Monday, August 3, 2009
कैसा है हमारा बजट ?
जेफ डाएल के अनुसार- “किसी एक आदमी का पैसा चुराना चोरी कहलाता है, पर जब एक साथ अनेक लोगों की जेब से पैसे निकाल लिए जाते हैं तो उसे टैक्सेशन या कर वसूली कहते हैं । ” विलियम फीदर के अनुसार “बजट हमें यह बताता है कि हम क्या खरीदने में सक्षम नहीं हैं, पर हमें उसे खरीदने से नहीं रोक पाता । जोसेफ ई. लेवाइन की परिभाषा में “आप लोगों को हमेशा मूर्ख बना सकते हैं । ” वास्तव में बजट पैसे खर्च करने के पहले उसके चिंता करने का एक तरीका है । बजट पर जिक्र करने से पहले कुछ चीजों का जिक्र करना काफी महत्वपूर्ण होगा । सन् २००१ की जनगणना के अनुसार देश की आबादी १०२ करोड़ थी जो अब बढ़कर ११५ करोड़ हो चुकी है । १९७३-७४ में आयकर की दर ८५% तक थी । कुल ११ स्लैव था पर अब सिर्फ तीन स्लैब बनाए गए हैं । देश के पिछड़ेपन के हालात इसी से झलकते हैं कि आजादी के ८०% भाग को बीमा सुरक्षा नहीं है । कामकाजी महिलाओं की माँग है कि हर मंत्रालय का तीस प्रतिशत भाग महिलाओं पर खर्च हो । इस बजट में अभिजात वर्ग की शिक्षा पर खासा ध्यान दिया गया है परन्तु आम आदमी की शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए इस बजट में कुछ खास नहीं है । ९१ प्रतिशत युवा जो १७ से २३ वर्ष के हैं आज भी उच्च शिक्षा की दहलीज से बाहर हैं । उनको बजट के माध्यम से मुख्यधारा में लाने के लिए सरकार की ओर से कोई प्रयास नहीं किए गए । २०१५ तक के लिए ऐसी योजना की आवश्यकता थी जिससे उच्च शिक्षा हेतु ज्यादा से ज्यादा भागीदारी सुनिश्चित होती । दूरदराज व कस्बों के युवाओं को कैसे उच्च शिक्षा हेतु उत्प्रेरित किया जाएगा? बेसिक शिक्षा पर जोर दिए बिना उच्च शिक्षा की नींव क्या बरकरार रह पाएगी? शिक्षा की गुणवत्ता पर कोई निर्णय ही सरकार ने नहीं लिया है, वहीं नैतिक शिक्षा को अनिवार्य विषय के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता की समझ उनमें नहीं है । आखिर वे क्या कारण हैं जिससे निजी निवेशकों का पूँजी निवेश १२ प्रतिशत से घटकर ७ फीसदी रह गया है । राज्यसभा सांसद एवं पूर्व राजस्व सचिव के अनुसार -बजट में उम्मीद जताई गई है कि अतिरिक्त सरकारी खर्च करके और कुछ महत्वपूर्ण कर सुधारों के जरिए ९ प्रतिशत की विकास दर पुनः हासिल हो जाएगी । मगर बड़े सरकारी खर्चों को मंजूर करने योग्य परिणाम में बदलने में होने वाली प्रक्रियागत और क्रियात्मक मुश्किलों की इस प्रक्रिया में अनदेखी कर दी गई है । इसके साथ ही, जहां राज्यों को एफआरबीएम की सीमा में छूट देते हुए सिर्फ अतिरिक्त कर्ज के द्वारा आधा प्रतिशत का राहत दिया गया है वहीं केंद्र सरकार ने अपने लिए राजकोषीय घाटे को ६.८ प्रतिशत रखा है और इसमें भी अंडर रिकवरी के द्वारा २ प्रतिशत अतिरिक्त घाटे की गुंजाइश रखी गई है । केंद्र और राज्यों के बीच स्वीकृत राजकोषीय घाटे में इस तरह का भेदभाव पूर्ण रवैया गैर न्यायोचित है । राज्य भी केंद्र की तरह ही आर्थिक मंदी और बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं इसलिए उनके साथ बराबरी का व्यवहार होना चाहिए । और भी खास बात यह है कि राजकोषीय संघवाद आर्थिक स्रोतों और विकास योजनाओं के गैर भेदभाव मूलक बंटवारे पर आधारित होता है । विभिन्न राज्यों के बीच राजनीतिक वजहों से आर्थिक भेदभाव संघीय ढांचे को चोट पहुंचाएगा । इस संदर्भ में बिहार जैसे गरीब राज्य की विशेष खाद्य पैकेज, प्राकृतिक आपदा के मद में केंद्र सरकार के पास पूर्व के बकाए की निकासी और विशेष राज्य का दर्जा देने जैसे न्यायोचित मांगों की लगातार अनदेखी, प्रधानमंत्री