हद तक काम कर सकते हैं । इस संबंध में जनजागरण की आवश्यकता हैं जो सबों के सहयोग के बिना पूरा नहीं हो सकता है ।"

जिनका उदेश्य है - “वेद प्रचार ”

प्राचीन संस्कृति पर हो रहे कुठाराघात तथा धर्मान्तरण को रोकते हुए दलितों और असहायों को सुरक्षा प्रदान करने हेतु जनजागरूकता के उदेश्य से ३ जुलाई से २४ जुलाई २००९ के मध्य दिल्ली से कोलकाता “वेद प्रचार रथयात्रा- २००९” (श्रीमद्‌दयानन्द वेदार्ष महाविद्यालय, गौतमनगर से ) प्रस्थान करेगा । आर्यसमाज को गति देने, वेद के अनूठे प्रचार-प्रसार के इस मिशन हेतु जागृति का शंखनाद में जोर-शोर से जुटे हैं मिथिला निवासी विजय कुमार झा आर्य । विजय कुमार झा के अनुसार मानव उत्थान संकल्प संस्थान के निर्देशन, ज्ञानेन्द्र शास्त्री के संयोजन, अनेकानेक गुरूकुलों के संस्थापक/संचालक, आर्ष शिक्षा के पोषक स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती के संरक्षक तथा डॉ० कृष्णानारायण पांडेय (संयुक्‍त निदेशक आकाशवाणी, नईदिल्ली ) के प्रतिनिधित्व में यह रथयात्रा अपने यात्रापथ पर अग्रसर होगी, जो हापुड़, मुरादाबाद, बरेली, शाहजहाँपुर, हरदोई, सीतापुर, लखनऊ, बाराबंकी, अयोध्या, बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, गोपालगंज, पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, सम्स्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, भागलपुर बाँका, देवघर , दुमका, शांतिनिकेतन के रास्ते के रास्ते १२ जुलाई २००९ को कोलकाता पहुँचेगी एवं १३ जुलाई को संपूर्ण कोलकाता महानगर में विराट शोभायात्रा के अनन्तर आर्यसमाज, विधानसारणी (कोलकाता) के संयोजक में विशाल जनसभा आयोजित की जाएगी । तत्पश्‍चात यह रथयात्रा १४ जुलाई २००९ को कोलकाता से चलकर मेदिनीपुर, खडगपुर, घाटशिला, जमशेदपुर, राँची, हजारीबाद, कोडरमा, नवादा, गया, बोधगया, शेरघाटी, औरंगाबाद, सासाराम, महुआ, वाराणसी, मिर्जापुर, रीवाँ, सतना, चित्रकूट, बाँदा, फतेहपुर, कानपुर, ओरैया, इटावा, मैनपुरी एटा, हाथरस, अलीगढ़, आगरा, मथुरा, वृन्दावन, कोसी, होड़ल, पलवल के रास्ते फरीदाबाद आदि शहरों में महर्षि दयानंद सरस्वती, आर्यसमाज और वेदप्रचार की घूम मचाते हुए २३ जुलाई २००९ को वापस दिल्ली आएगी ।
३ जुलाई २००९ को दिल्ली से यात्रा प्रस्थान काल का सीधा प्रसारण साधना, डीडी-१ तथा इंडिया न्यूज चैनल पर आएगा, जिससे देश के प्रत्येक ग्राम नगर, शहर आदि में दयानंद सरस्वती, आर्य समाज और वेदों की घूम मचेगी । प्रणवानंद सरस्वती कहते हैं कि - “वेद प्रचार रथयात्रा एक भागीरथी प्रयास है । इसी प्रकार की भागीरथी प्रयास को पूर्ण करने के लिए अनेकानेक संसाधनों की आवश्यकता होती है, क्योंकि एक भी संसाधन की कमी मार्ग को अवरूद्ध करनेवाला होता है । हम संसार के अन्य मतों और संप्रदायों को देखते है, जहाँ लोग अंधे होकर धन लुटाते हैं और उनका धन कहाँ जा रहा है, इसका ज्ञान दाता को नहीं होता कितनी बड़ी विडम्बना है कि उनका मत गलत मजहब गलत, शास्त्र गलत, फिर भी उनका सामाज्य संपूर्ण विश्‍व भर में फैला हुआ है और हम उस विश्‍वभर में से केवल दो देशों मे सिमटकर रह गए हैं । इस पर भी तुर्रा ये कि इन देशों में भी हम ठीक से व्यवस्थित नहीं हो पा रहे । हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति पर निरंतर कुठाराघात होते जा रहे हैं । वैसे तो संसार में अनेक प्रचार की धर्म सभाएँ, धार्मिक सभाएँ, संचालित परिचालित हो रही है, परन्तु मेरा मानना है कि वह धर्म, धर्म नहीं है, जिसका आधार वेद नहीं क्योंकि वेदोऽखिलो धर्ममूलम ।
वैदिक मंदाकिनी का प्रवाह अवरूद्ध होता प्रतीत हो रहा था । ऐसी परिस्थिति में मनस्वी युवक विजय कुमार झा द्वारा वेद-प्रचार से संबंधित जो गतिविधियाँ संचालित की जा रही है । उसे और खास करके इस युवक का वेद, महर्षि दयानन्द सरस्वती और आर्यसमाज के प्रचार-प्रसार की भावना के प्रति उत्साह देखते ही बनता है । इस महायज्ञ में हमें न तो किसी तिकड़म का सहारा लेना ऐ और न पाखंड का हमें तो केवल यज्ञ के सच्चे स्वरूप को धारण कर कार्य करना है जिससे सबके जीवन में निखार आ जाए । इस महायज्ञ पर यदि हम पद पर प्रतिष्ठित है । यह यात्रा दिल्ली से चलकर कोलकाता और पुनः कोलकाता से चलकर दिल्ली तक सभी श्रेष्ठजनों को जोड़कर प्रमात्मा की अमरवाणी ‘वेद” का विस्तार करने निकला है । एक ऐसी कड़ी का निर्माण किया जा रहा है जो पश्‍चिम से पूरब को जोड़कर वेद और आर्यसमाज के लिए मजबूत सुरक्षा कवच बन जाए ।
दिल्ली से नालंदा, राजगीर (बिहार) तक की वेद-प्रचार रथयात्रा-२००७ का आयोजन मानव उत्थानसंकल्प संस्थान के निर्देशन में भलीभाँति संपन्‍न हो चुका है । इस यात्रा वृतांत को लिपिबद्ध कर स्मारिका एवं वैदिक साहित्य का निःशुल्क वितरण भी किया जा चुका है । संस्था के अध्यक्ष विजय कुमार झा ‘आर्य’ कहते हैं कि पहले मल्होत्रा बुक डिपो (एम. बी.डी. बुक्स) में वरिष्ठ कंप्यूटर ऑपरेटर के रूप में कार्यरत था । स्वामी एच० जगदीश्‍वरानन्द सरस्वती उन दिनों ऐसे कंप्यूटर ऑपरेटर की तलाश में थे । जो चारों वेदों को स्वर सहित कंप्यूटर तलाश समाप्त हुई । उन्होंने मुझे मल्होत्राजी से माँग लिया और अपने तत्कालीन निवास एच- १/२ मॉडल टाउन-३, नई दिल्ली में कंप्यूटर, प्रिंटर आदि देकर चारों वेदों का कंपोजिंग कार्य प्रारंभ करवाया । विजय कुमार झा के अनुसार “मैं तो घोर पुराणिक परिवार से संबंध रखता था, परन्तु जब से स्वामी जी के सम्पर्क में आया, तब से आर्यसमाज और महर्षि दयानन्द सरस्वती का इतना प्रभाव मुझ पर पड़ा कि मेरे घर में लोग मुझे कहने लगे कि यह नास्तिक हो गया है । मंदिर में नहीं जाता, हनुमान जी की पूजा नहीं करता, शिवजी पर जल नहीं चढ़ाता आदि । कंप्यूटर में विभिन्‍न प्रकाशकों के लिए कंपोजिंग का कार्य करते हुए मैने १३ बार सत्यार्थप्रकाश पढ़ा है । यह ग्रन्थरत्‍न तो ऐसा है कि मात्र एक बार ही इसका स्वाध्याय किसी का भी ह्‍दय परिवर्त्तन करने के लिए पर्याप्त है, परन्तु जो १३ बार इस ग्रन्थ को प्रूफ रीडिंग की दृष्टि से पढ़े तो उसका क्या होगा, सत्यार्थ प्रकाश पढ़े व्यक्‍इत इसका अनुमान लगा सकते हैं । स्वामी जी के निर्देशन में अब तक झाजी ने लगभग १४८० प्रकार के छोटे-बड़े वैदिक साहित्य ग्रन्थ/पुस्तक अपने कंप्यूटर में सुरक्षित की है । स्व० स्वामीजी महाराज के निर्देशन में विश्‍व में सर्वप्रथम चारों वेदों को स्वर व भाष्य सहित कंप्यूटर में सुरक्षित करने का गौरव भी झाजी को ही प्राप्त है । संसार में पाँच प्रकार के व्यक्‍ति होते हैं- उदर पोषक, परिवार-पोषक, जाति-पोषक, राष्ट्र पोषक तथा विश्‍व पोषक । मैं तो स्वयं घोर पौराणिक परिवार से संबंध रखता हूँ, परन्तु जब से स्व० स्वामी जगदीश्‍वरानन्द सरस्वतीजी के संपर्क में आया, तब से वेद-पथ का ही अनुगामी बन गया । पूर्व में निकाली गई यात्राओं के अनुभव के आधार पर और स्वामीजी के संरक्षकत्व में यह यात्रा सफलतम रूप में संपन्‍न हुई । स्वामीजी हमेशा महर्षि दयानन्द सरस्वतीजी के इस उपदेश को हमेशा बोला करते थे कि “जिस देश में यथायोग्य ब्रह्यचर्य, विद्या और वेदोक्‍त धर्म प्रचार ह्ता है वही देश सौभाग्यवान होता है । है तो यह कुछ पंक्‍तियों की बात, परन्तु जिस दिन यह बात लोगों के समझ में आ जाएगी । उसी दिन युग-परिवर्त्तन हो जाएगा । वेद सब सत विद्यायों का पुस्तक है, वेद का पढ़ना, सुनना, सुनाना सब आर्यो का परम धर्म है । स्वामी स्व० जगदीश्‍वरानंद सरस्वतीजी कहते थे कि “वेद ईश्‍वर का दिव्य ज्ञान है । यह ज्ञान परमपिता परमात्मा ने सृष्टि के आदि में अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा के ह्‍दयों में दिया था । यह ज्ञान सार्वभौमिक और सार्वकालिक है । वेद केवल हिंदुओं के लिए नहीं है, यह तो मानवमात्र की सम्पत्ति है ।
विगत रथयात्रा के अनुभव पर आर्य समाज के सभामंत्री प्रकाश आर्य कहते हैं- “हमने यह अनुभव किया कि यात्रा में जहाँ कई वाहन रहते हैं, वैदिक प्रचार-प्रसार की अपार सामग्री रहती है, कई माईक सेट और अभिव्यक्‍ति के साधन रहते है, कई विद्वानों और जिज्ञासुओं को वेदोक्‍त विचार अभिव्यक्‍ति करने का अवसर मिलता है, साथ-साथ रहने से प्रेमभाव और समझ बढ़ती है, बहुत सा साहित्य निःशुल्क भी वितरित किया जाता है, जिससे साधारण जनता में वेदों के प्रति न केवल निष्ठा हो बल्कि वास्तविकता का ज्ञान बढ़े । इस प्रकार की यात्राएँ बहुत दूर तक धार्मिक भावना और विचारों को भी सामाजिक बल देती हैं, समाज की विकृतियों पर भी अंकुश लगाती है । इस यात्रा का मुख्य उदेश्य यही है कि महर्षि दयानंद सरस्वतीजी ने जिन सिद्धान्तों पर आर्यसमाज की स्थापना की थी ,उसकी निरंतरता बनी रहे, क्योंकि हम सब अनुभव कर रहे हैं कि इस समय सनातन वैदिक धर्म के अनुयायी अपने मूल से दूर होकर भटक गए हैं । ये यात्राएँ इस भटकाव को रोककर अपनी संस्कृति के प्रति अपने समस्त आस्था और निष्ठा को सुदृढ़ करेगी, साथ ही महर्षि दयानंद के व्यापक संदेश “वेदों की ओर लौटो” को भी साकार रूप प्रदान करेगी । जब तक भारत के धरती पर एक-एक ग्राम में यह प्रचार-प्रसार नहीं होगा, तब तक महर्षि दयानन्द का स्वप्न पूरा होना अभी बहुत दूर है । सुप्र समाज के जागरण का इससे अच्छा तरीका कोईऔर नहीं हो सकता । इस प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन ही जहाँ लगातार ओडम ध्वनि और वैदिकमंत्रों का उच्चारण प्रतिध्वनित होता रहता है, वहाँ लाखों, करोड़ों लोग स्वतः ही इस ओर आकर्षित हो जाते हैं, यह कोई कम नड़ी बात नहीं है । चाहे हम आर्यसमाज के सदस्य हो अथवा सनातन धर्मप्रेमी हों । वेद हमारी अमूल्य धरोहर है, जिसे अब संयुक्‍त राष्ट्रसंघ ने भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार कर लिया है । अतः मिलकर इस कार्य में अपना-अपना अमूल्य योगदान करें और “वेद की ज्योति जलती रहे” केवल बोलकर नहीं बल्कि हम विश्‍व के पटल पर भी इसे साकार करने में सम्पूर्ण श्रद्धा के साथ प्रयासरत रहें ।
वैदिक प्रवक्‍ता, वेदप्रकाश कहते हैं कि संस्थान द्वारा दूरदर्शन पर प्रसारित किया जा रहा यह वेद-प्रचार कार्य एक अभूतपूर्व कार्य है, कयोंकि अब तक वेद-प्रचार अधिकांशतः भवनों की चारदीवारी तक ही सीमित रहा है, परन्तु वह अब दूरदर्शन द्वारा समपूर्ण विश्‍व में फैल रहा है, जो मानवजाति को वेदों के प्रति अत्यंत श्रद्धा उत्पन्‍न करने के लिए अद्‌भुत प्रयास सिद्ध होगा । आजकल कई और भी चैनल वेद-प्रचार में संलग्न हैं, परन्तु मानव-उत्थान संकल्प संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम अति व्यावहारिक है । सामान्यजन भी इसको समझ सकते है । यह भी नहीं भूलना चाहिए कि संस्थान अभी बाल्यावस्था में ही है और इसके संसाधन भी अत्यंत हैं । अनेक अन्य कठिनाइयों के होते भी यह प्रसारित कार्यक्रम सरधड़ की बाजी लागानेवाला है, अतः सराहनीय है ।
दयानंद ‘अर्पण’ के अनुसार आनेवाले समय में मानव उत्थान संकल्प संस्थान मानव कल्याण के समस्त संवेदनशील और आज के संदर्भ में मानव जाति की बढ़ती हुई समस्याओं पर एक सजग विश्लेषण और क्रियान्वयन करके विश्‍वपटल पर अपनी छाप बनाएगा । रणधीर दिंह आर्य कहते हैं कि “आर्यसमाज में जो शिथिलता आज दृष्टिगोचर हो रही है, उस पर भी सामयिक चिन्तन हो तो इस यात्रा का महत्व और बढ़ जाएगा । बदलती परिस्थितियों में अतीत हमें प्रेरणा एवं उत्साह तो दे सकता है, लेकिन गतिशीलता, तेजस्विता और विश्‍वसनीयता हमें वास्तविक समस्याओं का मंथन करने से ई हस्तगत होगी ।
महावीर बत्रा अपने अनिभव को निम्न पंक्‍तियों में बयान करते हैं-
मार्ग में कई प्रकार के प्राकृतिक दृश्यों को देखकर मुझे अनायास वेद की पंक्‍तियाँ याद हो आई- “विष्णु कर्माणि पश्यत” तथा
“गर आँख से नहीं देखा तो क्या हुआ या रब
तेरा होना बताता है तमाशा तेरी कुदरत का” ।
सब कुछ हो रहा है आज तरक्‍की के जमाने में,
क्या बात है कि आदमी आदमी नहीं बनता?"
अंत में वे किसी विद्वान की पंक्‍तियों का उल्लेख करते हैं,
मनुष्य देवता न बने, कोई गम नही,
मनुष्य दानव न बने, यह भी कम नहीं,
न जीए दूसरों के लिए कोई गम नहीं
जीने दे दूसरों को, यह भी कम नहीं,
न बने सहारा किसी का, कोई गम नहीं,
न तोड़े सहारा किसी का, यह भी कम नहीं,
रोए न दूसरों के लिए, कोई गम नहीं,
न रूलाओ दूसरो, यह भी कम नहीं,
न उठाए गिरे हुओं को, कोई गम नहीं
उठतों को न गिराए, यह भी कम नहीं,
न जाने दूसरों को, कोई गम नहीं,
अपने को जान पाए, यह भी कम नहीं,
मनुष्य देवता न बने, कोई गम नहीं,
मनुष्य मनुष्य ही रहे, यह भी कम नहीं ।

