Saturday, May 14, 2011

उदारवादी नेताओं पर सेना का दबदबा

पाकिस्तान में अल कायदा, तालिबान और अन्य आतंकवादी संगठनों को सहायता पहुंचाने वाले दो उच्च सैनिक अधिकारियों के सेवाकाल में विस्तार से यह एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान अपना इतिहास बदलना नहीं चाहता। दूसरे शब्दों में वह अपनी पुरानी विदेश नीति को ही बरकरार रखना चाहता है। सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज़ कियानी और बदनाम आ‌ई‌एस‌आ‌ई महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शूजा पाशा दोनों ही जाने पहचाने चेहरे हैं और उनके सेवाकाल का विस्तार इस बात का सबूत है कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार तो है मगर उस पर दबदबा सेना और उसकी खूफिया एजेंसी आ‌ई‌एस‌आ‌ई का ही है। यह ठीक है कि आसिफ अली ज़रदारी के नेतृत्व वाली पीपीपी सरकार में उदारवादी लोग हैं लेकिन सेना और आ‌ई‌एस‌आ‌ई के सामने वह बेबस हैं।

डॉन में खावर घूमन लिखते हैं कि प्रधानमंत्री युसूफ रज़ा गिलानी ने यह घोषणा कर कि आ‌ई‌एस‌आ‌ई महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शूजा पाशा के सेवाकाल में एक साल की और बढ़ोत्तरी कर दी ग‌ई है, अपनी सरकार की सच्चा‌ई बयान कर दी है। उल्लेखनीय है कि पाशा को दूसरी बार विस्तार मिला है। गत 18 मार्च को उनके पहले विस्तार की अवधि पूरी हो चुकी थी।

डॉन न्यूज और पाकिस्तान टेलीविजन के साथ बातचीत करते हु‌ए प्रश्नों के उत्तर में गिलानी ने कहा कि देश की सुरक्षा के मद्देनजर सरकार ने पाशा का कार्यकाल और एक साल के लि‌ए बढ़ाने का फैसला किया है। पाशा को नया विस्तार देने के बाद यह पहला सरकारी वक्‍तव्य था जो गिलानी ने स्वयं दिया। कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि सेना की ओर से दो वर्ष के विस्तार की मांग की ग‌ई थी ताकि 2013 तक सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज़ कियानी के साथ पाशा भी आ‌ई‌एस‌आ‌ई महानिदेशक बने रहे। उल्लेखनीय है कि कियानी को तीन वर्ष का विस्तार पिछले वर्ष ही मिल चुका है। डॉन में जाहिद हुसैन लिखते हैं कि सैनिक सूत्रों के अनुसार पाशा और कियानी में बेहतर तालमेल और उनके विचारों में समानता के कारण पाशा का सेवाकाल बढ़ाया गया है। लेकिन विस्तार का कारण अमरीका के साथ सहयोग बढ़ाना भी हो सकता है क्योंकि कुछ विशेषज्ञों के अनुसार अफ़गानिस्तान में युद्ध गम्भीर स्थिति धारण कर चुका है और अमरीका के पास इसके अलावा को‌ई रास्ता नहीं है कि वह आ‌ई‌एस‌आ‌ई को साथ लेकर चले। यह भी खबर है कि अमरीका को जनरल पाशा के विस्तार के बारे में पहले ही बता दिया गया था। वास्तव में सी‌आ‌ई‌ए कंटेक्टर रेमंड डेविस की गिरफ्तारी पर आ‌ई‌एस‌आ‌ई और सी‌आ‌ई‌ए में जो मतभेद पैदा हु‌आ था उसे समाप्त करने के लि‌ए जनरल पाशा को पद पर बरकरार रखना जरूरी था। फ्रा‌इडे टा‌इम्स में नजम सेठी लिखते हैं कि सेना प्रमुख और आ‌ई‌एस‌आ‌ई महानिदेशक लेफ्टिनेंंट जनरल अहमद शूजा पाशा के लि‌ए आसिफ अली ज़रदारी का राष्ट्रपति होना संतोषजनक है क्योंकि जरदारी की सरकार में पहले कियानी को तीन वर्ष का विस्तार मिला जब कि पाशा एक एक वर्ष करके दो बार विस्तार प्राप्त करने में सफल रहे। लेख में कहा गया है कि अगर हम पीपीपी का इतिहास देखें तो यह संगठन सेना विरोधी नज़र आता है लेकिन अभी जो स्थिति है उसके मद्देनजर उसे सेवा समर्थक कहने में को‌ई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहि‌ए।

लेख के अनुसार विपक्षी दल पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ के नेता चौधरी निसार खान ने आ‌ई‌एस‌आ‌ई महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल पाशा के सेवाकाल में विस्तार पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्‍त करते हु‌ए इसे लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ करार दिया है और कहा है कि आ‌ई‌एस‌आ‌ई को अपनी संविधानिक सीमा से बाहर नहीं जाना चाहि‌ए। लेख में कहा गया है कि यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि पी‌एम‌एल‌एन सेना समर्थक संगठन था जबकि अब वह सेना विरोधी नजर आ रहा है। सच तो यह है कि पीपीपी और पी‌एम‌एल‌एन दोनों ही न तो सेना समर्थक हैं और न ही सेना विरोधी बल्कि अपनी सुरक्षा के लि‌ए उन्हें कभी सेना समर्थक और कभी सेना विरोधी बनना पड़ता है। - अडनी।

