Monday, September 27, 2010

सुर साम्राज्ञी की 81 वीं सालगिरह


लता मंगेशकर जिन्हें हम सुर की साम्राज्ञी के नाम से जानते हैं प्यार से लोग इन्हें दीदी बुलाते हैं । कहा जाता है कि सरस्वती इनके गले में विराजमान हैं । इनका जन्म 28 सितंबर 1929 को पिता- दीनानाथ मंगेशकर के घर इंदौर में हुआ था । लता जी चार बहन और एक भाई हैं । इन्हें क्रिकेट देखना और खाने में मछली एवं कोल्हापुरी मटन पसंद है । इन्हें डायमंड एवं सफेद छींटेदार साड़ी पहनना ज्यादा अच्छा लगता है । इनका जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा है । १९४२ में पिता की मृत्यु के पश्‍चात्‌ मात्र १३ साल की उम्र में ही इनपर घर की जिम्मेवारी आ गई । उस समय लता जी की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, सो घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए इन्होंने फिल्मों की तरफ रूख किया और गायकी को अपना पेशा बनाया ।

कैरियर के शुरूआती दौर में सबसे पहले इन्हें मराठी फिल्म में गाने का मौका मिला, लेकिन इन्हें पहचान मिली 1945 में महल फिल्म के गीत... ‘आयेगा आनेवाला’, से फिर इन्होंने पीछे पलटकर नहीं देखा और एक से बढ़कर एक गीत गाए ।

इन्होंने इस दौर के प्रमुख संगीतकार मदन मोहन, सलिल चौधरी, एस.डी. बर्मन, नौशाद, आर.डी.बर्मन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल से लेकर वर्तमान के संगीतकार अनु मलिक, जतिन ललित, ए.आर.रहमान, नदीम श्रवण के साथ गीत गाये हैं । लगभग सात दशक तक २० भाषाओं में ४० हजार गीत गाकर इन्होंने एक अलग कीर्तिमान स्थापित कर लिया है । कहा जाता है कि अपने समय की मशहूर नायिका मधुबाला लता जी के गायिकी की इतनी दीवानी थीं कि अपने फिल्म डॉयरेक्टर से कांटेक्ट में लिखवाती थी कि लता जी ही मेरे लिए गायेंगी । लता जी ने पुणे में अपने पिता के नाम से हॉस्पिटल बनवा रखा है, और वर्तमान में एक और कैंसर अस्पताल बनवा रही हैं जहाँ गरीबों का कम फीस पर इलाज किया जाता है । इससे पता चलता है कि लता जी समाज सेविका भी हैं ।

फिल्मी जगत का शायद ही कोई पुरस्कार है, जो इन्हें ना मिला हो, इन्हें नेशनल पुरस्कार, फिल्मफेयर पुरस्कार, पद्‌म भूषण पुरस्कार, दादा साहेब फालके पुरस्कार, भारत रत्‍न, महाराष्ट्र रत्‍न, राजीव गाँधी पुरस्कार, लाईफ टाईम अचीवमेंट पुरस्कार, गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड में सबसे ज्यादा गीत गाने के लिए नाम रेकॉर्ड, आदि तमाम पुरस्कार इनको मिल चुके हैं । गायकी को अपना जीवन समझने वाली लता जी आज भी गाये जा रहे गानों में अपनी आवाज दे रही हैं । अभी हाल ही में इन्होंने ‘जेल’ एवं ‘रब ने बना दी जोड़ी’ के लिए अपनी आवाज दी और उम्मीद है कि आगे भी गाती रहेंगी ।

लता जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ.......................।

Friday, September 24, 2010

जीवन एक अनंत धरातल

जीवन एक अनंत धरातल
हम है इसका एक छोटा तल
कभी है अवतल कभी है उत्तल
कभी अभिन्न इसी सा समतल


जीवन एक अनंत धरातल
कभी बहुत आनंद समेटे
कभी दर्द की आहट लेके
आता जाता आज और कल


जीवन एक अनंत धरातल
जो बिक जाये दाम उसीका
झूठा जो है नाम उसीका
जो न बिका बेकार है यहाँ


मिथ्या सब संसार है यहाँ
क्या ये सूखे सूखे उपवन
क्या ये बहती नदिया कल-कल
जीवन एक अनंत धरातल
जीवन एक अनंत धरातल

Wednesday, September 22, 2010

किसका वजूद कितना पक्‍का राममंदिर या बाबरी मस्जिद का?


