Thursday, July 9, 2009

मनमोहन सिंह की पुनर्वापसी

हिंदी मासिक पत्रिका समय दर्पण वैचारिक क्रांति को सही दिशा देने हेतु प्रयत्‍नशील है । लोकसभा चुनाव संपन्‍न हो चुका है । नई लोकसभा का गठन हो चुका है । मनमोहनसिंह पुनः प्रधानमंत्री पद पर सुशोभित हो चुके हैं । प्रधानमंत्री, मंत्रीपरिषद के सभी सदस्यगण एवं सभी सांसदों को समय दर्पण परिवार की हार्दिक शुभकामनाएँ । जनसरोकार की बातों को संबंधित पक्ष तक पहुँचाने का बीड़ा उठाने हेतु संकल्पित इस अभियान का सभी ने तहेदिल से स्वागत किया है । जिस तरह से इस बार नए सांसदों में युवा शक्‍ति उभर कर सामने आई है उससे उत्साहित होकर हमने अपनी पत्रिका का अगला अंक “युवा शक्‍ति” विशेषांक प्रकाशित करने का निर्णय लिया है । पत्रिका का कलेवर, सामग्री और चिंतन स्वरूप उत्तरोत्तर प्रगति पर है । संपूर्ण भारतवर्ष से हमें व्यापक समर्थन और सुझाव आ रहे हैं । निश्‍चित रूप से हम उन सुझावों पर अमल करेंगे ताकि इसके स्वरूप में और अधिक निखार आए । नई लोकसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद यूपीए की सरकार बन चुकी है । साथ ही यूपीए को बिन माँगे समर्थन भी प्राप्त हो गया । तमाम अटकलों के बावजूद समाजवादी पार्टी एवं जदयू को मंत्रीपरिषद में स्थान नहीं मिला, जिसकी काफी चर्चा थी । ममता बनर्जी करूणानिधि के बनिस्पत ज्यादा उदार रहीं और एक कैबिनेट तथा छः राज्यमंत्री पर ही मान गई । सबसे हास्यास्पद तो द्रमुक का खेल रहा । ऐसा लगा कि करूणानिधि अपने नवजात शिशु के लिए भी मंत्रीपरिषद में स्थान दिलाना चाहते हैं परंतु विरोध की प्रबल आशंका को देखते हुए अपनी बेटी का नाम मंत्रीपरिषद से वापस लेने में उन्होंने अपनी भलाई समझी । द्रमुक की माँग को मानने का मतलब है कि बहुपत्‍नी प्रथा को यूपीए ने संरक्षण प्रदान किया । राहुल गाँधी का मंत्रीमंडल में नही शामिल होने का निर्णय से ऐसा लगता है कि वे बिहार एवं यूपी में कांग्रेस को पुर्नजीवित करना चाहते हैं । युवा शक्‍ति को आगे लाने की रणनीति काम कर चुकी है । अपने चहेते युवा सांसदों को मंत्रीपद दिलाकर वे संदेश दे चुके हैं कि युवा शक्‍ति के वे कमांडर बने रहेंगे । कांग्रेस की रणनीति से ऐसा लगता है कि राहुल को प्रधानमंत्री पद देना आसान था परंतु इस बार इसलिए उन्होंने आने से मना कर दिया ताकि उनकी महत्ता को अत्यधिक प्रचार और समर्थन मिल सके । राजीव गांधी केन्द्र द्वारा भेजी गई राशि का 15 प्रतिशत वास्तविक लाभुकों तक पहुँचने की बात कहते थे परंतु राहुलजी 5 प्रतिशत की बात करते हैं । सवाल यह है कि अब तो राज्य और केन्द्र दोनों जगह यूपीए की ही सरकार है तब भी पाँच पैसा ही क्यों पहुंच पाता है ? केन्द्र द्वारा भेजी गई राशि का संपूर्ण हिस्सा वास्तविक हकदारों तक पहुँचाने की व्यवस्था के लिए उन्होंने क्या किया है? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? क्या ऐसा नहीं लगता कि वे केवल भाषणवाजी तक ही सीमित है, समस्या के निदान हेतु कार्यान्वित करने की इच्छाशक्‍ति का उनमें घोर अभाव है? राहुल को समझना होगा कि जोश के साथ होश भी होना चाहिए । मंत्रीपरिषद में यूपी से एक भी कैबिनेट मंत्री नही होना, बिहार से मात्र एक मंत्री होना तथा किसी राज्य से छः सीटों के बदले सात मंत्रियों को शपथ दिलाने का क्या मतलब है? स्पष्ट है विरोध के स्वर फूटेंगे ही । विरोध हो इसलिए तो ऐसे मंत्रीपरिषद का गठन किया गया है । वैसे एक बात स्पष्ट है कि स्वास्थ्य