Wednesday, July 1, 2009

“राष्ट्रीय सहारा” के चुनाव सुधार अभियान अनुकरणीय वैचारिक क्रांति के चिंतन समागम में आए महत्वपूर्ण विचार

लोकसभा चुनाव के दौरान वैसे तो लगभग सभी समाचारपत्रों एवं चैनलों ने चुनाव सुधार अभियान की शंखनाद की थी । सबों का ध्येय मतदान के प्रति जागरूकता लाना था परन्तु “राष्टीय सहारा” ने इस मुहिम की दौड़ में अन्य सभी को पीछे छोड़ दिया है । सहारा इंडिया परिवार के उपप्रबंध कार्यकर्त्ता ओ. पी. श्रीवास्तव के उद्‌गार मुक्‍त कंठ से प्रशंसित हुए जो वास्तव में अनुकरणीय है । उन्होंने कहा कि “देश की आजादी की आयु ६२ वर्ष हो गई है । अब कमियाँ और खामियाँ दूर करने के लिए सहारा इंडिया परिवार ने चिंतन की यह प्रक्रिया शुरू की है । जब चिंतन होता है तो कोई न कोई रास्ता निकलता ही है । सहारा इंडिया परिवार ऐसा परिवार है जो राष्ट्र व राष्ट्रवासियों की चिंता में विलीन रहता है और व्यवसाय में भी राष्ट्रहित का खयाल रखता है । व्यवसाय जगत में यह कहीं नहीं लिखा है कि अपने राष्ट्र को भूल जाओ । जब-जब दुनिया में गिरावट हुई है, तब-तब धर्मसत्ता ने सुधार किया है । ” राष्ट्रीय सहारा के समूह संपादक रणविजय सिंह ने कहा कि “परिवर्तन के लिए राष्ट्रीय सहारा ने शंखनाद किया है और एक नई धारा खोजने की जो पहल की है, वह जारी रहेगी । ” २६ अप्रैल को दिल्ली के कंस्टीट्‌यूशनल क्लब में चुनाव सुधार अभियान के तहत “चुनाव ः चिता, चुनौती और समाधान ” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में जाने माने दिग्गजों ने भाग लिया । दो सत्रों में आयोजित इस गोष्ठी में चुनाव के लिए भ्रष्टाचार पर लगाम कसने, संविधान में परिवर्तन करने, जनता को अपने जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार तथा नेताओं की जिम्मेदारी सुनिश्‍चित करने जैसे सुझाव आए ।प्रमुख वक्‍ताओं के क्रांतिकारी विचार ः१. जनता का राजनीति में हो सीधा हस्तक्षेप : प्रख्यात योगाचार्य स्वामी रामदेव ने चुनाव सुधार के लिए भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने तथा चुनाव लड़ने के लिए चरित्र प्रमाणपत्र की आवश्यकता जताई । उन्होंने कहा कि वर्तमान में लोकतंत्र की जो स्थिति है वह लोकतंत्र नहीं बल्कि षड्‍यंत्र है तथा इसमें व्यापक सुधार की जरूरत है । लोकतंत्र सर्वश्रेष्ठ प्रणाली है, लेकिन अब इसमें गहरा खोट आ गया है । लोकतंत्र मजाक बन गया है और शहीदों से मिली आजादी का उपहास उड़ाया जा रहा है । इस बेबसी से देश को बाहर निकालना होगा देश भर में इसके लिए आंदोलन चलाना होगा । उन्होंने चुनावी घोषणापत्रों पर लगाम लगाने की बात कही । उन्होंने कहा कि चुनावी घोषणापत्रों में लुभावने वायदे करके राजनीतिक दल वोट खरीद रहे हैं । उन्होंने नेताओं के गिरते चरित्र पर चिंता जताते हुए कहा कि नेताओं का चरित्र अच्छा न होने का समाज पर बुरा असर पड़ता है । उन्होंने चुनाव में वंशवाद की भी आलोचना करते हुए कहा कि आज भी महाराजा, राजकुमारी व महारानी जैसे शब्दों का प्रयोग होता है जो नहीं होना चाहिए । वह लोकतंत्र खत्म करने की बात तो नहीं कर रहे हैं, लेकिन इस समय लोकतंत्र में गहरा अंधेरा दिखाई दे रहा है । आज व्यापारी देश चला रहे हैं, व्यापारियों को देश नहीं चलाना चाहिए बल्कि व्यापार करना चाहिए । पहले राजा महाराजा के साथ दयालु, विनम्र व शूरवीर शब्दों का प्रयोग किया जाता था, लेकिन आज ये शब्द राजनीति से गायब हो गए हैं । आज के नेता शूरवीर नहीं बल्कि क्रूर हो गए हैं । आज देश में नेता भी नकली हैं और १५ प्रतिशत जनता भी नकली है । देश में करोड़ों घुसपैठिये