Tuesday, June 28, 2011

रंगों से सँवारें जीवन


प्रकृति स्वयं को विभिन्‍न रंगों में अभिव्यक्‍त करती है और व्यक्‍ति प्रकृति के इन्हीं रंगों के माध्यम से अपनी संवेदनाओं, भावनाओं, एवं पसंद को अभिव्यक्‍त करता है । रंग अपनी ओजस्विता एवं प्रकाश द्वारा मानव मस्तिष्क एवं शरीर को प्रभावित करते हैं ।

सूर्य के श्‍वेत उज्‍जवल प्रकाश में सात रंग अर्न्तनिहित होते हैं । लाल, पीला, आसमानी, हरा, नीला तथा बैंगनी ये सातों रंग वस्तुतः सात रंगों की रश्मियां हैं इन्हें त्रिआयामी (प्रिज्म) नामक शीशे से देखा जा सकता है । जम कालिक ग्रहों की प्रबल या निर्मल अवस्था के अनुरूप इन ग्रहों की रश्मियां मनुष्य के जीवन पर सकारात्मक अथवा नकारात्मक प्रभाव डालती हैं इसी कारण हर व्यक्‍ति का भाग्य एवं व्यक्‍तित्व दूसरे से भिन्‍न होता है । वैज्ञानिकों ने भी अपने परीक्षणों के आधार पर रंगों के लक्षणों एवं प्रभावों की व्याख्या की है । वर्तमान में प्रचलित ‘रंगों द्वारा चिकित्सा’ मानव जीवन में रंगों की महत्त्वता का ज्वलन्त उदाहरण है ।

पौराणिक ग्रंथों में श्रीकृष्ण एवं राम को पीले पीताम्बर पहने, माँ भगवती व लक्ष्मी को लाल साड़ी पहने, सरस्वती को श्‍वेत वस्त्र पहने दिखाया गया है । साधु-संयासी सदैव भगवा वस्त्र धारण करते हैं । डॉक्टर सफेद व हरे वस्त्र का उपयोग करते हैं । जज व वकील काले रंग का चौगा इस्तेमाल करते हैं । वास्तव में इन सब के पीछे रंगों का मनोवैज्ञानिक सांकेतिक अर्थ है । रंगों का ज्योतिष शास्त्र, रत्‍न शास्त्र, धार्मिक परम्पराओं व चिकित्सा शास्त्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है । कुछ रंग आकर्षण उत्पन्‍न करते हैं, हमे पॉजीटिव एनर्जी देते हैं तो कुछ रंगों को हमारी आँखें दुबारा देखना नहीं चाहती । कुछ रंग मन को शान्ति प्रदान करते हैं, आँखों को ठण्डक देते हैं, जबकि कुछ रंग शरीर में गरमी पहुंचाते हैं, हमको उत्तेजित करते हैं ।

वस्त्र, कमरे, टेबल, क्लॉथ, बिस्तरों, कम्बलों सॉज-सज्जा के सामानों में किन रंगों का प्रयोग किया जाये इसकी जानकारी सर्व साधारण को नहीं होती । वास्तव में रंगों को उनके प्रभावों व परिणामों को ध्यान में रखते हुए प्रयोग में लाया जाना चाहिये । जीवन में अनुकूल रंगों को प्रयोग में लाकर न केवल भाग्य को बलवान बनाया जा सकता है बल्कि प्राकृतिक तौर पर रोगों का निदान भी किया जा सकता है । वैसे तो सात रंगों के सम्मिश्रण से हजारों रंग बन जाते हैं, किन्तु मनुष्य के शरीर एवं मस्तिष्क को प्रभावित करने वाले कुछ रंग इस प्रकार हैं-


सफेद -


यह रंग पवित्रता, शुद्धता, शांति, विद्या, नीति एवं सभ्यता का प्रतीक है । सफेद रंग के प्रयोग से मन की चंचलता समाप्त होती है । व्यक्‍ति की सोच सकारात्मक बनती है । सफेद रंग पसंद करने वाला व्यक्‍ति संयमी, सहनशील व शुद्धता का ध्यान रखने वाला होता है । सात्त्विक विचार का होता है । विद्यार्थियों के लिये यह रंग शुभ फलदायक है ।


लाल -


लाल रंग ऊर्जा, स्फूर्ति शक्‍ति महत्त्वाकांक्षा, उत्तेजना, क्रोध, पराक्रम, बल व उत्साह का द्योतक है । यह रंग अनुकूल परिणाम, सफलता, संघर्षों से जूझने व खतरों से खेलने में अदम्य साहस प्रदान करता है । यह स्नायु व रक्‍त की क्रियाशीलता को बढ़ाता है तथा एड्रीनल ग्रन्थि व संवेदी तंत्रिकाओं को उत्तेजित करता है । क्रोधी, चिड़चिड़े व हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित लोगों को इस रंग के प्रयोग से बचना चाहिये । शारीरिक दुर्बलता, मानसिक क्षीणता, भय, ह्रदय सम्बन्धी विकार तथा नपुंसकता को दूर करने के लिये लाल रंग का प्रयोग लाभदायक होता है ।


नीला -


यह रंग स्नेह, शांति, सौजन्य, पवित्रता, बल, पौरूष और वीर भाव का परिचायक है । नीला रंग व्यक्‍ति को सत्य भाषी, धार्मिक, धैर्यवान बनाता है । इस रंग में प्रेम-माधुर्य, त्याग, कोमलता, अनुराग और विश्‍वास के भाव निहित रहते हैं । यह रंग रक्‍त संचार व्यवस्था को ठीक रखता है । नीले रंग की बोतल में पानी भर कर पीने से एवं इस रंग के अधिकाधिक प्रयोग से हाई ब्लड़ प्रेशर, जोड़ों के दर्द, दमा, श्‍वांस के रोग, स्नायु तंत्र व आँखों के रोग दूर हो सकते हैं ।


पीला -


पीला रंग आनन्द, ऐश्‍वर्य, कीर्ति, भव्यता, सुख, आरोग्यता, एवं योग्यता का परिचायक है । हल्का या मिश्रित पीला रंग दरिद्रता व बीमारी का सूचक है । माँस-पेशियों को मजबूत बनाये रखने व पाचन संस्थान को ठीक रखने के लिये इसका प्रयोग लाभदायक है किन्तु अधिक समय तक इसके प्रयोग से पित्त दोष उत्पन्‍न हो सकता है । पीला रंग पसंद करने वाले व्यक्‍ति प्रशंसा के भूखे, बातों को बढ़ा चढ़ा कर कहने वाले, लोगों को टीका-टिप्पणी पर ध्यान न देने वाले तथा कुछ डरपोक होते हैं ।


हरा -


हरा रंग व्यक्‍ति की राजसी ठाट, गर्वशीलता, अपरिवर्तन और निंरकुश प्रवृत्ति की ओर संकेत करता है । यह रंग मन को प्रसन्‍नता, ताजगी, हृदय को शीतलता, सुख-शांति व नेत्रों को ठण्डक प्रदान करता है । हरा रंग पसंद करने वाले व्यक्‍ति हास्य प्रिय, चंचल, कर्मशील, सक्रिय व आत्म विश्‍वासी होते हैं । हर रंग के प्रयोग द्वारा नाड़ी सम्बन्धी रोग, आमाशय, आँतों, वाणी, जिह्‌वा व लीवर के रोग दूर किये जा सकते हैं । हरा रंग मन में उत्तम भावनाओं को विकसित कर मानसिक तनाव से छुटकारा दिलाता है ।


नारंगी -


नारंगी रंग लाल व पीले रंग का सम्मिश्रण है । यह रोगाणु प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है । नाड़ी की गति को बढ़ाता है किन्तु रक्‍त चाप को सामान्य बनाये रखता है । यह जीवन में उत्तेजना व बल प्रदान करता है । इस रंग को पसंद करने वाले व्यक्‍ति नर्म दिल, दयालु, एकाग्रता से काम करने वाले तथा धीरे-धीरे मित्रता को विकसित करने वाले होते हैं । ये लोग व्यर्थ वाद-विवाद के झमेले में उलझना पसंद नही करते हैं । नारंगी रंग धार्मिकता, दार्शनिकता, एवं साधना का द्योतक है ।


काला -


सभी रंगों के सम्मिश्रण से तैयार काला रंग रंगों की सत्ता को नकारता है तथा विमुखता को व्यक्‍त करता है । यह रंग बदला, घृणा तथा द्वन्द्व की ओर संकेत करता है । काला रंग पसंद करने वाले व्यक्‍ति परिस्थितियों के विरूद्ध विद्रोह करने व हार न मानने की क्षमता रखते हैं । न्याय व समर्पण की भावना रखने वाले ये लोग समय आने पर सबको तिलांजलि देने से भी नहीं चूकते । तामसिक प्रवृत्ति का यह रंग सुरक्षात्मक कवच के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता है । इस रंग का प्रयोग सर्दियों में अनुकूल रहता है ।

“कॉमेडी के मसीहा - चार्ली चैप्लिन”

वीरू के बेटे ने स्कूल से आते ही अपने पापा को बताया कि आज स्कूल में बहुत मजा आया । वीरू ने पूछा कि क्यूं आज पढ़ाई की जगह तुम्हें कोई कॉमेडी फिल्म दिखा दी जो इतना खुश हो रहे हो? वीरू के बेटे ने कहा कि कॉमेडी फिल्म तो नहीं दिखाई लेकिन हमारे टीचर ने आज कॉमेडी फिल्म के जन्मदाता चार्ली चैप्लिन के बारे में बहुत कुछ नई जानकारियां दी हैं । पापा क्या आप जानते हो कि चार्ली चैप्लिन दुनिया के सबसे बड़े आदमियों में से एक थे । वीरू ने मज़ाक करते हुए कहा क्यूं वो क्या १२ नंबर के जूते पहनते थे? बेटे ने नाराज़ होते हुए कहा अगर आपको ठीक से सुनना हो तो मैं उनके बारे में बहुत कुछ बता सकता हूँ । जैसे ही वीरू ने हामी भरी तो उसके बेटे ने कहना शुरू किया कि हमारे टीचर ने बताया है कि चार्ली चैप्लिन का नाम आज भी दुनिया के उन प्रसिद्ध हास्य कलाकारों की सूची में सबसे अव्वल नंबर पर आता है जिन्होंने अपनी जुबान से बिना एक अक्षर भी बोले सारा जीवन दुनिया को वो हंसी-खुशी और आनंद दिया है जिसके बारे में आसानी से सोचा भी नहीं जा सकता । इस महान कलाकार ने जहां अपनी कॉमेडी कला की बदौलत चुप रहकर अपने जीते जी तो हर किसी को हंसाया वहीं आज उनके इस दुनिया से जाने के बरसों बाद भी हर पीढ़ी के लोग उनकी हास्य की इस जादूगरी को सलाम करते हैं । 16 अप्रैल 1889 को इंग्लैंड में जन्मे इस महान कलाकार की सबसे बड़ी विशेषता यही थी कि लोग न सिर्फ उनके हंसने पर उनके साथ हंसते थे बल्कि उनके चलने पर, उनके रोने पर, उनके गिरने पर, उनके पहनावे को देखकर दिल खोलकर खिलखिलाते थे । अगर इस बात को यूं भी कहा जाये कि उनकी हर अदा में कॉमेडी थी और जमाना उनकी हर अदा का दीवाना था, तो गलत न होगा ।

पांच-छह साल की छोटी उम्र में जब बच्चे सिर्फ खेलने कूदने में मस्त होते हैं इस महान कलाकार ने उस समय कॉमेडी करके अपनी अनोखी अदाओं से दर्शकों को लोटपोट करना शुरू कर दिया था । चार्ली-चैप्लिन ने अपने घर को ही अपनी कॉमेडी की पाठशाला और अपने माता-पिता को ही अपना गुरू बनाया । इनके माता-पिता दोनों ही अपने जमाने के अच्छे गायक और स्टेज के प्रसिद्ध कलाकार थे । एक दिन अचानक एक कार्यक्रम में इनकी मां की तबियत खराब होने की वजह से उनकी आवाज चली गई । थियेटर में बैठे दर्शकों द्वारा फेंकी गई कुछ वस्तुओं से वो बुरी तरह घायल हो गईं । उस समय बिना एक पल की देरी किये इन नन्हें बालक ने थोड़ा घबराते हुए लेकिन मन में दृढ़ विश्‍वास लिये अकेले ही मंच पर जाकर अपनी कॉमेडी के दम पर सारे शो को संभाल लिया । उसके बाद चार्ली चैप्लिन ने जीवन में कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा ।

