Wednesday, July 1, 2009
ई-मेल, मीडिया, मॉल एवं मेला
इंटरनेट की दीवानगी इस कदर बढ़ गई है कि उसने टीवी को पीछे छोड़ दिया है। लोग अब मनोरंजन का माध्यम टीवी को नहीं बल्कि इंटरनेट को मानते हैं। उनमें भी सबसे ज्यादा वक्त लोग नेटवर्किंग वेबसाईट पर बिताना पसंद कर रहे हैं । मोबाईल और लैपटॉप ने इंटरनेट के माध्यम से मनुष्य को हर समय दुनिया से जोड़ रखा है। इंटरनेट के माध्यम से समान मानसिकता, समान उद्देश्य वाले व्यक्तियों का आपस में मुफ्त वैचारिक आदान-प्रदान संभव हो पाया है। लोग अपने-अपने उद्देश्य का ब्लॉग बनाकर अपनी वैचारिक अभिव्यक्ति को मूर्त्त रूप दे पा रहे हैं।
जोश और जुनून भरा आज का युवा चंद पलों में दुनिया मुट्ठी में कर लेना चाहता है। आज उसके पास गिरकर संभलने तक का समय नहीं रह गया है। युवा पीढ़ी की इस महत्वाकांक्षी सोच को देखते हुए बाजार विशेषज्ञों ने इंटरनेट को अपना प्रमुख माध्यम बनाया है। वे इंटरनेट के माध्यम से उत्पादों के प्रचार प्रसार में अब गहरी रुचि दिखा रहे हैं। कंपनियाँ अब ग्रामीण सभ्यता-संस्कृति को शहर में तथा शहरी संस्कृति को गाँवों की ओर ले जाने में अपनी भलाई समझ रही हैं । उदाहरणस्वरूप सूरजकुंड मेले में आप ग्रामीण संस्कृति की पूर्ण झलक देखेंगे वहीं किसी गाँव के मेले में डिस्को, थियेटर, फैशन-शो आदि देखने को मिलेगा। दरअसल इस सबके पीछे बाजारवाद का फॉर्मूला कारगर होता प्रतीत हो रहा है। नवरात्र में पिछले कुछ वर्षों से डांडिया व गरबा नृत्य पूरे देश में सबसे ज्यादा आकर्षण का केन्द्र बनता जा रहा है। दिल्ली और मुम्बई के अलावे उ०प्र० और बिहार जैसे राज्यों में भी इसकी धूम रही। इसमें जहाँ उन्हें भावनात्मक सपोर्ट मिलता है वहीं प्रचार भी। यहाँ लोगों को मनोरंजन एवं उत्साह मिलता है। कंपनियाँ धर्म एवं संस्कृति पर भी अपने प्रचार बजट का कुछ हिस्सा खर्च कर रही हैं। मेले के जमघट का भरपूर दोहन अब उत्पादों के प्रचार हेतु हो रहा है। तेजी से बदल रही है टेक्नोलॉजी और उसी के अनुसार बदल रहे हैं प्रचार के माध्यम। आज इंटरनेट प्रचार का सबसे सस्ता और सशक्त माध्यम है। आईडीसी द्वारा किये गये शोध के अनुसार सन् 2000 में जहाँ दुनिया भर में 15 अरब ई-मेल का आदान-प्रदान हुआ था वहीं आज यह संख्या 17 अरब तक पहुँच चुकी है। कंपनियों में काम करने वाले हर कर्मचारी को रोजाना औसतन 150 ई-मेलों का आदान-प्रदान करना पड़ता है।आज कंपनियाँ अपने उत्पाद के प्रचार हेतु ई-मेल, फैक्स, फोन एवं एसएमएस का सहारा ले रही हैं। एक तरफ टेलीफोन द्वारा टेलीमार्केटिंग हो रही है तो कहीं फैक्स के माध्यम से अपने उत्पाद की विशेषताओं की जानकारी दी जा रही है। इधर बल्क एसएमएस (ज्यादा संख्या में एक साथ एसएमएस) का प्रचलन भी तेजी से बढ है। एक-एक करके ई-मेल भेजने के बजाय बल्क ई-मेल ही लोग भेजते हैं, क्योंकि इसमें समय की एवं पैसे की काफी बचत होती है। पृथ्वी के चारों ओर फैलने के बाद इंटरनेट अब बाहरी अंतरिक्ष के उन हिस्सों में पहुँचने वाला है, जहाँ इससे पहले कोई नेटवर्क नहीं पहुँचा है। महत्वपूर्ण विदेशी अखबारों के इंटरनेट संस्करण उनके प्रिंट संस्करणों का इंटरनेट पर रहना जरूरी है, क्योंकि