हैं और लूट, बेईमानी, चरित्रहीनता में नेता अव्वल साबित हो रहे हैं । उन्होंने कहा कि बुजुर्गों या युवाओं में से किसे सत्ता जाए इसे लेकर भी मतभेद है । बुजुर्ग बुझदिल, लाचार और कमजोर हो सकते हैं तो युवा नादान व चरित्रहीन हो सकते हैं । उन्होंने चुनाव में भ्रष्टाचार को मुद्‌दा न बनाए जाने पर चिंता व्यक्‍त की और स्विस बैंकों में रखा देश का लगभग ७२ हजार करोड़ वापस लाए जाने की मांग की । यदि अभी नहीं जागे तो आने वाले समय में स्थिति और ज्यादा बदतर होगी । देश को नई आजादी और नई व्यवस्था की जरूरत है । आम जनता को राजनीति में सीधे हस्तक्षेप करना होगा । एक चपरासी की नियुक्‍ति के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित है, पर देश को चलाने वालों के लिए कोई शैक्षणिक योग्यता निर्धारित नहीं है । देश को चुनौतियों, खतरों व विषमताओं से निकालना होगा तथा जनता को राजनीतिक सुधार के प्रति स्वयं सजग होना होगा । २. पूरी तरह निराशावादी होना ठीक नहीं ः जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो० बी.बी. भट्‌टाचार्य ने कहा कि निश्‍चित रूप से चुनाव प्रक्रिया में काफी सुधार की जरूरत है और स्थिति काफी खराब है, लेकिन हमें पूरी तरह निराशावादी नहीं होना चाहिए । उन्होंने कहा कि यदि चुनाव में सभी बुरे हैं तो कम बुरे को चुनें । अच्छी उम्मीदों से ही देश आगे बढ़ेगा । उन्होंने कहा कि नेताओं की भी समाज के प्रति जवाबदेही निश्‍चित होनी चाहिए और भ्रष्टाचारी नेताओं का सार्वजनिक बहिष्कार होना चाहिए वरना भ्रष्टाचारी नेता चुनाव जीतकर संसद और विधानसभा में पहुंचते रहेंगे । उन्होंने संगोष्ठी में कहा कि पिछले तीन-चार चुनावों से चुनाव प्रक्रिया में काफी सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी काफी सुधार की जरूरत है । जब देश आजाद हुआ तो यूरोप के बुद्धिजीवियों ने कहा था कि भारत में लोकतंत्र ज्यादा दिन नहीं चलेगा, लेकिन यह भारत के लिए सुखद है कि आज आजादी के ६१ वर्ष बाद भी यहां लोकतंत्र जिंदा है । उन्होंने संसद व विधानसभाओं में पहुंचे नेताओं की योग्यता पर सवाल उठाया । उन्होंने कहा कि जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं को नीतियों से संबंधित मूल जानकारी का भी अभाव रहता है । यदि सर्वे किया जाए तो पता चलेगा कि संसद में बजट के दौरान दस प्रतिशत नेता भी बजट नहीं पढ़ते ।३. ‘विदुर’ की भूमिका में ‘राष्ट्रीय सहारा’ ः जवाहरलाल लाल नेहरू विश्‍वविद्यालय (जे‍एनयू) के प्रो. आनंद कुमार ने संगोष्ठी का संचालन करते हुए कहाकि आज जब मीडिया भी पैसा लेकर खबरें ‘छाप’ और दिखा रहा है, ऐसे में ‘राष्ट्रीय सहारा’ विदुर के रूप में मैदान में खड़ा है । यह बहुत बड़ी बात है । उन्होंने चिंता व्यक्‍त करते हुए कहाकि चार खंभों में से तीन पहले से ही हिले’ हुए हैं । ऐसे में चौथा स्तंभ भी अगर पैसे के लिए बिक जाए तो इस देश का क्या होगा । श्री कुमार ने कहाकि देश में लोकतंत्र स्थापित है और हम सभी स्वतंत्र हैं, लेकिन लोकतंत्र है कहां? अभी तक तो कोर्ट की भाषा तक लोकतांत्रिक नहीं हुई है । ऐसे में हम किस तरह के लोकतंत्र की बात करें । जब एक आदमी को अपनी भाषा में न्याय नहीं मिल रहा है तो फिर उसे कैसे पता चलेगा की वह लोकतांत्रिक देश में रह रहा है या नहीं । व्यक्‍ति को अपने को स्वतंत्र महसूस करने के लिए जरूरी है कि वह अपनी बात को अपनी भाषा में कह और सुन सके जो अभी तक इस देश में नहीं हुआ है । ४. राज्यसभा में अमीरों का राज ः पूर्व चुनाव आयुक्‍त डा. जीवीजी कृष्णामूर्ति ने कहा कि चुनाव सुधार के