Monday, August 31, 2009

राजनीति में युवाओं की भागीदारी

हमारा देश (भारत) एक बहुत ही बड़ा प्रजातांत्रिक देश है । जिसकी विशालता, हमें उसके राजनीतिक उथल-पुथल से मालूम होता है । हमारे इस देश में बहुत ही अहम विभूतियां पैदा हुई, जिन्होंने अपने विचारों से विश्‍व के राजनीतिक परिदृश्य पर अद्‌भुत छाप छोड़ी । आज भी उनका कद्र देश के बाहर उतना ही है, जितना अपने देश में । आज का समय युवाओ के लिये बहुत ही उत्कृष्ठ है । क्योंकि इस समय हमारे देश में जितनी भी राजनीतिक पार्टियां सक्रिय है । उनमें युवाओं की कमी आपको जरूरत महसूस होगी, उनके पास वही मुद्दे, वही विचार, वही सोच आज भी है, जो सन्‌ १९४७ में था । अपितु हम उसे संतोषजनक नहीं कह सकते । जब हमारा देश आजाद हुआ उससे पहले यह अनेक राज्यो, विरासतों में विभाजित था । उस समय भी राजनीतिक परिदृश्य वही थे, जो आज है । वही क्षेत्रवाद, वही जातिवाद, एवं वंशवाद से ओतप्रोत, गंदी राजनीति, जिसकी वजह से हमारी संस्कृति कभी नष्ट हुई तो कभी विदेशी लुटेरों का सम्राज्य स्थापित हुआ । जिनके आपसी कलह की वजह से ही महाराणाप्रताप जैसे सच्चे देशभक्‍त के समय मे अकबर महान कहलाया । वो क्या था ? प्रश्न हमारे बीच आज भी वही है कि हम उन लोगों को आज भी प्रोत्साहित कर रहे है । जिनमें वंशवाद की राजनीतिक, तो कहीं एक ही देश में उसको धर्म के आधार पर, अलगाव का हवा दिया जा रहा है । हम अगर किसी मंच से किसी एक समुदाय की रक्षा की बात कह दें, तो उसे दूसरे समुदाय के प्रति बगावत करार दिया जाता है । आखिर कब तक होता रहेगा सब -
“ करता नही क्यूँ, दूसरा कुछ बातचीत
देखता हूँ , मैं जिसे वो चुपचाप तेरी महफिल में ।
आखिर कब तक हम अपने ही घरो में मेहमान बनकर रहेंगे ! कब तक !
हम नौजवानों ने ही इसकी संस्कृति को बचाया है । जब-जब समय आया है , तब-कोई न कोई, सुभाष बना, तो कोई भगत सिंह । आज का सही समय आ गया है, अपने-आपको साबित करने का, अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने का । हम पुलिस-चौकी से लेकर, सीमा तक ही नहीं, लोकसत्ता में भी अपनी कौशल निस्वार्थ भाव से कर सकते है । आज के नेता जो सिपाहियों के मरने को भी राजनीतिक मुद्दा बना देते है । उसे रोकना होगा ! नहीं तो हर सिपाही, हर जवान, अपने कर्तव्य को निभाने से चुक जायेगा । हमारा अपने देश के प्रति ऐसा ही भाव होना चाहिए कि-
जन्म से आग हूँ, शबनम नहीं,
इसलिये ताशिर मेरा, नाम नहीं ।
जग संवर जाये, मेरी कोशिश हों ये,
हम बिखर जाये , कोई गम नहीं । ।
आज जैसे कुछ राजनीतिक पार्टियां, वंशवाद को युवाओं की पार्टी बतलाती है । इसमें कितनी सच्चाई है? आप इसका स्वयं आकलन कर सकते है कि उन युवाओं में कौन है? ध्यान देने वाली बात है- उनमें कोई भुतपूर्व प्रधानमंत्री के लड़के है, तो कुछ कैबिनेट मंत्री के सुपुत्र है । सोचने वाली बात यह है कि एक आम आदमी ऐसा अवसर क्यों नही पाता है , क्यों नही हम, आप राजनीति का हिस्सा बन पाते है? दूसरों के सुख-दुख को उतना नहीं जान पाते जितना U.S में पढ़ाई से लौटने के बाद पूरा दिन ऐसो-आराम में रहने वाला व्यक्‍ति चन्द कुछ पल, घंटों, रातों में उनके सुख-दुख को अपना बताने में सफल होता है, और वहीं समाज जिनके सारी परेशानियों से लेकर खुशियों में आप होते हैं । आप उनके प्रिय नहीं बन पाते आप मसीहा नहीं कहलाते । मैं यह कहना चाहता हूँ कि वह आदमी ज्यादा कर्मठी ही या सुविधायुक्‍त एवं अवसरवादी नही है । अवसरवादी तो हम, आप है जो कभी भी अपने कार्यों, अपने लोगों के अलावा सोचा ही नहीं । हम उनके बीच रहकर भी उनके विश्‍वास में खरे नहीं उतरते । जो एक देश के प्रति होना चाहिये जो की समाज के प्रति होना चाहिए । हम पुत्र हैं, पहले भारतमाता के फिर अपनी माँ के जिसने हमें पाला, हम ऋणी है, उसके जिसने हमें बचपन से लेकर अबतक रहने का, खेलने का, काम करने का, यहाँ का होने का उपहार दिया- जरा सोंचे हमने क्या दिया ? बदले मे ं इसे, समय आने पर निराशा ही हाथ लगी - क्योंकि हममें से ही कोई जयचंद्र हुआ तो कोई बी० पी० सिंह, एक ने मुहम्मद गोरी को अवसर दिया तो दूसरे ने जाति के आधार पर देश को बर्बाद किया । वही राजनीति हमारे देश की राजनीति में धूरी की तरह काम कर रहा है । जितनी भी क्षेत्रीय पार्टियां है उनकी राजनीति क्षेत्रवाद, धर्मवाद, से जातिवाद तक सिमट कर रह जाती है । सबसे शर्मनाक बात यह है कि बड़ी पार्टियां इस मामले में कम नहीं है ।
प्रश्न यह नहीं है कि कौन क्या है? उसका उदेश्श्य क्या है? प्रश्न यह है कि हमें उससे मुक्‍ति कैसे मिलेगी, हमारे प्रयास क्या होंगे ? क्योंकि हमें भी सावधान रहना पड़ेगा । मैं विश्‍वास करता हूँ कि हर आदमी उब चुका है ऐसे राजनीतिज्ञों से, और हम युवा भी तैयार है उनका जवाब देने के लिये -तभी-
है लिये हथियार दुश्मन , ताक में बैठा उधर,
और हम तैयार है, सीना लिये अपना इधर ।
खून से खेलेंगे होली, गर वतन मुश्किल में हैं । ।

दिल में तूफानों की टोली, और नसों में इन्कलाब ,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे, हमें कोई रोको न आज ।
दूर रह पाये जो हमसे, दम कहाँ मंजिल में है । ।

आज जरूरत हैं हमारी और हम उम्मीद करते हैं कि आप लोग बदलेंगे , इस समाज को , इस देश को अगर हम प्रयोगों, अनुप्रयोगों से किसी व्यक्‍ति को जीवन देने में सफल होते तो हम नये अनुसंधानों के माध्यम से चाँद, मंगल, पर पहुँच कर वहाँ की परिदृश्य बदल सकते हैं । तो आखिर इस देश की बुराइयों को क्यों नहीं समाप्त कर सकते हैं । हमें एक होने की जरूरत हैं महत्वकांक्षी बनने की जरूरत हैं, प्रेम, सौहार्द स्थापित कर सामाजिक समन्वय लाने की जरूरत हैं । तो सबसे पहले हमारा एक ही उदेश्श्य हों वो हों - राष्ट्रीय व सामाजिक समन्वय । हमें राजनीति नहीं करनी हैं धर्म की, जाति की, क्षेत्र की, हमें राजनीति करनी होगी राष्ट्र उत्थान की । हमें घोषणापत्र जारी करना होगा , देश के सामाजिक संतुलन का, एक दूसरे को जोड़ने का , हमें सोचना होगा पूरे देश की जनता का, न की बहुसंख्यक व अल्पसंख्यक का । क्योंकि शक्‍ति जोड़ने से बनती है तोड़ने से नहीं । हमारा देश एक है और हमेशा एक रहेगा । हम इसे फिर टूकड़ों में नहीं बँटने देंगे । हमारा एक ही लक्ष्य होगा एक ही गीत होगा- “एक सद्विपा बहुधा वन्दति ” मतलब एक भारत जिसमें सबकुछ समाहित होगा ।
हमें अपनी प्रतिभा का उपयोग दूसरे उत्थान में करना होगा । क्योंकि किसी भी देश की मजबूती उसके राजनीतिक कौशल, निपुणता से होती हैं । हम अपना वर्चस्व विश्‍व पटल पर दर्शा सकते है । मैं आह्वान करता हूँ, उन तमाम नौजवान दोस्तों से जोकि राजनीति में रूचि नहीं रखते हैं जिससे उनको लगता है कि इसमें उनका नुकसान नहीं है तो यह केवल उनका एक भ्रम है । क्योंकि देश की सारी घटना चक्र वहीं से शुरू और वहीं खत्म होती है । मैं चाहुँगा कि आप सभी अपनी जिम्मेदारियों को समझें और एक ऐसा माहौल बनाये जिससे हमारा देश, हमारी पीढ़ी, और हमारे अपने हम पर तथा अपने देश पर गर्व कर सकें क्योंकि -
`` we can not change anything unless we accept it ''
धन्यवाद
मुकेश कुमार पांडेय

Saturday, August 29, 2009

देश के प्रति युवाओं का उत्तरदायित्व

देश के प्रति युवाओं का उत्तरदायित्व ः

दो अक्षरो से बना शब्द युवा जिसमे इतनी शक्‍ति, सहनशीलता और प्यार भरा हुआ, एक ऐसा उत्साह है, जिससे कोई भी, देश कोई भी समाज अपने आप को गार्वान्वित समझ सकता है । इसमें इतनी शक्‍ति है, जिससे किसी भी ताकत का मुकाबला किया जा सके । अगर हम इस शब्द पर ध्यान दें । या इसका समय पर प्रयोग करें तो यही युवा वायू बन जाती है । और आप वायु का अर्थ , एवं इसका उपयोग भी जानते है । वायु में इतनी शक्‍ति या ताकत होती है की यह प्राण वायु के रूप में हर जीव में विद्यमान होती है , तथा समय आने पर प्रलय भी लाती है ।
किसी देश अथवा समाज की सबसे बड़ी सम्पत्ति है- मानव संसाधन और मानव संसाधन में सबसे उपयुक्‍त एवं भाग युवाओं का है । जिससे यह तो सिद्ध हो ही जाता है , कि युवा ही एकमात्र ऐसी क्षमता है, जिससे हम किसी भी बड़े से बड़े इमारत की नींव रख सकते है । और युवा रूपी नींव उस विकास को गगन-चूंम्बी इमारतों को जीवित भी रख सकती है । हम अधिक नही छोटी घटनाओं का उदाहरण देकर इसकी पृष्ठि कर सकते है- बात उन दिनों की है, जब हमारा देश अपना अस्तित्व, अपने संस्कार, अपना सबकुछ, यू कहे तो अपनी पहचान खो रहा था, उस समय भी युवाओं वे इसकी बागडोर संभाली देश को एक नयी पहचान दिलायी । वो युवा ही थे जिन्होंने बहुत कम समय में बड़ी सहजता से एक ऐसा सुत्र दे गये जो आने वाली नश्लों के लिये एक वरदान साबित हुआ है । वो इसी मिट्टी के बने मात्र २० से ३० साल के वीर सपुत थे जिन्होंने हंसते-हंसते देश के लिए, आने वाले वंशज, पीढ़ियो के लिए फाँसी को गले लगा लिया ।
हम आज के युवा उनके बलिदानों को क्यों व्यर्थ जाने दें ? प्रश्न यह नही है हमारा देश तब गुलाम था, और आज हम आजाद है । प्रश्न यह है कि हम अपने देश व समाज को कुछ ऐसी पहचान दें जिससे हमारा समाज ही नही यहा का हर नागरिक अपने आप को इस देश में रहने का कार्य का, तथा देश के लिये किसी भी योगदान के लिये अपने आप पर गर्व कर सकें कि ‘ हम उस देश के वासी है, जिस देश मे, आज भी ‘अतुल्य भारत’, ‘अनेकता में एकता’, ‘अतिथिः देवो भवः’, जैसी चीज केवल पुस्तको में नही अपितु वास्तविक रूप से विद्यमान है ।
हमारे देश में बहुत सारी कमियां भी है, जिसे दूर करना है । हमें संकल्प लेना है, कि जो गलतियां हमारे पूर्वजों ने की है, हम उसे कभी नही दोहरायेगें । हमें कसम है, इस देश के हर उन जवानो की जिन्होंने विभिन्‍न क्षेत्रों में अपना योगदान दिया है । मानता हूं, कि कोई भी देश पूर्ण नही होता लेकिन उसको पूर्ण बनाना हमारी जिम्मेदारी बनती है । इस देश में फैली हुई सभी सामाजिक बुराइयों पर विजय पाना है । अगर हम इस देश को उत्कृष्ठ बनाना चाहते है तो हमें उन तमाम सामाजिक बुराइयो को जड़ से समाप्त करना होगा । हम जानते है कि अगर इसे कोई कर सकता है तो वो और कोई नही बल्कि युवा है । क्योंकि इसमें बहुत ही धैर्य, प्यार, जोश और शक्‍ति की आवश्यकता होगी ।
किसी भी समाज के विकास में शिक्षा काम बहुत बड़ा योगदान रहा है । क्योंकि जो युद्ध तलवार से नही जीती जा सकती वो कलम की ताकत पर जीती जा सकती है । जैसा की कर्मवीर भारती ने लिखा है ।

कलम देश की बड़ी शक्‍ति है , भाव जगाने वाली ।
दिल ही नही दिमागों में भी आग लगाने वाली । ।

हम सपथ ले कि हम ही इस देश के वर्तमान है । जिससे भविष्य का वो सारा दारोग्यदार है । जिस तरह मजधार में एक नाविक का उस पर बैठै सारे यात्रियों की जिम्मेदारी होती है हम उस भूत के लिये भी उतना ही उत्तरदायी है , जितनां भविष्य के लिये क्योंकि इस जग की नींव आज के उन लोगों द्वारा छेडी गयी है जो आज हमारे बीच नहीं है ।
‘ आज के नौजवानों से हमारा यह आहवान है कि आप कोई कार्य करते हो चाहे शिक्षा के क्षेत्र में हो , खेल के क्षेत्र में हो या कला एवं मनोरंजन के क्षेत्र में हो आप को निष्ठावान एवं चरित्रवान होना पड़ेगा । स्वामी जी विवेकानंद ने कहा है, कि-
“ विश्‍व का इतिहास मात्र कुछ लोगों द्वारा लिखा गया है । जो चरित्रवान है । ”
और किसी भी महान कार्य को करने के लिये कठिन परिश्रम, समय एवं निरंतर प्रयास की आवश्यकता होती है । अगर इसमें कुछ लोग असफल भी हो जाते है तो उनकी परवाह न करते हुए निरंतर कठिन प्रयास से महान कार्य पूरे हो जाते हैं ।