संकल्प की सार्थकता

आज तेज रफ्तार वाली भागदौड़ की जिंदगी ने हर इंसान को इतना व्यस्त बना दिया है कि पूरी दिनचर्या का मशीनीकरण हो गया है । प्रतियोगिता के युग में आज हर कोई एक दूसरे से आगे निकल जाने के लिए उतावला हो रहा है । पारस्परिक प्रतिद्वन्दिता की तीव्र भावना की वजह से युवा वर्ग असमंजस की सी स्थिति में आ गया है । क्या करें, क्या न करे ? एक ओर रोजगार की व्यापक संभावनाएँ बढ़ी है तो दूसरी ओर युवा वर्ग आज कुछ और कल कुछ, प्रत्येक क्षण अपने उदेश्य के प्रति उदासीन देखा जा सकता है । पूर्ण सफलता प्राप्त करने में वह अपने को असहाय सा महसूस करता है । ऐसी स्थिति में हम अपने कैरियर की नौका, लहरोंके हवाले तो नहीं कर रहे ?
आज ‘यदि’ ,किन्तु और ‘परन्तु’ का समय नहीं है । समय है हमें अपने लक्ष्य या उदेश्य के प्रति समर्पित होने का । संकल्प यह होना चाहिए इसे, मैं करूँगा । कार्लाइल ने कहा था कि “आपने जीवन का एक लक्ष्य बनाओ और उसके बाद अपनी सारी शारीरिक और मानसिक शक्‍ति को उसमें लगा दो । जब तक अपनी संकल्प शक्‍ति को किसी एक काम में केन्द्रित नहीं करेंगे तो एकाग्रता नहीं आएगी । सुकरात ने सच ही कहा था कि चित्त की चंचलता से कार्य न कभी सिद्ध हुआ है और ना हो सकता है । कुछ भी करने के लिए हमें मन को एकाग्र करना होता है । उसे एक ओर लगाना होता है । जब वह एक ओर लगता है तो हम केन्द्रित होते हैं । तब जाकर आप कुछ सार्थक कर पाते हैं । मन अगर काबू में नहीं है तो आप केन्द्रित हो ही नहीं सकते और बिना केन्द्रित हुए कोई काम नहीं हो सकता ।
दृढ निश्‍चय होता है तो मूर्छा टूट जाती है और जागरूकता बढ़ जाती है । जागरूकता से वर्तमान में जीने का, कुछ करने का सूत्र उपलब्ध हो जाता है, वह सूत्र होता है संकल्प । कार्य सिद्धि संकल्प पर निर्भर होती है न कि साधनों की सम्पन्‍नता पर । वक्‍त की माँग है कि सफलता प्राप्त करने के लिए ऐसे सकंल्पकृत रहे कि जैसे अपना जीवन उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ही है । तभी संकल्प की सार्थकता है । मंजिलें उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है । सिर्फ पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान भरी जाती है । हौसले बुलन्द हों और मन में कुछ कर गुजरने की दृढ़ इच्छा हो तो मंजिल खुद व खुद कदम चूम लेती है ।

पापा कब आएँगे ?

अब मेरे पिता इस दुनियाँ में नहीं रहे परन्तु मैं स्वयं तीन बच्चों का पिता बन चुका हूँ । अपने सभी भाई-बहनों में बड़े होने के कारण मुझे सबसे ज्यादा प्यार मिला । मेरी जरा सी तबियत खराब होने पर मेरे पिता सबसे ज्यादा चिंतित हो जाया करते थे । उन्हें मेरे खाने, पहनने घूमने-फिरने तथा शिक्षा-दीक्षा की सर्वाधिक चिंता थी । मां में अगाध प्रेम एवं ममता थी तो पिता में पितृत्व भाव, संवेदना एवं, सीख देने का भाव था । चूँकि वे प्राइवेट ट्‌यूशन करते थे इसलिए सभी ट्‌यूशनों में हमें भी साथ ही रखकर पढ़ाते थे । इस तरह एक औसत विद्यार्थी होने के बावजूद भी मैं अपनी कक्षा में प्रथम आता रहा । वे हमेशा मुझे लेखन प्रतियोगिता छात्रवृत्ति परीक्षा एवं विद्यालय की परीक्षा हेतु तैयारी करवाते रहते थे । पढ़ाने के लिए वे सुबह ४ बजे ही उठा दिया करते थे । नींद आने पर वे मेरी उंगली लालटेन से सटा देते थे । नींद तो टूट जाती थी पर उस वक्‍त अपने पिता के प्रति एक कसाई की भावना बन जाती थी । कभी-कभी वे मुझे दूसरों की शिकायतों में आकर बेवजह मेरी पिटाई करने लगते थे । शुरू में मुझे काफी पीड़ा हुई परंतु बाद में मुझे अहसास हुआ कि वे मुझे शिक्षित , संस्कारी और आदर्श व्यक्‍ति बनाना चाहते थे । उनका प्यार अनुशासन से लबरेज था । मैंने उनके साथ विभिन्‍न कार्यक्रमों, सत्संगों, प्रवचनों एवं पर्यटन का आनन्द उठाया । वे अक्सर मुझे लद्युकथा, प्रेरक प्रसंग एवं सारगर्भित तथ्यों से अवगत कराते रहते थे । कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण मेरी शिक्षा-दीक्षा ज्यादा नहीं हो सकी परन्तु मैंने प्रण किया कि मैं भी अपने पिता की तरह उनसे बहतर पिता बन कर दिखाऊँगा उनके विचार, मूल्य और आदर्श आज भी हमारे लिए प्रेरणास्त्रोत की तरह है । मैं उन्हें अब भी अपने मन के करीब ही पाता हूँ । अपने पिता से मैंने संकल्प लिया था कि एकदिन मैं बड़ा व्यक्‍ति बनकर दिखाऊँगा । आज वो मेरे बीच नहीं है परन्तु मेरी संकल्पशक्‍ति मे कमी नहीं आई है । वे अक्सर मुझसे कहा करते थे कि जो गलतियाँ मैने की उनसे तुम सीख लो । अपने पिता द्वारा दिए गए मूलमंत्रों को अपने जीवनशैली में उतारने की कोशिश आज में कर रहा हूँ । मेरा सपना है है कि मेरे बच्चों को एक ऐसा पिता मिले जिस पर वह गर्व कर सके । मेरा मानना है कि हर पिता को अपने बच्चे से कुछ पाने का सपना देखने के बजाय उसको पूर्ण तैयार करने हेतु अपना योगदान देना चाहिए । पिता का प्यार और माँ की ममता के पूर्ण स्वरूप से ही बच्चों का नैतिक विकास हो पाता है । कहावत है कि माँ का प्यार अंधा परन्तु पिता का प्यार आँख वाला होता है ।
ऑफिस में भी मुझे अपने बच्चों की याद आती है । मस्तिष्क के एक कल्पना का चित्रण होने लगता है । ऑफिस से लौटने पर पत्‍नी अक्सर कहती है कि बीमार बच्चे अक्सर अपने पिता का नाम लेते रहते हैं खासकर मेरा छोटा बेटा सुकांत सुयश पूछता रहता है कि “पापा कब आऐंगे ?” मेरी पत्‍नी की शिकायत रहती है कि मेरे इतनी सेवा के बावजूद भी ये बच्चे आपके प्रति ईमानदार और समर्पित क्यों रहते हैं ? मेरा उत्तर होता है कि इसका कारण मेरा बच्चों के प्रति सबसे ज्यादा सजग होना और उसके आवश्यकताओं की पूर्ति करना हैं । बचपन में मेरी आदतों का प्रभाव आज मेरे बच्चों पर भी हुई जिसका वैज्ञानिक कारण है । हाँ इतना जरूर है कि आज मेरे बच्चे जितने तेज, चंचल, और जिज्ञासु हैं उतना मैं बचपन में नही था । शायद इसका कारण टीवी, मीडीया और इंटरनेट है । आज सामर्थ्य से मैं अपनों बच्चों को जो सुविधा और साधन उपलब्ध करा पा रहा हूँ उतना मुझे अपने बचपन में नहीं मिल सका । आज मेरा पितृत्व जाग उठा है और मुझसे कहने लगा है कि युग के साथ बदलाव लाओ, तुम्हें जो नहीं प्राप्त हो सका, उसका दंड नए पीढ़ी को क्यों ? इसलिए मेरे मन के कोने में एक विचार उठता है कि पिता की जिम्मेदारियाँ कितनी कठिन है, बचपन कितना सुंदर और अनमोल था । वर्तमान मे कोई मुझसे पिता के बारे में अपना अनुभव पूछे तो मैं इतना ही कहूँगा कि “पिता महान होते हैं । यह समझने में उम्र निकल जाती है और जब वाकई समझ में आता है कि पिताजी ही सही थे, तब तक काफी देर हो चुकी होती है । ” मैं आपके समक्ष पितृप्रेम का एक प्रसंग पेश करा हूँ । “एक व्यक्‍ति अपनी गाड़ी को पॉलिश कर रहा था । उसी समय उसके चार वर्षीय पुत्र ने एक पत्थर उठाया और कार पर लकीरें खींचने लगा । व्यक्‍ति ने गुस्से में बच्चे के हाथ पर कई बार मारा । वह भूल गया कि उसके हाथ में एक पेचकस था । नतीजतन बच्चे ने अपनी सारी उंगलियाँ कई फ्रैक्चर होने के कारण खोदी । घर आकर व्यक्ति ने पत्थरों के निशान को देखा, बच्चे ने लिखा था ‘आई लव यू डैड!

