Monday, December 7, 2009

डायरेक्ट टैक्स को लेकर छिड़ेगा देशव्यापी अभियान

केन्द्र सरकार द्वारा आयकर कानून के स्थान पर प्रस्तावित डायरेक्ट टैक्स कोड के जारी ड्राफ्ट पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्‍त करते हुए नई दिल्ली में हुए एक सेमिनार में व्यापारियों, प्रोफेशनल, सर्विस प्रोवाईडर लघु एवं मिडिल उद्यमी और अन्य प्रकार के स्वयं उद्यमियों ने डायरेक्ट टैक्स कोड के प्रावधानों के बारे में देश भर में जनमत जागृत करने के लिए एक देश व्यापी अभियान चलाने की घोषणा की है । ज्ञातव्य है कि केन्द्र सरकार ने लगभग दो महीने पहले यह डारेक्ट टैक्स कोड जारी किया था जो वर्ष २०११ में आयकर कानून का स्थान लेगा । सेमिनार का आयोजन कन्फैडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स ने सोशल साईट नेटवर्किंग साईट फेसबुक के कुछ प्रबुद्ध व्यक्‍तियों के समूह टीम फेस टू फेस के साथ मिलकर आयोजित किया ।
राज्य सभा में विपक्ष के नेता श्री अरूण जेटली, पूर्वी दिल्ली से सांसद श्री संदीप दीक्षित, प्रमुख आयकर विशेषज्ञ सुभाष लाखोटिया, विख्यात टैक्स सलाहकार रवि गुप्ता, प्रमुख विधिवेत्ता प्रो. भीम सिंह, कन्फैडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी.सी. भरतिया एवं प्रमुख चार्टड एकाउन्टेन्ट प्रमोद गुप्ता सहित बड़ी संख्या में दिल्ली के प्रमुख व्यापारी संगठनों के प्रतिनिधि, प्रोफेशनल वर्गों के लोग, डॉक्टर, इंजीनियर एवं चार्टड एकाउन्टेन्ट भी शामिल हुए सेमिनार की अध्यक्षता राष्ट्रीय महामंत्री श्री प्रवीन खण्डेवाल ने की ।
सेमिनार में व्यापक बहस के बाद सर्वसम्मति से पारित एक प्रस्ताव में सभी प्रभावित वर्गों ने ये निर्णय लिया कि डायरेक्ट टैक्स कोड प्रावधानों से सीधे तौर पर जुड़े व्यापारियों, प्रोफेशनल, सर्विस प्रोवाइडर, उद्यमी यहाँ तक की वेतन भोगी वर्ग जितने ऊपर प्रावधानों की गहरी मार पड़ेगी की एक संयुक्‍त कमेटी बनायी जायेगी जो ड्राफ्ट कोड पर सरकार को देश के मिजाज से अवगत करवायेगी । यह कमेटी डायरेक्ट कोड पर एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण भी करेगी ।
डायरेक्ट कोड को एक पक्षीय दस्तावेज करार देते हुए सेमिनार में कहा गया कि इस कोड के प्रावधान बेहद जटिल हैं और उनका सहज पालन बहुत ही मुश्किल है जिसके कारण पालन करने पर खर्च तो बढ़ेगा ही साथ में ड्राफ्ट कोड में विशेष तौर पर छोटे व्यापारियों और वेतन भोगी लोगों को टैक्स के दायरे में लाने की चेष्टा की गयी है । सेमिनार में यह भी कहा गया कि जिन लोगों ने ड्राफ्ट बनाया है उन लोगों ने देश की अर्थव्यवस्था की जमीनी हकीकत को नजर‍अंदाज करते हुए यह भी नहीं देखा की देश में शिक्षा का स्तर कैसा है और गांव गांव में फैले देश में संस्थागत ढांचे की कितनी कमी है जबकि ठीक इसके उलट एक ऐसा कानून बनाने की चेष्टा की गयी है जिसके शब्द तो जटिल हैं ही अधिकांश कानून कम्प्यूटरीकृत प्रणाली पर आधारित हैं । प्रस्तावित कानून को बनाने वाले लोग यह भूल गए कि देश के बड़े हिस्से में आज भी शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी नहीं है वहीं दूसरी ओर बड़ी मात्रा में बिजली की आंख मिचौली जारी रहती है और लोगों को कम्प्यूटर के बारे में ज्ञान तक नहीं है । ऐसे में लोग किस प्रकार से कम्प्यूटरीकृत प्रणाली के द्वारा टैक्स कोड के प्रावधानों का पालन कर पायेंगे यह समझ पाना मुश्किल है ।
सेमिनार में यह भी कहा गया कि भारत एक समाजवादी देश है जबकि यह कानून मोटे तौर पर प्रथम दृष्टि में पूंजीपतियों के लिए बनाया गया प्रतीत होता है क्योंकि इस कानून के प्रावधान ऐसे हैं जो सरकार की इस नियत को स्पष्ट तौर दिखाते हैं । जो कि निम्न प्रावधानों से स्पष्ट है । कर की छूट ज्यादा आय वालों को दी गयी है जबकि कर छूट सीमा वही रखी गयी है जिससे मात्र १३००० से ज्यादा पर माह कमाने वाले को भी कर के दायरे में आना पड़ेगा, २०००० रू. से ज्यादा का लेन देन अगर एकाउन्ट देय चैक नहीं होता तो उसे अन्य स्त्रोत से आय मानने के प्रावधान से किसान तक इस कानून के दायरे में आ सकते हैं । स्त्रोत पर कर की कटौती की सीमा इतनी कम रखी गयी है कि प्रायः हर भुगतान पर कर काटना अनिवार्य हो सकता है । ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है कि साधारण व्यक्‍ति को प्रावधान समझने में दिक्‍कत आयेगी । धार्मिक संस्थाओं के ऊपर भी कर का बोझ लाद दिया गया है व्यापारियों का मानना है कि अप्रत्यक्ष कर का पूरा बोझ व्यक्‍तियों पर आता है तो उन पर प्रत्यक्ष कर माफ होना चाहिए । कम्पनियों के ऊपर २५ प्रतिशत कर की दर है तो पार्टनरशिप ३० प्रतिशत, बचत किए हुए पैसे निकलने पर उस पर कर लगाने के प्रवाधान से सीनियर सिटीजन, पेंशनर आदि लोगों को बहुत नुकसान होगा ।

- प्रवीन खण्डेलवाल, राष्ट्रीय महामंत्री

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