एक बार फिर से हमारा देश भारत अपने आप को इतने विकास और उत्थान के बावजूद भी भावनात्मक विवादों की लड़ाइयों के आगे अपने आप को उबार नहीं सकेगा ?
क्योंकि यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसमें कुछ भी टिप्पणी करना आसान नहीं होगा । हम आज जिस फैसले का इंतजार कर रहे हैं, वो वास्तव में क्या दोनों के वजूद को साबित करने के लिए पुख्ता है? अगर नहीं तो ऐसे मामले न्यायालयों में या संगठनों के सहयोग या सलाह से नहीं सुलझाए जा सकते?
सबसे बड़ा सवाल इस मुद्दे का यह है कि अयोध्या का नाम अगर आज भी अयोध्या है, तो वह एक इत्तफ़ाक नहीं हो सकता । अगर वास्तव में बाबर ने वहां मंदिर न तोड़कर वहां मस्जिद का नये रूप से निर्माण करवाया तो उस पर विवाद कैसा? अगर उस मस्जिद पर विवाद है? तो और मस्जिदों और मंदिरों पर क्यूं नहीं?
आज सब लोग जो चाहें हिन्दू सम्प्रदाय से जुड़े हों या मुस्लिम समुदाय से, इन सब चीजों को मुद्दा बनाना महज एक समुदाय का दूसरे समुदाय के प्रति घृणा पैदा करना है, न कि किसी का हित सोचना क्योंकि न तो हिन्दू समुदाय के हितकारी उसे मंदिर ही बनने देना चाहते न ही मुस्लिम समुदाय के वादी प्रतिवादी उसे मस्जिद ही रहने देना चाहते हैं । सबसे बड़ा प्रश्न यह भी है, कि हम आज भी इतिहास को कुरेदने की कोशिशों में लगे हुए हैं, जिससे भारतीय हमेशा आहत हुए हैं ।
हमारे ही कुछ लोग इस मुद्दे को हिन्दू और मुसलमानों के वजूद की लड़ाई से भी जोड़ने का प्रयास करते हैं, क्योंकि ये वो भली-भाँति जानते हैं, कि अगर हम इसे संप्रदाय से जोड़ते हैं तो हमारा लाभ अवश्य निकल आयेगा ।
बात वजूद की निकली है, तो किसका वजूद कितना पक्‍का है आप स्वयं इसका आंकलन कर सकते हैं? क्योंकि भारत जब मुगलों के द्वारा आहत हुआ तो न जाने कितने मंदिर टूटे होंगे, कितनी मस्जिदें बनी होंगी, पर उनमें से केवल अयोध्या में ही किसी मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद क्यूं है? अगर भारत का इतिहास और इतिहासकार इस बात की पुष्टि करते हैं, कि पहले मुगल भारत पर आक्रमण करने आये । और न जाने कितनी बार यहां के लोगों पर अत्याचार किया और इसे बार-बार लूटा । उन सारे मुगलों का एक ही मकसद था लूटना और यहां से धन चुराकर अपने प्रदेश वापस चले जाना । परन्तु इतिहास के पन्‍नों में बाबर एक ऐसा हमलावरी था जिसने अपना साम्राज्य यहां स्थापित किया । जिससे एक बात तो स्पष्ट हो ही चुकी कि वजूद पुराना बाबर का है, या भारत का?
उस भारत का जहां की सभ्यता दुनिया के अन्य देशों से काफी विकसित थी । उस भारत का जहां न कोई सम्प्रदाय हुआ करता था, न ही आपसी कोई टकराव । मुगलों से पहले का भारत और मुगलों के बाद का भारत काफी बदल चुका था । क्योंकि उससे पहले न कोई धर्म परिवर्तन ही हुआ था ना ही मस्जिदें तोड़कर मंदिर ही बने थे । हां ऐसा अवश्य होता था कि राम और रहीम सबके दिलों में होते थे न कोई राम और रहीम को अलग समझा, न ही रहीम या राम के नाम पर ईर्ष्या की ।
हम सब जानते हैं, पूरी दुनिया जानती है, कि अयोध्या राम की जन्म भूमि थी, और है । परन्तु इस तथ्य का न ही कोई सबूत है, न ही दिया जा सकता है? इस बात से मुस्लिम समुदाय जो इस मुद्दे में प्रतिवादी और वादी के रूप मे न्यायालयों में गुहार लगा रहे हैं, वह भी इस बात से इनकर नहीं करते कि अयोध्या ही राम की जन्मभूमि है, और आज की तारीख में अयोध्या ही दुनिया का एक मात्र ऐसा नगर है, जहां हर घर में राम-जानकी का मंदिर है ।
तो एक बात और स्पष्ट हो ही जाती है कि अयोध्या में मंदिर था या नहीं? हाँ विवाद यह है, जिसमें हिन्दू समुदाय बाबरी मस्जिद को ही राम मंदिर मानते हैं और उनके अनुसार प्राचीन राम मंदिर को तोड़कर बाबर ने बाबरी मस्जिद का प्रारूप दिया था, जबकि मुस्लिम समुदाय इस बात को मानने से बिल्कुल इन्कार करते हैं । तथा वो इस मस्जिद के बारे में यह बताते हैं, कि बाबरी मस्जिद का निर्माण बाबर ने नये रूप से खाली जगह में कराया था । जहां पर कोई भी मंदिर नहीं था । ना ही कोई मंदिर तोड़कर उसे मस्जिद बनाया गया ।

अगर विवाद के इतिहास पर नजर डालें तो इसको ६१ साल लगभग हो चुके हैं । विवाद की शुरूआत २२-२३ दिसम्बर १९४९ से हुई थी, जिसके तहत मस्जिद के अंदर चोरी छिपे मूर्तियां रखने से कथित तौर पर हुआ । और अब यह मुद्दा काफी तूल पकड़ चुका है, जिसका निर्णय उच्च न्यायालय के हाथ में है । अगर देखा जाय तो दर्जनों वाद बिंदुओं पर फैसला आना है, लेकिन मुख्य मुद्दा ये है, कि वहां पहले राम मंदिर था या बाबर ने मस्जिद रिक्‍त जगह में बनवायी थी ।
बाबरी मस्जिद और विवादित घटना क्रम ः
१ * मस्जिद के अन्दर मूर्तियां रखने का मुकदमा पुलिस ने अपनी तरफ से करवाया जिसकी वजह से २९ दिसम्बर १९४९ में मस्जिद के कुर्की के बाद ताला लगा दिया गया और तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष प्रिय दत्त राम के देख-रेख में मूर्तियों की पूजा की जिम्मेदारी दे दी गयी ।
२ * १६ जनवरी १९५० में हिंदू महासभा के कार्यकारी गोपाल सिंह विशारद ने मूर्तियों की पूजा के लिए सिविल कोर्ट में अर्जी दायर की जिसके फलस्वरूप सिविल कोर्ट ने पूजा आदि के लिए रिसीवर व्यवस्था बहाल रखी ।
३ * १९५९ में निर्मोही अखाड़ा ने अदालत में तीसरा मुकदमा दर्ज किया जिसमें कोर्ट से यह अपील थी कि उस स्थान पर हमेशा से राम जन्म स्थान मंदिर था, और वह निर्मोही अखाड़ा की संपत्ति है ।
४ * १९६१ में सुन्‍नी बम्फ बोर्ड और कुछ स्थानीय मुसलमानों ने चौथा मुकदमा दायर किया जिसमें यह जिक्र था कि बाबर ने १५२८ में यह मस्जिद बनवायी जो १९४९, २२/२३ दिसम्बर तक यहां नमाज अदा किया गया है ।
५ * मुस्लिम पक्ष का तर्क यह था कि निर्मोही अखाड़ा ने १८८५ के अपने मुकदमे में केवल राम चबूतरे का दावा किया था न कि मस्जिद पर जिससे मुस्लिम पक्ष राम चबूतरे पर हिंदुओं के कब्जे और दावे को स्वीकार करता है ।
६ * और मुस्लिम पक्ष यह भी मानता है कि अयोध्या राम की जन्मभूमि भी है । परन्तु बाबरी मस्जिद खाली जगह पर बनायी गयी थी न की तोड़कर ।
७ * लगभग ४० सालों तक यह विवाद लखनऊ तक ही था, परन्तु १९८४ में विश्‍व हिन्दू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहयोग से राम जन्मभूमि मुक्‍ति यज्ञ समिति ने इसे राष्ट्रीय मंच पर एक अभियान की तरह ला खड़ा किया ।
८ * १९८६ में स्थानीय वकील उमेश चन्द्र पाण्डेय की दरख्वास्त पर जिला जज फैजाबाद के.एम. पाण्डेय ने विवादित परिसर खोलने को एकतरफा आदेश दे दिया, जिसकी तीखी प्रतिक्रिया मुस्लिम समुदाय के तरफ से हुई ।
९ * फरवरी १९८६ में बावरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन हुआ और मुस्लिम समुदाय ने संघर्ष शुरू कर दिया ।
१० * १९८९ में राजीव गाँधी ने चुनावी रैली को संबोधित किया जिसमें उन्होंने वहां की जनता को फिर से रामराज्य के सपने दिखाये । उसी समय विश्‍व हिन्दू परिषद ने वहां मंदिर का शिलान्यास भी कराया ।
११ * ९० के दशक में यह मुद्दा राजनीतिक मोड़ ले चुका था जिसमें राजीव गाँधी ने तथा अन्य पार्टियां जैसे भारतीय जनता पार्टी ने भी इसे राजनीतिक हवा देने की कोशिश की ।
१२ * १९९० में कुछ राम भक्‍तों ने मस्जिद पर धावा भी बोला जिससे मस्जिद कुछ आहत भी हुआ ।
१३ * ६ दिसंबर १९९२ में देशव्यापी हिंन्दुओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया तथा मस्जिद के गुबंद को ध्वस्त कर दिया, जिसके फलस्वरूप जगह-जगह पर दंगे हुए, जिसमें काफी लोग मारे भी गये ।
१४ * २००२ में एक बार फिर से देशव्यापी कार सेवकों ने अयोध्या चलो आंदोलन के तहत भाग लिया । परन्तु साधन व्यवस्था और सरकार के प्रयास से अयोध्या में कोई विवाद नहीं हुआ लेकिन गुजरात की तरफ लौटने वाले कार सेवकों को मुस्लिम समुदाय के हमले का शिकार होना पड़ा ।