सर चार्ली चैप्लिन एक सफल हास्य अभिनेता होने के साथ-साथ फिल्म निर्देशक और अमेरिकी सिनेमा के निर्माता और संगीतज्ञ भी थे । चार्ली चैप्लिन ने बचपन से लेकर 77 वर्ष की आयु तक अभिनय, निर्देशक, पटकथा, निर्माण और संगीत की सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया । बिना शब्दों और कहानियों की हॉलीवुड में बनी फिल्मों में चार्ली चैप्लिन ने हास्य की अपनी खास शैली से यह साबित कर दिया कि केवल पढ़-लिख लेने से ही कोई विद्वान नहीं होता । महानता तो कलाकार की कला से पहचानी जाती है और बिना बोले भी आप गुणवान बन सकते हैं । यह अपने युग के सबसे रचनात्मक और प्रभावशाली व्यक्‍तियों में से एक थे । इन्होंने सारी उम्र सादगी को अपनाने हुए कॉमेडी को ऐसी बुलदियों तक पहुंचा दिया जिसे आज तक कोई दूसरा कलाकार छू भी नहीं पाया । इनके सारे जीवन को यदि करीब से देखा जाये तो एक बात खुलकर सामने आती है कि इस कलाकार ने कॉमेडी करते समय कभी फूहड़ता का सहारा नहीं लिया । इसलिये शायद दुनिया के हर द्वेष में स्टेज और फिल्मी कलाकारों ने कभी इनकी चाल-ढाल से लेकर कपड़ों तक और कभी इनकी खास स्टाइल वाली मूछों की नकल करके दर्शकों को खुश करने की कोशिश की है ।

हर किसी को मुस्कुराहट और खिलखिलाहट देने वाले मूक सिनेमा के आइकन माने जाने वाले इन कलाकार के मन में सदैव यही सोच रहती थी कि अपनी तारीफ खुद ही की तो क्या किया, मजा तो तभी है कि दूसरे लोग आपके काम की तारीफ करें । चार्ली चैप्लिन की कामयाबी का सबसे बड़ा रहस्य यही था कि इन्होंने जीवन को ही एक नाटक समझ कर उसकी पूजा की जिस की वजह यह खुद भी प्रसन्‍न रहते थे और दूसरों को भी सदा प्रसन्‍न रखते थे । इनके बारे में आज तक यही कहा जाता है कि इनके अलावा कोई भी ऐसा कलाकार नहीं हुआ जिस किसी एक व्यक्‍ति ने अकेले सारी दुनिया के लोगों को इतना मनोरंजन, सुख और खुशी दी हो । सारी बात सुनने के बाद वीरू ने कहा कि तुम्हारे टीचर ने चार्ली चैप्लिन के बारे में बहुत कुछ बता दिया लेकिन यह नहीं बताया कि उन्होंने यह भी कहा था कि हंसी बिना बीता हमारा हर दिन व्यर्थ होता है । सर चार्ली चैप्लिन के महान और उत्साही जीवन से प्रेरणा लेते हुए जौली अंकल का यह विश्‍वास और भी दृढ़ हो गया है कि जो कोई सच्ची लगन से किसी कार्य को करते हैं उनके विचारों, वाणी एवं कर्मों पर पूर्ण आत्मविश्‍वास की छाप लग जाती है । कॉमेडी के मसीहा चार्ली चैप्लिन ने इस बात को सच साबित कर दिखाया कि कोई किसी भी पेशे से जुड़ा हो वो चुप रहकर भी अपने पेशे की सही सेवा करने के साथ हर किसी को खुशियाँ दे सकता है ।

Tuesday, June 7, 2011

केन्द्र सरकार ने दिखाई सख्ती

मनरेगा में हो रहे व्यापक भ्रष्टाचार और घपलेबाजी को रोकने के लिए केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने एक सख्त निर्णय लिया है जिसके अनुसार, राज्य सरकार को दिए जाने वाले केन्द्रीय राशि वित्तीय वर्ष में तीन किश्तों में दी जाती है । ये राशि अब राज्यों को पहले किश्त का काम और खर्च का ब्यौरेवार रिपोर्ट देने के बाद ही दूसरी किश्त जारी की जाएगी । सरकारी सूत्रों के अनुसार, मनरेगा के तहत्‌ राज्यों सरकारों को दी जाने वाली राशि, राज्य सरकार अन्य योजनाओं पर खर्च कर रही है, जिसकी वजह से मनरेगा को सुचारू रूप से क्रियान्वित करने में समस्या आ रही है ।


केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2011-12 के लिए मनरेगा के तहत राज्यवार राशि आबंटन :-


उत्तर प्रदेश :- 8.435 करोड़ रूपये
मध्य प्रदेश :- 6000 करोड़ रूपये
पश्‍चिम बंगाल :- 3.713 करोड़ रूपये
बिहार :- 3,166 करोड़ रूपये
छत्तीसगढ़ :- 2,075 करोड़ रूपये
झारखंड :- 1,471 करोड़ रूपये

केन्द्र सरकार ने दिखाई सख्ती

केन्द्र सरकार ने दिखाई सख्ती

Monday, June 6, 2011

ज्योतिष और उससे जुड़े भ्रम

ज्योतिष शास्त्र उस विद्या का नाम है जो ब्रह्मांड में विचरने वाले ग्रह - नक्षत्रों की गति, दूरी और स्थिति का गणितीय आधार पर गणना करता है । ज्योतिष शास्त्र का सम्बन्ध वेदों से है परन्तु इसका यह तात्पर्य कादाचित नहीं कि ज्योतिष शास्त्र महज़ बस एक ग्रन्थ है । अपितु यह एक विज्ञान है जो अपने गणतिय समीकरणों के ज़रिये आकाशीय ग्रह नक्षत्रों की चाल बताने के साथ - साथ सूर्य - चन्द्र ग्रहण, तिथि, व्रत - त्यौहार, ऋतु परिवर्तन, आदि का भी इसी के माध्यम से पता लगता है । ज्योतिषीय गणना‌ओं के आधार पर ही एक भविष्यवक्‍ता मानव जीवन से जुड़े अनेक पहलु‌ओं के विषय में हमें जन्मपत्री के माध्यम से बताता है । किसी भी व्यक्‍ति की कुण्डली का अध्ययन भी ज्योतिषीय गणना‌ओं के आधार पर ही किया जाता है । आज बदलते दौर के साथ हम जितना आधुनिक होते जा रहे हैं उतना ही ज़्यादा हम भविष्य को जानने के लि‌ऐ भी आतुर रहने लगे हैं । शायद यही वजह है कि आज ज्योतिष विद्या को अनेक भ्रान्तियों ने आ घेरा है जिस कारण समाज में अन्धविश्‍वास भी बढ़ने लगा है । वहम और वास्तविकता के बीच का सच क्या है यही जानने के लि‌ऐ हमने बातचीत की पण्डित कृष्ण गोपाल मिश्र से -


प्र. - पण्डित जी ज्योतिष क्या है ?


उ. - वैसे ज्योतिष शब्द अपने आप में ही अपना अभिप्राय प्रकट करता है । ज्योतिष खगोलीय ज्योति पिण्डों की स्थिति एवं उनके वातावरण पर प्रभाव आदि ज्ञान को कहा जाता है । प्रकृति से जुड़ा हर ज्ञान अपने आप में विज्ञान है और विज्ञान से भी सर्वोपरि ज्ञान या महाविज्ञान ज्योतिष है जो हमें जीवन की उत्पत्ति या जीवन की रूपरेखा आदि का ज्ञान प्रदान करता है, बल्कि हम यह कह सकते हैं कि हमारे समाज के अधिकतर संस्कार जो वैज्ञानिक सम्मत हैं वो ज्योतिष ज्ञान से ही संभव है । जिस प्रकार से जीवन का आधार बिंदु या पदार्थ मात्र का साकार रूप में होने का आधार है, धनात्मक, तटस्थ और ऋणात्मक नामक तीन ऊर्जा‌ओं के सहसंजन (आपस में जुड़ा होना), जिसे वैज्ञानिक आधार पर पदार्थ का सूक्ष्मतम कण परमाणु संरचना से समझ सकते हैं । इस आधार पर इस ब्रह्माण्ड में हर छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा कण पिण्ड या पदार्थ सूक्ष्म व स्थूल रूप से एक-दूसरे से कहीं न कहीं सम्बंध रखते हैं और ऊर्जा परिवर्तन के आधार संरचना, आकार एवं गुण आदि परिवर्तित होते रहते हैं । ऊर्जा परिवर्तन पिण्डों के आपसी आकर्षण के कारण गतिमान पिण्डों द्वारा कालपरिवर्तन पर निर्भर करता है । जिससे हम सबका जीवन संचालित होता है ।


प्र. - क्या ज्योतिष और हस्त रेखा विज्ञान एक दूसरे पर निर्भर हैं ?


उ. - ज्योतिष खगोलीय पिण्डों की गति दिशा व प्रभाव के गणितीय आंकलन पर निर्भर करता है, जबकि हस्तरेखा समौद्रिक ज्ञान अर्थात्‌ एक लक्षण विज्ञान है, जो हाथों की रूपरेखा, बनावट आदि के आधार पर फलादेश बताता है ।


प्र. - क्या जन्म कुण्डली पर ग्रहण जैसी को‌ई अवधारणा है या यह सिर्फ भ्रम है ?


उ. - कुण्डली में किसी भी प्रकार का को‌ई ग्रहण नहीं होता । कुण्डली में कारक और अकारक ग्रहों को तुलनात्मक आंकलन पर भविष्यफल कथन किया जाता है ।


प्र. - ज्यातिषीय गणना‌यें कितने प्रतिशत सही होने की सम्भावनाएंं होती हैं और ज्योतिष पर कितना निर्भर होना चाहिये ?


उ. - ज्योतिष तो अपने आप में पूर्णतः सही गणना है, परन्तु भविष्य वक्‍ता की गणना सही है या गलत यह इस बात पर निर्भर करता है कि जो व्यक्‍ति गणना कर रहा है, उसके पास ज्योतिष का कितना ज्ञान है, जिस प्रकार एक प्रशिक्षित डॉक्टर या वैद्य किसी बीमारी को डा‌इग्नोस करने में पहले उसके लक्षण व स्वभाव को समझता है फिर उसका इलाज करता है । हालांकि यह और बात है कि आज के मशीनी युग में हम मशीनी परीक्षण पर निर्भर हैं, लेकिन दोनों ही स्थितियों में डॉक्टर व वैद्य का ज्ञान और परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर ही मरीज़ को सही इलाज मिलना सम्भव है । थोड़ी सी लापरवाही या अल्पज्ञान मरीज़ के लिये घातक सिद्ध हो सकता है ठीक उसी प्रकार ज्योतिष में ग्रहों के स्वभाव, भाव और राशि तथा आपसी ग्रहों के संबंधों के आधार पर भविष्य कथन होता है जो पूर्णतः सही होता है । परन्तु यदि ज्योतिष शास्त्री अगर ग्रहों की स्थिति व भावगत स्वभाव को समझने में थोड़ी सी भी भूल कर देते हैं तो उनका कथन गलत हो जाता है ।


प्र. - क‌ई पण्डित जन्मपत्री देख कर दोष निवारण के लिये मंत्र जाप पूजा पाठ आदि का विधान बताते हैं साथ ही वह कहते हैं कि “आप हमें ग्यारह हज़ार या फिर इक्कीस या इकत्तीस हज़ार की धन राशि दे दें तो हम आपके लिये मंत्र जाप, पूजा पाठ आदि विधान कर देंगे और आपकी कुण्डली के दोष निवारण हो जायेंगे तथा आपको मन वांछित फल प्राप्त हो जायेगा“ क्या यह सचमुच सम्भव है ?


उ. - ज्योतिष का सारा आंकलन काल समय पर निर्भर करता है । ज्योतिष में यह माना जाता है कि जो पदार्थ जीव, सजीव जिस काल में साकार रूप लिया है उस काल की ग्रह स्थिति के अनुसार उसका स्वभाव, गुण, दोष जीवन तय हो जाता है, जिसमें कभी भी विपरीत बदलाव नहीं हो सकते । थोड़ा बहुत उपायों एवं प्राकृतिक आधार पर आचार व्यवहार से उसके कुप्रभाव में कमी लायी जा सकती है, अर्थात सीधे तौर पर किसी की तकदीर बदली नहीं जा सकती है । जहाँ तक पूजा-पाठ का सवाल है पूजा का आधार श्रद्धा है, चूंकि हम साकार ब्रह्म को मानते हैं और उस पर आस्था रखकर उसका पूजन कर हम अपना आत्मबल बढ़ाते हैं तथा उस आस्था के बल पर हम विपरीत परिस्थिति में भी स्वयं को दृढ़ रख पाते हैं, पूजा का यही अभिप्राय है । जहाँ तक मंत्रों की बात है, तो मंत्र एकाग्रता लाते हैं अधिकांश मंत्र स्वर से शुरू होते हैं । स्वर सूक्ष्म रूप से ऊर्जा का द्योतक होता है जो आग्नेय ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है । हमारी वर्णमाला में व्यंजन स्थूल रूप से ठण्डी प्रवृत्ति को क्षारीय ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं । इन दोनों के संयोजन से शब्द का निर्माण होता है, जिसके उच्चारण से व्यक्‍ति को एकाग्रता आत्मबल व ऊर्जा प्रदान होती है पर यह स्वयं करने से ज्यादा प्रभावी होता है, लेकिन इसका अभिप्राय यह भी नहीं है, कि इंसान की तकदीर बदली जा सकती है । यह ठीक उसी प्रकार है जैसे कि तपती धूप में इंसान स्वयं को धूप से बचाने के लिये छाता तो लगा सकता है, परन्तु सूरज को नहीं हटा सकता । इसलिये ज्योतिष पर विश्वास रखने के साथ - साथ हमें अपने पुरूषार्थ पर भी भरोसा रखना चाहिये ।


प्र. - क्या जन्मपत्री के ज़रिये यह पता लगाया जा सकता है कि जातक पर तंत्र - मंत्र या जादू टोना किया गया है या नहीं और क्या कुण्डली के ग्रहों के अनुसार उसका तोड़ किया जा सकता है या यह महज़ भ्रम है ?


