Monday, December 7, 2009

अपना देश बचा लो आज



भारत सरकार और माफिया में क्या अंतर है? भारत सरकार को कानूनी मोहर (अधिकार) है जबकि माफिया को कानूनी अधिकार नहीं है । आज माफिया सरकार चला रही है । भारत में झूठ बोलकर वोट ले लेने को राजनीति कहते हैं जबकि विदेशों में ऐसा नहीं है । वहाँ पार्टी के घोषणा पत्र पर पूर्णतः अमल करना पड़ता है । इस समस्या के समाधान के लिए “राइट टू रिकॉल” अर्थात जनता को अपने प्रतिनिधि वापस बुलाने का अधिकार मिलने चाहिए । गवाहों की सुरक्षा की योजना बने । जाति और धर्म आरक्षण का आधार नहीं होना चाहिए बल्कि यह आर्थिक आधार पर तय होना चाहिए ।
कुछ लोग हमेशा विरूद्ध मत में होते हैं । वे बहस करते रहे हैं कि अंडा पहले आया या मुर्गी, गाय दूध देती है या हम दूध लेते हैं । जब तक वर्षा के जल को संरक्षित नहीं किया जाएगा तब तक पानी की समस्या का समाधान नहीं हो सकता है । भ्रष्टाचार का कारण जरूरत है या लालच? आप खाली पेट में उसूल नहीं सिखा सकते । टैक्स परिसीमन को भी बदलना होगा । १० करोड़ बच्चों को विद्यालय भेजना हो तो संसद को बंद कर देना चाहिए । क्योंकि संसद में जूतमपैजार, आरोप प्रत्यारोप के सिवा देश की मूलभूत आवश्यकताओं के निदान पर क्या काम होता है? भारी भरकम योजना मंत्रालय और संपूर्ण सरकारी तंत्र के बावजूद मँहगाई जिस हिसाब से बढ़ी है उससे अमीर और ज्यादा अमीर हो गए और गरीब ठीक उसी तरह और अधिक गरीब हो गए । संपूर्ण सरकारी आँकड़ा झूठ का पुलिंदा के सिवाय और क्या है? रोजगारपरक विद्यालय अत्यधिक संख्या में खोले जाने चाहिए, वह तो खुल नहीं रहे अस्पताल और पेय जल की उपलब्धता के लिए कारगर उपाय के बजाय सारी मशीनरी “कॉमनवेल्थ गेम” पर केंद्रित हो गई है । यह कैसा मजाक है? ९०% किसान कोर्ट-कचहरी में धक्‍के खा रहे हैं । इसके निदान हेतु चकबंदी कराना अनिवार्य हो । आज साढ़े तीन करोड़ केस विचारधीन हैं जिसकी सुनवाई में १२४ साल लगेंगे । इस समस्या के निदान के लिए कोर्ट कचहरी तीन शिफ्ट में क्यों नहीं चलाई जाती है? सेवानिवृत न्यायाधीशों को वापस बुलाकर एवं ऑनरेरी मजिस्ट्रेट की नियुक्‍ति कर त्वरित न्याय दिया जा सकता है । समय पर न्याय ना मिलना अन्याय नहीं तो और क्या है? आज हर कोई अलग राज्य की माँग कर रहा है । राज्य अलग करने के बजाय वे सर्वांगीण विकास की माँग क्यों नहीं करते? जब इस देश के हर नागरिक को कहीं भी रहने और काम करने का अधिकार प्राप्त है, कोई भी भाषा, कोई भी धर्म अपनाने का अधिकार प्राप्त है, फिर जाति और भाषा के नाम पर नंगा नाच क्यों हो रहा है? इस नंगे नाच को शह कौन दे रहा है? ऐसे तत्वों की मंशा क्या देश की एकता और अखंडता के लिए घातक नहीं है?वोट बैंक तुच्छ राजनीति के कारण अपराधियों को पैरोल पर छोड़ दिया जाने हेतु दिल्ली सरकार अनुशंसा करती है । महाराष्ट्र विधानसभा में मनसे विधायकों द्वारा सपा विधायक अबू आजमी के साथ अभद्र व्यवहार किया जाता है । यह संपूर्ण हिंदी समाज पर हमला है और देर सबेर इस हमले का जवाब उपद्रवी तत्वों को जरूर मिलेगा क्योंकि समय का चक्र घूमता रहता है । शांत रहने का मतलब यह नहीं कि हम चुप हैं । हम अपनी ताकत इकट्‌ठी कर रहे हैं, उन हमलावरों के माकूल जवाब देने हेतु ।
राजस्थान में गूजर और मीणा जाति समुदाय के वर्चस्व की लड़ाई से देश का कितना नुकसान हुआ यह आकलन क्या किसी ने किया है? आज हर किसी को आरक्षण चाहिए क्यों? यदि मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे, सबों को अपना हम मिलता रहे तो फिर आरक्षण की कोई जरूरत ही नहीं होगी, पर अभी भी जातीय वैमनस्यता, छूआछूत तथा विषमताएँ पूर्णतः दूर नहीं हुई हैं और जब तक इसका समाधान ढूँढा नहीं जाएगा विद्रोह घटने के बजाय और बढ़ेगा ।
भारत पहला ऐसा देश है जो समस्याओं का समाधान नहीं निकाल रहा है । अंतरराष्ट्रीय प्रेरक शिव खेड़ा ठीक ही कहते हैं- “यदि आप समस्या का समाधान नहीं कर सकते तो आप अपने आपमें समस्या हैं । मान लीजिए सरकार यदि यह निर्णय कर ले कि कोई बिल्डिंग नहीं बनने देंगे जब तक “सौर ऊर्जा” प्रणाली न अपना ले । तो फिर बिजली समस्या का खुद ही समाधान मिल जाएगा । आजादी के ६२ वर्ष के बाद भी राजधानी दिल्ली में बिजली, पानी सुरक्षा सुविधा कारगर नहीं है । मंदिरों में चुन्‍नियाँ चढ़ाते हैं बाहर चुन्‍नियाँ उतारते हैं । पारदर्शिता लाने एवं भ्रष्टाचार खत्म करने हेतु RTI एक्ट को और अधिक सशक्‍त करने की जरूरत है क्योंकि विभिन्‍न क्षेत्रों से अभी भी यह सूचना आ रही है कि इस पर पूर्ण रूपेण अमल नहीं किया जा रहा है । अधिकारी गैर जिम्मेदाराना रवैया अपना रहे हैं । कहीं-कहीं तो RTI द्वारा पूछे गए प्रश्नों के सही जवाब भी नहीं दिए जा रहे हैं ।
आज उनलोगों का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए जो बेईमान हों, भष्टाचारी हों, आततायी हों । हर कोई कहता है कि भगत सिंह, सुभाषचन्द्र बोस, चन्द्रशेखर आजाद और खुद्‌दीराम बोस पैदा हों, पर हमारे घर नहीं । यह कैसी मानसिकता है? ज्यादातर लोग तो’ स्वयं के साथ भी अन्याय होने पर प्रतिकार करने के बजाय अन्य कंधों को ढूँढने में रहते हैं । ऐसे लोग मेरे विचार से मुर्दे ही हैं, बेशक वे चलते-फिरते हों । ऐसे लोग एवं ऐसी मानसिकता की बदौलत कभी क्रांति नहीं आ सकती । क्रांति मात्र उन धारा के विपरीत चलने वाले लोगों के द्वारा ही आएगी जिसकी संख्या तो काफी कम है परन्तु नैतिकता आत्मबल और दृढ़निश्‍चय के मामले में वे काफी सबल हैं । किसी ने ठीक ही कहा था- “हमें खतरा नहीं है गोरे अंग्रेजों से खतरा तो हमें अपने काले अंग्रेजों से है जो हमीं जैसे लगते हैं, फर्क बताना मुश्‍किल है कि कौन गद्दार है । हमारे मूर्धन्य नेता रामविलास पासवान कहते हैं कि ३ करोड़ बांग्लादेशियों को नागरिकता दे दी जाय । क्या यह माँग उचित है, गौर से सोचिए और खत्म कर दीजिए ऐसे नेताओं की नेतागिरी को जो ऐसी गैरवाजिब और देशद्रोही बयानों के बदौलत अपनी नेतागिरी चमकाने में रहते हैं । दो धारा के लोग हैं- “सकारात्मक एवं नकारात्मक” । हमें सकारात्मकता की नीति को अपनाने हुए संयम एवं शालीनता के साथ नए कीर्तिमान स्थापित करने हेतु नए मापदंड स्थापित करने होंगे । आज नकली देशभक्‍तों की संख्या बढ़ गई है जबकि असली देशभक्‍तों का मानना है कि “जो देश को चाहिए वही हम करेंगे । आजादी से जियो, जाति छोड़ो-भारत जोड़ो का नारा हमें अपनाना ही पड़ेगा । गोवा में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है, ऐसा क्यों? सिंगापुर और इजराईल में हर परिवार के एक सदस्य का राष्ट्रीय रक्षा सेवा में जाना अनिवार्य है । यह सिद्धांत हमारे देश में क्यों नहीं लागू किया जाता है? कर प्रणाली के साथ-साथ चरित्र प्रणाली और एकल कानून प्रणाली का भी निर्धारण एवम्‌ अमल होना चाहिए । देश हर इंसान से ऊपर है । हर घरेलू कर्मचारियों के लिए पेंशन योजना हो जिसमें २०% नियोक्‍ता का और २०% कर्मचारियों के वेतन से कटे ।
देश के युवा पीढ़ी को इस संकल्प से राजनीति में आना चाहिए कि सरकार तोड़ देंगे मगर उसूल नहीं तोड़ेंगे । वैसे आज ज्यादातर युवा मन बना रहे हैं कि “हमें अब उतरना ही पड़ेगा । ”


प्रस्तुत संपादकीय की विषयवस्तु एक प्रमुख कवि गर्गऋषि शान्तनु की कविता ‘सोचेगा कौन’ ने स्पष्ट रूप से झलती हैं-

भीड़वाले हम अबतक.. झरना नीचे पानी पिये,
चन्द तुम- ऊपर - तब से :
मन्दिर.. पाठागार.. विद्यालय जलाते आए !
अब देश के लिए- बताओ- कौन सोचेगा?
विदेशी या विदेशिनी.. फिर.. नाना या नानी?


-गोपाल प्रसाद

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला २००९ भारत के आधुनिक छवि की प्रस्तुति

भारत की महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटील ने नई दिल्ली के प्रगति मैदान स्थित हंसध्वनि थियेटर में एक रंगारंग और खचाखच भरे समारोह में २९ वें भारतीय अन्तरराष्ट्रीय व्यापार मेले का उद्‌घाटन किया ।
इस अवसर पर उपस्थित महानुभावों में केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री श्री आनन्द शर्मा, जिन्होंने उद्‌घाटन समारोह की अध्यक्षता की, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित, उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ भारत सरकार के वाणिज्य सचिव श्री राहुल खुल्लर, इण्डिया ट्रेड प्रमोशन आर्गनाइजेशन के अध्यक्ष एवं प्रबन्ध निदेशक डॉ. सुवास पाणि, अनेक राजनयिक, वरिष्ठ सरकार अधिकारी, भारत और विदेश के भागीदारी तथा मीडिया जगत से जुड़े व्यक्‍ति शामिल थे ।
अपने उद्‌घाटन भाषण में भारत की राष्ट्रपति ने इस वर्ष व्यापार मेले को विभिन्‍न पहलुओं की दृष्टि से उसका क्षेत्र व्यापक बनाने और उसे अधिक समृद्ध बनाने के लिए केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय और आई टी पी ओ को बधाई दी । उन्होंने बताया कि पिछले अनेक वर्षों से वैश्‍विक व्यापारी समुदाय के समक्ष भारत की तीव्रगति से आधुनिक हो रही छवि को सफलतापूर्वक प्रस्तुत करने में आई आई टी एफ ने प्रतिष्ठा अर्जित की है । भारतीय अन्तरराष्ट्रीय व्यापार मेले में बी-टू-बी गतिविधियों तथा बी-टू-सी सौदों को बड़े पैमाने पर जोड़ने की अद्वितीय क्षमता है । उन्होंने कहा कि अन्तरिक्ष की खोज जैसे क्षेत्रों सहित ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के नेता के रूप में भारत की स्थिति इसके प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू के प्रोत्साहन का परिणाम है । राष्ट्रपति ने आशा व्यक्‍त की कि भारतीय अन्तरराष्ट्रीय व्यापार मेला २००९ के अंग के रूप में ‘भारत की अन्तरिक्ष यात्रा’ प्रदर्शनी लोगों को, विशेषरूप से भारतीय युवाओं को विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अध्ययन और अनुसंधान करने के लिए प्रेरणा प्रदान करेगी । उन्होंने कहा कि भविष्य आविष्कारों, नवीन खोजों और उद्यमों का है ।
मेले में आये विदेशी भागीदारों का स्वागत करते हुए राष्ट्रपति जी ने बताया कि भारत विदेशी कंपनियों, निगमों और व्यापारिक सदनों के लिए एक अनुकूल गन्तव्य स्थल के रूप में उभरा है । भारतीय अर्थव्यवस्था ने अपने सुदृढ़ स्वदेशी बाजार और प्रगति कर रहे मध्यम वर्ग तथा एक सुदृढ़ विकास दर के कारण विश्‍व में आर्थिक संकट के दौरान ६.५ प्रतिशत से भी अधिक विकास दर बनाये रखकर अपनी स्थिति मजबूत की है । अपेक्षाकृत अच्छी वृद्धि दर विश्‍व में भारत के बढ़ते आर्थिक प्रभुत्व की ओर इंगित करती है । विभिन्‍न देशों के साथ बहु-आयामी व्यापार संबंधों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता पर बल देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि भारत में उचित मूल्य पर उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों और सेवाओं को उपलब्ध करने की अद्वितीय क्षमता है । उन्होंने कहा कि विकसित हो रही अवसंरचना से अगले पांच वर्ष के दौरान भारत में ५५० बिलियन अमेरिकी डालर के पूंजी निवेश उपलब्ध होंगे ।
अपने मुख्य भाषण में केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री श्री आनन्द शर्मा ने बताया कि एक देश से दूसरे देश के बीच व्यापार और विशेषरूप से विश्‍व की मुख्य धारा के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था को जोड़ने के लिए उत्प्रेरक का कार्य करने में इस मेले का विशेष महत्व है । यह भी जानकारी दी गयी कि वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने विदेश व्यापार नीति के अन्तर्गत ३९ नये बाजारों की पहचान करने और उनका विकास करने के लिए प्रमुख पहल की है । फोकस बाजार योजनाओं के अन्तर्गत आने वाले इन २६ नए बाजारों में से १६ लेटिन अमेरिका में तथा १० नये बाजार ओसियाना और एशिया में हैं । दूसरी फोकस योजना में १३ बड़े बाजार विभिन्‍न महाद्वीपों अफ्रीका, दक्षिण अफ्रीका, सुदूर पूर्व, प्रशान्त क्षेत्र और यूरोप में है ।
श्री शर्मा ने इस बात का उल्लेख करते हुए कि भारत की क्षमता और उसकी सामर्थ्य को देखते हुए विश्‍व व्यापार में उसका हिस्सा बहुत ही कम है प्रतिशत की दृष्टि से भारत के वैश्‍विक व्यापार को वर्ष २०१४ तक दुगुना करने के लिए सरकारों की प्रतिबद्धता को दोहराया । इस बात पर पुनः बल दिया कि चुनौतीपूर्ण आर्थिक वातावरण में हमारे देश में विश्‍व अर्थव्यवस्था के साथ स्वयं को एकीकृत करने की क्षमता और प्रतिबद्धता है । उन्होंने जानकारी दी कि भारत ने पहले ओ ई सी डी देशों के साथ व्यापक आर्थिक भागीदारी पर हस्ताक्षर किए और उसके साथ ही विश्‍व व्यापार संगठन के दोहा दौरे को पुनः सक्रिय करने के लिए एक अत्यन्त सुदृढ़ कदम उठाया । ऐतिहासिक त्रृटियों को सुधारने के साथ-साथ नियम आधारित बहु-पक्षीय व्यापार व्यवस्था की आवश्यकता का समर्थन करते हुए उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि गरीब और विकासशील देशों की उचित महत्वाकांक्षाओं पर ध्यान दिये जाने और वैश्‍विक सहयोग के नये अवसर पैदा किये जाने की आवश्यकता है । उन्होंने घोषणा की कि सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में एक विश्‍व स्तरीय सम्मेलन केन्द्र स्थापित करने के बारे में निर्णय किया है ।
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री ने स्वास्थ्य और आध्यात्मिक के क्षेत्र में उत्तराखण्ड राज्य की अन्तनिर्हित क्षमताओं पर प्रकाश डाला । श्रीमती शीला दीक्षित ने आई आई टी एफ २००९ में दिल्ली को भागीदारी राज्य का दर्जा दिये जाने पर प्रसन्‍नता व्यक्‍त की । उन्होंने आशा व्यक्‍त की कि दिल्ली आगामी राष्ट्र मण्डल खेल २०१० के लिए की जा रही सभी विकास गतिविधियों के कारण एक उच्च विश्‍वस्तरीय राजधानी के रूप में उभरेगी । स्वागत भाषण में डा. सुवास पाणि ने मेले की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख किया ।
मेले के दौरान व्यापार से संबंद्ध विषयों, विशेष प्रदर्शन और सामयिक महत्व के अन्य विषयों और थीमों पर अनेक विचार गोष्ठियां आयोजित की गईं । टेकमार्ट, उत्तम रहन-सहन आदि विशेष प्रदर्शनों में विविध उत्पाद और सेवाएं प्रदर्शित की गईं जिनमें इंजीनियरी, सॉफ्टवेयर, एवं हार्डवेयर, मोटर वाहन, इलेक्ट्रॉनिक चमड़ा, कपड़े, दूर संचार, जूट, रबड़, हस्तशिल्प, आभूषण, उपभोक्‍ता वस्तुएँ आदि शामिल की गयीं ।
आई आई टी एफ २००९ की थीम- सेवाओं के निर्यात को राज्य और संघ राज्य क्षेत्रों के मण्डपों और एकल अलग से मण्डप में भी प्रमुखता से दर्शाया गया ।
इस वर्ष दिल्ली और उत्तराखण्ड को क्रमशः साझेदार और फोकस राज्य चुना गया है तथा थाइलैण्ड और चीन को क्रमशः साझेदार देश और फोकस देश का दर्जा प्रदान किया गया ।
भारत और अन्य २८ देशों के लगभग ७५०० प्रदर्शक मेले में भाग लिया । अन्तरराष्ट्रीय भागीदारी अफगानिस्तान, बंग्लादेश, बेल्जियम, भूटान, चीन, चीन (हांगकांग) क्यूबा, मिस्त्र, जर्मनी, ईरान, ईराक, इण्डोनेशिया, म्यांमार, हालैण्ड, नेपाल, नाइजीरिया, पाकिस्तान, पापुआ और न्यूगिनी फिलीपीन्स, श्रीलंका, दक्षिण कोरिया, सीरिया, थाइलैण्ड, तुर्की, यू के, संयुक्‍त अरब अमीरात, संयुक्‍त राज्य अमेरिका और वियतनाम आदि देशों की रही । क्यूबा, ईराक, नाइजीरिया, पापुआ और न्यूगिनी मेले में पहली बार भाग लिया ।
इस वर्ष के आई आई टी एफ को “ग्रीन फेयर” का दर्जा दिया गया जिसमें प्रगति मैदान को धूम्रपान निषेध घोषित किया गया और मेले के अन्दर प्लास्टिक के थैलों का उपयोग करने पर पाबन्दी थी ।
मेले की अन्य प्रमुख विशेषता “भारत की अन्तरिक्ष यात्रा” विषय पर नेहरू मण्डप में आयोजित हो रही प्रदर्शनी थी जिसमें भारत द्वारा अन्तरिक्ष युग में प्रवेश करने के विभिन्‍न चरणों पर प्रकाश डाला गया ।
इस मेले के दौरान हंसध्वनि,शाकुन्तलम, फलकनुमा, ऐतिहासिक चौक, फूड कोर्ट, श्रृंगार, लाल चौक, एम्फी थियेटर और प्रगति मैदान में नए बने ओपन एअर थियेटर प्रगति आंगन में विभिन्‍न इलाकों के समृद्ध और विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये गए । मेले में फूड प्लाजा में “भारत का खाना” के अन्तर्गत विभिन्‍न प्रकार के स्वादिष्ट भारतीय व्यंजनों का स्वाद लेने का भी अद्वितीय अवसर प्राप्त हुआ साझेदार राज्य दिल्ली के मण्डप में विशेष रूप से- ‘दिल्ली का खाना’ खाने को मिला ।
प्रगति मैदान के लिए मैट्रो ट्रेन की सेवाओं के फेरों में वृद्धि की गई थी । दिल्ली परिवहन निगम की विशेष सेवायें दिल्ली सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के गाजियाबाद, फरीदाबाद, नोएडा और गुड़गांव शहरों से उपलब्ध थी । पहली बार प्रदर्शकों, सेवा कार्मिकों और उपभोक्‍ताओं की अन्य श्रेणियों के लिए डिजिटल पहचान पत्र की प्रणाली भी लागू की गई थी ।
आम जनता की सुविधा के लिए मेले के प्रवेश टिकट मैट्रो स्टेशनों, डी टी सी के बस डिपो, मदर डेयरी बूथों और कुछ चुनिन्दा पैट्रोल पम्पों तथा भारतीय तेल निगम, भारत, पैट्रोलियम और हिन्दुस्तान पैट्रोलियम के खुदरा बिक्री केन्द्रों पर उपलब्ध थे । इन बिक्री केन्द्रों पर उपलब्ध टिकट प्रगति मैदान के टिकट बूथों पर बेचे जाने वाले टिकटों से १० रूपये सस्ते थे ।
टैकमार्ट इंडिया ः
सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों को लगाने के लिए एनएस‍आईसी के “टैकमार्ट इंडिया २००९” में कम लागत वाली प्रौद्योगिकियों की प्रस्तुति में सूक्ष्म, लद्यु एवं मध्यम उद्यमों की सामर्थ्य एवं क्षमताओं को प्रदर्शित किया । इस प्रदर्शनी में हलकी इंजीनियरी, मैकेनिकल उत्पाद, इलेक्ट्रिकल्स एवं इलेक्टॉनिक्स, सूचना प्रौद्योगिकी, फार्मेस्युटिकल्स, सिरैमिक, मशीन एवं मशीज औजार व सामान्य उत्पाद शामिल थे । इस प्रदर्शनी में एमएसएमई यूनिटों को एक छत के नीचे अपने मार्केटिंग प्रयासों में वृद्धि करने तथा प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान का अवसर प्रदान किया गया ।
टैकमार्ट इंडिया २००९ के मुख्य उद्देश्य -
भारतीय सूक्ष्म, लद्यु एवं मध्यम उद्यमों की सामर्थ्यों तथा उनके उत्पादों व सेवाओं के संभावित निर्यात को प्रदर्शित करना, स्वरोजगार के माध्यम से रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने वाली प्रौद्योगिकी/मशीनों का जीवन्त प्रदर्शन एवं जानकारी देना, भारत एवं विदेशों से संभावित ग्राहकों/सप्लायरों के साथ बैठकों के माध्यम से नए मार्केट अवसरों व प्रौद्योगिकियों की तलाश करना, उद्योगों संबंधी अपने अनुभवों की भागीदारी व उनके आदान-प्रदान तथा सर्वोत्तम व्यापार प्रक्रियाओं व नीतियों पर जानकारी माध्यम से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के बीच मजबूत संबंध और नेटवर्किंग कायम करना आदि है । इस वर्ष एनएस‍आईसी “वर्किंग टेकमार्ट” के विशेष एनक्लोजर का प्रावधान रखा गया जहाँ स्वरोजगार के इच्छुक उद्यमियों के लिए समुचित प्रौद्योगिकियों जैसे सीमेंट-ब्रिक बनाने की मशीन, सोया दूध बनाने की मशीन, फूड प्रोसेसिंग की मशीन, कील बनाने की मशीन, नालेदार (कारूगोटिड) गत्ते को बॉक्स बनाने की मशीन, नोटबुक बनाने की मशीन, दाना बनाने की मशीन, इन्डस्ट्रियल फर्नेस, आयल एक्सपेलर डेयरी फूड, बैल्ट फास्टनर आदि प्रदर्शित की गई । इस प्रदर्शनी के अन्य आकर्षण थे- सेन्टल वूल डेवलपमेंट बोर्ड, जोधपुर की विशेष प्रदर्शनी, महिला उद्यमियों एवं अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति से सम्बद्ध यूनिटों तथा पूर्वोत्तर राज्यों की यूनिटों द्वारा तैयार किए गए उत्पादों का प्रदर्शन आदि ।
व्यापार मेले के नाम पर नियमों की अनदेखी -
विदेशों में व्यापार मेलों के नाम पर इंडिया ट्रेड प्रमोशन ऑर्गनाइजेशन में कबूतरबाजी जोरों पर है । दो उप-प्रबंध स्तर के अधिकारियों पर आरोप है कि वह नियमों को ताक पर रखकर बार-बार विदेश यात्रा कर रहे हैं और करोड़ों डकार कर दूसरे लोगों को भी विदेश यात्रा करा रहे हैं ।
सूत्रों के मुताबिक आईटीपीओ में अधिकारियों को विदेश भेजने से लेकर व्यापारिक फर्मा के नाम पर विदेश यात्रा करने वालों के चयन में करोड़ों रूपए की धांधली हो रही है । मामला नव नियुक्‍त मुख्य प्रबंध निदेशक सुवास पाणि की जानकारी में भी आ चुका है । पर वह अभी दबाए बैठे हैं । जल्द ही मामला सीबीआई के हवाले किया जा सकता है । मामले को लेकर प्रगति मैदान में अफरा तफरी का माहौल है । यदि समय से सीबीआई की कार्रवाई होती है तो आईटीपीओ के कई वरिष्ठ अधिकारियों की गर्दन फंस सकती है । दर‍असल आईटीपीओ द्वारा भारत सरकार की ओर से दूसरे देशों में हर साल ५० से ६० मेलों का आयोजन किया जाता है । औसतन एक मेले पर सरकार द्वारा एक करोड़ रूपए से ज्यादा की राशि खर्च की जाती है । आरोप है कि मेलों में भागीदारी के लिए जाने वाली १० कंपनियों में से दो फर्जी भी होती हैं । कई मामलों में एक ही कंपनी के लोगों को बार-बार विदेश यात्रा पर भेजा जाता रहा है ।
उप-प्रबंधक हितेश सेठी ने २००७ से अक्टूबर २००९ के बीच पांच-छह विदेश यात्राएं कर चुके हैं । इनमें २००७ में दिसंबर में चीन, २००८ में जून में ब्राजील, सितंबर में फ्रांस अक्टूबर में सिंगापुर, २००९ में अप्रैल और मई में कजाकिस्तान की यात्रा पर जा चुके हैं ।
आईटीपीओ द्वारा क्रम और वरिष्ठता के आधार पर अधिकारियों को विदेशों में आयोजित होने वाले मेलों में भेजा जाता है । इसके लिए बाकायदा एक समिति द्वारा नामों का चयन किया जाता है । पर कुछ अधिकारियों का आरोप है कि लंबे समय से इस समिति की कोई बैठक नहीं हुई और कुछ वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा खुद नाम तय करके अधिकारियों को बाहर भेजा जा रहा है । वरिष्ठ प्रबंधक वीपी रस्तोगी सहित लगभग चार दर्जन ऐसे वरिष्ठ अधिकारी हैं जो पिछले ५ से १० साल से विदेश यात्रा पर नहीं जा पाए । ऐसे में कई वरिष्ठ अधिकारियों में इस घपलेबाजी को लेकर उबाल है । जल्द ही यह मामला सीबीआई तक जा सकता है ।
आईटीपीओ के वरिष्ठ महाप्रबंधक सफदर एच खान ने भी माना कि यह लोग कुछ ज्यादा ही विदेश यात्राएं कर चुके हैं । उन्होंने बताया कि यह मामले पूर्व निदेशक डॉ. शीला भिडे के समय के हैं । अब नए निदेशक आए हैं तो नई व्यवस्था तय की जाएगी ।
- गोपाल प्रसाद

