Saturday, May 28, 2011

शहद आपका खूबसूरत साथी

शहद की चिकित्सीय महिमा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है । अधिक से अधिक अनुसंधानकर्त्ता अब इस प्रयास की तरफ बढ़ रहे हैं कि शहद पर जीवनशैली के रोगों का वास्तविक उपचारक के रूप में विश्‍वास किया जा सकता है । और यह उपचार प्राकृतिक है । शहद में भरपूर ऊर्जा :- सुबह गरम पानी के गिलास में आर्गेनिक शहद व आर्गेनिक साइडर सिरके का मिश्रण मिलाकर लेने से भरपूर ऊर्जा मिलती है । शहद के नियमित सेवन से गठिए का रोग भी दूर हो जाता है ।

कैंसर कोलेस्ट्रॉल व दिल की बीमारियां :- ब्रैड पर शहद व दालचीनी के पाउडर को मिलाकर जैम की जगह प्रयोग करके नियमित रूप से खाने से कोलेस्ट्रॉल कम होता है । और इससे दिल के दौरों को रोका जा सकता है । पेट व हड्डियों के बढ़े हुए कैंसर को शहद के एक बड़े चम्मच व एक छोटे चम्मच दालचीनी का पाउडर मिलाकर 3 महीने तक दिन में तीन बार लेने से कम किया जा सकता है ।

शहद और त्वचा :- शहद में वे गुण होते हैं, जो त्वचा के उपचार व पुनर्योवन में सहायता कर सकते हैं । शहद के प्राकृतिक गुणों के कारण कई सौंदर्य प्रसाधन ब्रांडों ने इसे स्किन क्रीमों, स्किन लोशनों आदि में शामिल किया है । शहद में मौजूद कार्बोहाइड्रेट की प्रचुर स्थिति किसी भी व्यक्‍ति को ऊर्जा का तुरंत स्त्रोत उपलब्ध कराता है ।

शहद के अलावा अन्य अधिकांश मिठास वाले पदार्थों के विपरीत शहद में विटामिनों, खनिजों, एमिनो अम्लों व एंटी आक्सीडेंटों की व्यापक श्रेणियों की कम मात्राएं होती हैं, जो प्रत्येक मानव शरीर के लिए आवश्यक है । आधुनिक विज्ञान अब शहद को एंटीमाइक्रोबॉयल एजेंट के रूप में मान्यता देता है ।

Thursday, May 26, 2011

एडवरटाइजिंग में है अवसर

कोई भी कंपनी चाहे कितना भी अच्छा उत्पाद बना ले उसे प्रचार-प्रसार की जरूरत पड़ती ही है । इस प्रचार-प्रसार की प्रक्रिया में उसकी सही तरीके से मार्केटिंग की जाती है, जिससे वो उत्पाद बाजार में अच्छी तरह से स्थापित हो जाए और उपभोक्‍ताओं तक अपनी पहुँच बना ले । इसी काम को करने के लिए एडवरटाइजिंग या विज्ञापन एजेंसी बनाई जा रही है । आज व्यवसाय में प्रतियोगिता बढ़ रही है । जितनी भी उत्पादक कंपनी हैं, वो अपने उत्पादों को जन-जन तक पहुँचाना चाहती हैं और इसमें विज्ञापन एजेंसी उनकी सहायता कर रही है । विज्ञापन या एडवरटाइजिंग का बाजार बड़ी तेजी से बढ़ रहा है लिहाजा रोजगार के लिए भी यह एक बेहतर विकल्प साबित हो रहा है ।

कोर्स और योग्यता :-

एडवरटाइजिंग एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी पढ़ाई में काफी विविधता है । यह क्षेत्र लोगों की क्रिएटिव प्रकृति पर निर्भर करता है, क्योंकि इसमें विशेषज्ञ और कोर्स करने के अलग-अलग प्रभाग हैं । यह प्रभाग अमूमन कापीराइटर्स, स्क्रिप्टराइटर्स, फोटोग्राफर, डिजायनर्स आदि में बँटे होते हैं । अब इन्हीं क्षेत्रों में डिप्लोमा, सर्टिफिकेट और स्नातक स्तर की पढ़ाई होती है । इस क्षेत्र में अलग-अलग विषय के लोग आते हैं इसलिए इसमें कोर्स और योग्यता के मानक भी अलग-अलग ही होते हैं । मसलन एडवरटाइजिंग एजेंसी में कला प्रभाग होता है जिसके लिए फाइन आर्ट्‌स में स्नातक (B.F.A) डिग्री होना अनिवार्य है । कॉपीराइटर्स के लिए डिप्लोमा इन क्रिएटिव राइटिंग होना चाहिए । इसके अलावा मार्केटिंग के लिए प्रबंधन डिग्री की भी आवश्यकता होती है । इन सबसे अलग मीडिया प्लान २ ग्राफिक्स पब्लिक रिलेशन से जुड़े कोर्स भी इस क्षेत्र के लिए उपयोगी है ।

रोजगार के क्षेत्र :-

भारतीय बाजार, अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बदल चुका है, क्योंकि यहाँ बहुराष्ट्रीय कंपनियां तेजी से निवेश कर रही हैं । इस वजह से एडवरटाइजिंग प्रोफेशनल्स के लिए रोजगार के पर्याप्त अवसर है । इस क्षेत्र में आम लोगों की योग्यता, एजेंसी का कार्य-क्षेत्र और कारोबार पर निर्भर करता है । वैसे यहाँ कोई भी फ्रेशर १० हजार से १५ हजार से शुरूआत कर सकता है और ये वेतन कार्य और अनुभव के आधार पर बढ़ता भी है । कारोबार भी खड़ा किया जा सकता है या फिर स्वतंत्र रूप से काम किया जा सकता है ।

प्रशिक्षण संस्थान :-

1. नेशनल स्कूल ऑफ एडवरटाइजिंग, नई दिल्ली
2. इंडियन इंस्टीट्‌यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन, नई दिल्ली
3. जोवियर इंस्टीट्‌यूट ऑफ कम्युनिकेशन, मुम्बई ।


