आरक्षण ! कई वर्षो की आजादी के बाद अद्भुत विलक्षण राजनीतिक मायावितान ! यह मायावितान समसामयिक राजनीति और सामांजिक संकट का अवदान है । आरक्षण जातीय वर्गभेद की खाई को वृहन्तर बनाकर सिंहासन पर अखण्ड आसीन होने की साजिश का परिणाम है । यह एक ऎसा दुरचक्र है जो किसी गतिमान देश-विकाशशील समाज को पंगु बना देने के लिए प्रर्याप्त है । कार्यायल ने एकबार कहा था कि यदि तुम किसी समुदाय को निष्क्रीय बना देना चाहते हो तो उसे अतिरिक्त सुविधाओं के व्यामोह में समुदाय कर्मपथ से विरत हो जाएगा । आरक्षण इसी निष्क्रियता का आहान है, राष्ट्रीय चरित्र को धूमित करने का सुनियोजित षड़यंत्र है , सामाजिक विकास का चक्का जाम करने वाला यंत्र है । इतिहास साक्षी है कि धर्म और राजनीति के महंत्रो ने समाज का अकल्याण ही अधिक किया है । इन्होंने सदा कोई न कोई हथकंड़ा अपनाकर निरिह जनता को गुमराह किया है, लोगो को उल्लू बनाकर अपना उल्लू सीधा किया है । आरक्षण एक ऎसी ही षड़यंत्रपूर्ण आयोजन है । आरक्षण का सर्वप्रचलित अर्थ है विशेष जनमुदाय के लिए विभिन्न सरकारी सेवाओं तथा प्रविष्टियों में स्थान सुरक्षित होना ।
भारतीय संविधान में एतद्घिषयक २४% आरक्षण अनुसूचित जातियों ( हरिजनों ) एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए पहले से ही स्वीकृत है । यह स्वाभाविक ही कि सदियों से प्रताड़ित हरिजनों और गिरिवनवासियों को सुविधाएँ दी जाए । इसी कारण, जब उत्तम परीक्षाफ़लों के अभाव में भी हरिजनों और आदिवासियों को सामाजिक न्याय के लिए आरक्षण दिया गया तो कहीं विस्फ़ोट नही हुआ । लेकिन जब ४२ बर्षो की स्वतंत्रता के बाद १९७८ ई. में बिहार की जनता पार्टी सरकार ने पिछड़ी जातियों के लिए २६% आरक्षण की प्रस्तावना की तो व्यापक प्रतिरोध उत्पन्न हो गया । यह आक्रोश स्वाभाविक था । तानाशाही मनोवृति और पद्सोलुपता के धनी समाजवाद के मुखौटाधारी वर्ग विशेष का मसीहा बनने के लिए बेकरार बिहार के मुखय्मंत्री ने बिहार के बाहाण, श्चत्रिय और कायस्य वर्णो को उच्चवर्ग में शुमार किया एवं अवशिष्ट सारी जातियों को निम्नवर्ग के खाने में ड़ाल दिया । यह वर्गीकरण इस स्थूल अवधारणा के आधार पर किया गया कि बिहार की कुल जनसंख्या का ६०% भाग असवर्णो का ही है। इन असवर्णो के लिए ही उक्त मुख्यमंत्री की सरकार ने २६% आरक्षण की प्रस्तावना की । इस वैचारिकता की शरारत को भाँपकर राजव्यापी आंन्दोलन हुए । २६ बसें जला दी गयी । लगभग साढ़ेतीन सौ बसे क्षतिग्रस्त हुई। अनेक सरकारी संस्थानों शिक्षालयों में अग्निकांड़ उपस्थित हुआ, कई स्थलो पर रेल-लाइनें उखाड़ी गई और व्यापक राष्ट्रीय क्षति हुई । समूचे विनाश-चक्र का उत्तरदायी था। आरक्षण । आरक्षण की समस्या का सीधा सम्बन्ध उन बहुसंख्यक ब्राह्राण , श्वत्रिय , कायस्थ नवयुवकों के साथ था । जिन्हें अपना भविष्य अंधकारमय दिखने लगा । प्रतिभा और प्ररिश्चम के बाबजूद इन नवयुवको को महज इस कारण अनुकूल अवसरों से वंचित करने की साजिश आरक्षण की योजना ने उपस्थित कर दी कि ये नौजवान आरक्षण - प्राप्त जातियो में उत्पन्न नहीं हुए । इस ज्वलंत समस्या का एक समाधान भूतपूर्व केन्द्रीय विधिमंत्री शांतिभूषण ने उपस्थित किया कि पिछड़ी जातियों के लिए २६% आरक्षण तो रहेगा लेकिन कुछ शर्स्त्रो के साथ ३% स्थान महिलाओं के लिए ३% स्थान आर्थिक दृष्टि से पिछड़े लोगों के लिए और २०% स्थान आयकर न देने वाले पिछड़ी जाति के लोगों के लिए आरक्षित करने का सुझाव विधिमंत्री ने दिया । निश्चय ही यह सुझाव बहुत समीचीन नहीं है, क्योकि इस भ्रष्टाचारी और षडयंत्रपूर्ण देश में आयकर से बचने के अनेक रास्ते हैं । इन रास्तों पर चलकर कुपात्रोंको अवसर देने की योजना ही आरक्षण का केन्द्रीय लक्ष्य है । बिहार की जनसंख्या के ३०% लोग निर्धनता रेखा के नीचे ही है । इन गरीबों की विकासयात्रा की ओर ध्यान न देकर जिस राज्य के राज्यनीतिज्ञ जातीय भावनाओं के साथ मशगूल हैं । उस राज्य का विकास भला कैसे संभव है ? जिस समाज में प्रतिभा की जगह जाति की पूजा होती है। वह समाज निरंतर कुंठा तथा निराशा की आग में जलता रहेगा । आरक्षण जैसी अंध साजिशें कुर्सी से चिपके रहने में कुछ लोगों को सहायता तो कर सकती है, परन्तु इससे सामाजिक उन्नयन की आशा की नही की जा सकती । होना यह चाहिए कि गरीबों को पढ़ने लिखने एवं प्रगति करने के अवसर दिए जांए । लेकिन आरक्षण के जरिए तो हम मेघाशून्य व्यक्तियों को शिक्षक , चिकित्सक , अभियंता आदि बनाकर देश का सत्यानाश करने जा रहें हैं । इस स्थिति की भलिभाँति परीक्षा कर ही जातिवाद का जहर फ़ैलानेवाले आरक्षण की यूक्तियुक्त्ता पर विचार करने की आवश्यकता है । इन दिनों आरक्षण विरोध की लहर पुन: सम्पूर्ण देश में फ़ैल रही है । सभी शिक्षण संस्थाएँ बंद करवाए जा रहें है। जगह - जगह पुनः रोक , तोड़फ़ोड़ एवं जला देने की घटना हो रही है हमारी राष्ट्रीय मोर्चे की घटना हो रही है । कोई ध्यान नही दे रही है । अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो विद्रोह की आग में नई सरकार के साथ-साथ सम्पूर्ण देश तहस-नहस हो जाएगा अतः सरकार को चाहिए कि वे जाति व्यवस्था पर नहीं अर्थव्यवस्था पर आरक्षण का आदेश दे ।
Wednesday, July 1, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment
I EXPECT YOUR COMMENT. IF YOU FEEL THIS BLOG IS GOOD THEN YOU MUST FORWARD IN YOUR CIRCLE.