महिलाएँ जो पुरुषों के लिए है आदर्श

“ मैं कभी स्कूल नहीं गई । इसका मुझे दुःख था, लेकिन बेटी की सफलता से मुझे बहुत संतोष मिला है । लगता है जैसे मैंने ही पढ़ाई पूरी कर ली । ” यह उक्‍ति है इस वर्ष आइए‍एस बनने वाली रतनकंवर की मां का जो हमारे पुरूष प्रधान समाज के लिए प्रेरणा का श्रोत है । एक अनपढ़ माँ की जिद ने बेटी को आइए‍एस बना दिया । देश की सभी महिलाओं को प्रकाश कँवर जैसी माँ का अनुकरण करना चाहिए क्योंकि उन्होंने सिद्ध कर दिखाया है कि संकल्प शक्‍ति से एक अनपढ की भी आइए‍एस बना सकती है । फिर ऐसी संकल्पशक्‍ति औरों में क्यूँ नहीं दिखती ? माता-पिता को अपने कर्तव्यपालन की शिक्षा देती है यह घटना इससे यह भी सबक मिलता है कि जनजागरण के माध्यम से इन जैसी महिलाओं के नेतृत्व में एक मुहिम चलाई जाए जिससे समाज की सोच बदल सके ।
प्रकाश कंवर को अपने अनपढ़ होने का मलाल था, लेकिन साधारण परिस्थिति में गुजर-बसर करते हुए आज अपनी बेटी डॉ. रतनकंवर गढ़वी चारण (२४) को आईए‍एस बना देखकर वे गौरवान्वित है । रतनकंवर ने पहले अपनी मेहनत से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की और इस वर्ष यूपीएससी की परीक्षा में १२४ वीं रैंक हासिल करने में कामयाब रही । अहमदाबाद के मणिनगर में हरिपुर इलाके की धीरज सोसायटी में रहने वाली रतनकंवर के पिता हड़मत सिंह आलू प्याज के व्यापारी हैं । उन्होंने बताया कि उनकी बेटी बचपन से ही पढ़ाई में होशियार रही है । दसवीं और बारहवीं की परीक्षाओं में उसने ९१ फीसदी से ज्यादा अंक प्राप्त किए । रतनकंवर के दो भाइयों भवदेव और सिद्धार्थ ने बातया कि मां ने तीनों बच्चों को उच्च शिक्षा और तरक्‍की के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया । इसके चलते भवदेव ने बाई-आईटी व एमबीए और सिद्धर्थ ने बीटेक किया तो रतनकंवर ने एमबीबीएस करने बाद आईए‍एस बनने की ठानी । भाइयों का कहना है कि आईए‍एस बनकर रतनकंवर ने मां की वर्षों पुरानी इच्छा पूरी कर दी है । रतनकंवर ने भी अपनी सफलता का श्रेय मां को देते हुए बताया, ‘डॉक्टर बनने के पहले और यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी के दौरान ऐसा लगता था जैसे मां को ही परीक्षा देनी है । वे मेरे साथ पूरी रात जागती रहती थी । "
महिला सशक्‍तीकरण के बारे में आप रोज सुनते हैं । हम आपको एक ऐसी युवती के बारे में बता रहे है, जिसने इसे अपने जीवन में उतार कर दिखा दिया । परिवार के भरण-पोषण के लिए वह नाव चलाती है, पितृपक्ष में पूजा कराती है और पढ़ती तो है ही । यह है लखनऊ की पारूल तिवारी । चार बेटियों और एक बेटे की मां रेखा कृतज्ञता जाहिर करते हुए कहती हैं कि मेरी बेटी पारूल ने परिवार को संभाल लिया, उसने वह किया, जो बेटे नहीं करते । १९ बरस की पारूल लखनऊ विश्‍वविद्यालय में बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा है । परिवार ठाकुरगंज में रहता है । पिता लल्लू तिवारी बीमार होने से पहले नाव चलाते और क्रियाकर्म का पुश्तैनी काम करते थे । वह बीमार हुए, तो आगे आयी पारूल काम करते थे । वह बीमार हुए, तो आगे आयी पारूल । उसने सात साल पहले गोमती नदी के कुड़िया घाट पर नाव चलाना सीखा और अब लोगों को नदी की सैर कराती है । यहां से होने वाली आमदनी से गृहस्थी की नाव चलती है । यह काम पारूल की मजबूरी है । पिता बीमार हुए, तो बड़े भाई से मदद नहीं मिली । घर में तीन छोटी बहनें और थी । ऐसे में कोई भी समझदार और जीवट वाली बेटी जो करती , वही पारूल ने किया । बेटी बेटा बन गई । वह रोज सुबह छह बजे कुड़ियाघाट आ जाती है । क्लास हुई, तो दोपहर १२ बजे घाट पहुंचती है । उसने साबित किया कि काम छोटा बड़ा नहीं होता, मेहनत और ईमानदारी हर काम को महत्वपूर्ण बनाती है ।

कुछ भी शुद्ध नहीं है दिल्ली में

दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित लाख घोषणाएँ करें मगर सच्चाई यही है कि दिल्ली में मूलभूत आवश्यकताओं हेतु जनता बेबस है । सरकार की हवा हवाई घोषणाएँ धरातल पर कार्य नहीं कर रही है एवं सरकार अपने मंत्रीमंडल की सुविधाएँ बढ़ाने हेतु प्रतिबद्ध है । उन्हें जनसमस्याओं को नजदीक से देखने की फुरसत नहीं है । उदाहरण स्वरूप दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने सैंपल जाँच के बाद ५१ जगहों के पानी को इस्तेमाल के लिए अनफिट बताए जाने के बावजूद लोग गंदा पानी पी रहे हैं और डायरिया- कॉलरा जैसी बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं । दिल्ली के अधिकांश अस्पतालों में मरीजों की बढ़ती संख्या को देखकर इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है । अस्पतालों में पूरी दवा तक उपलब्ध नहीं है । कॉमनवेल्थ गेम की तैयारी में सरकार इस कदर उलझ चुकी है कि उसे दिल्ली वासियों की वर्त्तमान समस्याओं से कोई लेना देना नहीं रह गया है । मुख्यमंत्री एमसीडी, डीडीए, दिल्ली पुलिस को अपने कब्जे की रट लगाने की आड़ में संवेदनशून्य हो चुकी है ।
दिल्ली मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार डॉ० गिरीश त्यागी के अनुसार -
"दिल्ली में कुछ भी शुद्ध नहीं है । शुद्ध वायु और पानी का अभाव तो है ही, अब तो खाद्य पदार्थ भी मिलावटी हो चले हैं । बच्चों के पीने के लिए दूध तक शुद्ध नहीं है, खाना बनाने के लिए शुद्ध तेल और घी मिलना मुश्किल है । इस सबका कारणा प्रभावी सरकार तंत्र का न होना है । मिलावटखोरों को पकड़ने के लिए सरकार ने दस्ता जरूर बना रखा है, लेकिन उसमें एक तो कर्मचारियों की कमी है और दूसरी यह दस्ता निष्क्रिय है । दिल्ली में खाद्य अपमिश्रण विभाग स्वास्थ्य विभाग के तहत आता है । इस विभाग में एक इंस्पेक्टर को कम से कम २० नमूने एक ही महीने में लेने चाहिए । इस नियम का भी पालन नहीं हो रहा है । सरकार को इस बारे में कड़ा कदम उठाना चाहिए । पर्व-त्यौहार के आसपास एकाध दुकानों पर छापेमारी कर यह दस्ता अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है । होना तो यह चाहिए कि सरकार हर जोन में निअगरानी समिति का गठन करे और उन्हें सातों दिन और २४ घंटे सक्रिय रहने का निर्देश दे । जिस भी दुकान से मिलावट की सूचना आ रही हो वहां तत्काल छापेमारी हो और तत्काल ही उसका पंजीकरण भी रद्द हो । मिलावटखोरों के खिलाफ कानून भी काफी ढीले हैं, जिसकी वजह से इनका हौसला बढ़ता है । अगर मिलावटखोरों को कड़ी से कड़ी सजा मिले तो इस पर रोक लग सकती है । सजा मिलने पर दूसरों में भी इसका संदेश जाएगा । फिर मिलावटी वस्तुओं को बेचने से पहले लोग दस बार सोचेंगे । मिलावटखोरों को सिर्फ अपने मुनाफे की फ्रिक होती है । आम जनता के सेहत से उनका कोई लेना-देना नहीं होता है । मिलावटी वस्तुएं हमारे ह्‍दय से लेकर लीवर व किडनी तक खराब कर देती है । यह एक ऐसा अपराध है, जिससे एक-दो व्यक्‍त्ति नहीं, बल्कि पूरा समाज प्रभावित होता है । इसे रोकना सरकार की नैतिक और कानूनी जिमेदारी है, जिससे वह बच नहीं सकती है ।"
दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य अधिकारी डॉ० राकेश कुमार कहते हैं कि-"प्रभावशाली लोग और प्रभावशाली देश, दोनों कानून और मानवता से खुद को ऊपर समझते हैं । दिल्ली में पहुंचे स्वाइन फ्लू के वायरस एच१ एन१ ने दोनों के इस मानसिकता को उजागर कर दिया है । दिल्ली का एक उद्यमी और उसकी मां को जब एच१ एन१ ने जकड़ा तो उन्होंने खुद को कानून से ऊपर समझते हुए नोडल अस्पताल में इलाज कराने की जगह अपने फॉर्म हाउस में रहना उचित समझा । एच१ एन१ के लिए राममनोहर लोहिया अस्पताल को नोडल अस्पताल बनाया गया, लेकिन वह उद्यमी सरकारी अस्पताल के नाम से ही नाक-भौं सिकोड़ने लगा । उसकी शेखी की वजह से एच१ एन१ का वायरस और भी लोगों को संक्रमित कर सकता था । यह एक व्यक्‍ति से दूसरे व्यक्‍ति में फैलने वाला बीमारी है, इसलिए यह महामारी का रूप भी ले सकता था । लेकिन इसकी उसे परवाह ही कहां थी । धन की ऐंठन ने उसे आम लोगों से दूर जो कर दिया है ।"
यही हाल प्रभावशाली देश अमेरिका का है । जब भी विकासशील और तीसरी दुनिया के देशों में कोई बीमारी फैलती है तो अमेरिका यूरोपीय देशों को अपने साथ करते हुए उस देश को अलग-थलग करने की कोशिश करता है । मदद पहुंचाने के नाम पर वह एक प्रपंच रचता है, जिसमें पीड़ित देश दया का पात्र होकर रह जाता है । वर्षों से अफ्रीकी और एशियाई देशों के साथ उसने यही किया है । आज भारत में एच१ एन१ वायरस का प्रवेश द्वार अमेरिका ही बना हुआ है । भारत में बीमारी लेकर आने वाले अधिकांश लोग अमेरिका से ही आ रहे हैं । आज अमेरिका खुद को अलग-थलग करने की जगह फिर से दुनिया को नसीहत दे रहा है । वह अपने देशों के नागरिकों के लिए निर्देश जारी करने से अधिक दूसरे देशों के लिए निर्देश जारी कर रहा है । सच तो यह है कि किसी भी तरह के कायदे का पालन सिर्फ गरीबी और तीसरी दुनिया के देशों के लिए ही रह गया है ।

यह दिल्ली शहर है जनाब !

दिल्ली शहर का मिजाज ही भागदौड़ वाला है । इसलिए यहाँ के रहने वाले अधिकांश लोग ‘पहले अपना काम निपटाओ’ के अंदाज में रहते हैं । निपटाने के अंदाज का यह आलम है कि कई बार सुकून और शांति के मौकों को भी वह उसी अंदाज में निकलने देते हैं । पर्व-त्यौहार के मौके पर जब मंदिरों की तरफ भारी भीड़ उमड़ती है तो दर्शनार्थियों की लंबी कतार लग जाती है । ऐसे अवसर पर शहर के अनेक लोगों को बड़े शान से यह कहते सुना जा सकता है कि फलाँ मंदिर में अपना जुगाड़ है और वे बिना पंक्‍ति के दर्शन करके लौट आऐंगे । अन्य मंदिरों में भी पंक्‍तिबद्ध श्रद्धालुओं के बीच कुछ लोग आगे-पीछे और दाएँ-बाएँ कर किसी तरह मंदिर के दरवाजे तक मत्था टेंकने हेतु पहुँचने की जुगत में रहते हैं । पता नहीं मत्था टेंकते वक्‍त भी उनका मन एकाग्रचित्त रहता है या फिर दूसरे जुगाड़ में भ्रमित हो जाता है । कवि एवं नेचुरोपैथी डॉक्टर पृथ्वी सिंह केदारखंडी कहते हैं कि - “असल में व्रत, त्यौहार मनुष्य को सात्विकता का सौम्यता का, अध्यात्म का मतलब बताने के लिए है । व्रत और उपवास के कई फायदे होते हैं । नई फसल और बदलते मौसम के कारण आदमी सात्विक जीवन जीते हुए ध्यान रखे तो निश्‍चित रूप से उसे कई मानसिक और शारीरिक लाभ मिलेंगे । यदि उसे मानसिक शांति मंदिरों में जाकर पूजा अर्चना करने से मिलती है तो वह वहाँ पहुँचे लेकिन व्रत या आस्था का यह मतलब तो कम से कम सबको पता होना चाहिए, कि इस दौरान आपसी बैरभाव न हो, धक्‍का-मुक्‍की की स्थिति हो तो कम से कम कुछ पल के लिए दूसरों को पहले निकलने दे या कम से कम पंक्‍तिबद्ध होकर अपनी बारी का तो इंतजार कर लें । भागदौड़ वाली इस जीवनशैली और तेज रफ्तार शहर में अगर हम संयमित जीवन जी लें तो निश्‍चित रूप से सुकून मिलेगा और सही मायने में उपासना भी हो जायेगी । ”
सार्थक जन मंच के संयोजक रमेश सिंह राघव कहते हैं कि -
अपना शहर सहज नहीं रहा, ना ही उसकी सांस सहज रह गयी है । धूल धक्‍कड़ जाम और दिन भर की थकाऊ दिनचर्या । आम आदमी के लिए शहर की गति और इसके रास्ते ऐसे भूल भुलैया बन गए जिसमें उसकी पूरी उम्र खप जाती है । अंधेरी जगहों से रोशनी की तलाश में शहर आए लोगों के शहरों में ‘रोशनी का अंधेरा’ दहशत में डाल रहा है । पूरा जोर लगाने के बाद भी अंत में वे अपने आपको लक्ष्य से दूर हारा और भटका हुआ पाता है । जिस जीवटता के साथ शहर में रच-बसने का प्रयास करता है, उसी अंदाज में अंततः वह मर खप जाता है । इस स्थिति के कारण लोग एक सतत खीझ और तनाव में रहते हैं । उन्हें पता नहीं होता कि वे आखिर किस बात से खफा हैं और अपना गुस्सा आखिर निकालें तो आखिर किस पर निकालें । भीतर दबा यह गुस्सा कहीं कोई दरार मिला नहीं कि तूफानी गति से बाहर निकल कर लोगों को बेकाबू कर देता है । जरा जरा सी बातों में लोगों का धीरज चूक रहा है । बेहद मामूली चीजों पर भड़क कर लोग जान देने व लेने लगे हैं । चाहे रोटी देने में होटल के नौकर ने देरी कर दी हो या कोई अपने मित्र के चार हजार की रकम चुकाने में असमर्थ है और अपने मित्र के तानों का सामना नहीं करना चाहता है । तानों से बचने के लिए वह शख्स अपने मित्र की जान लेने से भी संकोच नही करता । आज दिल्लीवासियों को इस गंभीर विषय पर चिंतन करने की आवश्यकता है ।

कैसी हो वर्तमान शिक्षा?