द्वारा कई मौकों पर किए गए वादों की उपेक्षा ही कही जा सकती है । प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के बाद अपने जवाब में कहा था कि क्षेत्रीय असमानता और पिछड़े राज्यों की समस्याओं पर विशेष ध्यान दिया जाएगा । बजट इन उम्मीदों पर निराश ही करता है । यह तो समय ही बताएगा कि बजट में किए गए प्रस्तावों से विकास की रफ्तार फिर से बन पाएगी या नही मगर बजट प्रस्तावों और इसमें सन्निहित रवैये से राज्य तो असुविधा ही महसूस कर रहे हैं । यदि गरीब, सघन आबादी वाले पिछले राज्यों का विकास नहीं किया गया तो समग्र विकास की बात सिर्फ बयानबाजी ही साबित होगी । भारत की आम जनता जो मेहनत-मजदूरी कर अपना गुजारा करती है, को बजट से कोई लेना-देना नहीं है । इन लोगों की मंशा मात्र इतनी है कि बजट ऐसा हो जिससे रोजगार पाने शहर आए लोगों की समस्याओं के समाधान हेतु बजट में तवज्जो मिले । ऐसे लोगों की राय है कि यदि सप्ताह में चार दिन अरहर की दाल खाना चाहूँ तो नहीं खा सकता, तो फिर बजट देखने या सुनने से क्या फायदा? १६-१८ घंटे कड़ी मेहनत के बाद मुश्किल से परिवार का भरण-पोषण करनेवाले लोग बजट से सहारा की उम्मीद नहीं करते बल्कि अपने बच्चों पर उन्हें विश्वास है जो परिवार के आय में सहयोग प्रदान करते हैं । मोटे तौर पर कहा जाय तो सबों की एकसूत्री माँग है कि जो बजट महंगाई वृद्धि पर अंकुश न लगा पाए उससे क्या फायदा? ये मानते हैं कि आम आदमी के लिए तो बजट कभी होता ही नहीं है । वर्ष २००९-१० का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने भारत इतिहास के सबसे प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कौटिल्य के जरिए वैश्विक आर्थिक मंदी से निपटने का संकल्प जताया । समाज के सभी वर्गों के उत्थान के लिए उन्होंने महात्मा गांधी को भी याद किया । अपने १०० मिनट के बजट भाषण में उन्होंने दो बार कौटिल्य को उद्धत किया । भाषण के आरंभ में उन्होंने वैश्विक आर्थिक मंदी से जूझती अर्थव्यवस्था को पार लगाने का संकल्प व्यक्त करते हुए कौटिल्य की इस उक्ति को उद्धत किया, देश की समृद्धि के हित में राजा को आपदाओं की संभावना का अंदाजा लगाना होगा । उनके घटित होने से पहले उन्हें टालने का प्रयास करना होगा, जो घटित हो गई हैं, उनसे निपटना होगा, आर्थिक क्रियाकलाप के सभी अवरोधों को दूर करना होगा और राज्य में होने वाली राजस्व हानि को रोकना होगा ।’ एक अन्य स्थान पर मुखर्जी ने कौटिल्य का जिक्र करते हुए कहा, ‘जिस प्रकार कोई व्यक्ति बगीचे से पके फलों को ही तोड़ता है उसी प्रकार एक राजा तभी राजस्व संग्रह करता है जब वह देय होता है जिस प्रकार कोई बिना पके फलों को एकत्र नहीं करता, उसी प्रकार राजा देय न हुए धन को लेने से बचे क्योंकि ऐसा न करने पर क्रोधित होंगे और राजस्व के स्रोत को ही नष्ट कर देंगे । ’सबसे अंत में मुखर्जी ने महात्मा गांधी को याद किया । हालांकि वित्तमंत्री प्रणवमुखर्जी ने अपने बजट भाषण में गाँधीजी का जिक्र करते हुए कहा कि “लोकतंत्र लोगों के विभिन्न वर्गों के समग्र भौतिक, आर्थिक और आध्यात्मिक संसाधनों को जुटाने की कला और विज्ञान है जिसमें सभी की सामान्य भलाई अंतनिर्हित है । यह वही कार्य है जो हमें पूरा करना है ” जबकि प्रणव दादा के पिटारे से बच्चों के लिए कुछ भी नहीं निकला । लॉलिपॉप भी नहीं । सीनियर सिटिजन के लिए हालांकि हजार रूपये कर दी है, लेकिन इतने भर से वह दिल नहीं जीत पाए । चाइल्ड राइट्स एक्टिस्ट्इस ने इस बजट को बचपन विरोधी बजट कहा तो सीनियर सिटिजंस ने इसे निराशाजनक ।