Friday, June 26, 2009

युवा मानसिकता के नायक राहुल गाँधी

वर्तमान में हुए जनमत सर्वेक्षण के अनुसार भारत की अधिकांश जनता ने राहुल गाँधी को भविष्य का प्रधानमंत्री बताया है । लोगों का बहुमत यह मान चुका है कि आने वाले समय में उन्हीं के हाथ में देश की बागडोर होगी । देश के युवाओं को राहुल से बहुत उम्मीदें हैं । कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने पर युवा पीढ़ी राहुल को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होते देखना चाहती थी, परन्तु समाज के बुद्धिजीवी वर्ग और वरिष्ठ नागरिकों की नजर में राहुल के लिए प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने का अनुकूल समय नहीं था । वरिष्ठ सलाहकारों ने उनका अभी प्रधानमंत्री बनना कांग्रेस के लिए ठीक नहीं बताया होगा परंतु यह ध्रुवसत्य है कि १६ वीं लोकसभामें वे कांग्रेस के विजेता नायक बनकर उभरेंगे और प्रधानमंत्री पद की चुनौती को स्वीकार करेंगे । १५ वीं लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस को जनता का मजबूत समर्थन और जनाधार मिला है । सर्वेक्षण से स्पष्ट हो चुका है कि कांग्रेस ने राहुल को युवाओं में भुनाकर जो सफलता अर्जित की है, वही सफलता पाने हेतु वह आगे भी बेकरार हैं । कांग्रेस की आगामी रणनीति में युवा मानसिकता को राहुल शैली में परोसकर आगामी विधानसभा चुनावों में विजयश्री हासिल करना है ।
बेशक बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग गठबंधन को लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित सफलता मिली हो लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस के इस उभरते नेता के प्रति लोगों में गजब का आकर्षण है । उत्तरप्रदेश में अपना जलवा दिखाने के बाद वे बिहार में भी काफी लोकप्रिय हो चुके हैं । राहुल उत्तरप्रदेश के साथ-साथ बिहार को भी अपने रंग में रंग देने को आतुर हैं । वे अतिशीघ्र हिंदी पट्टी वाले राज्यों में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं । धुन के पक्‍के इस युवा नेता की रणनीति को समझ पाना इतना आसान भी नहीं है । अपने मिशन की जीत के लिए वे सदैव समानांतर और आंतरिक व्यवस्था को तरजीह देते हैं । युवा रणनीतिकारों के बलबूते वे सदैव अच्छे परिणाम पाते रहे हैं । उनकी सोंच, दर्शन, दृष्टि और रणनीति में गहरा संबंध है । राहुल चमचागिरी नहीं बल्कि जुझारू एवं कर्मठ कार्यकर्त्ताओं को संगठन से जोड़ने एवं आगे लाने का कार्य किया है । युवा नेताओं में जोश एवं उत्साह भरने के अच्छे परिणाम सामने आए हैं । दर‍असल युवा मानसिकता हमेशा कुछ नया और बदलाव चाहती है । राहुल ने युवाओं, महिलाओं, दलितों, के वास्तविक समस्याओं को करीब से देखने एवं मरहम लगाने में अपनी ऊर्जा लगाई थी, जिसका सुखद परिणाम सामने आया । हर वर्ग ने इस युवा नेता की बात को सुना, समझा तथा अधिकांश लोगों को लगा कि यह तो मेरे दिल की बात कर रहा है । राहुल ने अपने विभिन्‍न मंचों से शालीनता के साथ विपक्षियों के हर आरोपों को कुंद कर दिया, साथ ही जरूरत पड़ने पर प्रतिद्वंद्वियों की तारीफ भी की । बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कार्यशैली की प्रशंसा के पीछे कई छुपे तथ्य भी हैं ।