मुकेश पाण्डेय

ख्वाहिशें


कितनी बेरहम होती है ये ख्वाहिशें, जिन्हें हम पाल कर अपने साथ दर्द का रिश्ता बना लेते हैं । ऎसा क्यों करते हैं ?
शायद ही कोई इन्सान ऎसा होगा जिन्हें इन ख्वाहिशों ने सताया न हो । बिना इन ख्वाहिशों के कोई भी जीवन अकल्पनीय है ।
ये ख्वाहिशें कितनी निर्लज्ज होती है कि पहले तो यह बिन बुलाये मेहमान की तरह हमारे मन-मस्तिष्क में प्रवेश कर जाती हैं फिर चित्त पर अपना आधिपत्य जमाते हुए मस्तिष्क को विवेक शून्य कर देती है तथा अपनी सकारात्मकता के लिए एक तलब पैदा करती है ।
ऎसा लगता है कि जिस प्रकार से हमारे शरीर में सॉस का चलना एक तकनीकी व्यवस्था है, जो हमें जीवित रखती हैं ठीक उसी प्रकार हमारे मन-मस्तिष्क में नये इच्छाओं ( ख्वाहिशों) का बनते रहना ही हमें जीवित रहने का बोध कराती है क्योंकि बोध जो हमें ज्ञानेन्द्गियों द्घारा होता है । अतः ये ख्वाहिशों या इच्छा के हमारे जीवन का स्तम्भ हैं क्योंकि बिना इन ख्वाहिशों या इच्छा के हमारे जीवन का कोई क्रिया-कलाप दिनचर्या से लेकर जीवन में किसी बड़े उदेश्य की प्राप्ति तक आगे कुछ भी समभव नहीं हैं ये इच्छाये भी ख्वाहिशों का स्वरूप ही है इनमें सिर्फ इतना ही अन्तर है कि ख्वाहिशें हमारे जीवन के दिशा का निर्माण करती है तथा इच्छा हमारे वर्तमान क्रिया-कलापों को संचालित करती है और जीवन की दिशा में अग्रसर कराती है ।
ये ख्वाहिशें हमारे जीवन के संचालन में उतनी ही आवश्यक है जितना किसी आटो मोबाइल गाड़ी में ईधन की आवश्यकता हैं, क्योंकि जिस प्रकार गाड़ी की ईधन टंकी में ईधन भरकर उससे गाड़ी चलाने के लिए ऊर्जा प्राप्त करते हैं ठीक हम अपने मनः मस्तिष्क रूपी टंकी में ईच्छा या ख्वाहिशें रूपी ईधन भरकर उनकी प्राप्ति के लिए अपने आप को अर्जित (Active) करते हैं ।
कितनी बड़ी मायावी हैं ये ख्वाहिशें जो अस्तित्वहीन होते हुए भी हमारे अस्तित्व का निर्माण करती है ।
इन ख्वाहिशों की माया ठीक उस शंमा की भांति ही हैं जो हम परवानों को अपनी सकारात्मकता की कशिश में जलता रहता है और जिस प्रकार परवानों की गरिमा या परिचायक एक समाँ होती ठीक उसी प्रकार हमारे आस्तित्व की निर्माता ये ख्वाहिशे ही है क्योंकि इन ख्वाहिशों द्घारा सम्पादित क्रिया-कलाप ही हमारे अस्तित्व एवं व्यक्‍तिव का विकास एवं निर्माण करती है ।
[ विचार मंथन ]
कृष्ण गोपाल Mishra

Monday, August 3, 2009

“बलिदान यह तुम्हारा” के रचयिता राष्ट्रकवि जय सिंह आर्य

“बलिदान यह तुम्हारा” के रचयिता जय सिंह आर्य कहते हैं-
लगभग सात वर्ष पूर्व प्रकाशित मेरे गीत संग्रह “गीत लहरी” को आप लोगों ने जो स्नेह व सम्मानजनक स्थान दिया है, आपके इस स्नेहिल सहयोग के परिणाम के रूप में मेरा यह नया गीत संग्रह “बलिदान यह तुम्हारा” प्रस्तुत है । गत सात वर्षों में सुधी पाठकों तथा विद्वतजनों के लगभग दो सौ पत्र मुझे प्राप्त हुए और पाठकों की मांग पर “गीत लहरी” का दूसरा संस्करण सन्‌ १९८८ में प्रकाशित हुआ । आपके पत्रों द्वारा तथा मौखिक सुझावों ने मेरी लेखनी को धार देकर और पैना कर दिया है । यह तो मैं पहले भी स्वीकार कर चुका कि पिंगल शास्त्र, रस, छन्द आदि काव्य के कला पक्ष पर अधिक अधिकार न होते हुए भी मैने गुरूदेव डॉ. श्यामनन्द सरस्वती की विशेष अनुकम्पा से रचनाओं को अधिक समर्थ सरस एवम्‌ छन्दमय बनाने का प्रयास किया है । मैं अपने चारों ओर के सामाजिक व राष्ट्रीय परिवेश को खुली आँखों से ही देखता हूँ और उसी की भीतरी प्रतिक्रिया कलम से फूट पड़ती है । यद्यपि मेरे भीतरी विचार मंथन से उपजी अभिव्यक्‍ति से प्रत्येक व्यक्‍ति का सहमत होना या प्रभावित होना आवश्यक नहीं है । क्योंकि मैं एक आम आदमी हूँ तथा आम आदमी की परिस्थितियां, समस्याएं, पीड़ा, आक्रोश, विवशता को मैंने सिद्दत के साथ भोगा है । इसलिए मैं नैतिक पतन, दिरभिसँधियों, गिरते राष्ट्रीय चरित्र को अनदेखा नहीं कर सकता हूँ और यही कारण है साहित्यकारों की विशिष्ट सूची में अपना नाम अंकित कराने का अपना मोह त्याग कर मैने जनसामान्य की सोच का प्रतिनिधित्व करते हुए उसे जागृत कर राष्ट्र व समाज के प्रति निष्ठावान बनाने के प्रयास को प्राथमिकता दी है । मैं अपने इस प्रयास में कितना सफल रहूँगा यह तो काल के गर्भ में है, हाँ इतना अवश्य है कि यदि कुछ लोगों तक भी चेतना का स्वर पहुँचा सका तो मैं स्वयं को धन्य समझूंगा । कयोंकि मैं तो स्वयं को जनसाधारण के रोष, दर्द व चिंतन को स्वर प्रदान करने वाला माध्यम मात्र समझता हूँ इसलिए मुझे आपके सहयोग, सुझाव तथा स्नेह की विशेष आवश्यकता है । अपने विचार भेजकर मेरी कलम को सम्बल प्रदान करेंगे ।
समीक्षक संतोष आनंद के अनुसार -
श्री जयसिंह आर्य की नवीनतम कृति “बलिदान यह तुम्हारा” अपने मौलिक रूप में है । मैंने इस पांडुलिपि को बड़े ध्यान और सम्मान से पढ़ा है । श्री आर्य मेरी दृष्टि में एक जन्मजात कवि हैं । जीवन की विसंगतियों से संघर्ष करते-करते वह एक समर्थ कवि बन गये हैं । सबसे बड़ी बात है उनके गीतों की सहजता । जैसे भाव उनके अनुरूप वैसे ही शब्द, ऐसा लगता है जैसे भाषा एक स्रोत के रूप में उनकी कलम से झरती चली जा रही हो । जो कवि होते हैं उनकी संरचना की यही स्वाभाविकता होती है । गीत और छन्द पर उनका विशेष अधिकार है जहाँ राष्ट्रभक्‍ति के गीतों में वह अपने शब्द संयोजन को तलवार का एक पैनापन प्रदान करते हैं । उनके गीतों में शहीदों के प्रति एक अनूठा अनुराग है । उनके प्रति जहाँ श्री आर्य के मन में संवेदना और करूणा की भावना है वहाँ उनके बलिदान से प्रेरित होकर राष्ट्र के प्रति स्वयं के समर्पण की भी भावना है । उनकी दो पक्‍तियाँ द्योतक हैं -
सत्य है शहीदों यह सत्य बात जानो बलिदान यह तुम्हारा हरगिज न व्यर्थ होगा
मेरी सदैव से यह मान्यता रही है कि जिस कवि के हृदय में मानवीय प्रेम नहीं है उसके हृदय में राष्ट्र के प्रति भी प्रेम नहीं हो सकता अर्थात्‌ कविता की मूल जरूरत ‘प्रेम’ है । यह अनुभव श्री जयसिंह आर्य में कूट-कूट कर भरा है । उनकी एक-एक पंक्‍ति जैसे चीख-चीख कर रही हो, प्रेम को अपनाओ और देश को बनाओ, कुर्बानी के गीत, बलिदानों के गीत, समर्पण के गीत लिखने में ईश्‍वर-प्रदत्त महारथ हासिल है । उनकी चार पंक्‍तियाँ मेरे हदय में जैसे घर कर गई हैं-
दुश्मन के घर में घुसकर आँधी बनकर जिसने अपना साहस कौशल दर्शाया दूध छटी का याद दिलाया डायर को वह ऊधम था भारत माता का जाया
श्री जयसिंह आर्य देहात में जन्मे मॉटी पुत्र हैं । उनके गीतों में मॉटी की सुगन्ध आना स्वाभाविक है । ग्राम्य सौन्दर्य को उन्होंने गीतों में बहुत अच्छी तरह संजोया है । ग्राम्य परिवेश के मुहावरे एवम्‌ लोकोक्‍तियों को अपने छन्दों में बहुत ही कारीगरी से इस्तेमाल किया है । उदाहरण के तौर पर
अमुवा की डारी पीपल की छाँव चल मेरे मनवा चल अपने गाँव बरगद के नीचे बचपन है खेला सावन में तीजन-तीजन का मेला चन्दन सी मॉटी, मॉटी में पाँव चल मेरे मनवा चल अपने गाँव
श्री जयसिंह आर्य के अन्तर मन में सामाजिक क्रिया भरपूर काम करती रहती है । राष्ट्र की खामियों को भी उनकी ज्वलन्त पंक्‍तियाँ भरपूर उजागर करती हैं-
दया धर्म से अपना रिश्ता मानव ने अब तोड़ा है गद्‌दारी और मक्‍कारी से उसने नाता जोड़ा है आशाओं पर निर्ममता का भीषण आज प्रहार हुआ मानवताकी पांचाली का चीरहरण हर बार हुआ अपने शव को अपने कंधे पर ही निशदिन मानव ढोता बीज फूट के इस धरती पर मानव बार-बार क्यों बोता
कोई कविताछोटी बड़ी नहीं होती है । श्री जयसिंह आर्य का हृदय जब क्रोंच पंछी की तरह आहत हुआ है तभी उनकी कलम से एक सच्ची एवम्‌ निर्मल कविता का जन्म हुआ है । जब भी वह प्रकाश को पाने निकले हैं तभी उन्हें अन्धकार का सामना करना पड़ा । लेकिन उनकी अधिक इच्छा सदैव अन्धकार को परास्त करती आई और अपने सतत्‌ संघर्ष से रोशनी को मुट्‌ठी में बांध लाई है । तूफानों एवं झंझावातों से लड़ते रहने की वृत्ति उनकी कविताओं की कुलबुलाहट में भाँति-भाँति परिलक्षित होती है -
पैदा जिसने वीर किये हैं नमस्कार उस माटी को प्राण लुटाकर जीवित रखा भारत की परिपाटी को तूफानोंसे सदा खेलते प्रहरी हिन्दुस्तान के ।
नियति का निर्णय सदैव उनके पक्ष में जाता है जो निरन्तर श्रम एवम्‌ लगन से अपने कर्तव्यों को प्रतिष्ठित एवम्‌ प्रतिपादित करते हैं । इन्हीं गुणों को देखकर मैं यह बात बेबाकी के तौर पर कह सकता हूँ कि श्री जयसिंह आर्य अभी बहुत आगे जायेगें उनकी कुछ कर गुजरने की सिद्‌दत है । मेरी हार्दिक कामना है कि उनकी पवित्र एवम्‌ बिना रूके चलने वाली कलम से भविष्य में एक से एक गरिमापूर्ण काव्य ग्रन्थों की रचना साकार हो । यह मेरी कामना ही नहीं मेरे भीतर का अटूट विश्‍वास भी है । “बलिदान यह तुम्हारा” अब पाठकों के समक्ष है । मेरी अन्तर आत्मा बोल रही है कि यह पुस्तक जन-जन के मन में समा जायेगी । मेरी यह हार्दिक शुभकामना है कि श्री जयसिंह आर्य की यह संरचना कालजयी बने ।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष डॉ. देवेन्द्र आर्य कहते हैं-
लगभग १५-२० वर्ष पहले की बात है । राणा प्रताप बाग दिल्ली में आयोजित एक कवि सम्मेलन में जयसिंह आर्य से मुलाकात हुई, सामान्य सा परिचय हुआ, कोई विशेष बात नहीं थी पर जब श्री जयसिंह आर्य कविता पढ़ने खड़े हुए और मधुर स्वर में सिंह नादी मुद्रा में गीत के बोल वायुमंडल में थिरकने लगे तो उपस्थित सारा समाज चमत्कृत हो उठा । मेरे सारे शरीर में सिहरन दौड़ गई, रोमांच हो आया । मधुर स्वरों में कवि आग उगल रहा था, सारा गीत देश को समर्पित था । शब्द-शब्द का सारल्य उत्तेजना बन शिराओं में समा रहा था । बहुत देर तक मैं खोया-खोया सा बैठा रहा । तालियों के अनवरत स्वर से मेरी तन्द्रा टूटी । मैंने सार्थक गीत और प्रभावशाली प्रस्तुति के लिए कवि की पीठ थपथपाई । सामान्य परिचय अब मित्रता में बदल गया था। इसके बाद अनेक मंचों पर ‘जय’ का जय अभियान देखा-सुना है और हर बार इस कवि ने अपनी कविता और प्रस्तुतिकरण से प्रभावित किया है । वस्तुतः यह कवि माटी की सौंधी सुगन्ध से जुड़ा कवि है । राष्ट्र-प्रेम इसकी शिराओं में खनकता है, लहू बनकर प्रवाहित होता है । भाव जब पूरे वेग के साथ कंठ से ही नहीं हृदय से भी निकलता है तो अलंकारों, बिम्ब और प्रतीकों की कृत्रिम डगर छोड़कर अभिव्यक्‍ति का राजपथ, जनपथ ग्रहण कर जन-जन को आन्दोलित करने मचल उठता है, उस समय छन्द के बन्धन भी शिथिल से हो जाते हैं, वस्तुतः भावरूपी उमड़ते ज्वार भाटों के समक्ष सभी बन्धन या तो शिथिल हो जाते हैं या टूटकर किनारे हो जाते हैं । जयसिंह आर्य ऐसी ही ऊर्जा के कवि हैं । आक्रोश है तो सार्थक, भोर की प्रथम किरण सा संस्पर्श है तो स्तुत्य, फूलों की वासन्ती गंध है तो हृदय को गुदगुदाती सी, बांसुरी की मधुर लय है तो जमुना जल में थिरकतीसी, नगाड़े पर चोट है तो अरि दल मर्दन करती सी । सच पूछो तो मुझे इस कवि का आक्रोश भी अच्छा लगताहै और स्नेहमय लालित्य भी- और भला जिसने देश पर सर्वस्व बलिदान करने का प्रण लिया हो, सर पर कफन बांधकर एकाकी निकल पड़ा हो, उस पर क्या कुछ न्यौछावर नहीं किया जा सकता? एक बात विशेष रूप से ‘जय’ के गीतों में देखी जा सकती है, वह है राष्ट्र-प्रेम के साथ-साथ उनका विसंगतियों की ओर भी सजग रहना । समाज में उग्रवाद, भ्रष्टाचार, दुराचार, राजनैतिक पतन, अनैतिकता, समष्टिभाव का अभाव, नपुंसकता की हद तक झुकी समझौतावादी कायरता आदि को ‘जय’ ने खुली आँखों से देखा-परखा है ।
वे देश के प्रति पाठक को जागृत करने के लिए सवाल उठाते हैं- दनदनाती चल रही है गोलियाँ हर नगर में जालिमों की टोलियाँ जल गया ये देश तो फिर शेष क्या?
“फिर शेष क्या” एक विराट प्रश्न आपके समक्ष प्रस्तुत किया गया है । यह शाश्‍वत प्रश्न उसके लिए कहीं ज्यादा महत्व का है जिसका उद्देश्य है ः- जिस धरती पर जन्में उसका कर्ज चुकाना है गद्दारों का इस धरती से बीज मिटाना है
कवि का यह पुरातन आदर्श देश, उसकी शाश्‍वत परम्पराएं कहीं खो गई हैं ः-वह कहता है ः- देख लेना राष्ट्रका उद्धार होगा एक दिन हर मनुज को हर मनुज से प्यार होगा एक दिन
इसके लिए उसे कहना पड़ा ः- माँगे जो देश जान तो हँस के जान दें निज आन, बान, शान की ऊँची उड़ान दें
यूं तो कवि ने अनपढ़ प्यार की सुहानी गंध को भी बहुत करीने से उकेरा है ः-“रूक जा रे मनिहार” लोक गीत के माध्यम से अपने प्रिय को प्रेमपुष्प का भावपूर्ण समर्पण किया है ।
‘जय’ ने अधिकार गीतों में भारतीय वीरों की गौरव गाथा को ही बार-बार प्रणाम किया ः- जो वीर लहू से सींच गये भारत के आँगन का उपवन, उन वीर-शहीदों को मन से करता हूँ मैं शत बार नमन,
जयसिंह आर्य ‘जय’ सम्पूर्ण भावेन राष्ट्र पर समर्पित है और मुझे उसका यह रूप सबसे ज्यादा प्रभावित करता है ।कवि आयु से ही नहीं कविता से भी यौवन काल में चल रहा है यानि कि कवि में अनन्त सम्भावनाएं हैं । ऊपर उठने की हिमालय की बुलन्दी और गगन सा विस्तार है । दृढ़-संकल्पी ‘जय’ में सागर की गहराई और ऊर्जा का अनन्त स्रोत है । देखें भविष्य को और कैसे संवारते हैं । वर्तमान तो कवि का गीत की समृद्ध गलियों में मुस्करा रहा है । सचमुच मैं जयसिंह आर्य ‘जय’ के सुखद वर्तमान से सन्तुष्ट हूँ ।
भविष्य के लिए आशान्वित हूँ - उत्साहित हूँ ।

