Friday, June 26, 2009

युवा शक्ति ने ली अंगडाई

युवा भारत ने एक बार फिर अंगड़ाई ली है । इतिहास गवाह है कि त्याग, बलिदान और जन आंदोलनों ने अंग्रेजी शासन की चूलें हिला दीं । असंख्य नवयुवकों एवं युवतियों ने फाँसी के फंदों को चूम लिया, गोलियाँ खाईं, जेलों में यातनाएँ सहीं, तब कहीं जाकर भारत की स्वतंत्रता का सपना साकार हुआ और लोकतंत्र की स्थापना भारतीय गणतंत्र के रूप में हुई । आजादी के बाद से लगातार देश की नैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना का अवमूल्यन होता जा रहा है । अधिकांश राजनैतिक दलों का उदय अवसान, अंतर्कलह, स्वार्थ की बढ़ती हुई भावना, जाति, धर्म, प्रांत, भाषा आदि देश की जड़ों को खोखला कर रहे हैं । भ्रष्टाचार और आतंकवाद अपना पाँव पसारते जा रहा है । बाहुबली सत्ता पर हावी होने के लिए जी तोड़ प्रयास कर रहे हैं । बोहरा समिति, बोल्कर समिति, बंसल समिति की रिपोर्टो ने यह सिद्ध कर दिया है कि राजनेताओं के अपराधियों से गठबंधन के कारण लोकतंत्र दिशाहीन होकर पतन की ओर जाने को तैयार है । विभिन्‍न घोटालों, बमकांडों, हत्याओं ने देश के नैतिक चरित्र की ऐसी तस्वीर प्रस्तुत की है जिससे लोगों को सोचने के लिए विवश होना पड़ रहा है कि आगे आनेवाला भविष्य कैसा होगा ? पहले राजनीतिकरण किया जाने लगा । स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह कतिपय उचित नहीं । चिंता के कारण चिंतन हुआ और जनजागरण एवं मीडीया की सक्रियता की वजह से वर्तमान लोकसभा ने अच्छे लक्षण दिखाए । बाहुबलियों, धनकुबेरों एवं निठल्ले नेताओं की जगह युवाओं को ज्यादा चांस मिला।
क्या यह वही देश है, जहाँ अनेक अवतारों ने राष्ट्र को गरिमा प्रदान की थी ? जहाँ ऋषि-मुनियों ने आचरण और ज्ञान के संदेश बिखेरे थे, जहाँ झाँसी की रानी ने विदेशियों के छक्‍के छुड़ाए थे जहाँ भगत सिंह, सुखदेव, खुदीराम बोस, अशफाक फाँसी पर झूले थे चंद्रशेखर आजाद ने अपनी कनपट्‌टी पर स्वयं गोली दागकर फिरंगियों के हाथ न आने का संकल्प पूरा किया था, जहाँ गाँधी और नेहरू ने स्वराज्य की नींव डाली थी । देश के निरंतर परिवर्तन के दौर से गुजरते हुए घटनाक्रम को देखकर विचार करना पड़ रहा है कि अब हमें विदेशी आक्रमणकारियों से ज्यादा खतरा अपने जयचंदों, भ्रष्टाचारियों एवं दागी नेताओं से है । देश की प्रतिभा ऊर्जा और स्वस्थ अभिव्यक्‍ति की रक्षा के लिए हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर निरंतर परिवर्तनशील मूल्यों की रक्षा हेतु सामूहिक सहयोग का संकल्प लें । बुजुर्गों एवं अनुभवीजनों से आग्रह है कि युवा शक्‍ति को मार्गदर्शन देकर सकारात्मकता एवं स्वस्थ परंपरा को कायम रखने का दृष्टिकोण देकर आलोकित करें । समय दर्पण के जुलाई अंक को ‘युवा शक्‍ति ” विशेषांक के रूप में प्रकाशित करने का हमारा निर्णय कितना कारगर हुआ, यह तो आप सुधी पाठजन ही हमें बताएंगे । हम तो इतना ही कहेंगे कि -------
.... सशक्‍त युवा शक्‍ति, सशक्‍त भारत ! ......

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