इन सारी घटनाओं से यही निष्कर्ष निकलता है, कि यह मुद्दा न तो ६१ साल पुराना है, न ही किसी समुदाय के पक्ष का न ही विपक्ष का और ना ही किसी का वजूद ही पक्‍का होना है । हां एक बात तो अवश्य तय है, कि निर्णय किसी के भी पक्ष में क्यों न जाये, इसे न तो वहां मस्जिद बनना है, न ही मंदिर ।
क्योंकि अगर फैसला मस्जिद के पक्ष में जाता है, तो हिन्दू समुदाय उस फैसले को स्वीकार नहीं करेगा, और अगर फैसला हिंदू समुदाय के पक्ष में जाता है, तो मुस्लिम समुदाय उसे नहीं स्वीकार करेगा । क्योंकि ये ऐसे मुद्दे हैं जिसका फैसला वहां के लोग करेंगे, इस देश की जनता करेगी, और जनता सिर्फ शांति चाहती है । न तो वह दंगा चाहती है, न ही एक समुदाय का दूसरे समुदाय से घृणा ही जानती है । और हम तो उस देश के रहने वाले हैं, जहां पर हमारे लिए प्रेम ही सबकुछ है? हम उस मंदिर और मस्जिद के लिए क्यों लड़ें, जो हमारे अपनों के ही कब्र के ऊपर बनी हो? हम ऐसे उस राम और रहीम को उन मंदिर मस्जिदों से मुक्‍त कर देना चाहते हैं, जो कि विवादित ढांचों में बसते हैं ।
हम उस राम, रहीम को अपने हर भाईयों के हृदय में देखना चाहते हैं, जहां एक ही हृदय में मंहिर भी हो, मस्जिद भी, गिरजा घर और गुरूद्वारा भी-
क्योंकि मंदिर और मस्जिद का वजूद हमारे और आपसे है । हम रहेंगे तो मंदिर में भी नमाज अदा कर लेंगे, हम रहेंगे तो मस्जिद में भी दीप जला लेंगे और हमारे राम रहीम भी तो यही कहते हैं-
“मोको कहाँ ढूंढ़े है बंदे, मैं तो मेरे पास में.........”

Tuesday, September 21, 2010

उद्‍घाटन से पहले टूटा पुल


उद्‍घाटन से पहले टूटा पुल
लाखों का निकला टेंडर और जेबें हो गयीं फुल
उद्‍घाटन से पहले देखो टूट गया था पुल
जनता के मेहनत की कमा‌ई इस पुल में हु‌ई बर्बाद
पर किसी के घर बन गये को‌ई हु‌आ आबाद


पुल से नदी पार करने का सपना मन में थे संजो‌ए
सोच रहे थे उनकी ख़ुशियों को किनकी लग ग‌ई हा‌ए
नहीं पता इन्हें की क्या टूटे पुल की कहानी
घटिया सा सामान लगाया खूब करी मनमानी


पुल से ज़्यादा इनको चिंता कमीशन की सता‌ई
सोच रहे थे ज़्यादा से ज़्यादा इससे करो कमा‌ई
बना के तैयार कर दी इन्होंने जिंदा लाश
पैसे देकर आका‌ओं से पुल कराया पास


सजी खूब महफ़िल थी उस दिन हा‌उस हु‌आ था फुल
नेता जी फीता काटें उससे पहले टूटा पुल
सभी के सपने ऐसे टूटे जैसे टूटे काँच
नेता जी कह के चल दि‌ए की कराओ इसकी जाँच
जनता को दे जाँच का लॉलीपाप मामला किया था गुल
देशद्रोही फिर मिल बैठे बनाने को नया पुल
सोच रहा राजीव की ऊपर वाले ने किया एहसान
जो पुल टूटता बाद में तो जाती कितनी जान

Monday, September 20, 2010

मनरेगा नहीं, धनरेगा कहिए जनाब !


