Friday, June 26, 2009

जिनका उदेश्य है - “वेद प्रचार ”

प्राचीन संस्कृति पर हो रहे कुठाराघात तथा धर्मान्तरण को रोकते हुए दलितों और असहायों को सुरक्षा प्रदान करने हेतु जनजागरूकता के उदेश्य से ३ जुलाई से २४ जुलाई २००९ के मध्य दिल्ली से कोलकाता “वेद प्रचार रथयात्रा- २००९” (श्रीमद्‌दयानन्द वेदार्ष महाविद्यालय, गौतमनगर से ) प्रस्थान करेगा । आर्यसमाज को गति देने, वेद के अनूठे प्रचार-प्रसार के इस मिशन हेतु जागृति का शंखनाद में जोर-शोर से जुटे हैं मिथिला निवासी विजय कुमार झा आर्य । विजय कुमार झा के अनुसार मानव उत्थान संकल्प संस्थान के निर्देशन, ज्ञानेन्द्र शास्त्री के संयोजन, अनेकानेक गुरूकुलों के संस्थापक/संचालक, आर्ष शिक्षा के पोषक स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती के संरक्षक तथा डॉ० कृष्णानारायण पांडेय (संयुक्‍त निदेशक आकाशवाणी, नईदिल्ली ) के प्रतिनिधित्व में यह रथयात्रा अपने यात्रापथ पर अग्रसर होगी, जो हापुड़, मुरादाबाद, बरेली, शाहजहाँपुर, हरदोई, सीतापुर, लखनऊ, बाराबंकी, अयोध्या, बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, गोपालगंज, पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, सम्स्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, भागलपुर बाँका, देवघर , दुमका, शांतिनिकेतन के रास्ते के रास्ते १२ जुलाई २००९ को कोलकाता पहुँचेगी एवं १३ जुलाई को संपूर्ण कोलकाता महानगर में विराट शोभायात्रा के अनन्तर आर्यसमाज, विधानसारणी (कोलकाता) के संयोजक में विशाल जनसभा आयोजित की जाएगी । तत्पश्‍चात यह रथयात्रा १४ जुलाई २००९ को कोलकाता से चलकर मेदिनीपुर, खडगपुर, घाटशिला, जमशेदपुर, राँची, हजारीबाद, कोडरमा, नवादा, गया, बोधगया, शेरघाटी, औरंगाबाद, सासाराम, महुआ, वाराणसी, मिर्जापुर, रीवाँ, सतना, चित्रकूट, बाँदा, फतेहपुर, कानपुर, ओरैया, इटावा, मैनपुरी एटा, हाथरस, अलीगढ़, आगरा, मथुरा, वृन्दावन, कोसी, होड़ल, पलवल के रास्ते फरीदाबाद आदि शहरों में महर्षि दयानंद सरस्वती, आर्यसमाज और वेदप्रचार की घूम मचाते हुए २३ जुलाई २००९ को वापस दिल्ली आएगी ।
३ जुलाई २००९ को दिल्ली से यात्रा प्रस्थान काल का सीधा प्रसारण साधना, डीडी-१ तथा इंडिया न्यूज चैनल पर आएगा, जिससे देश के प्रत्येक ग्राम नगर, शहर आदि में दयानंद सरस्वती, आर्य समाज और वेदों की घूम मचेगी । प्रणवानंद सरस्वती कहते हैं कि - “वेद प्रचार रथयात्रा एक भागीरथी प्रयास है । इसी प्रकार की भागीरथी प्रयास को पूर्ण करने के लिए अनेकानेक संसाधनों की आवश्यकता होती है, क्योंकि एक भी संसाधन की कमी मार्ग को अवरूद्ध करनेवाला होता है । हम संसार के अन्य मतों और संप्रदायों को देखते है, जहाँ लोग अंधे होकर धन लुटाते हैं और उनका धन कहाँ जा रहा है, इसका ज्ञान दाता को नहीं होता कितनी बड़ी विडम्बना है कि उनका मत गलत मजहब गलत, शास्त्र गलत, फिर भी उनका सामाज्य संपूर्ण विश्‍व भर में फैला हुआ है और हम उस विश्‍वभर में से केवल दो देशों मे सिमटकर रह गए हैं । इस पर भी तुर्रा ये कि इन देशों में भी हम ठीक से व्यवस्थित नहीं हो पा रहे । हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति पर निरंतर कुठाराघात होते जा रहे हैं । वैसे तो संसार में अनेक प्रचार की धर्म सभाएँ, धार्मिक सभाएँ, संचालित परिचालित हो रही है, परन्तु मेरा मानना है कि वह धर्म, धर्म नहीं है, जिसका आधार वेद नहीं क्योंकि वेदोऽखिलो धर्ममूलम ।