इंटरनेट का पाठक मूलतः मुफ्तखोर है, वह अखबार पढ़ने के पैसे नहीं देना चाहता । अमेरिका में प्रिंट मीडिया को वेब आधारित समाचार माध्यमों से चुनौती मिल रही है । अमेरिकी मीडिया में अब यह ट्रेंड शुरू हो रहा है कि वेब संस्करणों के लिए सामग्री पहले तैयार होगी और अखबार का मुद्रित संस्करण उसका अतिरिक्त उत्पाद होगा । भारत में हिंदी के अखबारों की स्थिति दूसरी है । हिंदी के कम से कम दो अखबार दो करोड़ से ज्यादा या इसके आस-पास की रीडरशिप रखते हैं। दो और अखबार एक करोड़ के आस-पास की रीडरशिप रखते हैं। अंग्रेजी में प्रिंट का सर्कुलेशन भले ही संतोषजनक गति से नहीं बढ़ रहा है, पर हिंदी का भविष्य कम से कम मीडिया में बहुत उज्ज्वल है। अखबारों की प्रतिस्पर्धा में अब सिर्फ टीवी नहीं है, बल्कि अखबार की स्पर्धा में अब कायदे से रेडियो हैं-थैंक्स टू एफ एम और दूसरा मुकाबला इंटरनेट से है । इंटरनेट अभी हिंदी के मामले में बहुत जोरदार चुनौती नहीं है । अधिकांश अखबार अपने अखबार को इंटरनेट पर ले आए हैं । अभी वह दृश्य नहीं आया है; जब इंटरनेट संस्करण की वजह से अखबारों का प्रिंट सर्कुलेशन कम हो रहा हो। पर जिस तेजी से इंटरनेट बढ़ रहा है, वह चुनौती तो दे ही सकता है । एक गंभीर मसला यह है कि मोबाईल खबरों के मामले में अखबारों को नहीं पीट सकते, पर विज्ञापन के मामले में वह गंभीर चुनौती बन सकता है। मोबाईल, इंटरनेट ये दो माध्यम अखबार से इस मामले में अलग हैं कि मोबाईल और इंटरनेट इंटरेक्टिव माध्यम हैं । जैसे अगर यात्रा ऑनलाईन किसी बैंक या किसी दूसरे आइटम को बेचने वाले अगर अखबार में विज्ञापन दें तो अखबार का पाठक संबंधित उत्पादों और सेवाओं की जानकारी ले पाएगा, पर इंटरनेट, मोबाईल पर तो डील तत्काल संपन्न हो जाएगी। किसी भी ट्रेवेल सेवा देने वाली वेबसाईट का विज्ञापन अखबार में सिर्फ सूचना देता है, पर इंटरनेट पर तो चार क्लिक के बाद टिकट खरीदने का काम पूरा । मोबाईल पर बहुत जल्दी यह काम धुँआधार तरीके से शुरू होने वाला है। यानी अखबार-पत्रिकाओं के मुद्रित संस्करण तो सिर्फ विज्ञापन तक ही दे सकते हैं, पर इंटरनेट व मोबाईल तो विज्ञापन के अंतिम लक्ष्य यानी बिक्री तक पहुँचाते हैं, इस लिहाज से इंटरनेट मोबाईल जैसे माध्यम अखबारों को चुनौती दे सकते हैं । संचार व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार देश के 54 प्रतिशत लोग जिनकी सालाना कमाई 5 लाख रूपये से अधिक की है, शहरी क्षेत्रों में रहते हैं, जबकि शेष 46 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। इसलिए ग्रामीण इलाकों में कमाई के लिहाज से काफी गुंजाइश है। फिर भी, कंपनियों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसके लिए बड़ी कंपनियों ने तय कर लिया है कि वे अपना वितरण नेटवर्क मजबूत करेगी और इसके लिए मिलकर चुनौतियों का सामना करेंगी। कुछ कंपनियों ने तो ग्रामीण बाजार को नियंत्रित करने के लिए अपने कार्यालय तक इन इलाकों में कायम कर दिये हैं। “रिसर्च स्कूल ऑफ पेसिफिक एंड एशियन स्टडीज", ऑस्ट्रेलिया के निदेशक रॉबिन जैफ्रे के अनुसार भाषाई पत्रकारिता भारत के राष्ट्रीयता की सबसे अच्छी व्याख्या करती