क्या है एडवरटाइजिंग :-

किसी भी उत्पाद के बारे में उपभोक्‍ता के मन में उसके प्रति अच्छी छवि बनाने की प्रक्रिया ही एडवरटाइजिंग कहलाती है । उत्पादक वर्गों में बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा के कारण यह प्रक्रिया उत्पादक कंपनियों के लिए आवश्यक हो जाती है । एडवरटाइजिंग एजेंसी भी यही काम करती है जिससे उत्पाद के लिए निश्‍चित ग्राहक तैयार हो सकें । आजकल हर कंपनी में एक एडवरटाइजिंग प्रभाग होता है जो उसके उत्पादों को उपभोक्‍ताओं तक पहुँच आसान करती है

इसके अलावा स्वतंत्र रूप से एडवरटाइजिंग एजेंसी बनाई जाती है जो विभिन्‍न कंपनियों के लिए काम करती है ।

Friday, May 20, 2011

बुजुर्ग घर की रौनक है

बुजुर्ग शब्द दिमाग में आते ही उम्र व विचारों से परिपक्व व्यक्‍ति की छवि सामने आती है । बुजुर्ग अनुभवों का वह खजाना है जो हमें जीवन पथ के कठिन मोड़ पर उचित दिशा निर्देश करते हैं । परिवार के बुजुर्ग लोगों में नाना-नानी, दादा-दादी, माँ-बाप, सास-ससुर आदि आते हैं । बुजुर्ग घर का मुखिया होता है इस कारण वह बच्चों, बहुओं, बेटे-बेटी को कोई गलत कार्य या बात करते हुए देखते हैं तो उन्हें सहन नहीं कर पाते हैं और उनके कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं जिसे वे पसंद नहीं करते हैं । वे या तो उनकी बातों को अनदेखा कर देते हैं या उलटकर जवाब देते हैं । जिस बुजुर्ग ने अपनी परिवार रूपी बगिया के पौधों को अपने खून पसीने रूपी खाद से सींच कर पल्लवित किया है, उनके इस व्यवहार से उनके आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचती है ।

एक समय था जब बुजुर्ग को परिवार पर बोझ नहीं बल्कि मार्ग-दर्शक समझा जाता था । आधुनिक जीवन शैली, पीढ़ियों में अन्तर, आर्थिक-पहलू, विचारों में भिन्‍नता आदि के कारण आजकल की युवा पीढ़ी निष्ठुर और कर्तव्यहीन हो गई है । जिसका खामियाजा बुजुर्गों को भुगतना पड़ता है । बुजुर्गों का जीवन अनुभवों से भरा पड़ा है, उन्होंने अपने जीवन में कई धूप-छाँव देखे हैं जितना उनके अनुभवों का लाभ मिल सके लेना चाहिए । गृह-कार्य संचालन में मितव्ययिता रखना, खान-पान संबंधित वस्तुओं का भंडारण, उन्हें अपव्यय से रोकना आदि के संबंध में उनके अनुभवों को जीवन में अपनाना चाहिए जिससे वे खुश होते हैं और अपना सम्मान समझते हैं ।

बुजुर्ग के घर में रहने से नौकरी पेशा माता-पिता अपने बच्चों की देखभाल व सुरक्षा के प्रति निश्‍चिंत रहते हैं । उनके बच्चों में बुजुर्ग के सानिध्य में रहने से अच्छे संस्कार पल्लवित होते हैं । बुजुर्गों को भी उनकी निजी जिंदगी में ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए । उनके रहन-सहन, खान-पान, घूमने-फिरने आदि पर रोक-टोक नहीं होनी चाहिए । तभी वे शांतिपूर्ण व सम्मानपूर्ण जीवन जी सकते हैं । बुजुर्गों में चिड़चिड़ाहट उनकी उम्र का तकाजा है । वे गलत बात बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं, इसलिए परिवार के सदस्यों को उनकी भावनाओं व आवश्यकता को समझकर ठंडे दिमाग से उनकी बात सुननी चाहिए । कोई बात नहीं माननी हो तो, मौका देखकर उन्हें इस बात के लिए मना लेना चाहिए कि यह बात उचित नहीं है । सदस्यों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई ऐसी बात न करें जो उन्हें बुरी लगे ।

बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार करने से घर में अशांति बनी रहती है । इस जीवन संध्या में उन्हें आदर व अपनेपन की जरूरत है । इनकी छत्रछाया से हमारी सभ्यता व संस्कृति जीवित रह सकती है । बच्चों को अच्छे संस्कार व स्नेह मिलता है । बालगंगाधर तिलक ने एक बार कहा था कि ‘तुम्हें कब क्या करना है यह बताना बुद्धि का काम है, पर कैसे करना है यह अनुभव ही बता सकता है ।’ अंत में-

‘फल न देगा न सही,
छाँव तो देगा तुमको
पेड़ बूढ़ा ही सही
आंगन में लगा रहने दो ।’

Saturday, May 14, 2011

उदारवादी नेताओं पर सेना का दबदबा

पाकिस्तान में अल कायदा, तालिबान और अन्य आतंकवादी संगठनों को सहायता पहुंचाने वाले दो उच्च सैनिक अधिकारियों के सेवाकाल में विस्तार से यह एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान अपना इतिहास बदलना नहीं चाहता। दूसरे शब्दों में वह अपनी पुरानी विदेश नीति को ही बरकरार रखना चाहता है। सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज़ कियानी और बदनाम आ‌ई‌एस‌आ‌ई महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शूजा पाशा दोनों ही जाने पहचाने चेहरे हैं और उनके सेवाकाल का विस्तार इस बात का सबूत है कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार तो है मगर उस पर दबदबा सेना और उसकी खूफिया एजेंसी आ‌ई‌एस‌आ‌ई का ही है। यह ठीक है कि आसिफ अली ज़रदारी के नेतृत्व वाली पीपीपी सरकार में उदारवादी लोग हैं लेकिन सेना और आ‌ई‌एस‌आ‌ई के सामने वह बेबस हैं।

डॉन में खावर घूमन लिखते हैं कि प्रधानमंत्री युसूफ रज़ा गिलानी ने यह घोषणा कर कि आ‌ई‌एस‌आ‌ई महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शूजा पाशा के सेवाकाल में एक साल की और बढ़ोत्तरी कर दी ग‌ई है, अपनी सरकार की सच्चा‌ई बयान कर दी है। उल्लेखनीय है कि पाशा को दूसरी बार विस्तार मिला है। गत 18 मार्च को उनके पहले विस्तार की अवधि पूरी हो चुकी थी।

