मंदी की काली छाया पूरे विश्व पर इस तरह से पड़ी, जैसे की सूर्यग्रहण के दौरान अचानक ही दिन में रात हो जाती है, चारों तरह अंधेरा छा जाता है, ठीक इसी तरह का वातावरण पूरे विश्व में मंदी को लेकर बन गया । कल तक जो धनकुबेर थे वे ढेर हो गये, जो अरबपति थे वे रोडपति हो गये । मंदी ने बड़े-बड़े धनाड्य व्यक्तियों को दिन में तारे दिखा दिये । कंपनियों के शेयरों में अचानक भारी गिरावट देखी जाने लगी । बड़े-बड़े उद्योगों को अपने उत्पादन में भारी कटौती करनी पड़ी । अब जबकि मंदी थी तो उपभोक्ता ने उपायों का क्रय करने के लिए काफी सोच समझ कर फैसले लेने शुरू कर दिए । इससे विश्व बाजार का वातावरण जो कल तक व्यापार के लिए बिल्कुल मुफीद लग रहा था, अचानक उसमें घोर निराशा की चादर फैल गयी । मंदी का दौर पहले भी आया था १९३० के आस-पास, लेकिन अब समय, स्थिति बड़ी भयावह थी । लोग भूख से बिलबिला-बिलबिला कर मर गये । उस वक्त मंदी ने अपना प्रभाव पूरे विश्व पर डाला था । लेकिन २००८ में शुरू हुयी मंदी को अगर हम पश्चिमी देशों की भी मंदी कहें तो यह सही ही रहेगा । क्योंकि इस मंदी से सर्वाधिक प्रभावित अमेरिका एवं यूरोपीय बाजार ही रहें । अमेरिकी महाद्वीप के सारे देश और यूरोपीय महादेश के सारे देश इससे पूरी तरह से प्रभावित हुए ।
जिस तरह सूर्य ग्रहण कहीं पर पूर्ण और कहीं आंशिक होता है, ठीक उसी प्रकार एशिया एवं अन्य महादीप के देशों में इसकी आंशिक छाया ही पड़ी एशिया महाद्वीप के दो सबसे बड़े आर्थिक ताकत चीन और, भारत इससे आंशिक रूप से ही प्रभावित रहे । अब बात उठती है कि आखिर ये मंदी का जिन्न किस बोतल से निकलकर अपने आगोश में पूरे विश्व को ले लिया । दरअसल यह प्रभाव है, ग्लोबलाईजेशन यानि कि भूमंडलीकरण और आर्थिक उदारीकरण का । भूमंडलीकरण के प्रभाव के कारण पूरा विश्व एक गांव जैसा हो गया । पूरे विश्व के देश व्यापारिक रूप से एक दूसरे से जुड़ गये, और इसका खामियाजा उन्हें मंदी के रूप में झेलना पड़ा । मंदी से उन्हें पता चला कि ग्लोबलाइजेशन के अगर फायदे हैं तो नुकसान भी कम नहीं हैं ।
इस मंदी की शुरूआत भी आर्थिक उदारीकरण के प्रभाव से ही हुयी । अमेरिका में बैकों से लोगों को हर तरह की भौतिक सुख-सुविधा के लिए कर्ज देना शुरू कर दिया, जिसका परिणाम हुआ कि बैंकों के पास जमा-पूँजी कुछ नहीं बची और वे दिवालिया होने के कगार पर पहुँच गये । इस आग की आँच ने धीरे-धीरे उद्योगों को भी चपेट में ले लिया, और पूरा विश्व इसकी चपेट में आ गया । इसकी शुरूआत हुयी अमेरिका की मेरिल लौंच नामक बैंक के दिवालिया होने से, साथ ही लोहमैन ब्रदर्स नामक बैंक ने भी दिवालिया होने का ऐलान कर दिया । इसके बाद तो व्यापार जगत में हाहाकार मच गया ।