26/11 की बरसी या हमारे स्वाभिमान की बरसी

२६ नवंबर २००८ को भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई को कथित पाकिस्तानी आतंकवादियों ने सिलसिलेवार बम धमाकों और गोलियों के बौछार से दहला दिया । इस हमले में १७३ लोग मारे गये और ३०८ लोग घायल हो गये ।
इस घटना में मुंबई की शान समझे जाने वाले ताजमहल होटल को मुख्यतः निशाना बनाया गया था । यह हमला पूरे विश्‍व में ११/९ की तरह २६/११ के नाम से जाना जा रहा है ।
अब २६ नवंबर को इसकी बरसी मनाई जाएगी । क्या भारत में लोग सिर्फ आतंकवादी हमलों की बरसी मनाने के लिए बैठे हैं? रायटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक सन २००१ से लेकर अक्टूबर २००७ तक ५९९ लोग आतंकवादी हमलों में मारे जा चुके हैं । आखिर ये क्या चल रहा है इस देश में अब जन्मदिन का उत्सव कम और श्राद्ध क्रियाऐं ज्यादा होने लगे है । आखिर ये सब कब तक चलेगा?
मुंबई हमले में पकड़े गये एक मान आतंकवादी अजमल कसाब के पाकिस्तानी होने के पक्‍के सबूत भारत के पास है । भारत में आतंकी साजिशें कितनी गहरी होती हैं, इसका अंदाजा अभी हाल ही में अमेरिकी खुफिया पुलिस द्वारा अमेरिका में ही गिरफ्तार हेडली और उसके दोस्त तहखूर राणा से हो जाता है ।
ये दोनों पाकिस्तान के लिए काम करते थे । इन दोनों का पाकिस्तान के उच्च आयोग से लगातार संपर्क था और इन दोनों के तार २६/११ के हमले से जुड़ते जा रहे हैं । हेडली नाम का ये शख्स पैदा कहीं हुआ, पढ़ाई-लिखाई कहीं हुयी और अपनी आतंकी कारमुजरियों को अंजाम उसने भारत में दिया । भारत के किसी भी स्थान पर कोई भी आतंकवादी घटना अगर घटी है, हो उसका सूत्र किसी ना किसी प्रकार से पाकिस्तान से ही जुड़ा है । हम जानते हैं कि हमारे देश वो अस्थिर करने की साजिश सीमा पार में लगातार चल रही है । वहाँ पर लगातार आतंकवादी संगठनों के सदस्यों को तरह-तरह के प्रशिक्षण देकर भारत भेजा जा रहा है आतंक फैलाने के लिए । आये दिन कई स्थानों पर आतंकवादी, खुफिया विभाग के लोग जासूस पकड़े जाते हैं, सभी कबूल करते हैं कि उनका लिंक पाकिस्तान है । जब भारत सरकार अच्छी तरह से जानती है कि देश की अस्थिरता में पाकिस्तान का हाथ है तो कार्यवाही क्यों नहीं हो रही है? अखिर हम कहाँ कमजोर पड़ रहे हैं । एक नजर डालते हैं भारत की संपूर्ण शक्‍ति के उपर ः-
भारत की जनसंख्या दूसरे स्थान पर सबसे ज्यादा है । भारत की जनसंख्या २००८ में १,१३९,१६४,९३२ थी । ये है भारत का मैन पावर । हमारा देश विश्‍व का सबसे तेजी से उभरता हुआ आर्थिक महाशक्‍ति है । हम संयुक्‍त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता पाने के प्रबल हकदार है । भारत जी २० देशों का सदस्य है । भारत सार्क देशों का सदस्य है । भारत ब्रिक देशों का सदस्य है । भारत की सैनिक शक्‍ति विश्‍व में चौथी है ।
भारत का मित्र रूस व जापान है, यूरोपिय देश क्रांस, इंग्लैड, जर्मनी, इटली आदि है । भारत की पूरे विश्‍व में पूछ है । भारत की पूरे विश्‍व में एक अलग पहचान है । तो आखिर आतंकवाद के मामले में हम कहाँ पिछड़ रहे हैं । २००८ में दिल्ली, मुंबई, जयपुर के आतंकवादी घटनाओं पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार से जो कुछ किया वह काफी है । हमारे देश के दुश्‍मन ऐसी कार्रवाइयों से डरने वाले नहीं हैं । हम जानते हैं कि भारत शांतिप्रिय देश हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई हमारे मुंह पर थूक कर चला जाए और हम उसका अफसोस मनाते रहें । भारत की इन्हीं कमजोरियों का फायदा उठाकर पहले भी कई जघन्य घटनाऐं होती रही हैं । कुछ सालों पहले हमारे BSF के २७ वीर जवानों की बी.डी.आर (बांग्लादेश राईफल्स) ने किसी विवाद को लेकर नृशंस हत्या कर दी एवं उनके कटे-कटाऐं शव भारतीय सीमा में फेक दिये ।
भारत के ओर से भी गयी जवाबी कार्रवाई संतोषप्रद नहीं लगी । हमारे सबसे अच्छे पड़ोसी देश का तहमा हासिल किये हुए देश नेपाल में माओवादी नेता प्रचंद भारत विरोधी टिप्पणियाँ जिस अंदाज में करता है, उससे मालूम पड़ता है कि शायद भारत भूटान जैसे देशों के समक्ष खड़ा है । उस समय हमारे विश्‍व की तिसरी आर्थिक भयशक्‍ति बनने वाली बात कहाँ गुम हो जाती है पता नहीं चलता । हम जानते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर का मुद्‌दा बेहद संवेदनशील है, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि पाकिस्तान इसका फायदा उठाकर हमारे देश के निरापराध लोगों की हत्या करवाता रहें और हमारी सरकार चुपचाप तमाशा देखती रहे । हम जानते हैं कि नक्सली हमारे देश को उसी तरीके से चाटते जा रहे हैं, जिस प्रकार से दीमक लड़की को चाटता है, लेकिन फिर सरकार अपनी नई-नई रणनीतियाँ नक्सली समस्या के लिए बनाती रहती है ।
नक्सली लैंड माईन बिछाकर एक बार में कई पुलिस व अन्य सुरक्षाबलों के जवानों को असमय मौत की नींद सुला देते हैं, लेकिन हमारी सरकार इस पर सिर्फ विचार करती है । अब अजमल कसाब को ही ले लीजिए बरसी आने वाली है २६/११ की लेकिन ये आतंकवादी अब भी चैन की नींद सोकर नये-नये ख्याब बुन रहा है । ऐसा क्यों हो रहा है, क्योंकि हमारी सरकार पिछले सालभर से उस पर मुकदमा जो चला रही है । उसने तो मुंबई में अंधाधुंध गोलियां चलाकर कई घरों को उजाड़ दिया लेकिन हम उसपर मुकदमा चलाकर अपने कर्तव्यनिष्ठ होने का स्वांग रच रहे हैं । वह कसाब कभी कबाब खाने की माँग रखा है तो कभी कुछ और भौतिक सुख-सुविधा की बात करता है । आखिर हम उसकी क्यों सुन रहे हैं? क्या पूरे विश्‍व को यह नहीं पता है कि पाकिस्तान में आतंकवादी ट्रेनिंग कैप चल रहे हैं और वहीं से भारत में आतंकवादी हमले करवाये जा रहे हैं ।
अमेरिका के उपर जब हमला हुआ तो उसने इराक और अफगानिस्तान में अपने बल का प्रयोग कर के दिखा दिया कि अगर उसकी तरफ किसी ने आँख उठाकर देखा भी तो वो उसका क्या हर्ष होगा । क्या हमें इस आतंकवाद रूपी दरिन्दो को कोई ऐसा मुंह तोड़ जवाब नहीं देना चाहिए? यदि हम ऐसा कर रहे है तो फिर २६/११ की बरसी हमारे स्वाभिमान की बरसी है । इसलिए भारत को क्या अमेरिका से रूबरू होना चाहिए? फैसला आपके ऊपर ।
[अमेरिका के उपर जब हमला हुआ तो उसने इराक और अफगानिस्तान में अपने बल का प्रयोगकर के दिखा दिया कि अगर उसकी तरफ किसी ने आँख उठाकर देखा भी तो वो उसका क्या हर्ष होगा । क्या हमें इस आतंकवाद रूपी दरिन्दो को कोई ऐसा मुंह तोड़ जवाब नहीं देना चाहिए? यदि हम ऐसा कर रहे है तो फिर २६/११ की बरसी हमारे स्वाभिमान की बरसी है । इसलिए भारत को क्या अमेरिका से रूबरू होना चाहिए? फैसला आपके ऊपर । ]

- धन्‍नू मिश्रा

कॉमनवेल्थ गेम से आंखों में अस्थायी सुरक्षा की चमक

कॉमनवैल्थ गेम्स जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, दिल्ली को सुरक्षित और सुंदर बनाने के लिए जरूरी कामों को पूरा करने के प्रयासों में भी तेजी आ रही है । इन्हीं प्रयासों में से एक है दिल्ली की सड़कों पर रहने वाली बेघर महिलाओं के लिए अस्थायी तौर पर आवास की व्यवस्था करना ।
लंबे समय से माना जाता रहा है कि असामाजिक तत्वों के लिए बेघर महिलाएं सबसे आसान निशाना होती हैं । अस्थायी तौर पर ही सही, ऐसी किसी योजना का मूर्त रूप लेना महिलाओं के खिलाफ होने वाली आपराधिक गतिविधियों को कम करने में सहायक होगा । अगर योजना जल्द ही अमल में आ सकी तो बेघर महिलाओं में से कुछ को भीषण सर्दी की मार से बचाने में भी मदद मिल सकेगी ।
दिल्ली महिला आयोग की इस योजना के अनुसार, अस्थायी निवास में आधारभूत सुविधाओं की व्यवस्था होगी, जिसमें एक आवास में ५० से ६० महिलाएं ७ से १० दिनों के लिए ठहर सकेंगी । गैर अधिकारिक आंकड़ों की मानें तो दिल्ली में लगभग डेढ़ लाख लोग बेघर हैं, जिनमें महिलाओं की संख्या दस हजार है । इनमें भी बड़ी संख्या युवा महिलाओं और सिंगल मदर की है । ‘आश्रय अधिकार अभियान’ नामक एनजीओ और इंस्टिट्‌यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार बेघर महिलाओ में से ७७.६ प्रतिशत १६ से ४५ वर्ष की उम्र की हैं । सर्वे में यह भी सामने आया है कि सड़कों पर जीने को मजबूर ९८ प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी शोषण का शिकार होती हैं ।
हालांकि बेघर महिलाओं की संख्या को देखते हुए एक अस्थायी शेल्टर प्रयास नाकाफी है, पर आयोग के अनुसार समय के अनुसार आवास घरों की संख्या और क्षमता को बढ़ाने की दिशा में भी प्रयास किया जाएगा ।
दिल्ली महिला आयोग का मानना है कि इस योजना से कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान शहर की महिलाओं की सुरक्षा के संबंध में सकारात्मक छवि पेश करने में भी मदद मिलेगी । योजना को मूर्त रूप देने के लिए विभिन्‍न एनजीओ से भी बातचीत की प्रक्रिया शुरू हो गई है । जानकारी के अनुसार आयोग द्वारा २२ स्वयंसेवी संगठनों से इस संबंध में बातचीत की जा रही है । संभावना है कि यह आवास साल के आखिर तक पूरा हो जाएगा । इससे आगामी सर्दियों में भी कुछ महिलाओं को राहत मिल सकती है । वर्तमान में राजधानी में तीन शेल्टर निर्मल छाया, यंग वुमन क्रिश्‍चियन एसोसिएशन और बापनो घर, बेघर महिलाओं के लिए कार्य कर रहे हैं । झंडेवालान, निजामुद्दीन, कालकाजी, जामा मस्जिद, फाउंटेन चौक और जमुना बाजार कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां बेघर लोगों की संख्या सबसे अधिक देखने को मिलती है ।
- पूनम जैन