व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह?

घोटालों के बाद घोटालों की खबरों से भारतीय जनमानस अब अभ्यस्त हो चुकी है । एक ओर जहाँ पारदर्शिता के लिए यूनिक आईडी प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी गई है वहीं दिल्ली महानगरपालिका के लूट की गाथा और देश में फर्जी राशनकार्ड पर शरद पवार के बयान ने व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है । आज भारत की जनता इन घोटालों पर अंकुश लगाने हेतु राजनीतिक नौटंकी के बजाय स्थायी समाधान चाहती है । वह चाहती है ऐसे मजबूत तंत्र का विकास हो जिससे पारदर्शिता बनी रहे और गलत करनेवाले पकडे जाये । देश में सभी विभागो को सक्षम, सुलभ व दोषारहित बनाने हेतु डिजिटल व्यवस्था के साथ-साथ बायोमीट्रिक प्रणाली की आवश्यकता है । दिल्ली में महानगरपालिका में कम से कम ५०,००० ऐसे कर्मचारी सफाई और बगीचों की देखभाल का काम देख रहे हैं जो कागजों पर तो हैं लेकिन उनका कोई अस्तित्व नहीं है । ये सभी एमसीडी के रजिस्टरों में मौजूद है और इनके नाम से हर साल करोड़ों रूपए तनख्वाह भी निकाली जाती है । एमसीडी के कर्मचारियों की रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया के दौरान आंकडा सामने आया है । यदि इस आधार पर भी गणना की जाए तो लगभग ९० करोड़ रूपए हर महीने की गलत तनख्वाह बांटी जाती है । कुछ सूत्रों का कहनाहै कि सालाना यह राशि हजार करोड़ की होती है । एअमसीडी की स्टैडिंग कमेटी के पूर्व सदस्य विजेंदर गुप्ता कहते हैं कि एमसीडी में हजारों ऐसे कर्मचारी हैं और इन्हें बाकायदा मासिक वेतन मिलता है । अब बॉयोमीट्रिक सिस्टम के चलते सच सामने तो आ रहा है । इस बारे में सीबीआई की जांच की मांग की जा सकती है लेकिन इसके लिए १५ जुलाई तक का इंतजार करना होगा । इस बारे में दिल्ली की पूर्व महापौर आरती मेहरा कहती हैं कि ऐसे कर्मचारियों की जांच करने के लिए बॉयोमीट्रीक सिस्टम लगवाने की शुरूआत हुई थी और अब इसका नतीजा सामने है । देश में हैं ३.५ करोड़ फर्जी राशन कार्डसार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) द्वारा सही लोगों तक खाद्यान्‍न पहुंचने में काफी समस्या आ रही है । खुद केंद्रीय खाद्य मंत्री शरद पवार ने राज्य सभा में ऐसा बयान दिया । उनका मानना है कि पूरी वितरण प्रणाली में काफी खामियां हैं । गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) वाले बोगस कार्डो की भरमार है । देश में बीपीएल परिवारों की संख्या साढ़े छह करोड़ है, जबकि राज्यों की ओर से १० करोड़ राशन कार्ड जारी किए हैं । अर्थात देश में हैं ३.५ करोड़ फर्जी राशन कार्ड । पवार ने सदस्यों के सवालों के जवाब में कहा, राज्यों से कहा गया है कि अभियान के तहत जाली राशन कार्डो का पता लगा कर उन्हें वापस लें । लेकिन राज्यों ने अभी तक संतोषजनक तरीके से इस दिशा में कदन नहीं उठाया है । सरकार की तरफ से पीडीएस की खामियों को दूर करने और उसे चुस्त दुरस्त बनाने को लेकर कमिटी गठित की गई थी । सुप्रीम कोर्ट ने भी पीडीएस को लेकर कमियों का जिक्र किया है । पीडीएस की समीक्षा की गई है लेकिन जब तक बोगस राशन कार्डो को नहीं हटाया तब तक इसे पूरी तरह से दुरूस्त करने में दिक्‍कत आएगी ।

पतिताओं की जिंदगी को सँवारने जुटा एक स्वतंत्रता सेनानी


आजादी के ६२ साल बाद उनके वजूद को चेहरा दिलानेवाले व्यक्‍तित्व का नाम खैराती लाल भोला । सन १९८४ से देश की वेश्याओं एवं उनके बच्चों तथा हिजड़ों के पुनर्वास और उत्थान एवं उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़नेवाली संस्था भारतीय पतिता उद्धार सभा (पंजी.) नई दिल्ली ने विश्‍व के १७६ देशों की तरह भारत में भी वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता देने की माँग की है । सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रमुख समाजसेवी एवं स्वतंत्रता सेनानी खैराती लाल भोला का कहना है “यदि यौन सेविकाएँ (वेश्याएँ) न हो तो यौन पिपासुओं को एक ही स्थान पर सीमित न रखा जा सकेगा और यह गली मोहल्लों में अपनी यौन संतृष्टि हेतु बलात्कार व अपराध करेंगे, जिससे घर की बहू-बेटियाँ सुरक्षित नहीं रहेगी । इसलिए यौन सेविकाएँ समाज का महत्वपूर्ण अंग है, जिसके बिना समाज सुरक्षित नहीं रह सकता । उज्जैन में नगर निगम ने वेश्याओं को लाइसेंस दिए हैं । देश के ११०० रेडलाईट इलाकों के तीन लाख कोठों की तेईस लाख वेश्याएँ अपने ५१ लाख बच्चों के साथ रहती है जिनमें से अधिकतर वेश्याएँ एवं उनके बच्चे बिमारी, शोषण, उत्पीड़न व तंगी के साथ जीवन गुजार रहे हैं । एक कोठे में ३० से १५० व्यक्‍ति रह रहे हैं । इन्हें न तो जीने के लिए ताजी हवा मिल पाती है और न तो पीने के लिए ताजा, शुद्ध व स्वच्छ पानी । अधिकतर वेश्याओं की ८० प्रतिशत आय कोठा मालकिनों, पुलिस, भडुओं, दलालों, राशनवालों, साहूकारों, डॉक्टर में बँट जाती है । इस आर्थिक तंगी के कारण ये वेश्याएँ अपने बच्चों को स्कूल भेजने व ईलाज कराने में असमर्थ रहती है । आजादी के बाद वेश्याओं का सर्वेक्षण नहीं हो पाया है । भारत में अनेक रूपों में वेश्यावृत्ति या अनैतिक देह व्यापार या व्यावसायिक तौर पर यौन शोषण हो रहा है । इन्हें वेश्या, नाचनेवाली लड़कियों, कॉलगर्ल तथा धार्मिक और परंपराओं को अपनाने के नाम पर आंघ्रप्रदेश में देवदासी, जोगिन, कर्नाटक में बसाबी और बेहरिया जैसे नामों से जाना जाता है । आज कई राष्ट्रीय राजमार्गों व अन्य मार्गों पर चकलाघर, मसाज पार्लर, ब्यूटीपार्लर खुल गए हैंजो असुरक्षित यौन संबंधों को बढ़ावा दे रहे हैं । यह देश में बढ़ते एड्‌स के लिए भी जिम्मेदार है । इसलिए सरकार को इसे कानूनी जामा पहनाकर तथा इनका सर्वेक्षण कराकर इन्हें शिक्षित करने ए साथ साथ कंडोम की जानकारी देकर इनके जीवन को सुरक्षित करने की पहल करनी चाहिए । इनकी कमाई का अधिकतर हिस्सा खानेवालें, दलालों, पुलिस आदि पर अंकुश लगाकर इन्हें शोषण से बचाना चाहिए । इनके समय-समय पर स्वास्थ्य परीक्षण,पुनर्वास, उत्थान तथा जो वेश्याएँ स्वेच्छा से यह धंधा छोड़कर घर बसाना चाहती हैं, उनकी शादी कराकर घर बसाना जाना चाहिए । असहाय वृद्ध वेश्याओं को पेंशन आदि सुविधाएँ दी जाय । इनके बच्चों को शिक्षित कर राष्ट्र व समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जाय । भारतीय पतिता उद्धार सभा कई रेडलाईट एरियों में इनके बच्चों के लिए स्कूल, अस्पताल, मोबाईल, चिकित्सा वैन चालू किए हैं । आज देश में १५ प्रतिशत यौन सेविकाएँ (बाल वेश्याएँ) १५ साल से कम और २५ प्रतिशत १८ वर्ष से कम है जो एक दिन में ३ से ५ ग्राहकों को संतुष्ट करती है फिर भी वह शोषित व उत्पीड़ित है । श्री भोला के अनुसार वेश्याओं की ट्रेड यूनियन बनाने की माँग जोर पकड़ती जा रही है । कोलकत्ता में वेश्याओं के हुए सम्मेलनों में इस माँग को प्रमुखता से उठाया गया । वेश्याओं का कहना है कि यौनाचार के काम को पूरा करने के लिए उन्हें बहुत अधिक शारीरिक परिश्रम करना पड़ता है । यौनाचार के कारण उन्हें कई बार चोट भी लग जाती है तथा शारीरिक पीड़ा भी होती है, जिसकी भरपाई होनी चाहिए । श्री भोला ने राष्ट्रीय एड्‌स नियंत्रण संगठन के उस ताजा आदेश का भी विरोध किया है जिसमें वेश्याओं की कुल आवश्यकताओं के ५० प्रतिशत कंडोम्का पैसा लिए जाने तथा ५० प्रतिशत निःशुल्क दिए जानेको कहा गया है । श्री भोला ने कहा कि संगठन को वेश्याओं को उनकी आवश्यकतानुसार निःशुल्क कंडोम देने चाहिए । जन्म से हिंदूतथा सब धर्मों में समान आस्था और ईश्‍वर पर अटूट विश्‍वास रखनेवाले आर्यसमाजी ८० वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं सभा के अध्यक्ष खैराती लाल भोला पेंशन का एक रूपया भी नहीं लेते । देश की वेश्याएँ इनको अपना पिता व मसीहा मानती है । इनके मिशन में इनकी धर्मपत्‍नी एवं सभा की महासचिव श्रीमती शीला रानी की की भूमिका सराहनीय रही है । अपनी शादी की ५० वीं सालगिराह मनाने के बाद इनकी पत्‍नी का स्वर्गवास हो गया। अपने मिशन में मीडीया, पत्रकारों व समाचारपत्र पत्रिकाओं की सराहनीय भूमिका के लिए वे सदैव आभार प्रकट करते रहे हैं । जी.बी रोड दिल्ली, कोलकत्ता एवं कमाठीपुरा मुंबई की अधिकतर वेश्याएँ मजबूरी में जबरन लाई जाती है । उन्होंने कई वेश्याओं की दास्तान सुनाते हुए कहाकि म.प्र. की शमेमा एक चॉकलेट के लालच में बाल्यावस्था में इस पेशे में ढकेल दी गई । उसे यह भी नहीं पता कि सर्वप्रथम किसके साथ और कैसे हमबिस्तर हुई? किसी तरह उसने युवावस्था में इस दलदल से बाहर निकलकर शादी की परन्तु पति ने २ बच्चों की माँ बनाने के बाद उसे मारना पीटना शुरू कर दिया । मजबूरन बच्चों को रिश्तेदारों के यहाँ छोड़कर पुनः इस धंधे में लिप्त हो गई । अब वह इतनी टूट चुकी है कि उसे हर हमबिस्तर ग्राहक में पति की क्रूरता नजर आती है । पति द्वारा छोड़ने पर इस दलदल में फँसी रानी का कहना है कि सरकार बड़े-बड़े वायदे करती है । वेश्याओं के उत्थान्हेतु काम करनेवाले कई एनजीओ सरकारी धन का दुरूप्रयोग करते हैं परन्तु कोई भी हमारी वास्तविकता की तरह ध्यान नहीं देता, हमारी मदद नहीं करता । जो भले प्रतिष्ठित सफेदपोश लोग रात के अंधेरे में हमें सबकुछ मानकर अपनी रातें रंगीन करते हैं और वह जब तक हमारे साथ रात रंगीन नहीं कर लें तब तक उन्हें अपने बिस्तरों पर नींद नहीं आती है । वही सफेदपोश समाज के प्रतिष्ठित लोग दिन के उजाले में हमारे विरूद्ध आवाज उठाते हैं व हमें छूत समझते हैं । भारतीय पतिता उद्धार सभा व श्री भोलाजी हमारे पिता समान हैं । आज संस्था द्वारा देश के कई रेडलाईट एरियों मेंहमारी शारीरिक, आर्थिक व सामाजिक मजबूरी को समझतेहुए हमारा पुनर्वास व उत्थान कराया । हमारे बच्चों को शिक्शित कराकर राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ा । रानी, शमीमा व अन्य वेश्याओं का कहना है कि ३०-३५ की उम्र के बाद वेश्याओं की जवानी जब डल जाती है तो उनका जीवन नरक हो जाता है । सरकार को ऐसी वेश्याओं को ५०-५० गज का प्लॉट व स्वरोजगार कराना चाहिए । उनके स्वास्थ्य व शिक्षा की तरह विशेष ध्यान देना चाहिए । वेश्यावृत्ति भी एक व्यापार है । वेश्याएँ अपने जीविकोपार्जन हेतु अपने शरीर का व्यापार करती है, श्रम करती है । शारीरिक व आर्थिक उत्पीड़न झेलती है । राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुसार वेश्याओं से हर वर्ष दंड के रूप में एक करोड़ रूपए की वसूली होती है । देश की महिलाएँ हर साल लगभग पाँच करोड़ वकीलों को देती है । देह व्यापार में लगे लोग हर महीने पुलिस को साढ़े नौ करोड़ रूपए रिश्वत के रूप में देते हैं । भारतीय पतिता उद्धार सभा का यह भी कहना है कि यदि तलाकशुदा, मजबूर, विधवा औरतों को देह व्यापार का हक दे दिया जाय तो छेड़खानी, बलात्कार की संख्या में कमी आएगी । भोजन, पानी वायु आदि की तरह यौनसुख भी पुरूष एवं स्त्री दोनों के लिए मुख्य शारीरिक आवश्यकता है । वास्तव में सृष्टि की रचना के साथ ही वेश्यावृत्ति का आरंभ हुआ और समय के साथ इस पेशे का रूप भी बदल गया । इस धंधे में शामिल वेश्याएँ समाज की गंदगी को दूर करती है । वेश्याएँ जहां मजबूरी व गरीबी में इस धंधे में आती है और कंडोम आदि का प्रयोग करती/कराती है, वहीं कॉलगर्ल की पहचान करना मुश्किल है । वह मजबूरी कम अय्याशी, ऐशो आराम तथा पैसों की खातिर इस धंधे में आती है । इनके साथ यौन संबंध बनाते समय पुरूष कंडोम आदि का प्रयोग नहीं करता इसलिए कॉलगर्ल एड्‌स जैसे रोग फैलाने में ज्यादा खतरनाक है । इस संदर्भ में समाज के बुद्धिजीवियों, उद्गोगपतियों, संस्था संचालकों, कवियों, लेखकों व पत्रकारों को भी इनके हक की लड़ाई लड़नी होगी । सामर्थ्यवान अपनी लड़ाई लड़ने में स्वयं सक्षम होता है सहयोग व समर्थन की जरूरत उसे है जो अपनी आवाज को बुलंद रूप से र्खने में सक्षम नहीं है । नारी विमर्श में वेश्याओं हिजड़ों, खानाबदोशों, घुमंतुओं को क्यों नहीं शामिल किया जाता? देश के नीति निर्माता अपनी योजनाओं में इन उपेक्षितों को क्यों भूल जाते हैं? आज हमें ज्ञान व विकास की दीपक उस जगह जलाने की जरूरत है जहाँ अभी तक अंधेरा है । वेश्याओं के जीवनशैली पर आधारित फिल्में यथा पाकीजा, तवायफ, उमराव जान आदि ने तो अपनी अमिट छाप छोड़ी । उसी तरह आज साहित्य व पत्रकारिता में भी इस विषयवस्तु को फोकस कर रचनाओं का सृजन हो । समाज के जिंदा लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि इस दिशा में अपने कठोर परिश्रम के साथ साधना करनेवाले साधकों को पुरस्कार व सम्मान दें तथा दिलवाएँ जिससे युवा जगत व हमारी आगामी पीढ़ी प्रेरणा ले सकी । देशी-विदेशी दानदाताओं व स्वास्थ्य से संबंधित संस्थाओं को श्री भोला जैसे व्यक्‍ति की हरसंभव मदद हेतु कदम बढाने चाहिए । सिलाई, बुनाई, सीखकर ये वेश्याएँ खुद को सुनहरे भविष्य की झलक देखने लगी है क्योंकि संस्था के संघर्ष द्वारा अब न्यायालय ने पिता की जगह माता का नाम पहचान के तौर पर लिखवाना अनिवार्य कर दिया है । पहचानपत्र द्वारा पहचान से नई हिम्मत और ताकत की अनुभूति कर रही हैं ये वेश्याएँ । आइए इनके जिंदगी को सजाने, सँवारने और सुरक्षित करने के अभियान में अपनी भूमिका सुनिश्‍चित करें ।