लिए संविधान में परिवर्तन होना चाहिए । आज राज्यसभा पैसे वालों की सभा हो गई है और अपराधी चुनाव लड़ रहे हैं । इस व्यवस्था में बदलाव संविधान में परिवर्तन से ही संभव है । राष्ट्रीय सहारा की संगोष्ठी को संबोधित करते हुए पूर्व चुनाव आयुक्‍त डा. जीवीजी कृष्णामूर्ति ने वर्ष १९४६ से शुरू हुई चुनाव प्रक्रिया का जिक्र करते हुए मौजूदा चुनाव प्रक्रिया से तुलना की उन्होंने कहा कि पहले नेताओं का चरित्र होता था, लेकिन आज स्थिति बदल गई है । उस समय सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे नेता थे जिन्होंने देश की ५६५ रियासतों को एक सूत्र में बांधकर भारत बना दिया । उन्होंने कहा कि आज यदि कश्‍मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है तो इसके लिए हमें पटेल का आभारी होना चाहिए । उन्होंने बताया कि ११ वें लोकसभा चुनाव में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने जब आंकड़े देखे तो कुल १३,९५२ उम्मीदवारों में लगभग १५०० उम्मीदवार ऐसे थे जो हत्या, लूट बलात्कार और डकैती जैसे संगीन अपराधों के आरोपी थे । जिन्हें फांसी पर लटकाया जाना चाहिए वे चुनाव लड़ रहे थे । ये आंकड़े देखकर ही उन्होंने चुनाव सुधार प्रक्रिया शुरू की । उन्होंने कहा कि आज राजनीति में अपराधियों की संख्या इतनी ज्यादा हो गई है कि अब राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवार के बारे में यह कहना चाहिए ‘हमारा गुंडा आपके गुंडे से ज्यादा अच्छा है । ’ ५. चुनाव सुधार प्रक्रिया लगातार चलाने की जरूरत ः चुनाव आयोग के पूर्व सलाहकार केजे राव ने कहाकि चुनाव प्रक्रिया में सुधार लाए जाने के लिए लगातार सेमिनार कर मतदाताओं को जागरूक किये जाने की जरूरत है । यह नहीं कि, सिर्फ चुनाव के समय सेमिनार आयोजित हों और बाद में हम भूल जाएं । यह प्रक्रिया लगातार चलती रहनी चाहिए । श्री राव ने कहा कि सरकार खुद ही नहीं चाहती कि चुनाव प्रक्रिया में सुधार हो । अगर ऐसा नहीं होता तो आयोग द्वारा पिछले सात वर्षों से सरकार संविधान में संशोधन किये जाने की मांग कर रहा है लेकिन अभी तक इस मुद्दे पर किसी भी पार्टी की सरकार ने कोई ‘पहल’ नहीं की है । उन्होंने कहाकि जिस माहौल में चुनाव आयोग मतदान करवाता है वह बहुत ही मुश्‍किल भरा है । ऐसे में आयोग पर उंगली उठाना ठीक नहीं है । उन्होंने कहाकि चुनाव के समय केवल आंध्र प्रदेश में जितना पैसा और शराब बांटी जाती है उतना देश में चुनाव के वक्‍त नहीं बांटता है । उन्होंने कहाकि आज कोई भी पार्टी राजनीतिक सुधार की बात ही नहीं करती, जबकि यह सबसे बड़ा मुद्दा है । जब तक इसमें सुधार नहीं आएगा, तब तक देश में सुधार कैसे होगा । उन्होंने अफसोस जताते हुए कहाकि हमारे यहां ऐसी स्थिति है कि हत्या और मर्डर करने वाला भी चुनाव लड़ रहा है और अनपढ़ चुनाव जीतने के बाद कानून बना रहा है । जबकि उसे पता ही नहीं है कि जो कानून बन रहा है उसका असर आम आदमी पर कैसा पड़ेगा । ६. कोई पार्टी नहीं चाहती चुनाव प्रक्रिया में सुधार ः दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजिन्दर सच्चर ने चुनाव सुधार को लेकर राजनीतिक पार्टियां कितनी सक्रिय या ईमानदार हैं । इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने प्रत्याशियों द्वारा अपने घोषणापत्र में संपत्ति का ब्योरा दिए जाने के आदेश दिए तो संसद में बैठी सभी पार्टियों ने एकमत से इस आदेश को खारिज कर दिया और सुप्रीम कोर्ट को कहा कि उसे इस तरह के कानून बनाने का अधिकार नहीं है । नियमों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के