अरूणाचल प्रदेश के छात्रों-युवाओं की माँग पर सरकार का ध्यान नहीं

ऑल अरूणाचल प्रदेश स्टूडेन्ट्‍स यूनियन के छात्रों ने चीनी दूतावास के समक्ष जोरदार प्रदर्शन किया । AAPSU कार्यकर्त्ता अरूणाचल प्रदेश पर चीन के अवैध दावे का विरोध कर रहे थे । ज्ञात हो कि पिछले दिनों चीन ने भारत के प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह तथा धर्म गुरू दलाई लामा के अरूणाचल प्रदेश जाने पर आपत्ति जाहिर की थी ।
AAPSU कार्यकर्त्ता अध्यक्ष श्री ताकम तातुन के अगुवाई में करीब १ बजे अपरान्ह चीनी दूतावास के सामने एकत्रित हुए तथा उन्होंने जमकर विरोध प्रदर्शन किया । छात्र ‘चीनी चोट, बुरी नियत छोड़” तथा “ we Born in India/ we will dil in India'' के नारे लगा रहे थे । प्रदर्शन में सैकड़ों छात्र उपस्थित थे । प्रदर्शन कर रहे छात्रों को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया इन्हें चाणक्य पुरी थाने ले गयी । ज्ञात हो AAPSU ने कल इन्हीं मुद्‌दों को लेकर जन्मर-मन्तर पर प्रदर्शन किया था तथा प्रधानमंत्री की ज्ञापन दिया था ।
बाद में प्रेस क्लब में मीडिया को सम्बोधित करते हुए अध्यक्ष ताकम तातुम ने कहा अरूणाचल प्रदेश स्टूडेन्ट यूनियन अरूणाचल प्रदेश पर चीन के दावे का पुरजोर विरोध करती है । तथा अरूणाचल प्रदेश के समस्त छात्रों तथा नागरिकों की ओट से यह सन्देश देना चाहती है अरूणांचल प्रदेश भारत का अभिन्‍न अंग है तथा रहेगा । AAPSU के महासचिव तोजम पीएम ने कहा कि १९६२ के युद्ध में सबसे ज्यादा भारतीय सेना के जवान किबतु पोस्ट पट शहीद हुए थे । आज इस पोस्ट की सुरक्षा के लिये केवल एक कम्पनी ही तैनात किया है । जबकि इस पोस्ट के ठीक सामने चीनी सेना का एयरपोर्ट तथा शिविर है । AAPSU सरकार से माँग करता है किबतु तथा ऐसे ही अन्य संवेदनशील पोस्ट पर अधिक सुरक्षा के प्रबन्ध किये जायें । AAPSU ने माँग की है अरूणाचल प्रदेश के विकास व सुरक्षा के लिये विशेष कार्य योजना तैयार की जाये । AAPSU ने इस मुद्‌दे पर देशव्यापी आन्दोलन छेड़ने का आह्‍वान किया है ।
- तीवम दाई , प्रवक्‍ता AAPSU

आतंकवाद के खात्में के लिए महारूद्राभिशेक

विश्‍व की सबसे बड़ी समस्या बनते जा रहे आतंकवाद से निपटने के लिए अब धार्मिक क्षेत्रों से भी पहल होने लगी है । पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में उज्जैन के विश्‍व प्रसिद्ध महाकालेश्‍वर मंदिर के मुख्य पुजारी रमण गुरू ने यही अनूठा प्रयोग किया । बिड़ला मंदिर में आयोजित इस रूद्राभिशेक कार्यक्रम में धर्म, अध्यात्म के जरिये आतंकवाद की समूल नष्ट करने के लिए भव्य आयोजन हुआ । जिसमें देश भर से आये ४०० लोगों ने एक स्वर से धर्म के मूल तत्वों को अपनाने, मानवता को मजबूत करने के लिए महारूद्राभिशेक में शिरकत की । इस अनूठे आयोजन में प्रथमतः महालेश्‍वर मंदिर के मुख्य पुजारी रमण गुरू ने देश भर में आतंक के खात्में के लिए आये ४०० लोगों के बीच शिवालिंग-रूद्राभिशेक किया । तत्पश्‍चात्‌ लोगों को शपथ दिलायी कि - “हम देशहित, समाजहित में आतंकी खात्मे के लिए प्राणपण से जुटेंगे ” । मुख्य पुजारी रमण गुरू ने तत्पश्‍चात लोगों के महाकालेश्‍वर के उद्‌घोष “जय महाकाल” के जरिये आत्म विभोर कर दिया । समाज हित के लिए दयानंद सरस्वती, महात्मा गांधी एवं सरहदी गांधी की तर्ज पर इस आयोजन को आगे बढ़ाने के लिए जन सहयोग की अपील की । उपस्थित भक्‍तों, बुद्धिजीवियों एवं राजनीतिज्ञों ने आतंकवाद के खात्मे के लिए मुख्य पुजारी रमण गुरू को शपथ दिलाकर धार्मिक मूल्यों को बढ़ाने की सहमति जतायी । इस अनूठे कार्यक्रमों को सम्पन्‍न कराने में क्षेत्रीय एस०डी०एम० भूपिन्दर सिंह, ज्योतिषाचार्य शिवहर्ष मिश्र एवं डॉ० जयशंकर पाण्डेय का सराहनीय योगदान रहा ।

बच्चों में पर्यावरण चेतना जगाती है यह

एक कहावत है जिसका अर्थ है- मूर्ति देखने में छोटी तो होती है किन्तु मान्यता या प्रभविष्णुता में विराट । कमोवेश यही बात समीक्ष्य पुस्तिका “सुबह सवेरे” के लिए सुसंगत है । बहुश्रुत एवं बहुपठित लेखनधर्मी डॉ. ए. कीर्तिवर्द्धन की यह चौथी कृति है किन्तु बालोपयोगी होने के कारण पूर्व कृतियों से भिन्‍न है ।
अल्पवयी पाठकों को सम्बोधित करते हुये कृतिकार चिड़ियों की सामान्य प्रसन्‍नता का कारण यह बताते हैं कि वह हमेशा गाया करती हैं । बच्चों को प्रसन्‍न देखते रहने के लिये ही उनकी सलाह है कि सुबह-सवेरे की कवितायें वह गायें और चिडियों की तरह ही प्रसन्‍न रहा करें- ऐसा करने से वह स्वस्थ भी रहेंगे, जीवन में यशार्जन भी करेंगे ।
सोलह पृष्ठों में बड़े अक्षरों में सुमुद्रित कृति बच्चों ही नहीं, सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये पठनीय है । सुबह-सवेरे शीर्षक वाली एक लम्बी रचना विशेषकर बच्चों को सूर्योदय से पूर्व जागकर अपने माता-पिता के चरण स्पर्श करने के उपरान्त समस्त रोजमर्रा की प्राकृतिक जरूरतों से निपटने स्नान-ध्यान के अलावा पक्षियों का कलरव सुनने, साफ-सुथरी हवा में विचरण करने, अपना-अपना भविष्य उत्कर्षमय बनाने के लिए उपवन में खिलखिला रहे फूल, तितलियाँ और भँवरे तथा पूर्व दिशा में उगते बालारूण को देखकर आनंदित होने की सलाह करते हैं । एक अन्य कविता भी इस कृति में सुलभ है जिसमें बच्चे ज्ञान की देवी माँ वीणापाणि से प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें सुशिक्षित बनावें, परोपकारी और बालक श्रवण कुमार की तरह ही मातृ-पितृ भक्‍त भी । वह आपसी ईर्ष्या-द्वेष शून्य, शान्तिप्रिय तथा शक्‍तिमान भी बनाने और महाराणा प्रपात, शिवाजी, गौतम बुद्ध तथा महावीर के बताये मार्ग पर गतिशील रहने की विनती भी करते हैं ।
प्रत्येक पृष्ठ पर बड़े ही आकर्षक रेखाचित्र इस कृति की जान हैं । कवितायें और ये चित्र समवेत रूप से सोना और सुहागा की भूमिका अदा करते हैं । कृति की दोनों ही रचनायें सर्वथा सरल तथा सुग्राह्य भाषा में होने के कारण उनका संदेश पाठकों तक जाता है । बालोपयोगी रचनाओं की इस पुस्तिका के लिए रचनाकार के अलावा प्रकाशक, वितरक तथा रेखा चित्रकार समान रूप से साधुवाद के पात्र हैं ।

पुस्तक-“सुबह सवेरे"
रचनाकार- डॉ. ए. कीर्तिवर्द्धन डॉ. कौशलेन्द्र पाण्डेय(लखनऊ)

बच्चों की पसंदीदा हीरो:गणेश,हनुमान और कृष्ण

भारत में बनने वाली कार्टून फ़िल्मों में पिछले कुछ समय से पौराणिक पात्रों पर आधारित फ़िल्मों में बढ़ोत्तरी हु‌ई है.

इनकी लोकप्रियता बाल गणेश, मा‌ई फ्रेंड गणेश, हनुमान, रिटर्न ऑफ हनुमान जैसी फ़िल्मों की सफलता से साफ़ झलकती है.

पौराणिक कथा‌एं और उनके किरदार, उनके हाव-भाव, उनकी शक्तियां, बहुत ही दिलचस्प हैं. एनिमेशन और स्पेशल इफेक्ट्स के माध्यम से ये सब अनोखे तरीके से प्रस्तुत कि‌ए जा सकते हैं.

कृष्णा देसा‌ई, डायरेक्टर, टर्नर इंटरनेशल इंडिया

तो आख़िर क्या वजह है बच्चों में इन फ़िल्मों की बढ़ती लोकप्रियता की, एनिमेशन सिरीज़ लिटिल कृष्णा बनाने वाली बिग एनिमेशन्स के सी‌ई‌ओ आशीष कुलकर्णी का कहना है कि हिन्दुस्तानी एनिमेशन इंडस्ट्री फ़िलहाल शुरु‌आती चरण में है और एनिमेशन किरदारों को बनाने और स्थापित करने में काफ़ी समय, मेहनत और ख़र्चा लगता है.

आशीष कुलकर्णी कहते हैं,” पौराणिक कथा‌ओं के पात्रों पर इसलि‌ए एनिमेशन फ़िल्म बन रही हैं क्योंकि वो किरदार और उनकी कहानियां बच्चों की जानी-पहचानी है. इसलि‌ए उन किरदारों को स्थापित करने में, उनका ब्रांड बनाने में सुविधा हो जाती है और ज़्यादा से ज़्यादा पैसा प्रोड्क्शन में लगाया जा सकता है. साथ ही माता-पिता भी चाहते हैं कि बच्चे अपनी संस्कृति के बारे में जाने.”
पौराणिक कथा‌एँ

टर्नर इंटरनेशनल इंडिया के डायरेक्टर, प्रोग्रामिंग, कृष्णा देसा‌ई ने बीबीसी को बताया, ” पौराणिक कथा‌एं और उनके किरदार, उनके हाव भाव, उनकी शक्तियां, बहुत ही दिलचस्प हैं. एनिमेशन और स्पेशल इफेक्ट्स के माध्यम से ये सब अनोखे तरीके से प्रस्तुत कि‌ए जा सकते हैं. हम जब भी पौराणिक कथा‌ओं पर आधारित एनिमेशन फ़िल्म या सीरियल दिखाते हैं तो उस स्लॉट की रेटिंग्स सबसे ज़्यादा होती है.”

एनिमेशन फ़िल्में—बाल गणेश और बाल गणेश टू के निर्देशक पंकज शर्मा की माने तो इन फ़िल्मों की व्यवसायिक सफलता या असफलता भी एक वजह है कि प्रोड्यूसर फ़िलहाल पौराणिक किरदारों पर ही आधारित फ़िल्में ज़्यादा बना रहे हैं.

पंकज शर्मा ने बीबीसी को बताया, ” भारत में ऐसी फ़िल्मों के लि‌ए बजट भी कम होता है इसलि‌ए बहुत ज़्यादा ख़र्चा करके रिकवरी नहीं हो पाती है. ऐसे में नये किरदारों पर आधारित एनिमेशन फ़िल्म बनाने में पाश्चात्य एनिमेशन फ़िल्म्स के साथ तुलना हो जाती है."

पौराणिक किरदारों पर बनी कार्टून फ़िल्में और सीरfयल भले ही बच्चों को पसंद आ रहे हैं और सफल भी हो रहे हैं लेकिन आशीष कुलकर्णी कहते हैं कि इन किरदारों को प्रस्तुत करना इतना आसान नहीं है.

आशीष कुलकर्णी कहते हैं, ” लोगों को इनके बारे में पहले से पता होता है इसलि‌ए ग़लती की गुंजा‌इश नहीं होती. कहानी और किरदार के बारे में पूरी जानकारी के बाद ही स्क्रिप्ट बना‌ई जा सकती है जो सबसे बड़ी चुनौती है. साथ ही मुक़ाबला भी बहुत है क्योंकि और लोग भी इन कथा‌ओं पर एनिमेशन फ़िल्म बना‌एंगे. तो आपका ट्रीटमेंट इतना अलग होना चाहि‌ए कि वो बाकी से बेहतर हो.”

वैसे ‘जम्बो’ और ‘रोडसा‌इड रोमियो’ जैसे काल्पनिक किरदारों पर आधारित एनिमेशन फ़िल्में पिछले कुछ समय में बनी हैं लेकिन वो बॉक्स ऑफ़िस पर बहुत सफल नहीं रहीं. लेकिन कृष्णा देसा‌ई कहते हैं कि अब पौराणिक कथा‌ओं के बाहर भी कहानियां बन रही हैं.

कृष्णा देसा‌ई ने बीबीसी को बताया, ” टर्नर का एनिमेशन सीरियल ‘छोटा भीम’ पूरी तरह पौराणिक कथा नहीं है. केवल किरदार का नाम और उसकी शक्तियां पौराणिक किरदार के नाम से प्रेरित है लेकिन सारी कहानियां पूर्णत: मौलिक हैं. इसके बावजूद वो काफ़ी लोकप्रिय है. अब धीरे-धीरे एनिमेशन फ़िल्मों में पौराणिक कहानियां तो कम होंगी लेकिन उनमें इन कहानियों का कुछ न कुछ पुट तो फिर भी रहेगा.”

बाल अधिकार एवं बाल साहित्य

अगर राष्ट्र को सशक्‍त बनाना चाहते हैं तो बच्चों को शिक्षित एवं चरित्रवान्‌ बनायें । शिक्षा एवं स्वास्थ्य बच्चों का मौलिक अधिकार एवं राष्ट्रीय दायित्व हो । शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में शिथिलता एवं भ्रष्टाचार राष्ट्रीय अपराध घोषित हों । बच्चे राष्ट्र निर्माण में नींव का पत्थर तथा माँ व शिक्षक दोनों शिल्पकार होते हैं जो बच्चों को शिक्षित एवं उनके चरित्र निर्माण में सहायक होते हैं । भारतीय संस्कृति में सदैव ही इस तथ्य के महत्व को स्वीकारा गया । हमारे पौराणिक ग्रन्थ इस बात के साक्षी हैं कि सदैव ही बाल शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर राज कृपा रही और ऋषि, मुनियों, व गुरूजनों ने सबको शिक्षा देने का कार्य किया । कालान्तर में, समय विशेष के दौरान भारतीय संस्कृति के संरक्षण एवं विकास में न केवल रूकावटें आयीं अपितु उसका क्षरण भी हुआ । परिणामतः हमारी सोच गुलामी की ओर अग्रसर हुई और शिक्षा एक गौण विषय बन गयी । यद्यपि समय-समय पर बाल शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने पर आवाजें उठती रहीं, तथापि आजादी के ५० वर्ष बाद तक भी इसमें पूर्ण सफलता नहीं मिल सकी थी । सन्‌ १९९० में थाईलैन्ड के नगर जोमेनियन में विश्‍व शिक्षा सम्मेलन का आयोजन किया गया और ६ से १४ वर्ष तक थी आयु के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा पर जोर दिया गया । इसके दस वर्ष पश्‍चात सन २००० में सेनेगल के शहर डकार में पुनः विश्‍व शिक्षा सम्मेलन आयोजित हुआ और २०१५ तक सम्पूर्ण विश्‍व के बच्चों को शिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया । भारत के सन्दर्भ में इसका लक्ष्य सन २०१० निर्धारित किया गया और लक्ष्य पूर्ति के लिये सम्पूर्ण देश में सर्वशिक्षा अभियान चलाया गया । इसके अन्तर्गत ६ से १४ वर्ष की आयु के बच्चों को बाधारहित (अर्थात फीस, किताबें, ड्रेस, खाना सब राज्य दायित्व) शिक्षा दिलाना राज्य का कर्तव्य तथा बच्चों का मौलिक अधिकार घोषित किया गया । इस सम्मेलन में बच्चों के स्वतंत्र व्यक्‍तित्व को स्वीकारते हुये २१ वीं सदी को बच्चों की सदी घोषित किया गया ।
बच्चों के समग्र विकास में बाल साहित्य की सदैव प्रमुख भूमिका रही है । बाल साहित्य बच्चों से सीधे संवाद करने की प्रक्रिया है चाहे वह वाचक शैली में हो, लिखित हो, चित्रों द्वारा व्यक्‍त हो अथवा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से हो । इसकी विषय वस्तु स्वयं बालक भी हो सकता है, उसका परिवेश हो सकता है जिसमें बाल जीवन विकसित होता है अथवा काल्पनिक हो सकता है । बाल साहित्य में मनोरंजन, बाल मनोविज्ञान, सामाजिक-सांस्कृतिक परम्पराओं, संस्कारों, जीवन-मूल्यों, आचार-विचार और व्यवहार का समायोजन होना आवश्यक है । बाल साहित्य की भाषा सरल, रोचक, मनोरंजक, एवं उत्सुकता पूर्ण होनी चाहिये । और यह तभी संभव है जब बाल साहित्यकार स्वयं को बालमन के अनुसार ढालने में सक्षम हो । यह सत्य है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के आगमन से बच्चों की सोच में व्यापक परिवर्तन हुये हैं परन्तु वाचक और लिखित परम्परा के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता । हेरी पॉटर पात्र को केन्द्र में रख लिखी गई पुस्तक ने रिकार्ड बिक्री की, जो बच्चों में पुस्तकों की वर्तमान लोकप्रियता का सूचक है । आज आवश्यकता यह जानने और समझने की है बच्चों को कल साहित्य से कैसे जोड़ा जाये? इस विषय की गहराई तक जाने के लिये हमारे नीति-निर्धारकों एवं शिक्षा शास्त्रियों को पश्‍चिम जगत की शिक्षा-नीति का अन्धानुकरण बन्द करना होगा । अपने कार्यालयों के वातानुकुलित कमरों से बाहर आकर भारतीय परिवेश में आधुनिकता का समायोजन कर नीति बनानी होगी । पश्‍चिम जगत की खोखली, दूषित शिक्षा प्रणाली के कारण असमय ही बच्चे तनाव ग्रस्त एवं प्रौढ़ लगने लगते हैं । कुंठा, हिंसा एवं उन्मुक्‍त यौन जीवन पश्‍चिम की दूषित तथा बच्चों पर मात्र बोझ बनने वाली शिक्षा प्रणाली से बचाना होगा । बाल साहित्य में पारम्पारिक गीत, कहानी, हितोपदेश, जातक कथायें, रामायण, महाभारत जैसे ग्रन्थों के बालोपयोगी प्रसंग, देशभक्‍ति, विज्ञान, हास्य, चुटकले, पहेली, बच्चों की स्वयं की कवितायें, पशु, पक्षी, जानवर, पेड़-पौधे, धरती, आसमान आदि सभी विषयों को शामिल करना होगा ।
दादा-दादी, नाना-नानी, माँ-बुआ द्वारा जारी वाचक परम्परा को पुनः जीवित करना होगा । यात्रा के रोचक प्रसंगों द्वारा बच्चों को शब्दों में विश्‍व भ्रमण पर ध्यान देना होगा । यदि हम ऐसा कर पाये तो निश्‍चित रूप से आने वाली सदी भारतीय बच्चों की होगी और सम्पूर्ण विश्‍व पर भारतीय संस्कृति का विजय ध्वज फहरायेगा ।
- डॉ ए. कीर्तिवर्द्धन