वेश्याओं, निस्सहायों, विधवाओं तथा उनके बच्चों की सेवा में समर्पित संस्था भारतीय पतिता उद्धार सभा

देह व्यापार को वैध घोषित करने की माँग ःदेश में यौनकर्मियों के हितों की खातिर संघर्ष करनेवाली गैर सरकारी संस्था भारतीय पतिता उद्धार सभा ने माँग की है कि जब दिल्ली उच्च न्यायालय धारा ३७७ के तहत समलैंगिकता को वैध ठहरा सकता है तो देह व्यापार को भी कानूनी मान्यता दी जानी चाहिए । सभा के अध्यक्ष खैराती लाल भोला ने केंद्रीय विधि मंत्री वीरप्पा मोइली को लिखे पत्र में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि जब समलैंगिकता को वैध ठहराया जा सकता है तो देश की लाखों यौनकर्मियों की वर्षों से चली आ रही माँग को पूरा करते हुए देह व्यापार को कानूनी रूप से वैध ठहराया जाय । देश में ११०० रेडलाईट क्षेत्र हैं जहाँ लगभग तीन लाख कोठों में २३ लाख यौनकर्मी अपने ५४ लाख बच्चों के साथ रह रही हैं । दुखद बात यह है कि कोठा मालकिन इन यौनकर्मियों की आय का ८० फीसदी खुद ही ले लेती है । अगर इस क्ष्रेत्र को कानूनी मान्यता मिल जाए तो यौनकर्मियों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा की स्थिति में बहुत सुधार हो सकता है । क्योंकि पुलिस भी यौनकर्मियों से लाखों रूपए की वसूली करते हैं । श्री भोला ने उच्च न्यायालय के इस फैसले का विरोध करते हुए कहा कि कुदरत ने स्त्री और पुरूष को एक दूसरे का पूरक बनाकर प्राकृतिक संतुलन बना रखा है । हमारा समाज भी पारिवारिक, धार्मिक और नीति संबंधी मूल्यों पर आधारित है । इसलिए समलैंगिकता संबंधी जटिल मुद्‌दे का समाधान भी समाज के दायरे में होना चाहिए । श्री भोला ने कहा कि अगर सरकार ने समलैंगिकता को मंजूरी दी तो सभा सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएगी । वोट का अधिकार दिलायाःराजधानी दिल्ली के रेडलाईट एरिया की सेक्स वर्करों को वोट डालने का अधिकार मिल ही गया । ये इस बात से तो खुश हैं कि विश्‍व के सबसे बड़े लोकतंत्र में उन्हें भी भागादारी का अवसर मिल गया लेकिन इस बात को लेकर ये निराश भी हैं कि वोट देने के बावजूद उनकी नारकीय जिंदगी में शायद ही सुधार हो पाए । जीवी रोड स्थित रेडलाईट एरिया में काम करनेवाली करीब २५०० सेक्स वर्करों में से १२०० के वोटर आई कार्ड बन गए हैं । इस कार्ड को बनाने में उन्हें खासी परेशानी का सामना करना पड़ा और सरकारी दफ्तरों में धक्‍के खाने पड़े । इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी । इस कार्ड को पाने के लिए उन्होंने एक साल पहले कवायद शुरू की थी और इसके लिए भारतीय पतिता उद्धार सभा के चेयरमैन खैरातीलाल भोलाके अलावा इकबाल अहमद और राजेश भारद्वाज ने खासी मशक्‍कत की । लगभग साल भर पहले ही ढाई हजार फॉर्म भरकर भेज दिए गए थे लेकिन जाँच के दौरान पर्याप्त सूबूत ना होने या सेक्स वर्करों के उनके कोठों पर न मिलने के कारण ही करीब १२०० के ही कार्ड बन पाए । इसके बाबजूद भी सभा के पदाधिकारी निराश नहीं हैं । उनका कहना है कि चुनाव का दौर पूरा होने के बाद बाकी का भी वोटर आई कार्ड बनाने की कोशिश शुरू कर दी जाएगी । सभा की पदाधिकारी नसरीन बेगम के अनुसार कार्ड बनाने के दौरान लड़कियों को कई जिल्लतों और परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी । चुनाव के दिनों रेड लाईट एरिया के एक कोठे में रहनेवाली रजिया, नेहा, माया, कांता व बबीता को कार्ड मिल जाने पर चेहरे खिल गए थे । वे इस बात से खुश थीं कि उन्हें पहली बार वोट डालने का अधिकार मिल गया है । इसके बाबजूद वे इस बात से निराश हैं कि वोट डालने के बाद भी उनके जीवन में नई रोशनी नहीं आ पाएगी । दलालों के आतंक से मुक्‍ति कैसे मिले?जीबी रोड की सेक्स वर्कर दलालों के आतंकवाद से परेशान हैं । ग्राहकों से लूटपाट करने के अलावा दलाल सेक्स वर्करों का भी शोषण करते हैं । इस संबंध में पतिता उद्धार सभा ने गृहमंत्री को पत्र लिखकर कार्रवाई करने की माँग की है । गौरतलब है कि गत दिनों जीबी रोड पर रेलवे सुरक्षा के दो सिपाहियों की चाकू गोदकर हत्या कर दी गई थी । घटना को इलाके के ही एक घोषित अपराधी चमन व उसके साथियों ने अंजाम दिया था । समीप के इलाकों में रहने वाले इस तरह के अन्य बदमाश भी जीबी रोड के कोठों पर अक्सर मंडराते रहते हैं । इनके आतंक से कोठों में रहने वाली सेक्स वर्कर तथा ग्राहक दहशत में रहते हैं । इसकी वजह यहाँ बदमाशों के संरक्षण में पलनेवाले दलाल हैं । ये लोग ग्राहकों को कोठों पर ले जाने के बहाने सीढ़ियों पर ही लूट लेते हैं । विरोध करने पर मारपीट भी करते हैं । इस संबंध में पतिता उद्धार सभा के अध्यक्ष खैरातीलाल भोला के अनुसार पुलिस यहाँ सेक्स वर्करों पर तो सख्ती करती है मगर दलालों पर कोई कारवाई नहीं करती । सचिव इकबाल ने बताया कि जीबी रोड पर चार से पाँच हजार सेक्स वर्कर हैं । दलालों द्वारा उनके साथ मारपीट की घटनाएँ आम हैं । कोई घटना होने पर पुलिस कोठों पर आनेवाले ग्राहकों पर तो सख्ती कर देती है लेकिन यहाँ घूमनेवाले दलालों पर कारवाई नहीं करती । उन्होंने सरकार से इस संबंध में कारवाई की माँग की है । प्रमुख विशेषताएं* सभी लाल बत्ती क्षेत्रों में उनके बच्चों के लिए बाल विद्या निकेतन खोलना । (बाल विकास तथा देख रेख केंद्र)* वेश्याओं के बच्चों तथा अन्य को राज्य सरकारों द्वारा चलाये जा रहे ग्रामीण कुटीर गृहों में दाखिले के लिए प्रेरित करना । * राज्य सरकारों के स्वास्थ्य विभागों के साथ नियमित अंतराल पर यह सुनिश्‍चित कराने के लिए सम्पर्क करना, कि लाल बत्ती क्षेत्रों में निरोध की आपूर्त्ति की जा रही है कि नहीं । * वेश्याओं का उद्धार तथा उनका पुनर्वास ।* उन्हें सामाजिक स्तर दिलवाना, तथा प्रमुख राष्ट्रीय धारा में सम्मिलित कराना । * उन्हें राशन कार्ड, हैल्थ कार्ड तथा फोटो पहचान पत्र उपलब्ध कराना । * उन्हें मुफ्त चिकित्सा सहायता उलब्ध कराना । * जो वेश्याएं अपना काम छोड़ना चाहती हैं, उनकी शादी की व्य्वस्था करना ।* यदि प्रस्ताव किया जाए तो दाह संस्कार हेतु धन उपलब्ध कराना ।* राज्य सरकारों से लाल बत्ती क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाने के लिए अनुरोध किया गया है । संगठनात्मक ढांचा भारतीय पतिता उद्धार सभा १९८४ में वेश्याओं और उनके बच्चों के पुनर्वास, सुव्यवस्थित तथा सुधारने में उन्हें सामाजिक स्तर प्रदान कराने तथा मुख्य राष्ट्रीय धारा में सम्मिलित कराने के लिए स्थापित की गयी थी । यह पंजीकृत गैर सरकारी संस्थाओं में से एक है । इसकी एक राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति है, जिसके अध्यक्ष श्री खैराती लाल भोला हैं । सभा को इसके संस्थापक, समर्थक, व कार्यकारी सदस्यों तथा अन्य माननीय सदस्यों द्वारा की जा रही संपूर्ण सहायता पर गर्व है । संपूर्ण भारत इसका अधिकार क्षेत्र है तथा ९ राज्यों में इसके कार्यालय स्थापित किए गए हैं, जहां यूनिट समितियां पहले ही बनी हुई थीं। आयाम तथा विस्तारसभा द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार भारत में लगभग २३ लाख वेश्याएं हैं तथा इनके बच्चों की संख्या ५१ लाख है, जो २,७५००० कोठों में रहते हैं । कुल ११०० लाल बत्ती क्षेत्रों की पहचान की गई है । ज्यादातर लाल बत्ती क्षेत्र शहरों के मध्य अथवा राजमार्ग पर स्थित हैं । इसके अतिरिक्‍त (काल गर्ल्स) की एक बड़ी संख्या है जो महानगरों की उच्चवर्गीय रिहायशी इलाकों में क्रियाशील हैं । महिलाओं का इस प्रकार का कब्जायिक शोषण किया जाना भारत में कोई नई बात नहीं है । इंसानी खरीद-फरोख्त का यह धंधा बहुत फल-फूल रहा है । हमारे अनुमान के अनुसार लगभग २५,५०० युवा लड़कियां हर वर्ष इस व्यवसाय में आती हैं, इनमें ‘सार्क’ देशों की लड़कियां भी सम्मिलित हैं । यह अनुमान है कि प्रत्येक वर्ष विश्‍व में लगभग १० लाख युवा लड़कियों को इस व्यवसाय में धकेल दिया जाता है । वेश्याएं तथा इनके बच्चे अति निम्न स्तरीय मानवीय परिस्थितियों में रह रहे हैं । एक कोठे में लगभग ३० से १५० व्यक्‍ति रह रहे हैं । अधिकांश वेश्याएं संक्रामक रोगों तथा एच.आई.वी. पाजिटिव/एड्‍स से पीड़ित हैं । इनकी कमाई भी बहुत सीमित होती है, जिसमें कोठी की मालकिनों, दलालों, भड़वों, राशन वालों, पुलिस कर्मियों, डॉक्टरों, साहूकारों इत्यादि को भी हिस्सेदार बनाना पड़ता है । अत्यंत ही बदहाली और तंगी में इन्हें जीवन निर्वाह करना पड़ता है । धन की कमी के कारण ये न तो अपनी चिकित्सकीय जांच करवा पाती हैं और न ही अपने बच्चों को स्कूल भेज सकती हैं । इस संबंध में यह भी बताया जाता है कि १९८२ में मद्रास में पहला एच. आई. वी. पाजिटिव का मामला प्रकाश में आया था और अपने यहां भारत में लाखों लोग इस रोग से ग्रसित हैं । अगले कुछ वर्षों में एच.आई.वी. पाजिटिव के मामले और नई सीमा तक पहुंच सकते हैं । सुरक्षात्मक उपायकेंद्र/राज्य सरकारों द्वारा उठाए गए अप्रभावी उपायों के कारण वेश्यावृत्ति के धंधे को और गति मिल रही है । इस व्यवसाय को नियंत्रित करने के लिए एस.