डॉन न्यूज और पाकिस्तान टेलीविजन के साथ बातचीत करते हु‌ए प्रश्नों के उत्तर में गिलानी ने कहा कि देश की सुरक्षा के मद्देनजर सरकार ने पाशा का कार्यकाल और एक साल के लि‌ए बढ़ाने का फैसला किया है। पाशा को नया विस्तार देने के बाद यह पहला सरकारी वक्‍तव्य था जो गिलानी ने स्वयं दिया। कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि सेना की ओर से दो वर्ष के विस्तार की मांग की ग‌ई थी ताकि 2013 तक सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज़ कियानी के साथ पाशा भी आ‌ई‌एस‌आ‌ई महानिदेशक बने रहे। उल्लेखनीय है कि कियानी को तीन वर्ष का विस्तार पिछले वर्ष ही मिल चुका है। डॉन में जाहिद हुसैन लिखते हैं कि सैनिक सूत्रों के अनुसार पाशा और कियानी में बेहतर तालमेल और उनके विचारों में समानता के कारण पाशा का सेवाकाल बढ़ाया गया है। लेकिन विस्तार का कारण अमरीका के साथ सहयोग बढ़ाना भी हो सकता है क्योंकि कुछ विशेषज्ञों के अनुसार अफ़गानिस्तान में युद्ध गम्भीर स्थिति धारण कर चुका है और अमरीका के पास इसके अलावा को‌ई रास्ता नहीं है कि वह आ‌ई‌एस‌आ‌ई को साथ लेकर चले। यह भी खबर है कि अमरीका को जनरल पाशा के विस्तार के बारे में पहले ही बता दिया गया था। वास्तव में सी‌आ‌ई‌ए कंटेक्टर रेमंड डेविस की गिरफ्तारी पर आ‌ई‌एस‌आ‌ई और सी‌आ‌ई‌ए में जो मतभेद पैदा हु‌आ था उसे समाप्त करने के लि‌ए जनरल पाशा को पद पर बरकरार रखना जरूरी था। फ्रा‌इडे टा‌इम्स में नजम सेठी लिखते हैं कि सेना प्रमुख और आ‌ई‌एस‌आ‌ई महानिदेशक लेफ्टिनेंंट जनरल अहमद शूजा पाशा के लि‌ए आसिफ अली ज़रदारी का राष्ट्रपति होना संतोषजनक है क्योंकि जरदारी की सरकार में पहले कियानी को तीन वर्ष का विस्तार मिला जब कि पाशा एक एक वर्ष करके दो बार विस्तार प्राप्त करने में सफल रहे। लेख में कहा गया है कि अगर हम पीपीपी का इतिहास देखें तो यह संगठन सेना विरोधी नज़र आता है लेकिन अभी जो स्थिति है उसके मद्देनजर उसे सेवा समर्थक कहने में को‌ई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहि‌ए।

लेख के अनुसार विपक्षी दल पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ के नेता चौधरी निसार खान ने आ‌ई‌एस‌आ‌ई महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल पाशा के सेवाकाल में विस्तार पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्‍त करते हु‌ए इसे लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ करार दिया है और कहा है कि आ‌ई‌एस‌आ‌ई को अपनी संविधानिक सीमा से बाहर नहीं जाना चाहि‌ए। लेख में कहा गया है कि यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि पी‌एम‌एल‌एन सेना समर्थक संगठन था जबकि अब वह सेना विरोधी नजर आ रहा है। सच तो यह है कि पीपीपी और पी‌एम‌एल‌एन दोनों ही न तो सेना समर्थक हैं और न ही सेना विरोधी बल्कि अपनी सुरक्षा के लि‌ए उन्हें कभी सेना समर्थक और कभी सेना विरोधी बनना पड़ता है। - अडनी।

आ‌ई‌एस‌आ‌ई-सी‌आ‌ई‌ए मतभेद बढ़े

यह सब जानते हैं कि उपमहाद्वीप ही नहीं बल्कि दुनिया भर में आज जिस आतंकवाद का बोलबाला है उसका जिम्मेदार पाकिस्तान है। अफ़ग़ानिस्तान में कम्यूनिस्ट सरकार और सोवियत सेना से लड़ने के लि‌ए जिन मुजाहिद्दीन को मैदान में उतारा गया था उन्हीं की न‌ई पीढ़ी आतंकवादी बन चुकी है। मजे की बात तो यह है कि उन मुजाहिद्दीन को अमरीका का भी भरपूर सहयोग प्राप्त था और यह उस सहयोग का ही परिणाम है कि आतंकवादी बन चुके मुजाहिद्दीन को अमरीका से लड़ने में भी कठिना‌इयों को सामना नहीं करना पड़ रहा है। अमरीका ने ११ सितम्बर की घटना के बाद मुजाहिद्दीन के विरुद्ध कार्रवा‌ई पाकिस्तान को साथ लेकर शुरू की मगर पाकिस्तान का हमेशा ही दोहरा रवैया रहा ऊपर से वह अमरीका का साथ देता रहा और अंदर से मुजाहिद्दीन को मदद भी पहुंचाता रहा। आज भी वही स्थिति है यानि पाकिस्तान मुजाहिद्दीन की सुरक्षा कर रहा है। अब अनुमान लगाया जा सकता है कि इस वर्ष जब अमरीकी नेतृत्व वाली गठबंधन सेना वापस होगी तब क्या होगा? क्या अमरीका उस दबाव को समाप्त करने में सफल हो पा‌एगा जो पाकिस्तान सरकार पर आ‌ई‌एस‌आ‌ई का है?