व अन्य कारणों से यदि मनमोहन हटे तो राहुल ही अगले प्रधानमंत्री होंगे । अभी तो इसकी मजबूत नींव की आधारशिला रखी जा रही है । माहौल बनाया जा रहा है । कांग्रेस के मीडीया प्रभारी, प्रवक्‍ताओं, चुनाव संयोजकों के लिए मंत्रीपरिषद लाभदायक रहा । दिल्ली से कांग्रेस की सातों सीटों पर विजय तथा तीन को मंत्रीपरिषद में स्थान भी काफी कुछ संकेत देता है । शीला दीक्षित के पुत्र एवं जयप्रकाश अग्रवाल दोनों को मंत्री नहीं बनाया गया । हाई कमान इस निर्णय से गुटबाजी को प्रश्रय नहीं देने का संदेश देना चाहती हैं । वैसे राजद एवं सपा जैसे पूर्व सहयोगियों को तवज्जो नहीं देकर कांग्रेस ने चतुराई भरा निर्णय लिया है परन्तु अधिकतम (81) की सीमा के काफी नजदीक (71) जंबो मंत्रीमंडल के संतुलन काफी मायने रखती है । मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल कितना अधिक कारगर हुआ तथा वे जनाकाक्षांओं के कितने अनुकूल निकले यह तो समय ही बताऐगा फिलहाल आगे- आगे देखिए होता है क्या । मनमोहन सिंह भारतीय राजनीति के सबसे बड़े छुपे रूस्तम हैं । भारतीय राजनीति में 18 सालों का अनुभव रखने वाले ऐसे नेता हैं, जिनका नाम किसी घोटाले या पचड़े में नही आया । बतौर वित मंत्री उनके पांच साल के कार्यक्रम को ऐतिहासिक कार्यकाल का तमगा दिया जाता है । इसके बाद वह राज्य सभा में विपक्ष के नेता रहे । फिर २००४ में वह बैठे हॉट सीट यानी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर । तब लोगों को शक था कि वह पांच साल पूरे नही कर पाएंगे । उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया । और इस बार तो न कोई उन्हें कमजोर कह रहा है और न ही उन पर शक कर रहा है । हालांकि एक बात यह भी है कि इसमें सबसे बड़ा हाथ है सोनिया गांधी से मिल रहे मजबूत साथ का । हालांकि, 2004 में वह सिंह की जगह किसी भी नेता को चुन सकती थीं, लेकिन उन्होंने सिंह को ही चुना । दूसरी तरह, सिंह के सामने अगर महान बनने का लक्ष्य रखा गया, तो उन्होंने बखूबी उस लक्ष्य को हासिल किया । आखिर कुछ खास तो है ही इस शख्स में । तभी तो लोकसभा का कभी चुनाव जीते बिना ही सिंह १.२ अरब की आबादी वाले इस मुल्क के नेता बने हुए हैं । उनमें कई खूबियां हैं, जिनके बारे में ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं है । पहले बात करते हैं उनकी उन खूबियों के बारे में जो किसी से छुपी हुई नहीं है । इसमें सबसे ऊपर है उनकी बुद्धिमता । लोगों और भारतीय व्यवस्था के बारे में गहरी समझ उन्होंने सरकारी नौकरी में रहते हुए हासिल की है । उन्हें पता है कि भारत में काम कैसे होता है और यहां लोगों से कैसे काम करवाया जा सकता है । भारत में इक्‍का-दुक्‍का ही ऐसे नेता पैदा हुए हैं, जिनकी इज्जत देश और विदेश, दोनों जगहों पर होती है । जब वह वित मंत्री थे, तब सिंह अक्सर विक्टर ह्य़ूगो को उद्धरित करते थे कि इस दुनिया में उस विचार से ज्यादा ताकतवर कुछ नहीं हो सकता, जिसे तेजी से लोग अपना रहे हों । अगर तब वह ‘विचार’ खुले बाजार की नीति को अपनाने का था, तो प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने एक नए विचार को जगह दी । आजकल, वह अपने दोस्तों के सामने बिस्मार्क को उद्धरित करते हैं कि राजनीति, चीजों को मुमकिन बनाने की कला है । इसलिए तो उन्होंने बतौर प्रधानमंत्री अपने कार्यकाल में कथनी के बजाए करनी पर जोर दिया ।

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