२०१२ में प्रलय की भविष्यवाणी एक कोरी कल्पना

आये दिन दुनिया की समाप्ति एवं प्रलय की भविष्यवाणियाँ तो लोगों के मन में भय व्याप्त करती रहती हैं, पिछले दिनों २०१२ में दुनिया समाप्ति की खबर से लोगों के मन में डर तो बना ही हु‌आ है साथ ही समय-समय पर प्राकृतिक आपदा‌ओं को लोग २०१२ की भविष्यवाणी से जोड़ कर देखने लगे हैं और भयग्रस्त हो गये हैं।
वैसे ऋग्वेद व पुराणों के अनुसार सौर-मंडल के किसी भी ग्रह पर जीवन की उत्पत्ति से प्रलय तक के समय को चार युगों में बाँटा गया है । पहला युग सतयुग जिसकी आयु १७,२८००० वर्ष मानी गयी है । इसके बाद त्रेतायुग की आयु १२,९६०००वर्ष मानी गयी है और उसके बाद द्वापर युग की आयु ८,६४००० वर्ष मानी गयी है और द्वापर युग के भगवान कृष्ण का जन्म लगभग ५००० वर्ष पूर्व हु‌आ था और पौराणिक कहानी के अनुसार युधिष्ठिर के पोते राजा परीक्षित के समय से कलयुग प्रारम्भ हु‌आ । इस प्रकार पौराणिक कथा के और ऋग्वेद के अनुसार भी अभी ४,२५००० वर्ष कलयुग के शेष हैं । जहाँ तक दुनिया की समाप्ति की भविष्यवाणियाँ हैं तो मैं एक बात बहुत ही मजबूती से कहना चाहूंगा की अभी पृथ्वी के क‌ई हजार वर्ष शेष हैं । इसे समझने के लि‌ए हमें अपने सौर-मण्डल का संक्षिप्त रूप समझना होगा । हमारे सौर -मण्डल में सूर्य के चारों ओर एक निश्चित कक्षा में भ्रमण करने वाले नौ ग्रहों के साथ-साथ उनके उपग्रह भी हैं । ये सभी ग्रह सूर्य के ही अंग हैं । जो सूर्य की अक्षीय गति से अन्तः-आणविक ऊर्जा के ह्रास के कारण अस्तित्व में आये हैं । सूर्य तथा अन्य ग्रहों के मध्य कार्यरत अभिकेन्द्रीय बल एवं अपने सौर मण्डल के बाहर से कार्यरत उत्केन्द्रीय बल के कारण ये सभी अपने अक्ष पर भ्रमण करते हैं । एक सौर-मंडल में एक समय में सिर्फ एक ही ग्रह पर जीवन संभव है जो कि वर्तमान पृथ्वीय कक्षा में है । इसी कक्षा में वे सभी कारक मौजूद हैं जो जीवन के लि‌ए आवश्यक हैं, जैसे ऑक्सीजन, तापमान, जीवद्रव्य, ओजोन की परत, जल आदि । पृथ्वी की कक्षा से बाहर का तापमान इतना कम है वहाँ जीवन संभव नही है इसी तरह बुद्ध तथा शुक्र ग्रह पर तापमान इतना अधिक है जो जीवन के लि‌ए उपयुक्त नहीं है । लेकिन यह पृथ्वी के निरन्तर अक्षीय गति से ह्रास अन्तरा आणविक ऊर्जा के कारण सूर्य और पृथ्वी के बीच कार्यरत अभिकेन्द्रीय बल धीरे-धीरे कमजोर हो रहा है और सौर मण्डल के बाहर से कार्यरत उत्केन्द्रीय बल मजबूत हो रहा है जिससे पृथ्वी अपनी कक्षा से धीरे-धीरे बाहरी कक्षा की ओर खिसक रही है । यही स्थिति हमारी पृथ्वी को धीरे-धीरे जीवन के अनुकूल वातावरण की समाप्ति की ओर ले जा रही है और यही प्रक्रिया हमारे सौर मण्डल में विद्यमान सभी ग्रहों के बीच कार्यरत है । इसी उपरोक्त सौर मण्डल की निश्चित प्रक्रिया के तहत आज से काफी समय पूर्व कभी मंगल भी पृथ्वी वाले कक्षा में भ्रमण करता था । और तब मंगल पर भी जीवन विद्यमान था लेकिन समय के साथ उस अभिकेन्द्रीय बल के सापेक्ष उत्केन्द्रीय बल का मजबूत होने के कारण मंगल मिलकर अपने वर्तमान कक्षा में भ्रमण कर रहा है जिससे उस पर तापमान घटने से जीवन की समाप्ति हु‌ई । इसी प्रक्रिया के तहत पृथ्वी पर जीवन की समाप्ति उसकी सूर्य से अभिकेन्द्रीय बल के धीरे-धीरे कमजोर होने के कारण और सूर्यसे दूरी बढ़ने एवं उस पर तापमान की कमी के कारण ही संभव है जिसे होने में अभी क‌ई लाख वर्ष शेष हैं ।
क्योंकि पृथ्वी की समाप्ति के लि‌ए दो बात लिखित रूप से वैज्ञानिक आधार पर होना चाहि‌ए । पहला यह कि पृथ्वी की अक्षीय गति से ह्रास अन्तरा आणविक ऊर्जा से पृथ्वी की आणविक सह-संजन बल का कमजोर होना, दूसरा इसके द्वारा एक और दूसरे उपग्रह की उत्पत्ति तभी पृथ्वी की एक बहुत बड़े हिस्से की समाप्ति एवं भौगोलिक परिवर्तन होना और इसमें अभी कम से कम लाखों वर्ष लग सकते हैं, क्योंकि अभी पृथ्वी आन्तरिक सह संजन बल काफी मजबूत है । यह बात अलग है कि हमारे सौर मंडल में ९ ग्रहों में तीन-तीन ग्रहों का समूह है जो तीन अलग प्रकृति को सन्तुलित करते हैं । यह तीनों क्रमशः अग्नि, वायु एवं ठंडा (बर्फ) प्रकृति प्रतिनिधित्व करते हैं और ग्रहों के सन्तुलित संयोग से इन प्रवृत्तियों में सन्तुलन बना रहता है, जिससे वातावरण या प्रकृति संतुलित रहती है, परन्तु हर ९ वर्ष में ग्रहों की आपसी संयोग और स्थिति से किसी एक प्रकृति की प्रबलता बढ़ती है । इसमें उपरोक्त सारी बातें एक साथ कार्य करती हैं, जिससे बीच-बीच में प्रकृति का सन्तुलन बनता-बिगड़ता रहता है । इसे प्रलय का अनुमान लगाना गलत होगा ।
इस प्रकार उपरोक्त बातें यह सुनिश्चित करती हैं कि पृथ्वी पर जीवन की समाप्ति धीरे-धीरे तापमान घटने से होगी । परन्तु अभी पृथ्वी पर काफी तापमान है । जहाँ तक पृथ्वी फटने की बात है तो आज से हजारों वर्ष पूर्व पृथ्वी पर सूखा पड़ा, पृथ्वी फटना आम बात थी यह प्रक्रियायें ज्यादा होती थीं, क्योंकि तब पृथ्वी का तापमान ज्यादा था । लेकिन हम आधुनिकता एवं भौतिकता के कारण ज्यादा कमजोर हो गये हैं और छोटी-छोटी प्राकृतिक आपदा‌ओं से सशंकित हो गये हैं । इस प्रकार मैं कहना चाहूंगा कि घबराने की को‌ई बात नहीं है यह सब ग्रहों की असन्तुलित स्थिति के कारण प्राकृतिक घटना है ।


कृष्ण गोपाल मिश्रा

भारतीय नववर्ष तथा कालगणना

प्राचीन काल में मुर्गे की बाँग, पक्षियों की उड़ान आकाश में चाँद, तारों व सूर्य की स्थिति, सूर्य की किरणों के कारण वृक्ष, पहाड़ आदि की छाया से लोग समय व कालखंड का अनुमान लगाते थे । इस कालखंड को मापने के लिये मानव ने जिस विधा या यंत्र का आविष्कार किया, उसे हम काल निर्णय, कालनिर्देशिका व कैलेन्डर कहते हैं । दुनिया का सबसे प्राचीनतम कैलेण्डर भारतीय है । इसे सृष्टि संवत कहते हैं । भारतीय कालगणना का आरम्भ सृष्टि के प्रथम दिवस से माना जाता है । इसलिये इसे सृष्टि संवत कहते हैं । यह संवत 1975949109 एक अरब सत्तानबे करोड़, उनतीस लाख, उनचास हजार, एक सौ नौ वर्ष पुराना है ।
कैलेण्डर के निर्माण में अनेक अवधारणायें उपलब्ध हैं । वैदिक काल में साहित्य में ऋतुओं के आधार पर कालखंड के विभाजन द्वारा कैलेण्डर के निर्माण का उल्लेख मिलता है । बाद में नक्षत्रों की चाल, स्थिति, दशा और दिशा से वातावरण व मानव स्वभाव पर पड़ने वाले प्रभावों के अध्ययन के आधार पर भी कैलेण्डर का निर्माण किया गया । हमारे खगोलशास्त्रियों ने ३६० अंश के पूरे ब्रह्याण्ड को २७ बराबर भागों में बांटा । इन्हें नक्षत्र कहते हैं । इन नक्षत्रों के नाम क्रमशः अश्‍विनी, भरिणी, कृतिका, रोहिणी, मृगसिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पू.फा., उ.फा., हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, गूला, पूषा, उषा, श्रवण, घनिष्टा, शततार, पू.भा, उ.भा तथा रेवती रखे गये । इसमें से बारह नक्षत्रों में चन्द्रमा की स्थिति के आधार पर बारह महीनों के नाम रखे गये । एक, तीन, पाँच, आठ, दस, बारह, चौदह, अठारह, बीस, बाईस व पच्चीसवें नक्षत्र के आधार पर भारतीय महीनों के नाम - चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, अश्‍विन, कार्तिक, मृगशिरा, पौष, माघ व फाल्गुन रखे गये ।
प्रश्न यह है कि भारतीय नववर्ष का प्रारम्भ चैत्र मास से ही क्यों? वृहद नारदीय पुराण में वर्णन है कि ब्रह्मा जी ने सृष्टि का सृजन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही प्रारम्भ किया था । वहां लिखा है-
“चैत्र मासि जगत ब्रह्यससजप्रिथमेऽइति । ”
इसलिये ही-भारतीय नववर्ष का प्रारम्भ आद्‌याशक्‍ति भगवती दुर्गा की पूजा-उपासना के साथ चैत्र मास से शुरू करते हैं । प्रत्येक माह में कितने दिन होंगे, इसे समझने से पहले आपको दिनों के नाम व सप्ताह के बारे में बताते हैं-
हमारे ऋषि-मुनियों ने वैज्ञानिक गणना तथा सूर्य के महत्व को समझते हुये रविवार को ही सप्ताह का पहला दिन माना । उन्होंने यह भी आविष्कार किया कि सूर्य, शुक्र, बुधश्‍च, चन्द्र, शनि, गुरू तथा मंगल नामक सात ग्रह हैं । जो निरन्तर पृथ्वी की परिक्रमा करते रहते हैं और निश्‍चित अवधि पर सात दिन में प्रत्येक ग्रह एक निश्‍चित स्थान पर आता है । अतः इन ग्रहों के आधार पर ही सात दिनों के नाम रखे गये । सात दिनों के इस अन्तराल को सप्ताह कहा गया । इसमें दिन-रात शामिल हैं । ज्योतिषीय गणित की भाषा में दिन-रात को महोरात्र कहते हैं । यह चौबीस घंटे का होता है । एक घंटे की एक घेरा होती है । इसी ‘घेरा’ शब्द से अंग्रेजी का “ऑवर” शब्द बना है । प्रत्येक घेरा का स्वामी कोई ग्रह होता है । जैसा कि हमने ऊपर बताया है कि स्थूल ग्रह सात होते हैं और उन्हीं के नाम पर सात दिवस माने जाते हैं । सूर्योदय के समय जिस ग्रह की प्रथम घेरा होती हैं उसी के आधार पर उस दिन का नाम रखा गया है । इस प्रकार हमारा प्रथम दिवस रविवार से प्रारम्भ होकर सोमवार, मंगलवार, बुधवार, वृहस्परिवार, शुक्रवार तथा अन्तिम दिन शनिवार पर खत्म होता है ।
भारतीय ऋषि-मुनियों ने कालगणना का सूक्ष्मतम तक अध्ययन किया । इसके अनुसार दिन-रात के चौबीस घंटों को सात भागों में बांटा गया और एक भाग का नाम रखा ‘घटी” । इस प्रकार एक घटी हुई चौबीस मिनट के बराबर और एक घंटे में हुई ढाई घटी । इससे आगे बढ़ें तो एक घटी में साठ पल, एक पल में साठ विपल, एक विपल में साठ प्रतिफल ।
२४ घंटे = साठ घटी
१ घटी = साठ पल
१ पल = साठ विपल
१ विपल = साठ प्रतिपल
अगर हम कालगणना की बड़ी ईकाई का अध्ययन करें तो देखें-
२४ घंटे = एक दिन
३० दिन = एक माह
१२ माह = एक वर्ष
१० वर्ष = एक दशक
१० दशक = एक शताब्दी
१० शताब्दी = एक सहस्त्राब्दी
हजारों सालों को मिलाकर बनता है एक युग । युग चार होते हैं- जिनमें-
कलयुग = चार लाख बत्तीस हजार वर्ष ४३२००० वर्ष
द्वापर युग = आठ लाख चौंसठ हजार वर्ष ८६४०००
त्रेतायुग = बारह लाख छियानवे हजार वर्ष १२९६०००
सतयुग = सत्रह लाख अट्ठाईस हजार वर्ष १७२८०००
एक महायुग चारों युगों का योग = ४३२०.००० वर्ष
१००० महायुग = एक कल्प
एक कल्प को ब्रह्मा जी का एक दिन या एक रात मानते हैं । अर्थात ब्रह्मा जी का एक दिन व एक रात २००० महायुग के बराबर हुआ । हमारे शास्त्रों में ब्रह्मा जी की आयु १०० वर्ष मानी गयी है । इस प्रकार ब्रह्मा जी की आयु हमारे वर्ष के अनुसार ५१ नील, १० खरब, ४० अरब वर्ष होगी । वर्त्तमान में ब्रह्मा जी की आयु के ५१ वर्ष. एक माह, एक पक्ष के पहले दिन की कुछ घटिकायें व पल व्यतीत हो चुके हैं ।
समय की ईकाई का एक अन्य वर्णन भी हमारे ग्रन्थों में पाया जाता है-
१ निमेष = पलक झपकने का समय (न्यूनतम ईकाई)
२५ निमेष = एक काष्ठा
३० काष्ठा = एक कला
३० कला = एक मूहर्त
३० मूहर्त = एक अहोशत्र (रात व दिन मिलाकर)
१५ दिन व रात = पखवाड़ा या एक पक्ष
२ पक्ष = एक माह (कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष)
६ माह = एक अयन
२ अयन = एक वर्ष (दक्षिणायन व उत्तरायण)
४३ लाख बीस हजार वर्ष = एक पर्याय (कलयुग, द्वापर, त्रेता व सतयुग का योग)
७१ पर्याय = एक मन्वन्तर
१४ मन्वन्तर = एक कल्प
वर्तमान भारतीय मान्य गणना के अनुसार वर्ष में ३६५ दिन १५ घटी, २२ पल व ५३.८५०७२ विपल होते हैं । तथा चन्द्रगणना के आधार पर भारतीय महीना २९ दिन, १२ घंटे, ४४ मिनट व २७ सैकेन्ड का होता है । सौर गणना के अन्तर को बांटने के लिये अधिक तिथि और अधिक मास तथा विशेष स्थिति में क्षय की भी व्यवस्था की गई है । प्रत्येक तीसरे वर्ष अधिक मास का आवर्तन होता है । वास्तव में भारतीय गणना अतिसूक्ष्म है । उपरोक्‍त गणनाओं के अनुसार अभी सृष्टि के खत्म होने में ४ लाख २६ हजार ८६६ वर्ष, कुछ महीने, कुछ पक्ष कुछ सप्ताह, कुछ दिन, कुछ प्रहर, कुछ घटिकायें, कुछ पल व विपल बाकी हैं ।
हमारे ग्रन्थों की रचना करते समय भी ऋषि-मुनियों ने कालगणना के अनूठे गणित को गुप्त सूत्रों में पिरोने का प्रयास किया । शतपथ ब्राह्मण (१०/४२/२२/२५) के अनुसार ऋग्वेद में कुल ४३२०००० अक्षर हैं, जिनका योग महायुग के वर्ष के बराबर है । इनसे १२००० वृहदी छंद बनाये गये हैं । प्रत्येक छंद में ३६० अक्षर हैं ।
यजुर्वेद में ८००० तथा सामवेद में ४००० वृहदी छंदों का वर्णन है । इनका योग भी १२०० वृहती छंद तथा अक्षर ४३२०००० है । जब पंक्‍ति छंद ४० अक्षर का बनाते हैं तब छंद संख्या १०८०० होती है । एक वर्ष में ३६० दिन और एक दिन में ३० मुहुर्त होने से भी वर्ष में १०८०० मूहर्त बनते हैं ।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारतीय कैलेण्डर एवं कालगणना विश्‍व में सबसे प्राचीन एवं सूक्ष्मतम है ।
आभार-इस आलेख के लिये ब्रह्मा-पुराण, वैदिक सम्पत्ति (पं. रधुनन्दन शर्मा), कार्त्तवीर्यार्जुन पुराण, समयोपाख्यान (विलास गुप्ता) विरासत (डा. रवि शर्मा ) तथा शतपथ ब्राह्माण से तथ्यों का उल्लेख किया गया है ।
- डॉ. ए. कीर्तिवर्द्धन

सबसे महंगी महिला एंकर बनेंगी बिल्‍लो रानी

बिल्लो रानी सचमुच बहुत सयानी निकलीं. बिपाशा बसु टीवी की सबसे महंगी महिला एंकर बनने वाली हैं. वे जल्द ही एक मॉडल हंट शो को एंकर करती नज़र आ सकती हैं.

बॉलीवुड में ख़बर गर्म है कि ग्लैमर गर्ल बिपाशा बनने जा रही हैं देश की सबसे महंगी फीमेल टीवी होस्ट. बिपाशा जल्द ही देश के बड़े एंटरटेनमेंट चैनल पर फीमेल मॉडल हंट शो को होस्ट करती नज़र आ सकती है. ये शो शाहरुख खान की कंपनी ’रेड चिली’ बना‌एगी. लगता है किंग खान ने बिपाशा को रियलिटी क्वीन बनाने का फैसला कर लिया है. तभी तो बिपाशा की फीस ऐसी रखी ग‌ई है कि किसी को यकीन ना हो.

हाल के दिनों में बिपाशा बड़े पर्दे पर को‌ई ख़ास कमाल नहीं दिखा पा‌ईं. उनके पास फिलहाल को‌ई बड़ी फिल्म भी नहीं है, लेकिन बिल्लो रानी सचमुच बड़ी सयानी निकलीं. बुरे दौर में भी ऐसी डील हासिल कर ली, जिसके बारे में शायद बॉलीवुड को‌ई एक्ट्रेस फिलहाल सोच भी नहीं सकती. एक एपिसोड के लि‌ए 70 लाख की फीस को‌ई मज़ाक थोड़े ही है.

बिपाशा बशु के एक एपिसोड की फीस होगी, लगभग 70 लाख रुपये. बॉलीवुड में बिपाशा से पहले किसी और हीरो‌इन को टीवी पर इतनी बडी डील नहीं मिली. वैसे मिस यूनिवर्स रह चुकी सुष्मिता सेन भी छोटे पर्दे से बड़ी कमा‌ई करने की होड़ में बिपाशा के साथ कड़ा मुकाबला कर रही हैं.