उ. - किसी की तकदीर पर किसी भी विधि द्वारा बदलाव नहीं किया जा सकता । ये महज़ एक भ्रम ही है । मंत्र, जादू, टोने के द्वारा किसी का नुकसान नहीं किया जा सकता अगर ऐसा संभव होता तो अभी तात्कालिक उदाहरण यह है कि ओसामा को मारने के लि‌ए अमेरिका को ११ वर्ष नहीं लगते ।


प्र. - क्या कुण्डली में कालसर्प जैसा को‌ई योग होता है ?


उ. - राहु और केतु सौर मंडल में दो ऐसे बिन्दु‌ओं के नाम हैं, जो 180 अंश पर आमने-सामने स्थित हैं । इसके अन्तर्गत अक्सर सातों ग्रह इकट्‍ठे हो जाते हैं, जिसमें बहुत सारे लोगों का जन्म होता है और इसी के साथ-साथ काफी अच्छी और प्रगतिशील कुण्डली वालों का भी जन्म होता है । इसी संयोग को कुछ लोग कालसर्प योग कह कर लोगों को भयभीत कर उन्हें भ्रमित करते हैं । कालसर्प योग को‌ई ऐसी चीज नहीं है, जिससे भयभीत हु‌आ जाय, इसका को‌ई भी प्रभाव नहीं होता है । कुण्डली हमेशा कारक और अकारक ग्रहों के संतुलन पर ही निर्भर करती है । जिससे यह तय होता है कि आप कितना सफल और सुखद जीवन व्यतीत करेंगे । कुण्डली में काल सर्प योग का को‌ई दुष्प्रभाव नहीं होता है ।


प्र. - प्रश्न कुण्डली क्या है और यह कितनी सार्थक है ?


उ. - ज्योतिष में हर गणना समय पर निर्भर करती है । प्रश्न कुण्डली ज्योतिष में एक बड़ी ही सार्थक विधि है । जातक के द्वारा किये गये प्रश्न के समय के आधार पर कुण्डली बनाकर उसके ग्रहों का आंकलन किया जाता है जो काफी सार्थक होता है, और उसका कथन काफी हद तक सही होता है ।


प्र. - ग्रह - नक्षत्र हर पल अपना स्थान बदलते हैं फिर कुण्डली के ज़रिये भविष्य जानने की सार्थकता कितने प्रतिशत सही है, और जन्म समय का कितना महत्व है ?


उ. - ग्रह नक्षत्र यदि चलायमान न रहें तो वक्‍त रूक जायेगा और सृष्टि भी अस्तित्वहीन हो जायेगी, इसलि‌ए ग्रह नक्षत्र का चलायमान होना एक प्राकृतिक व्यवस्था है, जो संसार व जीवन का अस्तित्व बनाये रखती है । जहाँ तक ज्योतिष में भविष्य कथन का सवाल है, जन्म के समय में ग्रह नक्षत्रों की स्थिति और आने वाले पूरे जीवन में ग्रह नक्षत्रों की स्थिति का आपस में सम्बन्ध होता है, जिसका जन्म के समय ही सारा आंकलन पता चल जाता है । जिस तरह से कैलेण्डर में आज से सौ साल बाद किस महीने की कौन सी तारीख को कौन सा दिन होगा यह सुनिश्चित है उसी प्रकार सौर मंडल के ग्रहों की चाल, गति बड़े ही सुव्यवस्थित ढंग से चलती है, जिसका सम्बन्ध जन्म के समय से ही निश्चित हो जाता है, बल्कि यूं कहें कि जबसे सृष्टि अस्तित्व में आ‌ई तब से हर दिन की रूपरेखा पूर्व निर्धारित व सुनिश्चित है । इसी प्रकार आदमी का जीवन भी सुनिश्चित होता है । इसलिये जन्मकुण्डली के बनाने के लिये जन्म समय, स्थान और दिनांक की आवश्यकता पड़ती है ।


प्र. - क्या वास्तव में ज्योतिष के माध्यम से जीवन से जुड़ी समस्या‌ओं का निवारण सम्भव है ? मसलन नौकरी न मिलना, बीमारी का ठीक न होना, दरिद्रता दूर करना, वगैरह - वगैरह ?


उ. - ज्योतिष शास्त्र जीवन का आ‌ईना दिखाने के साथ - साथ जीवन का मार्गदर्शन भी करता है । व्यक्‍ति का जीवन किस दिशा में निर्धारित है और उसे को किस दिशा में प्रयास करना चाहि‌ए । जैसे कि ज्योतिष में पहले से निर्धारित है कि अमुक समस्या का समय अमुक तारीख से अमुक तारीख तक रहेगा, उसके लि‌ए व्यक्‍ति मानसिक तौर पर तैयार हो जाता है और उस समय धैर्य नहीं खोता है । अगर समस्या का समय पता न हो तो व्यक्‍ति धैर्य खो देता है । अतः समस्या का कारण पता होने से सकारात्मक दिशा में सुधार हेतु प्रयास भी काफी हद तक व्यक्‍ति को समस्या‌ओं से निजात दिलाने में सार्थक होते हैं । जहाँ तक नौकरी की बात है तो बच्चे के जन्म के समय से ही पता लग जाता है कि वह नौकरी करेगा या व्यवसाय तो उस दिशा में उसके स्वभाव के अनुरूप दिशा देना उसके कैरियर में काफी महत्वपूर्ण साबित होता है । ठीक उसी प्रकार से बीमारी की जहां तक बात है तो ज्योतिष द्वारा यह आंकलन होता है कि कौन सी बीमारी कब और शरीर के किस हिस्से में होगी उसके अनुरूप ज्योतिष द्वारा कौन से उपाय करने चाहि‌ए यह तय करना आसान हो जाता है । जैसे की अगर किसी को पाचन की समस्या हो रही है तो कुण्डली में यह पता चल जाता है कि उसे यह समस्या मंदाग्नि या जठराग्नि के कारण है । मंदाग्नि, जठराग्नि पित्तज प्रवृति के ग्रहों की प्रबलता या निर्बलता पर निर्भर करते हैं । ऐसी स्थिति में उन ग्रहों को सन्तुलित करने का उपाय स्वास्थ्य के लि‌ए कारगर साबित हो सकता है ।


प्र. - क‌ई बार लोग जीवन में सफलता आदि पाने के लिये अपने नाम के अक्षरों में फेर बदल करवाते हैं या फिर नाम ही बदल लेते हैं तो यह क्या ज्योतिष विद्या के ज़रिये सचमुच यह सम्भव है या महज़ भ्रम है ?


उ. - जैसा कि मैंने पहले भी बताया कि धनात्मक, ऋणात्मक व तटस्थ ऊर्जा‌ओं के संयोजन से सृष्टि संचालित है ठीक उसी तरह से हमारे यहाँ वर्णमाला के अक्षर स्वर और व्यंजन के संयोग से शब्द का निर्माण होता है स्वर धनात्मक ऊर्जा का प्रतीक है और व्यंजन ऋणात्मक ऊर्जा का प्रतीक है । जिस आदमी के शरीर का आधार पित्तज ग्रहों से या आग्नेय प्रवृति के प्रधान ग्रहों द्वारा उसका लग्न निर्धारित हो उसके लि‌ए स्वर अक्षर से नाम ज्यादा लाभकारी होते हैं । जिसमे लग्न कफज या क्षारीय ग्रहों पर आधारित हों उसके लि‌ए व्यंजन अक्षर से नाम लाभकारी होता है इसके साथ-साथ ज्योतिष का ही एक अंग अंक ज्योतिष के अनुसार उन अक्षरों के अंकों से जोड़कर जातक के मूलांक से मिलान कराया जाता है तब वह नाम लाभकारी होता है और प्रसिद्धि दिलाता है, लेकिन नाम बदल देने से ही सब कुछ नहीं होता है आदमी की प्रसिद्धि और प्रगति उसकी कुण्डली पर भी निर्भर करती है ।


इसमें कहीं को‌ई दो राय नहीं कि मनुष्य का भाग्य और पुरूषार्थ दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। परन्तु यह भी सच है कि भाग्य से मनुष्य जो पाता है उसे कायम रखने के लि‌ए उसे प्रयास करने होते हैं लेकिन जो भाग्य में नहीं है उसे कर्मयोगी व्यक्‍ति पुरूषार्थ से हासिल कर लेते हैं। जीवन के अनेक पहलु‌ओं को प्रभावित करने वाला ज्योतिष शास्त्र हमारी समस्या‌ओं के हल तो अवश्य देता है परन्तु ज्योतिष विद्या भी कर्म पर बल देती है । इसलि‌ए यदि हम स्वयं पर भरोसा रखेंगे तो भ्रम और भ्रान्तियों के मकड़जाल में भी कम फसेंगे ।

Thursday, June 2, 2011

संपादकीय


प्रिय सम्मानित पाठकगण,

आप सबके निरन्तर बढ़ते सहयोग व प्यार के लिए दिल से आभार व्यक्‍त करता हूँ । हमारा आगामी जून -२०११ का चौथा अंक ‘मनरेगा में हो रहे राष्ट्रीय अनियमितता एवं भ्रष्टाचार पर केन्द्रित है ।’ हमने यह दिखाने की पूर्णतया कोशिश की है, कि किस तरह से मनोवांछित ढंग से घर बैठे रोजगार द्वारा धन ग्रहण करने की योजना चल रही है । साथ ही साथ उपयुक्‍त एवं सुयोग्य व्यक्‍तियों तक इसका धन ना पहुंचाने के बजाय उच्चस्तरीय अधिकारियों व दबंगों द्वारा इसके धन का दुरूपयोग किया जाना । इस पर सरकार एवं जनता मूक दर्शक बनकर इस विवशता का हिस्सा बनती जा रही है ।

कुछ जगह पर किसी ने आवाज़ उठायी तो या उसकी हत्या हो गई, या फिर उसकी आवाज़ को बंद कर दिया गया । इन बिंदुओं को आपके समक्ष रखने का छोटा-सा प्रयास है । आशा है कि हमारा यह प्रयास आपके दिलों तक पहुँचेगा और इस कुव्यवस्था के खिलाफ एक मजबूत आवाज़ बनकर इसका विरोध करेंगे । साथ ही नियमित स्तम्भों में अंतर्राष्ट्रीय में ओसामा व अमेरिका पर केन्द्रित किया गया है, तथा यह बताने की कोशिश की गई है, कि अभी भी आतंकी खतरे किस तरीके से इस देश व दुनिया को अपने भय के गिरफ़्त में लिए हुए हैं । साथ ही अमेरिका का जो विश्‍व जगत में स्वछन्द रवैया है, उसका आगामी दुनिया पर क्या असर होने वाला है । इस घटना में पाकिस्तान का वास्तविक चेहरा जिस तरह सामने है, उसमें पाकिस्तान व अमेरिका के रिश्तों पर भी चर्चा की गई है ।

राष्ट्रीय मुद्दे पर जनवृद्धि पर सरकार की असफलता एवं उत्तरांचल के मुख्यमंत्री के साक्षात्कार को शामिल किया गया है । साथ ही साथ उत्तरप्रदेश में भूमि अधिग्रहण मामले में सरकार का नाटकीय रवैया एवं उसमें राजनीति को भी सम्मिलित किया गया है । साहित्य में अच्छी कहानियां, कविताएं एवं ज्योतिष में इस बार और भी रूचिकर विषयों को शामिल किया गया है । जिसमें रंगों का जीवन में महत्व पर विशेष जानकारी दी गई है । आशा है, यह सारी विषय-वस्तु आपको काफी पसन्द आएगी, साथ ही हमें आपकी प्रतिक्रिया का भी इंतजार रहेगा । आपसे अनुरोध है, कि आप निरंतर अपना प्यार बनाए रखें, तथा अपने जानने वाले लोगों को भी इस पत्रिका से जोड़ने का बहुमूल्य सहयोग व सुझाव प्रदान करें ।

