Thursday, May 12, 2011

देश में बढ़ता आरक्षण का संक्रामक रोग

देश में दिन पर दिन आरक्षण का मुद्‌दा ज्वलंत होता जा रहा है । आज यह संक्रामक रोग का स्वरूप धारण कर चुका है । स्वतंत्रता उपरान्त सामाजिक, आर्थिक रूप से पिछड़ी कुछ जातियों के रहन-सहन के स्तर में सुधार हेतु संविधान में पिछड़ी जाति (एस. सी) पिछड़ी जनजाति ( एस. टी) के नाम से आरक्षण की सुविधा प्रदान की गई । धीरे-धीरे यह व्यवस्था राजनीतिक परिवेश के कारण मुद्‌दा विकृति का स्वरूप धारण करती चली गई, जहां इसका मूल उद्देश्य प्रायः गौण ही हो गया । सामाजिक एवं आर्थिक रूप से इन जातियों में सुधार के बावजूद भी इनका आरक्षण ज्यों का त्यों ही नहीं रहा बल्कि मंडल आयोग के तहत पिछड़े वर्ग के नाम से देश की कुछ और जातियां आरक्षण प्रक्रिया के तहत शामिल कर ली गई । जिनका उद्देश्य मात्र राजनीतिक लाभ लेना था । इस उद्देश्य में सक्रिय राजनीतिक दलों को पूर्णतः लाभ भी मिला । जहांं केन्द्र की सत्ता तक बदल गई । यह प्रक्रिया यही बंद नहीं हुई, समय अंतराल में लोकसभा चुनाव के समय राजनीतिक लाभ के तहत राजस्थान में एक और विशेष जाति जाट वर्ग को पिछड़े वर्ग में आरक्षण के तहत शामिल किये जाने की औपचारिक घोषणा भी की गई ।

जिसका राजनीतिक लाभ संबंधित दल को मिला तथा केन्द्र में सत्ता परिवर्तन के साथ घोषणा के अनुरूप इस जाति को पिछड़े वर्ग में शामिल कर लिया गया । इसके प्रभाव तत्काल नजर आने लगे जहां पिछड़े वर्ग में पूर्व से शामिल जातियां इस नये समीकरण में पिछड़ती चली गई । इस वर्ग में असंतोष तो उभरा ही जिसका प्रभाव आज तक समय पर उभरते गुर्जर आंदोलन के बीच देखा जा सकता है । यह असंतोष अभी मिटा नहीं कि आरक्षण को लेकर राजस्थान के पड़ोसी राज्य हरियाणा में जाट सड़क पर उतर आये । यह आंदोलन उ.प्र. तक फैल चुका है और बढ़ता ही जा रहा है जिसके कुत्सित परिणाम आस-पास देखने को मिल रहे हैं । आज रेल सेवाएं जिस तरह बाधित हो रही हैं, सभी भलीभाँति परिचित है । होली का पवित्र त्यौहार आज इस आंदोलन के चलते कहीं-कहीं बेरंग होता दिखाई दे रहा है । इस तरह के आंदोलन आज जो संक्रामक रोग का स्वरूप धारण कर चुका है, कहां अंत होगा जिसे स्वहित में राजनीति सहयोग मिल रहा हो, कह पाना मुश्किल है । आज यह समस्या निदान के बजाय समस्या पैदा करने वाला संसाधन हो चुका हैं । जहां स्वार्थ की बलिवेदी पर अनगिनत निर्दोषों की बलि हर आंदोलन में दी जा रही है, फिर भी यह काम जारी है । इस दिशा में मंडल आयोग लागू होने एवं राजस्थान में पिछड़े वर्ग में जाट समुदाय को शामिल किये जाने के उपरान्त उभरे असंतोष भरे जन आंदोलन के प्रतिकूल प्रभाव आसानी से देखे जा सकते हैं, जिसमें आमजन एवं सम्पत्ति दोनों को काफी नुकसान हुआ ।

आरक्षण का स्वरूप स्वतंत्रता उपरान्त कुछ काल के लिये देश में पिछड़ेपन एवं गरीबी को दूर करने के उद्देश्य से वास्तविकता में गरीब एवं पिछड़ी जातियों से शुरू किया गया । जिसे उद्देश्य पूरा होने की स्थिति में समाप्त कर देना चाहिए । पर ऐसा राजनीतिक कारणों से आज तक नहीं हो पाया । देश की सम्पन्‍न कई जातियां राजनीतिक प्रभाव एवं दबाव से इस क्रम में जुड़ती ही चली गईं, जो बची हैं वह भी इस दिशा में प्रयत्‍नशील हैं । आरक्षण आज गरीबी एवं पिछड़ेपन का सवाल है, आज प्रायः सभी जातियां इससे प्रभावित हैं । इस तरह के हालात में आरक्षण की सुविधा सभी जातियों को जनसंख्या के आधार पर प्रदान कर देनी चाहिए ताकि जड़ से इस संक्रामक रोग को मिटाया जा सके ।

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