है। भारत में हर कहीं भाषाई पत्रकारिता क्षेत्रीय अस्मिता और गौरव की बात भले ही करती हो, लेकिन इसमें कहीं भी अलगाववाद का भाव नहीं है। वे जितना अपनी भाषा से जुड़े हैं उतना ही भारत की राष्ट्रीय धारा से भी। क्षेत्रीय सोच को राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ने का काम भारत का मीडिया ही कर रहा है। यहाँ के अखबार पूरी तरह आधुनिक भी हैं और जमीन से जुड़े हुए भी, वे तेजी से तकनीक को भी अपना रहे हैं और आगे बढ़ने के लिए नए रास्ते भी खोज रहे हैं। जिस तरह से भाषाई अखबारों के लिए आगे आने के रास्ते खुल रहे हैं, अंग्रेजी अखबारों के लिए नहीं खुल रहे हैं ।
भारत में टेलीविजन आने के बाद भी अपनी प्रसार संख्या तेजी से बढ़ा रहे हैं। पूरी दुनिया में शायद ही कहीं ऐसा हुआ हो। समाचार माध्यम के रूप में टेलीविजन के आने का असर बाकी सभी जगहों पर अखबारों और पत्रिकाओं की प्रसार संख्या पर पड़ा है। रही-सही कसर इंटरनेट वगैरह ने निकाल दी है। दुनियाभर के प्रकाशक इसे लेकर खासे चिंतित हैं, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। यहाँ प्रिंट अभी भी आगे बढ़ रहा है। टेलीविजन के आने और छा जाने का बावजूद टेलीविजन ही अखबारों की इस बढ़त का इंजन बन गया है। अगर यह सच है कि टेलीविजन लोगों की खबरों की भूख को बढ़ा रहा है तो अखबारों का भविष्य काफी उज्ज्वल है क्योंकि इस श्रृंखला में अब मोबाईल फोन भी जुड़ गया है। भारत में मोबाईल फोन की संख्या 24 करोड़ से भी ज्यादा हो चुकी है। यानी औसतन हर परिवार के पास एक मोबाईल फोन। पूरी दुनिया की तरह ही भारत में भी मोबाईल फोन खबर पहुँचाने का माध्यम बनता जा रहा है। कंपनियों को भाषाई पाठकों में अपने सामान के खरीददार दिखाई देते हैं और इसी वजह से वे अखबारों को विज्ञापन देते हैं। अच्छी बात यह है कि अखबारों की प्रसार संख्या के साथ ही ये विज्ञापन भी लगातार बढ़ रहे हैं। इस मामले में सिर्फ एक ही दिक्कत है। भारत में विज्ञापन जगत और उद्योग जगत का एक बड़ा वर्ग अभी भी क्रय क्षमता को भाषा से जोड़कर देखता है। धारणा यह है कि जो अंग्रेजी जानता है उसकी क्रय क्षमता ज्यादा है, और जो नहीं जानता उसकी क्रय क्षमता कम है। यह धारणा कितनी भी गलत क्यों न हो, लेकिन इसी धारणा के चलते ज्यादा विज्ञापन और पैसा अंग्रेजी अखबारों की झोली में चला जाता है। कम प्रसार संख्या के बाद भी अंग्रेजी अखबारों की विज्ञापन दरें ज्यादा होती हैं। इसी वजह से भारत के अंग्रेजी अखबारों में ज्यादा पृष्ठ होते हैं। उनके पास ज्यादा पैसा होता है और वे खबरें हासिल करने से लेकर उन्हें पेश करने तक में ज्यादा संसाधन लगा सकते हैं। उपभोक्ता सामान और सेवाओं के विज्ञापन के लिए तो भाषाई अखबारों को अच्छा माध्यम माना जाने लगा है, लेकिन व्यवसाय के लिए इस्तेमाल होने वाले सामान और नौकरी वगैरह के विज्ञापन अभी भी अंग्रेजी अखबारों को ही मिल रहे हैं। जबकि उद्योगों का भूगोल और समाजशास्त्र दोनों बदल रहे हैं। अखबारों को खबरों का गंभीर माध्यम बनाने के बजाय इन्हें लोक लुभावन बनाया जा रहा है।
