वन- उपवन
आज- श्रीविहीन
होता वन- उपवन
हमसे- तुमसे अपना अतीत मांगता
इतिहास मांगता
उनसे- इनसे
परंपराओं, रीतियों, लोकगीतों
में बसी अपनी ‘वो’ पहचान मांगता ।
तुमसे-हमसे
आज यह नव-वसंत
नव मधुमास मांगता
यह नई शताब्दी में
उभरते नए आयामों के बीच
अपना एक स्थान मांगता
यह हमसे-तुमसे
वो अमृत-बीज मांगता
जो हर भूमि, हर ऋतु, हर प्रदेश में
मिटते-मिटते भी
उग ही आते ”
- डॉ. रीता सिंह
Monday, December 7, 2009
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