समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव द्वारा लखनऊ में जारी किए गए चुनावी घोषणा पत्र की किरकिरी होने के बाद उनके स्वर बदल गए हैं । जारी घोषणापत्र में आतंकवाद, आर्थिक मंदी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार पर काबू पाने का भरोसा दिलाया गया है । घोषणापत्र में मौजूदा आर्थिक मंदी की वजहों और उसके समाधान के उपायों का विस्तार से जिक्र है । इसमें कहा गया है कि दिखावटीपन से बाजार का रूख बिगड़ जाता है और उस बिगड़े रूख से बड़ी-बड़ी हस्तियाँ कमजोर हो जाती हैं । गाँव के छोटे बाजार में अगर आइसक्रीम, पेस्ट्री या बढ़िया मिठाई की दुकान खुल जाए तो केवल थोड़े से खरीददार होंगे, क्योंकि औरों में खरीदने की क्षमता नहीं होगी और दुकान बैठ जाएगी । पिछली सरकारों ने फारवर्ड ट्रेनिंग, शेयर बाजार और बाजार की मॉल संस्कृति को बढ़ावा दिया है । सपा की मदद से जो भी सरकार बनेगी , उसे कम करेगी या रोक देगी । घोषणा पत्र में कहा गया कि आदमी के श्रम को महत्व दिया जाएगा और जो काम आदमी के हाथ से हो सकेगा, उसे कंप्यूटर और मशीन का गुलाम नहीं बनाया जाएगा । सपा ऊंची तनख्वाहों, सुविधाओं पर रोक की पक्षधर है । ऊँचे वेतन और न्यूनतम वेतन में तर्कसंगत संतुलन से ही राष्ट्र की पूँजी का निर्माण हो सकेगा । काम के अधिकार को मौलिक अधिकार मानते हुए घोषणा पत्र में कहा गया है कि काम न मिल पाने पर सपा बेरोजगारी भत्ता दिए जाने की समर्थक है । सपा पूरे देश में बेरोजगार युवाओं को बेकारी भत्ता दिए जाने का दबाव बनाएगी ।
कंप्यूटर - अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म हुई, तो भट्टा बैठ जाएगा चुनाव में आर्थिक अजेंडे को वोट राजनीति में शामिल किए जाने पर कॉरपोरेट वर्ल्ड परेशान है । इकॉनमी का भट्टा बैठने की आशंका जताते हुए इसने पार्टियों से अपील की है कि वे आर्थिक सेक्टर को अपने राजनीतिक अजेंडे से दूर रखे । जो देश सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) में विश्व की महाशक्ति बनने की कुव्वत रखता है । जिसका लोहा सभी मानते हैं । देश में लोकसभा चुनाव लड़ रही कोई पार्टी अपने आर्थिक अजेंडे में यह कहे कि वह कंप्यूटर और अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म कर देगी, शेयर ट्रेनिंग बंद कर दी जाएगी तो स्थिति की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है ।इकॉनमी स्लोडाउन के दौर में कोई दूसरी पार्टी यह कहे कि वह किसानों को ४ पर्सेंट ब्याज पर कर्ज देगी, वेतन भोगियों को इनकम टैक्स छूट ३ लाख रूपये तक ले जाने के अलावा सैनिकों के लिए अलग से पे कमीशन बनाएगी तो सवाल यह उठता है कि आखिर इसके लिए पैसा कहाँ से आएगा । एक ओर पार्टी इसकी घोषणा करे कि वे कॉरपोरेट टैक्स के साथ शेयरों की खरीद-फरोख्त पर लगने वाले टैक्स को बढ़ा देगी ताकि लोग शेयरों के कारोबार से दूर रहें तो बाजार और इनवेस्टरों का परेशान होना लाजमी है । कॉरपोरेट सेक्टर को समझ नहीं आ रहा है कि अखिर यह क्यों हो रहा है । अर्थव्यवस्था के प्रति राजनीतिक नेताओं के इस तरह के रवैये को देखकर कॉरपोरेट सेक्टर न केवल हैरान है, बल्कि सकते में हैं । कॉरपोरेट दिग्गजों का कहना है कि क्यों नहीं राजनेता इस बात को समझते हैं कि उनके जीतने की चाह से जरूरी है कि देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती । सभी राजनीतिक दल वोट पाने के लिए अलग-अलग मुखौटे पहने हुए हैं । उसी मौजूदा आर्थिक हालात को नजरअंदाज करते हुए इस तरह की घोषणाएं कर रहे हैं । इंडो-अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स के चेयरमैन एम. के जैन के अनुसार हम हर बात में अमेरिका से अपनी तुलना करते हैं । ओबामा ने राष्ट्रपति का चुनाव का प्रचार का स्लोगन बनाया ‘यस वी केन’ यानी हम आर्थिक स्लो डाउन को मात दे सकते हैं । मगर भारत में लोकसभा चुनावों में राजनीतिक दल जिस तरह से आर्थिक एजेंडों की घोषणा कर रहे हैं, वह पूरी तरह से उनकी राजनीतिक छवि से प्रेरित हैं । ऐसा कौन है कि जो आज की तारीख में अपने बच्चों को कंप्यूटर की शिक्षा देना नहीं चाहेगा । हमारे नेता कह रहे हैं कि वह इन दोनों के साथ शेयर ट्रेडिंग भी बंद करवा देंगे । बड़ा अजीब लगता है यह सुनकर । कॉरपोरेट सेक्टर राजनीतिक पार्टियों से अपील करने जा रहा है कि वे आर्थिक सेक्टर को अपने राजनीतिक एजेंडे से दूर रखें । सभी राजनीतिक दलों को इस बाबत ज्ञापन भेजे जाएंगे । पीएचडीसीसीआई के महासचिव कृष्ण कालरा का कहना है कि राजनीतिक दलों को आर्थिक मामले में अपनी सोच बड़ी रखनी चाहिए । उन्हें अपने शार्ट टर्म फायदे की बात छोड़कर देश की अर्थव्यवस्था के लिए लांग टर्म के लाभ की बात सोचनी चाहिए ।
Wednesday, July 1, 2009
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