द्वारा अपने उत्पादों की विभिन्न प्रचार माध्यमों के संग-संग इंटरनेट पर तेजी से प्रचार करने उपरान्त उसका मेले में पदार्पण होता है। मेले में जनसम्पर्क एजेंसियों के माध्यम से विभिन्न मॉडलों द्वारा इसे जनता के समक्ष परोसा जाता है। बहुत सी कंपनियां अपने उत्पादों का प्रचार करने के लिए ब्रांड अम्बेसडर भी नियुक्त करती हैं। अमिताभ बच्चन, शाहरूख खान, रितिक रोशन, ऐश्वर्या रॉय, हेमामालिनी आदि इसी श्रृंखला के अंतर्गत ब्रांड एम्बेसडर के रूप में अपना योगदान दे रहे हैं।
महानगर ही नहीं अब छोटे-छोटे शहरों में भी फेस्टिवल सीजन का खुमार चढ़ना शुरू हो गया है। रमजान, दुर्गापूजा में डांडिया मस्ती, दशहरा और दीवाली एन्जॉय करने की परिपाटी और त्यौहार मेलों के आयोजन का सिलसिला अब शुरू हो गया है। अब देश के हर कोने में किसी न किसी अवसर पर उत्सव का नाम देकर मेले का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें हर आयु वर्ग के लिए मनोरंजन का पूरा इंतजाम किया जाता है। मेले में एक ओर युवाओं के लिए शॉपिंग की मस्ती और संगीत का धमाल है वहीं दूसरी ओर बुजुर्गों के लिए भारत के सांस्कृतिक रूप को पेश करने का अवसर प्राप्त होता है। मेले के आधुनिकीकरण पर अब नित्य नए प्रयोग हो रहे हैं। मेले को आकर्षक कल्चरल लुक देना भी एक कला है। मेले के आयोजन का मकसद पर्व-त्यौहार या अवसर विशेष पर हर आम और खास लोगों को मौजमस्ती और एन्जॉयमेन्ट का एक हॉट स्पॉट मुहैया कराना है। जहाँ आकर वह अपनी दिनभर की थकान को भुला अपनी रूचि के अनुसार मनोरंजन कर सकें।
देश या विदेश के वे इलाके जहाँ कठमुल्लाओं को युवाओं का खुलकर मिलना गैर इस्लामी लगता है वहाँ आतंक और दहशत के बावजूद युवा दिलों को मिलाने के अभियान में इंटरनेट की महत्वपूर्ण भूमिका से मुहब्बत आजाद हो रही है। साइबर कैफे में लड़के-लड़कियाँ साथ बैठकर मोहब्बत के नए पाठ पढ़ने में जुटें हैं। इस तरह देखा जाय तो इंटरनेट का दबदबा आतंकवाद और कठमुल्लावादी मानसिकता दोनों पर समान रूप से हावी है । शॉपिंग मॉल जहाँ एक ओर ग्राहकों को पटाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है वहीं इंटरनेट पर ऑनलाईन शॉपिंग मॉल का भी अपना अलग क्रेज है जो तेजी के साथ बढ़ रहा है। अब प्रमुख उत्पाद कंपनियों के अतिरिक्त एन. जी. ओ. भी इस मैदान में कूद पड़ी है । विभिन्न त्यौहार व अवसर विशेष पर शुभकामना संदेश भेजने की परिपाटी ने एक नए उद्योग (कार्ड उद्योग) का जन्म दिया है। ज्योतिष एवं वैवाहिक रिश्तों से सम्बन्धित किसी भी प्रकार की जानकारी एवं किसी भी प्रकार के ग्रहरत्न की खरीद आप हमारे वेबसाइट (www.narmadacreative.com, www.samaychakra.com, www.7pherenet.com ) के माध्यम से कर सकते हैं । इंटरनेट पर कंपनियों के सजे दुकानों पर जाने के लिए संबंधित वेबसाइटों पर जाकर अपने पसंद की सामग्री का चुनाव करना है। आपके द्वारा चुने गये सामग्रियों को आप तक या आपके द्वारा निर्देशित देश या विदेश किसी भी पते पर ये कंपनियाँ सामान पहुँचा देंगी, बेशक शिपिंग के नाम पर 99 से 500 रूपये तक सरचार्ज आपको देना पड़े। कई चीजें शिपिंग चार्ज के बगैर भी पहुँचा दी जाती हैं। खरीद के बदले रकम की भुगतान हेतु कैश ऑन डिलीवरी, क्रेडिट कार्ड या चेक भेजकर भी सामान मँगवा सकते