Friday, June 26, 2009

आधी आबादी युवाओं की फिर भी संसद बूढ़ी क्यों?

पिछले लोकसभा चुनाव में सभी दलों के मुख्य केन्द्र बिंदु में ‘युवा जगत’ ही था । सभी दलों ने युवाओं को लुभाने हेतु प्रयास शुरू कर दिए थे परन्तु कांग्रेस ने प्रभावी रूप से युवाओं को तवज्जो देकर उसकी भूख को और अधिक बढ़ा दिया । वास्तव में युवा शक्‍ति में वह दम है कि वो जिसे चाहे उसे शीर्ष पर पहुँचा दे । एक सर्वेक्षण के अनुसार ७१.४ करोड़ मतदाताओं में २०-२२ % मतदाता २५ वर्ष से कम आयु के हैं २१ करोड़ मतदाता तो १८ से ३५ साल के बीच के हैं । सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि ४ करोड़ मतदाताओं ने पहली बार मतदान किया । कांग्रेस और भाजपा को मिले वोटों का अंतर १ करोड़ ७५ लाख था और इन्हीं नए मतदाताओं का रूझान निर्णायक रहा । कांग्रेस बसपा और भाजपा में युवा होने का मानदंड भी अलग-अलग ही था । कांग्रेस एवं बसपा की नजर में युवा का मतलब ४० साल तक की उम्र थी तो भाजपा की नजर में ५० साल तक थी । भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी के अनुसार युवा का मतलब २०-२५ साल के लोग ही नहीं है । कांग्रेस प्रवक्‍ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पहले ही कहा था कि “कांग्रेस के पास युवा कार्यकर्त्ता ब्लॉक से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के हैं जो अन्य पार्टी की तुलना से अधिक है । युवा कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तँवर के अनुसार पिछली लोकसभा में भी ज्यादातर युवा सांसद कांग्रेस से ही चुनकर आए थे । हालाँकि भाजपा के युवा मोर्चा अध्यक्ष अमित ठक्‍कर कहते हैं कि अब युवा सिर्फ समस्या नहीं, समाधान भी जानते हैं तथा खुद नेतृत्व करने में विश्‍वास करते हैं । उन्हें पूरा यकीन था कि भाजपा लोकसभा चुनाव में युवाओं को पूरी अहमियत देगी परन्तु पार्टी के ऐसा नहीं करने के कारण ह्रास का सामना करना पड़ा । यूथ फॉर इक्वलिटी के अध्यक्ष कौशलकांत मिश्रा को पूर्व में ही आशंका थी कि अन्य बार की तरह इस बार भी सभी पार्टियाँ युवाओं को नेतृत्व करने की बजाय समर्थक एवं कार्यकर्त्ता की भूमिका में ही रखना चाहती है । परिणाम से स्पष्ट हो चुका है कि युवा शक्‍ति की आकांक्षाएँ परवान पर हैं । अब वह वर्त्तमान व्यवस्था से आजिज हो चुका है तथा अब बदलाव चाहता है । इस कारण उसे अब लगता है कि पुराने लोगों से व्यवस्था में परिवर्तन की बात बेमानी है । व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन के बिना विकास नहीं हो सकता है । इतिहास गवाह है कि देश में सभी क्रांतियों में युवाओं की ही भूमिका महत्वपूर्ण रही है । जेपी ने संपूर्ण क्रांति का जो शंखनाद किया था, अब ठीक वैसी ही स्थिति बनने जा रही है । वास्तव में पुराने, नकारे एवं बिना जनाधार वाले घाघ राजनीतिज्ञ यह कभी नहीं चाहेंगे कि उनकी जगह कम अनुभव वाले आज के युवा नेताओं को रखकर बराबरी का दर्जा दे दिया जाय । कितने आश्‍चर्य का विषय है कि सत्तालोलुपता एवं हठधर्मिता के कारण देश में युवाओं की आधी से अधिक आबादी के बावजूद लोकसभा में चुनकर आने वाले सांसदों की औसत उम्र बढ़ती जा रही है । पहली लोकसभा में जहाँ सांसदों की औसत उम्र ४६.५ वर्ष थी वहीं वर्तमान लोकसभा में सांसदों की औसत उम्र ५२.६३ वर्ष है । पहली लोकसभा में जहाँ सर्वाधिक युवा सांसद थे वहीं १३ वीं लोकसभा में सबसे उम्रदराज सांसद थे । १३ वीं लोकसभा में सांसदों की औसत आयु ५५.५ वर्ष थी । दूसरी लोकसभा में सांसदों की औसत उम्र पहली लोकसभा की तुलना में थोड़ी बढ़ गई । दूसरी लोकसभा में सांसदों की औसत उम्र ४६.