केन्द्र सरकार की एक अति महत्वाकांक्षी योजना जो कि गाँवों के उन गरीबों व असहायों के लिए चलायी जा रही है जिन्हें घर व गाँव छोड़कर रोजी-रोटी के लिए सुदूर किसी शहर में जाना पड़ता है । गाँव के इन जरूरतमन्दों को शहर न जाना पड़े और गाँव में ही काम मिल जाये, यही सोचकर यह योजना नरेगा जिसे अब मनरेगा के नाम से जाना जाता है, केन्द्र सरकार ने महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार को बड़े ही कुशलता के साथ चलाने का संकल्प लिया, लेकिन मनरेगा राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र सुल्तानपुर जनपद में धनरेगा बन गयी है । बात अगर सिर्फ जमओं ब्लाक की करें तो कोई ऐसा आदर्श तालाब किसी भी ग्राम सभा में नहीं बना जिसे हम आदर्श कह सकें, आदर्श की मिसाल कायम करने के लिए जो भी मानक दिये गये हैं, उनकी परवाह न करते हुए पहले से ही बड़े गड्‌ढे का रूप पाये उन जगहों को आदर्श तालाब बनाने का प्रयास किया गया है, जो कि पचास प्रतिशत पहले ही तालाब को कुछ परिश्रम करवाकर मनरेगा का धनरेगा करके कागजों पर पूरे मानक के साथ आदर्श तालाब बनवाये जा रहे हैं या बन गये हैं । जिम्मेदार पदों पर बैठे कुछ चन्द लोग जिसे प्रदेश व गाँवों के विकास का जिम्मा दिया गया । जिन्हें हम विकास की रीढ़ भी कह सकते हैं ये चन्द लोग अपने-अपने कमीशन के चक्‍कर में मनरेगा का धनरेगा करवाने में कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं । प्रधानों का कार्यकाल समाप्त होने में मात्र कुछ माह ही शेष है । उसके बावजूद अभी बहुत सारे तालाबों का कार्य शुरू ही हुआ है । बारिश का आगाज भी हो गया है । बारिश आ जाने पर कैसे पूरा होगा ये आदर्श तालाब इन अधूरे नव निर्मित तालाबों के बारे में जानकारी करने पर जानकार सूत्र कहते हैं कि लोग बरसात का इंतजार कर रहे हैं । जिससे बरसात का पानी तालाबों में भर जायेगा और मानक पूरा मनरेगा का धनरेगा करने में आसानी होगी ।
ज्यादातर तालाब अपनी जुबानी ही अपनी दास्ताँ बयां कर देंगे और यह साबित हो जायेगा कि मनरेगा का धन कैसे उड़ाया जा रहा है । तालाबों की बैरीकेटिंग भी इस हिसाब से की गयी है कि रेडीमेड पोल जो कि खड़े होने की जगह पड़े हैं देखने लायक है । कहीं-कहीं ईंटों की बेन्च भी टूटी पड़ी है और तालाबों में पानी की जगह अगर दिखायी पड़ सकती है तो उन मजदूरों के पसीनों की बूँदें जिसे सिर्फ अनुभव करके देखा जा सकता है ।
केन्द्रीय जांच टीम ने कई ग्रामों के दौरे का निरीक्षण कर इस योजना के तहत हुए कार्यों का खुलासा किया । मजदूरों की मजदूरी में भी घोटाला किया जा रहा हैं यह आरोप किसान संग्राम समिति के नेतृत्व में ग्राम पंचायत भादर विकास खण्ड दूबेपुर के नरेगा मजदूरों की मजदूरी का उचित भुगतान न किये जाने के विरोध में तिकोनिया पार्क में चलाया गया है । समिति के महामंत्री विजय कुमार भारती ने मुख्य विकास अधिकारी को मांग पत्र देकर अवगत कराया है कि ग्राम प्रधान व ग्राम पंचायत अधिकारी भादा ने द्वेष भावना से मजदूरों के मजदूरी का भुगतान में भारी अनियमितता बरती है । मॉडल तालाब का निर्माण में लगभग 80-100 मजदूरों ने रोजाना दिहाड़ी पर आठ घंटा प्रतिदिन कार्य किया जिसमें 14 दिन का भुगतान 71.95 प्रतिदिन की दर से 21 दिन का भुगतान 47.00 प्रतिदिन की दर व 17 दिन का भुगतान 29 रू० प्रतिदिन की दर से किया गया और 3 दिन का कोई भुगतान नहीं दिया गया । कानपुर देहात में आदर्श तालाब योजना में भी भारी गड़बड़ी पकड़ में आयी है । मानकों को दरकिनार कर निर्माण में लाखों का गोलमाल किया गया है । ताल के किनारे लोहे की बेंच बनवाई गयी ।
लोहा कानपुर की एक फर्म से बिना कोटेशन के ऊंचे दामों पर खरीदा गया ! उसका वजन क्या था? किसके आदेश से ऐसा किया गया? और लोहे की बेंच की आवश्यकता क्यों महसूस हुई? यही नहीं, एक ही तालाब का इस्टीमेट बार-बार बढ़ाया गया । वर्ष 2007-08 में जिसकी लागत 1.95 लाख थी उसे 2009-10 में 6.75 लाख में पूरा किया गया । यह तथ्य मनरेगा को राज्य स्तरीय रोजगार गारंटी परिषद के सदस्य संजय दीक्षित की शिकायत पर राज्य सरकार के आदेश से हुई हैं रिपोर्ट शासन को सौंपी जा चुकी है लेकिन अभी तक कार्रवाई नहीं हुई है । रिपोर्ट में कहा गया है कि सीडीओ जसवंत सिंह ने दबाव डालकर कई बीडीओ तथा अधीनस्थ अधिकारियों को अधिक कीमत पर लोहे की बेंच तथा अन्य सामाग्री खरीदने को मजबूर किया । विरोध करने पर करियर बर्बाद करने तक की धमकी दी गयी । जांच रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि सरवन खेड़ा के मोहाना एवं जसौरा गांवों में आज भी मनरेगा के पैसे की बर्बादी देखी जा सकती है । रसूलाबाद में भी तमाम उदाहरण मिल जायेंगे जहां घपले ही घपले हैं ।
मनरेगा के तहत हो रहे कार्यों में धांधली बदस्तूत जारी है, जबकि केन्द्र सरकार से लेकर राज्य सरकार द्वारा योजना निगरानी में रखे हुये है । इस योजना के लिये विशेषकर प्रदेश में राज्य स्तरीय मनरेगा निगरानी कमेटी की नियुक्‍ति की गयी । लेकिन हाल ही में केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय मनरेगा मानीटरिंग टीम के तहत हुयी जांच से चन्दौली और मिर्जापुर जिले से मनरेगा से जुड़े जो तथ्य सामने निकल कर आया है उसने प्रदेश मनरेगा निगरानी कमेटी पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया हैं प्रदेश के मुख्यमंत्री मायावती के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद प्रधानों के घर में जॉब कार्डों की थोक में उपलब्धता ये बताती है कि मुख्यमंत्री के आदेश का कोई असर नहीं है । ग्राम पंचायत बनौली जनपद मिर्जापुर । बनौली की ग्राम प्रधान इन्द्रावती देवी जिनके पति गणेश आचार्य जिनका बसपा से नाता है । उन्हीं के द्वारा ग्राम प्रधान के सारे कार्य संचालित होते हैं । मानीटरिंग टीम के सदस्यों ने जांच के दौरान ग्राम प्रधान के घर से सैकड़ों जॉबकार्ड जब्त किये । कुछ कार्ड ऐसे भी थे जो एक ही व्यक्‍ति के नाम पर दो दो कार्ड बनाये गये थे । मजे की बात यह है कि इस ग्राम पंचायत की अनियमितता की शिकायत मिर्जापुर के सभी अधिकारियों के संज्ञान में होते हुये भी कोई कार्यवाही संबंधित लोगों के खिलाफ नहीं हुई । संभवतः सत्‍तासीन पार्टी नेता होने के वजह से ग्राम प्रधान जिलाधिकारी से लेकर ग्राम सचिव तक के ऊपर दबाव किये है जिससे लाखों शिकायतों के बावजूद किसी अधिकारी ने अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की है ।
