Thursday, May 12, 2011

उन्माद की हद तक क्रिकेट प्रेम


पूरा देश क्रिकेट का दीवाना है । ऐसा लगता है कि क्रिकेट ही सब कुछ है । देश यहीं से शुरू होता है, और यहीं खत्म हो जाता है । क्रिकेट की हार देश की सबसे बड़ी समस्या है । क्रिकेट की जीत सभी समस्याओं का समाधान है । न इसके आगे भारत है और न इसके पीछे भारत है । राजनीति और कूटनीति तक इसकी मोहताज है । देश की सब समस्याएं और सब समाधान क्रिकेट है । जो क्रिकेट प्रेमी नहीं वह देशभक्‍त भी नहीं । जो चौके और छक्‍के पर तालियां नहीं बजाता उसकी राष्ट्रभक्‍ति ही संदेह के घेरे में आ जाती है । जब सब कुछ क्रिकेट है तब इसमें अपार पैसा होना कोई आश्‍चर्य की बात नहीं होनी चाहिए ।
देश की बहुत बड़ी आबादी को लगता है कि मुल्क में समस्याओं का अंबार है, लेकिन उनका ऐसा सोचना-मानना उस समय निरर्थक हो जाता है जब क्रिकेट के दौरान देश में कर्फ्यू जैसे हालात हो जाते हैं । सड़कें सूनी हो जाती हैं । बसों को सवारियां नहीं मिलती हैं । लोग टीवी पर चिपककर बैठ जाते हैं । क्रिकेट के लिए बेवजह छुट्‍टी ले लेते हैं । जिसको क्रिकेट का टिकट मिल गया उसकी किस्मत खुल गई । किस्मत क्या खुली वह भव सागर से तर गया । उसके इहलोक और परलोक दोनों सुधर गए । जिन्हें नहीं मिली वे बदनसीब माने गए ।
भारत-पाक मैच के दौरान एक मुख्यमंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि मुझसे राज्य सभा की टिकट ले लो, विधानसभा की टिकट लेलो, लोकसभा की मांगो तो वह भी दिलवा दूं लेकिन क्रिकेट की टिकट के लिए मांफी मांगता हूं । बताइए, अब क्या रह जाता है?
लोग यह समझते हैं कि देश में गरीबी है, बेरोजगारी है, भ्रष्टाचार है, भुखमरी है, लाचारी है, गरीबी है, बीमारी है, अशिक्षा है, चोरी है, डकैती है, लूटमार है, बलात्कार है, बेबसी है, मजबूरी में देह बेचती बच्चियां हैं, युवती हैं, महिलाएं हैं, सड़कों की कमी है, इलाज के लिए पैसा नहीं है, भीख मांगते बच्चे हैं, करोड़ों की तादाद में अदालतों में केस है और इन सबसे बड़ी समस्या साम्प्रदायिकता है । लेकिन यह सब समस्याएं क्रिकेट के सामने गौण है ।
जिस दिन भारत-पाकिस्तान के बीच मोहाली में मैच था उस दिन देश के लोगों की क्या हालत थी वर्णन करना मुश्किल है । युद्ध से भी आगे के हालत थे । ऐसी स्थिति तो तब भी नहीं थी जब १९६४ में चीन से, १९७१ में पाकिस्तान से और फिर १९९५ में कारगिल युद्ध हुआ था । उत्तेजना, कौतूहल, जुनून और उन्माद सब कुछ था ।
क्या यह सब बनाया गया माहौल था? लोगों में उत्तेजना, उन्माद और जुनून पैदा किया गया था । इसे आप बाजार का खेल भी कह सकते हैं । इसे आप दिखावटी देश भक्‍ति भी कह सकते हैं । इसे आप देखादेखी देश प्रेम दिखाने की होड़ भी कह सकते हैं । इसे आप पाकिस्तान से बदला लेना भी कह सकते हैं । जो आपका दिल कहे उसे मान सकते हैं । देश की जीत पर खुश होना हर देशवासी का अधिकार है और खुश होना भी स्वभाविक है । लेकिन खुशी के नाम पर करोड़ों रूपए के पटाखे फूंक देना क्या मार्केट बनाया हुआ खेल था । तब ज्यादा अच्छा लगता जब इस रूपयों से देश के लोगों की बेबसी कुछ कम करने की कोशिश की जाती । खुशी के पटाखों से उन गरीबों का क्या लेना देना जो उस रात भूखे सोए ।
क्रिकेट में बहुत पैसा है । लेकिन किस के लिए? जीते खिलाड़ियों को करोड़ों रूपए दिए जाते हैं । अच्छी बात है । कहा जाता है कि खिलाड़ी देश के लिए खेलते हैं । देश के लिए कैसे? जो रूपया करोड़ों में मिलता है वह उनके पास रहता है । क्या वह देश के लिए दे देते हैं? नहीं तो फिर खेलना अपने लिए हुआ न । सरकारी नौकरी, करोड़ों रूपया यह सब खिलाड़ियों के लिए । हम खिलाड़ियों को पैसा देने के विरोध में नहीं लेकिन अन्य प्रतिभाएं उपेक्षित न रहें यह कौन देखेगा? देश में और तरह की प्रतिभाएं हैं जिन्हें सम्मान के साथ रोटी भी नहीं मिल पाती है । सरकार और देश की जनता को इसी में क्या दिखाई देता है जो अन्य प्रतिभाओं में दिखाई नहीं पड़ता ।
संगीतकार नौशाद ने दुनिया की सबसे मीठी धुनें बनाईं । ऐसी धुनें जो सदियों तक याद रखी जाएं । क्या उन्होंने ये धुनें और इतना मीठा संगीत देश के लिए नहीं दिया था? लेकिन उनके आखिरी दिन इतने खराब गुजरे कि इलाज तक को पैसे नहीं थे । अभिनेता राजेन्द्रकुमार ने उन्हें आर्थिक सहायता तब इलाज हुआ । नौशाद साहब को किस सरकार ने मदद की? प्रख्यात शहनाई वादक बिस्मिल्ला खान किस हालत में मरे, यह बताने की जरूरत है? क्या उन्होंने शहनाई देश के लिए नहीं बजाई थी ।
जिस देश में घनघोर गरीबी हो वहां एक आदमी को करोड़ों मुफ्त दे दिए जाएं और दूसरी ओर उसी देश में ऐसे लोग हैं जिन्हें भरपेट रोटी नहीं मिलती है ।

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