Wednesday, July 1, 2009
लोकसभा चुनाव : एक समीक्षा
आज कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है । वास्तव में यह अप्रत्याशित ही था । कांग्रेस के जीत की तह में जायं तो स्पष्ट होगा कि इस जीत की खासियत यह रही कि इस बार मतदाता उम्मीदवारों के विश्वास पर खरे नहीं उतरे । प्रायः राजनीतिक दल मतदाताओं को ठगते हैं पर इस बार सब उल्टा हो गया । बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री रावड़ी देवी ने तो वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल कर नया इतिहास रच डाला । पिछले यूपीए सरकार की सहयोगी राजद को जनता ने इसलिए नकार दिया क्योंकि उन्होंने विकास को मुद्दा नहीं बनाकर केवल नाकारात्मक राजनीति को ही प्रश्रय दिया । राजद का मानना था कि विकास का चुनाव से कोई मतलब ही नहीं है । अपने दीर्घ अवधि के शासनकाल में विकास कार्य को ठप कर दिया । इस बार जनता ने राजद को नकार कर साबित कर दिया कि उन्हें जातिवाद और मसखरी नहीं बल्कि विकास चाहिए । आम नगरिक को अब खुशहाली के सपने दिखानेवाले चेहरों की ही तलाश है । राजनीति में बाहुबलियों को इस बार जनता ने खारिज कर दिया । विभिन्न संस्थाओं, मीडीया एवं खास व्यक्तित्व के जागरण कैंपेन ने व्यापक असर दिखाया । अतीक अहमद, अफजल अंसारी, डी. पी. यादव, मुख्तार अंसारी, साधु यादव, शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन, आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद आदि की हार बहुत कुछ स्वयं बता देती है । इतना ही नहीं अवसरवादी नेताओं को भी पटखनी मिली १९९७ में देशभर में सर्वाधिक मतों से जीतनेवाले रामविलास पासवान एवं लालू प्रसाद को इसलिए ही मुँह की खानी पड़ी । चुनाव से पहले वे विपरीत धुरी पर थे और शायद उन्हें कुछ ज्यादा ही अहं भी हो गया था । राजद के ३ पर और लोजपा के मात्र १ सीट पर सिमटने का यही कारण था । लगभग सभी राजनीतिक दल और उनके उम्मीदवार यही मानकर चल रहे थे कि बहुमत किसी को भी नहीं मिलनेवाला है । मतदाताओं ने इस तथ्य को समझा । जागरूक भारतीय मतदाता स्थायित्व चाहते हैं । कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए को अगर लोगों ने उम्मीदों के विपरीत जाकर अपना वोट दिया है तो उसके कई कारण भी हैं । कांग्रेस हेतु विशेषकर राहुल गाँधी ने बहुत पहले से ही आम मतदाताओं के समस्या भरे घाव पर मरहम लगाना शुरू कर दिया था । दलितों, बच्चों, वृद्धों को यह समझाने एवं यह प्रसारित करने में कि कांग्रेस ही तुम्हारी सबसे बड़ी हमदर्द है, राहुल ने पूरी ऊर्जा लगाई । अपने फैसलों में उसने समय-समय पर व्यापक परिवर्तन भी किए । दिल्ली में सातों सीटों पर कब्जा करने का मुख्य कारण समय-समय पर परिवर्तन ही था । कांग्रेस ने जगदीश टाईटलर एवं सज्जन कुमार का टिकट अंतिम समय में काटकर सिख गुबार को शांत करने की कोशिश की । उसने समाज के सभी वर्गों एवं स्थितियों के अनुरूप फैसला लिया । युवा वर्ग एवं नए चेहरों को उसने प्राथमिकता दिया । इस बार के चुनाव में मतदाताओं ने यह भी जता दिया कि धर्म की राजनीति अब नहीं चलनेवाली है । पिछले चुनाव में वाजपेयी भाजपा के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता थे । उनके शैली और विद्वता का लोहा उनके विरोधी भी मानते थे । हालांकि वे भी हिंदुत्व के समर्थक थे पर उनकी विचारधारा उदार थी । अर्थात इस बार उदार हिंदुत्व नहीं बल्कि उग्र हिंदुत्व का चुनाव में भाजपा ने सहारा लिया । बेशक वरूण और वरूण की माँ मेनका चुनाव जीत गए परंतु उन्होंने भाजपा को हरा दिया । भाजपा ने वरूण को हिंदुत्व और युवा शक्ति के ब्रह्मास्त्र के रूप में देखा था परन्तु राजनैतिक अपरिपक्वता के कारण एवं व्यर्थ की नकारात्मक बयानबाजी आग में घी का काम किया । नेताओं की