आज मानवता को जोड़नेवाली शिक्षा की आवश्यकता है । एकलव्य ने कभी विद्यालय में औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की किन्तु वे आगे बढ़े । लगन और निष्ठा ही लोगों को शिखर तक पहुँचाता है । शिक्षकों को चाहिए कि माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों से मित्रवत्‌ व्यवहार करें न कि प्राथमिक विद्यालय के विद्यार्थियों की तरह । आज हम न तो पुरानी परंपरा को छोड़ रहे हैं और न आधुनिक को पकड़ रहे हैं । बीच मंझधार में फँस गए हैं । छिपी प्रतिभा जागृत करने के प्रयास को हर संभव सहायता दी जानी चाहिए । हम केवल किताबी शिक्षा से अच्छे नागरिक नहीं बन सकते । इसके लिए जरूरी है कि एकलव्य की तरह मूर्ति बनाकर शिक्षा ग्रहण की जाय । इसके लिए शिक्षक के साथ-साथ अभिभावकों का भी दायित्व है कि बच्चों को उसके अनुरूप ढ़ालें । परिवार ही बच्चों की प्रथम पाठशाला होती है । आज समय के अनुसार शिक्षा पद्धति में भी बदलाव की आवश्यकता है । मैकाले की शिक्षा पद्धति का अनुकरण कर हम विद्यार्थियों के सर्वागीण विकास की कल्पना को साकर नहीं कर सकते हैं । मानव उत्थान संकल्प संस्थान के विजय कुमार झा आर्य के अनुसार भारत देश के नागरिक होने के नाते हमें अपनी राष्ट्रभाषा का शुद्ध ज्ञान होना ही चाहिए । आप अपनी मातृभाषा और राष्ट्रभाषा के प्रति कितने आस्थावान्‌ और कितनी सीमा तक इसके ज्ञाता है, इस विषय पर हुए सर्वेक्षण में अधिकांश विद्यार्थियों के संतोषजनक परिणाम नहीं निकले । क्या यही हमारी शिक्षा व्यवस्था है जो हमारी भारतीय सभ्यता, संस्कृति, साहित्य और लिपि से विद्यार्थियों को अलग कर रही है । एक प्रकाशक होने के नाते हमने विद्यार्थियों से अशुद्धि निकालो प्रतियोगिता के बहाने जनजागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं । सरकारी संस्थाओं में इच्छाशक्‍ति के अभाव होने के कारण एवं अफसरों के अंग्रेजी परस्त होने के कारण हिंदी की दुर्गति हो रही है । उनके संस्थान द्वारा “राष्ट्रभाषा पोषक पुरस्कार वितरण योजना चलाई जा रही है जो विद्यार्थियों की भारतीय संस्कृति एवं भाषा का ज्ञान कराएगी । आज गुरूकुल शिक्षा पद्धति की महत्ता पर चिंतन की आवश्यकता है । क्या कारण है कि वर्त्तमान शिक्षा पद्धति से निराशा, अपराध और कुंठा की भावना पनप रही है ? आज ऐसी शिक्षा पद्धति की आवश्यकता है जो गुरूकुल परंपरा के मानदंड के मुताबिक हो, उसमें आधुनिक तकनीक एवं रोजगारपरक ज्ञान का भी समावेश हो ।
पिछली संप्रग सरकार के कार्यकाल के दौरान ज्ञान आयोग का गठन किया गया था । इसका अध्यक्ष सैम पित्रोदा को बनाया गया । इस आयोग ने भारत को एक ज्ञान आधारित देश बनाने के लिए कई सिफारिशें दी हैं, लेकिन इन सिफारिशों पर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी है । एक या दो साल ९ प्रतिशत की विकास दर हासिल कर लेना बहुत अधिक मुश्किल नहीं है, लेकिन अगर हमें चीन की तर्ज लंबे समय तक दो अंकों की विकास दर हासिल करनी है तो शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में बहुत अधिक काम करना होगा । मौजूद शिक्षा प्रणाली की खामियां जगजाहिर है । ऐसे में शिक्षा के उदेश्य और उस तक पहुंचने की राह को एक बार फिर परिभाषित करना होगा । प्रथामिक स्तर पर शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव की जरूरत है । यह सही है कि शिक्षा क्षेत्र पर खर्च बढ़ाने की जरूरत है, लेकिन एक सच्‍चाई यह भी है कि सरकार प्राथमिक शिक्षा पर आज कितना खर्च कर रही है, बेहतर प्रबंधन के जरिए उतनी ही राशि खर्च कर कई गुना बेहतर परिणाम हासिल किए जा सकते हैं । उम्मीद है कि मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल के दौरान इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति देखने को मिलेंगी । दर‍असल यह दूसरा कार्यकाल ही इतिहास में मनमोहन सिंह के स्थान को तय करेगा । उम्मीद है कि हमारे प्रधानमंत्री इस चुनौती पर खरे उतरेंगे । वैसे प्रधानमंत्री ने शुरूआती दिनों में १०० दिनों के एजेंडे पर काफी जोर दिया है । हालांकि कहा जा रहा है कि इस पर काम शुरू हो गया है, अब देखते हैं कि इसके कैसे नतीजे सामने आते हैं और शिक्षा के लिए कौन सी नई पहल संयुक्‍त प्रगतिशील गठबंधन सरकार कर पाती है ।

शाही खर्च की पूर्ति हेतु छात्र -युवा बन रहें हैं अपराधी

जिस तेजी से पढ़े-लिखे युवाओं द्वारा अपराध का रास्ता अपनाने का मामला सामने आ रहा है, उससे लोगों को यह सोचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है कि इसके पीछे आखिर वजह क्या हैं । दौड़ती भागती जिंदगी के इस दौर में धन की पिपासा के कारण पैसे के आगे मानवीय संबंध धीरे-धीरे गौण होते जा रहे हैं । माँ बाप बच्चों के लिए पैसे तो दे सकते है, परन्तु समय नहीं । मँहगे स्कूल में नामांकन एवं ट्‌यूशन दिलवा सकते हैं परन्तु नैतिक शिक्षा और संस्कार नहीं दे सकते हैं । झूठे शानो-शौकत के कारण बच्चों के नाजायज माँग पूरी हो जाने से रईस माँ-बापों के बिगड़े औलादों का मनोबल और अधिक बढ़ रहा है । उनका बेटा क्या करता है और उसके खर्च क्या हैं ? इस पर ध्यान देने की फुरसत कहां है । देश के सभी कोने में बढ़ रही घटनाओं को अगर ध्यान से देखा जाय तो पता चलता है कि इंटरनेट, टीवी और धन के प्रवाह के कारण युवाओं के अच्छे के बजाय बुरे चीजों की नकल करने की प्रवृत्ति बढ़ी है । युवा वर्ग फिल्म के नायक एवं खलनायकों के रूप में अपनी छवि देखने लगे हैं । चोरी और लूट के आरोप में पकड़े गए छात्रों के अपराधी बनने का मुख्य कारण शाही शौक एवं उसे पूरा करने हेतु खर्च का जुगाड़ ही निकला । महिला मित्रों के खर्च पूरा करने के लिए पुरूष मित्र अपराध को चुनना पसंद कर रहे हैं । कहीं-कहीं उत्छृंखलता को छुपाने हेतु सगी औलादें अपनी माँ-बाप की हत्या तक करने से नहीं चूक रहे हैं । आखिर हमारा समाज कहाँ जा रहा है । पश्‍चिमी सभ्यता के अंधानुकरण के कारण ये विकृतियाँ तेजी से अपना पाँव प्रसार रही है ।
चेन और पर्स छीनने के ज्यादातर मामलों में युवा ही शामिल रहे हैं । इनके पास तेज सवारी गाड़ी होती है । पिछली आपराधिक सूची नहीं होने के कारण इन्हें गिरफ्तार करना चुनौतीपूर्ण होता है।
युवाओं विशेषकर छात्रों के अपराध में शामिल होने में मनोचिकित्सक सबसे ज्यादा अभिभावकों को जिम्मेदार मानते है । बच्चों के गतिविधियों पर ध्यान नहीं देने से मामला उलझता ही चला जाता है । अगर उनके बच्चे को कोई परेशानी है तो बातचीत कर समस्या का समाधान निकाला जाना चाहिए । जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक बच्चों में हीनभावना ग्रसित कर जाएगी । वे पढ़ाई में भी कमजोर हो सकते है । घर के अंदर और बाहर नकारात्मक टिप्पणियों से छुटकारा पाने के लिए वे ऐसा काम करना चाहते हैं, जिससे उनका नाम हो । चाहे वह नाम बदनामी से ही क्यों न मिले, इस प्रकार कई बार स्वतः वे अपराध से जुड़ जाते है ।
इन परिस्थितियों से निपटने के लिए पुलिस विभाग एवं युवा मामलों के मंत्रालय को एकजुट होकर स्थायी समाधान ढूंढ़ने होंगे तथा जनजागरूकता कार्यक्रमों की शुरूआत करनी पड़ेगी । समाज के सकारात्मक एवं नैतिक समर्थन के बाद निश्‍चित रूप से इन घटनाओं में कमी आ सकती है ।

आधी आबादी युवाओं की फिर भी संसद बूढ़ी क्यों?

