Monday, August 3, 2009

नालंदा शिक्षा महोत्सव में देश की सांस्कृतिक-एकता के उद्धार का संकल्प


नालंदा प्राचीन भारत की शिक्षा की ऊँचाइयों का प्रतीक है । बिहार में नालंदा और विक्रमशिला दो ऐसे विश्‍वविद्यालय थे, जिनमें अनेक देशों के छात्र और विद्वान अध्ययन एवं अनुसंधान के लिए आते थे । नागार्जुन जैसे परम विद्वान का नाम उन मनीषियों में है जो प्रयोग और वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा ही अंतिम निष्कर्षों पर पहुँचते थे । आवश्यकता है कि हम अपनी इस धरोहर को सुरक्षित रखें । केवल नालंदा के पुरातत्वीय महत्व को ही नहीं अपितु उसके द्वारा निर्मित शिक्षा के नए सोपानों को भी आधुनिक युग की दृष्टि से और परिष्कृत करें । आज जब देश के छात्रों और बुद्धिजीवियों में बाहर जाने और पश्‍चिम के अंधानुकरण की प्रवृत्ति बढ़ रही है, तब नालंदा महोत्सव का महत्व और अधिक बढ़ जाता है । नालंदा शिक्षा महोत्सव भारतीयों में आत्मविश्‍वास एवं स्वाभिमान की वृद्धि करेगा तथा अपनी शिक्षा व्यवस्था का भारतीय भाव, भूमि पर बनाए रखते हुए युगीन चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाने के लिए सहायक हुआ है । वर्तमान शिक्षा सूचना और निर्देश मात्र है । शिक्षा के सभी आयामों पर विस्तृत चर्चा तथा आम सहमति बननी चाहिए । नालंदा का पुनरूद्धार जल्द से जल्द हो ताकि बाहर के लोग आकर पढ़ना अपना अभिमान समझें । नालंदा विश्‍वविद्यालय दुनिया की तर्ज पर न बने बल्कि दुनिया को अपने तर्ज पर बनाएँ, तभी दुनिया हमारे पीछे चलेगी । भारत तब तक महान नहीं बनेगा जब तक स्वयं को नहीं जानेंगे । उसको आधार बनाना और आगे जाना होगा । नालंदा विश्‍वविद्यालय में सभ्यताओं में पारस्परिक संवाद हो, संगम हो यह सभी संस्कृतियों का । भारत के अंदर कुलबुलाहट है कि अपनी सभ्यता-संस्कृति का संरक्षण एवं संवर्द्धन जल्द से जल्द कैसे हो । बड़ा भारत जो जड़ों तक घुसा है, जिसकी भुजाएँ फड़क रही हैं । अब भारत पिछलग्गू नहीं बनेगा । कैंब्रिज, हार्वर्ड को नकारकर दक्षिण में कई उपक्रम अब गुरूकुल पद्धति पर आ रहे हैं । हमें मौलिकता की ओर ध्यान देकर विश्‍व की शिक्षा को नई दिशा देना है । पश्‍चिम की शिक्षा-संस्कृति में प्रोफेसर छात्र के साथ शराब एवं सिगरेट के सेवन से जरा भी नहीं हिचकते हैं । भारत तो ज्ञान ही नहीं विज्ञान में भी सर्वश्रेष्ठ रहा है । यहाँ विद्वता और शिक्षा के लिए शुरू से ही प्रोत्साहन मिलता रहा है । भारत की धरती विद्वानों को सम्मान देती है । विश्‍व को नालंदा ने ही एक किया । अंग्रेजों ने देश को नेशन बनाने का कार्य किया । देश की सांस्कृतिक एकता का उद्धार नालंदा विश्‍वविद्यालय के पुनर्निमाण द्वारा ही संभव है । इसके माध्यम से ही एक नए भारत का उदय होगा । हम किसी से पीछे नहीं रहेंगे । हमें आगे बढ़ना है । नौजवानों में आगे बढ़ने की तमन्‍ना है । जो पिछलग्गू रहेंगे वो स्वाधीनता को कभी नहीं बचा पाएंगे । नालंदा के विद्वानों एवं वैज्ञानिकों ने पारे से सोना बनाया था । वे सिद्ध मकरध्वज लगाकर आकाश में उड़ जाते थे । आज इस पर शोध होना चाहिए । उस वक्‍त की प्रयोगशालाओं और “फंडिंग ऑन एजूकेशन” पर शोध होना चाहिए । ऐसा कहा जाता है कि नालंदा में दस हजार विद्यार्थियों के खाने-पीने, रहने और शिक्षा की व्यवस्था थी एवं दरबान का बुद्धिकौशल कुलपति के स्तर का था, जिस पर शोध होना चाहिए । मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने मतांधता के सामने विश्‍वविद्यालय एवं पुस्तकालयों