वैदिक मंदाकिनी का प्रवाह अवरूद्ध होता प्रतीत हो रहा था । ऐसी परिस्थिति में मनस्वी युवक विजय कुमार झा द्वारा वेद-प्रचार से संबंधित जो गतिविधियाँ संचालित की जा रही है । उसे और खास करके इस युवक का वेद, महर्षि दयानन्द सरस्वती और आर्यसमाज के प्रचार-प्रसार की भावना के प्रति उत्साह देखते ही बनता है । इस महायज्ञ में हमें न तो किसी तिकड़म का सहारा लेना ऐ और न पाखंड का हमें तो केवल यज्ञ के सच्चे स्वरूप को धारण कर कार्य करना है जिससे सबके जीवन में निखार आ जाए । इस महायज्ञ पर यदि हम पद पर प्रतिष्ठित है । यह यात्रा दिल्ली से चलकर कोलकाता और पुनः कोलकाता से चलकर दिल्ली तक सभी श्रेष्ठजनों को जोड़कर प्रमात्मा की अमरवाणी ‘वेद” का विस्तार करने निकला है । एक ऐसी कड़ी का निर्माण किया जा रहा है जो पश्‍चिम से पूरब को जोड़कर वेद और आर्यसमाज के लिए मजबूत सुरक्षा कवच बन जाए ।
दिल्ली से नालंदा, राजगीर (बिहार) तक की वेद-प्रचार रथयात्रा-२००७ का आयोजन मानव उत्थानसंकल्प संस्थान के निर्देशन में भलीभाँति संपन्‍न हो चुका है । इस यात्रा वृतांत को लिपिबद्ध कर स्मारिका एवं वैदिक साहित्य का निःशुल्क वितरण भी किया जा चुका है । संस्था के अध्यक्ष विजय कुमार झा ‘आर्य’ कहते हैं कि पहले मल्होत्रा बुक डिपो (एम. बी.डी. बुक्स) में वरिष्ठ कंप्यूटर ऑपरेटर के रूप में कार्यरत था । स्वामी एच० जगदीश्‍वरानन्द सरस्वती उन दिनों ऐसे कंप्यूटर ऑपरेटर की तलाश में थे । जो चारों वेदों को स्वर सहित कंप्यूटर तलाश समाप्त हुई । उन्होंने मुझे मल्होत्राजी से माँग लिया और अपने तत्कालीन निवास एच- १/२ मॉडल टाउन-३, नई दिल्ली में कंप्यूटर, प्रिंटर आदि देकर चारों वेदों का कंपोजिंग कार्य प्रारंभ करवाया । विजय कुमार झा के अनुसार “मैं तो घोर पुराणिक परिवार से संबंध रखता था, परन्तु जब से स्वामी जी के सम्पर्क में आया, तब से आर्यसमाज और महर्षि दयानन्द सरस्वती का इतना प्रभाव मुझ पर पड़ा कि मेरे घर में लोग मुझे कहने लगे कि यह नास्तिक हो गया है । मंदिर में नहीं जाता, हनुमान जी की पूजा नहीं करता, शिवजी पर जल नहीं चढ़ाता आदि । कंप्यूटर में विभिन्‍न प्रकाशकों के लिए कंपोजिंग का कार्य करते हुए मैने १३ बार सत्यार्थप्रकाश पढ़ा है । यह ग्रन्थरत्‍न तो ऐसा है कि मात्र एक बार ही इसका स्वाध्याय किसी का भी ह्‍दय परिवर्त्तन करने के लिए पर्याप्त है, परन्तु जो १३ बार इस ग्रन्थ को प्रूफ रीडिंग की दृष्टि से पढ़े तो उसका क्या होगा, सत्यार्थ प्रकाश पढ़े व्यक्‍इत इसका अनुमान लगा सकते हैं । स्वामी जी के निर्देशन में अब तक झाजी ने लगभग १४८० प्रकार के छोटे-बड़े वैदिक साहित्य ग्रन्थ/पुस्तक अपने कंप्यूटर में सुरक्षित की है । स्व० स्वामीजी महाराज के निर्देशन