हैं। आई. सी आई सी आई, एचडीएफसी, एसबीआई, एक्सिस बैंक आदि के क्रेडिट कार्ड धारकों को आसान किश्तों में भुगतान करने का विकल्प भी मौजूद है। चुना हुआ सामान 7 से 15 दिनों में पहुँच जाता है। पूर्व में अपने हाथों से सगे-सम्बन्धियों के लिए उपहार खरीदना और उन्हें भेंट करना शान की बात मानी जाती थी वहीं आज ऑनलाइन शॉपिंग स्टेटस सिम्बल बन चुका है। आपके पसंद की अधिकाधिक वस्तुओं की प्राप्ति विस्तृत श्रृंखला में इन वेबसाइटों पर मौजूद है। प्रतीक्षा है बस आपके आदेश की। इस सुविधा के द्वारा आप अपने सगे-संबंधी या मित्रगणों को मनपसंदीदा वस्तुएं ऑनलाईन उपहारस्वरूप भेज सकते हैं। अब तो ऑनलाईन पूजा, यज्ञ, संस्कार, श्राद्ध और विभिन्न कर्म कराने की परंपरा भी चल पड़ी है।
सुविधासम्पन्न और नवधनाड्य वर्गों में त्यौहार के अवसर पर खर्च करने की बढ़ती ललक को उत्पाद कंपनियों ने हाथों हाथ लिया है। सुहाग की सलामती के लिये मशहूर पर्व करवाचौथ में महिलाओं के मेंहदी लगाने की परंपरा को भी वह खोना नहीं चाहती। इसीलिए इस जैसे छोटे त्यौहार के अवसर पर महिला ग्राहकों को लुभाने के लिए सभी दुकानदार मेंहदी लगानेवाले लड़के-लड़कियों के माध्यम से अपने दुकान की ओर खींचना चाहता है तो कोई क्रिसमस डे के अवसर पर शांताक्लॉज के बहरूपिये के माध्यम से तो कोई जोकर के माध्यम से ग्राहकों को अपनी तरफ खींचने के अभियान में जुटा है। सच्चाई तो यही है कि अब बाजार में पैसा बह रहा है चुनने के लिए दिमाग और कला चाहिए। जो इस अभियान में पारंगत है वह बाजी मार रहा है।
दीवाली जैसे त्यौहार का सीजन तो शॉपिंग पोर्टल्स के लिए उत्साहवर्द्धक हो जाता है। त्यौहार के मौके पर लोग इन वेबसाइटों पर दिल खोलकर खरीदारी कर रहे हैं जिससे इन पोर्टल्स का मुनाफा भी तेजी से बढ़ रहा है। एसोचैम के अनुसार इस साल अकेले कंज्यूमर ड्यूरेबल (जैसे टीवी, फ्रिज, माइक्रोवेव आदि) सेगमेंट की ई-शॉपिंग में 130 फीसदी का रिकॉर्ड उछाल आ सकता है। इंटरनेट पर ग्राहकों की बढ़ती तादाद के सम्बन्ध में रेडिफ.कॉम के वाइस प्रेसिडेन्ट ( मार्केटिंग ) मनीष अग्रवाल का कहना है- " हम तो इस बार 40 प्रतिशत की ग्रोथ की उम्मीद कर रहे हैं।" वैसे भी रक्षाबन्धन और दीपावली के टाइम पर ई-शॉपिंग की काफी धूम रहती है। इस तेजी में सबसे बड़ा हाथ प्रवासी भारतीयों का रहता है। राखी के समय कुल शॉपिंग में30 प्रतिशत खरीदारी अकेले एन आर आई करते हैं। वहीं दीपावली में यह हिस्सा बढ़कर 60 प्रतिशत तक पहुँच जाता है। ईबे ग्राहकों को लुभाने के लिए गैजेट्स और फैशन सेगमेन्ट पर ज्यादा ध्यान दे रही हैं। कंपनी के चीफ मार्केटिंग ऑफिसर ( सीएमओ ) रतिन लाहिरी ने बताया- " देखिये मोबाइल फोन्स, एमपी-3 प्लेयर्स और ज्वेलरी हमारे टॉप सेलिंग प्रोडक्ट्स हैं। जाहिर सी बात है हमारा ध्यान यहाँ ज्यादा रहेगा। इन वेबसाइटों ने खरीदारों को जुटाने के लिए खास इंतजाम भी किए हैं। रेडिफ ने तो ऑफर्स की एक पूरी रेंज शुरू की है, जिसमें हर खरीदारी पर लोगों को एक हजार रूपये का स्पेशल गिफ्ट वाउचर मिलेगा। ईबे ने अपना ’गेट लकी’ ऑफर लॉन्च किया है जिसके तहत वो शॉपिंग पर 10 से लेकर 50 फीसदी तक की छूट दे रही है। दूसरी