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के युवा महासचिव विगत लोकसभा चुनाव में स्टार प्रचारक बनकर उभरे । वे ३७ दिनों में २६ राज्यों में १२४ रैलियों में गए । राहुल ने चुनाव प्रचार में युवा शक्‍ति, संयुक्‍त विकास, गरीबों के सशक्‍तिकरण, आतंकवाद और साम्प्रदायिकता के खिलाफ राष्ट्रीय एकता जैसे महत्वपूर्ण मुद्‌दों को आधार बनाया । राहुल के प्रशंसकों एवं युवा कांग्रेस के कार्यकर्त्ताओं ने राहुल गाँधी का मुखौटा पहनकर विभिन्‍न इलाकों में चुनाव प्रचार-प्रसार किया । युवा पीढ़ी के बीच इसका अच्छा संदेश गया । पश्‍चिम बंगाल सहित अन्य राज्य में कार्य कर्त्तागण राज्य के अलग-अलग हिस्सों में जाकर विकास का संदेश प्रवाहित किया। राहुल ने अपने पदाधिकारियों एवं कार्यकर्त्ताओं को चुनाव प्रबंधन एवं जीतने की कला जैसे विषय पर भी प्रशिक्षित किया । अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के चुनावी पद्धति एवं जीतने की रणनीति से वे काफी प्रभावित रहे हैं । अपने अनुभव को अपने से जुड़े लोगों में शेयर किया ।
संसद के केन्द्रीय कक्ष में वे अक्सर अपने युवा साथियों मिलिंद देवड़ा, सचिन पायलट, नवीन जिंदल, प्रदीप जैन, आदित्य, ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ अक्सर बातचीत में मशगूल रहते हैं । स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने संबोधन में राहुल के नेतृत्व की सराहना करते हुए कहा कि भारत के युवाओं ने राहुल से प्रेरणा लेकर कांग्रेस को बड़ी सफलता दिलाई है । कांग्रेस के अधिकांश युवा नेता राहुल की राजनीति को किसी एक मंत्रालय तक सीमित नहीं रखने के पक्षधर थे । युवा सांसदगण राहुल को एक राजनैतिक शक्‍ति के रूप में देखना चाहते हैं न कि एक मंत्री के रूप में । यही सोंचकर राहुल ने मंत्रिमंडल में फिलहाल शामिल नहीं होने का निर्णय लिया । उन्होंने संगठन को ज्यादा तरजीह दिया, जिसका असर आगे जरूर दिखेगा । राहुल की तेजतर्रार मुहिम से नकारे एवं बिना जनाधारवाले नेताओं तथा सेवा किए बगैर फल पाने के आकांक्षी नेताओं की नींद उड़ गई है । कांग्रेस पार्टी के महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने कहा कि “ इस चुनाव ने देश को राहुल गाँधी के रूप में युवा नेता दे दिया है । ”
पंजाब के आनंदपुर साहिब से जीतकर आए खनीत सिंह बिट्ट (जो पंजाब यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष के साथ-साथ राहुल की राजनीतिक प्रयोगशाला से जुड़े हैं) ने कहा कि हमें राहुल गाँधी के कारण ही यह मौका मिला है और अब मैं पार्टी के लिए जी-तोड़ मेहनत करूँगा ।
देश के विभिन्‍न भागों में राहुल के ताबड़तोड़ दौरे की तह में जाएँ तो पता लगता है कि मनमोहन सिंह के आर्थिक व्यवस्था के दुष्परिणाम को राहुल ने बखूबी भाँप लिया है । एक तरफ जहाँ प्रधानमंत्री की अर्थव्यवस्था एवं योजनाएँ वास्तविक स्वरूप में परिलक्षित नहीं हुई हैं और आम आदमी व्यथित था, के ऊपर राहुल ने सांत्वना और अपनापन का मरहम लगाने का पुनीत कार्य किया है । राहुल अपनी पैनी नजर से अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव एवं लाभ-हानि को बखूबी समझना चाहते हैं । वे जानते हैं कि भारतीय परिदृश्य में कोई भी व्यवस्था कितनी कारगर हो सकती है । राहुल अपने पिता के नक्शेकदम पर चल रहे हैं । अपने विभिन्‍न भाषणों में वे अपने पिताश्री स्व० राजीव गाँधी की दूरदृष्टि का जिक्र भी कर चुके हैं । उत्तरप्रदेश के अमेठी संसदीय सीट से तीन लाख ३१ हजार मतों के अंतर से जीतनेवाले राहुल कहते हैंकि “मेरी सबसे बड़ी प्राथमिकता देश में एक गरीब समर्थक युवा संगठन का विकास करना है । मैं नहीं समझता कि मुझमें अभी देश का प्रधानमंत्री बनने के लायक अनुभव है । ” उनके इस बयान से निश्‍चित रूप से यह लगता है कि उनमें दूरदृष्टि तो है परन्तु दम्भ नहीं परन्तु दूसरी ओर उनकी बहन प्रियंका गाँधी बढेरा ने अपने हर संबोधन में राहुल को सक्षम प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश किया । राहुल ने अपने विभिन्‍न भाषणों में कहा था कि “यदि कांग्रेस सत्ता में आई तो वह रोजगार पैदा करने तथा शिक्षा का स्तर बेहतर करने में ध्यान लगाएगी, ताकि भारत मजबूत देश बन सके । ”