अमेरिकी, जापानी और यूरोपीय बाजारों में भारी गिरावट के साथ लिक्विडिटी की आवश्यकता महसूस की जाने लगी । इस दरम्यान आई पी पी (इंडेक्स ऑफ रेड्सट्रीयल प्रोडक्शन) जबसे कम १.३% कर्ज हुआ जो पिछले दस सालों में सबसे कम था ।
अप्रैल से अगस्त २००९ के बीच शुरूआती पाँच व्यावसायिक महीने १९९८ से २००१ के १४ सालों के निचले स्तर पर दर्ज हुए । माइक्रोसॉफ्ट जो विश्व की सबसे बड़ी आई टी कंपनी है, में ९०,००० हजार कमचारी कर्मचारी कार्यरत थे जिनमें से १५००० की छुट्टी कर दी गयी । इस कंपनी के शेयरों में ८% तक की गिरावट दर्ज की गयी । इस्पात में ब्रिटेन के सबसे बड़े एवं विश्व ८ वें सबसे बड़े धनी उद्योगपति लक्ष्मीनिवास, मित्तल की कंपनी आर्जेलर मित्तल को ३५.२ बिलियन डॉलर की गिरावट २००८ के व्यावसायिक वर्ष में झेलनी पड़ी । भारत में भी मंदी का असर दिखना शुरू हो गया । क्योंकि भारत से आई टी उत्पादों का निर्यात सबसे ज्यादा (६०%) अमेरिका को होता है, इसलिए निर्यात में गिरावट शुरू हो गयी और भारत की व्यावसायिक वृद्धि दर में गिरावट शुरू हो गयी । डी-एल-एफ, यूनिटेक, जी-एम आर ग्रुप, रिलायंस, विप्रो, सत्यम्, आदि में नुकसान दिखने शुरू हो गये ।
भारतीय मार्केट रेट १०% से ३०% तक गिर गये । प्रॉपर्टी के दाम १५% से २०% तक नीचे आ गये । इससे गाजियाबाद जो लॉसवेगास और मॉस्को जैसे शहरों से प्रॉपर्टी के मामले में टक्कर लेने लगा था हाशिये पर आ गया । मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में भारी गिरावट शुरू हो गयी और यह एक समय १०,००० से भी नीचे आ गया । भारत में जिस सेक्टर की कंपनियां सबसे ज्यादा प्रभावित रहीं उनमें, टेक्सटाईल, केमिकल, ज्वैलरी गारमेंट, जेम्स इत्यादि की कंपनियाँ रहीं । इनको अपने उत्पादन में १०% से ५०% तक भी गिरावट करनी पड़ी । भारत में टेलीकॉम कंपनियां भी भारी गिरावट में रहीं ।
आर कॉम - ५१ %
आईडिया- २६%
एयरटेल- ८%
रिटेल चेन के सेक्टरों में भी भारी नुकसान हुआ । सुभिक्षा रिटेल चेन की अपने कई रिटेल शॉप दिल्ली में बन्द करने पड़े जिससे कई लोग बेरोजगार हो गये । समय लाईव में प्रकाशित खबर के मुताबिक सुभिक्षा को पटरी पर आने के लिए ३०० करोड़ रू की आवश्यकता है । एअयरटेल के भी नेट प्रॉफिट में ७.७८% की गिरावट दर्ज की गयी । इसका रेवेन्यू १% से गिरकर ९,९४१ करोड़ से ९८४५ करोड़ हो गया । प्रॉफिट २५ १६ करोड़ से गिरकर २३२१ करोड़ हो गया । गोदरेज की २००९ में इसकी तिमाही में ६६.६७ करोड़ का मुनाफा हुआ जो इसी तिमाही में पिछले साल ९.४ करोड़ था लेकिन टोटल इनकम में ९ करोड़ का लॉस हुआ और वह ९६५.२७ करोड़ से ८९६.१७ करोड़ पर आ गया । डी एल एफ जो कि रियलिटी शो की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है के नेट प्रॉफिट में ७९% की गिरावट दर्ज की गयी । २००९ साल के दूसरी तिमाही में कंपनी को ३६ करोड़ मिले जो पिछली तिमाही में १८६३.