न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार आ‌ई‌एस‌आ‌ई महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल शूजा अहमद पाशा का हाल ही में हु‌आ वाशिंगटन दौरा आ‌ई‌एस‌आ‌ई और सी‌आ‌ई‌ए के बीच उन मतभेदों को समाप्त करने के लि‌ए हु‌आ था जो रेमंड डेविस मामले को लेकर दोनों देशों की गुप्तचर एजेंसियों के बीच उत्पन्न हु‌ए हैं। सूत्रों के अनुसार जनरल पाशा ने बातचीत के दौरान पाकिस्तान के कबा‌इली क्षेत्रों में हाल ही में हु‌ए ड्रोन हमलों का मामला भी उठाया जिनमें 40 व्यक्‍तियों की मृत्यु हु‌ई है। नेशन ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि अगर अमरीका पाकिस्तान में खूफिया नेटवर्क चलाता है तो यह किसी देश के आंतरिक मामले में खुला हस्तक्षेप है। सम्पादकीय में कहा गया है कि जब तक निर्दोष लोगों की हत्या जारी रहेगी तब तक यह नहीं समझा जा‌एगा कि अमरीकी कार्रवा‌ई देश के पक्ष में है। उल्लेखनीय है कि रेमंड डेविस घटना के बाद पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान संयुक्‍त गुप्तचर कार्रवा‌ई रूकी हु‌ई है। इस बीच सी‌आ‌ई‌ए की कार्रवा‌ई में 40 से अधिक कबा‌इलियों की मृत्यु हु‌ई है जिससे पाकिस्तानी गुप्तचर अधिकारियों के साथ आम लोगों में भी नाराजगी है। मीडिया में भी इन हमलों की आलोचना हु‌ई है। डेली टा‌इम्स ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि सी‌आ‌ई‌ए एजेंट रेमंड डेविस द्वारा लाहौर में दो व्यक्‍तियों की हत्या के बाद अमरीका और पाकिस्तान की संयुक्‍त गुप्तचर कार्रवा‌ई बंद है जबकि सी‌आ‌ई‌ए की कार्रवा‌ई में 40 व्यक्‍तियों की मृत्यु हु‌ई है। इस कार्रवा‌ई में पाकिस्तानी सेना शामिल नहीं थी।

यह अमरीका की एकतरफा कार्रवा‌ई थी। लगभग दस वर्षों से जारी आतंकवाद के विरुद्ध लड़ा‌ई के दौरान यह पहला अवसर था जब पाकिस्तान अमरीका से अलग नजर आया अर्थात्‌ उसने आतंकवाद के विरुद्ध कार्रवा‌ई में न केवल यह कि साथ नहीं दिया बल्कि यह स्पष्ट संकेत भी दे दिया कि वह इस कार्रवा‌ई से नाराज है।

उल्लेखनीय है कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ा‌ई मुशर्रफ़ की सरकार में शुरू हु‌ई थी। 11 सितम्बर 2001 को अमरीका पर हमले के बाद अलक़ायदा नेता ओसामा बिन लादेन की तलाश में अमरीका ने पाकिस्तान को साथ लेकर अफ़़ग़ानिस्तान पर हमला बोलकर तालिबान सरकार को इसलि‌ए समाप्त कर दिया कि उसने ओसामा बिन लादेन को मेहमान बना रखा था। इस हमले के बारे में मुशर्रफ़ यह कह रहे हैं कि अमरीका ने धमकी देकर उनसे सहायता ली थी। मुशर्रफ़ के अनुसार तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने मदद न करने की स्थिति में पाकिस्तान की ईंट से ईंट बजा देने की बात कही थी।

Thursday, May 12, 2011

देश में बढ़ता आरक्षण का संक्रामक रोग

देश में दिन पर दिन आरक्षण का मुद्‌दा ज्वलंत होता जा रहा है । आज यह संक्रामक रोग का स्वरूप धारण कर चुका है । स्वतंत्रता उपरान्त सामाजिक, आर्थिक रूप से पिछड़ी कुछ जातियों के रहन-सहन के स्तर में सुधार हेतु संविधान में पिछड़ी जाति (एस. सी) पिछड़ी जनजाति ( एस. टी) के नाम से आरक्षण की सुविधा प्रदान की गई । धीरे-धीरे यह व्यवस्था राजनीतिक परिवेश के कारण मुद्‌दा विकृति का स्वरूप धारण करती चली गई, जहां इसका मूल उद्देश्य प्रायः गौण ही हो गया । सामाजिक एवं आर्थिक रूप से इन जातियों में सुधार के बावजूद भी इनका आरक्षण ज्यों का त्यों ही नहीं रहा बल्कि मंडल आयोग के तहत पिछड़े वर्ग के नाम से देश की कुछ और जातियां आरक्षण प्रक्रिया के तहत शामिल कर ली गई । जिनका उद्देश्य मात्र राजनीतिक लाभ लेना था । इस उद्देश्य में सक्रिय राजनीतिक दलों को पूर्णतः लाभ भी मिला । जहांं केन्द्र की सत्ता तक बदल गई । यह प्रक्रिया यही बंद नहीं हुई, समय अंतराल में लोकसभा चुनाव के समय राजनीतिक लाभ के तहत राजस्थान में एक और विशेष जाति जाट वर्ग को पिछड़े वर्ग में आरक्षण के तहत शामिल किये जाने की औपचारिक घोषणा भी की गई ।

जिसका राजनीतिक लाभ संबंधित दल को मिला तथा केन्द्र में सत्ता परिवर्तन के साथ घोषणा के अनुरूप इस जाति को पिछड़े वर्ग में शामिल कर लिया गया । इसके प्रभाव तत्काल नजर आने लगे जहां पिछड़े वर्ग में पूर्व से शामिल जातियां इस नये समीकरण में पिछड़ती चली गई । इस वर्ग में असंतोष तो उभरा ही जिसका प्रभाव आज तक समय पर उभरते गुर्जर आंदोलन के बीच देखा जा सकता है । यह असंतोष अभी मिटा नहीं कि आरक्षण को लेकर राजस्थान के पड़ोसी राज्य हरियाणा में जाट सड़क पर उतर आये । यह आंदोलन उ.प्र. तक फैल चुका है और बढ़ता ही जा रहा है जिसके कुत्सित परिणाम आस-पास देखने को मिल रहे हैं । आज रेल सेवाएं जिस तरह बाधित हो रही हैं, सभी भलीभाँति परिचित है । होली का पवित्र त्यौहार आज इस आंदोलन के चलते कहीं-कहीं बेरंग होता दिखाई दे रहा है । इस तरह के आंदोलन आज जो संक्रामक रोग का स्वरूप धारण कर चुका है, कहां अंत होगा जिसे स्वहित में राजनीति सहयोग मिल रहा हो, कह पाना मुश्किल है । आज यह समस्या निदान के बजाय समस्या पैदा करने वाला संसाधन हो चुका हैं । जहां स्वार्थ की बलिवेदी पर अनगिनत निर्दोषों की बलि हर आंदोलन में दी जा रही है, फिर भी यह काम जारी है । इस दिशा में मंडल आयोग लागू होने एवं राजस्थान में पिछड़े वर्ग में जाट समुदाय को शामिल किये जाने के उपरान्त उभरे असंतोष भरे जन आंदोलन के प्रतिकूल प्रभाव आसानी से देखे जा सकते हैं, जिसमें आमजन एवं सम्पत्ति दोनों को काफी नुकसान हुआ ।

