Friday, June 26, 2009

पापा कब आएँगे ?

अब मेरे पिता इस दुनियाँ में नहीं रहे परन्तु मैं स्वयं तीन बच्चों का पिता बन चुका हूँ । अपने सभी भाई-बहनों में बड़े होने के कारण मुझे सबसे ज्यादा प्यार मिला । मेरी जरा सी तबियत खराब होने पर मेरे पिता सबसे ज्यादा चिंतित हो जाया करते थे । उन्हें मेरे खाने, पहनने घूमने-फिरने तथा शिक्षा-दीक्षा की सर्वाधिक चिंता थी । मां में अगाध प्रेम एवं ममता थी तो पिता में पितृत्व भाव, संवेदना एवं, सीख देने का भाव था । चूँकि वे प्राइवेट ट्‌यूशन करते थे इसलिए सभी ट्‌यूशनों में हमें भी साथ ही रखकर पढ़ाते थे । इस तरह एक औसत विद्यार्थी होने के बावजूद भी मैं अपनी कक्षा में प्रथम आता रहा । वे हमेशा मुझे लेखन प्रतियोगिता छात्रवृत्ति परीक्षा एवं विद्यालय की परीक्षा हेतु तैयारी करवाते रहते थे । पढ़ाने के लिए वे सुबह ४ बजे ही उठा दिया करते थे । नींद आने पर वे मेरी उंगली लालटेन से सटा देते थे । नींद तो टूट जाती थी पर उस वक्‍त अपने पिता के प्रति एक कसाई की भावना बन जाती थी । कभी-कभी वे मुझे दूसरों की शिकायतों में आकर बेवजह मेरी पिटाई करने लगते थे । शुरू में मुझे काफी पीड़ा हुई परंतु बाद में मुझे अहसास हुआ कि वे मुझे शिक्षित , संस्कारी और आदर्श व्यक्‍ति बनाना चाहते थे । उनका प्यार अनुशासन से लबरेज था । मैंने उनके साथ विभिन्‍न कार्यक्रमों, सत्संगों, प्रवचनों एवं पर्यटन का आनन्द उठाया । वे अक्सर मुझे लद्युकथा, प्रेरक प्रसंग एवं सारगर्भित तथ्यों से अवगत कराते रहते थे । कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण मेरी शिक्षा-दीक्षा ज्यादा नहीं हो सकी परन्तु मैंने प्रण किया कि मैं भी अपने पिता की तरह उनसे बहतर पिता बन कर दिखाऊँगा उनके विचार, मूल्य और आदर्श आज भी हमारे लिए प्रेरणास्त्रोत की तरह है । मैं उन्हें अब भी अपने मन के करीब ही पाता हूँ । अपने पिता से मैंने संकल्प लिया था कि एकदिन मैं बड़ा व्यक्‍ति बनकर दिखाऊँगा । आज वो मेरे बीच नहीं है परन्तु मेरी संकल्पशक्‍ति मे कमी नहीं आई है । वे अक्सर मुझसे कहा करते थे कि जो गलतियाँ मैने की उनसे तुम सीख लो । अपने पिता द्वारा दिए गए मूलमंत्रों को अपने जीवनशैली में उतारने की कोशिश आज में कर रहा हूँ । मेरा सपना है है कि मेरे बच्चों को एक ऐसा पिता मिले जिस पर वह गर्व कर सके । मेरा मानना है कि हर पिता को अपने बच्चे से कुछ पाने का सपना देखने के बजाय उसको पूर्ण तैयार करने हेतु अपना योगदान देना चाहिए । पिता का प्यार और माँ की ममता के पूर्ण स्वरूप से ही बच्चों का नैतिक विकास हो पाता है । कहावत है कि माँ का प्यार अंधा परन्तु पिता का प्यार आँख वाला होता है ।
ऑफिस में भी मुझे अपने बच्चों की याद आती है । मस्तिष्क के एक कल्पना का चित्रण होने लगता है । ऑफिस से लौटने पर पत्‍नी अक्सर कहती है कि बीमार बच्चे अक्सर अपने पिता का नाम लेते रहते हैं खासकर मेरा छोटा बेटा सुकांत सुयश पूछता रहता है कि “पापा कब आऐंगे ?” मेरी पत्‍नी की शिकायत रहती है कि मेरे इतनी सेवा के बावजूद भी ये बच्चे आपके प्रति ईमानदार और समर्पित क्यों रहते हैं ? मेरा उत्तर होता है कि इसका कारण मेरा बच्चों के प्रति सबसे ज्यादा सजग होना और उसके आवश्यकताओं की पूर्ति करना हैं । बचपन में मेरी आदतों का प्रभाव आज मेरे बच्चों पर भी हुई जिसका वैज्ञानिक कारण है । हाँ इतना जरूर है कि आज मेरे बच्चे जितने तेज, चंचल, और जिज्ञासु हैं उतना मैं बचपन में नही था । शायद इसका कारण टीवी, मीडीया और इंटरनेट है । आज सामर्थ्य से मैं अपनों बच्चों को जो सुविधा और साधन उपलब्ध करा पा रहा हूँ उतना मुझे अपने बचपन में नहीं मिल सका । आज मेरा पितृत्व जाग उठा है और मुझसे कहने लगा है कि युग के साथ बदलाव लाओ, तुम्हें जो नहीं प्राप्त हो सका, उसका दंड नए पीढ़ी को क्यों ? इसलिए मेरे मन के कोने में एक विचार उठता है कि पिता की जिम्मेदारियाँ कितनी कठिन है, बचपन कितना सुंदर और अनमोल था । वर्तमान मे कोई मुझसे पिता के बारे में अपना अनुभव पूछे तो मैं इतना ही कहूँगा कि “पिता महान होते हैं । यह समझने में उम्र निकल जाती है और जब वाकई समझ में आता है कि पिताजी ही सही थे, तब तक काफी देर हो चुकी होती है । ” मैं आपके समक्ष पितृप्रेम का एक प्रसंग पेश करा हूँ । “एक व्यक्‍ति अपनी गाड़ी को पॉलिश कर रहा था । उसी समय उसके चार वर्षीय पुत्र ने एक पत्थर उठाया और कार पर लकीरें खींचने लगा । व्यक्‍ति ने गुस्से में बच्चे के हाथ पर कई बार मारा । वह भूल गया कि उसके हाथ में एक पेचकस था । नतीजतन बच्चे ने अपनी सारी उंगलियाँ कई फ्रैक्चर होने के कारण खोदी । घर आकर व्यक्ति ने पत्थरों के निशान को देखा, बच्चे ने लिखा था ‘आई लव यू डैड!

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