बसही ग्राम पंचायत में भी मानीटरिंग टीम को तमाम गड़बड़ियां मिलीं जिनके बारे में ग्राम प्रधान आरती पाण्डेय कोई सही जवाब नही दे सकीं । जमालपुर विकास खण्ड के ग्राम पंचायती में मनरेगा के धन का मन मुताबिक दुरूपयोग हुआ । ग्राम बतीला व संघती गांव में जिला चन्दौली भी अपने मनमाफिक नियमों की धज्जियां उड़ाते अपनी मनमानी कर रहे हैं । कार्य बी०डीसी० इरफान करते हैं । बसिला में तालाब पर लाखों रूपये खर्च करने के बावजूद आमजन के लिये उपयोगी सिद्ध नहीं हो सका । इस गांव में तकरीबन डेढ़ वर्ष से जच्चा-बच्चा केन्द्र बनकर तैयार है और अब फर्श और दीवारें टूटने भी लगी हैं । लेकिन अभी तक उक्‍त केन्द्र को स्वास्थ्य विभाग को हस्तानांतरित नहीं किया गया है । इस बिल्डिंग का उपयोग गोबर के उपले रखने में हो रहा है । जॉबकार्ड को लेकर बसिला में जांच टीम को जमकर धांधली मिली इस गाँव में सारे जॉबकार्ड प्रधान व बी०डी०सी० के घर पर ही रहता है । मजदूरों को 100 दिन का काम नहीं मिलता । जॉब कार्ड धारकों में कुछ ऐसे हैं जिनको बगैर मजदूरी किये पैसा मिलता है । संधति गांव में भी निर्मला देवी महिला प्रधान हैं उनके पति सतीश चन्द्र केसरी चूँकि पूर्व ग्राम प्रधान रहे हैं, वही ग्राम प्रधान का सारा कार्यभार देखते हैं उनके कार्यकाल में मनरेगा के तहत विकास कार्यों में गड़बड़ियां पायी गयीं । जांच टीम ने बताया कि एक दिन पूर्व बिछाये गये खड़ंजे के अवलोकन में पाया गया कि खड़ंजे में घटिया ईंटों का प्रयोग किया गया है पदनामपुर का ग्राम प्रधान जो कि दंबग किस्म्‌, का है, ग्राम प्रधान ने अपनी गड़बड़ी छिपाने के लिये सी०डी०ओ०, बी०डी०ओ० के दबाव में उलटा जांच टीम पर पैसा मांगने का आरोप लगाते हुये थाने में तहरीर तक दे डाली । इस प्रकार के जांचों में पाये गये इन तथ्यों से मनरेगा की हकीकत का खुलासा स्पष्ट रूप से सामने आया । इस योजना के तहत किस तरह जिलों के ग्राम प्रधान सचिव से लेकर आला अधिकारियों तक मिलीभगत की कमीशनखोरी चल रही है, जिसकी निगरानी करने वाली निगरानी कमेटी व उसके अधिकारी कोई भी कार्यवाही नहीं कर पा रहे हैं । यही हाल सबके सभी जिलों में चल रहा है । शायद इसी धांधली की भनक निगरानी कमेटी व ग्राम विकास विभाग को लग नहीं पा रही है और भनक लग भी रही है तो कार्यवाही में कोताही हो रही है जिससे निचले स्तर पर पदाधिकारी बिना डर के मनमुताबिक मनरेगा संबंध में जांच टीम ने मनरेगा राज्य स्तरीय मानीटरिंग टीम को अपना आरोप पत्र सौंप दिया है ।
मनरेगा के नाम पर घपले का अंत नजर नहीं आ रहा है । कनवर्जन के नाम पर हेराफेरी । नियम है कि जिस विभाग में अपना बजट न हो वहां पर काम मनरेगा से कराया जाए, किन्तु यहां ऐसा नहीं है । विभाग में बजट होने के बावजूद मनरेगा से पैसा लेकर उसे निबटाने का मामला प्रकाश में आया । राज्य गुणवत्ता मानीटर कमेटी के अध्यक्ष विनोद भांकर चौबे ने जांच रिपार्ट में चौंकाने वाले तथ्य प्रकाश में लाये हैं ।
कानपुर देहात में 14 ऐसे विभागों को 15 मार्च 2010 तक के लिए 2.236 लाख की धनराशि मनरेगा से स्वीकृत की गयी जिनके पास अपना लाखों का बजट था । इसमें 796 लाख रूपये पहली किस्त में तथा बाकी अन्य तीन किस्तों में अवमुक्‍त किये गये । कई विकास खंडों में इस धनराशि का उपयोग मिट्‍टी की खोदाई आदर्श तालाबों के निर्माण, सड़क की भराई आदि में दिखाया गया जबकि स्थलीय निरीक्षण करने पर पता चला कि जहां पर मिट्‌टी का काम दिखाया गया है वहां किसी अन्य योजना में पहले से ही मिट्‌टी का काम हो चुका था । फर्जी मास्टर रोल दिखाकर 4 लाख 13 हजार की धनराशि हड़पने की रिपोर्ट में जिक्र किया गया है । कपराहट ब्लाक में जांच अधिकारी जब वहां पहुंचे तो विभिन्‍न तारीखों में मास्टर रोल पर पचास से अधिक मजदूर ऐसे दिखाये गये जिनका नाम पता फर्जी पाया गया किन्तु उनके नाम पर एक-एक महीने का पैसा निकला हुआ दिखाया गया । जांच अधिकारी ने इसमें 30 लाख से अधिक का घपला है ।
प्रदेश के ग्रामीण विकास मंत्री दद्‌दू प्रसाद के गृह जनपद चित्रकूट, कर्वी में मनरेगा के तहत घपले बाजी का आलम यह है कि कोई कुछ करे लेकिन उसके विरूद्ध कार्यवाही नहीं होती है यदि कभी कार्यवाही हुई तो बाद में लीपा पोती करके बचा दिया गया । जिसका परिणाम यह है कि घपलों पर घपले होते चले जा रहे हैं । मनरेगा चैकडेम में लग रही घटिया सामाग्री मामले में चित्रकूट के जिलाधिकारी ने गंभीरता से भले ही लेते हुये इसकी जांच हेतु अधिशासी अभियंता सिंचाई विभाग प्रखण्ड कर्वीभूमि संरक्षण अधिकारी रामगंगा कामण्ड व अपर अभियंता डी.आर.डी.ए. की टीम गठित की गयी । टीम द्वारा गत 30 अप्रैल को स्थानीय जांच की गयी जिसमें पाया गया कि विकास खण्ड मानिकपुर के अन्तर्गत मारकुण्डी रेन्ज किहुनियां वीट में एक पक्‍का चैकडेम का निर्माण हो रहा था । यह कार्य वित्तीय वर्ष 2009-10 का लागत धनराशि 2 लाख थी । क्षेत्राधिकारी मारकुण्डी वन्य जीव रेन्ज मारकुण्डी चित्रकूट मोनो पर प्राक्‍कलन के कार्य साथ उपस्थित रहे, संबंधित वन क्षेत्राधिकारी द्वारा उक्‍त कार्य से संबंधित ग्राम पुस्तिका, मास्टर रोल व व्यय बाउचर के संबंध में बताया कि प्राक्‍कलन आदि कैमूर रनेज मिर्जापुर कार्यालय में है ।
जांच में केस्ट की लम्बाई 10.15 मी०, केस्ट टाप की चौड़ाई 1.50 मी० विगवाल की लम्बाई 8.25 मी० विगवाल की चौड़ाई 0.70 मी० है । वन क्षेत्राधिकारी रानीपुर वन्य जीव विहार (सेंचुरी) ने कार्य का प्राक्‍कलन, व्यय बाउचर मौके पर नहीं दिखाये और न ही कार्य प्राक्‍कलन के अनुसार पाया गया । यह कार्य मनरेगा के द्वारा कराया गया कि जानकारी हुयी । विभाग के पास 36 लाख पड़ा है और डेढ़ करोड़ की मांग की गयी है । जब कि विभाग द्वारा पूर्व में कराये गये कार्यों का अभी तक सत्यापन नहीं कराया गया ।