आरक्षण का स्वरूप स्वतंत्रता उपरान्त कुछ काल के लिये देश में पिछड़ेपन एवं गरीबी को दूर करने के उद्देश्य से वास्तविकता में गरीब एवं पिछड़ी जातियों से शुरू किया गया । जिसे उद्देश्य पूरा होने की स्थिति में समाप्त कर देना चाहिए । पर ऐसा राजनीतिक कारणों से आज तक नहीं हो पाया । देश की सम्पन्‍न कई जातियां राजनीतिक प्रभाव एवं दबाव से इस क्रम में जुड़ती ही चली गईं, जो बची हैं वह भी इस दिशा में प्रयत्‍नशील हैं । आरक्षण आज गरीबी एवं पिछड़ेपन का सवाल है, आज प्रायः सभी जातियां इससे प्रभावित हैं । इस तरह के हालात में आरक्षण की सुविधा सभी जातियों को जनसंख्या के आधार पर प्रदान कर देनी चाहिए ताकि जड़ से इस संक्रामक रोग को मिटाया जा सके ।

उन्माद की हद तक क्रिकेट प्रेम


पूरा देश क्रिकेट का दीवाना है । ऐसा लगता है कि क्रिकेट ही सब कुछ है । देश यहीं से शुरू होता है, और यहीं खत्म हो जाता है । क्रिकेट की हार देश की सबसे बड़ी समस्या है । क्रिकेट की जीत सभी समस्याओं का समाधान है । न इसके आगे भारत है और न इसके पीछे भारत है । राजनीति और कूटनीति तक इसकी मोहताज है । देश की सब समस्याएं और सब समाधान क्रिकेट है । जो क्रिकेट प्रेमी नहीं वह देशभक्‍त भी नहीं । जो चौके और छक्‍के पर तालियां नहीं बजाता उसकी राष्ट्रभक्‍ति ही संदेह के घेरे में आ जाती है । जब सब कुछ क्रिकेट है तब इसमें अपार पैसा होना कोई आश्‍चर्य की बात नहीं होनी चाहिए ।
देश की बहुत बड़ी आबादी को लगता है कि मुल्क में समस्याओं का अंबार है, लेकिन उनका ऐसा सोचना-मानना उस समय निरर्थक हो जाता है जब क्रिकेट के दौरान देश में कर्फ्यू जैसे हालात हो जाते हैं । सड़कें सूनी हो जाती हैं । बसों को सवारियां नहीं मिलती हैं । लोग टीवी पर चिपककर बैठ जाते हैं । क्रिकेट के लिए बेवजह छुट्‍टी ले लेते हैं । जिसको क्रिकेट का टिकट मिल गया उसकी किस्मत खुल गई । किस्मत क्या खुली वह भव सागर से तर गया । उसके इहलोक और परलोक दोनों सुधर गए । जिन्हें नहीं मिली वे बदनसीब माने गए ।
भारत-पाक मैच के दौरान एक मुख्यमंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि मुझसे राज्य सभा की टिकट ले लो, विधानसभा की टिकट लेलो, लोकसभा की मांगो तो वह भी दिलवा दूं लेकिन क्रिकेट की टिकट के लिए मांफी मांगता हूं । बताइए, अब क्या रह जाता है?
लोग यह समझते हैं कि देश में गरीबी है, बेरोजगारी है, भ्रष्टाचार है, भुखमरी है, लाचारी है, गरीबी है, बीमारी है, अशिक्षा है, चोरी है, डकैती है, लूटमार है, बलात्कार है, बेबसी है, मजबूरी में देह बेचती बच्चियां हैं, युवती हैं, महिलाएं हैं, सड़कों की कमी है, इलाज के लिए पैसा नहीं है, भीख मांगते बच्चे हैं, करोड़ों की तादाद में अदालतों में केस है और इन सबसे बड़ी समस्या साम्प्रदायिकता है । लेकिन यह सब समस्याएं क्रिकेट के सामने गौण है ।
जिस दिन भारत-पाकिस्तान के बीच मोहाली में मैच था उस दिन देश के लोगों की क्या हालत थी वर्णन करना मुश्किल है । युद्ध से भी आगे के हालत थे । ऐसी स्थिति तो तब भी नहीं थी जब १९६४ में चीन से, १९७१ में पाकिस्तान से और फिर १९९५ में कारगिल युद्ध हुआ था । उत्तेजना, कौतूहल, जुनून और उन्माद सब कुछ था ।
क्या यह सब बनाया गया माहौल था? लोगों में उत्तेजना, उन्माद और जुनून पैदा किया गया था । इसे आप बाजार का खेल भी कह सकते हैं । इसे आप दिखावटी देश भक्‍ति भी कह सकते हैं । इसे आप देखादेखी देश प्रेम दिखाने की होड़ भी कह सकते हैं । इसे आप पाकिस्तान से बदला लेना भी कह सकते हैं । जो आपका दिल कहे उसे मान सकते हैं । देश की जीत पर खुश होना हर देशवासी का अधिकार है और खुश होना भी स्वभाविक है । लेकिन खुशी के नाम पर करोड़ों रूपए के पटाखे फूंक देना क्या मार्केट बनाया हुआ खेल था । तब ज्यादा अच्छा लगता जब इस रूपयों से देश के लोगों की बेबसी कुछ कम करने की कोशिश की जाती । खुशी के पटाखों से उन गरीबों का क्या लेना देना जो उस रात भूखे सोए ।
क्रिकेट में बहुत पैसा है । लेकिन किस के लिए? जीते खिलाड़ियों को करोड़ों रूपए दिए जाते हैं । अच्छी बात है । कहा जाता है कि खिलाड़ी देश के लिए खेलते हैं । देश के लिए कैसे? जो रूपया करोड़ों में मिलता है वह उनके पास रहता है । क्या वह देश के लिए दे देते हैं? नहीं तो फिर खेलना अपने लिए हुआ न । सरकारी नौकरी, करोड़ों रूपया यह सब खिलाड़ियों के लिए । हम खिलाड़ियों को पैसा देने के विरोध में नहीं लेकिन अन्य प्रतिभाएं उपेक्षित न रहें यह कौन देखेगा? देश में और तरह की प्रतिभाएं हैं जिन्हें सम्मान के साथ रोटी भी नहीं मिल पाती है । सरकार और देश की जनता को इसी में क्या दिखाई देता है जो अन्य प्रतिभाओं में दिखाई नहीं पड़ता ।
संगीतकार नौशाद ने दुनिया की सबसे मीठी धुनें बनाईं । ऐसी धुनें जो सदियों तक याद रखी जाएं । क्या उन्होंने ये धुनें और इतना मीठा संगीत देश के लिए नहीं दिया था? लेकिन उनके आखिरी दिन इतने खराब गुजरे कि इलाज तक को पैसे नहीं थे । अभिनेता राजेन्द्रकुमार ने उन्हें आर्थिक सहायता तब इलाज हुआ । नौशाद साहब को किस सरकार ने मदद की? प्रख्यात शहनाई वादक बिस्मिल्ला खान किस हालत में मरे, यह बताने की जरूरत है? क्या उन्होंने शहनाई देश के लिए नहीं बजाई थी ।
जिस देश में घनघोर गरीबी हो वहां एक आदमी को करोड़ों मुफ्त दे दिए जाएं और दूसरी ओर उसी देश में ऐसे लोग हैं जिन्हें भरपेट रोटी नहीं मिलती है ।