बजट स्पीच में वित्त मंत्री ने बच्चोंके लिए सिर्फ इतना कहा कि ६ साल तक के सभी बच्चों को समन्वित बाल विकास परियोजना में शामिल करके गुणवत्ता हासिल की जाएगी । बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक कैलाश सत्यार्थी के मुताबिक देश के २५-३० करोड़ बच्चों के लिए यह अब तक का सबसे अधिक निराशाजनक बजट है । बाल अधिकार रक्षा, चाइल्ड लेबर, पुनर्वास और बुनियादी शिक्षा जैसे शब्द तो वित्त मंत्री की स्पीच में नदारद थे ही, हैरानी की बात है कि सरकार की दो अहम फ्लैगशिप योजनाओं, सर्व शिक्षा अभियान और मिड डे मील का कहीं जिक्र तक नहीं हुआ है । उन्होंने कहा कि स्कूली शिक्षा बजट में सिर्फ १० फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है यानी सामान्य तौर पर बढ़ोत्तरी दर में १५ फीसदी की कमी हुई । यह स्थिति तब है जब भारत दुनिया के उन २७ देशों में से है, जो २०१५ तक स्कूली शिक्षा का लक्ष्य पूरा नहीं कर सकते और उन ९३ देशों में से है जो सबके लिए शिक्षा के अंतरराष्ट्रीय लक्ष्य को इस घोषित अवधि में पूरा नहीं कर पाएंगे ।वहीं किरन बेदी, रिटायर्ड आईपीएस के विचार में यह बजट दूरदर्शितापूर्ण है और हर वर्ग का ख्याल रखकर तैयार किया गया है । इस बजट ने आम आदमी में आशा की किरण पैदा की है । मेरी नजर में इस बजट की सबसे बड़ी खासियत रही है नरेगा के लिए रकम बढ़ाकर करीब ४० हजार करोड़ रूपये किया जाना । इस बजट ने नरेगा में न्यूनतम मजदूरी बढ़ाकर १०० रूपये कर दी है । नरेगा देश में भूख और गरीबी को खत्म कर सकती है । इस योजना के कारण पिछड़े राज्यों के मजदूरों को अब उन्हीं के राज्यों में रोजगार मिलने लगा है । इस कारण उन्होंने अब पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मजदूरी करने जाना ही छोड़ दिया है । बजट में वोकेशनल ट्रेनिंग के लिए लोन को प्रावधान किया जाना स्वागत योग्य कदम है । मेरा विचार है कि वोकेशनल ट्रेनिंग के लिए सेंटरों की जरूरत है । बजट में केंद्र सरकार से मिली भारी रकम का सदुपयोग करना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है । रकम को आम आदमी तक पहुंचाना लोकल प्रशासन का काम होता है । जरूरत इस बात की है कि बजट में दी गई रकम गरीब आदमी तक पहुंचे । इसके लिए लोकल अफसरों की जवाबदेही तय होनी चाहिए । आखिरकार यह पूरी रकम तो देश के नागरिकों से ही मिल रही है । टैक्स अदा करने वालों को बताया जाना चाहिए कि किस राज्य ने उनका पैसा सही जगह तक पहुंचाया। केंद्रीय आम बजट की आलोचना करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने कहा कि बजट घोर निराशाजनक और असंतुलित है । इस बजट से समावेशी विकास के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता । उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री प्रणव ने बजट भाषण में कौटिल्य की चर्चा की, लेकिन उनकी धरती बिहार को वे भूल गए । प्रदेश की उपेक्षा से लगता है कि बिहार का अस्तित्व ही नहीं है । राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने भी केंद्रीय बजट को बिहार विरोधी बताया है । मुख्यमंत्री ने इस पर नाराजगी जताई कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के संबंध में बजट में चर्चा तक नहीं गई । वित्त मंत्री बिहार को विशेष पैकेज देने की अपनी ही सरकार की २००४ में की गई घोषणा भूल गये । केंद्र सरकार ने आइला के बाद पश्चिम बंगाल को एक हजार करोड़ रूपये का पैकेज देने की घोषणा की है । कोसी पीड़ितों को मदद न देकर केंद्र ने अदूरदर्शिता और राजनीतिक दुर्भावना का परिचय दिया है । प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा कोसी त्रासदी को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने के बावजूद इसके पीड़ितों को राहत व पुनर्वास के लिए मदद न मिलना आश्चर्यजनक है । नीतीश ने कहा कि देश के कुछ इलाकों को हैंडलूम कलस्टर के रूप में विकसित करने की बात कही गई है । इसमें सिल्क सिटी के रूप में विख्यात भागलपुर और बिहार का कानपुर माने जाने वाले मानपुर को शामिल ही नहीं किया गया । उन्होंने प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के तहत चुने गए गांव को मात्र दस लाख देने को छलावा बताया ।उन्होंने राज्य के सभी सांसदों में बिहार की उपेक्षा के खिलाफ संसद में आवाज उठाने की अपील की है । उन्होंने कहा कि एनडीए के सांसद चुप नहीं बैठेंगे ।उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा कि कोसी त्रासदी के लिए राज्य सरकार ने १४ हजार करोड़ के पैकेज की मांग की थी । इसे केंद्र ने अनसुना कर दिया । उन्होंने कहा कि यह बिहार के साथ अन्याय है । बसपा सुप्रीमो और मुख्यमंत्री मायावती ने यूपीए सरकार के आम बजट को दिशाहीन और जनविरोधी करार दिया है । उन्होंने कहा कि इस बजट से सभी वर्गों को घोर निराशा हुई है । आंकड़ों की बाजीगरी में देश को गुमराह किया गया है । यह बजट पूंजीपतियों और धन्नासेठों का हिमायती है । बजट में कमजोर और गरीबों की अनदेखी की गई है । अल्पसंख्यकों, पिछड़ों, किसानों, मजदूरों,और छोटे व्यापारियों की भी उपेक्षा हुई । मायावती ने कहा कि बजट में आई गिरावट से यह बात साबित हो गई है कि उद्योग, व्यापार, और वाणिज्य जगत ने भी बजट को नकार दिया है । फ्रिंज बेनिफिट टैक्स का फायदा कर्मचारियों को मिलता था जिसे समाप्त कर दिया गया है । इस तरह कंपनियों को फायदा पहुंचाया गया । कमोडिटी टैक्स हटाने का फायदा गेंहू, चावल कारोबार के सटोरियों को होगा । कम आय वालों को नाम मात्र की छूट दी गई जबकि दस लाख से अधिक आय वालों पर से सरचार्ज हटा दिया गया ।पार्टियों के चुनावी चंदे पर आयकर की छूट दी गई है ताकि कांग्रेस जैसी पार्टियां धन्नासेठों के अधिक चंदा ले सकें । मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तर प्रदेश की इस कदर उपेक्षा हुई कि हथकरघा बुनकरों के लिए स्थापित किए जाने वाले कलस्टर में से एक भी प्रदेश में स्थापित करने की व्यवस्था नहीं हुई । जबकि यहां बुनकर सबसे अधिक हैं । बजट में तेल और प्राकृतिक गैस उत्पादन पर टैक्स हालीडे की सुविधा चुनिन्दा उत्पादकों को देने की नीयत से घोषित हुई है । यह चहेता उद्योगपति कौन है, इसे सभी जानते हैं । उन्होंने कहा कि बसपा सरकार की अम्बेडकर गांव योजना की देखा-देखी केन्द्र ने प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना शुरू करने की बात कही है । लेकिन इस नकल के बावजूद केन्द्र दलितों के विकास पर संवेदनशील नहीं है इसलिए योजना के तहत सिर्फ नौ करोड़ की व्यवस्था हुई है । ग्रामीण विद्युतीकरण पर चुप्पी साध ली गई बजट में राज्यों के साथ भेदभाव हुआ है । नरेगा में बढ़ोत्तरी की बात भी गुमराह करने वाली है । ग्रामीण दलितों के लिए बजट में एक नई योजना की घोषणा की गई है । दलितों और आदिवासियों के लिए कुल बजटीय आवंटन में वृद्धि हुई हैं, वहीं दलितों के उद्धार की कई योजनाओं में धन कम दिया गया है । बजट में आदिवासियों के लिए आवंटन २१३३ करोड़ रूपये से बढ़ा कर ३२२० करोड़ कर दिया गया है जबकि दलितों के लिए आवंटन में मामूली वृद्धि की गई है । दलितों के लिए बजट आवंटन २४५९ करोड़ से बढ़कर २५८५ करोड़ रूपए हुआ है । प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना ऐसे गांवों पर