जिन नियमों के आचरण एवं अनुष्ठान से इस लोक और परलोक में अभीष्ट सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, वही धर्म है । देवताओं के पूजन-अर्चन में मन की पवित्रता का भी विशेष महत्व है । कर्मपुराण में स्नान के बारे में कहा गया है कि यह दृष्ट और अदृष्ट फल प्रदान करनेवाला है । प्रातः स्नान करने से निःसंदेह अलक्ष्मी, बुरे स्वप्न और बुरे विचार तथा अन्य पाप नष्ट हो जाते हैं । सत्संग का मतलब है सत्य की संगति । सत्य की संगति परमात्मा के नाम और उनकी कथा के कहने और सुनने में होती है । सत्संग में भगवान की कथा कहने और सुनने वालों का मन एवं शरीर दिव्य तेज से प्रकाशित हो उठता है । कथा श्रवण से प्रभु की कृपा सहज सुलभ हो जाती है । श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि नियमित सत्संग और कथा श्रवण करने से भगवान अपने भक्तों के हदय में समा जाते हैं । धर्मशास्त्रों में भगवद कथाओं को आधिभौतिक, आधिदैविक और आधिदैहिक तापों को नष्ट करनेवाली कहा गया है । इन कथाओं का पुण्य फल मृत्यु के बाद ही नहीं बल्कि अगले जीवन में भी मिलता है । कथा श्रवण से निराश जीवन में भी आशा का संचार होता है ।
प्रख्यात आध्यात्मिक गुरू श्री रविशंकर कहते हैं- “जो संवेदनशील होते हैं, प्रायः वे कमजोर होते हैं । जो स्वयं को सबल समझते हैं वे प्रायः असंवेदनशील होते हैं । कुछ व्यक्ति स्वयं के प्रगति संवेदनशील होते हैं, पर औरों के प्रति नहीं । वहीं दूसरी ओर कुछ लोग दूसरों के प्रति संवेदनशील होते हैं, वे प्रायः दूसरों को दोष देते हैं । जो केवल अपने प्रति संवेदनशील होते हैं, वे स्वयं को असहाय और दीन समझते हैं । कुछ व्यक्ति इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि संवेदनशील होना ही नहीं चाहिए क्योंकि संवेदनशीलता पीड़ा लाती है । वे अपने आपको औरों से दूर रखने लगते हैं, परन्तु यदि तुम संवेदनशील नहीं हो तो तुम जीवन के अनेक सूक्ष्म अनुभवों को खो दोगे, जैसे अंतर्ज्ञान, सौन्दर्य और प्रेम का उल्लास । यह पथ और यह ज्ञान तुम्हें सबल और संवेदनशील बनाता है । असंवेदनशील व्यक्ति प्रायः अपनी कमजोरियों को नहीं पहचानते । दूसरी ओर जो संवेदनशील हैं, वे अपनी ताकत को नहीं पहचानते । उनकी संवेदनशीलता ही उनकी ताकत है । संवेदनशीलता अंतर्ज्ञान है, अनुकंपा है, प्रेम है । ”
रैलन कीलर के अनुसार- “प्रेम एक सुंदर और खुशबूदार फूल की तरह है जिसे हम ना छुएँ, तो भी उसकी खुशबू सारे वातावरण को सुंगधित बना देती है । ” किसी भी धर्म में हिंसा का स्थान नहीं है । आज सभी को संयुक्त प्रयास कर जीवन में समरसता, समृद्धि तथा भाईचारा बढ़ाने का बीड़ा उठाना चाहिए । आज हर व्यक्ति सुख चाहता है फिर भी उसे सुख शांति नहीं मिलती । एक आमधारणा है कि अच्छे काम क्यों करें? ईमानदारी से धन नहीं मिल सकता । हम चाहते हैं कि समाज में इस धारणा को बदला जाय तथा लोगों में यह जागृति फैले कि ईमानदारी से भी पैसा कमाया जा सकता है और सुख की प्राप्ति हो सकती है । हमारा हर व्यक्ति से भावनात्मक जुड़ाव हो तथा लोग समाज की प्रगति और आर्थिक उत्थान में काम करें । आपमें विश्वास हो और अच्छा सोचें तो आपसी रिश्ते खुद ब खुद सुधर जाएंगे । ईमानदार होने का एक फायदा यह भी है कि इससे व्यक्ति दुखी नहीं होता । ऐसी धारणा है कि अक्सर ईमानदार व्यक्ति दुखी और गरीब देखे जाते हैं और बेईमानी सुखी और धनवान । हमें इस धारणा को बदलना है और समाज में संदेश फैलाना है कि हमेशा सच्चाई और अच्छाई की राह पर चलने वालोंको ही सुख मिलता है ।
विश्व इतिहास में सबसे भयानक आर्थिक संकट के बाद इंटरनेशनल असोसिएशन फॉर ह्यूमैन वैल्यूज ने ‘बिजनेस में नैतिकता’ और मूल्यों की प्रासंगिकता पर विचार किया, जिसमें वर्ल्ड बैंक, माइक्रोसॉफ्ट कॉरपोरेशन, आध्यात्मिक नेता और दुनिया के शीर्षस्थ विद्वानों ने शिरकत की । श्री श्री रविशंकर जोर देते रहे हैं कि विकास के केन्द्र में मानवीय मूल्यों और नैतिकता को रखने की जरूरत है । हमने कम्युनिज्म की कमियाँ देख लीं, हम बेलगाम कैपिटलिज्म की नाकामी देख चुके हैं । अब समय एक नए इज्म- ह्यूमनिज्म या मानवतावाद का है । इस कॉन्फ्रैंस के जरिए दुनिया के युवाओं को स्थायित्व मुहैया कराने के बारे में अपना नजरिया बनाने का मौका मिला । खबर है कि सम्मेलन में १० देशों के २५ युवाओं ने हिस्सा लिया था । सम्मेलन को कॉरपोरेट में आध्यामिकता और सामाजिक जिम्मेदारी का भाव भरने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है । ऐसे आयोजन देश के हर कोने में होने की परम आवश्यकता है ।
- गोपाल प्रसाद
Monday, December 7, 2009
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