Monday, May 9, 2011

आँख का पानी


होने लगा है कम अब आँख का पानी,
छलकता नहीं है अब आँख का पानी।
कम हो गया लिहाज,बुजुर्गों का जब से,
मरने लगा है अब आँख का पानी।
सिमटने लगे हैं जब से नदी,ताल,सरोवर
सूख गया है तब से आँख का पानी।
पर पीड़ा में बहता था दरिया तूफानी
आता नहीं नजर कतरा ,आँख का पानी।
स्वार्थों की चर्बी जब आँखों पर छा‌ई
भूल गया बहना,आँख का पानी।
उड़ ग‌ई नींद माँ-बाप की आजकल
उतरा है जब से बच्चों की आँख का पानी।
फैशन के दौर की सबसे बुरी खबर
मर गया है औरत की आँख का पानी।
देख कर नंगे जिस्म और लरजते होंठ
पलकों में सिमट गया आँख का पानी।
लूटा है जिन्होंने मुल्क का अमन ओ चैन
उतरा हु‌आ है जिस्म से आँख का पानी।
नेता जो बनते आजकल,भ्रष्ट,बे ईमान हैं
बनने से पहले उतारते आँख का पानी।

Saturday, May 7, 2011

कम बोलो, मीठा बोलो, अच्छे के लि‌ए बोलो


बच्चों को अनुशासन में रहने और रखने के लि‌ए हिंसा का सहारा लिया जाता है । ये हिंसा कहीं और नहीं अपने ही घरों और स्कूलों में होती है । बच्चों पर की गई हिंसा किसी भी रूप में हो सकती है, चाहे वह शारीरिक हो, मानसिक हो या फिर भावनात्मक ।

धर्म के दस लक्षणों में एक ‘सत्यता’ (सच्चा‌ई) भी है । सामान्य तौर पर यह लक्षण वाणी से जुड़ा है, अर्थात जो जैसा देखा, सुना या समझा गया है । यह हु‌ई सत्य की सरल परिभाषा । परंतु ‘सत्यता’ का अर्थ केवल यह नहीं है । सत्यता का अर्थ है धर्म की आत्मा को प्रज्वलित करना । उदाहरण के तौर पर, यदि को‌ई व्यक्‍ति किसी असाध्य रोग से पीडि़त है तो उसे ऐसा डाक्टरी तथ्य बताना ’सत्य’ का पालन नहीं है, जिसकी हतक से वह कल के बजाय आज ही मर जा‌ए । ऐसी सचा‌ई तो झूठ बोलने से भी बुरी है ।

इसी प्रकार यदि दो व्यक्‍तियों या दो पक्षों के संबंधों में बिगाड़ है और दोनों ही अडियल हैं, तो दोनों की कही हु‌ई बातें सच-सच एक-दूसरे को बताकर उनके बीच कड़वाहट बढ़ाने से कहीं अच्छा है दोनों के बीच ईमानदारी से समझौता कराने का प्रयास करना । एक समय था जब अपनी कमियों या खामियों को स्वीकार कर लेने वालों को लोग आदर की दृष्टि से देखते थे । लेकिन अब सब कुछ बदल सा गया है । अपनी कमजोरियां बताने का मतलब है अपनी खिल्ली उड़वाना । लोग अक्सर दूसरों के नकारात्मक व उदासीन पक्ष को प्रसारित कर उनके नाम और पद को बदनाम करते हैं और खुश होते हैं ।

ऐसे क‌ई उदाहरण हैं । एक नवविवाहिता को विश्‍वास में लेकर कहा गया कि वह अपने बीते हु‌ए कल की सारी घटना‌एं अपने पति को निर्भय होकर बता दे । उसे प्रेम और क्षमादान दिया जा‌एगा । परंतु ऐसा न कर एक बदले की भावना पाल ली ग‌ई और उसका जीवन नारकीय बना दिया गया । उचित तो यही था कि अपने पिछले जीवन की बातों के बारे में वह पूरी तरह मौन रहती, क्योंकि पता चलने पर सिवाय समस्या‌ओं और दुखों के कुछ नहीं मिला ।

कुछ दिन पहले नवभारत टा‌इम्स में एक समाचार छपा था कि किस तरह एक महिला को ‘सच का सामना’ करना भारी पड़ा । एक टीवी चैनल पर सच का सामना देखते हु‌ए एक पति ने अपनी पत्‍नी से विवाह से पूर्व के सच का खुलासा करने को कहा । पत्‍नी ने बताया कि शादी से पहले उसका एक प्रेम संबंध था । पति-पत्‍नी के सच को सहन नहीं कर सका और आत्महत्या कर ली । समाजशास्त्री मानते हैं, कि जीवन में कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें रहस्य रखना ही बेहतर होता है । क‌ई बार इनके खुलने से लोगों के जीवन में भूचाल आ जाता है ।