कानून को वापस लेने का अधिकार उसी के पास है, इसलिए यह कानून वापस नहीं हो सका है । श्री सच्चर ने संगोष्ठी में कहा कि इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजनैतिक पार्टियां आम आदमी के प्रति कितनी ईमानदारी हैं । उन्होंने कहा कि चुनाव सुधार को लेकर इस तरह की गोष्ठी चुनावों से पहले होनी चाहिए, ताकि आम मतदाताओं को इसका लाभ मिल सके । पहले राजनीति का अपराधीकरण हो रहा था अब अपराधियों का राजनीतिकरण हो रहा है । इसलिए अब तक जो कुछ भी सुधार हुआ है वह सिर्फ न्यायालय के हस्तक्षेप की वजह से हुआ है, न कि किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा । उन्होंने स्पष्ट किया कि कोई भी राजनैतिक पार्टी नहीं चाहती है कि ऐसी कोई भी पद्धति लागू हो जिससे उनको नुकसान पहुंचे । उन्होंने एक एनजीओ द्वारा किए गए सर्वे रिपोर्ट के आधार पर कहा कि चुनाव लड़ रहे ३९ प्रत्याशियों पर इतने गंभीर केस दर्ज हैं कि उन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति ही नहीं मिलनी चाहिए । ७. आधी आबादी का वोट नहीं देना बुनियादी समस्या ः उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्‍ता प्रशांत भूषण ने कहा कि एक तरफ तो कहा जा रहा है कि हम सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं, जहां सभी को वोट देने दिया जाता है । वहीं दूसरी ओर आधी आबादी वोट नहीं देती है । क्या हमारे लोकतंत्र में कोई बुनियादी समस्या है, इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है श्री भूषण ने संगोष्ठी में कहा कि आज जिस तरह का माहौल है उसमें किसी एक पार्टी की सरकार का बनना मुश्‍किल ही नहीं बल्कि असंभव है । मुझे तो लगता है कि आगामी सरकार दो साल का भी कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी । वक्‍ताओं द्वारा चुनाव प्रक्रिया के लिए सुझाव गए बिंदु पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहाकि ‘राइट टू रीकॉल’ का सुझाव सबसे बेहतर है । इसके अलावा ईवीएम में ‘से नो टू वोट’ का आप्सन होना चाहिए । उन्होंने कहाकि जिस प्रत्याशी पर चार्जशीट हो चुका है, उन्हें चुनाव लड़ने से नहीं रोका जाना चाहिए । इसी तरह से अशिक्षित और अनपढ़ को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जाना चाहिए क्योंकि बहुत से ऐसे उदाहरण हमारे सामने हैं जिसमें अनपढ़ों ने ऐसा काम किया है जैसा कि पढ़े-लिखों ने भी नहीं किया है । भूषण ने कहा कि जहां तक भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए न्यायिक व्यवस्था को ठीक किये जाने की जरूरत है । न्यायिक व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है । ८. राजनीति में बढ़ रही है ‘गुनहगारों’ की संख्या ः राजनीति में ‘गुनहगारों’ की संख्या में इजाफा हो रहा है । इसकी वजह से चुनावों में धन का बंटवारा भी बढ़ता जा रहा है । राजनीति में वंशवाद भी बढ़ा है । इससे आम आदमी अपने को स्वतंत्र अनुभव नहीं कर रहा है । ऐसी स्थिति लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है । ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी ऐसा आचरण करें कि उससे समाज में एक आदर्श स्थापित हो और जनता को लगे कि उसकी बात और समस्याओं को कोई सुनने वाला है । अन्यथा आजादी के छह दशक बाद भी आम आदमी अपने को गुलाम ही महसूस कर रहा है । पहले गोरों (अंग्रेजों) के गुलाम थे आज काले (भारतीय) के गुलाम हैं ।