Wednesday, July 15, 2009
मिथिला और बंगाल का प्राचीन संबंध
प्राचीन वैदिक विदेह राज्य के अंतर्गत ही बंगभूमि परिगणित है । प्राचीन विदेह राज्य बंगाल से भी सुदूर तक माना जाता है । इसलिए बंगालवासियों की बहुत सी उपाधियाँ मिथिला से ही संबद्ध हैं । उदाहरण बंगाल में मित्रा, मोइत्रा आदि जो जातिगत उपाधियाँ हैं । इनका संबंध मैथिली याज्ञवल्क्य की पत्नी मैत्रैयी से माना जाता है । ये बंगाली अपने को मैत्रेयी की संतान ही सिद्ध करते हैं । इसी प्रकार उड़ीसा में महापात्रा भी मैत्रेयी से ही संबद्ध हैं । प्रसिद्ध मैथिली के विद्वान उदयनाचार्य की संतान बंगाल में भादुड़ी या भद्राड़ी ही कही जाती है । ऐसा उल्लेख मिथिला तत्व विमर्श में पाध्याय परमेश्वर ने किया है । मिथिला और बंगाल की उपासना में भी साम्य है चैतन्य महाप्रभु ने बंगाल में राधा कृष्ण की उपासना को प्रचलित किया लेकिन आधुनिक शोध के अनुसार चैतन्य महाप्रभु के पूर्वज मैथिल ही थे जिनका बंगाल में वैवाहिक संबंध हुआ स्वयं महाप्रभु विद्यापति के काव्य रसिक थे और मैथिल कवि विद्यापति ने बंगाल की वैष्णवोपासना को प्रभूत (बहुत) प्रभावित किया । इस सत्य को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है । मिथिला के शाक्त साधना से भी पंजाब प्रभावित है । यहाँ की भूमि से भगवती सीता अवतरित हुई तथा काली रूप मे परिणत हो गई अद्भुत रामायण में यह कथा है इसलिए तांत्रिक दृष्टि से मिथिला को कलापीठ कहा गया है बंगाल को चंडीपीठ कहा गया है । मिथिला और बंगाल की शाक्त साधना में साम्य है जिसके अनेक प्रमाण प्रस्तुत किए जा सकते हैं । मिथिला न्याय दर्शन की भूमि है । इसकी परंपरा मैथिल गौतम से प्रारंभ होती है । राहुल सांकृत्यायन ने कहा है कि हर शताब्दी में मिथिला में ही भारत के सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक उत्पन्न हुए । मिथिला में न्याय विद्या के अनेक केन्द्र थे । बंगालियों ने यहाँ आकर न्याय दर्शन की शिक्षा प्राप्त की और पांडुलिपियों का भी संग्रह किया । मिथिलांचल में जो गंगौली नामक ग्राम है उसके विषय में मान्यता है कि गंगौली न्याय विद्यापीठ में पढ़ने के कारण गंगौली से गांगुली बन गए । मिथिला के पश्चात् ही बंगाल के शांतिपुर एवं नवद्वीप नदिया में न्याय दर्शन का केन्द्र बना तथा रघुनाथ शिरोमणि नैयायिक ने मिथिला के नव्य न्याय दर्शन का प्रचार किया । गंगेश उपाध्याय मंगरौनी मधुबनी निवासी के बंगाली अपने को गंगोपाध्याय कहने लगे । भाषा की दृष्टि से मैथिली और बंगला भाषा एक ही मागधी, अर्द्धमागधी भाषा से उत्पन्न हुई है । मैथिली और बंग्ला भाषा के शब्दों में वैदिक शब्दों का प्राधान्य भी यह सिद्घ करता है कि वे दो भाषाएं वैदिक भाषा की समीपवर्ती हैं । मिथिला शुक्ल यजुर्वेद वृहदारण्यक उपनिषद शत्पथ ब्राह्मण आदि वैदिक ग्रंथों की जननी है । इन ग्रंथों ने कर्मकांड तथा यज्ञ विधान को प्रभावित किया है । इस प्रकार मिथिलांचल की वैदिक परंपरा समृद्ध है, जिसने बंगाल को प्रभावित किया है । विश्वकवि रविन्द्रनाथ टैगौर ने भी मिथिला से प्रेरणा ग्रहण की है । उन्होंने विद्यापति पदावली के अनुकरण पर भानुसिंह ठाकुरेर पदावली की रचना की । एक बार 1948 में दरभंगा में आयोजित अखिल भारतीय प्राच्य विद्या सम्मेलन में आगत हजारी प्र० द्विवेदी ने कहा था हमलोग जब रविन्द्रनाथ टेगौर के यहाँ जाते हैं, तब विद्यापति का यह गीत अवश्य गाते हैं । “ सखि हे हमर दुखक नहि ओर ” जहाँ तक गीतांजलि की बात है इस काव्य की आध्यात्मिक उद्भावनाएँ विद्यापति तथा मैथिल गोविन्ददास से प्रभावित है । विद्यापति और गोविन्द दास ने राधा कृष्ण की लीला का गायन किया । परन्तु रविन्द्रनाथ की गीतांजलि के आध्यात्मिक प्रतीक इन मैथिल कवियों से ही प्रभावित है आचार व्यवहार रहन सहन आदि की दृष्टि से ही मिथिला बंगाल के संबंध का विवेचन किया जा सकता है । उक्ति है लान्ताः शाक्ताः ? अर्थात जिस प्रांत के अंत में ल अक्षर हो वहाँ के लोग शाक्त होते हैं । उदाहरण मिथिला, बंगाल, नेपाल उत्कल आदि । इस प्रकार मिथिला, बंगाल, नेपाल तथा उत्कल की साधना, उपासना तथा वहाँ के व्यवहारों में साम्य है जिसका अन्वेषण भी विहित (उचित) है ।
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Achha laga.
ReplyDeleteBangla,Assmee, oriya Mithili ki betiyan manee jatee hain lipi kee drishti se aaur sahityke bhee drishti se.
Blog ke kai kathnak mujhe maloom ahee the.