९७ करोड़ थे । कंपनी की टोटल इनकम भी ३,८१०.६२ करोड़ से गिरकर १६४९.८६ करोड़ हो गयी । २००९ के तीसरी तिमाही में एच सी एल का भी नेट प्रॉफिट १०% गिर गया । उसे १५१ करोड़ में फौरन एक्सचेंज का नुकसान हुआ । एच सी एल को जून की तिमाही में ३% की गिरावट के साथ ३३० करोड़ का नुकसान हुआ । एच सी एल से मीडिया को मार्च २००९ के तिमाही में २३४.४ मिलियन का प्रॉफिट हुआ, जब की पिछली तिमाही में इसे ६.५३% का ज्यादा प्रॉफिट हुआ था । हाँलाकि सितंबर २००९ की तिमाही में ही सी एस इनफोसिस, विप्रो को फायदा हुआ है ।
इनफोसिस - ७.५ %
टीसीएस - २९.२%
विप्रो - १९%
सबसे ज्यादा गिरने वाले सेक्टर-
भारत में जिन सेक्टरों में सबसे ज्यादा मंदी का प्रभाव पड़ा उनमें सबसे ऊपर थे-
* बैंक
* फिनांसियल सर्विसेज
* रियल स्टेट
* इन्फ्रास्ट्रक्चर
* आई टी सेक्टर
इससे कम प्रभावित क्षेत्र थे ः -
* पावर
* ऑटोमोबाइल्स
* रिटेल
* हॉस्पिटेलिटी
* टूरिज्म
सबसे कम प्रभावित क्षेत्र थे ः -
* फार्मास्यूटिकल्स
* ऑयल्स और गैस
* एफ एम जी जी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स)
* मीडिया और इंटरटेनमेंट
इसके अलावा भारत में ६००० बीपीओ कंपनियों को मंदी के दौरान अपना बोरिया-बिस्तर बांधना पड़ा । विश्व बाजार में तेलों के दाम १९७० के बाद सबसे निचले स्तर पर जा पहुँचे । इनके दाम ५० डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे चले गये । भारत में कुल २३४५३ कंपनियां हैं, २७६१ एम एन सीज हैं, टॉप आई टी कंपनियां ३५५३ हैं टॉप वन आई टी कंपनियां १९९६२ हैं, उद्योग आधारित कंपनियां ८९५० हैं । इन सबको मंदी ने झंकझोर कर रख दिया । हालाँकि जब अमेरिका में मंदी का दौर था तो भारत में बीपीओ/केपीओ कंपनियां अच्छा कर रही थीं ।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर प्रभाव ः-
मंदी ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों को दिखला दिया की भारतीय बाजार मंदी जैसे बवंडर को भी झेलने को तैयार है । मंदी का आंशिक असर ही भारत पर पड़ा । अमेरिकी बाजार में आउटसोर्सिग की मांग एकबार फिर से उठने लगी । कंपनियां घाटे से उबरने के लिए भारत में आउटसोर्सिंग करना शुरू कर सकती हैं । भारत में “मैन पावर” एवं संतुलित संसाधनों की उपलब्धता कहीं और की बनिस्पत ज्यादा सस्ती है, इसलिए सस्ते संसाधन कंपनियों से अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं । बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद आउटसोर्सिंग पर जो बबेला मचा था ये अब कहीं नजर नहीं आ रहा । ओबामा द्वारा ‘राहत पैकेज’ जारी करने के बाद आउटसोर्सिंग पर ओबामा सरकार ने चुप्पी साध रखी है ।
आयात निर्यात के क्षेत्र में २००९ .