जिद पार्टी के कद को छोटा कर दिया । चुनाव के मध्य भाजपा ने आडवाणी की जगह नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रचारित किया जिससे मतदाताओं के बीच भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई । महत्वाकांक्षा एवं युवा पीढ़ी को आगे नहीं करने, दलितों की उपेक्षा से भाजपा को पर्याप्त समर्थन नहीं मिल पाया । लोकसभा चुनाव के साथ हुए तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी जनता ने वहाँ के सत्तारूढ़ दलों में विश्वास व्यक्त किया है । आंध्र प्रदेश में कांग्रेस, उड़ीसा में बीजू जनता दल तथा सिक्किम में सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट एक बार फिर सत्ता में आ गई है । इस चुनाव में लंबे समय से चुनाव प्रक्रिया में शामिल होने का दबाव झेल रहे कश्मीर के बारामूला सीट से प्रत्याशी अलगाववादी नेता सज्जाद लोन की हार से भी संकेत मिलता है कि अलगाववादियों की मुख्यधारा की राजनीति में आने के लिए अभी लंबा सफर तय करना है । आँकड़ों की नजर में प्रमुख जीत * नागालैंड की एकमात्र संसदीय सीट से सत्तारूढ़ एनपीएफ प्रत्याशी सीएमचांग चार लाख ८३ हजार वोटों से जीते । * हरियाणा की रोहतक सीट के कांग्रेस प्रत्याशी दीपेन्द्र हुड्डा ४ लाख ४५ हजार वोटों से जीते । * भाजपा की सुषमा स्वराज ने विदिशा संसदीय सीट तीन लाख ८९ हजार से४ अधिक वोटों से जीती । * कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी रायबरेली सीट से तीन लाख ७२ हजार वोटों से जीतीं । * कांग्रेस महासचिव राहुल गाँधी ने अमेठी संसदीय सीट तीन लाख ३१ हजार मतों के अंतर से जीती । * एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने माठा सीट तीन लाख १४ हजार वोटों से जीते । * ममता बनर्जी दो लाख से अधिक मतों के अंतर से जीतीं । * मुलायम सिंह ने बसपा प्रत्याशी को १ लाख ७३ हजार वोटों से हराया । * डीएमके प्रमुख करूणानिधि के पुत्र एमके अझागिरी ने मदुरै सीट १ लाख ४० हजार वोटों से जीती । * आडवाणी ने गाँधीनगर सीट १ लाख २० हजार से अधिक मतों से जीती । * एचडी देवगौड़ा ने हासन सीट १ लाख ७ हजार वोटों से जीती । * लालू प्रसाद ने सारण सीट ५२ हजार, ५ सौ वोटों से जीती । उत्तरभारत में यूपीए के घटकों का अलग हो जाना फायदेमंद ही रहा तथा उ० प्र० में कांग्रेस का किसी दल से गठबंधन नहीं होना भी लाभ का सौदा साबित हो गया । नरेगा एवं किसानों की कर्जमाफी योजनाओं के साथ-साथ विश्वव्यापी आर्थिक संकट के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा किए गए समझदारी भरे फसलों ने लोगों को विश्वास बँधाया । दो नाव पर की सवारी करनेवाले लालू प्रसाद एवं रामविलास पासवान को जनता ने अपनी औकात बता दी । नीतीश कुमार ने विगत दो वर्षों में दो लाख ७३ हजार अपराधियों को पकड़कर अपराधियों को संदेश दे दिया था कि अपराध करनेवाले चाहे कोई भी हों बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे । विकास के मूलमंत्र एवं पिछड़ी जातियों के साथ-साथ अल्पसंख्यक वर्गों का जो समीकरण तैयार किया था, उसका उन्हें चुनाव में व्यापक लाभ मिला । यूपीए को बढ़त मिलने से नीतीश कुमार भले ही बिहार के लिए विशेष दर्जा न ले पाएं परन्तु उन्हें बिहार की जनता ने तो पूरा समर्थन दे ही दिया है । बिहार सरकार का पिछले वर्षों में बेहतर कामकाज और प्रशासनिक सुधार की तारीफ स्वयं राहुल गाँधी ने भी किया था । कभी राजग सरकार को इशारों पर नचानेवाले आंध्रप्रदेश की राजनीति के बड़े खिलाड़ी चंद्रबाबू नायडू एवं तमिलनाडु में जयललिता अप्रत्याशित रूप से कमाल नहीं दिखा पाए । केरल में कांग्रेस ने शानदार वापसी की । हालांकि बीएस. येदियुरप्पा कर्नाटक में भाजपा के दूसरे मोदी साबित हुए हैं । विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में भी कर्नाटक में भाजपा की शानदार वापसी हुई है । दूसरे शब्दों में कहा जाय तो दक्षिण ने फिर राष्ट्रीय पार्टियों को तवज्जो दी । कांग्रेस समर्थक यूडीएफ ने २० में से १६ सीटें जीतकर केरल के लालदुर्ग पर कांग्रेसी झंडा फहरा दिया है । कांग्रेस ने १३ सीटों पर सफलता प्राप्त की । इसके पीछे सबसे बड़ा कारण मार्क्सवादी मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंद और माकपा के ताकतवर राज्य सचिव पी. विजयन की बीच की लड़ाई रही । सबसे बड़ा झटका सीपीआई को लगा है जिसके हाथ से चारों सीटें फिसल गई । बिहार में राजग इसलिए सफल रहा क्योंकि वहाँ चुनाव विकास और धर्मनिरपेक्षता पर लड़े गए । नीतीश ने वहाँ भाजपा को कभी हावी नहीं होने दिया । आज भारत ऐसे मुकाम पर खड़ा है जहाँ उसके विश्वशक्ति बनने का सपना पूरा होता दिखाई देता है । भाजपा ने अपना चुनावी अभियान इसी से शुरू किया था । परंतु वरूण ने एनडीए के सपनों के महल को एक झटके में ध्वस्त कर दिया । ममता बनर्जी एवं चंद्रबाबू नायडू के साथ-साथ बीजू पटनायक के छिटक जाने के कारण भी एनडीए को नुकसान एवं यूपीए को बढ़त मिली । यदि एनडीए के घटक दल साथ होते तो स्थिति आज ऐसी नहीं होती । जहाँ लालकृष्ण आडवाणी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री एवं नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस को बुढ़िया / गुड़िया कहा वहीं कांग्रेस के युवा महासचिव राहुल गाँधी प्रचार के लिए ३७ दिनों में २६ राज्यों में १२४ रैलियों में गए । राहुल के प्रचार की बुनियाद ‘युवा शक्ति’ , संयुक्त विकास गरीबों के सशक्तिकरण, आंतकवाद और साम्प्रदायिकता के खिलाफ राष्ट्रीय एकता जैसे मुद्दों पर टिकी रही । आशा है नई सरकार सुधार से जुड़ी योजनाएँ जारी रखने के साथ भारत पर वित्तीय सुस्ती के कम असर का फायदा उठाएगी । इस बदलाव से उपभोक्ताओं का भरोसा बढ़ेगा तथा सरकार अब बगैर किसी पार्टी की दखलंदाजी के निजीकरण से जुड़े फैसले ले सकती है । गठबंधन को निभाएगी तथा चुनावी घोषणापत्र पर अमल कर आम जनमानस में अपनी अच्छी छवि बनाएगी । उत्तर प्रदेश में लगभग दो दशक के बाद मंडल और कमंडल की लहर से मुक्त लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने पुनः अपना वोटबैंक प्राप्त कर लिया है । कांग्रेस का लखनऊ के रास्ते दिल्ली की सत्ता पाने का अवसर पुनः पैदा हो गया । प्रदेश में कांग्रेस सबसे बड़ी जीत दर्ज करने में भी कामयाब रही है । प्रदेश के सर्वाधिक मतों के अंतर से जीते शीर्ष १० उम्मीदवारों में बसपा कहीं नहीं है । सपा से तालमेल के बजाय कांग्रेस की एकला चलो की नीति भी कामयाब रही । ऐसा लगता है कि बसपा के सर्वसमाज की समीकरण लड़खड़ा गई और राज्य के ब्राह्मण मतदाताओं ने कांग्रेस की झोली भर दी । सपा में आजम खान एवं अमर सिंह, कल्याण सिंह विवाद के कारण मुस्लिम मतदाता मुलायम के वोट बैंक से छिटककर कांग्रेस की तरफ मुड़ गई । प० बंगाल में कांग्रेस तृणमूल गठबंधन ने वाम दुर्ग को ढहा दिया । यूपीए की जीत ने क्षेत्रीय दलों की महत्ताको कम कर दिया । स्थिति अब ऐसी है कि १० दरकार हो तो यूपीए को २० सांसदों का समर्थन मिल जाय । हालांकि चुनाव के दौरान जहाँ कांग्रेस मनमोहन को अगले प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट कर रही थी वहीं स्टार प्रचारक प्रियंका अपने भाई राहुल को प्रधानमंत्री बनाने के नाम पर वोट माँगा । चुनाव परिणाम के बाद सोनिया ने मनमोहन को ही प्रधानमंत्री पद हेतु उपयुक्त समझा है, परन्तु इस पाँच वर्ष के अंदर वे कभी भी प्रधानमंत्री पद पर आसीन हो सकते हैं ।
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Acchi samiksha.
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