Friday, June 26, 2009

युवाओं की नजर में भाजपा के हार का कारण

भाजपा समर्थक युवा अब आडवाणी से अपनी बेबाक राय वेबसाईट के माध्यम से प्रस्तुत कर रहे हैं । वे कहते हैं कि “हमें जवाब चाहिए” । युवा वर्ग की नाराजगी और निराशा लालकृष्ण आडवाणी की वेबसाईट www.lkadvani.in पर स्पष्ट रूप से झलक रही है । भाजपा के युवा समर्थक न केवल सवाल पूछ रहे हैं बल्कि आगे की रणनीति सोच-समझकर बनाने की सलाह भी दे रहे हैं जिससे आगे फिर ऐसी हार का सामना न करना पड़े । लोकसभा चुनावों की घोषणा के बाद लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी वेबसाईट बनाई थी, जिसमें उनके कार्यक्रमों के अतिरिक्‍त उनके विचार, मुद्‌दे एवं भाषणों का रिकॉर्ड था । इसमें समर्थकों का फोरम भी बनाया गया था जिससे ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जोड़ा जा सके । अब यही समर्थक वेबसाईट पर उनसे पूछ रहे हैं कि क्यो ऐसी गलतियाँ की गईं जिसकी वजह से हमारी हार हुई । भाजपा के छात्र संगठन एबीवीपी और युवा मोर्चा ने कथित रूप से चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं लिया । असंतोषजनक एवं प्रभावी रणनीति के अभाव के कारण हुई हार के चलते बीजेपी के समर्थक इंटरनेट उपभोक्‍ताओं में जबर्दस्त गुस्सा है । मध्यप्रदेश में तो शिवराजसिंह मंत्रिमंडल के सदस्य भी हार का ठीकरा आडवाणी के सर फोड़ रहे हैं । वे कहते हैं कि आडवाणी के प्रचार का इसलिए फायदा नहीं मिला क्योंकि आडवाणी में कोई आकर्षण ही नहीं था । कुछ युवाओं के अनुसार भाजपा पर आर० एस० एस० का प्रभाव जब तक रहेगा हम हारते रहेंगे । कुछ युवाओं ने टिकट में युवाओं की उपेक्षा, न्यूक्लियर डील का विरोध तथा जनसरोकार की भावना को वोटों में तब्दील करने हेतु रणनीति के अभाव को ही हार का कारण बताया । देश का युवा वर्ग रोजगार और विकास चाहता है । उसे हिंदुत्व, सांप्रदायिकता, धर्मनिरपेक्षता से ज्यादा पहले अपने पेट और मूलभूत सुविधाओं की चिंता है । इसमें जो पार्टी आगे रहेगी वही विजयश्री हासिल करेगी । १९७८ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा नेतृत्व ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को छात्र संगठन को राजनीति की मुख्यधारा से अलग कर दिया था । अस्सी के दशक में जनता विद्यार्थी मोर्चा (जेवीएम) की आवश्यकता अब पुनः महसूस की जा रही है । १९८० में दिल्ली वि० वि० चुनाव में जीत हासिल करनेवाले जेवीएम के सदस्य रहे दिल्ली के पूर्व विधायक विजय जॉली के अनुसार एबीवीपी की भूमिका गैर राजनीतिक होने से भाजपा में सीधे युवा खून नहीं आ पा रहा है । पार्टी २०-२२ वर्ष से कम उम्र के युवाओं को आकर्षित करने में विफल रही है क्योंकि उन्हें भाजपा में कोई सीधी भूमिका या हस्तक्षेप करने का मौका नहीं दिया जाता है । १९८१ में जेवीएम से छात्रसंघ चुनाव जीत चुके सुधांशु मित्तल कहते हैं, कि छात्र जीवन से ही जुड़े रहने वाला व्यक्‍ति समर्पित कार्यकर्त्ता साबित होता है जबकि बाद में जुड़नेवालों की प्रतिबद्धता अपेक्षाकृत उतनी नहीं होती हैं । इसलिए राजनैतिक संगठनों में छात्रों को सीधे प्रवेश का मौका दिया जाना चाहिए । हालात यह हैं कि भाजपा ने अपनों के हमलों के प्रत्युत्तर में फिलहाल शांत बैठना ही श्रेष्यकर समझा है । युवाओं ने कहा, कि चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा नेताओं के मुँह पर कोई मधुरता और मानवीय संवेदना का पुट नहीं होना तथा अरूण जेटली, राजनाथ सिंह विवाद खत्म नहीं होना एवं धारदार, शालीन जवाब देने की तैयारी भी हार के प्रमुख कारणों में से एक रहा । युवाओं की चाहत है कि आगामी चुनाव में उसे भरपूर टिकट सकारात्मक एवं विकासपरक राजनीति को बढ़ावा देकर ही भाजपा को मजबूती दी जाए ।

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