लागू होगी, जहां दलितों की आबादी ५० फीसदी से अधिक है । वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने दलितों के लिए प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना की घोषणा करते हुए कहा कि देश में ४४ हजार ऐसे गांव हैं जहां दलितों की आबादी ५० फीसदी से अधिक है । वित्त मंत्री ने बताया कि पहले एक हजार गांवों को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लिया जा रहा है जिसके लिए सौ करोड़ की राशि आवंटित की जा रही है । अन्य मदों से मिलने वाली राशि के अलावा इन गांवों को १० लाख की राशि अलग से दी जाएगी ताकि गांवों का समेकित विकास हो पाए । इस योजना के तहत इन गांवों में बुनियादी सुविधाओं के विकास पर ध्यान दिया जाएगा । इस योजना का क्रियान्वयन मौजूदा केंद्रीय तथा राज्य स्तरीय योजनाओं के साथ किया जाएगा । राज्य सरकारों तथा पंचायती राज संस्थानों की पूर्ण भागीदारिता के साथ इसे लागू किया जाएगा । दलितों के लिए आवंटन में इस साल सफाई कर्मचारियों के उद्धार और पुनर्वास की स्वरोजगार योजना के लिए राशि १०० करोड़ से घटाकर ९७ करोड़ कर दी गई है । मैट्रिक पूर्व छात्रवृत्ति की राशि को २७ करोड़ से घटाकर २५ करोड़ कर दिया गया है । उधर दलितों के लिए स्पेशल कंपोनेंट प्लान के तहत कुल योजना व्यय का १७ फीसदी खर्च न करने पर दलित संगठनों ने नाराजगी जताई है । वर्ष २००८-०९ में अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए १६८८.३७ करोड़ रूपए खर्च किया गया था, जो इस साल के बजट २००९-१० में बढ़कर १७६७.६९ करोड़ हो गया है । इस पर दलित आर्थिक अधिकार संगठन के पॉल दिवाकर ने कहा कि दलितों के लिए आवंटन का अनुपात कुल योजना व्यय का ६.४० फीसदी रह गया, जबकि पिछले साल यह ७.०५ फीसदी था । उनका कहना है कि इस तरह दलितों को इस बजट ने २३८२६ करोड़ रूपये से वंचित रखा है । दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना ने कहा-मैं इस बजट से काफी आहत हूं । निराशा की बात है कि गरीबों की बात करने वाली कांग्रेस सरकार ने इस बजट में गरीबों के उत्थान के लिए कोई गंभीरता नहीं दिखाई है । बजट को समझकर ऐसा लगता है जैसे चंद बड़े लोगों के कहने पर इसे तैयार कर लिया गया है । इस बजट में न तो देश के आम आदमी की भलाई झलकती है और न ही मध्यम वर्ग के लोगों से जुड़ी समस्याओं के निवारण की कोई कोशिश । बजट को देखकर लगता है कि सरकार को गरीब जनता की समस्या का ज्ञान ही नहीं है । बजट में समस्या का ज्ञान ही नहीं है । बजट में बनाई गई अधिकतर योजनाएं हवा हवाई हैं । चुनाव से पहले अपने को मध्यम वर्ग की सबसे बड़ा हितैषी बताने वाली केंद्र सरकार ने इनकम टैक्स में छूट का खास इजाफा न करके बता दिया है कि उसे सिर्फ कमाई की ही चिंता है । चुनाव से पहले इनकम टैक्स में छूट को बड़े-बड़े वादे किए जा रहे थे, लेकिन वह सब हवा में उड़ा दिए गए । सरकार गरीबों को सस्ते अनाज देने की बात तो करती है, लेकिन इस योजना को जकड़े हुए दलालों को हटाने के लिए उसके पास ठोस योजना नहीं है । राजधानी के लोग आज भी बिजली पानी को तरस रहे हैं । दिल्ली के गरीब लोग सालों से सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं । ऐसा लगता है कि इस बजट में देश की राजधानी के बारे में कोई गंभीरता ही नहीं दिखाई गई है । बजट में चाहे कितनी राहत की बात की गई हो लेकिन बजट से पूर्व पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाकर सरकार ने बता दिया है कि उसकी असली मंशा क्या है ।
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Best wishes from Italy!