पिछले लोकसभा चुनाव में सभी दलों के मुख्य केन्द्र बिंदु में ‘युवा जगत’ ही था । सभी दलों ने युवाओं को लुभाने हेतु प्रयास शुरू कर दिए थे परन्तु कांग्रेस ने प्रभावी रूप से युवाओं को तवज्जो देकर उसकी भूख को और अधिक बढ़ा दिया । वास्तव में युवा शक्‍ति में वह दम है कि वो जिसे चाहे उसे शीर्ष पर पहुँचा दे । एक सर्वेक्षण के अनुसार ७१.४ करोड़ मतदाताओं में २०-२२ % मतदाता २५ वर्ष से कम आयु के हैं २१ करोड़ मतदाता तो १८ से ३५ साल के बीच के हैं । सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि ४ करोड़ मतदाताओं ने पहली बार मतदान किया । कांग्रेस और भाजपा को मिले वोटों का अंतर १ करोड़ ७५ लाख था और इन्हीं नए मतदाताओं का रूझान निर्णायक रहा । कांग्रेस बसपा और भाजपा में युवा होने का मानदंड भी अलग-अलग ही था । कांग्रेस एवं बसपा की नजर में युवा का मतलब ४० साल तक की उम्र थी तो भाजपा की नजर में ५० साल तक थी । भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी के अनुसार युवा का मतलब २०-२५ साल के लोग ही नहीं है । कांग्रेस प्रवक्‍ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पहले ही कहा था कि “कांग्रेस के पास युवा कार्यकर्त्ता ब्लॉक से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के हैं जो अन्य पार्टी की तुलना से अधिक है । युवा कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तँवर के अनुसार पिछली लोकसभा में भी ज्यादातर युवा सांसद कांग्रेस से ही चुनकर आए थे । हालाँकि भाजपा के युवा मोर्चा अध्यक्ष अमित ठक्‍कर कहते हैं कि अब युवा सिर्फ समस्या नहीं, समाधान भी जानते हैं तथा खुद नेतृत्व करने में विश्‍वास करते हैं । उन्हें पूरा यकीन था कि भाजपा लोकसभा चुनाव में युवाओं को पूरी अहमियत देगी परन्तु पार्टी के ऐसा नहीं करने के कारण ह्रास का सामना करना पड़ा । यूथ फॉर इक्वलिटी के अध्यक्ष कौशलकांत मिश्रा को पूर्व में ही आशंका थी कि अन्य बार की तरह इस बार भी सभी पार्टियाँ युवाओं को नेतृत्व करने की बजाय समर्थक एवं कार्यकर्त्ता की भूमिका में ही रखना चाहती है । परिणाम से स्पष्ट हो चुका है कि युवा शक्‍ति की आकांक्षाएँ परवान पर हैं । अब वह वर्त्तमान व्यवस्था से आजिज हो चुका है तथा अब बदलाव चाहता है । इस कारण उसे अब लगता है कि पुराने लोगों से व्यवस्था में परिवर्तन की बात बेमानी है । व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन के बिना विकास नहीं हो सकता है । इतिहास गवाह है कि देश में सभी क्रांतियों में युवाओं की ही भूमिका महत्वपूर्ण रही है । जेपी ने संपूर्ण क्रांति का जो शंखनाद किया था, अब ठीक वैसी ही स्थिति बनने जा रही है । वास्तव में पुराने, नकारे एवं बिना जनाधार वाले घाघ राजनीतिज्ञ यह कभी नहीं चाहेंगे कि उनकी जगह कम अनुभव वाले आज के युवा नेताओं को रखकर बराबरी का दर्जा दे दिया जाय । कितने आश्‍चर्य का विषय है कि सत्तालोलुपता एवं हठधर्मिता के कारण देश में युवाओं की आधी से अधिक आबादी के बावजूद लोकसभा में चुनकर आने वाले सांसदों की औसत उम्र बढ़ती जा रही है । पहली लोकसभा में जहाँ सांसदों की औसत उम्र ४६.५ वर्ष थी वहीं वर्तमान लोकसभा में सांसदों की औसत उम्र ५२.६३ वर्ष है । पहली लोकसभा में जहाँ सर्वाधिक युवा सांसद थे वहीं १३ वीं लोकसभा में सबसे उम्रदराज सांसद थे । १३ वीं लोकसभा में सांसदों की औसत आयु ५५.५ वर्ष थी । दूसरी लोकसभा में सांसदों की औसत उम्र पहली लोकसभा की तुलना में थोड़ी बढ़ गई । दूसरी लोकसभा में सांसदों की औसत उम्र ४६.७ वर्ष हो गई । तीसरी लोकसभा का गठन १९६२ में हुआ तथा उस दौरान सांसदों की औसत उम्र ४९.४ वर्ष हो गई । १९६७ में गठित चौथी लोकसभा में सांसदों की औसत आयु में थोड़ी गिरावट आई । इस दौरान सांसदों की औसत आयु ४८.७ साल थी । इसी समय कांग्रेस में विभाजन हुआ था और मोरारजी देसाई ने इंदिरा गांधी के खिलाफ बगावत कर दी थी । १९७१ में पाँचवीं लोकसभा का गठन हुआ और इंदिरा गांधी पुनः सत्तासीन हुईं । पाँचवीं लोकसभा में सांसदों की औसत आयु४९.२ वर्ष हो गई । छठी लोकसभा में सांसदों की औसत आयु पहली पहली बार ५० साल से ऊपर हो गई, जबकि इसी समय युवाओं ने इंदिरा गाँधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के खिलाफ जनांदोलन किया था । वर्ष १९८० के इस चुनाव में इंदिरा गाँधी सत्ता में आई । यह लोकसभा पहले की तुलना में अपेक्षाकृत युवा थी । इस लोकसभा में सांसदों की औसत आयु ४९.९ वर्ष थी । आठवीं लोकसभा ने देश को राजीव गाँधी के रूप में सबसे युवा प्रधानमंत्री दिया लेकिन निचला सदन उतना युवा नहीं था । आठवीं लोकसभा में सांसदों की औसत उम्र ५१.४ साल थी । नौवीं और दसवींलोकसभा में सांसदों की औसत आयु ५० साल से अधिक रही । नौवीं लोकसभा में सांसदों की औसत आयु ५१.३ वर्ष थी तो दसवीं लोकसभा में ५१.४ वर्ष थी ।
वंशक युवाओं को टिकट देने में प्राथमिकता नहीं दी गई, लेकिन कांग्रेस और भाजपा दोनों की नजरें युवा मतदाताओं पर लगी थी तथा दोनों पार्टियाँ युवाशक्‍ति को वेबसाईट लांच करने के बाद भाजपा की आक्रामकता बढ़ती ही रही । शुरू में युवाओं के शिक्षित वर्ग में आडवाणी की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा था। अपनी नौकरी और आवश्यक कार्य को छोड़कर समर्पित कार्यकर्त्ता स्वयंसेवी रूप में भाजपा के आईटी विजन को अपना कीमती वक्‍त दे रहे थे । इन्हीं कारणों से भाजपा ने अपने आईटी विजन में एक करोड़ युवाओं को केवल दस हजार रूपए में लैपटॉप देने तथा एक अरब लोगोंको स्मार्ट फोन देने के लुभावने वादे कर चुकी थी । कांग्रेस भी युवा मतदाताओं को अपने पक्ष में करने हेतु पीछे नहीं रही । राहुल युवा शक्‍ति को जगाने का कार्य कर रहे थे और कांग्रेस अपने घोषणापत्र में “नेशनल यूथ कॉर्प्स” बनाने का वादा कर चुकी थी जिसके अनुसार प्रस्ताव यह था कि सरकार बनी तो १८-२३ वर्ष के युवाओं को स्वयंसेवी आधार पर दो वर्षों के लिए राष्ट्रनिर्माण की गतिविधियों से जोड़ने की बात कही गई । स्पष्ट है कि राष्ट्रभक्‍ति के बहाने लक्षित कर १७ करोड़ युवाओं को (जिनकी उम्र ३० वर्षों से कम है) अपना समर्थक, बनाने का प्रयास था । राहुल के यंग इंडिया अभियान’ के कारण ही युवा कांग्रेस में जोरों-शोरों से भर्ती चली । एक अनुमान के अनुसार युवा कांग्रेस की सदस्यता का जलवा ऐसा रहा कि पंजाब में आँकड़ा ३ लाख २३ हजार और गुजरात में तो ५ लाख को भी पार कर गई ।
विशेषज्ञों के अनुसार भारत की राजनीतिक व्यवस्था में युवा और महिला जैसी श्रेणियों का वर्गीकरण नहीं किया गया है । अक्सर राजनीतिक पार्टियाँ धर्म या जाति को देखते हुए अपने फैसले लेती हैं । यहाँ प्रमुख तथ्य मानसिकता में अभी तक बदलाव नहीं आने की भी है । लोग व्यवस्था से इतने आजिज हो चुके हैं कि इस तरह संकल्प ले लें कि हमने सबको परख लिया इस बार युवा उम्मीदवार को परखना है तो फिर देखिए कि बदलाव की हवा किस तरह से बहती है । अधिकांश पार्टियों में युवा जगत को लेकर परिणाम के बाद चिंता सताती है परंतु परिणाम से पूर्व इस महत्वपूर्ण बिंदु पर निर्णय लेना नहीं सुहाता है । वे धनाड्‍य, बाहुबली एवं जातिवादी उम्मीदवारों को तरजीह देती है । सभी महत्वपूर्ण फैसले हाईकमान द्वारा लिए जाते हैं । वे पार्टी में दूसरा युवा ध्रुव बनने ही नहीं देना चाहते हैं । राजनीतिक पार्टियों की इस चालबाजी को युवा वर्ग भलीभाँति समझ चुका है और अब वह आक्रामक निर्णय लेने की मुद्रा में है । दिल्ली में दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री स्व० साहिब सिंह वर्मा पुत्र प्रवेश वर्मा की उपेक्षा करने का परिणाम भाजपा देख चुकी है । भाजपा के चिंतन एवं समीक्षा बैठकों में यह बात स्पष्ट रूप से सामने आई है कि युवाओं को पर्याप्त तरजीह न देकर पार्टी ने गलती की है और इसको तत्काल सुधारने हेतु अब संगठन से युवाओं को जोड़ा जाएगा । ऐसा लगता है कि विभिन्‍न राज्यों में होनेवाले आगामी विधानसभा चुनावों में सभी पार्टियां युवा जगत को नजर‍अंदाज नहीं कर पाएंगी ।
यह एक कड़वा सच है कि राजनीतिक पार्टियों और पुराने नेताओं के नीयत में ही खोट है, क्योंकि वे बात तो करते हैं कि युवाओं को आगे लाया जाय परंतु वास्तविक रूप में वे इसे परिणत नहीं करते । इस तथ्य के पीछे दो संभावित कारण हो सकते हैं । पहला चरण यह है कि निर्णय के ऐन वक्‍त धन बल, बाहुबल, वंशवाद तथा संबंधों को निभाने की गरज से युवाओं की उपेक्षा कर दी जाती है । दूसरा कारण यह हो सकता है कि पार्टी में दूसरी पंक्‍ति के युवा नेताओं की घोर कमी हो । आज भी युवाओं में कैरियर के प्रति सजगता देखी जा रही है । वे आई०ए०एस, आईपीएस, इंजीनियर, डॉक्टर, प्रोफेसर आदि बनना चाहते हैं परन्तु ऐसे युवाओं की संख्या काफी कम है जो राष्ट्रसेवा के रूप में राजनीति को अपना कैरियर बनाने को इच्छुक हो । ऐसा लगता है कि वही युवा राजनीति में उतर रहे हैं जिन्हें विरासत में ही राजनीति मिली है या वे कहीं और अपना कैरियर नहीं देख पा रहे हों । दोनों ही स्थिति में राष्ट्रसेवा और कल्याण की भावना निहित नहीं हो सकती है । करूणानिधि को पुत्र और पुत्रियों के अलावा और कोई युवा पार्टी में दिखाई ही नहीं दे सकती है । लालू, पासवान और मुलायम जैसे राजनीतिज्ञों को भी वंशवादी विचारधारा के अलावा सोंचने की फुरसत नहीं है । युवा मतदाता दुनिया को संदेश दे रहे हैं कि भारत अब जवान हो रहा है । इसी जवानी के कारण हम २०२० के सपनों के भारत की परिकल्पना कर रहे हैं । देश के युवाओं की रंगों में जवान खून दौड़ रहा है । इसी जवान खून ने तय कर दिया कि युवाओं की उपेक्षा अब बर्दाश्‍त नहीं की जाएगी । आज भी संसद के भीतर युवा शक्‍ति के स्थान पर ओल्ड इज गोल्ड का फॉर्मूला ही हिट हो रहा है । आज स्थिति ऐसी है कि युवाओं के समक्ष प्रौढ़ या बुजुर्ग नेताओं को ही चुनने का विकल्प है । उत्तरप्रदेश से भाजपा के सबसे कम उम्र की लालगंज से उम्मीदवार नीलम सोनकर (३६ वर्ष) एवं वरूण गाँधी पीलीभीत रहे । उत्तराखंड मेंअजय टम्टा (३७) और यूकेडी के राजकुमार (३३) तथा हिमाचल प्रदेश में भाजपा के ३५ वर्षीय अनुराग ठाकुर और पंजाब में फरीदकोट से ३२ वर्ष के कांग्रेस प्रत्याशी सुखदेव सिंह डैनी, “युवा शक्‍ति” के ध्वजवाहक रहे हैं ।
१५ वीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के २५-३५ आयु समूह के ५.८८% (१२) सांसद तथा भाजपा के ४.३% (५) सांसद चुनकर आए हैं । कांग्रेस के लिए एक सबल पक्ष है कि लक्षद्वीप से जीते सांसद मोहम्मद हमतुल्लाह सबसे कम उम्र (२६) साल के हैं । मौसम नूर और नीलेश नारायण राणे तथा एनसीपी की अगाथा संगमा (जो पी० ए० संगमा की पुत्री हैं) राष्ट्रीय लोकदल की सारिका सिंह, माकपा से प० बंगाल के बाँकुरा में जन्मी विष्णुपुर (सु०) से जीती सुष्मिता बौरी, एम० बी० राजेश (पलक्‍कड़, केरल) और पी० के० बीज (३४) अलाथूर, केरल से निर्वाचित हैं ।