आई.टी.ए. तथा पी.आई.टी.ए. अधिनियम बनाये गये थे । इन अधिनियमों में कई संशोधन भी किए गए तथा उन व्यक्‍तियों को सख्त सजा देने के प्रस्ताव भी प्रस्तुत किए गए जो इस व्यवसाय में संलिप्त हैं । इस बात की तत्काल आवश्यकता है कि एक टास्क फोर्स बनाई जाए, जिसमें एस.डी.एम., सेवा प्राप्त अधिकारी पत्रकार, पुलिस शक्‍तियां प्रदान की जाएं, ताकि वे पुलिसकर्मियों की सहायता से छापे मार सकें । केवल यही नहीं, विशेष अदालतें खोली जाएं, वर्तमान वेश्याओं की सूची बनाई जाएं, नए प्रवेशकों को जानने के लिए पुलिस को नियमित अंतराल पर वेश्याओं की पूर्ववत संख्या जांचनी चाहिए । वेश्याओं के बच्चों को, खासतौर पर लड़कियों को, उनकी माताओं से अलग करके सरकारी गृहों में रखना चाहिए । ऐसा करने से उनके बच्चे इस माहौल से दूर रहेंगे । वेश्याओं के लिए मांगेंयह बहुत दुख की बात है कि स्वतंत्रता के पश्‍चात वेश्याओं तथा इनके बच्चों के कल्याण के लिए केंद्र/राज्य सरकारों द्वारा नहीं के बराबर कार्य किया गया है । जैसे कि ९० प्रतिशत तक वेश्याएं अनपढ़ हैं, वे अपने लिए इस व्यवसाय से मुक्‍ति पाने के लिए आवाज भी नही ंउठा सकतीं । इन्हें एस.आई.टी.ए. तथा पी.आई.टी. अधिनियम के प्रावधानों के बारे में कोई भी जानकारी नहीं है । इनकी दुर्दशा को देखते हुए सभा ने निम्नलिखित मांगों के लिए अपनी आवाज उठाई है ः१ . महिलाओं तथा बच्चों के पुनर्वास के लिए दीर्घ-अवधि योजनाएं लागू की जाएं । २ . इन दलित महिलाओं के पुनर्वास के लिए स्कूल सह छात्रावास की स्थापना करना । ३ . संबंधित विभागों को राशन कार्ड, मतदाता फोटो पहचान पत्र, चिकित्सा कार्ड आदि जारी करने के लिए निर्देश देना । ४ . बीमा, पेंशन योजनाओं को शुरू करना तथा बचत योजनाओं के लिए इन्हें प्रोत्साहित करना । ५ . रोजगार के अवसर उपलब्ध करवा कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना ।६ . इनके मामलों के लिए पृथक आयोग/विभाग की स्थापना की जाए ।७ . इनके बच्चों के लिए नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था तथा अन्य संस्थाओं को अलग से रखने की व्यवस्था की जानी चाहिए । ८ . सेक्स वर्करों को निःशुल्क कंडोम वितरित करें ताकि एड्‌स जैसी बीमारी से बच सकें । सभा द्वारा चलाए जा रहे बाल विद्या निकेतनहमारी सभा वाराणसी तथा इलाहबाद में इन दलित महिलाओं तथा अन्य बच्चों के लिए दो बाल निकेतन (बाल विकास तथा देखभाल केंद्र) चला रही है । वर्तमान समय में लगभग १४० बच्चे स्कूलों मेंपढ़ रहे हैं, इसके अतिरिक्‍त सभा द्वारा वेश्याओं के ३०९ बच्चों को दिल्ली सरकार के ग्रामीण कुटीर गृहों में दाखिले के लिए प्रयोजन किया गया है । प्रति वर्ष अप्रैल तथा नवम्बर माह में हम दो स्कूल समारोह आयोजित करते हैं, जिसके दौरान स्कूल के बच्चों में ग्रीष्म कालीन तथा शरद कालीन वर्दियों तथा अन्य शिक्षा संबंधी साम्रगी का वितरण किया जाता है । हमारे बाल विद्या निकेतनों में बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है । मध्यान्ह में दिए जाने वाले आहार, वर्दियों, स्कूल बैग, जूते, शिक्षा संबंधी सामग्री, परिवहन, चिकित्सा सुविधाओं, पिकनिक इत्यादि के संबंध में खर्चे सभा द्वारा ही किए जाते हैं । सभा में सचिव, महिला तथा बाल विकास विभाग तथा अध्यक्ष केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड को सूरत, मुंबई, आगरा, फिरोजाबाद, बस्ती, वाराणसी, (दूसरी शाखा), पुणे, नागपुर, राजकोट, हैदराबाद, अन्‍नापति, बेंगलूर, कोलकाता, मुजफ्फरपुर, चेन्‍नई, भोपाल, भुवनेश्‍वर तथा दिल्ली में बाल विकास तथा देखभाल केंद्र खोलने के लिए कई नई योजनाएं प्रस्तुत की हैं । भूमि/भवन के लिए अनुरोधसभा ने नियमित अंतराल पर दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश, पश्‍चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, तथा उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्य मंत्रियों से दलित महिलाओं के बच्चोंके लिए उचित भूमि/भवन दान में देने लिए अनुरोध किया है, किंतु अभी तक हमारे अनुरोधों पर कोई विचार नहीं किया गया है । एड्‌स के प्रति जागरूकता अभियानकेंद्र/राज्य सरकारें भारत के शहरों तथा नगरों में एड्‌स के प्रति जागरूकता अभियान चला रही हैं परन्तु अभी तक अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं हो सकी है और एड्‌स के मामले खतरनाक ढंग से बढ़ते जा रहे हैं । इस मोर्चे पर और अधिक प्रबल प्रयास अपेक्षित है । यह भी कहा गया है कि एड्‌स ग्रस्त वेश्‍याओं को अलग से अस्पताल में रखा जाए तथा २००० रूपए प्रति माह निर्वाह भत्ता प्रदान किया जाए । माननीय अदालतों के निर्णयसभा ने दिनांक २१.१.८८ को माननीय भारतीय सर्वोच्च न्यायालय में दाखिले फार्म में पिता के साथ माता का नाम भी जोड़े जाने के लिए रिट पैटिशन दाखिल की थी । माननीय जजों ने दिनांक १२.१.९३ को हमारे पक्ष में निर्णय सुनाया था । यह केवल सभा द्वारा किए गए वास्तविक प्रयासों का ही परिणाम था कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित प्राधिकरणों को माता का नाम फार्म में जोड़ने के लिए निर्देश दिया । पूरे भारत में इसके द्वारा लगभग ३ करोड़ बच्चों का स्कूल में दाखिला संभव हो सका है । सुप्रीम कोर्ट में दायर एक अन्य केस में सभा ने केंद्र/राज्य सरकारों से इन दलित महिलाओं के लिए कई राहतों की मांग की थी । ९.७.९७ को दिए ऐतिहासिक फैसले में माननीय न्यायधीशों ने केंद्र/राज्य सरकारों को समितियां बनाने तथा इन्हें तत्काल राहत उपलब्ध कराने के आदेश दिए । व्यावसाय को विधिक रूप से मान्य बनानावेश्याओं की परिस्थितियों के मद्दे नजर इनके व्यवसाय को वैधनिक मान्यता प्रदान करने की आवश्यकता है । यहां यह कहना संगत होगा कि विश्‍व के १७५ देशों में इस व्यवसाय को वैधानिक मान्यता प्राप्त है । उज्जैन में नगरपालिका ने वेश्याओं को लाइसेंस जारी किए हैं । इस संबंध में दिनांक १०.९.९८ को सुप्रीम कोर्ट में एक केस दाखिल किया गया । अक्टूबर में माननीय न्यायाधीशों द्वारा यह कहते हुए इसे खारिज कर दिया गया कि यह सरकार के पॉलिसी का मामला है । अपील सन्‌ १९८४ से अस्तित्व में आई भारतीय पतिता उद्धार सभा वेश्याओं तथा उनके बच्चों के पुनर्वास, उद्धार तथा कल्याण के लिए सेवारत है । सभा ने ९ राज्यों में अपने ऑफिस खोले हुए हैं । पुलिस की मदद से सभा अब तक अनेक वेश्याओं को कोठों से मुक्‍त करा चुकी है । सभा ने सूरत तथा दिल्ली में वेश्याओं के प्रति फ्री मेडिकल चेक-अप का भी इंतजाम किया । उल्लेखनीय है कि वेश्याओं और उनके बच्चों में निरक्षरता की दर ८५ प्रतिशत से अधिक है । वेश्याओं, उनके बच्चों तथा विधवाओं इत्यादि को नर्सरी से पांचवी तक मुफ्त शिक्षा प्रदान करने के लिए सभा ने वाराणसी तथा इलाहबाद में दो बाल विद्या निकेतन भी खोले हैं। ये दोनों उपक्रम भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हैं तथा केंद्रीय सामाजिक कल्याण बोर्ड द्वारा इन्हें सभी जरूरी सहायता मुहैया कराई जाती हैं । इन स्कूलों में वेश्याओं, बेसहाराओं, तथा विधवाओं के १५० से भी अधिक बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं । उन्हें स्कूली वर्दी, कापी-किताबें, दोपहर का भोजन और चिकित्सा सुविधाएं मुफ्त प्रदान की जा रही हैं । सभा ने दिल्ली सरकार के कल्याण विभाग द्वारा चलाए जा रहे ग्रामीण कुटीर गृह मेंभी ३१५ बच्चों के प्रवेश को प्रयोजित किया है । सभा ने प्रोजेक्ट्‌स मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्त्री और बाल विभाग के पास भेज दिए हैं ताकि सूरत, मुंबई, आगरा, फिरोजाबाद, बस्ती, हरिद्वार, पुणे, नागपुर, राजकोट, हैदराबाद, अन्‍नापति, बंगलौर, कोलकाता, मुजफ्फरपुर, पटना, चेन्‍नई, भोपाल, भुवनेश्‍वर और नई दिल्ली में भी बाल विद्या निकेतन खोले जा सकें । सरकार से मंजूरी और सहायता मिलने में विलंब होने के कारण सभा नए प्रोजेक्ट्‌स पर काम कर पाने में असहाय महसूस कर रही है । अतः सभा की समाज के सभी वर्गों के लोगों से चाहे वे अप्रवासी भारतीय हों, विदेशी संगठन हों, धमार्थ ट्रस्ट हों या वित्तीय तथा व्यापारिक संगठन हों, अपील है कि वे खुले हाथों से हमें दान दें ताकि मुसीबत की मारी औरतों और बच्चों का उद्धार कर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जा सके । हम सभी को विश्‍वास दिलाते हैं कि जो राशि वे हमें दान में देंगे उससे सभा देश के सभी रेड लाइट क्षेत्रों में समाज के उपेक्षित वर्ग के लोगों के कल्याण के लिए स्कूल और डिस्पेंसरी खोलेगी । दानकर्ता किसी बच्चे की शिक्षा, भोजन, वर्दी तथा चिकित्सा सुविधाओं की जिम्मेदारी भी ले सकते हैं । प्रत्येक दो वर्ष बाद सभा द्वारा प्रकाशित सूची में दानकर्ताओं के नाम प्रकाशित किए जाते हैं । सभा को दान में दी जाने वाली राशि सेक्शन ८०जी तथा एफसीआरए नंबर 231650656 के अंतर्गत पूरी तरह से आयकर मुक्‍त होगी ।

कैसा है हमारा बजट ?