तरफ ऑनलाईन शॉपिंग बूम छोटे शहरों को भी अपने आगोश में ले रहा है। एसोचैम की एक रिपोर्ट के अनुसार ब्यूटी केयर प्रोडक्ट की ऑनलाईन शॉपिंग में लखनऊ, दिल्ली और मुंबई को कड़ी टक्कर दे रहा है वहीं अहमदाबाद को खिलौनों की इंटरनेट से खरीदारी करने में बड़ा मजा आता है, जबकि नासिक को कपड़ों की शॉपिंग में। जयपुर में ज्यादातर लोग ई-शॉपिंग के जरिए किताबें, फिल्में और घरेलू सामान खरीदते हैं। मनोरंजन की दुनिया में तेजी से कदम बढ़ा रहे विभिन्न शॉपिंग मॉलों में सिनेमा, वैल्यू बाजार व फूड कोर्ट खोलने की शुरूआत कर दी गई है। इस क्रम में लोग अब महानगरों के अतिरिक्त इससे जुड़े शहरों ( उदाहरणार्थ दिल्ली महानगर से सटे-गुड़गाँव, नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद ) में भी विभिन्न सुविधाओं का लाभ उठा सकेंगे। वेल्यू बाजार एक ऐसा बाजार है जहाँ प्रत्येक घर व व्यक्ति की जरूरत का सामान एक ही छत के नीचे उपलब्ध है। यहाँ पर बाजार के रेटों के मुकाबले बेहद ही वाजिब दामों पर लोगों को घरेलू जरूरत का प्रत्येक सामान उपलब्ध कराया जाता है। कम दामों में बेहतर सुविधा मिलने के कारण वेल्यू बाजार के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ा है। अब तक लोग बाजार में जाकर घरेलू जरूरत का प्रत्येक सामान खरीदने पर मजबूर थे, यहाँ तक कि आटा, दाल, चावल जैसी वस्तुएँ भी दुकानदार के नजरिए पर निर्भर होती थीं। वह जिस माल को अच्छा बता देता था उसे लोग लेने पर मजबूर रहते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। बाजार में उपलब्ध प्रत्येक सामान को सीधे बड़ी कंपनियों से खरीदा जाता है। इसलिए ग्राहकों को यह काफी सस्ता पड़ता है और कंपनियों द्वारा चलाई जाने वाली विभिन्न स्कीमें भी समय-समय पर सीधे उपभोक्ताओं तक पहुँचाई जाती हैं। अब इन बाजारों में मार्केट के मुकाबले काफी कम दरों पर सब्जियाँ भी उपलब्ध हैं। सुभिक्षा, बिगएप्पल, नेक्स्ट, रिलायन्स फ्रेश, मदर डेयरी आदि कंपनियों का इस क्षेत्र में सफल प्रवेश हो चुका है। इसके अतिरिक्त फ्री होम डिलीवरी जैसी सुविधायें भी वेल्यू बाजार द्वारा उपलब्ध कराई गई हैं। इसलिए यह तय है कि मनोरंजन की दुनिया में मॉल संस्कृति का पदार्पण होने के बाद प्रतिस्पर्धा भी बढ़ गई है जिसका फायदा अंततः ग्राहकों को ही मिलेगा। भारतीय अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला ( आई. आई. टी. एफ ) व्यापार, पूँजी निवेश और प्रद्योगिकी के अंतरण की प्रक्रियाओं का संबन्धन करने में एक रचनात्मक भूमिका निभाता आ रहा है। भारत की सम्पूर्ण छवि प्रस्तुत करने के साथ-साथ यह बहु-उत्पादन मेला भारत का सच्चे अर्थों में प्रतिनिधित्व करता है जो अत्यधिक संभावनाओं वाले बाजार और ज्ञान पर आधारित एक शक्तिशाली आर्थिक शक्ति के रूप में उभर कर सामने आया है। भारतीय अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला राष्ट्र की उपलब्धियों और उसके लक्ष्यों तथा शक्तियों को रेखांकित करने का एक वार्षिक समारोह है। बड़े उद्योग और कुटीर उद्योगों सहित लघु उद्योग, निर्यातक और व्यापार के विभिन्न क्षेत्रों के निर्माता भारतीय अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला में अपने उत्पादों.सेवाओं को प्रदर्शित करते हैं।