में विश्‍व में सर्वप्रथम चारों वेदों को स्वर व भाष्य सहित कंप्यूटर में सुरक्षित करने का गौरव भी झाजी को ही प्राप्त है । संसार में पाँच प्रकार के व्यक्‍ति होते हैं- उदर पोषक, परिवार-पोषक, जाति-पोषक, राष्ट्र पोषक तथा विश्‍व पोषक । मैं तो स्वयं घोर पौराणिक परिवार से संबंध रखता हूँ, परन्तु जब से स्व० स्वामी जगदीश्‍वरानन्द सरस्वतीजी के संपर्क में आया, तब से वेद-पथ का ही अनुगामी बन गया । पूर्व में निकाली गई यात्राओं के अनुभव के आधार पर और स्वामीजी के संरक्षकत्व में यह यात्रा सफलतम रूप में संपन्‍न हुई । स्वामीजी हमेशा महर्षि दयानन्द सरस्वतीजी के इस उपदेश को हमेशा बोला करते थे कि “जिस देश में यथायोग्य ब्रह्यचर्य, विद्या और वेदोक्‍त धर्म प्रचार ह्ता है वही देश सौभाग्यवान होता है । है तो यह कुछ पंक्‍तियों की बात, परन्तु जिस दिन यह बात लोगों के समझ में आ जाएगी । उसी दिन युग-परिवर्त्तन हो जाएगा । वेद सब सत विद्यायों का पुस्तक है, वेद का पढ़ना, सुनना, सुनाना सब आर्यो का परम धर्म है । स्वामी स्व० जगदीश्‍वरानंद सरस्वतीजी कहते थे कि “वेद ईश्‍वर का दिव्य ज्ञान है । यह ज्ञान परमपिता परमात्मा ने सृष्टि के आदि में अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा के ह्‍दयों में दिया था । यह ज्ञान सार्वभौमिक और सार्वकालिक है । वेद केवल हिंदुओं के लिए नहीं है, यह तो मानवमात्र की सम्पत्ति है ।
विगत रथयात्रा के अनुभव पर आर्य समाज के सभामंत्री प्रकाश आर्य कहते हैं- “हमने यह अनुभव किया कि यात्रा में जहाँ कई वाहन रहते हैं, वैदिक प्रचार-प्रसार की अपार सामग्री रहती है, कई माईक सेट और अभिव्यक्‍ति के साधन रहते है, कई विद्वानों और जिज्ञासुओं को वेदोक्‍त विचार अभिव्यक्‍ति करने का अवसर मिलता है, साथ-साथ रहने से प्रेमभाव और समझ बढ़ती है, बहुत सा साहित्य निःशुल्क भी वितरित किया जाता है, जिससे साधारण जनता में वेदों के प्रति न केवल निष्ठा हो बल्कि वास्तविकता का ज्ञान बढ़े । इस प्रकार की यात्राएँ बहुत दूर तक धार्मिक भावना और विचारों को भी सामाजिक बल देती हैं, समाज की विकृतियों पर भी अंकुश लगाती है । इस यात्रा का मुख्य उदेश्य यही है कि महर्षि दयानंद सरस्वतीजी ने जिन सिद्धान्तों पर आर्यसमाज की स्थापना की थी ,उसकी निरंतरता बनी रहे, क्योंकि हम सब अनुभव कर रहे हैं कि इस समय सनातन वैदिक धर्म के अनुयायी अपने मूल से दूर होकर भटक गए हैं । ये यात्राएँ इस भटकाव को रोककर अपनी संस्कृति के प्रति अपने समस्त आस्था और निष्ठा को सुदृढ़ करेगी, साथ ही महर्षि दयानंद के व्यापक संदेश “वेदों की ओर लौटो” को भी साकार रूप प्रदान करेगी । जब तक भारत के धरती पर एक-एक ग्राम में यह प्रचार-प्रसार नहीं होगा, तब तक महर्षि दयानन्द का स्वप्न पूरा होना अभी बहुत दूर है । सुप्र समाज के जागरण का इससे अच्छा तरीका कोईऔर नहीं हो सकता । इस प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन ही जहाँ लगातार ओडम ध्वनि और वैदिकमंत्रों का उच्चारण प्रतिध्वनित होता रहता है, वहाँ लाखों, करोड़ों लोग स्वतः ही इस ओर आकर्षित