जेफ डाएल के अनुसार- “किसी एक आदमी का पैसा चुराना चोरी कहलाता है, पर जब एक साथ अनेक लोगों की जेब से पैसे निकाल लिए जाते हैं तो उसे टैक्सेशन या कर वसूली कहते हैं । ” विलियम फीदर के अनुसार “बजट हमें यह बताता है कि हम क्या खरीदने में सक्षम नहीं हैं, पर हमें उसे खरीदने से नहीं रोक पाता । जोसेफ ई. लेवाइन की परिभाषा में “आप लोगों को हमेशा मूर्ख बना सकते हैं । ” वास्तव में बजट पैसे खर्च करने के पहले उसके चिंता करने का एक तरीका है । बजट पर जिक्र करने से पहले कुछ चीजों का जिक्र करना काफी महत्वपूर्ण होगा । सन्‌ २००१ की जनगणना के अनुसार देश की आबादी १०२ करोड़ थी जो अब बढ़कर ११५ करोड़ हो चुकी है । १९७३-७४ में आयकर की दर ८५% तक थी । कुल ११ स्लैव था पर अब सिर्फ तीन स्लैब बनाए गए हैं । देश के पिछड़ेपन के हालात इसी से झलकते हैं कि आजादी के ८०% भाग को बीमा सुरक्षा नहीं है । कामकाजी महिलाओं की माँग है कि हर मंत्रालय का तीस प्रतिशत भाग महिलाओं पर खर्च हो । इस बजट में अभिजात वर्ग की शिक्षा पर खासा ध्यान दिया गया है परन्तु आम आदमी की शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए इस बजट में कुछ खास नहीं है । ९१ प्रतिशत युवा जो १७ से २३ वर्ष के हैं आज भी उच्च शिक्षा की दहलीज से बाहर हैं । उनको बजट के माध्यम से मुख्यधारा में लाने के लिए सरकार की ओर से कोई प्रयास नहीं किए गए । २०१५ तक के लिए ऐसी योजना की आवश्यकता थी जिससे उच्च शिक्षा हेतु ज्यादा से ज्यादा भागीदारी सुनिश्‍चित होती । दूरदराज व कस्बों के युवाओं को कैसे उच्च शिक्षा हेतु उत्प्रेरित किया जाएगा? बेसिक शिक्षा पर जोर दिए बिना उच्च शिक्षा की नींव क्या बरकरार रह पाएगी? शिक्षा की गुणवत्ता पर कोई निर्णय ही सरकार ने नहीं लिया है, वहीं नैतिक शिक्षा को अनिवार्य विषय के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता की समझ उनमें नहीं है । आखिर वे क्या कारण हैं जिससे निजी निवेशकों का पूँजी निवेश १२ प्रतिशत से घटकर ७ फीसदी रह गया है । राज्यसभा सांसद एवं पूर्व राजस्व सचिव के अनुसार -बजट में उम्मीद जताई गई है कि अतिरिक्‍त सरकारी खर्च करके और कुछ महत्वपूर्ण कर सुधारों के जरिए ९ प्रतिशत की विकास दर पुनः हासिल हो जाएगी । मगर बड़े सरकारी खर्चों को मंजूर करने योग्य परिणाम में बदलने में होने वाली प्रक्रियागत और क्रियात्मक मुश्‍किलों की इस प्रक्रिया में अनदेखी कर दी गई है । इसके साथ ही, जहां राज्यों को एफ‍आरबीएम की सीमा में छूट देते हुए सिर्फ अतिरिक्‍त कर्ज के द्वारा आधा प्रतिशत का राहत दिया गया है वहीं केंद्र सरकार ने अपने लिए राजकोषीय घाटे को ६.८ प्रतिशत रखा है और इसमें भी अंडर रिकवरी के द्वारा २ प्रतिशत अतिरिक्‍त घाटे की गुंजाइश रखी गई है । केंद्र और राज्यों के बीच स्वीकृत राजकोषीय घाटे में इस तरह का भेदभाव पूर्ण रवैया गैर न्यायोचित है । राज्य भी केंद्र की तरह ही आर्थिक मंदी और बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं इसलिए उनके साथ बराबरी का व्यवहार होना चाहिए । और भी खास बात यह है कि राजकोषीय संघवाद आर्थिक स्रोतों और विकास योजनाओं के गैर भेदभाव मूलक बंटवारे पर आधारित होता है । विभिन्‍न राज्यों के बीच राजनीतिक वजहों से आर्थिक भेदभाव संघीय ढांचे को चोट पहुंचाएगा । इस संदर्भ में बिहार जैसे गरीब राज्य की विशेष खाद्य पैकेज, प्राकृतिक आपदा के मद में केंद्र सरकार के पास पूर्व के बकाए की निकासी और विशेष राज्य का दर्जा देने जैसे न्यायोचित मांगों की लगातार अनदेखी, प्रधानमंत्री द्वारा कई मौकों पर किए गए वादों की उपेक्षा ही कही जा सकती है । प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के बाद अपने जवाब में कहा था कि क्षेत्रीय असमानता और पिछड़े राज्यों की समस्याओं पर विशेष ध्यान दिया जाएगा । बजट इन उम्मीदों पर निराश ही करता है । यह तो समय ही बताएगा कि बजट में किए गए प्रस्तावों से विकास की रफ्तार फिर से बन पाएगी या नही मगर बजट प्रस्तावों और इसमें सन्‍निहित रवैये से राज्य तो असुविधा ही महसूस कर रहे हैं । यदि गरीब, सघन आबादी वाले पिछले राज्यों का विकास नहीं किया गया तो समग्र विकास की बात सिर्फ बयानबाजी ही साबित होगी । भारत की आम जनता जो मेहनत-मजदूरी कर अपना गुजारा करती है, को बजट से कोई लेना-देना नहीं है । इन लोगों की मंशा मात्र इतनी है कि बजट ऐसा हो जिससे रोजगार पाने शहर आए लोगों की समस्याओं के समाधान हेतु बजट में तवज्जो मिले । ऐसे लोगों की राय है कि यदि सप्ताह में चार दिन अरहर की दाल खाना चाहूँ तो नहीं खा सकता, तो फिर बजट देखने या सुनने से क्या फायदा? १६-१८ घंटे कड़ी मेहनत के बाद मुश्किल से परिवार का भरण-पोषण करनेवाले लोग बजट से सहारा की उम्मीद नहीं करते बल्कि अपने बच्चों पर उन्हें विश्‍वास है जो परिवार के आय में सहयोग प्रदान करते हैं । मोटे तौर पर कहा जाय तो सबों की एकसूत्री माँग है कि जो बजट महंगाई वृद्धि पर अंकुश न लगा पाए उससे क्या फायदा? ये मानते हैं कि आम आदमी के लिए तो बजट कभी होता ही नहीं है । वर्ष २००९-१० का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने भारत इतिहास के सबसे प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कौटिल्य के जरिए वैश्विक आर्थिक मंदी से निपटने का संकल्प जताया । समाज के सभी वर्गों के उत्थान के लिए उन्होंने महात्मा गांधी को भी याद किया । अपने १०० मिनट के बजट भाषण में उन्होंने दो बार कौटिल्य को उद्धत किया । भाषण के आरंभ में उन्होंने वैश्विक आर्थिक मंदी से जूझती अर्थव्यवस्था को पार लगाने का संकल्प व्यक्‍त करते हुए कौटिल्य की इस उक्‍ति को उद्धत किया, देश की समृद्धि के हित में राजा को आपदाओं की संभावना का अंदाजा लगाना होगा । उनके घटित होने से पहले उन्हें टालने का प्रयास करना होगा, जो घटित हो गई हैं, उनसे निपटना होगा, आर्थिक क्रियाकलाप के सभी अवरोधों को दूर करना होगा और राज्य में होने वाली राजस्व हानि को रोकना होगा ।’ एक अन्य स्थान पर मुखर्जी ने कौटिल्य का जिक्र करते हुए कहा, ‘जिस प्रकार कोई व्यक्‍ति बगीचे से पके फलों को ही तोड़ता है उसी प्रकार एक राजा तभी राजस्व संग्रह करता है जब वह देय होता है जिस प्रकार कोई बिना पके फलों को एकत्र नहीं करता, उसी प्रकार राजा देय न हुए धन को लेने से बचे क्योंकि ऐसा न करने पर क्रोधित होंगे और राजस्व के स्रोत को ही नष्ट कर देंगे । ’सबसे अंत में मुखर्जी ने महात्मा गांधी को याद किया । हालांकि वित्तमंत्री प्रणवमुखर्जी ने अपने बजट भाषण में गाँधीजी का जिक्र करते हुए कहा कि “लोकतंत्र लोगों के विभिन्‍न वर्गों के समग्र भौतिक, आर्थिक और आध्यात्मिक संसाधनों को जुटाने की कला और विज्ञान है जिसमें सभी की सामान्य भलाई अंतनिर्हित है । यह वही कार्य है जो हमें पूरा करना है ” जबकि प्रणव दादा के पिटारे से बच्चों के लिए कुछ भी नहीं निकला । लॉलिपॉप भी नहीं । सीनियर सिटिजन के लिए हालांकि हजार रूपये कर दी है, लेकिन इतने भर से वह दिल नहीं जीत पाए । चाइल्ड राइट्‌स एक्टिस्ट्‌इस ने इस बजट को बचपन विरोधी बजट कहा तो सीनियर सिटिजंस ने इसे निराशाजनक ।बजट स्पीच में वित्त मंत्री ने बच्चोंके लिए सिर्फ इतना कहा कि ६ साल तक के सभी बच्चों को समन्वित बाल विकास परियोजना में शामिल करके गुणवत्ता हासिल की जाएगी । बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक कैलाश सत्यार्थी के मुताबिक देश के २५-३० करोड़ बच्चों के लिए यह अब तक का सबसे अधिक निराशाजनक बजट है । बाल अधिकार रक्षा, चाइल्ड लेबर, पुनर्वास और बुनियादी शिक्षा जैसे शब्द तो वित्त मंत्री की स्पीच में नदारद थे ही, हैरानी की बात है कि सरकार की दो अहम फ्लैगशिप योजनाओं, सर्व शिक्षा अभियान और मिड डे मील का कहीं जिक्र तक नहीं हुआ है । उन्होंने कहा कि स्कूली शिक्षा बजट में सिर्फ १० फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है यानी सामान्य तौर पर बढ़ोत्तरी दर में १५ फीसदी की कमी हुई । यह स्थिति तब है जब भारत दुनिया के उन २७ देशों में से है, जो २०१५ तक स्कूली शिक्षा का लक्ष्य पूरा नहीं कर सकते और उन ९३ देशों में से है जो सबके लिए शिक्षा के अंतरराष्ट्रीय लक्ष्य को इस घोषित अवधि में पूरा नहीं कर पाएंगे ।वहीं किरन बेदी, रिटायर्ड आईपीएस के विचार में यह बजट दूरदर्शितापूर्ण है और हर वर्ग का ख्याल रखकर तैयार किया गया है । इस बजट ने आम आदमी में आशा की किरण पैदा की है । मेरी नजर में इस बजट की सबसे बड़ी खासियत रही है नरेगा के लिए रकम बढ़ाकर करीब ४० हजार करोड़ रूपये किया जाना । इस बजट ने नरेगा में न्यूनतम मजदूरी बढ़ाकर १०० रूपये कर दी है । नरेगा देश में भूख और गरीबी को खत्म कर सकती है । इस योजना के कारण पिछड़े राज्यों के मजदूरों को अब उन्हीं के राज्यों में रोजगार मिलने लगा है । इस कारण उन्होंने अब पंजाब और पश्‍चिमी उत्तर प्रदेश में मजदूरी करने जाना ही छोड़ दिया है । बजट में वोकेशनल ट्रेनिंग के लिए लोन को प्रावधान किया जाना स्वागत योग्य कदम है । मेरा विचार है कि वोकेशनल ट्रेनिंग के लिए सेंटरों की जरूरत है । बजट में केंद्र सरकार से मिली भारी रकम का सदुपयोग करना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है । रकम को आम आदमी तक पहुंचाना लोकल प्रशासन का काम होता है । जरूरत इस बात की है कि बजट में दी गई रकम गरीब आदमी तक पहुंचे । इसके लिए लोकल अफसरों की जवाबदेही तय होनी चाहिए । आखिरकार यह पूरी रकम तो देश के नागरिकों से ही मिल रही है । टैक्स अदा करने वालों को बताया जाना चाहिए कि किस राज्य ने उनका पैसा सही जगह तक पहुंचाया। केंद्रीय आम बजट की आलोचना करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने कहा कि बजट घोर निराशाजनक और असंतुलित है । इस बजट से समावेशी विकास के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता । उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री प्रणव ने बजट भाषण में कौटिल्य की चर्चा की, लेकिन उनकी धरती बिहार को वे भूल गए । प्रदेश की उपेक्षा से लगता है कि बिहार का अस्तित्व ही नहीं है । राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने भी केंद्रीय बजट को बिहार विरोधी बताया है । मुख्यमंत्री ने इस पर नाराजगी जताई कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के संबंध में बजट में चर्चा तक नहीं गई । वित्त मंत्री बिहार को विशेष पैकेज देने की अपनी ही सरकार की २००४ में की गई घोषणा भूल गये । केंद्र सरकार ने आइला के बाद पश्‍चिम बंगाल को एक हजार करोड़ रूपये का पैकेज देने की घोषणा की है । कोसी पीड़ितों को मदद न देकर केंद्र ने अदूरदर्शिता और राजनीतिक दुर्भावना का परिचय दिया है । प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा कोसी त्रासदी को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने के बावजूद इसके पीड़ितों को राहत व पुनर्वास के लिए मदद न मिलना आश्‍चर्यजनक है । नीतीश ने कहा कि देश के कुछ इलाकों को हैंडलूम कलस्टर के रूप में विकसित करने की बात कही गई है । इसमें सिल्क सिटी के रूप में विख्यात भागलपुर और बिहार का कानपुर माने जाने वाले मानपुर को शामिल ही नहीं किया गया । उन्होंने प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के तहत चुने गए गांव को मात्र दस लाख देने को छलावा बताया ।उन्होंने राज्य के सभी सांसदों में बिहार की उपेक्षा के खिलाफ संसद में आवाज उठाने की अपील की है । उन्होंने कहा कि एनडीए के सांसद चुप नहीं बैठेंगे ।उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा कि कोसी त्रासदी के लिए राज्य सरकार ने १४ हजार करोड़ के पैकेज की मांग की थी । इसे केंद्र ने अनसुना कर दिया । उन्होंने कहा कि यह बिहार के साथ अन्याय है । बसपा सुप्रीमो और मुख्यमंत्री मायावती ने यूपीए सरकार के आम बजट को दिशाहीन और जनविरोधी करार दिया है । उन्होंने कहा कि इस बजट से सभी वर्गों को घोर निराशा हुई है । आंकड़ों की बाजीगरी में देश को गुमराह किया गया है । यह बजट पूंजीपतियों और धन्‍नासेठों का हिमायती है । बजट में कमजोर और गरीबों की अनदेखी की गई है । अल्पसंख्यकों, पिछड़ों, किसानों, मजदूरों,और छोटे व्यापारियों की भी उपेक्षा हुई । मायावती ने कहा कि बजट में आई गिरावट से यह बात साबित हो गई है कि उद्योग, व्यापार, और वाणिज्य जगत ने भी बजट को नकार दिया है । फ्रिंज बेनिफिट टैक्स का फायदा कर्मचारियों को मिलता था जिसे समाप्त कर दिया गया है । इस तरह कंपनियों को फायदा पहुंचाया गया । कमोडिटी टैक्स हटाने का फायदा गेंहू, चावल कारोबार के सटोरियों को होगा । कम आय वालों को नाम मात्र की छूट दी गई जबकि दस लाख से अधिक आय वालों पर से सरचार्ज हटा दिया गया ।पार्टियों के चुनावी चंदे पर आयकर की छूट दी गई है ताकि कांग्रेस जैसी पार्टियां धन्‍नासेठों के अधिक चंदा ले सकें । मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्‍तर प्रदेश की इस कदर उपेक्षा हुई कि हथकरघा बुनकरों के लिए स्थापित किए जाने वाले कलस्टर में से एक भी प्रदेश में स्थापित करने की व्यवस्था नहीं हुई । जबकि यहां बुनकर सबसे अधिक हैं । बजट में तेल और प्राकृतिक गैस उत्पादन पर टैक्स हालीडे की सुविधा चुनिन्दा उत्पादकों को देने की नीयत से घोषित हुई है । यह चहेता उद्योगपति कौन है, इसे सभी जानते हैं । उन्होंने कहा कि बसपा सरकार की अम्बेडकर गांव योजना की देखा-देखी केन्द्र ने प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना शुरू करने की बात कही है । लेकिन इस नकल के बावजूद केन्द्र दलितों के विकास पर संवेदनशील नहीं है इसलिए योजना के तहत सिर्फ नौ करोड़ की व्यवस्था हुई है । ग्रामीण विद्युतीकरण पर चुप्पी साध ली गई बजट में राज्यों के साथ भेदभाव हुआ है । नरेगा में बढ़ोत्तरी की बात भी गुमराह करने वाली है । ग्रामीण दलितों के लिए बजट में एक नई योजना की घोषणा की गई है । दलितों और आदिवासियों के लिए कुल बजटीय आवंटन में वृद्धि हुई हैं, वहीं दलितों के उद्धार की कई योजनाओं में धन कम दिया गया है । बजट में आदिवासियों के लिए आवंटन २१३३ करोड़ रूपये से बढ़ा कर ३२२० करोड़ कर दिया गया है जबकि दलितों के लिए आवंटन में मामूली वृद्धि की गई है । दलितों के लिए बजट आवंटन २४५९ करोड़ से बढ़कर २५८५ करोड़ रूपए हुआ है । प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना ऐसे गांवों पर लागू होगी, जहां दलितों की आबादी ५० फीसदी से अधिक है । वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने दलितों के लिए प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना की घोषणा करते हुए कहा कि देश में ४४ हजार ऐसे गांव हैं जहां दलितों की आबादी ५० फीसदी से अधिक है । वित्त मंत्री ने बताया कि पहले एक हजार गांवों को पायलट प्रोजेक्‍ट के रूप में लिया जा रहा है जिसके लिए सौ करोड़ की राशि आवंटित की जा रही है । अन्य मदों से मिलने वाली राशि के अलावा इन गांवों को १० लाख की राशि अलग से दी जाएगी ताकि गांवों का समेकित विकास हो पाए । इस योजना के तहत इन गांवों में बुनियादी सुविधाओं के विकास पर ध्यान दिया जाएगा । इस योजना का क्रियान्वयन मौजूदा केंद्रीय तथा राज्य स्तरीय योजनाओं के साथ किया जाएगा । राज्य सरकारों तथा पंचायती राज संस्थानों की पूर्ण भागीदारिता के साथ इसे लागू किया जाएगा । दलितों के लिए आवंटन में इस साल सफाई कर्मचारियों के उद्धार और पुनर्वास की स्वरोजगार योजना के लिए राशि १०० करोड़ से घटाकर ९७ करोड़ कर दी गई है । मैट्रिक पूर्व छात्रवृत्ति की राशि को २७ करोड़ से घटाकर २५ करोड़ कर दिया गया है । उधर दलितों के लिए स्पेशल कंपोनेंट प्लान के तहत कुल योजना व्यय का १७ फीसदी खर्च न करने पर दलित संगठनों ने नाराजगी जताई है । वर्ष २००८-०९ में अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए १६८८.३७ करोड़ रूपए खर्च किया गया था, जो इस साल के बजट २००९-१० में बढ़कर १७६७.६९ करोड़ हो गया है । इस पर दलित आर्थिक अधिकार संगठन के पॉल दिवाकर ने कहा कि दलितों के लिए आवंटन का अनुपात कुल योजना व्यय का ६.४० फीसदी रह गया, जबकि पिछले साल यह ७.०५ फीसदी था । उनका कहना है कि इस तरह दलितों को इस बजट ने २३८२६ करोड़ रूपये से वंचित रखा है । दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना ने कहा-मैं इस बजट से काफी आहत हूं । निराशा की बात है कि गरीबों की बात करने वाली कांग्रेस सरकार ने इस बजट में गरीबों के उत्थान के लिए कोई गंभीरता नहीं दिखाई है । बजट को समझकर ऐसा लगता है जैसे चंद बड़े लोगों के कहने पर इसे तैयार कर लिया गया है । इस बजट में न तो देश के आम आदमी की भलाई झलकती है और न ही मध्यम वर्ग के लोगों से जुड़ी समस्याओं के निवारण की कोई कोशिश । बजट को देखकर लगता है कि सरकार को गरीब जनता की समस्या का ज्ञान ही नहीं है । बजट में समस्या का ज्ञान ही नहीं है । बजट में बनाई गई अधिकतर योजनाएं हवा हवाई हैं । चुनाव से पहले अपने को मध्यम वर्ग की सबसे बड़ा हितैषी बताने वाली केंद्र सरकार ने इनकम टैक्स में छूट का खास इजाफा न करके बता दिया है कि उसे सिर्फ कमाई की ही चिंता है । चुनाव से पहले इनकम टैक्स में छूट को बड़े-बड़े वादे किए जा रहे थे, लेकिन वह सब हवा में उड़ा दिए गए । सरकार गरीबों को सस्ते अनाज देने की बात तो करती है, लेकिन इस योजना को जकड़े हुए दलालों को हटाने के लिए उसके पास ठोस योजना नहीं है । राजधानी के लोग आज भी बिजली पानी को तरस रहे हैं । दिल्ली के गरीब लोग सालों से सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं । ऐसा लगता है कि इस बजट में देश की राजधानी के बारे में कोई गंभीरता ही नहीं दिखाई गई है । बजट में चाहे कितनी राहत की बात की गई हो लेकिन बजट से पूर्व पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाकर सरकार ने बता दिया है कि उसकी असली मंशा क्या है ।