युवा वर्ग को ध्यान रखकर " इंडिया ऑन फोन " की दस्तक

वक्‍त बदल रहा है, जमाना बदल रहा है, सोंच बदल रहा है, धारणाएँ बदल रही है, जरूरत बदल रही है और इसी के साथ हमारी कार्यशैली और कार्य पद्धति भी बदल रही है । आज हम पहले की तुलना में सुविधाभोगी होते जा रहे हैं । अर्जित आय में बढ़ोत्तरी और सुविधा घर बैठे पा लेना चाहते हैं । जहाँ-जहाँ भी कंप्यूटर का आगमन हुआ, वहाँ-वहाँ जबरदस्त परिवर्त्तन हुआ है । आज बैंकिंग व्यवसाय इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है । विकास हर कोई चाहता है । सपना हर कोई देखता है, पर सवाल यह है कि वह पूरा कैसे हो? इसी को ध्यान में रखकर सेवा क्षेत्र में कदम बढ़ाते हुए एक क्रान्तिकारी पहल की शुरूआत की गई है, जिसका नाम है - इंडिया ऑन फोन । इसकी सारी सुविधाएँ ई-रिसोर्स सेंटर के माध्यम से लोगों को घर बैठे प्राप्त हो तथा असीमित आय का स्त्रोत प्राप्त हो तो दशा और दिशा में निश्‍चित रूप से स्वतः परिवर्तन होगा ।
युवा वर्ग के लिए चिट्ठी का लिफाफा खोलने का जमाना पुराना हो गया । इसकी जगह अब एस. एम. एस. और ईमेल ने ले ली है । जो इसके बारे में जानते हैं वे तो फायदा उठा रहे हैं परन्तु जो इंटरनेट से अनभिज्ञ हैं उनके लिए कोई नहीं सोंचता । इसी संभावना को देखते हुए दिल्ली स्थित प्रमुख आईटी कंपनी” होप ऑल इंफोलाईन प्रा० लि०” ने जन-जन तक फोन पर विभिन्‍न सेवाओं को घर बैठे पहुँचाने के उद्देश्य से “इंडिया ऑन फोन डॉट कॉम” लांच किया है । देश के सभी क्षेत्रों में इसकी सारी सेवाएँ” ई रिसोर्स सेंटर के माध्यम से मिलेगी । समय के अभाव और व्यस्तता के कारण लोग दिन-प्रतिदिन सुविधाभोगी होते जा रहा है । इसलिए यह तो तय है कि लोग इसे खूब पसंद करेंगे । सेवा क्षेत्र में विभिन्‍न वेबसाईट्‌स के बीच अस्तित्व का संघर्ष जिस तरह से लंबा खिंच रहा है उसे देखते हुए” इंडिया ऑन फोन डॉट कॉम” को बाजार में अपनी पकड़ मजबूत करने में मदद मिलेगी । तकनीक के तेज प्रसार और इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव के चलते शौकीनों को आधुनिकीकरण का यह रूप बेहद सुकून प्रदान करनेवाला है । विभिन्‍न सेवाओं की आवश्यकताओं की भूख को शान्त करने के लिए इंडिया ऑन फोन अपने “ई रिसोर्स सेंटर” पर सबों को आमंत्रण दे रही है । अपनी मनमर्जी की सेवाओं के बारे में बताएँ और तनावमुक्‍त हो जाएँ । रोजाना नए डेटाबेस से अपडेट होनेवाली इस वेबपोर्टल पर आपकी आवश्यकताओं का पूरा ख्याल रखा गया है । इस वेबपोर्टल की सेवाएँ प्रदान करने हेतु समपूर्ण भारत में “ ई रिसोर्स सेंटर” की श्रृंखला बनने जा रही है । देश की युवा ऊर्जा की लहरें अब महानगरों से होकर अपेक्षाकृत छोटे शहरों एवं गाँवों तक पहुँच रही है । शहरों तथा गाँवों में भी नई आर्थिक क्षमता, नई सोंच, नई रचनात्मकता को संजोने और राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने हेतु तथा समृद्धशाली बनाने हेतु संकल्पित होप ऑल इंफोलाईन प्रा० लि० प्रयासरत है । कंपनी का दृढ़ विश्‍वास है कि समर्थ राष्ट्र का निर्माण सिर्फ एक शक्‍तिप्रदाता केन्द्र से नहीं होता बल्कि एक सच्ची संपूर्ण क्रान्ति शक्‍ति, क्षमता, रचनात्मक ऊर्जा और युवा उमंग से परिपूर्ण अनेक लद्यु क्रांतियों की देशव्यापी श्रृंखला से ही उपजती है । इसी लद्यु क्रान्ति में से एक है इंडिया ऑन फोन डॉट कॉम जो सेवा क्षेत्र में एक नए राष्ट्रीय मानदंड स्थापित करेगा । होप ऑल ने इंडिया ऑन फोन मे जॉब, मेट्रिमोनियल टॉकिंग येलो पेजेज सहित कई अन्य सुविधाएँ भी उपलब्ध कराई है । आने वाले समय में इसके सेवाओं का दायरा है और बढने वाला हैं । माँ अपने बच्चे को नौ माह तक कष्ट सहकर भी गर्भ में रखती हैं। उसे उम्मीद हैं कि उसकी संतान बड़ा होकर हमारा भार उठाएगा । एक किसान कड़ी धूप में खून-पसीना एक करके कड़ी मेहनत के साथ खेत की जुताई मे जुटा है अपने तरफ से वह हर तैयारी कर लेना चाहता है । उसे उम्मीद है कि वर्षा होगी और फसल लहलहा उठेगी । एक छात्र दस से बारह घंटे पढ़ाई के अलावा उसे कुछ नही सूझता है । उसे उम्मीद है कि वह इस बार आइ. ए. एस. अवश्य बनेगा । एक व्यापारी नियत समय पर पूँजी लगाकर दुकान खोले बैठा है उसे प्रतीक्षा है ग्राहकों की । उसे उम्मीद है कि ग्राहकों से उसे फायदा होगा । एक सट्टेबाज अनिश्‍चय के व्यवसाय में भी नित्य की तरह अपने अभियान में जुटा है । उसे इससे मतलब नहीं कि परिणाम क्या होगा । उसे तो अपना किस्मत किसी न किसी पर आजमाना है । उसे तो बस इसी पर उम्मीद है जिस पर उसने बाजी लगाई है । एक कर्जदार कर्ज लेता है, उसे उम्मीद है कि वह कर्ज चुका देगा और उसे लाभ होगा । एक कर्जप्रदाता कंपनी कर्ज देता है, उसे उम्मीद है कि वह कर्जदार से कर्ज वसूली कर लेगा और उसे लाभ होगा ।
एक इंजीनियर नक्शा बनाने के बाद निर्माण में जुट गया है । उसे उम्मीद है कि निर्धारित तिथि से पहले निर्माण कार्य पूरा हो जाएगा । एक जमूरा अपना तमाशा दिखा रहा है उसे उम्मीद है कि वह दर्शक जुटा लेगा क्योंकि उसके पास वाकचातुर्य है । लड़के लड़की की शादी होती है उसे उम्मीद है कि उसका जीवनसाथी उसे हर सुख और समृद्धि देगा ।
एक तैराक पानी में कूद चुका है । लक्ष्य के आधे दूरी पर आ चुका है । हौसला टूट रहा है । उसने निर्णय किया कि जितनी दूरी वापिस जानी की है उतनी ही लक्ष्य प्राप्त करने की । उसने आत्मविश्‍वास को बढ़ाया और तैरने की गति को तीव्र कर दिया । उसे उम्मीद है कि वह मंजिल अवश्य पाएगा ।
एक यात्री टिकट कटाकर गंतव्य स्थान के ट्रेन में बैठ गया । उसे उम्मीद है कि वह गंतव्य स्थान पर कल अवश्य पहुँच जाएगा, अर्थात सभी को उम्मीद है । उम्मीद पर ही दुनिया टिकी है । आपकी सारी उम्मीदें अब हमारी है । हम आपकी उम्मीदों को साकार कर दिखाने का विश्‍वास दिलाते हैं ।
आत्मविश्‍वास आपके व्यक्‍तित्व में मौजूद संतुलन का ही दूसरा नाम है । आशावादी होने का मतलब परिश्रम से मुँह मोड़ना नही होता । यदि आपने उचित मात्रा में आत्मविश्‍वास संजो लिया है तो आप योजनाबद्ध तरीके से जोखिम का सामना करेंगे, अपनी योग्यता के अनुरूप भार उठाऐंगे और कठिन प्रयत्‍न करेंगे । आपकी सफलता आपके प्रयत्‍नों पर टिकी है । आपका आत्मविश्‍वास वास्तविक और ठोस उपलब्धियों से ही आएगा । एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में ७७ प्रतिशत से अधिक कंपनियों ने कहा कि देश में प्रतिस्पर्धा का स्तर बढ़ेगा । भारतीय कंपनियों के प्रति बढ़ता विश्‍वास यहाँ के सेवा बाजार की विशिष्ट शक्‍ति का प्रतीक है । भारत का अपना खुद का वृहद बाजार है, साथ ही यह बाहरी दुनिया के लिए सेवाएँ प्राप्त करने का एक प्रमुख बाजार बन गया है और यहाँ कंपनियों का मोल बढ़ रहा है । भारत में अन्य तीनों देशों की तुलना में सेवा क्षेत्र की लाभ में वार्षिक वृद्धि की दर सबसे ज्यादा है । इसलिए कंपनी ने नीति अपनाई है कि- “ लोगों को सेवाएँ प्रदान करते हुए समृद्ध बनने हेतु जुड़ें, जोड़ें । ”
उम्मीदों को पूरा करनेवाला विशाल प्लेटफॉर्म “होप ऑल” की पेशकश “ई रिसोर्स सेंटर ” । पढ़ाई पूरी हो गई, नौकरी की चिंता, नौकरी अवश्य मिलेगी, सघन प्रयास , एक उम्मीद । अभिभाववकों को अपने जवान लड़के-लड़कियों के शादी की चिंता, समय का अभाव, एक उम्मीद । व्यवसाय में काफी समय से, ऑर्डर की प्रतीक्षा मिलेगी, एक उम्मीद । कंप्यूटर इंस्टीट्यूट/ साइबर कैफे, भोकेशनल इंस्टीट्यूट चला रहे हैं अभी घाटे में । घाटा लाभ में बदलेगा एक उम्मीद । प्लंबर, कार्पेटर, बिजली-मिस्त्री की आवश्यकता, समय नहीं , फोन पर ही सेवा प्राप्त करने की चाहत, एक उम्मीद । रोगी को तुरंत डॉक्टर की आवश्यकता, फोन पर अविलंब डॉक्टर की प्रतीक्षा जरूर आऐंगे डॉक्टर, रोगी का रोग होगा ठीक, जगी एक उम्मीद । घर का खाना खाते- खाते हो गर बोर, फोन पर ऑर्डर देंगे लजीज मनपसंद व्यंजनों का किसी भी क्षेत्र में कहीं से जायका का लुफ्त उठाऐंगे । एक उम्मीद । किसान को उन्‍नत बीज की जानकारी का अभाव, फोन पर आपूर्ति की कोई व्यवस्था करवा देता । जगी एक उम्मीद ।
NRI की चाहत अपने अफसर बेटे की शादी गाँव के मामूली किसान की बेटी से हो जो निस्कपट, साधारण, सुशील और संस्कृति के मूल्यों को समझे, किसी भी वेबसाईट या जानकारी स्त्रोतों में इस तरह का डाटा नहीं मिलेगा । मिलेगा इंडिया ऑन फोन पर, जगी एक उम्मीद । महानगर में काम करने वाले बेटे को कोरियर से गाँव पत्र भेजने की चाहत । किसी भी कोरियर का ग्रामीण नेटवर्क नहीं । किसी ने बताया “इंडिया ऑन फोन” जगी एक उम्मीद ।
चाहत अपने मातृभूमि में आलीशान बंगला बनाने की, किसी भी वेबसाईट पर उस ग्रामीण इलाके का ब्योरा नहीं । किसी ने बताया सम्पर्क करो इंडिया ऑन फोन के हेल्पलाईन पर, जगी एक उम्मीद । बैंक, फाइनेंस, बीमा कंपनी की सबसे प्रमुख समस्या स्थायी पते के वेरीफिकेशन की । स्थानीय पता बदल सकता है, स्थायी नहीं । गलत करने पर बदनामी की चिन्ता । इंडिया ऑन फोन अपने नेटवर्क के माध्यम से देगा संबंधित व्यक्‍ति का पूरा ब्यौरा आपके ईमेल पर । जगी उम्मीद । आज घर से बाहर नए शहर में कोई सम्पर्क नहीं परन्तु चाहिए जानकारी विभिन्‍न चीजों का । समाधान इंडिया ऑन फोन, विकल्प ने दिया उम्मीद ।
रहता हूँ दिल्ली में घूमने जाना है जयपुर । घर बैठे अच्छे एवं अपने बजट का होटल आरक्षण कराना है अन्य साइटों पर महंगे रेटलिस्ट अपने बजट का नहीं । कोई बात नहीं इंडिया ऑन फोन जो है आपका आरक्षण घर बैठे आपके बजट के अनुसार होगा । आप होंगे, संतुष्ट, हमारा पूर्ण विश्‍वास है । हमने जगाया आपकी उम्मीद । जाना है गंतव्य शहर को, आरक्षण करवाने का समय नहीं । लंबी कतार को देखते ही परेशानी आपका टिकट (रेल/एयर) घर बैठे मिल जाएगा । हर समस्याओं का समाधान अब तो मात्र इंडिया ऑन फोन पर, जगी उम्मीद आवश्यकताएँ विभिन्‍न प्रकार की, पर ऐसा विकल्प नहीं था जो सबों की पूर्ति एक साथ घर बैठे देश के किसी भी कोने से हो सकता हो । होप ऑल प्रस्तुत इंडिया ऑन फोन डॉट कॉम की सेवाएँ अब “ई रिसोर्स सेंटर” पर मिलने की उम्मीद अब साकार हुई । संक्षेप में कहें तो उम्मीद रखना आपका काम, पूरा करवाना हमारा काम । तो फिर देर किस बात की । काल करे सो आज करे, आज करे सो अब । समस्या आपका, समाधान हमारा, ई रिसोर्स सेंटर द्वारा कहीं से, कभी भी, किसी भी आवश्यकताओं का त्वरित समाधान मात्र एक फोन (011-22224444) पर उपलब्ध है ।

युवाओं की नजर में भाजपा के हार का कारण

भाजपा समर्थक युवा अब आडवाणी से अपनी बेबाक राय वेबसाईट के माध्यम से प्रस्तुत कर रहे हैं । वे कहते हैं कि “हमें जवाब चाहिए” । युवा वर्ग की नाराजगी और निराशा लालकृष्ण आडवाणी की वेबसाईट www.lkadvani.in पर स्पष्ट रूप से झलक रही है । भाजपा के युवा समर्थक न केवल सवाल पूछ रहे हैं बल्कि आगे की रणनीति सोच-समझकर बनाने की सलाह भी दे रहे हैं जिससे आगे फिर ऐसी हार का सामना न करना पड़े । लोकसभा चुनावों की घोषणा के बाद लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी वेबसाईट बनाई थी, जिसमें उनके कार्यक्रमों के अतिरिक्‍त उनके विचार, मुद्‌दे एवं भाषणों का रिकॉर्ड था । इसमें समर्थकों का फोरम भी बनाया गया था जिससे ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जोड़ा जा सके । अब यही समर्थक वेबसाईट पर उनसे पूछ रहे हैं कि क्यो ऐसी गलतियाँ की गईं जिसकी वजह से हमारी हार हुई । भाजपा के छात्र संगठन एबीवीपी और युवा मोर्चा ने कथित रूप से चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं लिया । असंतोषजनक एवं प्रभावी रणनीति के अभाव के कारण हुई हार के चलते बीजेपी के समर्थक इंटरनेट उपभोक्‍ताओं में जबर्दस्त गुस्सा है । मध्यप्रदेश में तो शिवराजसिंह मंत्रिमंडल के सदस्य भी हार का ठीकरा आडवाणी के सर फोड़ रहे हैं । वे कहते हैं कि आडवाणी के प्रचार का इसलिए फायदा नहीं मिला क्योंकि आडवाणी में कोई आकर्षण ही नहीं था । कुछ युवाओं के अनुसार भाजपा पर आर० एस० एस० का प्रभाव जब तक रहेगा हम हारते रहेंगे । कुछ युवाओं ने टिकट में युवाओं की उपेक्षा, न्यूक्लियर डील का विरोध तथा जनसरोकार की भावना को वोटों में तब्दील करने हेतु रणनीति के अभाव को ही हार का कारण बताया । देश का युवा वर्ग रोजगार और विकास चाहता है । उसे हिंदुत्व, सांप्रदायिकता, धर्मनिरपेक्षता से ज्यादा पहले अपने पेट और मूलभूत सुविधाओं की चिंता है । इसमें जो पार्टी आगे रहेगी वही विजयश्री हासिल करेगी । १९७८ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा नेतृत्व ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को छात्र संगठन को राजनीति की मुख्यधारा से अलग कर दिया था । अस्सी के दशक में जनता विद्यार्थी मोर्चा (जेवीएम) की आवश्यकता अब पुनः महसूस की जा रही है । १९८० में दिल्ली वि० वि० चुनाव में जीत हासिल करनेवाले जेवीएम के सदस्य रहे दिल्ली के पूर्व विधायक विजय जॉली के अनुसार एबीवीपी की भूमिका गैर राजनीतिक होने से भाजपा में सीधे युवा खून नहीं आ पा रहा है । पार्टी २०-२२ वर्ष से कम उम्र के युवाओं को आकर्षित करने में विफल रही है क्योंकि उन्हें भाजपा में कोई सीधी भूमिका या हस्तक्षेप करने का मौका नहीं दिया जाता है । १९८१ में जेवीएम से छात्रसंघ चुनाव जीत चुके सुधांशु मित्तल कहते हैं, कि छात्र जीवन से ही जुड़े रहने वाला व्यक्‍ति समर्पित कार्यकर्त्ता साबित होता है जबकि बाद में जुड़नेवालों की प्रतिबद्धता अपेक्षाकृत उतनी नहीं होती हैं । इसलिए राजनैतिक संगठनों में छात्रों को सीधे प्रवेश का मौका दिया जाना चाहिए । हालात यह हैं कि भाजपा ने अपनों के हमलों के प्रत्युत्तर में फिलहाल शांत बैठना ही श्रेष्यकर समझा है । युवाओं ने कहा, कि चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा नेताओं के मुँह पर कोई मधुरता और मानवीय संवेदना का पुट नहीं होना तथा अरूण जेटली, राजनाथ सिंह विवाद खत्म नहीं होना एवं धारदार, शालीन जवाब देने की तैयारी भी हार के प्रमुख कारणों में से एक रहा । युवाओं की चाहत है कि आगामी चुनाव में उसे भरपूर टिकट सकारात्मक एवं विकासपरक राजनीति को बढ़ावा देकर ही भाजपा को मजबूती दी जाए ।