सुष्मिता सेन को आनेवाले शो ’राज़ पिछले जनम का’ में बतौर मेहमान बुलाया गया है. इस शो में सुष्मिता रिग्रेशन थैरेपी के ज़रि‌ए अपनी पिछली ज़िंदगी के राज़ जानेंगी. बिंदास सुष अपनी ज़िंदगी को भले ही खुली किताब मानें, लेकिन उन्हें पता है कि राज़ कुछ ऐसे हो सकते हैं कि उनकी इमेज पर असर हो. ये राज़ टीवी पर खुलेंगे, लिहाज़ा सुष्मिता ने इसकी कीमत तय कर दी है. ये कीमत है, लगभग 60 लाख रुपये. हालांकि सुष्मिता ने चैनल के साथ फिलहाल को‌ई करार नहीं किया, लेकिन शो के एक एपिसोड में उनका काम करना तय माना जा रहा है.

सुष्मिता ने इससे पहले रियलिटी शो ’एक खिलाड़ी, एक हसीना’ में बतौर होस्ट काम कर चुकी हैं. ’एक खिलाड़ी, एक हसीना’ के लि‌ए सुष्मिता को मोटी रकम मिली थी, लेकिन पिछले जन्म के राज़ खोलकर सुष्मिता अब रियलिटी शोज़ में कमा‌ई का एक ऐसा रिकॉर्ड बनाने जा रही हैं, जिसे सिर्फ बिपाशा ही तोड़ सकती हैं. सुष्मिता एक एपिसोड के लि‌ए लगभग 60 लाख रुपये ले रही हैं, तो बिल्लो रानी वसूलेंगी करीब 70 लाख रुपये.

धर्म, प्रेम और संवेदना का महत्व

जिन नियमों के आचरण एवं अनुष्ठान से इस लोक और परलोक में अभीष्ट सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, वही धर्म है । देवताओं के पूजन-अर्चन में मन की पवित्रता का भी विशेष महत्व है । कर्मपुराण में स्नान के बारे में कहा गया है कि यह दृष्ट और अदृष्ट फल प्रदान करनेवाला है । प्रातः स्नान करने से निःसंदेह अलक्ष्मी, बुरे स्वप्न और बुरे विचार तथा अन्य पाप नष्ट हो जाते हैं । सत्संग का मतलब है सत्य की संगति । सत्य की संगति परमात्मा के नाम और उनकी कथा के कहने और सुनने में होती है । सत्संग में भगवान की कथा कहने और सुनने वालों का मन एवं शरीर दिव्य तेज से प्रकाशित हो उठता है । कथा श्रवण से प्रभु की कृपा सहज सुलभ हो जाती है । श्रीमद्‌भागवत में कहा गया है कि नियमित सत्संग और कथा श्रवण करने से भगवान अपने भक्‍तों के हदय में समा जाते हैं । धर्मशास्त्रों में भगवद कथाओं को आधिभौतिक, आधिदैविक और आधिदैहिक तापों को नष्ट करनेवाली कहा गया है । इन कथाओं का पुण्य फल मृत्यु के बाद ही नहीं बल्कि अगले जीवन में भी मिलता है । कथा श्रवण से निराश जीवन में भी आशा का संचार होता है ।
प्रख्यात आध्यात्मिक गुरू श्री रविशंकर कहते हैं- “जो संवेदनशील होते हैं, प्रायः वे कमजोर होते हैं । जो स्वयं को सबल समझते हैं वे प्रायः असंवेदनशील होते हैं । कुछ व्यक्‍ति स्वयं के प्रगति संवेदनशील होते हैं, पर औरों के प्रति नहीं । वहीं दूसरी ओर कुछ लोग दूसरों के प्रति संवेदनशील होते हैं, वे प्रायः दूसरों को दोष देते हैं । जो केवल अपने प्रति संवेदनशील होते हैं, वे स्वयं को असहाय और दीन समझते हैं । कुछ व्यक्‍ति इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि संवेदनशील होना ही नहीं चाहिए क्योंकि संवेदनशीलता पीड़ा लाती है । वे अपने आपको औरों से दूर रखने लगते हैं, परन्तु यदि तुम संवेदनशील नहीं हो तो तुम जीवन के अनेक सूक्ष्म अनुभवों को खो दोगे, जैसे अंतर्ज्ञान, सौन्दर्य और प्रेम का उल्लास । यह पथ और यह ज्ञान तुम्हें सबल और संवेदनशील बनाता है । असंवेदनशील व्यक्‍ति प्रायः अपनी कमजोरियों को नहीं पहचानते । दूसरी ओर जो संवेदनशील हैं, वे अपनी ताकत को नहीं पहचानते । उनकी संवेदनशीलता ही उनकी ताकत है । संवेदनशीलता अंतर्ज्ञान है, अनुकंपा है, प्रेम है । ”
रैलन कीलर के अनुसार- “प्रेम एक सुंदर और खुशबूदार फूल की तरह है जिसे हम ना छुएँ, तो भी उसकी खुशबू सारे वातावरण को सुंगधित बना देती है । ” किसी भी धर्म में हिंसा का स्थान नहीं है । आज सभी को संयुक्‍त प्रयास कर जीवन में समरसता, समृद्धि तथा भाईचारा बढ़ाने का बीड़ा उठाना चाहिए । आज हर व्यक्‍ति सुख चाहता है फिर भी उसे सुख शांति नहीं मिलती । एक आमधारणा है कि अच्छे काम क्यों करें? ईमानदारी से धन नहीं मिल सकता । हम चाहते हैं कि समाज में इस धारणा को बदला जाय तथा लोगों में यह जागृति फैले कि ईमानदारी से भी पैसा कमाया जा सकता है और सुख की प्राप्ति हो सकती है । हमारा हर व्यक्‍ति से भावनात्मक जुड़ाव हो तथा लोग समाज की प्रगति और आर्थिक उत्थान में काम करें । आपमें विश्‍वास हो और अच्छा सोचें तो आपसी रिश्ते खुद ब खुद सुधर जाएंगे । ईमानदार होने का एक फायदा यह भी है कि इससे व्यक्‍ति दुखी नहीं होता । ऐसी धारणा है कि अक्सर ईमानदार व्यक्‍ति दुखी और गरीब देखे जाते हैं और बेईमानी सुखी और धनवान । हमें इस धारणा को बदलना है और समाज में संदेश फैलाना है कि हमेशा सच्चाई और अच्छाई की राह पर चलने वालोंको ही सुख मिलता है ।
विश्‍व इतिहास में सबसे भयानक आर्थिक संकट के बाद इंटरनेशनल असोसिएशन फॉर ह्‍यूमैन वैल्यूज ने ‘बिजनेस में नैतिकता’ और मूल्यों की प्रासंगिकता पर विचार किया, जिसमें वर्ल्ड बैंक, माइक्रोसॉफ्ट कॉरपोरेशन, आध्यात्मिक नेता और दुनिया के शीर्षस्थ विद्वानों ने शिरकत की । श्री श्री रविशंकर जोर देते रहे हैं कि विकास के केन्द्र में मानवीय मूल्यों और नैतिकता को रखने की जरूरत है । हमने कम्युनिज्म की कमियाँ देख लीं, हम बेलगाम कैपिटलिज्म की नाकामी देख चुके हैं । अब समय एक नए इज्म- ह्‍यूमनिज्म या मानवतावाद का है । इस कॉन्फ्रैंस के जरिए दुनिया के युवाओं को स्थायित्व मुहैया कराने के बारे में अपना नजरिया बनाने का मौका मिला । खबर है कि सम्मेलन में १० देशों के २५ युवाओं ने हिस्सा लिया था । सम्मेलन को कॉरपोरेट में आध्यामिकता और सामाजिक जिम्मेदारी का भाव भरने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है । ऐसे आयोजन देश के हर कोने में होने की परम आवश्यकता है ।
- गोपाल प्रसाद

हिन्दुस्तान में मानव का अधिकार

सृष्टि का सबसे उन्‍नत जीव मानव है, जिसने प्राकृतिक संसाधनों को अपने श्रम, से नये रूप में ढालकर नई दुनिया की रचना कर डाली । आज उसी मानव के अधिकार की बात हो रही है । विकास के साधन के साथ-साथ मानव ने प्राकृतिक संसाधनों का दुरूपयोग किया, प्रकृति की सीमा रेखा का उल्लंघन भी किया । पृथ्वी की हरियाली का विनाश किया जो सभ्यता को स्थायित्व प्रदान करती है । पशुओं से उनका घर, आश्रम पर मानव कब्जा जमाते जा रहा है । यहां तक कि मानव अपने स्वार्थ में अनेकों पशुओं, जलचरों का शिकार कर रहा है, जिससे अनेक प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर हैं । यहाँ तक कि मानव ने ही मानव पर अपने स्वार्थ के लिए उनका दमन शुरू कर दिया है ।
मानवाधिकार की परिभाषा क्या है? प्रकृति ने हर मानव को उसके परिवेश, स्थान के अनुसार इस पृथ्वी के नैसर्गिक अधिकार प्रदान किये हैं । किसी भी सामाजिक या राजनीतिक कारण से उनका ये अधिकार कोई मानव संगठन या सरकार हनन नहीं कर सकती । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और स्वस्थ समाज अपने बनाये हुए आदर्श आचारसंहिता के आधार पर ही चलता है, चूंकि हम मानव हैं । पशुओं के साथ में प्रकृति प्रदत्त आचारसंहिता है जिसका उल्लंघन पशु समाज भी नहीं कर सकता है ।
ईश्‍वर की सबसे उत्तम रचना मानव है, परन्तु इस कलयुग में किसी तरह दूसरे के अधिकार कर्म के प्रतिफल पर अपना कब्जा जमाना ही सामाजिक असमानता पैदा कर रहा है, जिसमें पूरा विश्‍व त्रस्त है । यहाँ तक कि मानव के कुकर्म से पूरा विश्‍व खतरे के ढर्रे पर खड़ा है । मानवजाति में दो प्रवृत्ति के लोग होते हैं । जैसे सदाचारी, दुराचारी, देवता-राक्षस । प्रकृति के नियम अनुसार किसी एक में मानवजाति की राक्षसी वृत्ति का उत्थान का है । उत्थान है तो पतन भी निश्‍चित है । आज हम मानवाधिकार की बातें उठाते हैं । वह सामाजिक विकास, समानता, प्रेम के लिए जरूरी है ।
अब सभ्यता की पुकार है कि मानव मानव पर अत्याचार बन्द करो । हमारे देश में आम आदमी के मानवाधिकार की रक्षा के लिए पुलिस है, परन्तु पुलिस तो स्वयं ही मानवभक्षी जीव के रूप में बैठी है । भारत के हर हफ्ते थाने में दिन रात नागरिक अधिकार और नागरिक सम्मान के अधिकार का बलात्कार होता है । इस विभाग में सामाजिक प्राणी, सामाजिक आचार भी सिखाया जाना चाहिए । आज हमारे देश में मानवाधिकार की बात होती है, परन्तु हमारे कानून आज भी वही हैं जो अंग्रेजों ने गुलाम भारत की जनता के लिए बनाये थे । मानवाधिकार की दुहाई देने वालों पहले मानवाधिकार के शत्रु पुलिस तंत्र को, कानून को ठीक करो । आजादी के ६२ साल बाद भी वही स्थिति है । हमारे देश के सत्ताधारियों, आलसियों, निकम्मों देश के नागरिकों को उनका अधिकार देने में इतने साल क्यों लग रहे हैं? शायद हमारी सरकार, ईश्‍वर अवतरण का इंतजार कर रही है । कपटी लोगों, नाटक बन्द करो । सत्ताधारियों देश के नागरिक के अधिकार की रक्षा करो मानवाधिकार स्वयं प्राप्त हो जायेगा । मानवाधिकार के लुटेरों पर अंकुश लगाओ । अंग्रेजों के काले कानून को बन्द करो । मानव रूप पुलिसवालों के दानवी मानवाधिकार हनन कानून ठीक करो । ९० दिनों के अन्दर नया कानून बनाओ । आजादी का कानून, स्वतन्त्रता का कानून, मानव के अधिकार का कानून ।
शिक्षा व्यवस्था आज भी हमारे देश में वही चल रही है जो अंग्रेजों ने बनाया यानि हम गुलामों वाली शिक्षा पद्धति पर चल रहे हैं । मानवाधिकार की बात और शिक्षानीति वही, जो मैकाले ने गुलाम भारत के नागरिकों के लिए बनायी थी । अभी तक सत्ताधारियों ने स्वतन्त्र भारत की शिक्षा नीति का निर्धारण करने की जहमत नहीं उठायी है । जब शिक्षा का आधार ही गुलाम भारत है तो मानवाधिकार का ज्ञान हमारे समाज में कहाँ से आये?
- रवि के. पटवा (मुंबई)

इनका कहना है

“कन्या भ्रूण हत्या की बढ़ती प्रवृत्ति से एक दिन पुरूषों का ही अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा । ”
- मदर टेरेसा

“धोखा देकर दगाबाजी से धन जमा करना ऐसा ही होता है जैसा कि मिट्टी के कच्चे घड़े में पानी रखना ।”
- तिरूवल्लुवर

“मैं जहां भी जाता हूं, चीन उसका विरोध करता है । मुझे चीन के इस दावे पर बहुत आश्‍चर्य होता है कि वह तवांग को अपने देश का हिस्सा मानता है । ”
- दलाई लामा, तिब्बती धर्मगुरू

“हमें शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी कुछ करना चाहिए था । इस प्रक्रिया में देर हुई है, लेकिन मैं वायदा करता हूं कि अब इस दिशा में ईमानदारी से प्रयास होंगे । ”
- मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री

“पाकिस्तान का बनना तो एक राजनीतिक मसला था । उसमें मुसलमानों की कोई भूमिका नहीं थी । यह अंग्रेजों की साजिश थी । उन्होंने जवाहर लाल नेहरू का इस्तेमाल किया और कामयाब भी रहे । ”
- कीस सुदर्शन, पूर्व प्रमुख, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ


“उप चुनाव में जनता ने बसपा को जीत दिलाकर यह साबित कर दिया है कि बसपा को हर वर्ग का समर्थन प्राप्त है । बसपा के खिलाफ दुष्प्रचार करने वाली विरोधी पार्टियों की हवा निकल गयी है । फिरोजाबाद में कांग्रेस के उम्मीदवार राजबब्बर की जीत सपा प्रमुख के परिवारवाद के प्रति जनता के आक्रोश का नतीजा है । नकारात्मक राजनीति के चलते ही उसने अपनी परंपरागत इटावा और भरथना सीटें भी गंवा दी हैं । ”
- मायावती


“बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने करोड़ों का अवैध निवेश करने वाले झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के काले कारनामों का ठीकरा राजद-कांग्रेस के सिर पर फोड़ा है । नीतिश ने कहा कि राजद और कांग्रेस ने मधु कोड़ा को मुख्यमंत्री बनाया । आज जो स्थिति सबके सामने है, उसके लिए यही दोनों जिम्मेदार हैं । कोड़ा प्रसंग में मिली डायरी में दर्ज लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए । ”
- नीतीश कुमार, बिहार के मुख्यमंत्री


“झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता अर्जुन मंडा ने कहा है कि मधु कोड़ा और उनके सहयोगियों द्वारा करोड़ों के अवैध निवेश मामले में वह जांच एजेंसियों की मदद करेंगे । पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, अगर ऐसी कोई स्थिति बनी कि उन्हें जांच में मदद करनी है तो वह जरूर करेंगे । कोड़ा २००४ में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की कैबिनेट में खनन मंत्री थे । ”
- अर्जुन मुंड़ा, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री


“शिवसेना ने भी हिंदी के खिलाफ अभियान चलाया था । अगर तब आजमी जैसा कोई व्यक्‍ति हमारे हाथ लग गया होता, तो उसकी चमड़ी उधेड़ दी गई होती । ”
- बाल ठाकरे, शिवसेना प्रमुख

“हम मुंबई से प्यार करते हैं फिर चाहे हम इसे मुंबई कहें या बांबे, इससे क्या फर्क पड़ता है? राज ठाकरे और उसके साथियों को तो यहां से लात मारकर बाहर निकाल देना चाहिए । ”
- आयशा टाकिया, अभिनेत्री

“मैं पूरी तरह फिट हूं और २०११ में होने वाले विश्‍व कप को लेकर काफी उत्सुक हूं । भगवान की कृपा रही तो हम वह हासिल करने में सफल रहेंगे, जो हम हासिल करना चाहते हैं । ”
- सचिन तेंदुलकर, क्रिकेटर

कुछ सत्य घटनायें

झारखण्ड वनांचल टाइम्स, जमशेदपुर
अंक 13, 2008 से साभार

कुछ सत्य घटनायें
१ * ईसाईयों ने गोवा में जहां लाखों निरपराध हिन्दू स्त्री, पुरूषों व बच्चों का कत्‍ल किया, वहाँ २८० मन्दिर भी तोड़े और दैनिक जीवन पर अनेक प्रतिबन्ध लगाये । जैसे हिन्दू रीति-रिवाजों के तहत विवाह व नामकरण संस्कार न करने देना, यज्ञोपवीत न होने देना, चोटी न रखने देना, घर के आँगन में तुलसी का पौधा न लगाने देना आदि । जिन हिन्दू स्त्रियों ने अपने साथ बलात्कार का विरोध किया, उन्हें जेलों में डालकर अपनी कामवासना की पूर्ति के बाद उन्हें हेरेटिक्स यानी ईसाई अन्धविश्‍वासी कहकर जिन्दा जलाने का आदेश दे दिया ।
२ * जब मदर टेरेसा से पूछा गया कि आप वहां के गरीबों को बिना ईसाई बनाये सहायता क्यों नहीं करतीं तो उन्होंने उत्तर दिया “बाइबिल में लिखा है कि जो ईसाई बनकर बयतिस्मा लेंगे, वे बचाये जायेंगे, शेष नष्ट कर दिये जायेंगे ।” इसी मदर टेरेसा को नवम्बर १९९४ में बी.बी.सी फिल्म में ‘नरक की परी’ कहा था ।
३ * हिन्दूओं को धोखे से ईसाई बनाने के लिये उत्तरांचल के गढ़वाल क्षेत्र के पर्वतीय नगर में योग आश्रम तथा अहमदाबाद से १२० किमी. दूर सच्चिदानन्द आश्रम के नाम से दो रोमन कैथोलिक चर्च चल रहे हैं । यहाँ की रूप रेखा व रहने वाले लोगों के नाम तथा मन्दिर जैसा रूप देखकर कोई भी हिन्दू धोखा खा सकता है । दोनों स्थानों पर ईसा मसीह को भगवान बनाकर कमल में बिठाया हुआ है ।
४ * संविधान के अनुच्छेद १४ के अनुसार कोई भी व्यक्‍ति अनुसूचित जाति से ईसाई बनने पर पहले की भांति सुविधायें प्राप्त नहीं कर सकता । इसके साथ ही ६ जून १९३६ को भारतीय गजट के अनुसार संविधान के अनुच्छेद ३६६ और ३९१ के अन्तर्गत स्पष्ट है कि कोई भी दलित ईसाई अनुसूचित जाति में नहीं आता ।
अब भारत के लोग जागें और दलित ईसाइयों के आरक्षण का डटकर विरोध करें । दलितों को सावधान करते हुये हम कहना चाहते हैं कि वे इस लोभ में पड़कर ईसाई न बनें कि वे बहुत ऊँचे समझे जायेंगे क्योंकि “फ्रंटलाइन” २९ दिसम्बर १९९५ में श्रीमान्‌ जफेता मसीह का स्पष्ट बयान है- “ईसाई बनने पर भी हम दलितों को उच्च जाति में नहीं मिलाया जाता । चर्च में हमें कहीं और बैठने की इजाजत न होकर केवल बाँये हाथ बैठना होता है । हम उच्च ईसाइयों के घरों में नहीं जा सकते, हम उनकी दुकानों पर हजामत नहीं बनवा सकते । हमारे पहले पानी पी लेने पर वे उन नलों को अछूत समझकर धोते हैं फिर पानी पीते हैं ।