धन्यवाद

Saturday, May 28, 2011

शहद आपका खूबसूरत साथी

शहद की चिकित्सीय महिमा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है । अधिक से अधिक अनुसंधानकर्त्ता अब इस प्रयास की तरफ बढ़ रहे हैं कि शहद पर जीवनशैली के रोगों का वास्तविक उपचारक के रूप में विश्‍वास किया जा सकता है । और यह उपचार प्राकृतिक है । शहद में भरपूर ऊर्जा :- सुबह गरम पानी के गिलास में आर्गेनिक शहद व आर्गेनिक साइडर सिरके का मिश्रण मिलाकर लेने से भरपूर ऊर्जा मिलती है । शहद के नियमित सेवन से गठिए का रोग भी दूर हो जाता है ।

कैंसर कोलेस्ट्रॉल व दिल की बीमारियां :- ब्रैड पर शहद व दालचीनी के पाउडर को मिलाकर जैम की जगह प्रयोग करके नियमित रूप से खाने से कोलेस्ट्रॉल कम होता है । और इससे दिल के दौरों को रोका जा सकता है । पेट व हड्डियों के बढ़े हुए कैंसर को शहद के एक बड़े चम्मच व एक छोटे चम्मच दालचीनी का पाउडर मिलाकर 3 महीने तक दिन में तीन बार लेने से कम किया जा सकता है ।

शहद और त्वचा :- शहद में वे गुण होते हैं, जो त्वचा के उपचार व पुनर्योवन में सहायता कर सकते हैं । शहद के प्राकृतिक गुणों के कारण कई सौंदर्य प्रसाधन ब्रांडों ने इसे स्किन क्रीमों, स्किन लोशनों आदि में शामिल किया है । शहद में मौजूद कार्बोहाइड्रेट की प्रचुर स्थिति किसी भी व्यक्‍ति को ऊर्जा का तुरंत स्त्रोत उपलब्ध कराता है ।

शहद के अलावा अन्य अधिकांश मिठास वाले पदार्थों के विपरीत शहद में विटामिनों, खनिजों, एमिनो अम्लों व एंटी आक्सीडेंटों की व्यापक श्रेणियों की कम मात्राएं होती हैं, जो प्रत्येक मानव शरीर के लिए आवश्यक है । आधुनिक विज्ञान अब शहद को एंटीमाइक्रोबॉयल एजेंट के रूप में मान्यता देता है ।

Thursday, May 26, 2011

एडवरटाइजिंग में है अवसर

कोई भी कंपनी चाहे कितना भी अच्छा उत्पाद बना ले उसे प्रचार-प्रसार की जरूरत पड़ती ही है । इस प्रचार-प्रसार की प्रक्रिया में उसकी सही तरीके से मार्केटिंग की जाती है, जिससे वो उत्पाद बाजार में अच्छी तरह से स्थापित हो जाए और उपभोक्‍ताओं तक अपनी पहुँच बना ले । इसी काम को करने के लिए एडवरटाइजिंग या विज्ञापन एजेंसी बनाई जा रही है । आज व्यवसाय में प्रतियोगिता बढ़ रही है । जितनी भी उत्पादक कंपनी हैं, वो अपने उत्पादों को जन-जन तक पहुँचाना चाहती हैं और इसमें विज्ञापन एजेंसी उनकी सहायता कर रही है । विज्ञापन या एडवरटाइजिंग का बाजार बड़ी तेजी से बढ़ रहा है लिहाजा रोजगार के लिए भी यह एक बेहतर विकल्प साबित हो रहा है ।

कोर्स और योग्यता :-

एडवरटाइजिंग एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी पढ़ाई में काफी विविधता है । यह क्षेत्र लोगों की क्रिएटिव प्रकृति पर निर्भर करता है, क्योंकि इसमें विशेषज्ञ और कोर्स करने के अलग-अलग प्रभाग हैं । यह प्रभाग अमूमन कापीराइटर्स, स्क्रिप्टराइटर्स, फोटोग्राफर, डिजायनर्स आदि में बँटे होते हैं । अब इन्हीं क्षेत्रों में डिप्लोमा, सर्टिफिकेट और स्नातक स्तर की पढ़ाई होती है । इस क्षेत्र में अलग-अलग विषय के लोग आते हैं इसलिए इसमें कोर्स और योग्यता के मानक भी अलग-अलग ही होते हैं । मसलन एडवरटाइजिंग एजेंसी में कला प्रभाग होता है जिसके लिए फाइन आर्ट्‌स में स्नातक (B.F.A) डिग्री होना अनिवार्य है । कॉपीराइटर्स के लिए डिप्लोमा इन क्रिएटिव राइटिंग होना चाहिए । इसके अलावा मार्केटिंग के लिए प्रबंधन डिग्री की भी आवश्यकता होती है । इन सबसे अलग मीडिया प्लान २ ग्राफिक्स पब्लिक रिलेशन से जुड़े कोर्स भी इस क्षेत्र के लिए उपयोगी है ।

रोजगार के क्षेत्र :-

भारतीय बाजार, अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बदल चुका है, क्योंकि यहाँ बहुराष्ट्रीय कंपनियां तेजी से निवेश कर रही हैं । इस वजह से एडवरटाइजिंग प्रोफेशनल्स के लिए रोजगार के पर्याप्त अवसर है । इस क्षेत्र में आम लोगों की योग्यता, एजेंसी का कार्य-क्षेत्र और कारोबार पर निर्भर करता है । वैसे यहाँ कोई भी फ्रेशर १० हजार से १५ हजार से शुरूआत कर सकता है और ये वेतन कार्य और अनुभव के आधार पर बढ़ता भी है । कारोबार भी खड़ा किया जा सकता है या फिर स्वतंत्र रूप से काम किया जा सकता है ।

प्रशिक्षण संस्थान :-

1. नेशनल स्कूल ऑफ एडवरटाइजिंग, नई दिल्ली
2. इंडियन इंस्टीट्‌यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन, नई दिल्ली
3. जोवियर इंस्टीट्‌यूट ऑफ कम्युनिकेशन, मुम्बई ।


क्या है एडवरटाइजिंग :-

किसी भी उत्पाद के बारे में उपभोक्‍ता के मन में उसके प्रति अच्छी छवि बनाने की प्रक्रिया ही एडवरटाइजिंग कहलाती है । उत्पादक वर्गों में बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा के कारण यह प्रक्रिया उत्पादक कंपनियों के लिए आवश्यक हो जाती है । एडवरटाइजिंग एजेंसी भी यही काम करती है जिससे उत्पाद के लिए निश्‍चित ग्राहक तैयार हो सकें । आजकल हर कंपनी में एक एडवरटाइजिंग प्रभाग होता है जो उसके उत्पादों को उपभोक्‍ताओं तक पहुँच आसान करती है

इसके अलावा स्वतंत्र रूप से एडवरटाइजिंग एजेंसी बनाई जाती है जो विभिन्‍न कंपनियों के लिए काम करती है ।

Friday, May 20, 2011

बुजुर्ग घर की रौनक है

बुजुर्ग शब्द दिमाग में आते ही उम्र व विचारों से परिपक्व व्यक्‍ति की छवि सामने आती है । बुजुर्ग अनुभवों का वह खजाना है जो हमें जीवन पथ के कठिन मोड़ पर उचित दिशा निर्देश करते हैं । परिवार के बुजुर्ग लोगों में नाना-नानी, दादा-दादी, माँ-बाप, सास-ससुर आदि आते हैं । बुजुर्ग घर का मुखिया होता है इस कारण वह बच्चों, बहुओं, बेटे-बेटी को कोई गलत कार्य या बात करते हुए देखते हैं तो उन्हें सहन नहीं कर पाते हैं और उनके कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं जिसे वे पसंद नहीं करते हैं । वे या तो उनकी बातों को अनदेखा कर देते हैं या उलटकर जवाब देते हैं । जिस बुजुर्ग ने अपनी परिवार रूपी बगिया के पौधों को अपने खून पसीने रूपी खाद से सींच कर पल्लवित किया है, उनके इस व्यवहार से उनके आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचती है ।

एक समय था जब बुजुर्ग को परिवार पर बोझ नहीं बल्कि मार्ग-दर्शक समझा जाता था । आधुनिक जीवन शैली, पीढ़ियों में अन्तर, आर्थिक-पहलू, विचारों में भिन्‍नता आदि के कारण आजकल की युवा पीढ़ी निष्ठुर और कर्तव्यहीन हो गई है । जिसका खामियाजा बुजुर्गों को भुगतना पड़ता है । बुजुर्गों का जीवन अनुभवों से भरा पड़ा है, उन्होंने अपने जीवन में कई धूप-छाँव देखे हैं जितना उनके अनुभवों का लाभ मिल सके लेना चाहिए । गृह-कार्य संचालन में मितव्ययिता रखना, खान-पान संबंधित वस्तुओं का भंडारण, उन्हें अपव्यय से रोकना आदि के संबंध में उनके अनुभवों को जीवन में अपनाना चाहिए जिससे वे खुश होते हैं और अपना सम्मान समझते हैं ।

बुजुर्ग के घर में रहने से नौकरी पेशा माता-पिता अपने बच्चों की देखभाल व सुरक्षा के प्रति निश्‍चिंत रहते हैं । उनके बच्चों में बुजुर्ग के सानिध्य में रहने से अच्छे संस्कार पल्लवित होते हैं । बुजुर्गों को भी उनकी निजी जिंदगी में ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए । उनके रहन-सहन, खान-पान, घूमने-फिरने आदि पर रोक-टोक नहीं होनी चाहिए । तभी वे शांतिपूर्ण व सम्मानपूर्ण जीवन जी सकते हैं । बुजुर्गों में चिड़चिड़ाहट उनकी उम्र का तकाजा है । वे गलत बात बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं, इसलिए परिवार के सदस्यों को उनकी भावनाओं व आवश्यकता को समझकर ठंडे दिमाग से उनकी बात सुननी चाहिए । कोई बात नहीं माननी हो तो, मौका देखकर उन्हें इस बात के लिए मना लेना चाहिए कि यह बात उचित नहीं है । सदस्यों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई ऐसी बात न करें जो उन्हें बुरी लगे ।

बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार करने से घर में अशांति बनी रहती है । इस जीवन संध्या में उन्हें आदर व अपनेपन की जरूरत है । इनकी छत्रछाया से हमारी सभ्यता व संस्कृति जीवित रह सकती है । बच्चों को अच्छे संस्कार व स्नेह मिलता है । बालगंगाधर तिलक ने एक बार कहा था कि ‘तुम्हें कब क्या करना है यह बताना बुद्धि का काम है, पर कैसे करना है यह अनुभव ही बता सकता है ।’ अंत में-

‘फल न देगा न सही,
छाँव तो देगा तुमको
पेड़ बूढ़ा ही सही
आंगन में लगा रहने दो ।’

Saturday, May 14, 2011

उदारवादी नेताओं पर सेना का दबदबा

पाकिस्तान में अल कायदा, तालिबान और अन्य आतंकवादी संगठनों को सहायता पहुंचाने वाले दो उच्च सैनिक अधिकारियों के सेवाकाल में विस्तार से यह एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान अपना इतिहास बदलना नहीं चाहता। दूसरे शब्दों में वह अपनी पुरानी विदेश नीति को ही बरकरार रखना चाहता है। सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज़ कियानी और बदनाम आ‌ई‌एस‌आ‌ई महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शूजा पाशा दोनों ही जाने पहचाने चेहरे हैं और उनके सेवाकाल का विस्तार इस बात का सबूत है कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार तो है मगर उस पर दबदबा सेना और उसकी खूफिया एजेंसी आ‌ई‌एस‌आ‌ई का ही है। यह ठीक है कि आसिफ अली ज़रदारी के नेतृत्व वाली पीपीपी सरकार में उदारवादी लोग हैं लेकिन सेना और आ‌ई‌एस‌आ‌ई के सामने वह बेबस हैं।

डॉन में खावर घूमन लिखते हैं कि प्रधानमंत्री युसूफ रज़ा गिलानी ने यह घोषणा कर कि आ‌ई‌एस‌आ‌ई महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शूजा पाशा के सेवाकाल में एक साल की और बढ़ोत्तरी कर दी ग‌ई है, अपनी सरकार की सच्चा‌ई बयान कर दी है। उल्लेखनीय है कि पाशा को दूसरी बार विस्तार मिला है। गत 18 मार्च को उनके पहले विस्तार की अवधि पूरी हो चुकी थी।

