Friday, June 26, 2009

संकल्प की सार्थकता

आज तेज रफ्तार वाली भागदौड़ की जिंदगी ने हर इंसान को इतना व्यस्त बना दिया है कि पूरी दिनचर्या का मशीनीकरण हो गया है । प्रतियोगिता के युग में आज हर कोई एक दूसरे से आगे निकल जाने के लिए उतावला हो रहा है । पारस्परिक प्रतिद्वन्दिता की तीव्र भावना की वजह से युवा वर्ग असमंजस की सी स्थिति में आ गया है । क्या करें, क्या न करे ? एक ओर रोजगार की व्यापक संभावनाएँ बढ़ी है तो दूसरी ओर युवा वर्ग आज कुछ और कल कुछ, प्रत्येक क्षण अपने उदेश्य के प्रति उदासीन देखा जा सकता है । पूर्ण सफलता प्राप्त करने में वह अपने को असहाय सा महसूस करता है । ऐसी स्थिति में हम अपने कैरियर की नौका, लहरोंके हवाले तो नहीं कर रहे ?
आज ‘यदि’ ,किन्तु और ‘परन्तु’ का समय नहीं है । समय है हमें अपने लक्ष्य या उदेश्य के प्रति समर्पित होने का । संकल्प यह होना चाहिए इसे, मैं करूँगा । कार्लाइल ने कहा था कि “आपने जीवन का एक लक्ष्य बनाओ और उसके बाद अपनी सारी शारीरिक और मानसिक शक्‍ति को उसमें लगा दो । जब तक अपनी संकल्प शक्‍ति को किसी एक काम में केन्द्रित नहीं करेंगे तो एकाग्रता नहीं आएगी । सुकरात ने सच ही कहा था कि चित्त की चंचलता से कार्य न कभी सिद्ध हुआ है और ना हो सकता है । कुछ भी करने के लिए हमें मन को एकाग्र करना होता है । उसे एक ओर लगाना होता है । जब वह एक ओर लगता है तो हम केन्द्रित होते हैं । तब जाकर आप कुछ सार्थक कर पाते हैं । मन अगर काबू में नहीं है तो आप केन्द्रित हो ही नहीं सकते और बिना केन्द्रित हुए कोई काम नहीं हो सकता ।
दृढ निश्‍चय होता है तो मूर्छा टूट जाती है और जागरूकता बढ़ जाती है । जागरूकता से वर्तमान में जीने का, कुछ करने का सूत्र उपलब्ध हो जाता है, वह सूत्र होता है संकल्प । कार्य सिद्धि संकल्प पर निर्भर होती है न कि साधनों की सम्पन्‍नता पर । वक्‍त की माँग है कि सफलता प्राप्त करने के लिए ऐसे सकंल्पकृत रहे कि जैसे अपना जीवन उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ही है । तभी संकल्प की सार्थकता है । मंजिलें उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है । सिर्फ पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान भरी जाती है । हौसले बुलन्द हों और मन में कुछ कर गुजरने की दृढ़ इच्छा हो तो मंजिल खुद व खुद कदम चूम लेती है ।

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