हो जाते हैं, यह कोई कम नड़ी बात नहीं है । चाहे हम आर्यसमाज के सदस्य हो अथवा सनातन धर्मप्रेमी हों । वेद हमारी अमूल्य धरोहर है, जिसे अब संयुक्‍त राष्ट्रसंघ ने भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार कर लिया है । अतः मिलकर इस कार्य में अपना-अपना अमूल्य योगदान करें और “वेद की ज्योति जलती रहे” केवल बोलकर नहीं बल्कि हम विश्‍व के पटल पर भी इसे साकार करने में सम्पूर्ण श्रद्धा के साथ प्रयासरत रहें ।
वैदिक प्रवक्‍ता, वेदप्रकाश कहते हैं कि संस्थान द्वारा दूरदर्शन पर प्रसारित किया जा रहा यह वेद-प्रचार कार्य एक अभूतपूर्व कार्य है, कयोंकि अब तक वेद-प्रचार अधिकांशतः भवनों की चारदीवारी तक ही सीमित रहा है, परन्तु वह अब दूरदर्शन द्वारा समपूर्ण विश्‍व में फैल रहा है, जो मानवजाति को वेदों के प्रति अत्यंत श्रद्धा उत्पन्‍न करने के लिए अद्‌भुत प्रयास सिद्ध होगा । आजकल कई और भी चैनल वेद-प्रचार में संलग्न हैं, परन्तु मानव-उत्थान संकल्प संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम अति व्यावहारिक है । सामान्यजन भी इसको समझ सकते है । यह भी नहीं भूलना चाहिए कि संस्थान अभी बाल्यावस्था में ही है और इसके संसाधन भी अत्यंत हैं । अनेक अन्य कठिनाइयों के होते भी यह प्रसारित कार्यक्रम सरधड़ की बाजी लागानेवाला है, अतः सराहनीय है ।
दयानंद ‘अर्पण’ के अनुसार आनेवाले समय में मानव उत्थान संकल्प संस्थान मानव कल्याण के समस्त संवेदनशील और आज के संदर्भ में मानव जाति की बढ़ती हुई समस्याओं पर एक सजग विश्लेषण और क्रियान्वयन करके विश्‍वपटल पर अपनी छाप बनाएगा । रणधीर दिंह आर्य कहते हैं कि “आर्यसमाज में जो शिथिलता आज दृष्टिगोचर हो रही है, उस पर भी सामयिक चिन्तन हो तो इस यात्रा का महत्व और बढ़ जाएगा । बदलती परिस्थितियों में अतीत हमें प्रेरणा एवं उत्साह तो दे सकता है, लेकिन गतिशीलता, तेजस्विता और विश्‍वसनीयता हमें वास्तविक समस्याओं का मंथन करने से ई हस्तगत होगी ।
महावीर बत्रा अपने अनिभव को निम्न पंक्‍तियों में बयान करते हैं-
मार्ग में कई प्रकार के प्राकृतिक दृश्यों को देखकर मुझे अनायास वेद की पंक्‍तियाँ याद हो आई- “विष्णु कर्माणि पश्यत” तथा
“गर आँख से नहीं देखा तो क्या हुआ या रब
तेरा होना बताता है तमाशा तेरी कुदरत का” ।
सब कुछ हो रहा है आज तरक्‍की के जमाने में,
क्या बात है कि आदमी आदमी नहीं बनता?"
अंत में वे किसी विद्वान की पंक्‍तियों का उल्लेख करते हैं,
मनुष्य देवता न बने, कोई गम नही,
मनुष्य दानव न बने, यह भी कम नहीं,
न जीए दूसरों के लिए कोई गम नहीं
जीने दे दूसरों को, यह भी कम नहीं,
न बने सहारा किसी का, कोई गम नहीं,
न तोड़े सहारा किसी का, यह भी कम नहीं,
रोए न दूसरों के लिए, कोई गम नहीं,
न रूलाओ दूसरो, यह भी कम नहीं,
न उठाए गिरे हुओं को, कोई गम नहीं
उठतों को न गिराए, यह भी कम नहीं,
न जाने दूसरों को, कोई गम नहीं,
अपने को जान पाए, यह भी कम नहीं,
मनुष्य देवता न बने, कोई गम नहीं,
मनुष्य मनुष्य ही रहे, यह भी कम नहीं ।

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