आ‌ई‌एस‌आ‌ई-सी‌आ‌ई‌ए मतभेद बढ़े

यह सब जानते हैं कि उपमहाद्वीप ही नहीं बल्कि दुनिया भर में आज जिस आतंकवाद का बोलबाला है उसका जिम्मेदार पाकिस्तान है। अफ़ग़ानिस्तान में कम्यूनिस्ट सरकार और सोवियत सेना से लड़ने के लि‌ए जिन मुजाहिद्दीन को मैदान में उतारा गया था उन्हीं की न‌ई पीढ़ी आतंकवादी बन चुकी है। मजे की बात तो यह है कि उन मुजाहिद्दीन को अमरीका का भी भरपूर सहयोग प्राप्त था और यह उस सहयोग का ही परिणाम है कि आतंकवादी बन चुके मुजाहिद्दीन को अमरीका से लड़ने में भी कठिना‌इयों को सामना नहीं करना पड़ रहा है। अमरीका ने ११ सितम्बर की घटना के बाद मुजाहिद्दीन के विरुद्ध कार्रवा‌ई पाकिस्तान को साथ लेकर शुरू की मगर पाकिस्तान का हमेशा ही दोहरा रवैया रहा ऊपर से वह अमरीका का साथ देता रहा और अंदर से मुजाहिद्दीन को मदद भी पहुंचाता रहा। आज भी वही स्थिति है यानि पाकिस्तान मुजाहिद्दीन की सुरक्षा कर रहा है। अब अनुमान लगाया जा सकता है कि इस वर्ष जब अमरीकी नेतृत्व वाली गठबंधन सेना वापस होगी तब क्या होगा? क्या अमरीका उस दबाव को समाप्त करने में सफल हो पा‌एगा जो पाकिस्तान सरकार पर आ‌ई‌एस‌आ‌ई का है?

न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार आ‌ई‌एस‌आ‌ई महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल शूजा अहमद पाशा का हाल ही में हु‌आ वाशिंगटन दौरा आ‌ई‌एस‌आ‌ई और सी‌आ‌ई‌ए के बीच उन मतभेदों को समाप्त करने के लि‌ए हु‌आ था जो रेमंड डेविस मामले को लेकर दोनों देशों की गुप्तचर एजेंसियों के बीच उत्पन्न हु‌ए हैं। सूत्रों के अनुसार जनरल पाशा ने बातचीत के दौरान पाकिस्तान के कबा‌इली क्षेत्रों में हाल ही में हु‌ए ड्रोन हमलों का मामला भी उठाया जिनमें 40 व्यक्‍तियों की मृत्यु हु‌ई है। नेशन ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि अगर अमरीका पाकिस्तान में खूफिया नेटवर्क चलाता है तो यह किसी देश के आंतरिक मामले में खुला हस्तक्षेप है। सम्पादकीय में कहा गया है कि जब तक निर्दोष लोगों की हत्या जारी रहेगी तब तक यह नहीं समझा जा‌एगा कि अमरीकी कार्रवा‌ई देश के पक्ष में है। उल्लेखनीय है कि रेमंड डेविस घटना के बाद पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान संयुक्‍त गुप्तचर कार्रवा‌ई रूकी हु‌ई है। इस बीच सी‌आ‌ई‌ए की कार्रवा‌ई में 40 से अधिक कबा‌इलियों की मृत्यु हु‌ई है जिससे पाकिस्तानी गुप्तचर अधिकारियों के साथ आम लोगों में भी नाराजगी है। मीडिया में भी इन हमलों की आलोचना हु‌ई है। डेली टा‌इम्स ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि सी‌आ‌ई‌ए एजेंट रेमंड डेविस द्वारा लाहौर में दो व्यक्‍तियों की हत्या के बाद अमरीका और पाकिस्तान की संयुक्‍त गुप्तचर कार्रवा‌ई बंद है जबकि सी‌आ‌ई‌ए की कार्रवा‌ई में 40 व्यक्‍तियों की मृत्यु हु‌ई है। इस कार्रवा‌ई में पाकिस्तानी सेना शामिल नहीं थी।

यह अमरीका की एकतरफा कार्रवा‌ई थी। लगभग दस वर्षों से जारी आतंकवाद के विरुद्ध लड़ा‌ई के दौरान यह पहला अवसर था जब पाकिस्तान अमरीका से अलग नजर आया अर्थात्‌ उसने आतंकवाद के विरुद्ध कार्रवा‌ई में न केवल यह कि साथ नहीं दिया बल्कि यह स्पष्ट संकेत भी दे दिया कि वह इस कार्रवा‌ई से नाराज है।

उल्लेखनीय है कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ा‌ई मुशर्रफ़ की सरकार में शुरू हु‌ई थी। 11 सितम्बर 2001 को अमरीका पर हमले के बाद अलक़ायदा नेता ओसामा बिन लादेन की तलाश में अमरीका ने पाकिस्तान को साथ लेकर अफ़़ग़ानिस्तान पर हमला बोलकर तालिबान सरकार को इसलि‌ए समाप्त कर दिया कि उसने ओसामा बिन लादेन को मेहमान बना रखा था। इस हमले के बारे में मुशर्रफ़ यह कह रहे हैं कि अमरीका ने धमकी देकर उनसे सहायता ली थी। मुशर्रफ़ के अनुसार तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने मदद न करने की स्थिति में पाकिस्तान की ईंट से ईंट बजा देने की बात कही थी।

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