युवा मानसिकता के नायक राहुल गाँधी

वर्तमान में हुए जनमत सर्वेक्षण के अनुसार भारत की अधिकांश जनता ने राहुल गाँधी को भविष्य का प्रधानमंत्री बताया है । लोगों का बहुमत यह मान चुका है कि आने वाले समय में उन्हीं के हाथ में देश की बागडोर होगी । देश के युवाओं को राहुल से बहुत उम्मीदें हैं । कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने पर युवा पीढ़ी राहुल को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होते देखना चाहती थी, परन्तु समाज के बुद्धिजीवी वर्ग और वरिष्ठ नागरिकों की नजर में राहुल के लिए प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने का अनुकूल समय नहीं था । वरिष्ठ सलाहकारों ने उनका अभी प्रधानमंत्री बनना कांग्रेस के लिए ठीक नहीं बताया होगा परंतु यह ध्रुवसत्य है कि १६ वीं लोकसभामें वे कांग्रेस के विजेता नायक बनकर उभरेंगे और प्रधानमंत्री पद की चुनौती को स्वीकार करेंगे । १५ वीं लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस को जनता का मजबूत समर्थन और जनाधार मिला है । सर्वेक्षण से स्पष्ट हो चुका है कि कांग्रेस ने राहुल को युवाओं में भुनाकर जो सफलता अर्जित की है, वही सफलता पाने हेतु वह आगे भी बेकरार हैं । कांग्रेस की आगामी रणनीति में युवा मानसिकता को राहुल शैली में परोसकर आगामी विधानसभा चुनावों में विजयश्री हासिल करना है ।
बेशक बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग गठबंधन को लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित सफलता मिली हो लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस के इस उभरते नेता के प्रति लोगों में गजब का आकर्षण है । उत्तरप्रदेश में अपना जलवा दिखाने के बाद वे बिहार में भी काफी लोकप्रिय हो चुके हैं । राहुल उत्तरप्रदेश के साथ-साथ बिहार को भी अपने रंग में रंग देने को आतुर हैं । वे अतिशीघ्र हिंदी पट्टी वाले राज्यों में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं । धुन के पक्‍के इस युवा नेता की रणनीति को समझ पाना इतना आसान भी नहीं है । अपने मिशन की जीत के लिए वे सदैव समानांतर और आंतरिक व्यवस्था को तरजीह देते हैं । युवा रणनीतिकारों के बलबूते वे सदैव अच्छे परिणाम पाते रहे हैं । उनकी सोंच, दर्शन, दृष्टि और रणनीति में गहरा संबंध है । राहुल चमचागिरी नहीं बल्कि जुझारू एवं कर्मठ कार्यकर्त्ताओं को संगठन से जोड़ने एवं आगे लाने का कार्य किया है । युवा नेताओं में जोश एवं उत्साह भरने के अच्छे परिणाम सामने आए हैं । दर‍असल युवा मानसिकता हमेशा कुछ नया और बदलाव चाहती है । राहुल ने युवाओं, महिलाओं, दलितों, के वास्तविक समस्याओं को करीब से देखने एवं मरहम लगाने में अपनी ऊर्जा लगाई थी, जिसका सुखद परिणाम सामने आया । हर वर्ग ने इस युवा नेता की बात को सुना, समझा तथा अधिकांश लोगों को लगा कि यह तो मेरे दिल की बात कर रहा है । राहुल ने अपने विभिन्‍न मंचों से शालीनता के साथ विपक्षियों के हर आरोपों को कुंद कर दिया, साथ ही जरूरत पड़ने पर प्रतिद्वंद्वियों की तारीफ भी की । बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कार्यशैली की प्रशंसा के पीछे कई छुपे तथ्य भी हैं ।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के युवा महासचिव विगत लोकसभा चुनाव में स्टार प्रचारक बनकर उभरे । वे ३७ दिनों में २६ राज्यों में १२४ रैलियों में गए । राहुल ने चुनाव प्रचार में युवा शक्‍ति, संयुक्‍त विकास, गरीबों के सशक्‍तिकरण, आतंकवाद और साम्प्रदायिकता के खिलाफ राष्ट्रीय एकता जैसे महत्वपूर्ण मुद्‌दों को आधार बनाया । राहुल के प्रशंसकों एवं युवा कांग्रेस के कार्यकर्त्ताओं ने राहुल गाँधी का मुखौटा पहनकर विभिन्‍न इलाकों में चुनाव प्रचार-प्रसार किया । युवा पीढ़ी के बीच इसका अच्छा संदेश गया । पश्‍चिम बंगाल सहित अन्य राज्य में कार्य कर्त्तागण राज्य के अलग-अलग हिस्सों में जाकर विकास का संदेश प्रवाहित किया। राहुल ने अपने पदाधिकारियों एवं कार्यकर्त्ताओं को चुनाव प्रबंधन एवं जीतने की कला जैसे विषय पर भी प्रशिक्षित किया । अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के चुनावी पद्धति एवं जीतने की रणनीति से वे काफी प्रभावित रहे हैं । अपने अनुभव को अपने से जुड़े लोगों में शेयर किया ।
संसद के केन्द्रीय कक्ष में वे अक्सर अपने युवा साथियों मिलिंद देवड़ा, सचिन पायलट, नवीन जिंदल, प्रदीप जैन, आदित्य, ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ अक्सर बातचीत में मशगूल रहते हैं । स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने संबोधन में राहुल के नेतृत्व की सराहना करते हुए कहा कि भारत के युवाओं ने राहुल से प्रेरणा लेकर कांग्रेस को बड़ी सफलता दिलाई है । कांग्रेस के अधिकांश युवा नेता राहुल की राजनीति को किसी एक मंत्रालय तक सीमित नहीं रखने के पक्षधर थे । युवा सांसदगण राहुल को एक राजनैतिक शक्‍ति के रूप में देखना चाहते हैं न कि एक मंत्री के रूप में । यही सोंचकर राहुल ने मंत्रिमंडल में फिलहाल शामिल नहीं होने का निर्णय लिया । उन्होंने संगठन को ज्यादा तरजीह दिया, जिसका असर आगे जरूर दिखेगा । राहुल की तेजतर्रार मुहिम से नकारे एवं बिना जनाधारवाले नेताओं तथा सेवा किए बगैर फल पाने के आकांक्षी नेताओं की नींद उड़ गई है । कांग्रेस पार्टी के महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने कहा कि “ इस चुनाव ने देश को राहुल गाँधी के रूप में युवा नेता दे दिया है । ”
पंजाब के आनंदपुर साहिब से जीतकर आए खनीत सिंह बिट्ट (जो पंजाब यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष के साथ-साथ राहुल की राजनीतिक प्रयोगशाला से जुड़े हैं) ने कहा कि हमें राहुल गाँधी के कारण ही यह मौका मिला है और अब मैं पार्टी के लिए जी-तोड़ मेहनत करूँगा ।
देश के विभिन्‍न भागों में राहुल के ताबड़तोड़ दौरे की तह में जाएँ तो पता लगता है कि मनमोहन सिंह के आर्थिक व्यवस्था के दुष्परिणाम को राहुल ने बखूबी भाँप लिया है । एक तरफ जहाँ प्रधानमंत्री की अर्थव्यवस्था एवं योजनाएँ वास्तविक स्वरूप में परिलक्षित नहीं हुई हैं और आम आदमी व्यथित था, के ऊपर राहुल ने सांत्वना और अपनापन का मरहम लगाने का पुनीत कार्य किया है । राहुल अपनी पैनी नजर से अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव एवं लाभ-हानि को बखूबी समझना चाहते हैं । वे जानते हैं कि भारतीय परिदृश्य में कोई भी व्यवस्था कितनी कारगर हो सकती है । राहुल अपने पिता के नक्शेकदम पर चल रहे हैं । अपने विभिन्‍न भाषणों में वे अपने पिताश्री स्व० राजीव गाँधी की दूरदृष्टि का जिक्र भी कर चुके हैं । उत्तरप्रदेश के अमेठी संसदीय सीट से तीन लाख ३१ हजार मतों के अंतर से जीतनेवाले राहुल कहते हैंकि “मेरी सबसे बड़ी प्राथमिकता देश में एक गरीब समर्थक युवा संगठन का विकास करना है । मैं नहीं समझता कि मुझमें अभी देश का प्रधानमंत्री बनने के लायक अनुभव है । ” उनके इस बयान से निश्‍चित रूप से यह लगता है कि उनमें दूरदृष्टि तो है परन्तु दम्भ नहीं परन्तु दूसरी ओर उनकी बहन प्रियंका गाँधी बढेरा ने अपने हर संबोधन में राहुल को सक्षम प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश किया । राहुल ने अपने विभिन्‍न भाषणों में कहा था कि “यदि कांग्रेस सत्ता में आई तो वह रोजगार पैदा करने तथा शिक्षा का स्तर बेहतर करने में ध्यान लगाएगी, ताकि भारत मजबूत देश बन सके । ”
राहुल जानते हैं कि दिल्ली की प्रदेश सरकार एवं केंद्र में भी कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद वास्तविक लाभुकों को उसका हक नहीं मिल पाता है । एक ईमानदार नेता की तरह वे इस सच को स्वीकार करने में कतई संकोच नहीं करते हैं । सहानुभूति पाने का तरीका कोई राहुल से सीखे । राहुल कहते हैं- “ मेरे पिता ने कहा था कि केंद्र से अगर एक रूपया भेजा जाता है तो जनता तक केवल १५ पैसे ही पहुँचते हैं, लेकिन आज के हालात में एक रूपए में से सिर्फ पाँच पैसे ही पहुँच पा रहे हैं ।
मनमोहन सिंह और राहुल की कार्यशैली एवं सोंच एक दूसरे के विपरीत है । जहाँ मनमोहन अपने अर्थव्यवस्था के बलबूते समाज एवं राष्ट्र की मजबूती चाहते हैं, वहीं राहुल देश के भीतर बढ़ रहे असंतोष और चौड़ी होती खाई को पाटना चाहते हैं । दोनों के दृष्टिकोण में भिन्‍नता है । जहाँ मनमोहन की कार्यशैली में बुद्धिमत्ता एवं अनुभव झलकता है वहाँ राहुल युवा मन के उद्वेग, दलितों की आंतरिक वेदना, किसानों के आत्महत्या जैसे महत्वपूर्ण कारणों को ढूँढने एवं उसके स्थायी समाधान हेतु तत्पर हैं । राहुल विकास पर आधारित, न्याय और सुशासन चाहते हैं जहाँ कोई भूखा, नंगा न हो । मंडल-कमंडल के बलबूते राजनीति करनेवालों ने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि राहुल की इस राजनीति को इतनी अप्रत्याशित सफलता मिलेगी । राहुल के निशाने पर मुख्यतः अलोकतांत्रित व्यवस्था रही है । राहुल समझ चुके हैं कि मनमोहन अर्थव्यवस्था से चमक -दमक आ सकती है, अमीर और अधिक अमीर हो सकते हैं परन्तु जरूरतमंदों को उसका वास्तविक हक नहीं मिलनेवाला । इसलिए राहुल ने समस्या का समाधान सहकारिता, सहभागिता एवं केन्द्रीय योजनाएँ (जैसे नरेगा) को और अधिक प्रभावी बनाने पर जोर दिया । वे बदलाव के पक्षधर रहे हैं । अभी तो वे राजनीति के घड़ियालों, हेलों, डायनासोरों, एवं गिद्धों को जानने पहचानने में लगे हैं । वे सीख रहे हैं कि गठबंधन के दौर में सौदेबाजियों से कैसे जूझना पड़ता है । दर‍असल राहुल के दबाव में ही कांग्रेस ने कुछ राज्यों में इस बार ‘एकला चलो रे” की रणनीति अपनाई जो पूरी तरह से सफल रही और कांग्रेस को अपनी शक्‍ति का आभास हुआ ।
पिछले वर्षों में युवा सांसद राहुल गाँधी ने संयुक्‍त राष्ट्रसंघ में काफी प्रभावशाली भाषण दिया । राहुल मानवाधिकार जैसे मुद्‌दे पर धाराप्रवाह बोले । ऐतिहासिक तथ्यों का हवाला देते हुए राहुल गाँधी ने वर्ष १९९३ की वियना संधि का भी जिक्र किया । राहुल ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से आह्वान कर कहा कि आतंकवाद से लड़ने हेतु सभी को एकजुट होना पड़ेगा । उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इधर-उधर के रास्ते तलाशने के बजाय हमें अतिवाद और आतंकवाद को किसी भी तरह खत्म करना होगा क्योंकि यही हमारी (मानव जाति की) स्वतंत्रता में सबसे बड़ी बाधा है । उन्होंने कहा इससे संयुक्‍त राष्ट्रसंघ के इस संदर्भ में किये जा रहे प्रयासों की सराहना की लेकिन कहा कि अभी इस दिशा में हम ठोस कदम उठाने में असफल रहे हैं तथा मानवाधिकार के मामले में दोहरे मापदंड न अपनाए जायं । उन्होंने कहा कि किसी भी देश का विकास सामाजिक न्याय और लोकतांत्रित मूल्यों को संरक्षित किए बिना नहीं हो सकता है ।
राहुल उन सभी फार्मूलों को अपनाना चाहते हैं जिससे युवाओं का सपना साकार हो सके । सरकारी पैसा आम-जन तक बिना रोक-टोक के पहुँचाने की मजबूत व्यवस्था बनाने के इच्छुक हैं राहुल इसके लिए उन्हें नौकरशाही एवं बाबुओं की लटकानेवाली शैली से निजात पाने की रणनीतिक चातुर्य दिखाना अभी बाकी है । उनकी नजर में सामाजिक बदलाव के बयार तभी आ सकती है जब समग्र विकास की धारा बहे, उपेक्षितों को मुख्यधारा से जोड़ा जाय एवं युवाओं को रोजगारोन्मुखी कार्यक्रमों से जोड़कर स्वावलंबी बनाया जाना चाहिए । बेशक यह मुश्किल कार्य है, परन्तु असंभव नहीं । वर्तमान जनादेश मनमोहन की कार्यपद्धति एवं अर्थव्यवस्था को नहीं मिला है । राहुल ने बहुत नजदीक से मंदी का दौर, बेकारी, असमानता एवं आर्थिक कुंठा को दूर करने हेतु मरहम का जो फिलॉसफी तैयार किया, शायद भारतीय अवाम को रास आ गया । समाज के अंदर गुटों, वर्गों, धर्मो, एवं तबकों के विभेदों को राहुल ने अच्छी तरीके से अपनी शैली में पड़ताल किया है ।
कहावत है “जब-जब संवेदनशीलता होती है तो युद्ध होता है । ” राहुल ने अपने जीवन में इस मर्म को समझ लिया है । अब राहुल का वास्तविक परिचय राहुल गांधी नहीं बल्कि संवेदनशील राहुल गांधी होगा । कलावती के दुःखों को जानना उसके यहाँ खाना और रात बिताना इसी की कड़ी है । राहुल को वर्ग विभेद की असमानता दूर करने के लिए अभी काफी प्रयास करने हैं जिसमें अपराधियों को राजनीति से दूर करने, सामंतवादी व्यवस्था का उन्मूलन, भूमि सुधार तथा पारदर्शी एवं त्वरित न्याय व्यवस्था जैसे दूरगामी फैसले लेने हैं, यह तो फिलहाल समय के गर्भ में है परन्तु यह अक्षरशः सत्य है कि सोनिया गाँधी द्वारा राहुल को बिहार, उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की विजयपताका फहराने की जिम्मेवारी सौंप दी है, जिससे बसपा, सपा, भाजपा जैसे राजनीतिक दल चिंतित हैं । सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह ने तो राहुल के विकल्प के रूप में अपने पुत्र अखिलेश यादव को उत्तरप्रदेश का अध्यक्ष बना भी दिया है । भाजपा ने भी मेनका गाँधी के बेटे वरूण गाँधी को आगे बढ़ाया । उत्तरप्रदेश में सलमान खर्शीद और दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस को आगे बढ़ाने के लिए जो प्रयास किए थे, उसमें राहुल की भागीदारी ने नई जान फूँक दी । जनता को प्रभावित करने हेतु राहुल गाँधी धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहे हैं और लोग उनमें एक सुलझे हुए स्वच्छ नेता की छवि देख रहे हैं ।
वैसे राहुल को माँ के रूप में तो गुरू मिला ही हुआ है । इसके बावजूद अगर वे युवाओं को जो भूख जगाया है, नहीं मिटा पाए तो लेने के देने पड़ सकते हैं । दूसरी बात यह भी है कि उनके कारण खार खाए नेतागण क्या बैठे रहेंगे । वे तो जड़ में मिट्टी डालने का कार्य करेंगे ही । उन्हें यहीं पर अपने कदम फूँक-फूँक कर रखने की आवश्यकता है । वे विदेशी संस्कृति में पले-बढे हैं, अतः आशंका है कि वे भारतीय सभ्यता-संस्कृति और रणनीति को आत्मसात्‌ करने में चूक न पाएँ । उन्हें अपनी सुरक्षा के प्रति भी सजग रहकर सबों को साथ लेकर चलने की नीति अपनाना चाहिए । अपनी कथनी को करनी में बदलकर ही वे भारतीय जनता की आकांक्षाओं को पूरा कर सकते हैं । उन्हें अपने साफ-सुथरे छवि का ख्याल रखने के साथ-साथ विवादास्पद मामलों में सावधानीपूर्वक कदम बढ़ाए जाने की आवश्यकता है । इस बार की जीत को स्थायी जीत के रूप में परिणत करने हेतु उन्हें नए फॉर्मूले गढ़ने होंगे । प्रतिद्वंदी विपक्ष एवं बुजुर्गों के समान में कोताही उन्हें भारी पड़ सकती है ।

