Monday, December 7, 2009

भारतीय नववर्ष तथा कालगणना

प्राचीन काल में मुर्गे की बाँग, पक्षियों की उड़ान आकाश में चाँद, तारों व सूर्य की स्थिति, सूर्य की किरणों के कारण वृक्ष, पहाड़ आदि की छाया से लोग समय व कालखंड का अनुमान लगाते थे । इस कालखंड को मापने के लिये मानव ने जिस विधा या यंत्र का आविष्कार किया, उसे हम काल निर्णय, कालनिर्देशिका व कैलेन्डर कहते हैं । दुनिया का सबसे प्राचीनतम कैलेण्डर भारतीय है । इसे सृष्टि संवत कहते हैं । भारतीय कालगणना का आरम्भ सृष्टि के प्रथम दिवस से माना जाता है । इसलिये इसे सृष्टि संवत कहते हैं । यह संवत 1975949109 एक अरब सत्तानबे करोड़, उनतीस लाख, उनचास हजार, एक सौ नौ वर्ष पुराना है ।
कैलेण्डर के निर्माण में अनेक अवधारणायें उपलब्ध हैं । वैदिक काल में साहित्य में ऋतुओं के आधार पर कालखंड के विभाजन द्वारा कैलेण्डर के निर्माण का उल्लेख मिलता है । बाद में नक्षत्रों की चाल, स्थिति, दशा और दिशा से वातावरण व मानव स्वभाव पर पड़ने वाले प्रभावों के अध्ययन के आधार पर भी कैलेण्डर का निर्माण किया गया । हमारे खगोलशास्त्रियों ने ३६० अंश के पूरे ब्रह्याण्ड को २७ बराबर भागों में बांटा । इन्हें नक्षत्र कहते हैं । इन नक्षत्रों के नाम क्रमशः अश्‍विनी, भरिणी, कृतिका, रोहिणी, मृगसिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पू.फा., उ.फा., हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, गूला, पूषा, उषा, श्रवण, घनिष्टा, शततार, पू.भा, उ.भा तथा रेवती रखे गये । इसमें से बारह नक्षत्रों में चन्द्रमा की स्थिति के आधार पर बारह महीनों के नाम रखे गये । एक, तीन, पाँच, आठ, दस, बारह, चौदह, अठारह, बीस, बाईस व पच्चीसवें नक्षत्र के आधार पर भारतीय महीनों के नाम - चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, अश्‍विन, कार्तिक, मृगशिरा, पौष, माघ व फाल्गुन रखे गये ।
प्रश्न यह है कि भारतीय नववर्ष का प्रारम्भ चैत्र मास से ही क्यों? वृहद नारदीय पुराण में वर्णन है कि ब्रह्मा जी ने सृष्टि का सृजन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही प्रारम्भ किया था । वहां लिखा है-
“चैत्र मासि जगत ब्रह्यससजप्रिथमेऽइति । ”
इसलिये ही-भारतीय नववर्ष का प्रारम्भ आद्‌याशक्‍ति भगवती दुर्गा की पूजा-उपासना के साथ चैत्र मास से शुरू करते हैं । प्रत्येक माह में कितने दिन होंगे, इसे समझने से पहले आपको दिनों के नाम व सप्ताह के बारे में बताते हैं-
हमारे ऋषि-मुनियों ने वैज्ञानिक गणना तथा सूर्य के महत्व को समझते हुये रविवार को ही सप्ताह का पहला दिन माना । उन्होंने यह भी आविष्कार किया कि सूर्य, शुक्र, बुधश्‍च, चन्द्र, शनि, गुरू तथा मंगल नामक सात ग्रह हैं । जो निरन्तर पृथ्वी की परिक्रमा करते रहते हैं और निश्‍चित अवधि पर सात दिन में प्रत्येक ग्रह एक निश्‍चित स्थान पर आता है । अतः इन ग्रहों के आधार पर ही सात दिनों के नाम रखे गये । सात दिनों के इस अन्तराल को सप्ताह कहा गया । इसमें दिन-रात शामिल हैं । ज्योतिषीय गणित की भाषा में दिन-रात को महोरात्र कहते हैं । यह चौबीस घंटे का होता है । एक घंटे की एक घेरा होती है । इसी ‘घेरा’ शब्द से अंग्रेजी का “ऑवर” शब्द बना है । प्रत्येक घेरा का स्वामी कोई ग्रह होता है । जैसा कि हमने ऊपर बताया है कि स्थूल ग्रह सात होते हैं और उन्हीं के नाम पर सात दिवस माने जाते हैं । सूर्योदय के समय जिस ग्रह की प्रथम घेरा होती हैं उसी के आधार पर उस दिन का नाम रखा गया है । इस प्रकार हमारा प्रथम दिवस रविवार से प्रारम्भ होकर सोमवार, मंगलवार, बुधवार, वृहस्परिवार, शुक्रवार तथा अन्तिम दिन शनिवार पर खत्म होता है ।