डॉन न्यूज और पाकिस्तान टेलीविजन के साथ बातचीत करते हु‌ए प्रश्नों के उत्तर में गिलानी ने कहा कि देश की सुरक्षा के मद्देनजर सरकार ने पाशा का कार्यकाल और एक साल के लि‌ए बढ़ाने का फैसला किया है। पाशा को नया विस्तार देने के बाद यह पहला सरकारी वक्‍तव्य था जो गिलानी ने स्वयं दिया। कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि सेना की ओर से दो वर्ष के विस्तार की मांग की ग‌ई थी ताकि 2013 तक सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज़ कियानी के साथ पाशा भी आ‌ई‌एस‌आ‌ई महानिदेशक बने रहे। उल्लेखनीय है कि कियानी को तीन वर्ष का विस्तार पिछले वर्ष ही मिल चुका है। डॉन में जाहिद हुसैन लिखते हैं कि सैनिक सूत्रों के अनुसार पाशा और कियानी में बेहतर तालमेल और उनके विचारों में समानता के कारण पाशा का सेवाकाल बढ़ाया गया है। लेकिन विस्तार का कारण अमरीका के साथ सहयोग बढ़ाना भी हो सकता है क्योंकि कुछ विशेषज्ञों के अनुसार अफ़गानिस्तान में युद्ध गम्भीर स्थिति धारण कर चुका है और अमरीका के पास इसके अलावा को‌ई रास्ता नहीं है कि वह आ‌ई‌एस‌आ‌ई को साथ लेकर चले। यह भी खबर है कि अमरीका को जनरल पाशा के विस्तार के बारे में पहले ही बता दिया गया था। वास्तव में सी‌आ‌ई‌ए कंटेक्टर रेमंड डेविस की गिरफ्तारी पर आ‌ई‌एस‌आ‌ई और सी‌आ‌ई‌ए में जो मतभेद पैदा हु‌आ था उसे समाप्त करने के लि‌ए जनरल पाशा को पद पर बरकरार रखना जरूरी था। फ्रा‌इडे टा‌इम्स में नजम सेठी लिखते हैं कि सेना प्रमुख और आ‌ई‌एस‌आ‌ई महानिदेशक लेफ्टिनेंंट जनरल अहमद शूजा पाशा के लि‌ए आसिफ अली ज़रदारी का राष्ट्रपति होना संतोषजनक है क्योंकि जरदारी की सरकार में पहले कियानी को तीन वर्ष का विस्तार मिला जब कि पाशा एक एक वर्ष करके दो बार विस्तार प्राप्त करने में सफल रहे। लेख में कहा गया है कि अगर हम पीपीपी का इतिहास देखें तो यह संगठन सेना विरोधी नज़र आता है लेकिन अभी जो स्थिति है उसके मद्देनजर उसे सेवा समर्थक कहने में को‌ई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहि‌ए।

लेख के अनुसार विपक्षी दल पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ के नेता चौधरी निसार खान ने आ‌ई‌एस‌आ‌ई महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल पाशा के सेवाकाल में विस्तार पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्‍त करते हु‌ए इसे लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ करार दिया है और कहा है कि आ‌ई‌एस‌आ‌ई को अपनी संविधानिक सीमा से बाहर नहीं जाना चाहि‌ए। लेख में कहा गया है कि यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि पी‌एम‌एल‌एन सेना समर्थक संगठन था जबकि अब वह सेना विरोधी नजर आ रहा है। सच तो यह है कि पीपीपी और पी‌एम‌एल‌एन दोनों ही न तो सेना समर्थक हैं और न ही सेना विरोधी बल्कि अपनी सुरक्षा के लि‌ए उन्हें कभी सेना समर्थक और कभी सेना विरोधी बनना पड़ता है। - अडनी।

आ‌ई‌एस‌आ‌ई-सी‌आ‌ई‌ए मतभेद बढ़े

यह सब जानते हैं कि उपमहाद्वीप ही नहीं बल्कि दुनिया भर में आज जिस आतंकवाद का बोलबाला है उसका जिम्मेदार पाकिस्तान है। अफ़ग़ानिस्तान में कम्यूनिस्ट सरकार और सोवियत सेना से लड़ने के लि‌ए जिन मुजाहिद्दीन को मैदान में उतारा गया था उन्हीं की न‌ई पीढ़ी आतंकवादी बन चुकी है। मजे की बात तो यह है कि उन मुजाहिद्दीन को अमरीका का भी भरपूर सहयोग प्राप्त था और यह उस सहयोग का ही परिणाम है कि आतंकवादी बन चुके मुजाहिद्दीन को अमरीका से लड़ने में भी कठिना‌इयों को सामना नहीं करना पड़ रहा है। अमरीका ने ११ सितम्बर की घटना के बाद मुजाहिद्दीन के विरुद्ध कार्रवा‌ई पाकिस्तान को साथ लेकर शुरू की मगर पाकिस्तान का हमेशा ही दोहरा रवैया रहा ऊपर से वह अमरीका का साथ देता रहा और अंदर से मुजाहिद्दीन को मदद भी पहुंचाता रहा। आज भी वही स्थिति है यानि पाकिस्तान मुजाहिद्दीन की सुरक्षा कर रहा है। अब अनुमान लगाया जा सकता है कि इस वर्ष जब अमरीकी नेतृत्व वाली गठबंधन सेना वापस होगी तब क्या होगा? क्या अमरीका उस दबाव को समाप्त करने में सफल हो पा‌एगा जो पाकिस्तान सरकार पर आ‌ई‌एस‌आ‌ई का है?

न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार आ‌ई‌एस‌आ‌ई महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल शूजा अहमद पाशा का हाल ही में हु‌आ वाशिंगटन दौरा आ‌ई‌एस‌आ‌ई और सी‌आ‌ई‌ए के बीच उन मतभेदों को समाप्त करने के लि‌ए हु‌आ था जो रेमंड डेविस मामले को लेकर दोनों देशों की गुप्तचर एजेंसियों के बीच उत्पन्न हु‌ए हैं। सूत्रों के अनुसार जनरल पाशा ने बातचीत के दौरान पाकिस्तान के कबा‌इली क्षेत्रों में हाल ही में हु‌ए ड्रोन हमलों का मामला भी उठाया जिनमें 40 व्यक्‍तियों की मृत्यु हु‌ई है। नेशन ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि अगर अमरीका पाकिस्तान में खूफिया नेटवर्क चलाता है तो यह किसी देश के आंतरिक मामले में खुला हस्तक्षेप है। सम्पादकीय में कहा गया है कि जब तक निर्दोष लोगों की हत्या जारी रहेगी तब तक यह नहीं समझा जा‌एगा कि अमरीकी कार्रवा‌ई देश के पक्ष में है। उल्लेखनीय है कि रेमंड डेविस घटना के बाद पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान संयुक्‍त गुप्तचर कार्रवा‌ई रूकी हु‌ई है। इस बीच सी‌आ‌ई‌ए की कार्रवा‌ई में 40 से अधिक कबा‌इलियों की मृत्यु हु‌ई है जिससे पाकिस्तानी गुप्तचर अधिकारियों के साथ आम लोगों में भी नाराजगी है। मीडिया में भी इन हमलों की आलोचना हु‌ई है। डेली टा‌इम्स ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि सी‌आ‌ई‌ए एजेंट रेमंड डेविस द्वारा लाहौर में दो व्यक्‍तियों की हत्या के बाद अमरीका और पाकिस्तान की संयुक्‍त गुप्तचर कार्रवा‌ई बंद है जबकि सी‌आ‌ई‌ए की कार्रवा‌ई में 40 व्यक्‍तियों की मृत्यु हु‌ई है। इस कार्रवा‌ई में पाकिस्तानी सेना शामिल नहीं थी।

यह अमरीका की एकतरफा कार्रवा‌ई थी। लगभग दस वर्षों से जारी आतंकवाद के विरुद्ध लड़ा‌ई के दौरान यह पहला अवसर था जब पाकिस्तान अमरीका से अलग नजर आया अर्थात्‌ उसने आतंकवाद के विरुद्ध कार्रवा‌ई में न केवल यह कि साथ नहीं दिया बल्कि यह स्पष्ट संकेत भी दे दिया कि वह इस कार्रवा‌ई से नाराज है।

उल्लेखनीय है कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ा‌ई मुशर्रफ़ की सरकार में शुरू हु‌ई थी। 11 सितम्बर 2001 को अमरीका पर हमले के बाद अलक़ायदा नेता ओसामा बिन लादेन की तलाश में अमरीका ने पाकिस्तान को साथ लेकर अफ़़ग़ानिस्तान पर हमला बोलकर तालिबान सरकार को इसलि‌ए समाप्त कर दिया कि उसने ओसामा बिन लादेन को मेहमान बना रखा था। इस हमले के बारे में मुशर्रफ़ यह कह रहे हैं कि अमरीका ने धमकी देकर उनसे सहायता ली थी। मुशर्रफ़ के अनुसार तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने मदद न करने की स्थिति में पाकिस्तान की ईंट से ईंट बजा देने की बात कही थी।

Thursday, May 12, 2011

देश में बढ़ता आरक्षण का संक्रामक रोग

देश में दिन पर दिन आरक्षण का मुद्‌दा ज्वलंत होता जा रहा है । आज यह संक्रामक रोग का स्वरूप धारण कर चुका है । स्वतंत्रता उपरान्त सामाजिक, आर्थिक रूप से पिछड़ी कुछ जातियों के रहन-सहन के स्तर में सुधार हेतु संविधान में पिछड़ी जाति (एस. सी) पिछड़ी जनजाति ( एस. टी) के नाम से आरक्षण की सुविधा प्रदान की गई । धीरे-धीरे यह व्यवस्था राजनीतिक परिवेश के कारण मुद्‌दा विकृति का स्वरूप धारण करती चली गई, जहां इसका मूल उद्देश्य प्रायः गौण ही हो गया । सामाजिक एवं आर्थिक रूप से इन जातियों में सुधार के बावजूद भी इनका आरक्षण ज्यों का त्यों ही नहीं रहा बल्कि मंडल आयोग के तहत पिछड़े वर्ग के नाम से देश की कुछ और जातियां आरक्षण प्रक्रिया के तहत शामिल कर ली गई । जिनका उद्देश्य मात्र राजनीतिक लाभ लेना था । इस उद्देश्य में सक्रिय राजनीतिक दलों को पूर्णतः लाभ भी मिला । जहांं केन्द्र की सत्ता तक बदल गई । यह प्रक्रिया यही बंद नहीं हुई, समय अंतराल में लोकसभा चुनाव के समय राजनीतिक लाभ के तहत राजस्थान में एक और विशेष जाति जाट वर्ग को पिछड़े वर्ग में आरक्षण के तहत शामिल किये जाने की औपचारिक घोषणा भी की गई ।

जिसका राजनीतिक लाभ संबंधित दल को मिला तथा केन्द्र में सत्ता परिवर्तन के साथ घोषणा के अनुरूप इस जाति को पिछड़े वर्ग में शामिल कर लिया गया । इसके प्रभाव तत्काल नजर आने लगे जहां पिछड़े वर्ग में पूर्व से शामिल जातियां इस नये समीकरण में पिछड़ती चली गई । इस वर्ग में असंतोष तो उभरा ही जिसका प्रभाव आज तक समय पर उभरते गुर्जर आंदोलन के बीच देखा जा सकता है । यह असंतोष अभी मिटा नहीं कि आरक्षण को लेकर राजस्थान के पड़ोसी राज्य हरियाणा में जाट सड़क पर उतर आये । यह आंदोलन उ.प्र. तक फैल चुका है और बढ़ता ही जा रहा है जिसके कुत्सित परिणाम आस-पास देखने को मिल रहे हैं । आज रेल सेवाएं जिस तरह बाधित हो रही हैं, सभी भलीभाँति परिचित है । होली का पवित्र त्यौहार आज इस आंदोलन के चलते कहीं-कहीं बेरंग होता दिखाई दे रहा है । इस तरह के आंदोलन आज जो संक्रामक रोग का स्वरूप धारण कर चुका है, कहां अंत होगा जिसे स्वहित में राजनीति सहयोग मिल रहा हो, कह पाना मुश्किल है । आज यह समस्या निदान के बजाय समस्या पैदा करने वाला संसाधन हो चुका हैं । जहां स्वार्थ की बलिवेदी पर अनगिनत निर्दोषों की बलि हर आंदोलन में दी जा रही है, फिर भी यह काम जारी है । इस दिशा में मंडल आयोग लागू होने एवं राजस्थान में पिछड़े वर्ग में जाट समुदाय को शामिल किये जाने के उपरान्त उभरे असंतोष भरे जन आंदोलन के प्रतिकूल प्रभाव आसानी से देखे जा सकते हैं, जिसमें आमजन एवं सम्पत्ति दोनों को काफी नुकसान हुआ ।