चुनाव सुधारों पर अपने विचार व्यक्‍त करते हुए अन्‍ना हजारे ने कहा कि सरकार को जनता का ख्याल तब आता है जब उसे अहसास होने लगता है कि अब जनता उसकी कुर्सी छीन सकती है । इसलिए अब जरूरी हो गया है कि जो सांसद और विधायक काम नहीं करते है उन्हें वापस बुलाने के लिए जनता को ‘राइट टू रीकॉल’ का अधिकार मिलना चाहिए । उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में इसे ग्राम पंचायत मे लागू किया जा चुका है और अपने क्षेत्र में काम न करने वाले ग्राम पंचायतों के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को जनता ने कुर्सी से उतारा है । इसके बाद से वहां का परिदृश्य बदला है । राइट टू रीकॉल पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए । तब राजनेताओं को लगेगा कि काम नहीं करने पर जनता उसकी कुर्सी छीन सकती है । उन्होंने कहा कि बदलाव के लिए जरूरी है कि ‘शक्‍ति’ सत्ता में बैठे लोगों के पास न हो कर लोगों के हाथों में होनी चाहिए । लोगों के हाथों में जनशक्‍ति के आने से ही बदलाव आएगा । उन्होंने चुनाव प्रक्रिया में सुधार लाने के लिए सुझाव देते हुए कहा कि जो लोग मतदान नहीं करते हैं, उनकी सभी तरह की सुविधाएं बंद कर देनी चाहिए । हर साल मंत्री, विधायक और ब्यूरोक्रेट्‌स की संपत्ति का नेट पर खुलासा होना चाहिए । ईवीएम में ‘नो टू वोट’ का ऑप्शन होना चाहिए । परिवर्तन लाने के लिए बच्चों से लेकर बड़ों तक को शिक्षित करना होगा । ‘इस संगोष्ठी के पहले सत्र को स्वामी रामदेव के अलावा, सहारा इंडिया परिवार के उप प्रबंध कार्यकर्त्ता ओ. पी. श्रीवास्तव, जे‍एनयू के कुलपति प्रो. वी. बी. भट्‌टाचार्य पूर्व चुनाव आयुक्‍त डॉ. जी. वी जी. कृष्णमूर्ति तथा दूसरे सत्र में दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजिन्दर सच्चर, सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्त्ता अन्ना हजारे, चुनाव आयोग के पूर्व सलाहकार के जे राव, उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्‍ता प्रशांत भूषण आदि दिग्गजों ने अपने महत्वपूर्ण विचारों से आलोकित किया । इस संगोष्ठी में उठी आवाजें ः-* पीएम का चुनाव सीधे जनता से हो ।* राजनेताओं की न्यूनतम शैक्षणिक योगयता निर्धारित हो ।* अदालत में प्रथम दृष्ट्‌या अपराधी चुनाव लड़ने से वंचित हो । * झूठे वादों पर लगाम लगे । * देश की अस्मिता से जुड़े मुद्‌दे बनें चुनावी मुद्‍दे ।* चुनाव सुधार के लिए भ्रष्टाचार पर लगाम जरूरी * उम्मीदवारों का पैन कार्ड बनना व आयकर रिटर्न भरना हो आवश्यक । * चुनाव लड़ने के लिए भारतीय संविधान , सुरक्षा व अर्थव्यवस्था की मूल जानकारियों से संबंधित परीक्षा उत्तीर्ण करना हो जरूरी ।* चुनाव लड़ने के लिए चरित्रप्रमाण पत्र हो आवश्यक । * नेताओं की जवाबदेही निश्‍चित हो । * भ्रष्टाचार के आरोपी नेता का हो सार्वजनिक बहिष्कार* चुनाव सुधार के लिए संविधान में हो परिवर्तन । * जनप्रतिनिधि कानून १९५१ में हो परिवर्तन ।* कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल १९६१ में सुधार की जरूरत । * लोकशाही की पवित्रता हो कायम ।* नेताओं पर जनता का अंकुश जरूरी । * सुधार के लिए चारित्रिक लोग संगठन के रूप में एकजुट हों । * जनता को मिले “राईट टू रीकॉल ” * बैलेट पर एक निशान मतदाता की नापसंद का भी हो । * बच्चों से लेकर बड़ों तक लोकशिक्षा व लोकजागृति हो । * चुनाव सुधार में लगे लोगों को एक मंच पर आना होगा । * प्रतिनिधित्व लोकतंत्र के बजाय भागीदारी लोकतंत्र की शुरूआत हो * शक्‍तियों का विकेन्द्रीकरण हो । * वोट न करने वाले मतदाता की सुविधाएँ बंद हों । * सभी दलों के अच्छे लोग मिलकर राष्ट्रीय सरकार बनाएँ ।

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