राहुल जानते हैं कि दिल्ली की प्रदेश सरकार एवं केंद्र में भी कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद वास्तविक लाभुकों को उसका हक नहीं मिल पाता है । एक ईमानदार नेता की तरह वे इस सच को स्वीकार करने में कतई संकोच नहीं करते हैं । सहानुभूति पाने का तरीका कोई राहुल से सीखे । राहुल कहते हैं- “ मेरे पिता ने कहा था कि केंद्र से अगर एक रूपया भेजा जाता है तो जनता तक केवल १५ पैसे ही पहुँचते हैं, लेकिन आज के हालात में एक रूपए में से सिर्फ पाँच पैसे ही पहुँच पा रहे हैं ।
मनमोहन सिंह और राहुल की कार्यशैली एवं सोंच एक दूसरे के विपरीत है । जहाँ मनमोहन अपने अर्थव्यवस्था के बलबूते समाज एवं राष्ट्र की मजबूती चाहते हैं, वहीं राहुल देश के भीतर बढ़ रहे असंतोष और चौड़ी होती खाई को पाटना चाहते हैं । दोनों के दृष्टिकोण में भिन्‍नता है । जहाँ मनमोहन की कार्यशैली में बुद्धिमत्ता एवं अनुभव झलकता है वहाँ राहुल युवा मन के उद्वेग, दलितों की आंतरिक वेदना, किसानों के आत्महत्या जैसे महत्वपूर्ण कारणों को ढूँढने एवं उसके स्थायी समाधान हेतु तत्पर हैं । राहुल विकास पर आधारित, न्याय और सुशासन चाहते हैं जहाँ कोई भूखा, नंगा न हो । मंडल-कमंडल के बलबूते राजनीति करनेवालों ने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि राहुल की इस राजनीति को इतनी अप्रत्याशित सफलता मिलेगी । राहुल के निशाने पर मुख्यतः अलोकतांत्रित व्यवस्था रही है । राहुल समझ चुके हैं कि मनमोहन अर्थव्यवस्था से चमक -दमक आ सकती है, अमीर और अधिक अमीर हो सकते हैं परन्तु जरूरतमंदों को उसका वास्तविक हक नहीं मिलनेवाला । इसलिए राहुल ने समस्या का समाधान सहकारिता, सहभागिता एवं केन्द्रीय योजनाएँ (जैसे नरेगा) को और अधिक प्रभावी बनाने पर जोर दिया । वे बदलाव के पक्षधर रहे हैं । अभी तो वे राजनीति के घड़ियालों, हेलों, डायनासोरों, एवं गिद्धों को जानने पहचानने में लगे हैं । वे सीख रहे हैं कि गठबंधन के दौर में सौदेबाजियों से कैसे जूझना पड़ता है । दर‍असल राहुल के दबाव में ही कांग्रेस ने कुछ राज्यों में इस बार ‘एकला चलो रे” की रणनीति अपनाई जो पूरी तरह से सफल रही और कांग्रेस को अपनी शक्‍ति का आभास हुआ ।
पिछले वर्षों में युवा सांसद राहुल गाँधी ने संयुक्‍त राष्ट्रसंघ में काफी प्रभावशाली भाषण दिया । राहुल मानवाधिकार जैसे मुद्‌दे पर धाराप्रवाह बोले । ऐतिहासिक तथ्यों का हवाला देते हुए राहुल गाँधी ने वर्ष १९९३ की वियना संधि का भी जिक्र किया । राहुल ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से आह्वान कर कहा कि आतंकवाद से लड़ने हेतु सभी को एकजुट होना पड़ेगा । उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इधर-उधर के रास्ते तलाशने के बजाय हमें अतिवाद और आतंकवाद को किसी भी तरह खत्म करना होगा क्योंकि यही हमारी (मानव जाति की) स्वतंत्रता में सबसे बड़ी बाधा है । उन्होंने कहा इससे संयुक्‍त राष्ट्रसंघ के इस संदर्भ में किये जा रहे प्रयासों की सराहना की लेकिन कहा कि अभी इस दिशा में हम ठोस कदम उठाने में असफल रहे हैं तथा मानवाधिकार के मामले में दोहरे मापदंड न अपनाए जायं । उन्होंने कहा कि किसी भी देश का विकास सामाजिक न्याय और लोकतांत्रित मूल्यों को संरक्षित किए बिना नहीं हो सकता है ।