Saturday, September 18, 2010

कश्मीर का दर्द



बरसों से कह रहे हैं पर कोई सुनता ही नहीं
लोग प्रदर्शन क्यों करते हैं? जवाब सरल है वे अपनी बात रखना चाहते हैं? लोग विरोध क्यों करते हैं? जाहिर है जब उनके साथ कुछ गलत होता है । घाटी के लोगों के साथ गलत भी हुआ और फिर किसी ने उनकी सुनी भी नहीं । जब वे हालात से मजबूर होकर सड़कों पर उतर आए तो उन्हें कुचलने की कोशिशें भी की गईं । ऐसे में आग भड़केगी नहीं तो क्या होगा? पर कश्मीर में आज जो ज्वाला दहक रही है उसकी चिंगारी तो दशकों पहले सुलग गई थी ।

महाराजा हरीसिंह के शासनकाल में कश्मीर की राजनीति में गहमागहमी मची हुई थी । बहुसंख्यक होने पर भी मुस्लिम समुदाय अत्याधिक पिछड़ा अनपढ़ और गरीब था । इन अन्याय को लेकर कहीं-कहीं से दबी हुई आवाजें उठने लगी थीं । इन आवाजों को बल मिला १९३० में शेख अब्दुला के सियासत की राजनीति में कदम रखने से ।

पहले-पहल 1939 में लोगों का गुस्सा भड़का, जब उत्तर प्रदेश से आए कट्‌टरपंथी नेता अब्दुल कादिर ने श्रीनगर की जामा मस्जिद में भड़काऊ भाषण देते हुए लोगों को महाराजा के खिलाफ जेहाद छेड़ देने को कहा । इस एवज में उनको गिरफ्तार कर दिया गया । इस वाक्ये से महाराज की नींद खुली और इन्होंने रियासत के विभिन्‍न इलाकों से शेख अब्दुल्ला, मौलाना मसूद मौ० यूसुफ शाह समेद लोगों के १७ प्रतिनिधियों को वार्ता के लिए बुलाया । पर ये वार्ता विफल हो गई नतीजतन इन नेताओं ने लोगों से विद्रोह जारी रखने की अपील की । ये सब देखते हुए महाराज ने सभी १७ नेताओं को गिरफ्तार कर दिया । फिर क्या था लोग सड़कों पर उतर आए और लगातार १७ दिनों तक कश्मीर में जनजीवन ठप हो गया । आखिरकार मजबूर होकर सरकार को सभी नेताओं को रिहा करना पड़ा ।

13 जुलाई 1939 को कश्मीर की राजनीति हमेशा के लिए बदल गई । अब्दुल कादिर पर मुकदमे के दौरान भारी भीड़ ने श्रीनगर की सेंट्रल जेल पर धावा बोल दिया । भीड़ को खदेड़ने के लिए पुलिस ने गोलियां चलाना शुरू कर दिया, जिसमें 7 लोगों की जान चली गई । इन लोगों को दफन करते समय प्रदर्शन में और 10 लोग पुलिस की गोली का शिकार हुए । रातों-रात शेख कश्मीर के निर्विवादित नेता घोषित कर दिए गए । और घाटी में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला जोर पकड़ने लगा । 2 सितम्बर 1939 को महाराजा ने शेख को श्रीनगर के हरिप्रभात महल में कैद कर दिया । ये सब अभी थमा नहीं था कि भारत, पाकिस्तान की आज़ादी की खबरों के चलते घाटी में भी सरगर्मियाँ बढ़ने लगीं। भारत? पाकिस्तान? या फिर आजाद रियासत? इंडियन इंडिपेन्डस एक्ट १९४७ के तहत सभी ५६५ रजवाड़ों को भारत या पाकिस्तान में से किसी को चुनना था । उनके पास स्वतंत्र रहने का विकल्प नहीं था ।

महाराजा हरीसिंह पर दोनों तरफ से दबाव बन रहा था, पर हरी सिंह रियासत को आजाद रखने के हक में थे । इन्हीं पशोपेश के हालात में २२ अक्टूबर को पाकिस्तान ने लगभग १५ से २० हजार कबयाली भेजकर रियासत में घुसपैठ कर ली । मुज्जफराबाद पर कब्जा करने के बाद लोगों को मारते हुए ये कबायली घाटी के दूसरे हिस्सों की ओर बढ़ रहे थे । लोगों ने उनका जमकर विरोध किया । इस बीच नेता मकबूल शेरवानी और मास्टर अब्दुल अजीज जैसे लोग अपने लोगों को बचाते हुए शहीद हो गए । 26 अक्टूबर, 1947 को महाराजा ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए । २७ को भारतीय फौजें कश्मीर पहुंची । युद्ध विराम के समय दक्षिण कश्मीर (मुज्जफराबाद) में पाक सेनाएं थीं । मामला UN पहुंचा तो जनमत (Plebicite) की बात उठी । रियासत के लोगों से वादा किया गया कि जनमत के जरिए उनके भाग्य का फैसला किया जाएगा ।