७ वर्ष हो गई । तीसरी लोकसभा का गठन १९६२ में हुआ तथा उस दौरान सांसदों की औसत उम्र ४९.४ वर्ष हो गई । १९६७ में गठित चौथी लोकसभा में सांसदों की औसत आयु में थोड़ी गिरावट आई । इस दौरान सांसदों की औसत आयु ४८.७ साल थी । इसी समय कांग्रेस में विभाजन हुआ था और मोरारजी देसाई ने इंदिरा गांधी के खिलाफ बगावत कर दी थी । १९७१ में पाँचवीं लोकसभा का गठन हुआ और इंदिरा गांधी पुनः सत्तासीन हुईं । पाँचवीं लोकसभा में सांसदों की औसत आयु४९.२ वर्ष हो गई । छठी लोकसभा में सांसदों की औसत आयु पहली पहली बार ५० साल से ऊपर हो गई, जबकि इसी समय युवाओं ने इंदिरा गाँधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के खिलाफ जनांदोलन किया था । वर्ष १९८० के इस चुनाव में इंदिरा गाँधी सत्ता में आई । यह लोकसभा पहले की तुलना में अपेक्षाकृत युवा थी । इस लोकसभा में सांसदों की औसत आयु ४९.९ वर्ष थी । आठवीं लोकसभा ने देश को राजीव गाँधी के रूप में सबसे युवा प्रधानमंत्री दिया लेकिन निचला सदन उतना युवा नहीं था । आठवीं लोकसभा में सांसदों की औसत उम्र ५१.४ साल थी । नौवीं और दसवींलोकसभा में सांसदों की औसत आयु ५० साल से अधिक रही । नौवीं लोकसभा में सांसदों की औसत आयु ५१.३ वर्ष थी तो दसवीं लोकसभा में ५१.४ वर्ष थी ।
वंशक युवाओं को टिकट देने में प्राथमिकता नहीं दी गई, लेकिन कांग्रेस और भाजपा दोनों की नजरें युवा मतदाताओं पर लगी थी तथा दोनों पार्टियाँ युवाशक्‍ति को वेबसाईट लांच करने के बाद भाजपा की आक्रामकता बढ़ती ही रही । शुरू में युवाओं के शिक्षित वर्ग में आडवाणी की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा था। अपनी नौकरी और आवश्यक कार्य को छोड़कर समर्पित कार्यकर्त्ता स्वयंसेवी रूप में भाजपा के आईटी विजन को अपना कीमती वक्‍त दे रहे थे । इन्हीं कारणों से भाजपा ने अपने आईटी विजन में एक करोड़ युवाओं को केवल दस हजार रूपए में लैपटॉप देने तथा एक अरब लोगोंको स्मार्ट फोन देने के लुभावने वादे कर चुकी थी । कांग्रेस भी युवा मतदाताओं को अपने पक्ष में करने हेतु पीछे नहीं रही । राहुल युवा शक्‍ति को जगाने का कार्य कर रहे थे और कांग्रेस अपने घोषणापत्र में “नेशनल यूथ कॉर्प्स” बनाने का वादा कर चुकी थी जिसके अनुसार प्रस्ताव यह था कि सरकार बनी तो १८-२३ वर्ष के युवाओं को स्वयंसेवी आधार पर दो वर्षों के लिए राष्ट्रनिर्माण की गतिविधियों से जोड़ने की बात कही गई । स्पष्ट है कि राष्ट्रभक्‍ति के बहाने लक्षित कर १७ करोड़ युवाओं को (जिनकी उम्र ३० वर्षों से कम है) अपना समर्थक, बनाने का प्रयास था । राहुल के यंग इंडिया अभियान’ के कारण ही युवा कांग्रेस में जोरों-शोरों से भर्ती चली । एक अनुमान के अनुसार युवा कांग्रेस की सदस्यता का जलवा ऐसा रहा कि पंजाब में आँकड़ा ३ लाख २३ हजार और गुजरात में तो ५ लाख को भी पार कर गई ।
विशेषज्ञों के अनुसार भारत की राजनीतिक व्यवस्था में युवा और महिला जैसी श्रेणियों का वर्गीकरण नहीं किया गया है । अक्सर राजनीतिक पार्टियाँ धर्म या जाति को देखते हुए अपने फैसले लेती हैं । यहाँ प्रमुख तथ्य मानसिकता में अभी तक बदलाव नहीं आने की भी है । लोग व्यवस्था से इतने आजिज हो चुके हैं कि इस तरह संकल्प ले लें कि हमने सबको परख लिया इस बार युवा उम्मीदवार को परखना है तो फिर देखिए कि बदलाव की हवा किस तरह से बहती है । अधिकांश पार्टियों में युवा जगत को लेकर परिणाम के बाद चिंता सताती है परंतु परिणाम से पूर्व इस महत्वपूर्ण बिंदु पर निर्णय लेना नहीं सुहाता है । वे धनाड्‍य, बाहुबली एवं जातिवादी उम्मीदवारों को तरजीह देती है । सभी महत्वपूर्ण फैसले हाईकमान द्वारा लिए जाते हैं । वे पार्टी में