नालंदा शिक्षा महोत्सव में देश की सांस्कृतिक-एकता के उद्धार का संकल्प


नालंदा प्राचीन भारत की शिक्षा की ऊँचाइयों का प्रतीक है । बिहार में नालंदा और विक्रमशिला दो ऐसे विश्‍वविद्यालय थे, जिनमें अनेक देशों के छात्र और विद्वान अध्ययन एवं अनुसंधान के लिए आते थे । नागार्जुन जैसे परम विद्वान का नाम उन मनीषियों में है जो प्रयोग और वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा ही अंतिम निष्कर्षों पर पहुँचते थे । आवश्यकता है कि हम अपनी इस धरोहर को सुरक्षित रखें । केवल नालंदा के पुरातत्वीय महत्व को ही नहीं अपितु उसके द्वारा निर्मित शिक्षा के नए सोपानों को भी आधुनिक युग की दृष्टि से और परिष्कृत करें । आज जब देश के छात्रों और बुद्धिजीवियों में बाहर जाने और पश्‍चिम के अंधानुकरण की प्रवृत्ति बढ़ रही है, तब नालंदा महोत्सव का महत्व और अधिक बढ़ जाता है । नालंदा शिक्षा महोत्सव भारतीयों में आत्मविश्‍वास एवं स्वाभिमान की वृद्धि करेगा तथा अपनी शिक्षा व्यवस्था का भारतीय भाव, भूमि पर बनाए रखते हुए युगीन चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाने के लिए सहायक हुआ है । वर्तमान शिक्षा सूचना और निर्देश मात्र है । शिक्षा के सभी आयामों पर विस्तृत चर्चा तथा आम सहमति बननी चाहिए । नालंदा का पुनरूद्धार जल्द से जल्द हो ताकि बाहर के लोग आकर पढ़ना अपना अभिमान समझें । नालंदा विश्‍वविद्यालय दुनिया की तर्ज पर न बने बल्कि दुनिया को अपने तर्ज पर बनाएँ, तभी दुनिया हमारे पीछे चलेगी । भारत तब तक महान नहीं बनेगा जब तक स्वयं को नहीं जानेंगे । उसको आधार बनाना और आगे जाना होगा । नालंदा विश्‍वविद्यालय में सभ्यताओं में पारस्परिक संवाद हो, संगम हो यह सभी संस्कृतियों का । भारत के अंदर कुलबुलाहट है कि अपनी सभ्यता-संस्कृति का संरक्षण एवं संवर्द्धन जल्द से जल्द कैसे हो । बड़ा भारत जो जड़ों तक घुसा है, जिसकी भुजाएँ फड़क रही हैं । अब भारत पिछलग्गू नहीं बनेगा । कैंब्रिज, हार्वर्ड को नकारकर दक्षिण में कई उपक्रम अब गुरूकुल पद्धति पर आ रहे हैं । हमें मौलिकता की ओर ध्यान देकर विश्‍व की शिक्षा को नई दिशा देना है । पश्‍चिम की शिक्षा-संस्कृति में प्रोफेसर छात्र के साथ शराब एवं सिगरेट के सेवन से जरा भी नहीं हिचकते हैं । भारत तो ज्ञान ही नहीं विज्ञान में भी सर्वश्रेष्ठ रहा है । यहाँ विद्वता और शिक्षा के लिए शुरू से ही प्रोत्साहन मिलता रहा है । भारत की धरती विद्वानों को सम्मान देती है । विश्‍व को नालंदा ने ही एक किया । अंग्रेजों ने देश को नेशन बनाने का कार्य किया । देश की सांस्कृतिक एकता का उद्धार नालंदा विश्‍वविद्यालय के पुनर्निमाण द्वारा ही संभव है । इसके माध्यम से ही एक नए भारत का उदय होगा । हम किसी से पीछे नहीं रहेंगे । हमें आगे बढ़ना है । नौजवानों में आगे बढ़ने की तमन्‍ना है । जो पिछलग्गू रहेंगे वो स्वाधीनता को कभी नहीं बचा पाएंगे । नालंदा के विद्वानों एवं वैज्ञानिकों ने पारे से सोना बनाया था । वे सिद्ध मकरध्वज लगाकर आकाश में उड़ जाते थे । आज इस पर शोध होना चाहिए । उस वक्‍त की प्रयोगशालाओं और “फंडिंग ऑन एजूकेशन” पर शोध होना चाहिए । ऐसा कहा जाता है कि नालंदा में दस हजार विद्यार्थियों के खाने-पीने, रहने और शिक्षा की व्यवस्था थी एवं दरबान का बुद्धिकौशल कुलपति के स्तर का था, जिस पर शोध होना चाहिए । मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने मतांधता के सामने विश्‍वविद्यालय एवं पुस्तकालयों को विनष्ट करने का अभियान चलाया था । वास्तव में नालंदा के उद्धार का मतलब ज्ञान और संस्कृति को स्थापित करने की विश्‍वव्यापी लड़ाई है । हम दुनिया को चुनौती दे रहे हैं कि कोई ताकत अब दुनिया की आध्यात्मिकता, दर्शन, मूल्य को नष्ट नहीं कर सकती । हम कहाँ थे, यह दिखाना पड़ेगा, तभी सच मायने में भारत की शक्‍ति और ऊर्जा प्रस्फुटित होगी । नालंदा की पुनर्स्थापना शांति- भाईचारे का संदेश देगा । यह ऐसा ज्योतिपुंज बनेगा जो आध्यात्मिकता सिखाएगा । इसके लिए आवश्यक है कि कर्मचेतना जगाएँ । कुछ युवकोंमें भी इस तरह की प्रेरणा जागृत हो जाय तो भारत को विश्‍वशक्‍ति बनने से कोई नहीं रोक सकता क्योंकि जब नौजवान कोई काम को उठा लेते हैं तो उसे कोई नहीं रोक सकता । उपरोक्‍त विचार अपने अध्यक्षीय भाषण में पूर्व केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने व्यक्‍त किया । भारतीय इतिहास की गौरवशाली ज्ञान परंपरा का मूल श्रेय विश्‍व प्रसिद्ध नालंदा विश्‍वविद्यालय को जाता है, जिसके कारण भारतवर्ष को जगतगुरू कहा जाता था । नालंदा के इस महान विरासत, समवेशी संस्कृति एवं अद्‌भुत शैक्षणिक परंपरा को पुनर्स्थापित करने हेतु “नालंदा मेमोरियल फाउंडेशन द्वारा दिल्ली के मावलंकर सभागार में नालंदा शिक्षा सभा महोत्सव का भव्य आयोजन किया गया । संपूर्ण कार्यक्रम तीन सत्रों में विभाजित था । प्रथम सत्र में कार्यक्रम का उद्‌घाटन माउण्ट एवरेस्ट विजेता पद्‌मश्री संतोष यादव ने किया । इस अवसर पर ‘नालंदा’ पत्रिका एवं प्रसिद्ध युवा कवि डॉ. महेश चौधरी द्वारा रचित काव्य संग्रह ‘सच के साथ’ का विमोचन भी किया तथा धन्यवाद ज्ञापन राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर’ स्मृति न्यास के सचिव सुनील कुमार ने किया । द्वितीय सत्र में “नालंदा कल और आज” विषयक सेमिनार का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता जाने माने सांस्कृतिक चिंतक एवं साहित्यकार डॉ. कृष्णदन्त पालीवाल ने की । इस सेमिनार में शिक्षाविद एवं चिंतक प्रो. आनंद कुमार, प्रो. ईश्‍वरी प्रसाद, नारायण कुमार, डॉ. फणिकान्त मिश्र, गुप्तेश्‍वर पांडेय आइपीएस, राधाकांत भारती सहित अनेक विद्वानों ने अपने विचार व्यक्‍त किए । वरीय पत्रकार रामविलास ने धन्यवाद ज्ञापन किया । कार्यक्रम के तृतीय सत्र में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें नामचीन कवि लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, विनीत चौहान, कुँअर बेचैन, डॉ. सत्यनारायण जेटिया, डॉ. शचिकांत, डॉ. महेश चौधरी, मुमताज नसीम, हरमिन्दर पाल, नमिता राकेश एवं आकृति शशांक ने अपनी कविताओं से जनमानस को भावविभोर कर दिया । नालंदा मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष नीरज कुमार ने कहा कि नालंदा की ऐतिहासिक एवं गौरवशाली परंपरा हमारी अद्‌भुत एवं पावन संस्कृति में निहित है तथा इस संस्कृति को और भी अद्‌भुत बनाया है, हमारी उम्दा शिक्षण शैली ने । भारतीय ज्ञान परंपरा का एक मजबूत आधारस्तंभ है नालंदा । नालंदा शिक्षा और ज्ञान-विज्ञान का गौरशाली प्रतीक रहाहै । नालंदा कोई नाम नहीं बल्कि एक संस्कृति है जिसने अपने जादुई तकनीक और उत्कृष्ट शैली से पूरे विश्‍व को प्रभावित किया है । नालंदा एक परंपरा है, संदेश है तथा ज्ञान की अविरल बहनेवाली धारा है । यह सिर्फ एक विश्‍वविद्यालय नहीं बल्कि कल्पनाओं की नई उड़ान एवं विचारों को नया आयाम देने वाला मंच था ।