( झारखंड वनांचल से साभार )
- डॉ. ए. कीर्तिवर्द्धन

जींस पर साड़ी बांधना, साड़ी पर बेल्ट लगाना है नया फैशन

देश के फैशन डिजाइनरों की मानें तो पारंपरिक साड़ी को अलग-अलग तरह से बांधकर उसे आधुनिक रूप दिया जा सकता है । डिजाइनरों का कहना है कि इन दिनों जींस के ऊपर साड़ी बांधने या साड़ी पर बेल्ट लगाने का फैशन है ।
तरूण ताहिलयानी और निदा महमूद जैसे डिजाइनरों ने हाल ही में समाप्त हुए विल्स लाइफस्टाइल इंडिया फैशन वीक’ (डब्ल्यूआईएफडब्ल्यू) में साड़ी को नए अवतार में पेश किया । युवा लड़कियों ने साड़ी बांधने के इन तरीकों का स्वागत किया है । १९ वर्षीय कनिका रस्तोगी कहती हैं कि जब तक उन्होंने फैशन सप्ताह में ताहिलयानी की साड़ियों पर मॉडल्स को बेल्ट लगाए नहीं देखा था तब तक उन्हें अपनी बहन की शादी में पुराने फैशन की दिखने के डर से साड़ी पहनने में डर लग रहा था । रस्तोगी ने कहा कि ताहिलयानी का शो देखने के बाद उन्होंने अपनी बहन के विवाह में साड़ी पहनने का निर्णय लिया है । पारंपरिक परिधानों को नए अवतार में पेश करने के विषय में पूछने पर ताहिलयानी से कहा कि छरहरी और लंबी दिखने वाली लड़कियां साड़ी पर बेल्ट लगा सकती हैं । उन्होंने कहा कि इसमें आप अधिक युवा और आकर्षक नजर आएंगी । बॉलीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के लिए शादी का जोड़ा तैयार कर रहे, ताहिलयानी का कहना है कि सुनहरी चांदी की रंगत वाली बेल्ट पारंपरिक कमरबंध के स्थान पर आधुनिक कमरबंध के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है । डिजाइनर निदा ने कहा कि जींस के ऊपर साड़ी बांधना नया फैशन है ।

काले धन एवं नकली नोटों से छुटकारा - भ्रष्टाचार पूर्णत: खत्म

प्राय: सभी देशों की सरकारों का एक रोना साझा है और वो भी अति भयंकर रोना! देश की अर्थ व्यवस्था में काला धन । यह काला धन बहुत से देशों को, बहुत सी सरकारों को बहुत रुलाता है और बुद्धिजीवी वर्ग को अत्यंत चिंतित करता है । अर्थशास्त्रियों की नाक में दम करके रखता है । रोज न‌ए-न‌ए सुझाव दि‌ए जाते हैं, विचार कि‌ए जाते हैं कि किस तरह इस काले धन पर रोक लगा‌ई जा‌ए. इनकम टैक्स डिपार्टमेंट तो छापों में विश्वास रखता है, जहाँ कहीं सुंघनी मिली नहीं कि पहुँच ग‌ए दस्ता लेकर । अजी! काले धन की बात तो छोड़ि‌ए! नोटों को लेकर इससे भी बड़ी समस्या का सामना क‌ई देशों को करना पड़ता है, और वो है नकली नोटों की समस्या । दूसरे देश की अर्थव्यवस्था को चौपट करना हो या बेहाल करना हो, प्रिंटिंग प्रेस में दूसरे देश के नोट हूबहू छापि‌ए और पार्सल कर दीजि‌ए उस देश में, बस फ़िर क्या है - बिना पैसों के तमाशा देखि‌ए उस देश का । अब तो उस देश की पुलिस भी परेशान, गुप्तचर संस्था‌एं भी परेशान और सरकार भी परेशान! नकली नोट कहां-कहाँ से ढ़ूंढ़े और किस जतन से? बड़ी मुश्किल में सरकार ।
बचपन से छलाँग लगाकर जब हमने भी होश सँभाला तो आ‌ए दिन काले धन की बातें पढ़कर, सुनकर, और नकली नोटों की बातें अखबारों में पढ़कर और टी.वी. में देख सुनकर, सरकारों की, अर्थशास्त्रियों की चिंता देख सुनकर हमें भी चिंता सताने लगी, लेकिन हमारे हाथ में तो कुछ है नहीं जो कुछ कर सकें । बस कुछ बुद्धिजीवियों के बीच बैठकर चाय-पानी या खाने के समय लोगों से चर्चा कर ली । अपनी बात कह दी और दूसरे की सुन ली और हो ग‌ई अपने कर्तव्य की इतिश्री, लेकिन नहीं यार! अपने में देश-भक्‍ति का कुछ बडा़ ही कीड़ा है, सो लग ग‌ए चिंता में । भले सरकार को हो या ना हो, देशभक्‍त को जरूर चिंता करनी चाहि‌ए और वो भी जरूरत से ज़्यादा । भले अर्थशास्त्री बेफ़िकर हो ग‌ए हों! लेकिन नहीं, अपन को तो देश की चिंता है, काले धन की भी और नकली नोटों की भी, लेकिन किया तो किया क्या जा‌ए. दिन रात इसी चिंता में रहते । चिंता में रहते रहते रात में स्वप्न भी इसी विषय पर आने लगे । कल तो हद ही हो ग‌ई, एक ऐसा स्वप्न आया कि क्या बता‌ऊँ! पूरे विश्व से कालेधन और नकली नोटों की समस्या जैसे जड़ से ही खत्म हो ग‌ई और साथ में भ्रष्टाचार भी समाप्त । आप आश्चर्य करेंगे ऐसा कैसे? आ‌इये विस्तार से बताता हूँ क्या स्वप्न देखा मैने -
मैने देखा कि विश्व की सभी सरकारें इस विषय पर एकमत हो ग‌ईं हैं और सबने मिलकर एक बड़ा महत्वपूर्ण निर्णय लिया है और निर्णय यह कि सभी सरकारें ’करेंसी’ को - सभी छोटे, बड़े नोटों को, सभी पैसों को पूरी तरह से अपने सभी देशवासियों / नागरिकों से वापिस लेकर पूरी तरह से नष्ट कर देंगी और किसी प्रकार के को‌ई नोट या करेंसी छापने की भी बिलकुल जरूरत ही नही है, जिसने जितनी भी रकम सरकार को सौंपी है उसके बदले - एक ऐसा सरकारी मनी कार्ड उनको दिया जायेगा जिसमें उनकी रकम अंकित कर दी जायेगी । सभी नागरिकों को इस मनी कार्ड के साथ साथ एक ऐसा ’डिस्प्ले’ भी दिया जायेगा जिसमें को‌ई भी जब चाहे अपनी उपलब्ध रकम (धनराशि) देख सकता है एवं अपनी रकम का जितना हिस्सा जिसको चाहे ट्रांसफर कर सकता है । भविष्य में सभी नागरिकों का भले वह व्यवसायी हो, नौकर हो, कर्मचारी हो, अधिकारी हो, मजदूर हो, सर्विस करता हो, बिल्डर हो, कांट्रैक्टर हो, कारीगर हो, सब्जी बेचने वाल हो, माली हो, धोबी हो, दुकानदार हो, या जो कुछ भी करता हो, या भले ही बेरोजगार हो, सभी प्रकार का लेन देन उस एक कार्ड के द्वारा ही होगा । पैसों का, नोटों का लेन देन बिलकुल बंद! नोट बाजार में हैं ही नहीं! बस सबके पास एक सरकारी मनी कार्ड!!
भारत सरकार जो अमूमन चुप्पी साध लेती है या जो क‌ई काम भगवान के भरोसे छोड़ देती है या जो सबसे बाद में किसी भी चीज को, नियम को या कानून को कार्यान्वित करती है, लेकिन, इस मामले में तो भारत सरकार ने इतनी मुस्तैदी दिखा‌ई कि पूछिये मत! पता नहीं कि काले धन से सरकार खूब ज्यादा ही परेशान थी, या नकली नोटों के भयंकर दैत्याकार खौफ से या फिर उन राजनीतिज्ञों से जिन्होंने स्विस बैंकों में अरबों करोड़ रुपये काले धन के रूप में जमा कर रखे हैं । खैर बात जो भी हो, भारत सरकार ने तुरंत आनन फानन में कैबिनेट की मीटिंग की! निर्णय लिया और संसद में पेश कर दिया! और पास भी करा लिया, कानून बना दिया, निलेकणी को बुलाया और निर्देश किया कि जो पहचान पत्र आप देश के सभी नागरिकों को बनाकर देने वाले हो - जिसमें व्यक्‍तिगत पहचान होगी, घर का, आफिस का पता होगा, फोटो होगी, बर्थ डेट, ब्लडग्रुप एवं अन्य सभी जरूरी जानकारी होगी उसी में यह सरकारी मनी कार्ड भी हो । अब यह नागरिकों के लिये सरकारी पहचान पत्र ही नहीं बल्कि ’सरकारी पहचान पत्र कम मनी कार्ड’ होना चाहिये । सभी की धनराशि सिर्फ अंकों में (या रुपयों में) दिखा‌ई जायेगी और देश भर में सभी ट्रांजैक्शन और लेन देन - चाहे वह एक रुपये का हो या करोड़ों का! प्रत्येक नागरिक द्वारा इसी के द्वारा किया जायेगा । हर एक नागरिक को इस कार्ड के साथ साथ एक डिस्प्ले भी दिया जायेगा, जिसमें वह जब चाहे अपनी जमा धन राशि देख सकता है और इसके द्वारा जमा धनराशि में से जिसके नाम पर, जब चाहे, जितनी भी चाहे धनराशि ट्रांसफर कर सकता है । निलेकणी जी तो अपनी टीम के साथ पहले ही तैयार बैठे थे, यह एजेंडा भी उसमें जोड़ दिया गया । अगले तीन वर्षों में यह प्रोजेक्ट पूरी तरह से तैयार हो गया । सरकार ने नोटिस निकाल दिये, सभी अखबारों में, टी वी चैनलों में, हर जगह लोग अपनी सारी धनराशि/ कैश अपने बैंक अका‌उंट में जमा कर दें - भले ही देश भर में आपके कितने ही अका‌उंट हों सभी की धनराशि जोड़कर उस सरकारी क्रेडिट कार्ड में इंगित कर दी जायेगी । तीन महीनों के अंदर देश भर में यह व्यवस्था लागू हो ग‌ई । सभी को ’सरकारी पहचान पत्र कम मनी कार्ड’ दे दिये गये ।
सुबह धोबी मेरे पास आया और मैने क्रेडिट कार्ड से डिस्प्ले में डालकर दस रुपये उसके नाम पर ट्रांसफर कर दिये । थोड़ी देर में दूधवाला आया मैने अपने कार्ड से उसके कार्ड में 24 रुपये ट्रांसफर कर दिये । मेरी पत्‍नी हा‌उसवा‌इफ (ग्रहणी) हैं, उसने कहा मार्केट जाना है कुछ पैसे दो! मैने अपने कार्ड से उसके कार्ड में 2 हजार रुपये ट्रांसफर कर दिये । मार्केट जाकर उसने सब्जी खरीदी और सब्जी वाले के कार्ड में 240 रुपये ट्रांसफर कर दिये । कुछ मिठा‌इयां हलवा‌ई के यहां से खरीदीं और 430 रुपये उस दुकान वाले के कार्ड में ट्रांसफर कर दिये । मार्केट में उसने कुछ कपड़े बच्चों के लिये खरीदे और 615 रुपये उसने दुकान के कार्ड में ट्रांसफर कर दिये । ’किराने’ की दुकान से उसने कुछ राशन खरीदा और 315 रुपये उसने उस राशन वाली दुकान के कार्ड में ट्रांसफर कर दिये । कहीं को‌ई कैश / नकदी का लेन देन नही हु‌आ, जरूरत ही नही पड़ी । कैश में लेने-देन हो ही नहीं सकता था, अब किसी के हाथ में को‌ई कैश, रुपया, नोट या पैसा हो, तब ना! सब तो सरकार ने लेकर नष्ट कर दिये । करेंसी की प्रिंटिंग बिलकुल बंद जो कर दी । मेरा दस वर्ष का बेटा मेरे पास आया और कुछ पैसे मांगे मैने अपने कार्ड से 100 रुपये उसके कार्ड में ट्रांसफर कर दिये ।
महीने के अंत में मेरी गाड़ी धोने वाला आया, बर्तन मांजने वाली बा‌ई आयी, घर का काम करने वाली बा‌ई आयी, सबके कार्ड में मैने अपने कार्ड से जरूरत के हिसाब से धनराशि ट्रांसफर कर दी । महीने की शुरु‌आत होते ही मेरे कार्ड में अपने बैंक में दिये निर्देश के अनुसार मेरी तनख्वाह (सेलरी) में से आवश्यक धनराशि मेरे कार्ड में ट्रांसफर हो ग‌ई । बैंक में जाकर पैसे निकलवाने की जरुरत ही नही पड़ी । सारे कार्य यह पहचान पत्र कम मनी कार्ड कर रहा है, और आप चाहें तो भी कैश आप निकलवा ही नहीं सकते, धनराशि को सिर्फ ट्रांसफर करवा सकते हैं क्योंकि बैंक वालों के पास भी रुपये, नोट हैं ही नहीं । उनके पास भी केवल अंकों में रुपये हैं । आप जितने चाहें फिक्स्ड डिपोजिट करवायें जितने चाहें कार्ड में ट्रांसफर करवायें । हर व्यक्‍ति को एक ही कार्ड । कार्ड या डिस्प्ले में को‌ई तकनीकी खराबी आ‌ई तो बस एक फोन किया और आपको दूसरा कार्ड या डिस्प्ले मुफ्त में दे दिया जायेया ।
मुझे घर खरीदना था, बिल्डर से देख कर घर पसंद किया 20 लाख का था । मेरे पास बैंक में जमा धनराशि 5 लाख थी 15 लाख बैंक से लोन लेना है । सारे काम बस उसी पुराने तरीके से हुये, पेपर वगैरह तैयार हुये और बैंक से लोन मिल गया । बिल्डर के कार्ड में 15 लाख बैंक से और मेरे कार्ड/अकांउट से 5 लाख ट्रांसफर हो गये । स्टैंप ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन और अन्य ट्रांसफर चार्जेस सभी कुछ कार्ड से कार्ड के द्वारा ट्रांसफर हु‌आ । कहीं को‌ई ब्लैक मनी न उपजी, न बिखरी, न फैली । अरे यह क्या मुझे तो को‌ई अंडर टेबल, या चाय पानी के लिये भी कहीं कुछ पैसा देना नही पड़ा । न ही किसी ने कुछ मांगा । अरे को‌ई मांगे तो भला कैसे? कैश तो है नही किसी के पास । कार्ड में ट्रांसफर करवायेगा तो मरेगा । संभव ही नहीं है । क्या बात है! लगता है भ्रष्टाचार भी खत्म होने को है ।
प्रा‌इवेट एवं सरकारी कंपनियों एवं उद्यमों को भी इसी प्रकार कार्ड जारी किये गये । जो काम जैसा चल रहा था, वैसा ही चलने दिया गया । बस सभी ट्रांजैक्शन (पैसे का लेन देन) एक कार्ड से दूसरे कार्ड पर होने लगा । शाम को आफिस से बाहर आया तो देखा कांट्रैक्टर मजदूरों को उनकी दिहाड़ी का पैसा उनके कार्ड में ट्रांसफर कर रहा था और बिना कम किये या गलती के । अरे एक गलती भी भारी पड़ सकती है ।
मुझे विदेश जाना था, पासपोर्ट वीजा से लेकर धन परिवर्तन (मनी एक्स्चेंज) सभी कुछ कार्ड में धनराशि के ट्रांसफर द्वारा ही किया गया । विदेश जाने पर वहां की जितनी करेंसी मुझे चाहिये थी अपने कार्ड पर ही मुझे परिवर्तित कर दी ग‌ई । वहां पर भी हर जगह बस कार्ड पर ही ट्रांसफर हो रहा था । कहीं को‌ई परेशानी नही हु‌ई ।
किसानों को उनके उत्पाद की पूरी धनराशि बिना किसी कटौती के मिलनी शुरू हो ग‌ई । किसान भा‌ई बहुत खुश हुये । सरकारी आफिसों से भी लोग बहुत खुश हो गये, कहीं को‌ई अपना हिस्सा ही नही मांग रहा । मांगे तो कार्ड में ट्रांसफर करवाना पड़े और करवाये तो तुरंत रिकार्ड में आ जाये, पकड़ा जाये, संभव ही नहीं है ।
सारे काले धन की समस्या! सारे नकली नोटों की समस्या, सब की सब एक झटके में तो ख्त्म हु‌ई हीं । भ्रष्टाचार का भी नामों निशान न रहा । मैने चैन की सांस ली । चलो इस देश-भक्‍त की चिंता तो खत्म हु‌ई । रुपयों से संबंधित सारी समस्या‌एं किस तरह एक झटके में हमेशा के लिये समाप्त हो गयीं । इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की सरदर्दी तो बिलकुल ही खत्म हो ग‌ई । सारे ट्रांजैक्शन वह बहुत ही आसानी से ट्रेस कर पा रहे थे । यहां तक कि उनके अपने लोग ग‌ऊ बन गये थे । पुलिस की हजारों हजार दिक्कतें एक झटके में सुलझ ग‌ई थीं । हर केस को अब वह आसानी से सुलझा पा रहे थे । हर ट्रांजैक्शन अब उनकी नजर में था । अपराधियों को पकड़ना बहुत ही सरल हो गया था । अपराध अपने आप कम से कम होते गये और न के बराबर रह गये । पुलिस के अपने लोग किसी प्रकार की गलत ट्रांजैक्शन कर ही नहीं सकते थे, कर ही नहीं पा रहे थे । सबके सब दूध के धुले हो गये, या कहिये होना पड़ा । आदमी खुद साफ हो तो उसे लगता है सारी दुनिया साफ होनी चाहिये । जब वह खुद कुछ गलत नही कर सकते थे, तो साफ हो गये, जब खुद साफ हो गये तो समाज को साफ करने लग गये । बहुत जल्द परिणाम सामने थे । ट्रैफिक पुलिस वाले अब अपनी जेबें गरम करने के बजाय सिर्फ कानून या सरकार की जेब ही गरम कर सकते थे ।
देश में भ्रष्टाचार पूरी तरह से बंद हो चुका था । न्याय व्यवस्था जोकि पूरी तरह से चरमरा ग‌ई थी! पुनर्जीवित हो उठी । सभी अधिकारी, पुलिस, नेता, जज, सरकारी कर्मचारी, सबके अकांउट्स क्रिस्टल क्लियर हो गये । रह ग‌ई तो बस केवल सुशासन व्यवस्था । यह तो सच ही अपने आप में राम राज्य हो गया । गांधी का सपना सच हो गया ।
मैं बहुत खुश हु‌आ । हंसते हंसते नींद खुली! अखबार में नोटिस ढ़ूंढ़ने लगा, कहीं नहीं मिला, फिर याद आया कि अरे यह तो तीन साल बाद होने वाला है । तो आ‌इये, हम सभी मिल कर तीन साल बाद भारत सरकार द्वारा आने वाले इस नोटिस का इंतजार करें ।

-कवि कुलवंत सिंह,मुंब‌ई

वन- उपवन

वन- उपवन

आज- श्रीविहीन
होता वन- उपवन
हमसे- तुमसे अपना अतीत मांगता
इतिहास मांगता
उनसे- इनसे
परंपराओं, रीतियों, लोकगीतों
में बसी अपनी ‘वो’ पहचान मांगता ।

तुमसे-हमसे
आज यह नव-वसंत
नव मधुमास मांगता
यह नई शताब्दी में
उभरते नए आयामों के बीच
अपना एक स्थान मांगता

यह हमसे-तुमसे
वो अमृत-बीज मांगता
जो हर भूमि, हर ऋतु, हर प्रदेश में
मिटते-मिटते भी
उग ही आते ”

