आज मानवता को जोड़नेवाली शिक्षा की आवश्यकता है । एकलव्य ने कभी विद्यालय में औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की किन्तु वे आगे बढ़े । लगन और निष्ठा ही लोगों को शिखर तक पहुँचाता है । शिक्षकों को चाहिए कि माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों से मित्रवत् व्यवहार करें न कि प्राथमिक विद्यालय के विद्यार्थियों की तरह । आज हम न तो पुरानी परंपरा को छोड़ रहे हैं और न आधुनिक को पकड़ रहे हैं । बीच मंझधार में फँस गए हैं । छिपी प्रतिभा जागृत करने के प्रयास को हर संभव सहायता दी जानी चाहिए । हम केवल किताबी शिक्षा से अच्छे नागरिक नहीं बन सकते । इसके लिए जरूरी है कि एकलव्य की तरह मूर्ति बनाकर शिक्षा ग्रहण की जाय । इसके लिए शिक्षक के साथ-साथ अभिभावकों का भी दायित्व है कि बच्चों को उसके अनुरूप ढ़ालें । परिवार ही बच्चों की प्रथम पाठशाला होती है । आज समय के अनुसार शिक्षा पद्धति में भी बदलाव की आवश्यकता है । मैकाले की शिक्षा पद्धति का अनुकरण कर हम विद्यार्थियों के सर्वागीण विकास की कल्पना को साकर नहीं कर सकते हैं । मानव उत्थान संकल्प संस्थान के विजय कुमार झा आर्य के अनुसार भारत देश के नागरिक होने के नाते हमें अपनी राष्ट्रभाषा का शुद्ध ज्ञान होना ही चाहिए । आप अपनी मातृभाषा और राष्ट्रभाषा के प्रति कितने आस्थावान् और कितनी सीमा तक इसके ज्ञाता है, इस विषय पर हुए सर्वेक्षण में अधिकांश विद्यार्थियों के संतोषजनक परिणाम नहीं निकले । क्या यही हमारी शिक्षा व्यवस्था है जो हमारी भारतीय सभ्यता, संस्कृति, साहित्य और लिपि से विद्यार्थियों को अलग कर रही है । एक प्रकाशक होने के नाते हमने विद्यार्थियों से अशुद्धि निकालो प्रतियोगिता के बहाने जनजागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं । सरकारी संस्थाओं में इच्छाशक्ति के अभाव होने के कारण एवं अफसरों के अंग्रेजी परस्त होने के कारण हिंदी की दुर्गति हो रही है । उनके संस्थान द्वारा “राष्ट्रभाषा पोषक पुरस्कार वितरण योजना चलाई जा रही है जो विद्यार्थियों की भारतीय संस्कृति एवं भाषा का ज्ञान कराएगी । आज गुरूकुल शिक्षा पद्धति की महत्ता पर चिंतन की आवश्यकता है । क्या कारण है कि वर्त्तमान शिक्षा पद्धति से निराशा, अपराध और कुंठा की भावना पनप रही है ? आज ऐसी शिक्षा पद्धति की आवश्यकता है जो गुरूकुल परंपरा के मानदंड के मुताबिक हो, उसमें आधुनिक तकनीक एवं रोजगारपरक ज्ञान का भी समावेश हो ।
पिछली संप्रग सरकार के कार्यकाल के दौरान ज्ञान आयोग का गठन किया गया था । इसका अध्यक्ष सैम पित्रोदा को बनाया गया । इस आयोग ने भारत को एक ज्ञान आधारित देश बनाने के लिए कई सिफारिशें दी हैं, लेकिन इन सिफारिशों पर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी है । एक या दो साल ९ प्रतिशत की विकास दर हासिल कर लेना बहुत अधिक मुश्किल नहीं है, लेकिन अगर हमें चीन की तर्ज लंबे समय तक दो अंकों की विकास दर हासिल करनी है तो शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में बहुत अधिक काम करना होगा । मौजूद शिक्षा प्रणाली की खामियां जगजाहिर है । ऐसे में शिक्षा के उदेश्य और उस तक पहुंचने की राह को एक बार फिर परिभाषित करना होगा । प्रथामिक स्तर पर शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव की जरूरत है । यह सही है कि शिक्षा क्षेत्र पर खर्च बढ़ाने की जरूरत है, लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि सरकार प्राथमिक शिक्षा पर आज कितना खर्च कर रही है, बेहतर प्रबंधन के जरिए उतनी ही राशि खर्च कर कई गुना बेहतर परिणाम हासिल किए जा सकते हैं । उम्मीद है कि मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल के दौरान इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति देखने को मिलेंगी । दरअसल यह दूसरा कार्यकाल ही इतिहास में मनमोहन सिंह के स्थान को तय करेगा । उम्मीद है कि हमारे प्रधानमंत्री इस चुनौती पर खरे उतरेंगे । वैसे प्रधानमंत्री ने शुरूआती दिनों में १०० दिनों के एजेंडे पर काफी जोर दिया है । हालांकि कहा जा रहा है कि इस पर काम शुरू हो गया है, अब देखते हैं कि इसके कैसे नतीजे सामने आते हैं और शिक्षा के लिए कौन सी नई पहल संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार कर पाती है ।
Friday, June 26, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment
I EXPECT YOUR COMMENT. IF YOU FEEL THIS BLOG IS GOOD THEN YOU MUST FORWARD IN YOUR CIRCLE.