तीन टुकड़ों में बंटा हुआ जम्मू कश्मीर - रियासत जम्मू-कश्मीर का कुल क्षेत्रफल 2, 22, 236 कि.मी. था, जिसमें से 78, 114 कि.मी पर पाकिस्तान का कब्जा है तो 42, 684 कि.मी. चीन ने हथिया लिया और बाकी 101, 448 कि.मी भारत के पास है । 18 अक्टूबर, 1949 को Article 370 पारित किया गया और राज्य को सदर-ए-रियासत का दर्जा दिया गया ।

9 अगस्त, 1953 को प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला को भारत के खिलाफ साजिश करने के लिए गिरफ्तार किया गया और उनकी जगह बख़्शी गुलाम मोहम्मद को प्रधानमंत्री बनाया गया । रियासत एक बार फिर से भड़क उठी । कश्मीर और डोडा के इलाकों में लोगों ने शेख के समर्थन में जबरदस्त हिंसक प्रदर्शन किए । जनमत की माँग जोर पकड़ने लगी और हवाओं का रूख भारत के खिलाफ होने लगा । पर धीरे-धीरे सब शांत हो गया और लम्बे समय तक इलाका शान्त और खुशहाल बना रहा । इसके बावजूद राज्य में पिछड़ापन, अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी अभी भी कायम भी । 90 के दशक में पाकिस्तान ने इन्हीं कमजोरियों का फायदा उठतए हुए धर्मनिरपेक्ष कश्मीरियों का फायदा उठाते हुए धर्मनिरपेक्ष कश्मीरियों के जहन में कट्‌टरता और धर्म के प्रति जज्बे को सुलगाया और सेकड़ों युवकों को लाखों की नौकरियाँ दीं । काम था हथियार उठाना, जिसके लिए उन्हें सीमा पार कुछ महीनों की ट्रेनिंग दी जाती थी और इस तरह सक्रिय आतंकवादी तैयार किए गए । सौहार्द्र और भाईचारे की मिसाल कश्मीर में सब कुछ बदल गया । हजारों कश्मीरी पंडित रातों रात अपना सब कुछ छोड़ छाड़ घाटी से हमेशा के लिए पलायन कर गए । आतंकियों से निपटने के लिए घाटी में भारी सेना तैनात की गई । इसके बाद जो हुआ वे कश्मीरियों के लिए डरावने सपने से कम न था । सुरक्षा बल हर कश्मीरी को आतंकवादी की नजर से देखती थी तो आतंकियों से भी उन्हें रहम की कोई उम्मीद न थी । चारों तरफ से घिरा, कश्मीर हैरान सी हालात में था । कोई भी उसे समझने सुनने को तैयार नहीं ।

हाल ही में कश्मीर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों का जायजा लेने के लिए जब मैंने कुछ घाटी वासियों से बात की तो उनका दर्द कुछ यूं बयां हुआ-

* हमें इंसान नहीं समझा जाता ः हर एक घाटीवासी को शक की निगाह से देखा जाता है । निर्दोष होने पर भी हमें गुनहगारों की तरफ ट्रीट किया जाता है । जब चाहे घर से उठा लिया, जब चाहे रास्ते पर ही थप्पड़ जड़ दिया, जब चाहे रिमांड, या फिर इन्टरोगेशन । हम परेशान हो गए हैं । अपने ही इलाके में उन लोगों के रहमों करम पर जी रहे हैं जो हमें इंसान ही नहीं समझते ।" * हम अपने लोग नहीं हैं न?

* भारत की खाते हो, की ताने? हमें ताने दिए जाते हैं कि हम भारत की खाते हैं और उसी का विरोध करते हैं । फिर इतना खाने से हमारी सेहत क्यूं नहीं सुधरी, कहाँ है विकास? हमारे पास किसी भी चीज की कमी नहीं । सिंधु, चिनाब, जेहलम हमें जीवन देती है । हरे भरे जंगल सेब, लीची, बादाम, अखरोट, केसर दुनिया भर में मशहूर है, कालीन पशमीना दस्तकारी का कोई जवाब नहीं । फिर धरती के स्वर्ग में रहने वाले हम इतने गरीब क्यों हैं? है कोई जवाब?

* अपने ही प्रदेश में बेगाने ः पीढ़ियों से कश्मीर में रहने वालों को बार-बार अपनी पहचान उन लोगों को देनी पड़ती है, जो जानते भी नहीं कि कश्मीर क्या है, कितना खराब लगता है जब घर से बाहर निकलते ही हमें रोज तलाशियों और इन्टरोगेशन झेलना पड़ता है ।

* मीडिया पर बैन ः जब लोकल टीवी चैनल और अखबारों ने हमारी आवाज को उठाना चाहा तो उनकी आवाज को भी दबा दिया गया । जब मीडिया जैसी शक्‍ति को दबाया जा सकता है, तो आम लोगों की बिशाख ही क्या है? यहां तक कि कम्यूनिकेशन सोर्सिस को भी सील किया जा रहा है ।संदेश भेजना भी बन्द कर दिया गया । घाटी में तो कई जारी मोबाइल भी ब्लाक है और इंटरनेट पर भी बंदिशें हैं । अगर सेना के लोग इन सबका उपयोग करते हैं तो इसका क्या मतलब वे बैन कर दी जाए । ताज-होटल पर हमले के लिए आतंकी किश्तियों में आए थे न फिर किश्तियों पर भी बैन लगा देना चाहिए न?

* बेरहमी की हद जब किसी का बच्चा मरता है, तो उसको कैसे कहें कि वे चुप रहे यहाँ उनसे हमदर्दी से तो दूर गोलियों से बात की जाती है । और जब किसी बात की हद हो जाती है न तो लोग मजबूरी में सड़क पर उतर जाते हैं ।

* कोई नहीं सुनता कोई नहीं समझता ः कश्मीरियों को कोई भी अपना हितैशी नहीं लगता, क्योंकि नेता तो कभी भी खुले मन से उनका दुःख दर्द समझने नहीं आए । कोई हमारी समस्याओं पर गम्भीरता से विचार नहीं करता । आखिरकार हम अपनी जान पर खेलकर सड़कों पर न आएं तो क्या करें । जिल्लत की जिन्दगी से मौत भली ।

