Thursday, September 9, 2010

अमन और शांति का संदेश देती ईद

मुसलमानों का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्यौहार है ईद ! ये त्यौहार आपसी भाई-चारे, प्यार, सद्‌भाव, अमन और शांति का संदेश देता है । ईद दुनिया भर में धूमधाम और उल्लास से मनाई जाती है । भारत जैसे देश में इसका और भी महत्व हैं क्योंकि यहां बहुभाषी, बहुधर्मी और तरह-तरह से पूजा करने वाले और अनेक भगवानों को मानने वाले लोग रहते हैं । इन सब के बीच सौहार्द्र का संदेश देती है ईद ।
त्यौहार तो और भी मनाये जाते हैं लेकिन इसी त्यौहार का विशेष महत्व क्यों है? ईद से पहले रमजान का महीना होता है । इस महीने में खुदा की तरफ से रहमतों के द्वार खोल दिये जाते हैं । दो तरफ के दरवाजे बंद कर दिये जाते हैं और जन्‍नत के द्वार खोल दिये जाते हैं क्योंकि इस महीने में बुरे आचरण वाला मुसलमान भी खुदा से डरने लगता है और बुराई का रास्ता छोड़ मस्जिद की राह पकड़ लेता है । यानी जो मुसलमान कभी-कभी नमाज़ पढ़ते हैं वे भी मस्जिद जाने लगते हैं । रोजे इंद्रियों पर जीत का प्रतीक हैं । तमाम जटिलताओं और दुश्‍वारियों के बावजूद मुसलमान रोजे रखता है और ईद का इंतजार करता है । यह इंतजार ठीक उसी तरह होता है जैसे कोई छात्र साल भर की पढ़ाई के बाद अपने परीक्षा परिणाम का इंतजार करता है । जब उसे पता चलता है कि वह पास हो गया है तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता । इसी तरह मुसलमान ३० रोजे रखने के बाद ईद का इंतजार करता है । रोजे रखकर वह इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर चुका होता है और इस खुशी में वह ईद मनाता है ।
आज के युग में ईद का महत्व और बढ़ जाता है क्योंकि आज लोगों के सामने भौतिकवादी चीजों की अपरम्पार है । सेक्सी वातावरण है । ऐसी तमाम जटिलताओं में पाक जीवन जीना आसान नहीं है । ईद की खुशी का एक कारण यह है कि मुसलमान अपनी हैसियत के अनुसार जकात्‌, फित्रा या खैरात देकर उन गरीब मुसलमानों को भी ईदखुशी में शामिल करता है जो पूरी तरह अयोग्य हैं, बेहद गरीब हैं । ऐसे गरीब लोग भी ईद पर खुशी मना लेते हैं और खुद को ईद की नमाज़ में बड़े लोगों के साथ खड़ा पाता है । हांलाकि किसी भी नमाज़ में छोटे, बड़े, अमीर, गरीब का फर्क नहीं होता, लेकिन ईद की खुशी अलग मायने रखती है । ईद की नमाज़ उस खुदा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना है जिसकी बदौलत उसने उसकी आज्ञा का पालन किया । मुझे याद किया और रोके रखा ।
ईद और ईद के महीने का इसलिए भी महत्व है कि इसी महीने कुरान अवतरित हुआ था । पैगम्बर हज़रत मोहम्मद (सल०) के इस महीने और ईद को बहुत दिया था क्योंकि ईद पर गरीबों को खुशियां मनाने का मौका मिलता है । जो लोग साल भर तक दुश्मनी रखते हैं वे भी अपनी रंजिश भूलकर ईद पर गले मिल लेते हैं । इसलिए इसे प्यार और अमन का त्यौहार माना गया है । दर‍असल ईद का संदेश वही है जो इस्लाम का है । इस्लाम कहता है कि इंसानों के मार्गदर्शन का हक और इंसान के मालिक होने का हक केवल उसे हासिल है जिसने उसे पैदा किया है, जो सारे संसार का रब है । खुदा ही हर गलती से खाली और कमी से पाक है । खुदा में व्यक्‍तित्व हित नहीं है । इसलिए उसका मार्ग दर्शन हर कौम, देश और व्यक्‍ति के लिए समान रूप से हितकारी है । उसके मार्गदर्शन से ही जन्‍नत(स्वर्ग) की प्राप्ति संभव है ।
जानकारों के अनुसार ईद २ मार्च ६२४ ई० यानी पहली शब्बाल सन २ हिजरी से लगातार मनाई जा रही है । ईद की सबसे पहले अल्लाह के आखिरी नबी हजरत मोहम्मद (स०) ने अपनी जान न्यौछावर करने वाले साथियों (सहाबियों) के साथ महीना मुनव्वरा से बाहर मनाई थी । उस समय आपकी उम्र ५२ साल ६ महीने और २० दिन थी । इब्ने हन्‍नान के अनुसार हिज़ात के दूसरे साल जब अल्लाह के रसूल मोहम्मद (स०) बद्र की लड़ाई में विजय प्राप्त करने के बाद मदीना तशरीफ लाये तो उसके आठ दिन बाद ईद मनाई गयी थी, क्योंकि रमजान के रोज़े उसी साल मुसलमानों पर फ़र्ज किये गये थे ।
ईद के दिन अमीर ही नहीं गरीब भी नये कपड़े पहनते हैं । ईद मनाते हैं और खुदा का शुक्राना अदा करते हैं । ईद के दिन खुदा अपने बंदों की जायज मांगों को जरूर पूरा करता है ऐसा हर्दासों में आया है और मुसलमानों क अविश्‍वास भी है ।

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