Friday, June 26, 2009

शाही खर्च की पूर्ति हेतु छात्र -युवा बन रहें हैं अपराधी

जिस तेजी से पढ़े-लिखे युवाओं द्वारा अपराध का रास्ता अपनाने का मामला सामने आ रहा है, उससे लोगों को यह सोचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है कि इसके पीछे आखिर वजह क्या हैं । दौड़ती भागती जिंदगी के इस दौर में धन की पिपासा के कारण पैसे के आगे मानवीय संबंध धीरे-धीरे गौण होते जा रहे हैं । माँ बाप बच्चों के लिए पैसे तो दे सकते है, परन्तु समय नहीं । मँहगे स्कूल में नामांकन एवं ट्‌यूशन दिलवा सकते हैं परन्तु नैतिक शिक्षा और संस्कार नहीं दे सकते हैं । झूठे शानो-शौकत के कारण बच्चों के नाजायज माँग पूरी हो जाने से रईस माँ-बापों के बिगड़े औलादों का मनोबल और अधिक बढ़ रहा है । उनका बेटा क्या करता है और उसके खर्च क्या हैं ? इस पर ध्यान देने की फुरसत कहां है । देश के सभी कोने में बढ़ रही घटनाओं को अगर ध्यान से देखा जाय तो पता चलता है कि इंटरनेट, टीवी और धन के प्रवाह के कारण युवाओं के अच्छे के बजाय बुरे चीजों की नकल करने की प्रवृत्ति बढ़ी है । युवा वर्ग फिल्म के नायक एवं खलनायकों के रूप में अपनी छवि देखने लगे हैं । चोरी और लूट के आरोप में पकड़े गए छात्रों के अपराधी बनने का मुख्य कारण शाही शौक एवं उसे पूरा करने हेतु खर्च का जुगाड़ ही निकला । महिला मित्रों के खर्च पूरा करने के लिए पुरूष मित्र अपराध को चुनना पसंद कर रहे हैं । कहीं-कहीं उत्छृंखलता को छुपाने हेतु सगी औलादें अपनी माँ-बाप की हत्या तक करने से नहीं चूक रहे हैं । आखिर हमारा समाज कहाँ जा रहा है । पश्‍चिमी सभ्यता के अंधानुकरण के कारण ये विकृतियाँ तेजी से अपना पाँव प्रसार रही है ।
चेन और पर्स छीनने के ज्यादातर मामलों में युवा ही शामिल रहे हैं । इनके पास तेज सवारी गाड़ी होती है । पिछली आपराधिक सूची नहीं होने के कारण इन्हें गिरफ्तार करना चुनौतीपूर्ण होता है।
युवाओं विशेषकर छात्रों के अपराध में शामिल होने में मनोचिकित्सक सबसे ज्यादा अभिभावकों को जिम्मेदार मानते है । बच्चों के गतिविधियों पर ध्यान नहीं देने से मामला उलझता ही चला जाता है । अगर उनके बच्चे को कोई परेशानी है तो बातचीत कर समस्या का समाधान निकाला जाना चाहिए । जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक बच्चों में हीनभावना ग्रसित कर जाएगी । वे पढ़ाई में भी कमजोर हो सकते है । घर के अंदर और बाहर नकारात्मक टिप्पणियों से छुटकारा पाने के लिए वे ऐसा काम करना चाहते हैं, जिससे उनका नाम हो । चाहे वह नाम बदनामी से ही क्यों न मिले, इस प्रकार कई बार स्वतः वे अपराध से जुड़ जाते है ।
इन परिस्थितियों से निपटने के लिए पुलिस विभाग एवं युवा मामलों के मंत्रालय को एकजुट होकर स्थायी समाधान ढूंढ़ने होंगे तथा जनजागरूकता कार्यक्रमों की शुरूआत करनी पड़ेगी । समाज के सकारात्मक एवं नैतिक समर्थन के बाद निश्‍चित रूप से इन घटनाओं में कमी आ सकती है ।

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