आरक्षण का स्वरूप स्वतंत्रता उपरान्त कुछ काल के लिये देश में पिछड़ेपन एवं गरीबी को दूर करने के उद्देश्य से वास्तविकता में गरीब एवं पिछड़ी जातियों से शुरू किया गया । जिसे उद्देश्य पूरा होने की स्थिति में समाप्त कर देना चाहिए । पर ऐसा राजनीतिक कारणों से आज तक नहीं हो पाया । देश की सम्पन्‍न कई जातियां राजनीतिक प्रभाव एवं दबाव से इस क्रम में जुड़ती ही चली गईं, जो बची हैं वह भी इस दिशा में प्रयत्‍नशील हैं । आरक्षण आज गरीबी एवं पिछड़ेपन का सवाल है, आज प्रायः सभी जातियां इससे प्रभावित हैं । इस तरह के हालात में आरक्षण की सुविधा सभी जातियों को जनसंख्या के आधार पर प्रदान कर देनी चाहिए ताकि जड़ से इस संक्रामक रोग को मिटाया जा सके ।

उन्माद की हद तक क्रिकेट प्रेम


पूरा देश क्रिकेट का दीवाना है । ऐसा लगता है कि क्रिकेट ही सब कुछ है । देश यहीं से शुरू होता है, और यहीं खत्म हो जाता है । क्रिकेट की हार देश की सबसे बड़ी समस्या है । क्रिकेट की जीत सभी समस्याओं का समाधान है । न इसके आगे भारत है और न इसके पीछे भारत है । राजनीति और कूटनीति तक इसकी मोहताज है । देश की सब समस्याएं और सब समाधान क्रिकेट है । जो क्रिकेट प्रेमी नहीं वह देशभक्‍त भी नहीं । जो चौके और छक्‍के पर तालियां नहीं बजाता उसकी राष्ट्रभक्‍ति ही संदेह के घेरे में आ जाती है । जब सब कुछ क्रिकेट है तब इसमें अपार पैसा होना कोई आश्‍चर्य की बात नहीं होनी चाहिए ।
देश की बहुत बड़ी आबादी को लगता है कि मुल्क में समस्याओं का अंबार है, लेकिन उनका ऐसा सोचना-मानना उस समय निरर्थक हो जाता है जब क्रिकेट के दौरान देश में कर्फ्यू जैसे हालात हो जाते हैं । सड़कें सूनी हो जाती हैं । बसों को सवारियां नहीं मिलती हैं । लोग टीवी पर चिपककर बैठ जाते हैं । क्रिकेट के लिए बेवजह छुट्‍टी ले लेते हैं । जिसको क्रिकेट का टिकट मिल गया उसकी किस्मत खुल गई । किस्मत क्या खुली वह भव सागर से तर गया । उसके इहलोक और परलोक दोनों सुधर गए । जिन्हें नहीं मिली वे बदनसीब माने गए ।
भारत-पाक मैच के दौरान एक मुख्यमंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि मुझसे राज्य सभा की टिकट ले लो, विधानसभा की टिकट लेलो, लोकसभा की मांगो तो वह भी दिलवा दूं लेकिन क्रिकेट की टिकट के लिए मांफी मांगता हूं । बताइए, अब क्या रह जाता है?
लोग यह समझते हैं कि देश में गरीबी है, बेरोजगारी है, भ्रष्टाचार है, भुखमरी है, लाचारी है, गरीबी है, बीमारी है, अशिक्षा है, चोरी है, डकैती है, लूटमार है, बलात्कार है, बेबसी है, मजबूरी में देह बेचती बच्चियां हैं, युवती हैं, महिलाएं हैं, सड़कों की कमी है, इलाज के लिए पैसा नहीं है, भीख मांगते बच्चे हैं, करोड़ों की तादाद में अदालतों में केस है और इन सबसे बड़ी समस्या साम्प्रदायिकता है । लेकिन यह सब समस्याएं क्रिकेट के सामने गौण है ।
जिस दिन भारत-पाकिस्तान के बीच मोहाली में मैच था उस दिन देश के लोगों की क्या हालत थी वर्णन करना मुश्किल है । युद्ध से भी आगे के हालत थे । ऐसी स्थिति तो तब भी नहीं थी जब १९६४ में चीन से, १९७१ में पाकिस्तान से और फिर १९९५ में कारगिल युद्ध हुआ था । उत्तेजना, कौतूहल, जुनून और उन्माद सब कुछ था ।
क्या यह सब बनाया गया माहौल था? लोगों में उत्तेजना, उन्माद और जुनून पैदा किया गया था । इसे आप बाजार का खेल भी कह सकते हैं । इसे आप दिखावटी देश भक्‍ति भी कह सकते हैं । इसे आप देखादेखी देश प्रेम दिखाने की होड़ भी कह सकते हैं । इसे आप पाकिस्तान से बदला लेना भी कह सकते हैं । जो आपका दिल कहे उसे मान सकते हैं । देश की जीत पर खुश होना हर देशवासी का अधिकार है और खुश होना भी स्वभाविक है । लेकिन खुशी के नाम पर करोड़ों रूपए के पटाखे फूंक देना क्या मार्केट बनाया हुआ खेल था । तब ज्यादा अच्छा लगता जब इस रूपयों से देश के लोगों की बेबसी कुछ कम करने की कोशिश की जाती । खुशी के पटाखों से उन गरीबों का क्या लेना देना जो उस रात भूखे सोए ।
क्रिकेट में बहुत पैसा है । लेकिन किस के लिए? जीते खिलाड़ियों को करोड़ों रूपए दिए जाते हैं । अच्छी बात है । कहा जाता है कि खिलाड़ी देश के लिए खेलते हैं । देश के लिए कैसे? जो रूपया करोड़ों में मिलता है वह उनके पास रहता है । क्या वह देश के लिए दे देते हैं? नहीं तो फिर खेलना अपने लिए हुआ न । सरकारी नौकरी, करोड़ों रूपया यह सब खिलाड़ियों के लिए । हम खिलाड़ियों को पैसा देने के विरोध में नहीं लेकिन अन्य प्रतिभाएं उपेक्षित न रहें यह कौन देखेगा? देश में और तरह की प्रतिभाएं हैं जिन्हें सम्मान के साथ रोटी भी नहीं मिल पाती है । सरकार और देश की जनता को इसी में क्या दिखाई देता है जो अन्य प्रतिभाओं में दिखाई नहीं पड़ता ।
संगीतकार नौशाद ने दुनिया की सबसे मीठी धुनें बनाईं । ऐसी धुनें जो सदियों तक याद रखी जाएं । क्या उन्होंने ये धुनें और इतना मीठा संगीत देश के लिए नहीं दिया था? लेकिन उनके आखिरी दिन इतने खराब गुजरे कि इलाज तक को पैसे नहीं थे । अभिनेता राजेन्द्रकुमार ने उन्हें आर्थिक सहायता तब इलाज हुआ । नौशाद साहब को किस सरकार ने मदद की? प्रख्यात शहनाई वादक बिस्मिल्ला खान किस हालत में मरे, यह बताने की जरूरत है? क्या उन्होंने शहनाई देश के लिए नहीं बजाई थी ।
जिस देश में घनघोर गरीबी हो वहां एक आदमी को करोड़ों मुफ्त दे दिए जाएं और दूसरी ओर उसी देश में ऐसे लोग हैं जिन्हें भरपेट रोटी नहीं मिलती है ।

Monday, May 9, 2011

आँख का पानी


होने लगा है कम अब आँख का पानी,
छलकता नहीं है अब आँख का पानी।
कम हो गया लिहाज,बुजुर्गों का जब से,
मरने लगा है अब आँख का पानी।
सिमटने लगे हैं जब से नदी,ताल,सरोवर
सूख गया है तब से आँख का पानी।
पर पीड़ा में बहता था दरिया तूफानी
आता नहीं नजर कतरा ,आँख का पानी।
स्वार्थों की चर्बी जब आँखों पर छा‌ई
भूल गया बहना,आँख का पानी।
उड़ ग‌ई नींद माँ-बाप की आजकल
उतरा है जब से बच्चों की आँख का पानी।
फैशन के दौर की सबसे बुरी खबर
मर गया है औरत की आँख का पानी।
देख कर नंगे जिस्म और लरजते होंठ
पलकों में सिमट गया आँख का पानी।
लूटा है जिन्होंने मुल्क का अमन ओ चैन
उतरा हु‌आ है जिस्म से आँख का पानी।
नेता जो बनते आजकल,भ्रष्ट,बे ईमान हैं
बनने से पहले उतारते आँख का पानी।

Saturday, May 7, 2011

कम बोलो, मीठा बोलो, अच्छे के लि‌ए बोलो


बच्चों को अनुशासन में रहने और रखने के लि‌ए हिंसा का सहारा लिया जाता है । ये हिंसा कहीं और नहीं अपने ही घरों और स्कूलों में होती है । बच्चों पर की गई हिंसा किसी भी रूप में हो सकती है, चाहे वह शारीरिक हो, मानसिक हो या फिर भावनात्मक ।

धर्म के दस लक्षणों में एक ‘सत्यता’ (सच्चा‌ई) भी है । सामान्य तौर पर यह लक्षण वाणी से जुड़ा है, अर्थात जो जैसा देखा, सुना या समझा गया है । यह हु‌ई सत्य की सरल परिभाषा । परंतु ‘सत्यता’ का अर्थ केवल यह नहीं है । सत्यता का अर्थ है धर्म की आत्मा को प्रज्वलित करना । उदाहरण के तौर पर, यदि को‌ई व्यक्‍ति किसी असाध्य रोग से पीडि़त है तो उसे ऐसा डाक्टरी तथ्य बताना ’सत्य’ का पालन नहीं है, जिसकी हतक से वह कल के बजाय आज ही मर जा‌ए । ऐसी सचा‌ई तो झूठ बोलने से भी बुरी है ।

इसी प्रकार यदि दो व्यक्‍तियों या दो पक्षों के संबंधों में बिगाड़ है और दोनों ही अडियल हैं, तो दोनों की कही हु‌ई बातें सच-सच एक-दूसरे को बताकर उनके बीच कड़वाहट बढ़ाने से कहीं अच्छा है दोनों के बीच ईमानदारी से समझौता कराने का प्रयास करना । एक समय था जब अपनी कमियों या खामियों को स्वीकार कर लेने वालों को लोग आदर की दृष्टि से देखते थे । लेकिन अब सब कुछ बदल सा गया है । अपनी कमजोरियां बताने का मतलब है अपनी खिल्ली उड़वाना । लोग अक्सर दूसरों के नकारात्मक व उदासीन पक्ष को प्रसारित कर उनके नाम और पद को बदनाम करते हैं और खुश होते हैं ।

ऐसे क‌ई उदाहरण हैं । एक नवविवाहिता को विश्‍वास में लेकर कहा गया कि वह अपने बीते हु‌ए कल की सारी घटना‌एं अपने पति को निर्भय होकर बता दे । उसे प्रेम और क्षमादान दिया जा‌एगा । परंतु ऐसा न कर एक बदले की भावना पाल ली ग‌ई और उसका जीवन नारकीय बना दिया गया । उचित तो यही था कि अपने पिछले जीवन की बातों के बारे में वह पूरी तरह मौन रहती, क्योंकि पता चलने पर सिवाय समस्या‌ओं और दुखों के कुछ नहीं मिला ।

कुछ दिन पहले नवभारत टा‌इम्स में एक समाचार छपा था कि किस तरह एक महिला को ‘सच का सामना’ करना भारी पड़ा । एक टीवी चैनल पर सच का सामना देखते हु‌ए एक पति ने अपनी पत्‍नी से विवाह से पूर्व के सच का खुलासा करने को कहा । पत्‍नी ने बताया कि शादी से पहले उसका एक प्रेम संबंध था । पति-पत्‍नी के सच को सहन नहीं कर सका और आत्महत्या कर ली । समाजशास्त्री मानते हैं, कि जीवन में कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें रहस्य रखना ही बेहतर होता है । क‌ई बार इनके खुलने से लोगों के जीवन में भूचाल आ जाता है ।

निस्संदेह सचा‌ई एक श्रेष्ठ गुण है । कथनी और करनी के बीच तालमेल होना श्रेयस्कर है । परंतु स्मरण रहे कि बीते हु‌ए कल की बातों के बारे में मौन रहना अधिक श्रेष्ठतर है, क्योंकि उनका खुलासा करने से हानि की संभावना कहीं अधिक है । ऐसी परिस्थितियों में मौन ही सत्यता है । हालांकि झूठ किसी भी स्थिति में सच से बेहतर नहीं हो सकता ।