इंडिया ट्रेड प्रमोशन ऑर्गनाइजेशन ( आई. टी. पी. ओ. ) द्वारा वर्ष 1981 ई० से प्रतिवर्ष 14-27 नवम्बर तक नई दिल्ली के प्रगति मैदान में भारतीय अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले का आयोजन करता आ रहा है। सामान्यतः प्रत्येक वर्ष मेले के अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में साझीदार देश एवं फोकस देश बदलते रहते हैं। जो देश मेले में भाग लेते रहे हैं उनमें अफगानिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, भूटान, ब्राजील, चीन, डेनमार्क, मिस्र, जर्मनी, हॉलैण्ड, आयरलैण्ड, इंडोनेशिया, ईरान, ईटली, जापान, कोरिया, कुबैत, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान, पोलैण्ड, रूस, सिंगापुर, श्रीलंका, स्पेन, स्वीडन, सीरिया, ताइवान, थाइलैण्ड, टर्की, ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका और वियतनाम शामिल हैं।
प्रत्येक वर्ष मेले की थीम का चुनाव किया जाता है जिसका विशेष अर्थ इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका को करना है जिसने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के टूटते हुए बंधनों के समक्ष वैश्वीकरण के अनुरूप विपणन प्रवृत्तियों को अपनाया है और बदली हुई जरूरतों के मुताबिक अपने व्यापार संचालन को सफलतापूर्वक नया रूप दिया है। स्वदेशी संदर्भ में लघु एवं मझोले उद्योग क्षेत्र द्वारा 40 प्रतिशत से अधिक औद्योगिक उत्पादन किया जाता है और लगभग 80 प्रतिशत श्रमिकों को इस क्षेत्र में रोजगार प्राप्त है। इससे यह पता चलता है कि लघु और मझोले उद्योगों का विकास और एकीकरण अपने आपमें एक पृथक प्रक्रिया नहीं है बल्कि देश के समस्त आर्थिक प्रगति का ही एक हिस्सा है। लघु और मझोले उद्योग भारत के समग्र औद्योगिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान करते रहे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व व्यापार संगठन, ( डब्ल्यू. टी. ओ. ) की स्थापना के बाद से मुक्त किए जाने के पश्चात् इस क्षेत्र को बदली हुई आर्थिक परिस्थितियों में नई चुनौतियों से निपटने के लिए स्वयं को तैयार करना है। प्रगति मैदान एक ऐसा उपयुक्त मंच है जिसमें भारत के पर्यटन के शानदार अवसरों को प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें प्रकृति, इतिहास, वन्य जीवों, साहसिक पर्यटन विरासत, संस्कृति, आध्यात्म, कला और शिल्प जैसे विषय अद्भुत भारत के पर्यटन विषयों में शामिल हैं। इस थीम के मण्डप में और इसमें भाग लेने वाले राज्य एवं संघ राज्य क्षेत्र आकर्षक भारत की एक झलक प्रस्तुत करते हैं जो सभी मौसमों और सभी दृष्टियों से आकर्षक है। कुछ लोगों की राय में इंटरनेट या मॉल के आने से मेले के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग गया है, परन्तु यह राय यथार्थ से परे है। वस्तुतः इंटरनेट या मॉल के ग्राहक वर्ग सीमित हैं, परन्तु मेले के दर्शनार्थी या क्रेता असीमित हैं। मनोरंजन के इस युग में मेला एक अलग सुकून देता है।
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