राहुल उन सभी फार्मूलों को अपनाना चाहते हैं जिससे युवाओं का सपना साकार हो सके । सरकारी पैसा आम-जन तक बिना रोक-टोक के पहुँचाने की मजबूत व्यवस्था बनाने के इच्छुक हैं राहुल इसके लिए उन्हें नौकरशाही एवं बाबुओं की लटकानेवाली शैली से निजात पाने की रणनीतिक चातुर्य दिखाना अभी बाकी है । उनकी नजर में सामाजिक बदलाव के बयार तभी आ सकती है जब समग्र विकास की धारा बहे, उपेक्षितों को मुख्यधारा से जोड़ा जाय एवं युवाओं को रोजगारोन्मुखी कार्यक्रमों से जोड़कर स्वावलंबी बनाया जाना चाहिए । बेशक यह मुश्किल कार्य है, परन्तु असंभव नहीं । वर्तमान जनादेश मनमोहन की कार्यपद्धति एवं अर्थव्यवस्था को नहीं मिला है । राहुल ने बहुत नजदीक से मंदी का दौर, बेकारी, असमानता एवं आर्थिक कुंठा को दूर करने हेतु मरहम का जो फिलॉसफी तैयार किया, शायद भारतीय अवाम को रास आ गया । समाज के अंदर गुटों, वर्गों, धर्मो, एवं तबकों के विभेदों को राहुल ने अच्छी तरीके से अपनी शैली में पड़ताल किया है ।
कहावत है “जब-जब संवेदनशीलता होती है तो युद्ध होता है । ” राहुल ने अपने जीवन में इस मर्म को समझ लिया है । अब राहुल का वास्तविक परिचय राहुल गांधी नहीं बल्कि संवेदनशील राहुल गांधी होगा । कलावती के दुःखों को जानना उसके यहाँ खाना और रात बिताना इसी की कड़ी है । राहुल को वर्ग विभेद की असमानता दूर करने के लिए अभी काफी प्रयास करने हैं जिसमें अपराधियों को राजनीति से दूर करने, सामंतवादी व्यवस्था का उन्मूलन, भूमि सुधार तथा पारदर्शी एवं त्वरित न्याय व्यवस्था जैसे दूरगामी फैसले लेने हैं, यह तो फिलहाल समय के गर्भ में है परन्तु यह अक्षरशः सत्य है कि सोनिया गाँधी द्वारा राहुल को बिहार, उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की विजयपताका फहराने की जिम्मेवारी सौंप दी है, जिससे बसपा, सपा, भाजपा जैसे राजनीतिक दल चिंतित हैं । सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह ने तो राहुल के विकल्प के रूप में अपने पुत्र अखिलेश यादव को उत्तरप्रदेश का अध्यक्ष बना भी दिया है । भाजपा ने भी मेनका गाँधी के बेटे वरूण गाँधी को आगे बढ़ाया । उत्तरप्रदेश में सलमान खर्शीद और दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस को आगे बढ़ाने के लिए जो प्रयास किए थे, उसमें राहुल की भागीदारी ने नई जान फूँक दी । जनता को प्रभावित करने हेतु राहुल गाँधी धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहे हैं और लोग उनमें एक सुलझे हुए स्वच्छ नेता की छवि देख रहे हैं ।
वैसे राहुल को माँ के रूप में तो गुरू मिला ही हुआ है । इसके बावजूद अगर वे युवाओं को जो भूख जगाया है, नहीं मिटा पाए तो लेने के देने पड़ सकते हैं । दूसरी बात यह भी है कि उनके कारण खार खाए नेतागण क्या बैठे रहेंगे । वे तो जड़ में मिट्टी डालने का कार्य करेंगे ही । उन्हें यहीं पर अपने कदम फूँक-फूँक कर रखने की आवश्यकता है । वे विदेशी संस्कृति में पले-बढे हैं, अतः आशंका है कि वे भारतीय सभ्यता-संस्कृति और रणनीति को आत्मसात्‌ करने में चूक न पाएँ । उन्हें अपनी सुरक्षा के प्रति भी सजग रहकर सबों को साथ लेकर चलने की नीति अपनाना चाहिए । अपनी कथनी को करनी में बदलकर ही वे भारतीय जनता की आकांक्षाओं को पूरा कर सकते हैं । उन्हें अपने साफ-सुथरे छवि का ख्याल रखने के साथ-साथ विवादास्पद मामलों में सावधानीपूर्वक कदम बढ़ाए जाने की आवश्यकता है । इस बार की जीत को स्थायी जीत के रूप में परिणत करने हेतु उन्हें नए फॉर्मूले गढ़ने होंगे । प्रतिद्वंदी विपक्ष एवं बुजुर्गों के समान में कोताही उन्हें भारी पड़ सकती है ।

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