भारतीय ऋषि-मुनियों ने कालगणना का सूक्ष्मतम तक अध्ययन किया । इसके अनुसार दिन-रात के चौबीस घंटों को सात भागों में बांटा गया और एक भाग का नाम रखा ‘घटी” । इस प्रकार एक घटी हुई चौबीस मिनट के बराबर और एक घंटे में हुई ढाई घटी । इससे आगे बढ़ें तो एक घटी में साठ पल, एक पल में साठ विपल, एक विपल में साठ प्रतिफल ।
२४ घंटे = साठ घटी
१ घटी = साठ पल
१ पल = साठ विपल
१ विपल = साठ प्रतिपल
अगर हम कालगणना की बड़ी ईकाई का अध्ययन करें तो देखें-
२४ घंटे = एक दिन
३० दिन = एक माह
१२ माह = एक वर्ष
१० वर्ष = एक दशक
१० दशक = एक शताब्दी
१० शताब्दी = एक सहस्त्राब्दी
हजारों सालों को मिलाकर बनता है एक युग । युग चार होते हैं- जिनमें-
कलयुग = चार लाख बत्तीस हजार वर्ष ४३२००० वर्ष
द्वापर युग = आठ लाख चौंसठ हजार वर्ष ८६४०००
त्रेतायुग = बारह लाख छियानवे हजार वर्ष १२९६०००
सतयुग = सत्रह लाख अट्ठाईस हजार वर्ष १७२८०००
एक महायुग चारों युगों का योग = ४३२०.००० वर्ष
१००० महायुग = एक कल्प
एक कल्प को ब्रह्मा जी का एक दिन या एक रात मानते हैं । अर्थात ब्रह्मा जी का एक दिन व एक रात २००० महायुग के बराबर हुआ । हमारे शास्त्रों में ब्रह्मा जी की आयु १०० वर्ष मानी गयी है । इस प्रकार ब्रह्मा जी की आयु हमारे वर्ष के अनुसार ५१ नील, १० खरब, ४० अरब वर्ष होगी । वर्त्तमान में ब्रह्मा जी की आयु के ५१ वर्ष. एक माह, एक पक्ष के पहले दिन की कुछ घटिकायें व पल व्यतीत हो चुके हैं ।
समय की ईकाई का एक अन्य वर्णन भी हमारे ग्रन्थों में पाया जाता है-
१ निमेष = पलक झपकने का समय (न्यूनतम ईकाई)
२५ निमेष = एक काष्ठा
३० काष्ठा = एक कला
३० कला = एक मूहर्त
३० मूहर्त = एक अहोशत्र (रात व दिन मिलाकर)
१५ दिन व रात = पखवाड़ा या एक पक्ष
२ पक्ष = एक माह (कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष)
६ माह = एक अयन
२ अयन = एक वर्ष (दक्षिणायन व उत्तरायण)
४३ लाख बीस हजार वर्ष = एक पर्याय (कलयुग, द्वापर, त्रेता व सतयुग का योग)
७१ पर्याय = एक मन्वन्तर
१४ मन्वन्तर = एक कल्प
वर्तमान भारतीय मान्य गणना के अनुसार वर्ष में ३६५ दिन १५ घटी, २२ पल व ५३.८५०७२ विपल होते हैं । तथा चन्द्रगणना के आधार पर भारतीय महीना २९ दिन, १२ घंटे, ४४ मिनट व २७ सैकेन्ड का होता है । सौर गणना के अन्तर को बांटने के लिये अधिक तिथि और अधिक मास तथा विशेष स्थिति में क्षय की भी व्यवस्था की गई है । प्रत्येक तीसरे वर्ष अधिक मास का आवर्तन होता है । वास्तव में भारतीय गणना अतिसूक्ष्म है । उपरोक्‍त गणनाओं के अनुसार अभी सृष्टि के खत्म होने में ४ लाख २६ हजार ८६६ वर्ष, कुछ महीने, कुछ पक्ष कुछ सप्ताह, कुछ दिन, कुछ प्रहर, कुछ घटिकायें, कुछ पल व विपल बाकी हैं ।
हमारे ग्रन्थों की रचना करते समय भी ऋषि-मुनियों ने कालगणना के अनूठे गणित को गुप्त सूत्रों में पिरोने का प्रयास किया । शतपथ ब्राह्मण (१०/४२/२२/२५) के अनुसार ऋग्वेद में कुल ४३२०००० अक्षर हैं, जिनका योग महायुग के वर्ष के बराबर है । इनसे १२००० वृहदी छंद बनाये गये हैं । प्रत्येक छंद में ३६० अक्षर हैं ।
यजुर्वेद में ८००० तथा सामवेद में ४००० वृहदी छंदों का वर्णन है । इनका योग भी १२०० वृहती छंद तथा अक्षर ४३२०००० है । जब पंक्‍ति छंद ४० अक्षर का बनाते हैं तब छंद संख्या १०८०० होती है । एक वर्ष में ३६० दिन और एक दिन में ३० मुहुर्त होने से भी वर्ष में १०८०० मूहर्त बनते हैं ।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारतीय कैलेण्डर एवं कालगणना विश्‍व में सबसे प्राचीन एवं सूक्ष्मतम है ।
आभार-इस आलेख के लिये ब्रह्मा-पुराण, वैदिक सम्पत्ति (पं. रधुनन्दन शर्मा), कार्त्तवीर्यार्जुन पुराण, समयोपाख्यान (विलास गुप्ता) विरासत (डा. रवि शर्मा ) तथा शतपथ ब्राह्माण से तथ्यों का उल्लेख किया गया है ।
- डॉ. ए. कीर्तिवर्द्धन

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