लोगों से बात करने पर उनके करीबी हाल जानने पर मुझे तो एक बात साफ-साफ समझ आ रही है । प्रधानमंत्री चाहे कुछ भी करलें, जितनी कमेटियां बना लें, जितनी भी सेनाएं भिजवा लें, जितनी भी सर्वदलीय बैठकें बुलवां लें प्रदर्शनकारियों का गुस्सा शांत नहीं होने वाला । इस समस्या का एक ही हल है लोगों से सीधे बात करना । इस मीटिग में बेशक बिचौलियों को भी बुलाया जाए पर बात सीधा लोगों के साथ होनी चाहिए । जब तकलीफ लोगों को है तो उन्हें इस बारे में क्यूं नहीं पूछा जा रहा । गाँव-गाँव शहर-शहर जाकर प्रदर्शनकारियों से बात करनी होगी । जमीनी तौर पर लोगों से जुड़ना होगा । बैठकें बुलाओ, चौपालें बुलाओ, कुछ भी करो पर लोगों से जुड़ना होगा । कम्यूनिकेशन गैप की ये खाई बढ़ती जा रही है और कश्मीर समस्या की सबसे गहरी जड़ भी यही है । अगर सच में समस्या को सुलझाना है तो गंभीरता से मसले को लो और वहां के लोगों के लिए वक्‍त निकालो ।



--जय हिन्द, जय भारत

Thursday, September 9, 2010

अमन और शांति का संदेश देती ईद

मुसलमानों का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्यौहार है ईद ! ये त्यौहार आपसी भाई-चारे, प्यार, सद्‌भाव, अमन और शांति का संदेश देता है । ईद दुनिया भर में धूमधाम और उल्लास से मनाई जाती है । भारत जैसे देश में इसका और भी महत्व हैं क्योंकि यहां बहुभाषी, बहुधर्मी और तरह-तरह से पूजा करने वाले और अनेक भगवानों को मानने वाले लोग रहते हैं । इन सब के बीच सौहार्द्र का संदेश देती है ईद ।
त्यौहार तो और भी मनाये जाते हैं लेकिन इसी त्यौहार का विशेष महत्व क्यों है? ईद से पहले रमजान का महीना होता है । इस महीने में खुदा की तरफ से रहमतों के द्वार खोल दिये जाते हैं । दो तरफ के दरवाजे बंद कर दिये जाते हैं और जन्‍नत के द्वार खोल दिये जाते हैं क्योंकि इस महीने में बुरे आचरण वाला मुसलमान भी खुदा से डरने लगता है और बुराई का रास्ता छोड़ मस्जिद की राह पकड़ लेता है । यानी जो मुसलमान कभी-कभी नमाज़ पढ़ते हैं वे भी मस्जिद जाने लगते हैं । रोजे इंद्रियों पर जीत का प्रतीक हैं । तमाम जटिलताओं और दुश्‍वारियों के बावजूद मुसलमान रोजे रखता है और ईद का इंतजार करता है । यह इंतजार ठीक उसी तरह होता है जैसे कोई छात्र साल भर की पढ़ाई के बाद अपने परीक्षा परिणाम का इंतजार करता है । जब उसे पता चलता है कि वह पास हो गया है तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता । इसी तरह मुसलमान ३० रोजे रखने के बाद ईद का इंतजार करता है । रोजे रखकर वह इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर चुका होता है और इस खुशी में वह ईद मनाता है ।
आज के युग में ईद का महत्व और बढ़ जाता है क्योंकि आज लोगों के सामने भौतिकवादी चीजों की अपरम्पार है । सेक्सी वातावरण है । ऐसी तमाम जटिलताओं में पाक जीवन जीना आसान नहीं है । ईद की खुशी का एक कारण यह है कि मुसलमान अपनी हैसियत के अनुसार जकात्‌, फित्रा या खैरात देकर उन गरीब मुसलमानों को भी ईदखुशी में शामिल करता है जो पूरी तरह अयोग्य हैं, बेहद गरीब हैं । ऐसे गरीब लोग भी ईद पर खुशी मना लेते हैं और खुद को ईद की नमाज़ में बड़े लोगों के साथ खड़ा पाता है । हांलाकि किसी भी नमाज़ में छोटे, बड़े, अमीर, गरीब का फर्क नहीं होता, लेकिन ईद की खुशी अलग मायने रखती है । ईद की नमाज़ उस खुदा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना है जिसकी बदौलत उसने उसकी आज्ञा का पालन किया । मुझे याद किया और रोके रखा ।
ईद और ईद के महीने का इसलिए भी महत्व है कि इसी महीने कुरान अवतरित हुआ था । पैगम्बर हज़रत मोहम्मद (सल०) के इस महीने और ईद को बहुत दिया था क्योंकि ईद पर गरीबों को खुशियां मनाने का मौका मिलता है । जो लोग साल भर तक दुश्मनी रखते हैं वे भी अपनी रंजिश भूलकर ईद पर गले मिल लेते हैं । इसलिए इसे प्यार और अमन का त्यौहार माना गया है । दर‍असल ईद का संदेश वही है जो इस्लाम का है । इस्लाम कहता है कि इंसानों के मार्गदर्शन का हक और इंसान के मालिक होने का हक केवल उसे हासिल है जिसने उसे पैदा किया है, जो सारे संसार का रब है । खुदा ही हर गलती से खाली और कमी से पाक है । खुदा में व्यक्‍तित्व हित नहीं है । इसलिए उसका मार्ग दर्शन हर कौम, देश और व्यक्‍ति के लिए समान रूप से हितकारी है । उसके मार्गदर्शन से ही जन्‍नत(स्वर्ग) की प्राप्ति संभव है ।
जानकारों के अनुसार ईद २ मार्च ६२४ ई० यानी पहली शब्बाल सन २ हिजरी से लगातार मनाई जा रही है । ईद की सबसे पहले अल्लाह के आखिरी नबी हजरत मोहम्मद (स०) ने अपनी जान न्यौछावर करने वाले साथियों (सहाबियों) के साथ महीना मुनव्वरा से बाहर मनाई थी । उस समय आपकी उम्र ५२ साल ६ महीने और २० दिन थी । इब्ने हन्‍नान के अनुसार हिज़ात के दूसरे साल जब अल्लाह के रसूल मोहम्मद (स०) बद्र की लड़ाई में विजय प्राप्त करने के बाद मदीना तशरीफ लाये तो उसके आठ दिन बाद ईद मनाई गयी थी, क्योंकि रमजान के रोज़े उसी साल मुसलमानों पर फ़र्ज किये गये थे ।
ईद के दिन अमीर ही नहीं गरीब भी नये कपड़े पहनते हैं । ईद मनाते हैं और खुदा का शुक्राना अदा करते हैं । ईद के दिन खुदा अपने बंदों की जायज मांगों को जरूर पूरा करता है ऐसा हर्दासों में आया है और मुसलमानों क अविश्‍वास भी है ।