निस्संदेह सचा‌ई एक श्रेष्ठ गुण है । कथनी और करनी के बीच तालमेल होना श्रेयस्कर है । परंतु स्मरण रहे कि बीते हु‌ए कल की बातों के बारे में मौन रहना अधिक श्रेष्ठतर है, क्योंकि उनका खुलासा करने से हानि की संभावना कहीं अधिक है । ऐसी परिस्थितियों में मौन ही सत्यता है । हालांकि झूठ किसी भी स्थिति में सच से बेहतर नहीं हो सकता ।

Friday, May 6, 2011

सूर्य मेष संक्रान्ति के आधार पर वर्ष फल

जैसा आप सभी जानते हैं, कि हिन्दी पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नए संवत अर्थात्‌ नये वर्ष की शुरूआत होती है । साथ ही जब पृथ्वी सूर्य का एक चक्‍कर पूर्ण करती है, तब सूर्य पुनः मेष संक्रान्ति में शून्य अंश का होता है । उस समय जो लग्न उदित होता है, वह पूरे वर्ष की वर्ष कुण्डली होती है । इसके आधार पर उस वर्ष सारे संसार में अप्राकृतिक व प्राकृतिक घटनाओं के पूर्वानुमान ज्योतिष विज्ञान द्वारा किया जाता है । १४ अप्रैल २०११ को दोपहर १ बजकर २५ सेकेण्ड में सूर्य मेष संक्रान्ति में प्रवेश कर रहा है, उस समय कर्क राशि का लग्न उदित हो रहा है । जिसके अंतर्गत नवम्‌ भाव में गुरू, बुध व मंगल की युति है, वृहस्पति आग्नेय प्रवृत्ति के होते हैं ।

यह पूर्व दिशा एवं दक्षिण दिशा तथा एशियाई देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं । वहीं दूसरी तरफ शनि, शुक्र, बुध क्षारीय प्रवृत्ति के होने के कारण बेसिकली पश्‍चिमोत्तर क्षेत्र, विशेषकर यूरोपीय देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं । देखा जाए तो इस वर्ष चक्र में तृतीयस्थ शनि व अष्टमस्थ शुक्र की प्रबलता यूरोपीय देशों के लिए बड़ा ही अच्छा संकेतक नहीं है ।

इस चक्र के नवमांश में भी गौर करें तो वृश्‍चिक लग्न के नवमांश के आठवें घर में शुक्र, शनि की युति यूरोपीय देशों में कुछ प्राकृतिक आपदाओं का सूचक बन रहा है, साथ ही साथ लग्नस्थ मंगल का बुध के नक्षत्र में पाया जाना और तृतीय भाव में मंगल का होना मुस्लिम देशों में हिंसक घटनाओं का सूचक है । लेकिन एशियाई देशों में धार्मिक एवं शांतिप्रिय देशों में प्रगति देखने को मिलेगी । जिसमें विशेषकर भारत, चीन आदि देखा जाय तो शुरू के दिनों मुख्यतः 3 मई से 15 मई, 13 जून से 2 जुलाई, 26 दिसम्बर से 25 जनवरी 2012, 22 फरवरी 2012 से 12 मार्च 2012, आदि इस वर्ष के खराब समय होंगे, जिसमें अप्राकृतिक घटनाओं की आशंका है, लेकिन इस वर्ष में 5 जुलाई 2011 से 23 जुलाई, 23 अगस्त 2011 से 13 सितंबर सामान्यतः ठीक कहा जायेगा ।

व्यावसायिक दृष्टिकोण से यूरोपीय देशों की आर्थिक स्थिति बिगड़ती दिखाई दे रही है, जिसमें अमेरिका का आर्थिक नुकसान कहीं ज्यादा होने की संभावना है, लेकिन एशियाई देशों में विशेषकर भारत व चाइना की आर्थिक प्रगति काफी तेजी से होती दिखाई दे रही है । आर्थिक व विश्‍वस्तर पर सरल व उदार नीति के साथ भारत मजबूत भूमिका में साबित होगा । उपरोक्‍त खराब समय में पूरब दक्षिण कुछ समुद्रतटीय देशों को तथा पश्‍चिमोत्तर बर्फीली क्षेत्रों के कुछ देशों को प्राकृतिक घटनाओं से संभलना चाहिए । इसी प्रकार ३ अप्रैल २०११ को रात्रि ८ बजकर ४ मिनट में चैत्र शुक्ल पक्ष प्रारम्भ हो रहा है । इस स्थिति में हिंदी पंचांग के अनुसार नया वर्ष प्रारम्भ हो रहा है, इसके अनुसार यह तुला लग्न था, और इसे नये वर्ष प्रवेश के चक्र के अनुसार छठें भाव में शुक्र, मंगल, वृहस्पति तथा चन्द्रमा की युति कुछ अप्रत्याशित परिवर्तन के सूचक हैं ।

कट्‍टरपंथी देशों में जहां उन्माद, सत्ता परिवर्तन कराये गये वहीं विश्‍व में कुछ नये देश भी उभरकर अपनी कीर्ति स्थापित करेंगे । वह देश मुख्यतः एशिया से होगा और मुख्य रूप से शांति व सौहार्द्र पूर्ण एवं धर्म निरपेक्ष देश होगा । भारत में काफी परिवर्तन की आशंका है, तथा भारत की आर्थिक समृद्धि भी बढ़ेगी विशेषकर व्यावसायिक दृष्टिकोण से आईटी, शिक्षा, शेयर-बाजार के क्षेत्रों में काफी ज्यादा आर्थिक प्रगति बढ़ेगी और इस क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावना है । इस प्रकार यह नया वर्ष भारत एवं एशियाई क्षेत्र के देशों के लिए ठीक तो है, लेकिन इस वर्ष में धार्मिक कट्‍टरपंथी वालों देशों को अपने अंदर बदलाव लाना चाहिये अन्यथा उन्हें अत्यधिक हानि उठानी पड़ सकती हैं, साथ ही साथ विश्‍व में भी अशांति के कारण बन सकते हैं ।