युवा शक्ति ने ली अंगडाई

युवा भारत ने एक बार फिर अंगड़ाई ली है । इतिहास गवाह है कि त्याग, बलिदान और जन आंदोलनों ने अंग्रेजी शासन की चूलें हिला दीं । असंख्य नवयुवकों एवं युवतियों ने फाँसी के फंदों को चूम लिया, गोलियाँ खाईं, जेलों में यातनाएँ सहीं, तब कहीं जाकर भारत की स्वतंत्रता का सपना साकार हुआ और लोकतंत्र की स्थापना भारतीय गणतंत्र के रूप में हुई । आजादी के बाद से लगातार देश की नैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना का अवमूल्यन होता जा रहा है । अधिकांश राजनैतिक दलों का उदय अवसान, अंतर्कलह, स्वार्थ की बढ़ती हुई भावना, जाति, धर्म, प्रांत, भाषा आदि देश की जड़ों को खोखला कर रहे हैं । भ्रष्टाचार और आतंकवाद अपना पाँव पसारते जा रहा है । बाहुबली सत्ता पर हावी होने के लिए जी तोड़ प्रयास कर रहे हैं । बोहरा समिति, बोल्कर समिति, बंसल समिति की रिपोर्टो ने यह सिद्ध कर दिया है कि राजनेताओं के अपराधियों से गठबंधन के कारण लोकतंत्र दिशाहीन होकर पतन की ओर जाने को तैयार है । विभिन्‍न घोटालों, बमकांडों, हत्याओं ने देश के नैतिक चरित्र की ऐसी तस्वीर प्रस्तुत की है जिससे लोगों को सोचने के लिए विवश होना पड़ रहा है कि आगे आनेवाला भविष्य कैसा होगा ? पहले राजनीतिकरण किया जाने लगा । स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह कतिपय उचित नहीं । चिंता के कारण चिंतन हुआ और जनजागरण एवं मीडीया की सक्रियता की वजह से वर्तमान लोकसभा ने अच्छे लक्षण दिखाए । बाहुबलियों, धनकुबेरों एवं निठल्ले नेताओं की जगह युवाओं को ज्यादा चांस मिला।
क्या यह वही देश है, जहाँ अनेक अवतारों ने राष्ट्र को गरिमा प्रदान की थी ? जहाँ ऋषि-मुनियों ने आचरण और ज्ञान के संदेश बिखेरे थे, जहाँ झाँसी की रानी ने विदेशियों के छक्‍के छुड़ाए थे जहाँ भगत सिंह, सुखदेव, खुदीराम बोस, अशफाक फाँसी पर झूले थे चंद्रशेखर आजाद ने अपनी कनपट्‌टी पर स्वयं गोली दागकर फिरंगियों के हाथ न आने का संकल्प पूरा किया था, जहाँ गाँधी और नेहरू ने स्वराज्य की नींव डाली थी । देश के निरंतर परिवर्तन के दौर से गुजरते हुए घटनाक्रम को देखकर विचार करना पड़ रहा है कि अब हमें विदेशी आक्रमणकारियों से ज्यादा खतरा अपने जयचंदों, भ्रष्टाचारियों एवं दागी नेताओं से है । देश की प्रतिभा ऊर्जा और स्वस्थ अभिव्यक्‍ति की रक्षा के लिए हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर निरंतर परिवर्तनशील मूल्यों की रक्षा हेतु सामूहिक सहयोग का संकल्प लें । बुजुर्गों एवं अनुभवीजनों से आग्रह है कि युवा शक्‍ति को मार्गदर्शन देकर सकारात्मकता एवं स्वस्थ परंपरा को कायम रखने का दृष्टिकोण देकर आलोकित करें । समय दर्पण के जुलाई अंक को ‘युवा शक्‍ति ” विशेषांक के रूप में प्रकाशित करने का हमारा निर्णय कितना कारगर हुआ, यह तो आप सुधी पाठजन ही हमें बताएंगे । हम तो इतना ही कहेंगे कि -------
.... सशक्‍त युवा शक्‍ति, सशक्‍त भारत ! ......

Monday, June 8, 2009

हिन्दी की नई ऑनलाईन पत्रिका : समय दर्पण


बदलाब प्रकृति की नीयति है। यह अवश्यम्भावी है। समय के साथ -साथ सब कुछ बदलता रहता है। समय के बदलते परिप्रेक्ष्य में पाठकवर्ग भी कुछ नया कुछ खास चाहता है। इसके साथ -साथ वह उन तमाम ख़बरों एवं सच्चा‌ईयों से भी रूबरू होना चाहता है जो वर्तमान में घट रहा है। आज मीडिया की विश्वसनीयता घटी है। व्यावसायिक पहलू के ज्यादा प्रभावी होने के कारण ख़बरों का आधार एवं निष्पक्षता एक प्रश्नचिन्ह बन गया है। इस सबसे अलग हटकर आपके पसंद के अनुरूप हमने हिन्दी में समय दर्पण मासिक पत्रिका के प्रकाशन का निर्णय लिया है। फिलहाल यह पत्रिका समय दर्पण डॉट कॉम पर उपलब्ध होगा। बाद में इसका प्रिंट संस्करण भी आपके समक्ष होगा। तेजी से बदलते घटनाक्रम के आ‌ईना के रूप में यह पत्रिका न‌ए आयाम प्रस्तुत करेगी, यही हमारा संकल्प है। हमारा प्रत्येक अंक एक न‌ए विशेषांक के रूप में एक न‌ई दृष्टि एक न‌ई पहल के रूप में वैचारिक क्रांति के लीक पर चलेगा। अक्सर लोग जो बताने को तैयार रहते हैं वह प्रोपेगैंडा होता है। असली ख़बर तो खामोशी तोड़कर निकालनी होती है। मीडिया की भीड़ में ज्यादातर प्रोपेगैंडा वाली खबरों की ही भरमार होती है , जिसको एक सजग पाठक बहुत ही हलके अंदाज में लेता है। कभी भी इस तरह की ख़बरों से क्रांति नहीं ला‌ई जा सकती है।समय दर्पण का प्रयास है की एक ही जगह पर पाठकों को उसकी पसंद और मतलब की ख़बरों को चयन कर पढ़ने का मौका दे सके। राष्ट्र को सर्वोपरि मानकर विकास , समस्या एवं समाधान तथा आम जन की आवाज को सम्बंधित पक्ष तक पहुँचने का निर्णय हमने लिया है। नर्मदा क्रिएटिव प्रा‌ईवेट लिमिटेड द्वारा राष्ट्रभाषा हिन्दी में समय दर्पण का प्रकाशन मार्च २००९ से प्रारम्भ किया जा चुका है। सूचना तकनीक के इस ज़माने में ऑनला‌ईन मीडिया का प्रभाव बढ़ रहा है। शिक्षा का प्रसार जैसे -जैसे बढेगा , कम्प्यूटर क्रांति भी जोर पकड़ेगा। इन्हीं महत्वपूर्ण बिन्दु‌ओं को ध्यान में रखते हु‌ए हमने गाँव से शहर तक की ख़बरों , राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय हलचल के साथ-साथ भारतीय सभ्यता - संस्कृति , जनसरोकार , जनजागरण को बुलंद करने हेतु इसके प्रकाशन की दिशा में कदम बढाया है। पत्रकारिता के मानदंडों को ध्यान में रखकर हम सम्पूर्ण क्रांति के आगाज की दृढ़ इच्छा शक्ति रखते हैं। समय बदल रहा है। कलम एवं कम्प्यूटर से क्रांतिलाने हेतु शंख नाद हो चुका है। हमारा उद्येश्य अन्य प्रकाशन समूहों की तरह केवल व्यवसाय करना नहीं बल्कि समाज में बदलाव लाने के साथ-साथ राष्ट्र को सक्षम बनाने हेतु वैचारिक समन्वय स्थापित करना है। समय दर्पण डॉट कॉम पर सभी पाठक वर्गों हेतु समाचारों की विस्तृत श्रंखला का प्लेटफार्म प्रदान कराना ही हमारा उद्येश्य है। हमारी कोशिश है की भविष्य में अतिशीघ्र इसके प्रिंट संस्करण का भी शुभारम्भ हो। हमारे उद्येश्य की पूर्ति बिना आपके सहयोग के पूरा नहीं हो सकता है। हमें आशा ही नहीं बल्कि विश्वास है की आपका सानिध्य , सहयोग, एवं सुझाव के साथ-साथ क्षेत्रवार घटना‌ओं का समाचार एवं रचना हमें अवश्य प्राप्त हो सकेगा। अपने इष्ट मित्रों एवं सम्बन्धी जनों के दूरभाष ,मोबा‌ईल नंबर एवं ईमेल आ‌ईडी भेजकर हमें कृतार्थ करें ताकि उनको भी "समय दर्पण" के प्रकाशन की जानकारी दी जा सके। इसका नवंबर अंक मानवाधिकार विशेषांक होगा। आपकी नजर में मानवाधिकार हनन से संबंधित कोई भी मामला हो तो उसकी रिपोर्ट आप हमें भेज सकते हैं। आपके सकारात्मक सहयोग एवं हार्दिक मंगल कामना‌ओं के साथ, गोपाल प्रसाद(संपादक, समय दर्पण) संपर्क: 9211309569