- डॉ. रीता सिंह

मंदी के भूत पर भारी पड़ा भारत

मंदी की काली छाया पूरे विश्‍व पर इस तरह से पड़ी, जैसे की सूर्यग्रहण के दौरान अचानक ही दिन में रात हो जाती है, चारों तरह अंधेरा छा जाता है, ठीक इसी तरह का वातावरण पूरे विश्‍व में मंदी को लेकर बन गया । कल तक जो धनकुबेर थे वे ढेर हो गये, जो अरबपति थे वे रोडपति हो गये । मंदी ने बड़े-बड़े धनाड्‌य व्यक्‍तियों को दिन में तारे दिखा दिये । कंपनियों के शेयरों में अचानक भारी गिरावट देखी जाने लगी । बड़े-बड़े उद्योगों को अपने उत्पादन में भारी कटौती करनी पड़ी । अब जबकि मंदी थी तो उपभोक्‍ता ने उपायों का क्रय करने के लिए काफी सोच समझ कर फैसले लेने शुरू कर दिए । इससे विश्‍व बाजार का वातावरण जो कल तक व्यापार के लिए बिल्कुल मुफीद लग रहा था, अचानक उसमें घोर निराशा की चादर फैल गयी । मंदी का दौर पहले भी आया था १९३० के आस-पास, लेकिन अब समय, स्थिति बड़ी भयावह थी । लोग भूख से बिलबिला-बिलबिला कर मर गये । उस वक्‍त मंदी ने अपना प्रभाव पूरे विश्‍व पर डाला था । लेकिन २००८ में शुरू हुयी मंदी को अगर हम पश्‍चिमी देशों की भी मंदी कहें तो यह सही ही रहेगा । क्योंकि इस मंदी से सर्वाधिक प्रभावित अमेरिका एवं यूरोपीय बाजार ही रहें । अमेरिकी महाद्वीप के सारे देश और यूरोपीय महादेश के सारे देश इससे पूरी तरह से प्रभावित हुए ।
जिस तरह सूर्य ग्रहण कहीं पर पूर्ण और कहीं आंशिक होता है, ठीक उसी प्रकार एशिया एवं अन्य महादीप के देशों में इसकी आंशिक छाया ही पड़ी एशिया महाद्वीप के दो सबसे बड़े आर्थिक ताकत चीन और, भारत इससे आंशिक रूप से ही प्रभावित रहे । अब बात उठती है कि आखिर ये मंदी का जिन्‍न किस बोतल से निकलकर अपने आगोश में पूरे विश्‍व को ले लिया । दर‍असल यह प्रभाव है, ग्लोबलाईजेशन यानि कि भूमंडलीकरण और आर्थिक उदारीकरण का । भूमंडलीकरण के प्रभाव के कारण पूरा विश्‍व एक गांव जैसा हो गया । पूरे विश्‍व के देश व्यापारिक रूप से एक दूसरे से जुड़ गये, और इसका खामियाजा उन्हें मंदी के रूप में झेलना पड़ा । मंदी से उन्हें पता चला कि ग्लोबलाइजेशन के अगर फायदे हैं तो नुकसान भी कम नहीं हैं ।
इस मंदी की शुरूआत भी आर्थिक उदारीकरण के प्रभाव से ही हुयी । अमेरिका में बैकों से लोगों को हर तरह की भौतिक सुख-सुविधा के लिए कर्ज देना शुरू कर दिया, जिसका परिणाम हुआ कि बैंकों के पास जमा-पूँजी कुछ नहीं बची और वे दिवालिया होने के कगार पर पहुँच गये । इस आग की आँच ने धीरे-धीरे उद्योगों को भी चपेट में ले लिया, और पूरा विश्‍व इसकी चपेट में आ गया । इसकी शुरूआत हुयी अमेरिका की मेरिल लौंच नामक बैंक के दिवालिया होने से, साथ ही लोहमैन ब्रदर्स नामक बैंक ने भी दिवालिया होने का ऐलान कर दिया । इसके बाद तो व्यापार जगत में हाहाकार मच गया ।
अमेरिकी, जापानी और यूरोपीय बाजारों में भारी गिरावट के साथ लिक्विडिटी की आवश्यकता महसूस की जाने लगी । इस दरम्यान आई पी पी (इंडेक्स ऑफ रेड्‌सट्रीयल प्रोडक्शन) जबसे कम १.३% कर्ज हुआ जो पिछले दस सालों में सबसे कम था ।
अप्रैल से अगस्त २००९ के बीच शुरूआती पाँच व्यावसायिक महीने १९९८ से २००१ के १४ सालों के निचले स्तर पर दर्ज हुए । माइक्रोसॉफ्ट जो विश्‍व की सबसे बड़ी आई टी कंपनी है, में ९०,००० हजार कमचारी कर्मचारी कार्यरत थे जिनमें से १५००० की छुट्‌टी कर दी गयी । इस कंपनी के शेयरों में ८% तक की गिरावट दर्ज की गयी । इस्पात में ब्रिटेन के सबसे बड़े एवं विश्‍व ८ वें सबसे बड़े धनी उद्योगपति लक्ष्मीनिवास, मित्तल की कंपनी आर्जेलर मित्तल को ३५.२ बिलियन डॉलर की गिरावट २००८ के व्यावसायिक वर्ष में झेलनी पड़ी । भारत में भी मंदी का असर दिखना शुरू हो गया । क्योंकि भारत से आई टी उत्पादों का निर्यात सबसे ज्यादा (६०%) अमेरिका को होता है, इसलिए निर्यात में गिरावट शुरू हो गयी और भारत की व्यावसायिक वृद्धि दर में गिरावट शुरू हो गयी । डी-एल-एफ, यूनिटेक, जी-एम आर ग्रुप, रिलायंस, विप्रो, सत्यम्‌, आदि में नुकसान दिखने शुरू हो गये ।
भारतीय मार्केट रेट १०% से ३०% तक गिर गये । प्रॉपर्टी के दाम १५% से २०% तक नीचे आ गये । इससे गाजियाबाद जो लॉसवेगास और मॉस्को जैसे शहरों से प्रॉपर्टी के मामले में टक्‍कर लेने लगा था हाशिये पर आ गया । मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में भारी गिरावट शुरू हो गयी और यह एक समय १०,००० से भी नीचे आ गया । भारत में जिस सेक्टर की कंपनियां सबसे ज्यादा प्रभावित रहीं उनमें, टेक्सटाईल, केमिकल, ज्वैलरी गारमेंट, जेम्स इत्यादि की कंपनियाँ रहीं । इनको अपने उत्पादन में १०% से ५०% तक भी गिरावट करनी पड़ी । भारत में टेलीकॉम कंपनियां भी भारी गिरावट में रहीं ।
आर कॉम - ५१ %
आईडिया- २६%
एयरटेल- ८%
रिटेल चेन के सेक्टरों में भी भारी नुकसान हुआ । सुभिक्षा रिटेल चेन की अपने कई रिटेल शॉप दिल्ली में बन्द करने पड़े जिससे कई लोग बेरोजगार हो गये । समय लाईव में प्रकाशित खबर के मुताबिक सुभिक्षा को पटरी पर आने के लिए ३०० करोड़ रू की आवश्यकता है । एअयरटेल के भी नेट प्रॉफिट में ७.७८% की गिरावट दर्ज की गयी । इसका रेवेन्यू १% से गिरकर ९,९४१ करोड़ से ९८४५ करोड़ हो गया । प्रॉफिट २५ १६ करोड़ से गिरकर २३२१ करोड़ हो गया । गोदरेज की २००९ में इसकी तिमाही में ६६.६७ करोड़ का मुनाफा हुआ जो इसी तिमाही में पिछले साल ९.४ करोड़ था लेकिन टोटल इनकम में ९ करोड़ का लॉस हुआ और वह ९६५.२७ करोड़ से ८९६.१७ करोड़ पर आ गया । डी एल एफ जो कि रियलिटी शो की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है के नेट प्रॉफिट में ७९% की गिरावट दर्ज की गयी । २००९ साल के दूसरी तिमाही में कंपनी को ३६ करोड़ मिले जो पिछली तिमाही में १८६३.९७ करोड़ थे । कंपनी की टोटल इनकम भी ३,८१०.६२ करोड़ से गिरकर १६४९.८६ करोड़ हो गयी । २००९ के तीसरी तिमाही में एच सी एल का भी नेट प्रॉफिट १०% गिर गया । उसे १५१ करोड़ में फौरन एक्सचेंज का नुकसान हुआ । एच सी एल को जून की तिमाही में ३% की गिरावट के साथ ३३० करोड़ का नुकसान हुआ । एच सी एल से मीडिया को मार्च २००९ के तिमाही में २३४.४ मिलियन का प्रॉफिट हुआ, जब की पिछली तिमाही में इसे ६.५३% का ज्यादा प्रॉफिट हुआ था । हाँलाकि सितंबर २००९ की तिमाही में ही सी एस इनफोसिस, विप्रो को फायदा हुआ है ।
इनफोसिस - ७.५ %
टीसीएस - २९.२%
विप्रो - १९%
सबसे ज्यादा गिरने वाले सेक्टर-
भारत में जिन सेक्टरों में सबसे ज्यादा मंदी का प्रभाव पड़ा उनमें सबसे ऊपर थे-
* बैंक
* फिनांसियल सर्विसेज
* रियल स्टेट
* इन्फ्रास्ट्रक्चर
* आई टी सेक्टर
इससे कम प्रभावित क्षेत्र थे ः -
* पावर
* ऑटोमोबाइल्स
* रिटेल
* हॉस्पिटेलिटी
* टूरिज्म
सबसे कम प्रभावित क्षेत्र थे ः -
* फार्मास्यूटिकल्स
* ऑयल्स और गैस
* एफ एम जी जी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्‌स)
* मीडिया और इंटरटेनमेंट
इसके अलावा भारत में ६००० बीपीओ कंपनियों को मंदी के दौरान अपना बोरिया-बिस्तर बांधना पड़ा । विश्‍व बाजार में तेलों के दाम १९७० के बाद सबसे निचले स्तर पर जा पहुँचे । इनके दाम ५० डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे चले गये । भारत में कुल २३४५३ कंपनियां हैं, २७६१ एम एन सीज हैं, टॉप आई टी कंपनियां ३५५३ हैं टॉप वन आई टी कंपनियां १९९६२ हैं, उद्योग आधारित कंपनियां ८९५० हैं । इन सबको मंदी ने झंकझोर कर रख दिया । हालाँकि जब अमेरिका में मंदी का दौर था तो भारत में बीपीओ/केपीओ कंपनियां अच्छा कर रही थीं ।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर प्रभाव ः-
मंदी ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों को दिखला दिया की भारतीय बाजार मंदी जैसे बवंडर को भी झेलने को तैयार है । मंदी का आंशिक असर ही भारत पर पड़ा । अमेरिकी बाजार में आउटसोर्सिग की मांग एकबार फिर से उठने लगी । कंपनियां घाटे से उबरने के लिए भारत में आउटसोर्सिंग करना शुरू कर सकती हैं । भारत में “मैन पावर” एवं संतुलित संसाधनों की उपलब्धता कहीं और की बनिस्पत ज्यादा सस्ती है, इसलिए सस्ते संसाधन कंपनियों से अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं । बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद आउटसोर्सिंग पर जो बबेला मचा था ये अब कहीं नजर नहीं आ रहा । ओबामा द्वारा ‘राहत पैकेज’ जारी करने के बाद आउटसोर्सिंग पर ओबामा सरकार ने चुप्पी साध रखी है ।
आयात निर्यात के क्षेत्र में २००९ .
आयात निर्यात के क्षेत्र में इस बार भारत को नुकसान ही उठाना पड़ा है । भारत द्वारा आईटी उत्पादों का सबसे ज्यादा ६% निर्यात अमेरिका को होता है, और अमेरिका भी मंदी की चपेट में है इसलिए निर्यात की भी दर प्रभावित हुयी । भारत का निर्यात प्रतिशत ११.४% तक गिर गया । भारत को ३०.४% ज्यादा आयात करना पड़ा । अप्रैल अगस्त की तिमाही में । संवेदनशील वस्तुएं, दूध पदार्थ, दूध, एडीबल ऑयल इत्यादि का ज्यादा आयात करना पड़ा । भारत को अक्टूबर के माह में ४८ टन सोने का आयात करना पड़ा जो ४५% तक ज्यादा है
। हालांकि ‘सेंस से विदेशी निवेश को जरूर बढ़ावा मिला है ।
भारत की व्यापार नीति-
भारत की व्यापार नीति में अभी भी सुधार की बहुत सारी संभावनाएं मौजूद हैं । निर्यात की दर जो सुधारने के लिए उद्योगों को और अधिक प्रोत्साहन के अलावा, जिन देशों से भारत का व्यापार दर बहुत कम है, उन देशों से भारत को व्यापार बढ़ाना चाहिए । कस्टम ड्‌यूटी, एक्ट्‌स, एक्सपोर्ट डयूटी इत्यादि इतने सारे कानून हैं । जो व्यापार को प्रभावित करते हैं । भारत में व्यापार के लिए कानून को और लचीला बनाए जाने की भी जरूरत है । भारत को लैटिन अमेरिकी देशों तथा यूरोपीय देशों की ओर ध्यान क्रेंद्रित करने की भी जरूरत है ।
भारत तेल के लिए खाड़ी देशों खासकर सऊदी अरब एवं यूएई पर निर्भर रहता है । भारत को वेनेजूएला जैसे देशों से इस संबंध में अपने कदम आगे बढ़ाने चाहिए ।
व्यापार जगत में मीडिया की भूमिका-
व्यापार जगत में मीडिया की भूमिका अहम हो गयी है । आज व्यापार आधारित न्यूज चैनलों तथा अखबारों का दिनों-दिन प्रचार-प्रसार बढ़ता जा रहा है, जाहिर है इनकी रीडरशिप और यूजरशिप में बढ़ोत्तरी होती जा रही है । एक समय था जब एक दो दूरदर्शन हुआ करता था, उसी में धारावाहिन, न्यूज, गाने, सांस्कृतिक, कार्यक्रम, ज्ञान-विज्ञान सारे कुछ हुआ करते थे । आज समय बदल चुका है । आज बिजनेस पर आधारित आधा दर्जन से अधिक टीवी चैनल हैं । मीडिया का व्यापार पर सीधा असर देखा जा सकता है । सेंसेक्स के उतार-चढाव के साथ-साथ हर कंपनी के शेयरों के भाव, उनकी इंडेक्स, कंपनी का नफा, नुकसान का सारा ब्यौरा आज मीडिया के हाथों मेंहै । आज मीडिया चाहे तो किसी प्रॉपर्टी के दाम में आग लगा सकती है तो किसी को कौड़ियों के भाव गिरा सकती है । मीडिया के द्वारा ही विश्‍व बाजार में उतार-चढ़ाव का मनोवैज्ञानिक खेल व्यापारिक स्वंभूओं द्वारा खेला जाता है । भारत में सेंसेक्स पर मीडिया के द्वारा आयी खबरों का त्वरित असर होता है । खबर साकारात्मक हो तो सेंसेक्स चढ़ जाता है, नाकारात्मक हो तो गिर जाता है । बहरहाल भारतीय बाजारों ने मंदी के तूफान को झेल लिया है । भारतीय अर्थव्यवस्था ने यह साबित कर दिया है कि अब वह पश्‍चिमी देशों की अर्थव्यवस्था पर निर्भर नहीं करता है । पिछले दिनों एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पेप्सीको की सीईओ इंदीरा नुई ने यह कहकर इस बात को और बल दिया कि भारतीय बाजार मंदी से सबसे पहले निकल चुकी है, और मंदी ने भारतीय बाजार का ज्यादा कुछ नहीं बिगाड़ा ।
वैसे भारत सरकार के द्वारा भी कुछ साकारात्मक कदम उठाये गये जिनमें ब्याज दरों में कटौती से लेकर आर्थिक पेकैज जारी करने तक की कवायद की गयी । पिछले दिनों सिंगापुर में आयोजित विश्‍व के व्यापारिक नेताओं ने भी अपने भाषण में कहा कि भारत और चीन विश्‍व में और एशिया में मंदी से निकलने वाले सबसे पहले देश हैं ।
- धनु कुमार मिश्रा

मतलब निकल गया मुद्दा फिसल गया

* स्विस बैंक में भारत का सबसे ज्यादा ७०,००००० करोड़ रूपया जमा है ।

बाबा रामदेव ने २००९ के आम चुनावों से पहले ही ये मुद्‌दा उठाया था कि स्विस बैंक में जो भारतीय पैसा जमा है उसे वापस लाया जाए, चाहे किसी की भी सरकार बने पैसा वापस लाने पर विचार विचार किया जाना चाहिए । आपको यकीन करना मुश्‍किल होगा, लेकिन यह सच है कि जिस देश की गिनती गरीब देशों में होती है उस देश की कुल ७०,००,००० करोड़ रूपये स्विस बैंक में जमा है । है ना माथे पर बल लाने वाली बात ।
इन ७०,००,००० करोड़ रू. में हमारे देश के गणमान्य नेतागण के पैसे भ्रष्ट आईए‍एस, आईपीएस, एवं अन्य अधिकारियों, उद्योगपतियों के पैसे जमा हैं । यह आंकड़ा स्विस बैंक ने जारी किया है । इतना ही नहीं हमारा देश इस मामले में सर्वोच्च शिखर पर भी विराजमान हैं ।
भारतीय लोगों के सबसे ज्यादा पैसे स्विस के बैंक में जमा है । स्विस बैंक में जमा पैसे में क्रमशः पाँच देश इस प्रकार हैंः-
१ * भारत = १४५६ बिलियन
२ * रूस = ४७० बिलियन
३ * यूके = ३९० बिलियन
४ * यूक्रेन = १०० बिलियन
५ * चीन = ९६ बिलियन
जब बाबा रामदेव ने इस मामले पर अपने वक्‍तव्य दिये थे तो बीजेपी ने इसे हाथों-हाथ लिया था और प्रधानमंत्री पद में बीजेपी उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जी२० देशों के समिट में जाने से पहले कहा था कि “मुझे भरोसा है कि प्रधानमंत्री इस मामले पर जरूर वहाँ पर पहल करेंगे ” । यह सचमुच एक बहुत बड़ा मामला है । अगर ये सारे पैसे वापस आ जाते हैं, तो जितने बेरोजगार आज सड़कों पर अपनी डिग्रियां लेकर घूमते-फिरते हैं, उन्हें उचित रोजगार प्राप्त हो जाएगा । देश के विकास में इस पैसे से कितने रोजगारोन्मुख कार्य किये जा सकेंगे । अभी हाल ही में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा है कि इस मुद्‌दे पर पहल की जा चुकी है । लेकिन सिर्फ पहल करने से कुछ नहीं होगा बल्कि एक ठोस कार्यवाई करने की जरूरत है ।
आज कंपनियां मंदी का बहाना बना कर जिन सेक्टरों में मंदी नहीं है । वाजिब दक्षताप्राप्त लोगों को नौकरियां नहीं दे रही हैं । लोग डिग्रीयां लेकर मारे-मारे फिर रहे हैं । अगर ये पैसा भारत आ जाए तो मंदी का भूत तो यूं ही गायब हो जाएगा । इन पैसों से एक ऐसा हब तैयार किया जाए जहाँ जरूरतमंदों को नौकरियां उपलब्ध कराई जायें । लेकिन सवाल उठता है कि क्या सरकार उचित पबिश बनाकर ऐसा कर पायेगी । क्या सरकार इस मामले में सकारात्मकता दिखा पायेगी । नहीं दिखा पायेगी तो उन भूखें-नंगे बच्चों का क्या होगा? उन युवाओं का क्या होगा जो दर-दर की ठोकरें खाते फिर रहे हैं सिर्फ दो पैसे के लिए ताकी वो अपना पेट पाल सकें । अगर एक मिनट के लिए हम मान लें कि इस पैसे से नौकरियों का सृजन नहीं किया जा सकता तो केवल पूरे देश के महानगरों में फैले झुग्गियों का तो सफाया हो ही सकता है ना ।
लेकिन वहीं एक प्रश्न तो विराजमान है कि पैसे लाएगा कौन? बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा? क्या मनमोहन सरकार बड़े-बड़े ताकतवर इन दौलत के दानवों का दमन करके पैसे वापस ला पायेगी? क्या भूखे-नंगों को रोटियां मिलेंगी? अगर हाँ तो कब............................
साभार: आईए एन. एस. ,(जी मधु) , वर्ड प्रेस. कॉम)



[लेकिन वहीं एक प्रश्न तो विराजमान है कि पैसे लाएगा कौन? बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा? क्या मनमोहन सरकार बड़े-बड़े ताकतवर इन दौलत के दानवों का दमन करके पैसे वापस ला पायेगी? क्या भूखे-नंगों को रोटियां मिलेंगी? अगर हाँ तो कब............................]