पश्‍चिमी देश भी अपनी शक्‍ति का नाज़ायज फायदा ना उठायें, इससे उन्हें आर्थिक नुकसान के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में उनकी छवि भी खराब होगी । अतः उन्हें अप्राकृतिक आपदाओं से भी संभलकर रहना होगा । इस वर्ष में प्रॉपटी, ऊर्जा संयंत्रों में पेट्रोल एवं कमोडिटी मार्किट में खासकर सोना आदि के भाव आसमान चढ़ेंगे । भ्रष्टाचार भी बढ़ेगा, लेकिन बड़े-बड़े भ्रष्टाचार भी उजागर होंगे । कुछ नये आइडियल एवं अनुशासित राजनेताओं की छवि उभरेगी ।

अपराध की बांहों में राजधानी

जिस दिन पूरा देश महिला दिवस मना रहा था उस दिन देश की राजधानी में दिल्ली में दो हत्यायें हुई । एक दिल्ली विश्‍वविद्यालय की छात्रा राधिका तंवर की और दूसरी नोएडा के चर्चित आरूषि हत्याकांड के राजेश तलवार की वकील रेबेका जॉन की मां एम मेमन की । बात सिर्फ दो हत्या की नहीं है, बल्कि दिल्ली में बढ़ रहे अपराधिक मामले की है । आज आलम ये है कि दिल्ली में ऐसा कोई दिन नहीं गुजरता जब कोई हत्या, बलात्कार, छेड़छाड़ या हिंसा की खबरें मीडिया में नहीं आती और इस पूरे मामले में महिलाओं पर इसका असर सबसे ज्यादा पड़ रहा है ।

दिल्ली में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार यहां लगभग 67 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी रूप में दुर्व्यवहार का शिकार होती है, जबकि 2010 में हर तीन में से दो महिलाएं यौन हिंसा की शिकार हुई हैं, जबकि हर 17 घंटे में एक छेड़खानी होती है । बलात्कार के मामले में अभी तक पुलिस ने 340 पड़ोसी, 94 दोस्त, 62 रिश्तेदार, और 10 अपरिचित लोगों को हिरासत में लिया है । हैरानीजनक बात तो यह है, कि जब ऐसी कोई घटना होती है तभी पुलिस सक्रिय होती है और इसी वजह से दिल्ली में महिलाएं अपने आपको सुरक्षित नहीं मानती और दस में से सात महिलाओं का पुलिस पर से विश्‍वास उठ गया है । राजधानी की 71 प्रतिशत महिलाएं पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाने में अपने आप को असुरक्षित महसूस करती है और इसका सबसे ज्यादा शिकार स्कूल या कॉलेज जाने वाली लड़कियां और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाएं होती हैं ।

ऐसे में प्रश्न ये उठता है कि दिल्ली में अपराधिक विकृतियां क्यों बढ़ रही हैं? जिसे न तो प्रशासन का डर है और ना ही सामाजिक शक्‍तियों का । सबसे बड़ी बात तो यह है कि भ्रष्टाचार और अपराध ने हमारी व्यवस्था में अंदर तक पैठ बना ली है और वे हमारे समाज के अभिन्‍न अंग बन गए हैं और यही हाल है देश की राजधानी का, यहां ऐसी कई बस्तियां हैं जहां मेहनत मजदूरी करने वाले गरीब लोग रहते हैं, और इन्हीं इलाकों में आपराधिक तत्व पोषण प्राप्त कर रहे हैं । तथा यहीं से आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं, चौंकाने वाली बात तो यह है कि पुलिस तथा प्रशासन इन सबसे वाकिफ है लेकिन अब तक कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है ।

अभी हाल ही में दिल्ली सरकार ने एक आंकड़े जारी किए हैं जिसे देखकर यही लगता है कि दिल्ली में अपराधों की दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि हो रही है जबकि दिल्ली पुलिस के आधुनिकीकरण और लाख दावों के बाद भी कि यहां अपराध कम हुए हैं एक खोखला सच ही सामने आया है क्योंकि इस बात की पुष्टि मुख्यमंत्री शीला दीक्षित खुद विधानसभा में कर चुकी हैं कि दिल्ली में अपराध पिछले वर्षों में काफी बढ़े हैं । हालांकि दिल्ली में बढ़ रहे अपराध को लेकर मुख्यमंत्री के बयान भी राजनीति से प्रेरित ही लगते हैं क्योंकि, राधिका तंवर हत्याकांड में जब मीडिया ने उनको कठघरे में खड़ा किया तो उन्होंने अपना पल्ला झाड़ते हुए कह दिया कि दिल्ली पुलिस पर मेरा कोई जोर नहीं क्योंकि यहां की पुलिस केन्द्र सरकार के अधीन काम करती है इसलिए अपराधों के प्रति मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती । अब चाहे जो भी हो, इसके लिए चाहे केन्द्र सरकार दोषी हो या राज्य सरकार सबकी निगाहें दिल्ली में बढ़ रहे क्राइम ग्राफ की ओर है, और सरकार में बैठे लोग हो या पुलिस प्रशासन सबकी जिम्मेदारी बनती है कि अपराध की बाहों में जकड़ी हुई दिल्ली को बाहर निकालें ।

क्राइम जोन है दिल्ली का धौलाकुआं

दक्षिण दिल्ली का धौलाकुआं इलाका दिल्ली में बढ़ते हुए अपराधों का जोन बन गया है । एक अध्ययन के अनुसार इस क्षेत्र में पिछले एक महीने में एक बलात्कार, ग्यारह डकैती, एक हत्या, और एक छेड़खानी हुई है, जबकि पिछले वर्ष पांच महीनों का ब्यौरा देखा जाए तो अभी तक तीन बलात्कार और तीन छेड़खानी के मामले दर्ज हुए हैं ।

पिछले दो महीनों में पुलिस द्वारा दर्ज अपराधिक मामले

हत्या ---- 80
हत्या की कोशिश-----51
बलात्कार----- 14
2010 में हुए आपराधिक मामले

आपराधिक मामले--- 53,244
हत्या -----467
बलात्कार-----581
डकैती ----- 1,764
अपहरण ------1,582
वाहन चोरी---- 6867
घरों में चोरी --- 905