को विनष्ट करने का अभियान चलाया था । वास्तव में नालंदा के उद्धार का मतलब ज्ञान और संस्कृति को स्थापित करने की विश्‍वव्यापी लड़ाई है । हम दुनिया को चुनौती दे रहे हैं कि कोई ताकत अब दुनिया की आध्यात्मिकता, दर्शन, मूल्य को नष्ट नहीं कर सकती । हम कहाँ थे, यह दिखाना पड़ेगा, तभी सच मायने में भारत की शक्‍ति और ऊर्जा प्रस्फुटित होगी । नालंदा की पुनर्स्थापना शांति- भाईचारे का संदेश देगा । यह ऐसा ज्योतिपुंज बनेगा जो आध्यात्मिकता सिखाएगा । इसके लिए आवश्यक है कि कर्मचेतना जगाएँ । कुछ युवकोंमें भी इस तरह की प्रेरणा जागृत हो जाय तो भारत को विश्‍वशक्‍ति बनने से कोई नहीं रोक सकता क्योंकि जब नौजवान कोई काम को उठा लेते हैं तो उसे कोई नहीं रोक सकता । उपरोक्‍त विचार अपने अध्यक्षीय भाषण में पूर्व केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने व्यक्‍त किया । भारतीय इतिहास की गौरवशाली ज्ञान परंपरा का मूल श्रेय विश्‍व प्रसिद्ध नालंदा विश्‍वविद्यालय को जाता है, जिसके कारण भारतवर्ष को जगतगुरू कहा जाता था । नालंदा के इस महान विरासत, समवेशी संस्कृति एवं अद्‌भुत शैक्षणिक परंपरा को पुनर्स्थापित करने हेतु “नालंदा मेमोरियल फाउंडेशन द्वारा दिल्ली के मावलंकर सभागार में नालंदा शिक्षा सभा महोत्सव का भव्य आयोजन किया गया । संपूर्ण कार्यक्रम तीन सत्रों में विभाजित था । प्रथम सत्र में कार्यक्रम का उद्‌घाटन माउण्ट एवरेस्ट विजेता पद्‌मश्री संतोष यादव ने किया । इस अवसर पर ‘नालंदा’ पत्रिका एवं प्रसिद्ध युवा कवि डॉ. महेश चौधरी द्वारा रचित काव्य संग्रह ‘सच के साथ’ का विमोचन भी किया तथा धन्यवाद ज्ञापन राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर’ स्मृति न्यास के सचिव सुनील कुमार ने किया । द्वितीय सत्र में “नालंदा कल और आज” विषयक सेमिनार का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता जाने माने सांस्कृतिक चिंतक एवं साहित्यकार डॉ. कृष्णदन्त पालीवाल ने की । इस सेमिनार में शिक्षाविद एवं चिंतक प्रो. आनंद कुमार, प्रो. ईश्‍वरी प्रसाद, नारायण कुमार, डॉ. फणिकान्त मिश्र, गुप्तेश्‍वर पांडेय आइपीएस, राधाकांत भारती सहित अनेक विद्वानों ने अपने विचार व्यक्‍त किए । वरीय पत्रकार रामविलास ने धन्यवाद ज्ञापन किया । कार्यक्रम के तृतीय सत्र में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें नामचीन कवि लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, विनीत चौहान, कुँअर बेचैन, डॉ. सत्यनारायण जेटिया, डॉ. शचिकांत, डॉ. महेश चौधरी, मुमताज नसीम, हरमिन्दर पाल, नमिता राकेश एवं आकृति शशांक ने अपनी कविताओं से जनमानस को भावविभोर कर दिया । नालंदा मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष नीरज कुमार ने कहा कि नालंदा की ऐतिहासिक एवं गौरवशाली परंपरा हमारी अद्‌भुत एवं पावन संस्कृति में निहित है तथा इस संस्कृति को और भी अद्‌भुत बनाया है, हमारी उम्दा शिक्षण शैली ने । भारतीय ज्ञान परंपरा का एक मजबूत आधारस्तंभ है नालंदा । नालंदा शिक्षा और ज्ञान-विज्ञान का गौरशाली प्रतीक रहाहै । नालंदा कोई नाम नहीं बल्कि एक संस्कृति है जिसने अपने जादुई तकनीक और उत्कृष्ट शैली से पूरे विश्‍व को प्रभावित किया है । नालंदा एक परंपरा है, संदेश है तथा ज्ञान की अविरल बहनेवाली धारा है । यह सिर्फ एक विश्‍वविद्यालय नहीं बल्कि कल्पनाओं की नई उड़ान एवं विचारों को नया आयाम देने वाला मंच था ।

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