आयात निर्यात के क्षेत्र में इस बार भारत को नुकसान ही उठाना पड़ा है । भारत द्वारा आईटी उत्पादों का सबसे ज्यादा ६% निर्यात अमेरिका को होता है, और अमेरिका भी मंदी की चपेट में है इसलिए निर्यात की भी दर प्रभावित हुयी । भारत का निर्यात प्रतिशत ११.४% तक गिर गया । भारत को ३०.४% ज्यादा आयात करना पड़ा । अप्रैल अगस्त की तिमाही में । संवेदनशील वस्तुएं, दूध पदार्थ, दूध, एडीबल ऑयल इत्यादि का ज्यादा आयात करना पड़ा । भारत को अक्टूबर के माह में ४८ टन सोने का आयात करना पड़ा जो ४५% तक ज्यादा है
। हालांकि ‘सेंस से विदेशी निवेश को जरूर बढ़ावा मिला है ।
भारत की व्यापार नीति-
भारत की व्यापार नीति में अभी भी सुधार की बहुत सारी संभावनाएं मौजूद हैं । निर्यात की दर जो सुधारने के लिए उद्योगों को और अधिक प्रोत्साहन के अलावा, जिन देशों से भारत का व्यापार दर बहुत कम है, उन देशों से भारत को व्यापार बढ़ाना चाहिए । कस्टम ड्यूटी, एक्ट्स, एक्सपोर्ट डयूटी इत्यादि इतने सारे कानून हैं । जो व्यापार को प्रभावित करते हैं । भारत में व्यापार के लिए कानून को और लचीला बनाए जाने की भी जरूरत है । भारत को लैटिन अमेरिकी देशों तथा यूरोपीय देशों की ओर ध्यान क्रेंद्रित करने की भी जरूरत है ।
भारत तेल के लिए खाड़ी देशों खासकर सऊदी अरब एवं यूएई पर निर्भर रहता है । भारत को वेनेजूएला जैसे देशों से इस संबंध में अपने कदम आगे बढ़ाने चाहिए ।
व्यापार जगत में मीडिया की भूमिका-
व्यापार जगत में मीडिया की भूमिका अहम हो गयी है । आज व्यापार आधारित न्यूज चैनलों तथा अखबारों का दिनों-दिन प्रचार-प्रसार बढ़ता जा रहा है, जाहिर है इनकी रीडरशिप और यूजरशिप में बढ़ोत्तरी होती जा रही है । एक समय था जब एक दो दूरदर्शन हुआ करता था, उसी में धारावाहिन, न्यूज, गाने, सांस्कृतिक, कार्यक्रम, ज्ञान-विज्ञान सारे कुछ हुआ करते थे । आज समय बदल चुका है । आज बिजनेस पर आधारित आधा दर्जन से अधिक टीवी चैनल हैं । मीडिया का व्यापार पर सीधा असर देखा जा सकता है । सेंसेक्स के उतार-चढाव के साथ-साथ हर कंपनी के शेयरों के भाव, उनकी इंडेक्स, कंपनी का नफा, नुकसान का सारा ब्यौरा आज मीडिया के हाथों मेंहै । आज मीडिया चाहे तो किसी प्रॉपर्टी के दाम में आग लगा सकती है तो किसी को कौड़ियों के भाव गिरा सकती है । मीडिया के द्वारा ही विश्व बाजार में उतार-चढ़ाव का मनोवैज्ञानिक खेल व्यापारिक स्वंभूओं द्वारा खेला जाता है । भारत में सेंसेक्स पर मीडिया के द्वारा आयी खबरों का त्वरित असर होता है । खबर साकारात्मक हो तो सेंसेक्स चढ़ जाता है, नाकारात्मक हो तो गिर जाता है । बहरहाल भारतीय बाजारों ने मंदी के तूफान को झेल लिया है । भारतीय अर्थव्यवस्था ने यह साबित कर दिया है कि अब वह पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्था पर निर्भर नहीं करता है । पिछले दिनों एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पेप्सीको की सीईओ इंदीरा नुई ने यह कहकर इस बात को और बल दिया कि भारतीय बाजार मंदी से सबसे पहले निकल चुकी है, और मंदी ने भारतीय बाजार का ज्यादा कुछ नहीं बिगाड़ा ।
वैसे भारत सरकार के द्वारा भी कुछ साकारात्मक कदम उठाये गये जिनमें ब्याज दरों में कटौती से लेकर आर्थिक पेकैज जारी करने तक की कवायद की गयी । पिछले दिनों सिंगापुर में आयोजित विश्व के व्यापारिक नेताओं ने भी अपने भाषण में कहा कि भारत और चीन विश्व में और एशिया में मंदी से निकलने वाले सबसे पहले देश हैं ।
- धनु कुमार मिश्रा
Monday, December 7, 2009
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