आये दिन दुनिया की समाप्ति एवं प्रलय की भविष्यवाणियाँ तो लोगों के मन में भय व्याप्त करती रहती हैं, पिछले दिनों २०१२ में दुनिया समाप्ति की खबर से लोगों के मन में डर तो बना ही हुआ है साथ ही समय-समय पर प्राकृतिक आपदाओं को लोग २०१२ की भविष्यवाणी से जोड़ कर देखने लगे हैं और भयग्रस्त हो गये हैं।
वैसे ऋग्वेद व पुराणों के अनुसार सौर-मंडल के किसी भी ग्रह पर जीवन की उत्पत्ति से प्रलय तक के समय को चार युगों में बाँटा गया है । पहला युग सतयुग जिसकी आयु १७,२८००० वर्ष मानी गयी है । इसके बाद त्रेतायुग की आयु १२,९६०००वर्ष मानी गयी है और उसके बाद द्वापर युग की आयु ८,६४००० वर्ष मानी गयी है और द्वापर युग के भगवान कृष्ण का जन्म लगभग ५००० वर्ष पूर्व हुआ था और पौराणिक कहानी के अनुसार युधिष्ठिर के पोते राजा परीक्षित के समय से कलयुग प्रारम्भ हुआ । इस प्रकार पौराणिक कथा के और ऋग्वेद के अनुसार भी अभी ४,२५००० वर्ष कलयुग के शेष हैं । जहाँ तक दुनिया की समाप्ति की भविष्यवाणियाँ हैं तो मैं एक बात बहुत ही मजबूती से कहना चाहूंगा की अभी पृथ्वी के कई हजार वर्ष शेष हैं । इसे समझने के लिए हमें अपने सौर-मण्डल का संक्षिप्त रूप समझना होगा । हमारे सौर -मण्डल में सूर्य के चारों ओर एक निश्चित कक्षा में भ्रमण करने वाले नौ ग्रहों के साथ-साथ उनके उपग्रह भी हैं । ये सभी ग्रह सूर्य के ही अंग हैं । जो सूर्य की अक्षीय गति से अन्तः-आणविक ऊर्जा के ह्रास के कारण अस्तित्व में आये हैं । सूर्य तथा अन्य ग्रहों के मध्य कार्यरत अभिकेन्द्रीय बल एवं अपने सौर मण्डल के बाहर से कार्यरत उत्केन्द्रीय बल के कारण ये सभी अपने अक्ष पर भ्रमण करते हैं । एक सौर-मंडल में एक समय में सिर्फ एक ही ग्रह पर जीवन संभव है जो कि वर्तमान पृथ्वीय कक्षा में है । इसी कक्षा में वे सभी कारक मौजूद हैं जो जीवन के लिए आवश्यक हैं, जैसे ऑक्सीजन, तापमान, जीवद्रव्य, ओजोन की परत, जल आदि । पृथ्वी की कक्षा से बाहर का तापमान इतना कम है वहाँ जीवन संभव नही है इसी तरह बुद्ध तथा शुक्र ग्रह पर तापमान इतना अधिक है जो जीवन के लिए उपयुक्त नहीं है । लेकिन यह पृथ्वी के निरन्तर अक्षीय गति से ह्रास अन्तरा आणविक ऊर्जा के कारण सूर्य और पृथ्वी के बीच कार्यरत अभिकेन्द्रीय बल धीरे-धीरे कमजोर हो रहा है और सौर मण्डल के बाहर से कार्यरत उत्केन्द्रीय बल मजबूत हो रहा है जिससे पृथ्वी अपनी कक्षा से धीरे-धीरे बाहरी कक्षा की ओर खिसक रही है । यही स्थिति हमारी पृथ्वी को धीरे-धीरे जीवन के अनुकूल वातावरण की समाप्ति की ओर ले जा रही है और यही प्रक्रिया हमारे सौर मण्डल में विद्यमान सभी ग्रहों के बीच कार्यरत है । इसी उपरोक्त सौर मण्डल की निश्चित प्रक्रिया के तहत आज से काफी समय पूर्व कभी मंगल भी पृथ्वी वाले कक्षा में भ्रमण करता था । और तब मंगल पर भी जीवन विद्यमान था लेकिन समय के साथ उस अभिकेन्द्रीय बल के सापेक्ष उत्केन्द्रीय बल का मजबूत होने के कारण मंगल मिलकर अपने वर्तमान कक्षा में भ्रमण कर रहा है जिससे उस पर तापमान घटने से जीवन की समाप्ति हुई । इसी प्रक्रिया के तहत पृथ्वी पर जीवन की समाप्ति उसकी सूर्य से अभिकेन्द्रीय बल के धीरे-धीरे कमजोर होने के कारण और सूर्यसे दूरी बढ़ने एवं उस पर तापमान की कमी के कारण ही संभव है जिसे होने में अभी कई लाख वर्ष शेष हैं ।
क्योंकि पृथ्वी की समाप्ति के लिए दो बात लिखित रूप से वैज्ञानिक आधार पर होना चाहिए । पहला यह कि पृथ्वी की अक्षीय गति से ह्रास अन्तरा आणविक ऊर्जा से पृथ्वी की आणविक सह-संजन बल का कमजोर होना, दूसरा इसके द्वारा एक और दूसरे उपग्रह की उत्पत्ति तभी पृथ्वी की एक बहुत बड़े हिस्से की समाप्ति एवं भौगोलिक परिवर्तन होना और इसमें अभी कम से कम लाखों वर्ष लग सकते हैं, क्योंकि अभी पृथ्वी आन्तरिक सह संजन बल काफी मजबूत है । यह बात अलग है कि हमारे सौर मंडल में ९ ग्रहों में तीन-तीन ग्रहों का समूह है जो तीन अलग प्रकृति को सन्तुलित करते हैं । यह तीनों क्रमशः अग्नि, वायु एवं ठंडा (बर्फ) प्रकृति प्रतिनिधित्व करते हैं और ग्रहों के सन्तुलित संयोग से इन प्रवृत्तियों में सन्तुलन बना रहता है, जिससे वातावरण या प्रकृति संतुलित रहती है, परन्तु हर ९ वर्ष में ग्रहों की आपसी संयोग और स्थिति से किसी एक प्रकृति की प्रबलता बढ़ती है । इसमें उपरोक्त सारी बातें एक साथ कार्य करती हैं, जिससे बीच-बीच में प्रकृति का सन्तुलन बनता-बिगड़ता रहता है । इसे प्रलय का अनुमान लगाना गलत होगा ।
इस प्रकार उपरोक्त बातें यह सुनिश्चित करती हैं कि पृथ्वी पर जीवन की समाप्ति धीरे-धीरे तापमान घटने से होगी । परन्तु अभी पृथ्वी पर काफी तापमान है । जहाँ तक पृथ्वी फटने की बात है तो आज से हजारों वर्ष पूर्व पृथ्वी पर सूखा पड़ा, पृथ्वी फटना आम बात थी यह प्रक्रियायें ज्यादा होती थीं, क्योंकि तब पृथ्वी का तापमान ज्यादा था । लेकिन हम आधुनिकता एवं भौतिकता के कारण ज्यादा कमजोर हो गये हैं और छोटी-छोटी प्राकृतिक आपदाओं से सशंकित हो गये हैं । इस प्रकार मैं कहना चाहूंगा कि घबराने की कोई बात नहीं है यह सब ग्रहों की असन्तुलित स्थिति के कारण प्राकृतिक घटना है ।
कृष्ण गोपाल मिश्रा
Monday, December 7, 2009
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