चेतो नहीं तो तरसोगे एक-एक बूँद पानी को


सावन में बारिश की जगह चिलचिलाती धूप की गर्मी ने हमें पर्यावरण संरक्षण को नजर‍अंदाज करने पर होने वाले दुष्परिणाम की दस्तक दे दी है । हरियाली को खत्मकर धरती के सीने में कंक्रीट भरने के कारण जंगलों में पानी का स्तर लगातार नीचे जा रहा है । औद्योगिक क्षेत्रों ने रही सही कमी भी पूरी कर दी है । पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के नियमों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं । एक कड़वी सच्चाई है कि जितना पानी धरती के नीचे बचा है, अधिकांश क्षेत्रों के जल के नमूने की जाँच करवानी चाहिए । यह औद्योगिक क्षेत्रों में बसने वाले नागरिकों के स्वास्थ्य से संबंधित गंभीर पक्ष है । प्रदूषित जल का सेवन किसी भी हालत में सेहत के लिए ठीक नहीं है । महानगरों में अधिकांश जगह नगर निगम या जल विभाग द्वारा आपूर्ति किए गए जल में गंदे और बदबूदार पानी की शिकायतें अब तो आम बात बन चुकी है । दिल्ली एनसीआर इलाके के गाजियाबाद में पिछले दस वर्षों में भूजल स्तर २० फीट तक नीचे जा चुका है । कुछ इलाकोंमें भूगर्भ जल स्तर २७ मीटर तक नीचे पहुँच चुका है जबकि सामान्य जल स्तर की गहराई पाँच से दस मीटर के बीच होनी चाहिए । भूगर्भ जल विभाग की रिपोर्ट में चेताया गया है कि अगर पानी बचाने और रिचार्ज करने के उपाय नहीं किए तो अगले कुछ वर्षों में ही गाजियाबाद की जमीन का पानी पूरी तरह सूख जाएगा । भूगर्भ जल विभाग की रिपोर्ट के अनुसार गाजियाबाद के अधिकांश क्षेत्रों में भूगर्भ जल स्तर सामान्य से काफी नीचे जा चुका है । विभाग ने ३१ स्थानों पर पानी के स्तर की जाँच कराई जिसमें १६ स्थानों पर १५ मीटर से नीचे और सात स्थानों पर २० से २८ मीटर नीचे जल स्तर पाया गया । २००८ से मई २००९ तक ३० स्थानों के जल स्तर में ०.२० मीटर से ढाई मीटर तक की गिरावट आई है । पानी सूखने का सिलसिला अनवरत रूप से जारी है । भूगर्भ जल विभाग के अधिशासी अभियंता ए. के. अरोड़ा ने बताया कि गाजियाबाद में पानी के प्रति जागरूकता की कमी के कारण इसकी बर्बादी बहुत अधिक हो रही है । इसके अतिरिक्‍त यहाँ निर्माण कार्य और उद्योगों में पानी की बड़ी मात्रा में इस्तेमाल होने के कारण भी जलस्तर में गिरावट आ रही है । उन्होंने चेतावनी दी कि अगर यहाँ रिसाइकिलिंग तालाबों की खुदाई, नए नलकूपों के निर्माण पर रोक, रेनवाटर हार्वेस्टिंग और दूसरी रिचार्ज पद्धतियों को न अपनाया गया तो कुछ वर्षों में पीने का पानी जमीन में ढूँढे नहीं मिलेगा । इस बार दिल्ली सहित कई महानगरों में पानी के लिए त्राहिमाम की स्थिति बनी हुई थी । सूखे का खतरा ःपर्यावरण असंतुलन के कारण मानसून की चाल लड़खड़ा गई है । मानसून के बारे में तमाम पूर्वानुमान लगभग गलत ही साबित हुए हैं । इसके बावजूद मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि उनके पूर्वानुमान ८० प्रतिशत सही साबित हुए हैं । बारिश अब भी लगातार रूप से अपना जलवा नहीं दिखा पा रही हैं जिससे उत्तर भारत में सूखे की आशंका बलवती हो रही है । बारिश नहीं होने की स्थिति में खाद्यान्‍न उत्पादन में कोई कमी आती है तो उसकी भरपाई स्टॉक में जमा अनाज से की जा सकती है । देश में सूखे की स्थिति आ जाने पर उसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ना लाजिमी है । इतना तय है कि किसानों पर भी मुसीबतें आएंगी परन्तु खाद्यान्‍न संकट की आशंका प्रायः नहीं है । सूखे की स्थिति के मद्देनजर कीमत बढ़ना स्वाभाविक है । खाद्यान्‍न बाजार की सट्‌टेबाजी के कारण ही मुख्यतः कीमतें बढ़ती हैं । सरकार को अगर इसकी चिंता है तो वायदा बाजार पर रोक लगाने चाहिए जिसका सालाना टर्नओवर ५० लाख करोड़ से भी ज्यादा है जो हमारे कुल बजट से भी बड़ा है । इस पर अंकुश लगाए बिना कीमतों को काबू नहीं किया जा सकताहै । देश में आजादी के बाद सन्‌ १९८७ में सबसे भयंकर सूखा पड़ा था, तब भी भूख से निपट लिया गया था । उस वक्‍त देश में अनाज का मात्र २ करोड़ टन स्टॉक था । कृषि विशेषज्ञ देनेन्द्र शर्मा के अनुसार उत्पादन गिरने या सूखे की स्थिति में अर्थव्यवस्था पर तो असर पड़ेगा ही मगर असली चिंता किसानों की है । सरप्लस अनाज के वजह से भूख से तो निपटा जा सकेगा मगर औसतन २०१५ रूपए महीने कमाने वाले किसान परिवारों की आजीविका का क्या होगा? सरकार को इसकी ज्यादा चिंता करनी चाहिए । कहीं ऐसा न हो कि अनाज पैदा कर स्टॉक बढ़ाने वाले किसान दूसरों का पेट तो भर दें और खुद उनकी स्थिति दयनीय हो जाय । अभी अर्थव्यवस्था की चिंता करने से ज्यादा जरूरी इस बात पर सोचना है । संभावित हालात में किसानों की मदद करने के लिए अभी से इस दिशा में सोचना जरूरी है । पिछले दिनों आलू की अत्यधिक फसल होने की स्थिति में कई जगह किसानों को आलू फेंकने पड़े थे, क्योंकि सरकारी स्तर पर उसके रखरखाव की पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी । बाढ़ आ जाने पर सरकारी मालगोदामों में खाद्यान्‍न बरबाद होने की घटना आम है । बाढ़ प्रभावित इलाकों को खाद्य विभाग के गोदामों को ऊँचे पर बनाने चाहिए । जिसकी आवश्यकता समझी ही नहीं जाती है । भारत जिसमें पश्‍चिमी उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा आदि राज्य शामिल हैं, में ४४ प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई । हालात इसलिए खराब हुई क्योंकि इन इलाकों में पूर्व मानसून बारिश नहीं के बराबर हुई । प्राप्त जानकारी के अनुसार बारिश न होने से परेशान उत्तरप्रदेश सरकार ने तो केन्द्र से मदद माँगने का मन बनाया है । जुलाई के अंत में लगभग औसत से आधा पानी ही बरसा है । आने वाले संकट से निपटने के लिए राज्य सरकार ने इस सिलसिले में एक प्रस्ताव तैयार कर रही है जिसे जल्द ही केन्द्र सरकार को भेजा जाएगा । सरकारी आँकड़ों के अनुसार उत्तरप्रदेश के १३ जिलों में अब तक एक बूँद भी पानी नहीं बरसा है और इन जिलों में धान की रोपाई बिल्कुल भी नहीं हो पा रही है । प्रदेश के बाकी ६७ जिलों में भी औसत से कम बारिश होने के कारण धान की फसल चौपट हो गई है । मौसम विभाग का कहना है कि मध्य और पश्‍चिमी उत्तर प्रदेश में अभी भी बारिश की गारंटी नहीं है । ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि उत्तरप्रदेश में मानसून इस साल तय समय १२ जून से एक पखवाड़े की विलंब से आया । उसके बाद भी मानसून की स्थिति सामान्य नहीं हो सकी है । मानसून देर से आने के कारण प्रदेश के ज्यादातर जिलों में ध्यान की नर्सरी लगाने का काम बुरी तरह पिछड़ चुका है । कृषि विशेषज्ञ प्रदेश के किसानों को ध्यान की पछैती किस्म के बीजों को अपनाने की सलाह दे चुके हैं । अब बारिश के और पिछड़ने के चलते कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि ध्यान की पैदावार में इस साल कम से कम ४० प्रतिशत की कमी हो सकती है । कृषि वैज्ञानिक सुशील कुमार सिंह के अनुसार उत्तरप्रदेश में दलहन को रकबा लगातार घट रहा है और इस वर्ष वर्षा कम होने के कारण दालों की फसल पर सबसे बुरा असर पड़ा है । गेहूँ की कटाई के बाद कोई जानेवाली उड़द की फसल तो पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है । उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड संभाग के ७ जिलों में २० प्रतिशत ही कम वर्षा हुई है । सरकारी अधिकारियों की मानें तो अभी वर्षा की स्थिति सुधरने की इंतजार किया जा रहा है जिसके कारण किसी भी जिले को सूखाग्रस्त नहीं घोषित किया गया है । भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक धान की खेती के लिहाज से देश के तीन प्रमुख राज्य भयंकर सूखे की चपेट में आ चुके हैं । सामान्य सूखे के शिकार तो कई राज्य हो चुके हैं । ऐसी परिस्थितियों में धान की फसल पिछले वर्ष की तुलना में कम हो जाय तो कोई आश्‍चर्य नहीं कहा जा सकता है । उत्तरप्रदेश में गन्‍ने की उपज में २० प्रतिशत तक की गिरावट के आसार हैं । मौसम विभाग के अनुसार सामान्य से ५० फीसदी भी बारिश न हो, तो भयंकर सूखा माना जाता है । सामान्य से २३-५० फीसदी तक कम बारिश को सामान्य सूखे की श्रेणी में रखा जाएगा और सामान्य से २५ फीसदी तक कम बारिश को हल्का सूखा माना जाएगा । पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्‍चिमी उत्तरप्रदेश व दिल्ली भयंकर सूखे वाले इलाकों में शामिल हो चुके हैं क्योंकि इन इलाकों में सामान्य से ५० फीसदी से भी कम बारिश दर्ज की गई है । सामान्य सूखे की चपेट में तो संपूर्ण राजस्थान, बिहार, पश्‍चिमी मध्यप्रदेश, जम्मू कश्मीर, तेलंगाना, सौराष्ट्र, कच्छ आदि हैं । ३-४ घंटे की बिजली के भरोसे कृषि कार्य नहीं किए जा सकते । पंजाब में ९७ फीसदी से अधिक खेती योग्य जमीन के लिए सिंचाई की सुविधा है लेकिन धान बुवाई के बाद कम से कम १५-२० दिनों तक खेतों में पानी की सख्त जरूरत होती है । वहीं बारिश के बगैर मात्र सिंचाई के भरोसे वहाँ किसानों की दूसरी समस्या नरेगा के कारण दिहाड़ी पर काम करनेवाले मजदूरों की संख्या में कमी की भी है । उपरोक्‍त संदर्भ में “समय दर्पण” के प्रधान संपादक एवं प्रख्यात ज्योतिषी पं० कृष्णगोपाल मिश्रा के ज्योतिषीय विश्लेषण के अनुसार इस साल बारिश न होने का मुख्य कारण आग्नेय प्रकृति के ग्रहों की मजबूत स्थिति में पाया जाना है । मुख्य तौर पर प्रकृति अग्नि, जल और वायु के संतुलित शक्‍ति के तहत समान रूप से संचालित होती है । इन तीनों शक्‍तियों के वाहक मुख्य रूप से हमारे सौरमंडल के नवग्रह अपनी अपनी प्रकृति के अनुसार उपरोक्‍त सत्ताओं को संतुलित करते हैं जिसमें सूर्य, मंगल और वृहस्पति अग्नि प्रकृति के वाहक हैं । शनि, बुध और शुक्र वायु प्रकृति के वाहक हैं । चंद्रमा, राहु-केतु जल प्रकृति के वाहक हैं । मुख्यतः बरसात का जो समय होताहै वह २० जून के आसपास प्रारंभ होता है । क्योंकि इस समय में सूर्य बुध की राशि मिथुन में प्रवेश कर तारीख के आसपास राहु के नक्षत्र में प्रवेश कर जाता है । जहाँ सूर्य का समीकरण वायु और जल प्रकृति के ग्रहों से बनता है और मानसून की शुरूआत हो जाती है लेकिन इस वर्ष जब सूर्य राहु के नक्षत्र में प्रवेश किया तो उस समय राहु सूर्य से षडाष्टक योग बनाते हुए राहु स्वयं ही सूर्य के नक्षत्र में था । साथ ही साथ सूर्य पर वृहस्पति की दृष्टि होना और वृहस्पति का मंगल के नक्षत्र में पाया जाना और मंगल का स्वयं स्वगृही होना आदि आग्नेय सत्ता के ग्रहों की मजबूत स्थिति दर्शाते हैं तथा वायु प्रकृति के ग्रहों में शनि का सिंह राशि में पाया जाना यह दोनों ग्रह आग्नेय प्रकृति के राशियों में पाए जा रहे हैं । ऐसी स्थिति में बारिश का कम होना स्वाभाविक सी बात है । इसमें मुख्य तौर पर वृहस्पति और मंगल की मजबूत भूमिका होना दिखाई दे रहा है । इस वर्ष में बारिश होगी तो जरूर लेकिन विलंब से होगी । मुख्य तौर पर ४ अगस्त के बाद जब सूर्य बुध के नक्षत्र में प्रवेश कर जाएगा तथा बुध शनि की युति सिंह राशि में होगी और सूर्य के साथ केतु का पाया जाना और सूर्य के साथ तात्कालिक मैत्री बनाते हुए शुक्र का मिथुन राशि में मजबूत पाया जाना आदि अच्छे बारिश के संकेतक है । ४ अगस्त से लेकर १३ अगस्त तक अच्छे बारिश के योग हैं क्योंकि इस समय शनि, बुध, शुक्र, तीनों की स्थिति मजबूत दिखाई दे रही है जिससे आग्नेय ग्रहों की सत्ता संतुलित कर बरसात कराने में सक्षम होंगे ।

२०१५ में कैसा होगा भारत?

विश्‍व बैंक ने भारत में गरीबी के बारे में जो आँकड़े पेश किए हैं, वे आँखे खोलने वाले हैं । विश्‍व बैंक संस्था के अनुमान के अनुसार गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाली आबादी के प्रतिशत के रूप में देखा जाय तो भारत की स्थिति केवल अफ्रीका के सब-सहारा देशों से ही बेहतर है । बैंक ग्लोबल इकॉनॉमिक प्रॉस्पेक्टस फॉर २००९ शीर्षक से जारी रिपोर्ट भारत के ‘शाइनिंग इंडिया’ के पीछे की हकीकत बयान करती है । बैंक का अनुमान है कि २०१५ तक भारत की एक तिहाई आबादी बेहद गरीबी (१.२५ डॉलर प्रतिदिन से कम आय) में अपना गुजारा कर रही होगी । भारत में अत्यंत दरिद्रता में जीवन गुजारने वाले लोगों की तादाद १९९० में ४३.६ करोड़ (५१.३%) और २००५ में ४५.६ करोड़ (४१.६%) थी जो २०१५ में ३१.३ करोड़ (२५.४%) रहने का अनुमान है । वहीं पाकिस्तान ने अपने बजट में गरीबों का प्रतिशत घटाने की दिशा में कोई कारगर कदम उठाने के बजाय अपने रक्षा एवं परमाणु बजट को दिन-प्रतिदिन बढ़ाया है । उपरोक्‍त तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत और पाकिस्तान के स्थिति एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत है । पाकिस्तान का हर कदम भारत के खिलाफ और उल्टा सोचने में ही बीतता है । पाकिस्तान जेहाद एवं आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने तथा कश्मीर खटराग के अलावा ज्यादा सोंच भी नहीं सकता है । पाकिस्तान के राष्ट्रपति की तालिबान एवं आतंकवाद को संरक्षण देने की स्वीकरोक्‍ति से तो स्थिति पूर्णतः स्पष्ट हो चुकी है । आज नहीं तो कल पाकिस्तानी अवाम को अपने विकास एवं मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आंदोलन की शुरूआत किए बिना दूसरा कोई रास्ता नहीं हैं ।