माया-ममता सब पर भारी

७ नवंबर को, सात राज्यों के हुए उपचुनाव और फिरोजाबाद के लोक सभा में जो परिणाम आये हैं, उसमें मायावती की पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और ममता बनर्जी की पार्टी कांग्रेस पार्टी को भारी जीत हासिल हुई है ।
[लोकसभा चुनाव के बाद बिहार के उपचुनाव , तीन राज्यों के विधान सभा चुनाव और ७ नवंबर को हुए ७ राज्यों के उपचुनाव में बिहार के उपचुनाव और हरियाणा के विधानसभा चुनाव के परिणाम ही कुछ आश्‍चर्यजनक रहे हैं । ”
उत्तर प्रदेश में ११ विधान सभा और फिरोजाबाद के एक मात्र लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में बहुजन समाजपार्टी को ९ विधानसभा सीटों पर भारी जीत हासिल हुई है । इस उपचुनाव में मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है । इसमें कांग्रेस को फिरोजाबाद के लोकसभा सीट तथा लखनऊ पश्‍चिम की सीट पर कांग्रेस को जीत मिली है । कांग्रेस इस जीत से काफी उत्साहित नजर आ रही है क्योंकि इस सीट पर सपा के बाकी नेता तथा कांग्रेस उम्मीदवार राजबब्बर ने सपा सुप्रीमो, मुलायम सिंह यादव की बहू डिम्पल यादव को ८५००० वोट से हराया है ।
[कांग्रेस १, विधानसभा १ और १ लोकसभा तथा निर्दलीय उम्मीदवार को जीत मिली हैं ।]
वहीं पश्‍चिम बंगाल में हुए १० विधासभा सीटों में ममता बनर्जी को ७, कांग्रेस १, फारवर्ड ब्लाक १, और निर्दलीय को १ सीट मिली है । इस चुनाव में एक बार फिर ममता की आंधी चल गई ।
केरल में एर्नाकुलर, कन्‍नूर और अलपुझा में कांग्रेस अपनी तीनों विधानसभा सीट बचाने में कामयाब रही । असम की दो सीटों डेकिमाजुली तथा सालमारा दक्षिण पर कांग्रेस ने कब्जा कमाया । छत्तीसगढ़ की वैशाली नगर सीट कांग्रेस के कब्जे में रही वहीं राजस्थान टोडाभीम (सु) सीट भाजपा और सलुम्बर सीट कांग्रेस को मिली हिमाचल की जवाली सीट कांग्रेस और रोहडू भाजपा को मिली ।

(नवीन कुमार)

महंगाई की मार-

जहाँ हजारों मजदूर बिहार उत्तर प्रदेश, तथा भारत के विभिन्‍न भागों से दिल्ली अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए आते हैं वहीं दिल्ली में महगाई ने उसका जीना दुर्लभ कर दिया है । पिछले साल से तुलना करें तो दाल, चीनी, चावल, दूध, आटा, नमक, सब्जी में भारी वृद्धि दर्ज की गई है । वहीं शीला दीक्षित सरकार ने डी.टी.सी बसों का किराया बढ़ा कर निम्नवर्गीय और मध्यवर्गीय लोगों को नर्क की जिंदगी जीने के लिए मजबूर कर दिया है ।
भारतीय कृषि मंत्री का कहना है कि “अगले तीन महीनों तक वस्तुओं के दाम में कोई कमी नहीं होगी” जिस कारण कालाबाजारी को बढ़ावा मिल रहा है । शीला दीक्षित सरकार का तर्क है कि डी.टी.सी बसों का किराया घाटे से उबारने के लिए किराया बढ़ाया गया है । दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित बयान दे चुकी हैं कि “दिल्ली को बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग गन्दा करते हैं । उसके बाद बयान आया था कि “२०१० तक दिल्ली में कोई गरीब नहीं रहेगा । ”
गौरतलब है कि दिल्ली में अधिकांश गरीब बिहारी और उत्तर प्रदेश के लोग ही हैं । महंगाई के कारण ये दिल्ली में अपना जीवन गुजर-बसर नहीं कर सके ।
इसका कारण सरकारी कर्मचारी को मिलने वाले छठे वेतन है । इस छठे वेतन के आने से सरकारी खजानों पर काफी बड़ा असर पड़ा है जिसकी पूर्ति के लिए महंगाई बढ़ाई गई है । सरकार को यह समझना चाहिए कि जहाँ छठे वेतन से सरकारी कर्मचारी मालामाल हुए हैं वहीं प्राइवेट कर्मचारियों को आर्थिक मंदी ने नौकरी से भी छुटकारा दिला दिया है । हमारे यहाँ अभी भी लोगों को नमक रोटी तक नसीब नहीं हो रही है ।

मेरा दिल है बड़ा उदास

मेरा दिल है बड़ा उदास

आओ पापा मेरे पास
मेरा दिल है बड़ा उदास
मम्मी की भी याद सताती
भैया को मैं भूल न पाती ।

तुमसे मैं कुछ न मागूँगी
पढ़ने में प्रथम आऊँगी
रखो मुझको अपने पास
मेरा दिल है बड़ा उदास ।

नहीं सहेली संग खेलूँगी
गुड़िया को भी बन्द कर दूँगी
बैठूंगी भैया के पास
मेरा दिल है बड़ा उदास ।

जाओगे जब क्लब में आप
मम्मी को लेकर के साथ
रह लूँगी दादी के पास
मेरा दिल है बड़ा उदास ।

नहीं चाहिये बिस्किट टॉफी
नहीं चाहिये मुझको फ्रॉक
मम्मी पापा मुझे चाहिये
मेरा दिल है बड़ा उदास ।

राजा रानी के किस्से
भगवान की प्यारी बात
दादी हमको रोज सुनाती
आती मुझको उनकी याद ।

बुआ से चोटी करवाना
चाचा के संग बाजार जाना
जिद नहीं मैं कभी करूँगी
पापा मुझको घर ले जाना ।

कहना मान्‌, दूध पीऊँगी
घर की छत पर नहीं चढूँगी
घर ले जाओ मुझको पापा
हॉस्टल में मैं नही पढूँगी ।

- डॉ. ए. कीर्तिवर्द्धन

मर्दों को रिझाने के नुस्खे सिखाएंगी मिशेल

अमेरिका की पहली महिला मिशेल ओबामा पुरूषों को रिझाने के लिए अब महिलाओं को ब्यूटी टिप्स (खूबसूरती के नुस्खे) देती नजर आएंगी । उन्होंने कहा है कि पुरूषों को रिझाने के लिए महिलाओं को अपने लुक्स पर ध्यान देना चाहिए । ग्लैमर मैगजीन के अनुसार, बराक ओबामा की पत्‍नी ने कहा, ‘सुंदर दिखना आवश्यक है । लेकिन सुंदरता हमेशा आपका साथ नहीं देती । सुंदर चेहरे से ज्यादा दिल की सुंदरता जरूरी है और घर बसाने के लिए मर्दों के बैंक बैलेंस को न देख उनके दिल को परखें । आपके लिए अपने व्यक्‍तित्व को पहचानना काफी महत्वपूर्ण है । ’
ओबामा और मिशेल की शादी को १७ साल बीत चुके हैं । दो बेटियों की मां मिशेल ने महिलाओं को शादी के प्रति सजग रहने की सलाह देते हुए कहा, ‘कभी भी उन पुरूषों से शादी न करें जो आपको पूर्ण रूप से खुश नहीं रख सकते और आपको संपूर्णता का अहसास नहीं दिला सकते । ’ उन्होंने कहा कि पुरुषों की गतिविधियों पर ध्यान देना चाहिए । वे अपनी मां के साथ कैसे पेश आते हैं । महिलाओं के बारे में क्या सोचते हैं । बच्चों के बारे में क्या सोचते हैं, और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि वे आपके बारे में क्या सोचते हैं । उन्होंने कहा, ‘जब आप किसी के साथ डेट पर जाते हैं तो वह आपके साथ कैसा व्यवहार करता है, आपको कैसा महसूस होता है । यह सबसे महत्वपूर्ण है । ’ मिशेल ने इस मौके पर बराक से अपनी मुलाकात की कहानी भी सुनाई । उन्होंने कहा, ‘वह (ओबामा) हमेशा मेरे लिए खास रहे हैं । राष्ट्रपति बनने से पहले भी वे मेरे लिए उतने खास थे । ’
बच्चों के टीवी कार्यक्रम में दिखेंगी मिशेल ओबामा
बच्चों में बेहद लोकप्रिय टेलीविजन कार्यक्रम ‘सीसेम स्ट्रीट’ मंगलवार को अपनी ४० वीं वर्षगांठ मना रहा है । इस अवसर पर कार्यक्रम में अमेरिका की प्रथम महिला मिशेल ओबामा बतौर विशिष्ट अतिथि शामिल होंगी । मिशेल ने शो में सब्जियों का बगीचा लगाया है । उन्होंने व्हाइट हाउस में भी ऐसा ही एक बगीचा लगा रखा है । वह कहती हैं, ‘जब बगीचे से ताजा सब्जियां ली जाएं तो उनका स्वाद बहुत अच्छा होता है । यदि आप स्वास्थ्यवर्धक भोजन लेते हैं तो आपका अच्छा विकास होगा और आप मजबूत होंगे । ’

अब मोबाईल फोन से बातें करना और भी आसान होने के आसार

मोबाइल फोन से बातें करना और सस्ता होने के आसार हैं । यह संकेत दूर संचार मंत्री ए.के. राजा ने दिया है । यह बात उन्होंने मुख्य कार्यकारिणी अधिकारी से मुलाकात के बाद कही कि समाप्ति शुल्क को और नीचे लाया जा सकता है जिससे मोबाइल फोन की कॉल की दरें और घट सकती हैं । समाप्ति शुल्क का अर्थ उस शुल्क से है जिसका भुगतान एक ऑपरेटर द्वारा उस ऑपरेटर को किया जाता है जिसके नेटवर्क पर कॉल खत्म होती है । राजा ने दूरसंचार कंपनियों के मुख्य कार्याधिकारियों से मुलाकात के बाद कहा कि मैने ऑपरेटरों से २०१० तक समाप्ति शुल्क को और नीचे लाने का अनुरोध किया है, जिससे शुल्क दरें और नीचे लाई जा सकें ।
उन्होंने कहा कि लोकल कॉल की दरें १० पैसे मिनट तक और एस टी डी कॉल की दरें २५ पैसे प्रति मिनट तक लाई जा सकती हैं । राजा ने कहा कि मैंने उन्हें ग्रामीण इलाकों में दूर संचार ढांचा बढ़ाने के लिए यू एसओ फंड का अधिकतम उपयोग करने को भी कहा है । उल्लेखनीय है कि यूनिवर्सल सर्विस आब्लिगेशन (यूएसओ) फंड में सरकार के पास १६,००० करोड़ रूपये से अधिक धन है ।
अगर वर्तमान में टेलिकॉम ग्राहकों की संख्या पर नजर डालें तो इसकी संख्या बढ़कर ५० करोड़ के पार हो गई है । देश में २०१० के अंत तक ५० करोड़ ग्राहकों का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, जो १५ महीने पहले ही ५० करोड़ के आंकड़े को पार कर गया है । अगस्त में टेलीकॉम ग्राहकों की संख्या ४९.४ करोड़ थी जो सितम्बर के अंत में ५०.९ करोड़ हो गई १५० करोड़ ग्राहकों की संख्या का आंकड़ा पार होने के साथ ही देश में टेली-डेंसिटी ४३.५० फीसदी हो गई है ।
उपरोक्‍त आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि यदि इन दरों में और कटौती की गई तो निश्‍चित रूप से ग्राहकों की संख्या में और वृद्धि होगी ।

नाक की कील पहनने पर निलंबित हाथ को स्कूल ने फिर दिया प्रवेश

भारतीय पारंपरिक वस्त्रों और आभूषणों को लेकर विदेशों में हमेशा से ही बवाल मचता रहा है । ताजा मामला स्कूली छात्रा द्वारा नाक में कील पहनने को लेकर सामने आया है । उथाह के बोंटिफुल स्थित एक पब्लिक स्कूल ने १२ वर्षीय भारतीय मूल की छात्रा सुजाना पाब्ला को पिछले माह इसलिए निलंबित कर दिया था क्योंकि उसने नाक में कील पहन रखी थी । स्कूल का कहना था कि इस कारण वह ड्रेस कोड का उल्लंघन कर रही थी । बहरहाल स्कूल ने जब जाना कि नाक में कील पहनना भारतीय संस्कृति का एक हिस्सा है न कि धार्मिक जरूरत । तो उसने छात्रा के साथ समझौता करने के बाद उसे वापस सातवीं कक्षा में प्रवेश दे दिया है । हालांकि स्कूल ने छात्रा से कहा है कि वह महीन और ज्यादा न चमकने वाला नग ही नाक में पहन सकती है ।
सुजाना ने कहा, ‘मैं इसके जरिए भारत में अपने परिवार के और ज्यादा करीब महसूस करती हूं । सुजाना का जन्म बोंटिफुल में ही हुआ था । उसके पिता सिख समुदाय से हैं और उनका जन्म भारत में हुआ था । सुजाना के पिता अमरदीप सिंह ने कहा, ‘ऐसा कतई नहीं होना चाहिए ।’ अमरदीप सिंह लीहाई यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत हैं । उनोंने कहा, ‘यह सच है कि नथ भारत में अधिकतर महिलाओं द्वारा पहनी जाती है । यह हमारी संस्कृति का एक हिस्सा है । भले ही यह संस्कृति से जुड़ी बात हो मगर हमारे लिए यह बात बेहद अहम है ।’ उन्होंने कहा, ‘लोग मुझसे लगातार पूछते रहते हैं कि मैं पगड़ी क्यों पहनता हूं । कई बार मुझे इसका जवाब देना भारी सा लगने लगता है । ’ उन्होंने कहा कि कई लोग मानते हैं कि मैं अप्रवासी हूं । विदेशी हूं । आप भले ही इसे अपना देश मानते हों लेकिन कई बार आपको बाहरी महसूस होता है ।

ओमपुरी ने बताया सच

ओमपुरी जैसा कलाकार अगर कहता है कि ये पब्लिसिटी स्टंट नहीं है बल्कि एक हकीकत है, नाकि किसी फिल्म का इमोशनल डा‌इलॉग.... यही कहना है ओमपुरी यानि फिल्म इंडस्ट्री के उस कलाकार का जो पिछले एक लम्बे अरसे से हर फिल्म देखने वाले के दिल में एक अलग तरीके से राज करता आ रहा है । ओमपुरी की जिन्दगी पर उन्हीं की पत्‍नी नंदिता पुरी ने निजी संबंधों को लेकर जो लिखा उसका जवाब ओमपुरी ने एक सेलिब्रिटी की तरह नहीं बल्कि एक आम आदमी की तरह दिया I

ओमपुरी एक ऐक्टर के तौर पर जिस तरह से लोगों के दिलो में जिंदा हैं शायद यह उनकी ज़िन्दगी का एक सच्चा पहलू है I ओमपुरी अपनी निजी ज़िन्दगी को सरे बाज़ार देखकर बिलकुल भी भौचक्के नहीं हु‌ए क्योंकि उनका कहना है कि जिस तरह महात्मा गाँधी अपने जीवन के पलों को दुनिया के सामने लेकर आये थे वो भी उन्हीं की तरह अपनी निजी ज़िन्दगी के उन क्षणों को दुनिया के सामने लाने से परहेज़ नहीं कर सकते....।

पिछले कुछ दिनों से जिस तरह मीडिया में ओमपुरी के बारे में उनकी पत्‍नी द्वारा लिखी गयी किताब में जो खबरें आ रही थीं I ओमपुरी ने अपने ही अंदाज़ में लोगों को ये बता दिया की भले ही वो किसी फिल्म का सेट हो या उनकी निजी ज़िन्दगी उनकी कथनी और करनी में को‌ई फर्क नहीं है I
-अखिल वोहरा , चंडीगढ़

राजनीति में भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार और राजनीति का एक गहरा संबंध है । जहां हम विकास की एक नई गाथा को रचने का सपना संजोए हुए हैं वहीं दुनिया के सामने हमारी गरीबी की सच्चाई को स्लमडॉग मिलेनियर जैसी फिल्मों के सहारे परोसा जा रहा है । आज हम भ्रष्टाचार के मामले में बंग्लादेश, श्रीलंका से भी आगे हैं ।
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री सह सांसद मधुकोड़ा का मामला भ्रष्टाचार के मामले में सामने आया है । जिसमें ४ हजार करोड़ के घपले का पता चला है । कोड़ा का नाम भी उन राजनेताओं में जुड़ गया है जो भ्रष्टाचार के मामले में दोषी पाये गए हैं या घिरे हुए हैं । भ्रष्टाचार को फैलाने वाले राक्षस सत्ता में आसीन राजनीति के शीर्ष नेता हैं इसकी शुरूआत भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय से ही हो गई थी । १९५६ में खाद्यान्‍न मंत्रालय में करोड़ों रूपये की गड़बड़ी पकड़ी गई । जिसे सिराजुद्दीन काँड के नाम से जाना जाता है । उस समय केशवदेव मालवीय खाद्यान्‍न मंत्री थे उन्हें दोषी पाया गया । १९५८ में भारतीय जीवन बीमा में मुंधरा काँड हुआ जिसकी फिरोज गाँधी ने पोल खोली थी । १९६४ में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए “संथानम कमिटी” का गठन किया गया । इसने प्रशासन में बढ़ते भ्रष्टाचार की ओर संकेत किया था । इंदिरा गाँधी के समय में भ्रष्टाचार राजनीति में गहरी पैठ जमा चुकी थी । १९८० में “कुंआ तेल-कांड” १९८२ ,में “अंतुले प्रकरण कांड” १९८२ में ही “चुरहट लॉटरी कांड” प्रमुख है ।
१९८७ में हुए ‘बोर्फोस कांड’ ने तो राजीव गाँधी की कुर्सी हिलाकर रख दी थी । राजीव गाँधी को एक सार्वजनिक सभा में कहने के लिए विवश होना पड़ा कि “विकास कार्यों के मद में खर्च होने वाली राशि का मात्र १५ फीसदी हिस्सा ही सही व्यक्‍ति तक पहुँच पाता है । आज कई मामले ऐसे हैं जो न्यायालय में लंबित हैं या चल रहे हैं जिनमें झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का नोट के बदले वोट का मामला बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का चारा घोटाला मामला (९९० करोड़) उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मायावती का ताजकेरीडोर घोटाला ( १७५ करोड़) प्रमुख है । इसके अलावा पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल पर ७८ करोड़, पंजाब के ही मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह पर १५०० करोड़ केन्द्रीय दूरसंचार मंत्री ए राजा पर २०० करोड़ के घोटाले चल रहे हैं । इन घोटाले में तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता भी शामिल हैं । सुप्रीम कोर्ट के फटकार के बाद उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री का मामला आगे नहीं बढ़ रहा है ।
पैसे लेकर सवाल पूछने पर कई नेता सामने आ चुके हैं । संसद भवन में नोट के बदले वोट के लिए पैसों की गड्डियां लहराई जाती हैं पर पता नहीं चल पाता है कि यह पैसा कहां से आया है । घोटाले का मुख्य स्रोत सरकारी खजाना है जिसे राजनेता प्रशासनिक अफसरों की मिली भगत से लुटाते हैं । हमारा संविधान इतना लचीला है कि एक तरफ सरकारी कर्मचारी पर आरोप लगते ही उसे निलंबित कर दिया जाता है दूसरी तरफ राजनेता आराम से अपने पद पर बने होते हैं । आखिर यह दो नीति क्यों?
[हमारा संविधान इतना लचीला है कि एक तरफ सरकारी कर्मचारी पर आरोप लगते ही उसे निलंबित कर दिया जाता है दूसरी तरफ राजनेता आराम से अपने पद पर बने होते हैं । ]


- नवीन कुमार