दूसरा युवा ध्रुव बनने ही नहीं देना चाहते हैं । राजनीतिक पार्टियों की इस चालबाजी को युवा वर्ग भलीभाँति समझ चुका है और अब वह आक्रामक निर्णय लेने की मुद्रा में है । दिल्ली में दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री स्व० साहिब सिंह वर्मा पुत्र प्रवेश वर्मा की उपेक्षा करने का परिणाम भाजपा देख चुकी है । भाजपा के चिंतन एवं समीक्षा बैठकों में यह बात स्पष्ट रूप से सामने आई है कि युवाओं को पर्याप्त तरजीह न देकर पार्टी ने गलती की है और इसको तत्काल सुधारने हेतु अब संगठन से युवाओं को जोड़ा जाएगा । ऐसा लगता है कि विभिन्‍न राज्यों में होनेवाले आगामी विधानसभा चुनावों में सभी पार्टियां युवा जगत को नजर‍अंदाज नहीं कर पाएंगी ।
यह एक कड़वा सच है कि राजनीतिक पार्टियों और पुराने नेताओं के नीयत में ही खोट है, क्योंकि वे बात तो करते हैं कि युवाओं को आगे लाया जाय परंतु वास्तविक रूप में वे इसे परिणत नहीं करते । इस तथ्य के पीछे दो संभावित कारण हो सकते हैं । पहला चरण यह है कि निर्णय के ऐन वक्‍त धन बल, बाहुबल, वंशवाद तथा संबंधों को निभाने की गरज से युवाओं की उपेक्षा कर दी जाती है । दूसरा कारण यह हो सकता है कि पार्टी में दूसरी पंक्‍ति के युवा नेताओं की घोर कमी हो । आज भी युवाओं में कैरियर के प्रति सजगता देखी जा रही है । वे आई०ए०एस, आईपीएस, इंजीनियर, डॉक्टर, प्रोफेसर आदि बनना चाहते हैं परन्तु ऐसे युवाओं की संख्या काफी कम है जो राष्ट्रसेवा के रूप में राजनीति को अपना कैरियर बनाने को इच्छुक हो । ऐसा लगता है कि वही युवा राजनीति में उतर रहे हैं जिन्हें विरासत में ही राजनीति मिली है या वे कहीं और अपना कैरियर नहीं देख पा रहे हों । दोनों ही स्थिति में राष्ट्रसेवा और कल्याण की भावना निहित नहीं हो सकती है । करूणानिधि को पुत्र और पुत्रियों के अलावा और कोई युवा पार्टी में दिखाई ही नहीं दे सकती है । लालू, पासवान और मुलायम जैसे राजनीतिज्ञों को भी वंशवादी विचारधारा के अलावा सोंचने की फुरसत नहीं है । युवा मतदाता दुनिया को संदेश दे रहे हैं कि भारत अब जवान हो रहा है । इसी जवानी के कारण हम २०२० के सपनों के भारत की परिकल्पना कर रहे हैं । देश के युवाओं की रंगों में जवान खून दौड़ रहा है । इसी जवान खून ने तय कर दिया कि युवाओं की उपेक्षा अब बर्दाश्‍त नहीं की जाएगी । आज भी संसद के भीतर युवा शक्‍ति के स्थान पर ओल्ड इज गोल्ड का फॉर्मूला ही हिट हो रहा है । आज स्थिति ऐसी है कि युवाओं के समक्ष प्रौढ़ या बुजुर्ग नेताओं को ही चुनने का विकल्प है । उत्तरप्रदेश से भाजपा के सबसे कम उम्र की लालगंज से उम्मीदवार नीलम सोनकर (३६ वर्ष) एवं वरूण गाँधी पीलीभीत रहे । उत्तराखंड मेंअजय टम्टा (३७) और यूकेडी के राजकुमार (३३) तथा हिमाचल प्रदेश में भाजपा के ३५ वर्षीय अनुराग ठाकुर और पंजाब में फरीदकोट से ३२ वर्ष के कांग्रेस प्रत्याशी सुखदेव सिंह डैनी, “युवा शक्‍ति” के ध्वजवाहक रहे हैं ।
१५ वीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के २५-३५ आयु समूह के ५.८८% (१२) सांसद तथा भाजपा के ४.३% (५) सांसद चुनकर आए हैं । कांग्रेस के लिए एक सबल पक्ष है कि लक्षद्वीप से जीते सांसद मोहम्मद हमतुल्लाह सबसे कम उम्र (२६) साल के हैं । मौसम नूर और नीलेश नारायण राणे तथा एनसीपी की अगाथा संगमा (जो पी० ए० संगमा की पुत्री हैं) राष्ट्रीय लोकदल की सारिका सिंह, माकपा से प० बंगाल के बाँकुरा में जन्मी विष्णुपुर (सु०) से जीती सुष्मिता बौरी, एम० बी० राजेश (पलक्‍कड़, केरल) और पी० के० बीज (३४) अलाथूर, केरल से निर्वाचित हैं ।

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