Monday, December 7, 2009

मतलब निकल गया मुद्दा फिसल गया

* स्विस बैंक में भारत का सबसे ज्यादा ७०,००००० करोड़ रूपया जमा है ।

बाबा रामदेव ने २००९ के आम चुनावों से पहले ही ये मुद्‌दा उठाया था कि स्विस बैंक में जो भारतीय पैसा जमा है उसे वापस लाया जाए, चाहे किसी की भी सरकार बने पैसा वापस लाने पर विचार विचार किया जाना चाहिए । आपको यकीन करना मुश्‍किल होगा, लेकिन यह सच है कि जिस देश की गिनती गरीब देशों में होती है उस देश की कुल ७०,००,००० करोड़ रूपये स्विस बैंक में जमा है । है ना माथे पर बल लाने वाली बात ।
इन ७०,००,००० करोड़ रू. में हमारे देश के गणमान्य नेतागण के पैसे भ्रष्ट आईए‍एस, आईपीएस, एवं अन्य अधिकारियों, उद्योगपतियों के पैसे जमा हैं । यह आंकड़ा स्विस बैंक ने जारी किया है । इतना ही नहीं हमारा देश इस मामले में सर्वोच्च शिखर पर भी विराजमान हैं ।
भारतीय लोगों के सबसे ज्यादा पैसे स्विस के बैंक में जमा है । स्विस बैंक में जमा पैसे में क्रमशः पाँच देश इस प्रकार हैंः-
१ * भारत = १४५६ बिलियन
२ * रूस = ४७० बिलियन
३ * यूके = ३९० बिलियन
४ * यूक्रेन = १०० बिलियन
५ * चीन = ९६ बिलियन
जब बाबा रामदेव ने इस मामले पर अपने वक्‍तव्य दिये थे तो बीजेपी ने इसे हाथों-हाथ लिया था और प्रधानमंत्री पद में बीजेपी उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जी२० देशों के समिट में जाने से पहले कहा था कि “मुझे भरोसा है कि प्रधानमंत्री इस मामले पर जरूर वहाँ पर पहल करेंगे ” । यह सचमुच एक बहुत बड़ा मामला है । अगर ये सारे पैसे वापस आ जाते हैं, तो जितने बेरोजगार आज सड़कों पर अपनी डिग्रियां लेकर घूमते-फिरते हैं, उन्हें उचित रोजगार प्राप्त हो जाएगा । देश के विकास में इस पैसे से कितने रोजगारोन्मुख कार्य किये जा सकेंगे । अभी हाल ही में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा है कि इस मुद्‌दे पर पहल की जा चुकी है । लेकिन सिर्फ पहल करने से कुछ नहीं होगा बल्कि एक ठोस कार्यवाई करने की जरूरत है ।
आज कंपनियां मंदी का बहाना बना कर जिन सेक्टरों में मंदी नहीं है । वाजिब दक्षताप्राप्त लोगों को नौकरियां नहीं दे रही हैं । लोग डिग्रीयां लेकर मारे-मारे फिर रहे हैं । अगर ये पैसा भारत आ जाए तो मंदी का भूत तो यूं ही गायब हो जाएगा । इन पैसों से एक ऐसा हब तैयार किया जाए जहाँ जरूरतमंदों को नौकरियां उपलब्ध कराई जायें । लेकिन सवाल उठता है कि क्या सरकार उचित पबिश बनाकर ऐसा कर पायेगी । क्या सरकार इस मामले में सकारात्मकता दिखा पायेगी । नहीं दिखा पायेगी तो उन भूखें-नंगे बच्चों का क्या होगा? उन युवाओं का क्या होगा जो दर-दर की ठोकरें खाते फिर रहे हैं सिर्फ दो पैसे के लिए ताकी वो अपना पेट पाल सकें । अगर एक मिनट के लिए हम मान लें कि इस पैसे से नौकरियों का सृजन नहीं किया जा सकता तो केवल पूरे देश के महानगरों में फैले झुग्गियों का तो सफाया हो ही सकता है ना ।
लेकिन वहीं एक प्रश्न तो विराजमान है कि पैसे लाएगा कौन? बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा? क्या मनमोहन सरकार बड़े-बड़े ताकतवर इन दौलत के दानवों का दमन करके पैसे वापस ला पायेगी? क्या भूखे-नंगों को रोटियां मिलेंगी? अगर हाँ तो कब............................
साभार: आईए एन. एस. ,(जी मधु) , वर्ड प्रेस. कॉम)



[लेकिन वहीं एक प्रश्न तो विराजमान है कि पैसे लाएगा कौन? बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा? क्या मनमोहन सरकार बड़े-बड़े ताकतवर इन दौलत के दानवों का दमन करके पैसे वापस ला पायेगी? क्या भूखे-नंगों को रोटियां मिलेंगी? अगर हाँ तो कब............................]

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