Friday, May 6, 2011

सूर्य मेष संक्रान्ति के आधार पर वर्ष फल

जैसा आप सभी जानते हैं, कि हिन्दी पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नए संवत अर्थात्‌ नये वर्ष की शुरूआत होती है । साथ ही जब पृथ्वी सूर्य का एक चक्‍कर पूर्ण करती है, तब सूर्य पुनः मेष संक्रान्ति में शून्य अंश का होता है । उस समय जो लग्न उदित होता है, वह पूरे वर्ष की वर्ष कुण्डली होती है । इसके आधार पर उस वर्ष सारे संसार में अप्राकृतिक व प्राकृतिक घटनाओं के पूर्वानुमान ज्योतिष विज्ञान द्वारा किया जाता है । १४ अप्रैल २०११ को दोपहर १ बजकर २५ सेकेण्ड में सूर्य मेष संक्रान्ति में प्रवेश कर रहा है, उस समय कर्क राशि का लग्न उदित हो रहा है । जिसके अंतर्गत नवम्‌ भाव में गुरू, बुध व मंगल की युति है, वृहस्पति आग्नेय प्रवृत्ति के होते हैं ।

यह पूर्व दिशा एवं दक्षिण दिशा तथा एशियाई देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं । वहीं दूसरी तरफ शनि, शुक्र, बुध क्षारीय प्रवृत्ति के होने के कारण बेसिकली पश्‍चिमोत्तर क्षेत्र, विशेषकर यूरोपीय देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं । देखा जाए तो इस वर्ष चक्र में तृतीयस्थ शनि व अष्टमस्थ शुक्र की प्रबलता यूरोपीय देशों के लिए बड़ा ही अच्छा संकेतक नहीं है ।

इस चक्र के नवमांश में भी गौर करें तो वृश्‍चिक लग्न के नवमांश के आठवें घर में शुक्र, शनि की युति यूरोपीय देशों में कुछ प्राकृतिक आपदाओं का सूचक बन रहा है, साथ ही साथ लग्नस्थ मंगल का बुध के नक्षत्र में पाया जाना और तृतीय भाव में मंगल का होना मुस्लिम देशों में हिंसक घटनाओं का सूचक है । लेकिन एशियाई देशों में धार्मिक एवं शांतिप्रिय देशों में प्रगति देखने को मिलेगी । जिसमें विशेषकर भारत, चीन आदि देखा जाय तो शुरू के दिनों मुख्यतः 3 मई से 15 मई, 13 जून से 2 जुलाई, 26 दिसम्बर से 25 जनवरी 2012, 22 फरवरी 2012 से 12 मार्च 2012, आदि इस वर्ष के खराब समय होंगे, जिसमें अप्राकृतिक घटनाओं की आशंका है, लेकिन इस वर्ष में 5 जुलाई 2011 से 23 जुलाई, 23 अगस्त 2011 से 13 सितंबर सामान्यतः ठीक कहा जायेगा ।

व्यावसायिक दृष्टिकोण से यूरोपीय देशों की आर्थिक स्थिति बिगड़ती दिखाई दे रही है, जिसमें अमेरिका का आर्थिक नुकसान कहीं ज्यादा होने की संभावना है, लेकिन एशियाई देशों में विशेषकर भारत व चाइना की आर्थिक प्रगति काफी तेजी से होती दिखाई दे रही है । आर्थिक व विश्‍वस्तर पर सरल व उदार नीति के साथ भारत मजबूत भूमिका में साबित होगा । उपरोक्‍त खराब समय में पूरब दक्षिण कुछ समुद्रतटीय देशों को तथा पश्‍चिमोत्तर बर्फीली क्षेत्रों के कुछ देशों को प्राकृतिक घटनाओं से संभलना चाहिए । इसी प्रकार ३ अप्रैल २०११ को रात्रि ८ बजकर ४ मिनट में चैत्र शुक्ल पक्ष प्रारम्भ हो रहा है । इस स्थिति में हिंदी पंचांग के अनुसार नया वर्ष प्रारम्भ हो रहा है, इसके अनुसार यह तुला लग्न था, और इसे नये वर्ष प्रवेश के चक्र के अनुसार छठें भाव में शुक्र, मंगल, वृहस्पति तथा चन्द्रमा की युति कुछ अप्रत्याशित परिवर्तन के सूचक हैं ।

कट्‍टरपंथी देशों में जहां उन्माद, सत्ता परिवर्तन कराये गये वहीं विश्‍व में कुछ नये देश भी उभरकर अपनी कीर्ति स्थापित करेंगे । वह देश मुख्यतः एशिया से होगा और मुख्य रूप से शांति व सौहार्द्र पूर्ण एवं धर्म निरपेक्ष देश होगा । भारत में काफी परिवर्तन की आशंका है, तथा भारत की आर्थिक समृद्धि भी बढ़ेगी विशेषकर व्यावसायिक दृष्टिकोण से आईटी, शिक्षा, शेयर-बाजार के क्षेत्रों में काफी ज्यादा आर्थिक प्रगति बढ़ेगी और इस क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावना है । इस प्रकार यह नया वर्ष भारत एवं एशियाई क्षेत्र के देशों के लिए ठीक तो है, लेकिन इस वर्ष में धार्मिक कट्‍टरपंथी वालों देशों को अपने अंदर बदलाव लाना चाहिये अन्यथा उन्हें अत्यधिक हानि उठानी पड़ सकती हैं, साथ ही साथ विश्‍व में भी अशांति के कारण बन सकते हैं ।

पश्‍चिमी देश भी अपनी शक्‍ति का नाज़ायज फायदा ना उठायें, इससे उन्हें आर्थिक नुकसान के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में उनकी छवि भी खराब होगी । अतः उन्हें अप्राकृतिक आपदाओं से भी संभलकर रहना होगा । इस वर्ष में प्रॉपटी, ऊर्जा संयंत्रों में पेट्रोल एवं कमोडिटी मार्किट में खासकर सोना आदि के भाव आसमान चढ़ेंगे । भ्रष्टाचार भी बढ़ेगा, लेकिन बड़े-बड़े भ्रष्टाचार भी उजागर होंगे । कुछ नये आइडियल एवं अनुशासित राजनेताओं की छवि उभरेगी ।

अपराध की बांहों में राजधानी

जिस दिन पूरा देश महिला दिवस मना रहा था उस दिन देश की राजधानी में दिल्ली में दो हत्यायें हुई । एक दिल्ली विश्‍वविद्यालय की छात्रा राधिका तंवर की और दूसरी नोएडा के चर्चित आरूषि हत्याकांड के राजेश तलवार की वकील रेबेका जॉन की मां एम मेमन की । बात सिर्फ दो हत्या की नहीं है, बल्कि दिल्ली में बढ़ रहे अपराधिक मामले की है । आज आलम ये है कि दिल्ली में ऐसा कोई दिन नहीं गुजरता जब कोई हत्या, बलात्कार, छेड़छाड़ या हिंसा की खबरें मीडिया में नहीं आती और इस पूरे मामले में महिलाओं पर इसका असर सबसे ज्यादा पड़ रहा है ।

दिल्ली में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार यहां लगभग 67 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी रूप में दुर्व्यवहार का शिकार होती है, जबकि 2010 में हर तीन में से दो महिलाएं यौन हिंसा की शिकार हुई हैं, जबकि हर 17 घंटे में एक छेड़खानी होती है । बलात्कार के मामले में अभी तक पुलिस ने 340 पड़ोसी, 94 दोस्त, 62 रिश्तेदार, और 10 अपरिचित लोगों को हिरासत में लिया है । हैरानीजनक बात तो यह है, कि जब ऐसी कोई घटना होती है तभी पुलिस सक्रिय होती है और इसी वजह से दिल्ली में महिलाएं अपने आपको सुरक्षित नहीं मानती और दस में से सात महिलाओं का पुलिस पर से विश्‍वास उठ गया है । राजधानी की 71 प्रतिशत महिलाएं पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाने में अपने आप को असुरक्षित महसूस करती है और इसका सबसे ज्यादा शिकार स्कूल या कॉलेज जाने वाली लड़कियां और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाएं होती हैं ।

ऐसे में प्रश्न ये उठता है कि दिल्ली में अपराधिक विकृतियां क्यों बढ़ रही हैं? जिसे न तो प्रशासन का डर है और ना ही सामाजिक शक्‍तियों का । सबसे बड़ी बात तो यह है कि भ्रष्टाचार और अपराध ने हमारी व्यवस्था में अंदर तक पैठ बना ली है और वे हमारे समाज के अभिन्‍न अंग बन गए हैं और यही हाल है देश की राजधानी का, यहां ऐसी कई बस्तियां हैं जहां मेहनत मजदूरी करने वाले गरीब लोग रहते हैं, और इन्हीं इलाकों में आपराधिक तत्व पोषण प्राप्त कर रहे हैं । तथा यहीं से आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं, चौंकाने वाली बात तो यह है कि पुलिस तथा प्रशासन इन सबसे वाकिफ है लेकिन अब तक कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है ।

अभी हाल ही में दिल्ली सरकार ने एक आंकड़े जारी किए हैं जिसे देखकर यही लगता है कि दिल्ली में अपराधों की दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि हो रही है जबकि दिल्ली पुलिस के आधुनिकीकरण और लाख दावों के बाद भी कि यहां अपराध कम हुए हैं एक खोखला सच ही सामने आया है क्योंकि इस बात की पुष्टि मुख्यमंत्री शीला दीक्षित खुद विधानसभा में कर चुकी हैं कि दिल्ली में अपराध पिछले वर्षों में काफी बढ़े हैं । हालांकि दिल्ली में बढ़ रहे अपराध को लेकर मुख्यमंत्री के बयान भी राजनीति से प्रेरित ही लगते हैं क्योंकि, राधिका तंवर हत्याकांड में जब मीडिया ने उनको कठघरे में खड़ा किया तो उन्होंने अपना पल्ला झाड़ते हुए कह दिया कि दिल्ली पुलिस पर मेरा कोई जोर नहीं क्योंकि यहां की पुलिस केन्द्र सरकार के अधीन काम करती है इसलिए अपराधों के प्रति मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती । अब चाहे जो भी हो, इसके लिए चाहे केन्द्र सरकार दोषी हो या राज्य सरकार सबकी निगाहें दिल्ली में बढ़ रहे क्राइम ग्राफ की ओर है, और सरकार में बैठे लोग हो या पुलिस प्रशासन सबकी जिम्मेदारी बनती है कि अपराध की बाहों में जकड़ी हुई दिल्ली को बाहर निकालें ।

क्राइम जोन है दिल्ली का धौलाकुआं

दक्षिण दिल्ली का धौलाकुआं इलाका दिल्ली में बढ़ते हुए अपराधों का जोन बन गया है । एक अध्ययन के अनुसार इस क्षेत्र में पिछले एक महीने में एक बलात्कार, ग्यारह डकैती, एक हत्या, और एक छेड़खानी हुई है, जबकि पिछले वर्ष पांच महीनों का ब्यौरा देखा जाए तो अभी तक तीन बलात्कार और तीन छेड़खानी के मामले दर्ज हुए हैं ।

पिछले दो महीनों में पुलिस द्वारा दर्ज अपराधिक मामले

हत्या ---- 80
हत्या की कोशिश-----51
बलात्कार----- 14
2010 में हुए आपराधिक मामले

आपराधिक मामले--- 53,244
हत्या -----467
बलात्कार-----581
डकैती ----- 1,764
अपहरण ------1,582
वाहन चोरी---- 6867
घरों में चोरी --- 905

Saturday, April 16, 2011

हिंसक होकर नहीं, प्यार से बताये गलतियों को

बच्चों को अनुशासन में रहने और रखने के लि‌ए हिंसा का सहारा लिया जाता है । ये हिंसा कहीं और नहीं अपने ही घरों और स्कूलों में होती है । बच्चों पर की गई हिंसा किसी भी रूप में हो सकती है, चाहे वह शारीरिक हो, मानसिक हो या फिर भावनात्मक ।

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में कहा गया हैं, कि दो से 14 साल की आयु के बच्चों को अनुशासन में रखने के लि‌ए तीन चौथा‌ई बच्चों के साथ हिंसा का सहारा लिया जाता है । इसमें आधे बच्चों को शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है । जेनेवा में आयोजित यू‌एन की मानवाधिकार समिति के बैठक में यूनिसेफ ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत किया । यह रिपोर्ट दुनिया के ३३ निचले और मध्यम आय वाले देशों के 1-14 आयुवर्ग के बच्चों पर आधारित थी, जिसमें बच्चों के अभिभावक भी शामिल थे । बैठक में यू‌एन विशेषज्ञों ने तय किया कि बच्चों के प्रति हिंसात्मक रवैया न अपनाने के लि‌ए जागरूकता फैला‌ई जाये। इसको रोकने लि‌ए दुनियाभर की सरकारें कानूनी कदम उठायें ।

