Friday, June 26, 2009

कुछ भी शुद्ध नहीं है दिल्ली में

दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित लाख घोषणाएँ करें मगर सच्चाई यही है कि दिल्ली में मूलभूत आवश्यकताओं हेतु जनता बेबस है । सरकार की हवा हवाई घोषणाएँ धरातल पर कार्य नहीं कर रही है एवं सरकार अपने मंत्रीमंडल की सुविधाएँ बढ़ाने हेतु प्रतिबद्ध है । उन्हें जनसमस्याओं को नजदीक से देखने की फुरसत नहीं है । उदाहरण स्वरूप दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने सैंपल जाँच के बाद ५१ जगहों के पानी को इस्तेमाल के लिए अनफिट बताए जाने के बावजूद लोग गंदा पानी पी रहे हैं और डायरिया- कॉलरा जैसी बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं । दिल्ली के अधिकांश अस्पतालों में मरीजों की बढ़ती संख्या को देखकर इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है । अस्पतालों में पूरी दवा तक उपलब्ध नहीं है । कॉमनवेल्थ गेम की तैयारी में सरकार इस कदर उलझ चुकी है कि उसे दिल्ली वासियों की वर्त्तमान समस्याओं से कोई लेना देना नहीं रह गया है । मुख्यमंत्री एमसीडी, डीडीए, दिल्ली पुलिस को अपने कब्जे की रट लगाने की आड़ में संवेदनशून्य हो चुकी है ।
दिल्ली मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार डॉ० गिरीश त्यागी के अनुसार -
"दिल्ली में कुछ भी शुद्ध नहीं है । शुद्ध वायु और पानी का अभाव तो है ही, अब तो खाद्य पदार्थ भी मिलावटी हो चले हैं । बच्चों के पीने के लिए दूध तक शुद्ध नहीं है, खाना बनाने के लिए शुद्ध तेल और घी मिलना मुश्किल है । इस सबका कारणा प्रभावी सरकार तंत्र का न होना है । मिलावटखोरों को पकड़ने के लिए सरकार ने दस्ता जरूर बना रखा है, लेकिन उसमें एक तो कर्मचारियों की कमी है और दूसरी यह दस्ता निष्क्रिय है । दिल्ली में खाद्य अपमिश्रण विभाग स्वास्थ्य विभाग के तहत आता है । इस विभाग में एक इंस्पेक्टर को कम से कम २० नमूने एक ही महीने में लेने चाहिए । इस नियम का भी पालन नहीं हो रहा है । सरकार को इस बारे में कड़ा कदम उठाना चाहिए । पर्व-त्यौहार के आसपास एकाध दुकानों पर छापेमारी कर यह दस्ता अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है । होना तो यह चाहिए कि सरकार हर जोन में निअगरानी समिति का गठन करे और उन्हें सातों दिन और २४ घंटे सक्रिय रहने का निर्देश दे । जिस भी दुकान से मिलावट की सूचना आ रही हो वहां तत्काल छापेमारी हो और तत्काल ही उसका पंजीकरण भी रद्द हो । मिलावटखोरों के खिलाफ कानून भी काफी ढीले हैं, जिसकी वजह से इनका हौसला बढ़ता है । अगर मिलावटखोरों को कड़ी से कड़ी सजा मिले तो इस पर रोक लग सकती है । सजा मिलने पर दूसरों में भी इसका संदेश जाएगा । फिर मिलावटी वस्तुओं को बेचने से पहले लोग दस बार सोचेंगे । मिलावटखोरों को सिर्फ अपने मुनाफे की फ्रिक होती है । आम जनता के सेहत से उनका कोई लेना-देना नहीं होता है । मिलावटी वस्तुएं हमारे ह्‍दय से लेकर लीवर व किडनी तक खराब कर देती है । यह एक ऐसा अपराध है, जिससे एक-दो व्यक्‍त्ति नहीं, बल्कि पूरा समाज प्रभावित होता है । इसे रोकना सरकार की नैतिक और कानूनी जिमेदारी है, जिससे वह बच नहीं सकती है ।"
दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य अधिकारी डॉ० राकेश कुमार कहते हैं कि-"प्रभावशाली लोग और प्रभावशाली देश, दोनों कानून और मानवता से खुद को ऊपर समझते हैं । दिल्ली में पहुंचे स्वाइन फ्लू के वायरस एच१ एन१ ने दोनों के इस मानसिकता को उजागर कर दिया है । दिल्ली का एक उद्यमी और उसकी मां को जब एच१ एन१ ने जकड़ा तो उन्होंने खुद को कानून से ऊपर समझते हुए नोडल अस्पताल में इलाज कराने की जगह अपने फॉर्म हाउस में रहना उचित समझा । एच१ एन१ के लिए राममनोहर लोहिया अस्पताल को नोडल अस्पताल बनाया गया, लेकिन वह उद्यमी सरकारी अस्पताल के नाम से ही नाक-भौं सिकोड़ने लगा । उसकी शेखी की वजह से एच१ एन१ का वायरस और भी लोगों को संक्रमित कर सकता था । यह एक व्यक्‍ति से दूसरे व्यक्‍ति में फैलने वाला बीमारी है, इसलिए यह महामारी का रूप भी ले सकता था । लेकिन इसकी उसे परवाह ही कहां थी । धन की ऐंठन ने उसे आम लोगों से दूर जो कर दिया है ।"
यही हाल प्रभावशाली देश अमेरिका का है । जब भी विकासशील और तीसरी दुनिया के देशों में कोई बीमारी फैलती है तो अमेरिका यूरोपीय देशों को अपने साथ करते हुए उस देश को अलग-थलग करने की कोशिश करता है । मदद पहुंचाने के नाम पर वह एक प्रपंच रचता है, जिसमें पीड़ित देश दया का पात्र होकर रह जाता है । वर्षों से अफ्रीकी और एशियाई देशों के साथ उसने यही किया है । आज भारत में एच१ एन१ वायरस का प्रवेश द्वार अमेरिका ही बना हुआ है । भारत में बीमारी लेकर आने वाले अधिकांश लोग अमेरिका से ही आ रहे हैं । आज अमेरिका खुद को अलग-थलग करने की जगह फिर से दुनिया को नसीहत दे रहा है । वह अपने देशों के नागरिकों के लिए निर्देश जारी करने से अधिक दूसरे देशों के लिए निर्देश जारी कर रहा है । सच तो यह है कि किसी भी तरह के कायदे का पालन सिर्फ गरीबी और तीसरी दुनिया के देशों के लिए ही रह गया है ।

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