रिपोर्ट में कहा गया है, कि बच्चों को अनुशासन में रखने के लि‌ए घरों में आठ तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है । इसमें कुछ शारीरिक हैं, तो कुछ मानसिक । शारीरिक हिंसा में बच्चों को पीटना या जोर से झकझोरना आदि है, जबकि मानसिक हिंसा में बच्चों पर चीखना या नाम लेकर डांटना आदि है ।

थोड़े देर के लि‌ए यह बात ठीक भी है, लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है जो काफी खतरनाक है । बचपन में बोया गया हिंसा का ये बीज युवा होते-होते विषधर वटवृक्ष का रूप ले लेता है, जो किसी भी रूप में अच्छा नहीं है । यह सच है कि शिक्षा और शिष्टाचार सिखाने के लि‌ए अनुशासन जरूरी है । हो सकता है, अनुशासन के लि‌ए दंड भी आवश्यक हो, लेकिन दंड इतना कभी नहीं होना चाहि‌ए कि बच्चों के कोमल मन और उसके स्वाभिमान पर चोट करे, उसकी कोमल भावना‌एं आहत हो ।

बच्चों पर किये या हु‌ए हिंसक और हृदय विदारक अत्याचार न केवल उनके बाल सुलभ मन को कुंठित करते हैं, बल्कि उनके मन में एक बात घर कर जाती है, कि बड़ों (सबलों) को छोटों (निर्बल) पर हिंसा करने का अधिकार है । बाल सुलभ मन पर घर कर जाने वाली यही बात, कुंठा आगे चलकर निजी जिंदगी और सामाजिक जीवन में विषवेल के रूप में दिखा‌ई देता है । गलती करना इंसान कि फितरत है, और गलती को सुधार लेना इंसान कि बुद्धिमता का परिचायक । गलती को‌ई भी करे, एहसास होने पर उसे भी दुख होता है । गलती पर दंड देने या प्रताड़ित करने से हो चुकी गलती को सुधारा नहीं जा सकता है । प्रताड़ित करने और मन को आहत करने के बजाये उसे बताया जाना चाहि‌ए कि गलती हु‌ई तो क्यों और कैसे हुई? उसके नुकसान का आंकलन बच्चों से ही करा‌एँ।

गलती का एहसास कराने के लि‌ए हिंसक होने की जरूरत नहीं है, प्यार से बता‌एं । प्यार हर काम को आसन करता है । यह मुश्किल तो है, लेकिन दुश्कर नहीं और परिणाम सौ प्रतिशत ।

Saturday, April 2, 2011

आज इंडिया वर्ल्ड कप जीतेगा - कृष्णगोपाल मिश्र



आज हर हिंदुस्तानी के दिल में वर्ल्ड कप जीत लेने की इच्छा है । वैसे ज्योतिषी गणना के आधार पर आज का वर्ल्ड कप फाईनल इंडिया ही जीतेगी, क्योंकि इंडिया की आजादी की तारीख १५ अगस्त है, जिसका मूलांक ६ है आज की तारीख का मूल्यांक २ है । ६ और २ का आपसी मेल काफी अच्छा होता है । साथ ही इंडिया का वर्ष चक्र तो मजबूत चल ही रहा है, और आपका दैनिक चक्र धनु लग्न का है, जिसके चतुर्थ भाव में सूर्य, मंगल एवं गुरू की अच्छी युति है । जो जीत के लिए अच्छा सूचक है । आज सचिन का प्रदर्शन भी अच्छा रहेगा आज वे संभल कर और प्रारम्भ में धीमी गति से खेलेंगे यदि भारत की बैंटिग पारी पहले रही तो प्रारम्भ से १६:१५ बजे तक सचिन पिच पर टिके रह सकते है । सहवाग की भी शुरूआती पारी काफी धुंआ-धार होगी, लेकिन सहवाग प्रारम्भ के १५ मिनट संभल कर खेलें तो कम से कम ४५ मिनट तक पिज पर रहेंगे ।

युवराज सिंह के लिए भी आज का दिन अच्छा रहेगा, लेकिन वह थोड़ा एकाग्रता एवं धैर्य के साथ खेंले तो ज्यादा अच्छा रहेगा, फिर युवराज सिंह काफी अच्छी पारी खेलेंगे । धोनी के भी खेल में आज काफी सुधार देखने को मिलेगा, क्योंकि उनके आज के दैनिक चक्र के नौमांशा में शनि, चन्द्र दशम्‌ भाव में काफी मजबूत है । आज धोनी अच्छा प्रदर्शन करेंगे, अतः आज टीम इंडिया वर्ल्ड कप अवश्य जीतेगी ।

Thursday, March 24, 2011

ऑस्ट्रेलिया और भारत के २४ तारीख के मैच का ज्योतिषीय आंकलन - पं. कृष्णगोपाल मिश्र





आज ऑस्ट्रेलिया और भारत का मैच है, यह मैच काफी टक्‍कर का हो सकता है । क्योंकि ऑस्ट्रेलिया का अंक ३ हैं, और भारत का भी अंक ३ है । दोनों ही टीमों का अंक ३ होने के कारण दोनों ही एक-दूसरे से कम नहीं पड़ेंगे । भारत के कप्तान महेन्द्रर सिंह धोनी का अंक ३ है, ये अंक भारत के लिए एक अच्छा व कारगर अंक साबित होगा, जो भारत को मजबूती प्रदान कर रहा है । पर रिकी पोंटिग का अंक ६ हैं, वो अंक भी ऑस्ट्रेलिया को अच्छी मजबूती प्रदान कर रहा है ।

भारत के डेली चार्ट के अनुसार थोड़ा सा आज का दिन खराब बन रहा है, इस कारण यह मैच संघर्षपूर्ण हो सकता है । विरेन्द्र सहवाग का अंक ९ हैं, यह आज के दिन चलने वाले बेस्टमैन कहे जायेंगे, लेकिन लंबे समय तक भरोसा करना मुश्किल होगा, फिर भी चलेगा । २४ तारीक का मूल्यांक ६ है और सहवाग का अंक ९ हैं, जो आपस में मेल खाता है । सचिन का अंक ६ है, और आज का मूल्यांक भी ६ है । इसलिये २४ तारीक के मैच में सचिन भरोसेमंद साबित होंगे, ये अच्छा प्रदर्शन देंगे ।

युवराज सिंह का अंक १ हैं, अतः २४ तारीक के मैच में इनका प्रदर्शन ठीक-ठाक रहेगा । विराट कोहली का अंक ८ है, जो आज की तारीक से काफी मैच करता है, इसलिये इनका अच्छा प्रदर्शन रहेगा । आज के दिन भरोसेमंद खिलाड़ी विराट कोहली, सचिन तेंदुलकर व सहवाग होंगे, लेकिन आज का मैच संघर्षपूर्ण रहेगा । आज का मैच जीतने के बाद २९ तारीक का मैच भारत के लिए बहुत आसान हो जायेगा ।

Saturday, March 19, 2011

आगामी पूर्णिमा जापान की घटना की दोषी नहीं - पं. कृष्णगोपाल मिश्र

पिछले दिनों जापान में आई भीषण त्रासदी सुनामी व भूकंप के रूप में प्रकृति का एक खौफनाक चेहरा उभरकर आया है । अलबत्ता इसे बहुत से लोग १९ तारीख की रात्रि को आने वाली पूर्णिमा से जोड़ रहे हैं, जिसमें चन्द्रमा पृथ्वी से काफी निकट कहा जायेगा । बहुत से ज्योतिष व खगोलविद भी इस बात की चर्चा कर रहे हैं, लेकिन देखा जाये तो ये भयानक त्रासदी पूर्णिमा से ९, १० दिन पहले घटित हुई है । चंद्रमा २७ दिन ३ घंटे में पृथ्वी का एक चक्‍कर लगा लेता है और पूर्णिमा के १० दिन पहले चंद्रमा और पृथ्वी की दूरी सामान्य तौर पर ही थी इस घटना का चंद्रमा से या पूर्णिमा से पृथ्वी पर कोई भी भौगोलिक परिवर्तन का आधार ज्योतिषीय ढंग से नहीं साबित होता है । यह बात अवश्य है, कि पूर्णिमा के समय में समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पन्‍न होना संवेदनशील प्राणियों में संवेदना के वेग का बढ़ना आदि नजर आता है । पर इतनी बड़ी घटना को पूर्णिमा से जोड़े जाने का कहीं से भी औचित्य नहीं बनता ।

संसार तीन तरह की शक्‍तियों के संयुक्त बन्धन से संचालित हो रहा है, जिसको स्थूल रूप से तीन वर्गों में बाँट कर समझ सकते हैं, पहला भौतिक आधार पर वात, पित्त और कफ आध्यात्मिक आधार पर ब्रम्हा, विष्णु और महेश और वैज्ञानिक रूप से प्रोटान, इलेक्टॉन, व न्यूट्रॉन की बाइन्डिंग एनर्जी इन्हीं के आधार पर यह सृष्टि पदार्थ रूप में साकार दिखाई देती है । इन तीनों शक्‍तियों में जब संतुलन बिगड़ता है, तो प्रकृति की अप्राकृतिक आपदाएं होती हैं । वर्तमान समय में गोचर के ग्रहों की व्याख्या करेंगे तो हम पायेंगे कि कुंभ राशि में ही गुरू व मंगल का एक साथ मजबूत होना तथा शनि का मंगल व सूर्य से षडाष्टक योग बनाना एक भौगोलिक असंतुलन का तो सूचक है ही साथ ही साथ २०१० में जब सूर्य की मेष संक्रान्ति हुई थी उस समय ग्रह स्थिति के कारण जैसे मेष लग्न का शुक्र लग्न में पाया जाना साथ ही छठें घर में शनि की वक्रीय स्थिति शुक्र, शनि के साथ षडाष्टक योग बनाते हुए अकारक योग का सूचक है । और ऐसे में मंगल लग्नाधिपति जो पृथ्वी का बड़ा ही कारक ग्रह माना जाता है । उसका नीच राशि कर्क में कमजोर होना तथा उसके साथ चन्द्रमा का मीन राशि में मूलत्रिकोण का संबंध बनाना एक भारी प्राकृतिक आपदा विशेषकर सुनामी व भूंकप का असंतुलन तो दिखाई दे रहा है, साथ ही इस चक्र के नवमांश को ध्यान से देखें तो वृश्‍चिक लग्न राशि का नवमांश बन रहा है । चतुर्थ भाव में शनि व चन्द्रमा तथा द्वादश भाव में सूर्य, मंगल व राहु एक प्राकृतिक आपदा का सूचक है ।

इस चक्र के मुद्दा दशा में ध्यान दें तो जापान की यह घटना शनि की मुद्‌दा शुक्र की अन्तर मुददा में घटी है, यानि यहां पर हम स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि २०१० के सूर्य के मेष संक्रान्ति में बने चक्र के अनुसार अकारक कफ़स ग्रह काफी मजबूत अवश्था में है । और आग्नेय तत्व के कारक ग्रह सूर्य, मंगल व वृहस्पति जो कि बचाव ग्रह में है, काफी कमजोर स्थिति में दिखाई दे रहे हैं इस कारण यह घटना घटी । साथ ही साथ उस समय की मंगल की स्थिति से घटना के मंगल की स्थिति आठवें स्थान की है, जो कि और ज्यादा खराब बनती है । इस कारण से यह घटना ग्रहों के असंतुलन के कारण घटी है, ना कि चन्द्रमा के निकटता के कारण घटी है । अलबत्ता इस घटना को घटाने में चन्द्रमा एक कारक ग्रह हो सकता है, लेकिन सारा दोष चन्द्रमा का नहीं है । इसमें मुख्य दोष मंगल का दिखाई दे रहा है । भूकंप तथा प्राकृतिक आपदाएं २०११ में पुनः एक बार २६ दिसम्बर २०११ से १३ अप्रैल २०१२ के बाद पुनः प्राकृतिक आपदाओं के लक्षण दिखाई दे रहे हैं । यह सर्वाधिक खराब समय ४ जनवरी २०१२ से १२ जनवरी २०१२ के बीच में ३ मार्च से १२ मार्च के बीच दिखाई दे रहा है ।

यह एशियाई देशों में विशेषकर मुस्लिम बस्तियों में तनाव, युद्ध के कारण कुछ घटनाएं तो घटेंगी साथ ही कुछ अप्रत्याशित घटनाएं घट सकती हैं । विश्‍व में दो जगह विशेष सावधानी बरतनी चाहिए । पहला तो पश्‍चिम उत्तर के कुछ देशों में, दूसरा दक्षिण पूर्वी कुछ देशों को शांति व धैर्यपूर्वक इस घटना के ना घटने का उपाय करना चाहिये ।

Friday, March 4, 2011

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