Wednesday, July 1, 2009

वरूण गांधी के इर्द-गिर्द

सैद्धान्तिक रूप से अनुशासित पार्टी मानी जानेवाली भाजपा भी राजनैतिक विकृति की शिकार हो गई है । जिन लोगों के मन में भाजपा के प्रति स्वच्छ छवि और ईमानदार नजरिया था वह कब का धुंधला हो चुका है । जब-जब राजनीति लोककल्याण एवं सौहार्द्रता के मूल लक्ष्य से भटकी है तब-तब वह राजनीति के अधःपतन का काल कहा जाता है । दिगभ्रमित राजनेता अपने पद एवं जनसमर्थन की गलत व्याख्या कर अपने ही विचार एवं संगठन पर कुठाराघात करते हैं । यह सोचने की घड़ी है कि क्या इसके पीछे अच्छा उद्येश्य हो सकता है ? कदापि नहीं । वास्तव में राजनीति तो जनसेवा का माध्यम है । नेताओं में एक दूसरे के प्रति सम्मान एवं विनम्र व्यवहार ही प्रथम विशेषता होनी चाहिये । यह इसके विपरीत है तो फिर ऐसी राजनीति को बदलने की जरूरत है । भाजपा आज वाजपेयी विहीन हो चुकी है । भाजपा के पूर्व नाम जनसंघ के मुख्य स्तंभ में से एक बलराज मधोक वर्त्तमान में जीवित हैं, परन्तु क्या कर रहे हैं, यह शायद ही किसी को पता हो । भाजपा की नीति निर्धारकों में से एक तेजतर्रार नेत्री साध्वी उमा भारती अपनी अलग पार्टी बना चुकी है । भाजपा के चुनावी रणनीतिकार प्रमोद महाजन एवं दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के निधन के पश्‍चात्‌ उनके वारिसों को आगे लाने की कवायद का वायदा करने के बावजूद पार्टी उसे भुला चुकी है । पार्टी का दलित मुखौटा एवं चाणक्य कहे जानेवाले गोविन्दाचार्य पार्टी से किनारा कर दिए गए हैं । वे आज स्वदेशी फॉमूले को जीवित करने हेतु राष्ट्रव्यापी अभियान चला रहे है । अब चर्चा यदि वरूण गांधी की हो तो हमें पार्टी के दोमुँहे नीति का आभास होगा । ऐसा लगता है वरूण गाँधी को बलि का बकरा बना दिया गया तत्पश्‍चात्‌ पार्टी ने उससे किनारा कर लिया । फिर पार्टी को ऐसा लगा कि इसको ढाल के रूप में रखकर युद्ध लड़ी जानी चाहिए, और फिर वरूण गाँधी स्टार प्रचारक हो गए पर यहाँ सवाल यह उठता है कि यदि न्यायालय का अंकुश न होता तो क्या वरूण के बयान से उपजी स्थिति बेकाबू नहीं हो जाती ? आज राजनीति को नकारात्मक नहीं बल्कि सकारात्मकता की सख्त आवश्यकता है । संपूर्ण राष्ट्र आज नेताओं की नेतागिरी चमकाने के चक्‍कर में प्रदूषित हो रहा है । जातिवाद, क्षेत्रवाद, संप्रदायवाद के नाम पर घृणित वातावरण बनाया जा रहा है जो हमारे सभ्यता-संस्कृति के प्रतिकूल है । भड़काऊ भाषण देने के आरोप में जेल में रहने के बाद पैरोल पर छूटे पीलीभीत से भाजपा उम्मीदवार २९ वर्षीय वरूण गाँधी अब शांत व संयमित दिखाई देते हैं । वे अब फरमा रहे हैं कि “अहिंसा ही उनका धर्म है और उन्हें अपने देश से प्यार और सम्मान मिला है । वरूण ने जाति धर्म से उपर उठकर इंसानियत की रक्षा करने को कृतसंकल्प रहने के साथ-साथ सम्मान की रक्षा के लिएन दृढ़संकल्पित होने की बात कही । पिछले दिनों आडवाणी ने वरूण से प्रचार के दौरान संयम बरतने की सलाह दी थी । उसके बाद से अटकलें लगाई जा रही थी कि भाजपा अपने प्रचार अभियान में वरूण गाँधी को हर जगह जाने की छूट नहीं होगी । वरूण के बाद के भाषण में तब्दीली से साफ लग रहा है कि उस पर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल शपथपत्र का सर्वाधिक असर है जहाँ वे यह लिखकर दे चुके हैं कि वे अब फिर सांप्रदायिक भाषण नहीं देगे । अब चतुर नेता की तरह उनके सुर बदल गए हैं । अब वे कह रहे हैं कि महिलाओं या देश का अपमान वे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेंगे । अपने जेल के दिनों का उत्पीड़न सुनाकर समर्थकों की हमदर्दी जुटाने में वे लग चुके हैं । दूसरी तरफ वरूण की माँ मेनका गाँधी को उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती से सवाल जवाब भी काफी चर्चा में रहा । मायावती को वरूण प्रकरण के रूप में एक राजनैतिक हथियार मिल गया और उसने अल्पसंख्यक वोट बैंक को अपने पाले में करने हेतु वरूण गाँधी पर रासुका लगा कर जेल की सलाखों के अंदर करवा दिया । मायावती ने कहा कि “यदि मेनका ने वरूण गाँधी का सही-ढ़ंग से पालन-पोषण किया होता और उन्हें अच्छे संस्कार दिए होते हो वह आज सलाखों के पीछे नहीं होता । ” मायावती ने यह भी कहा कि माँ का दर्द समझने के लिए माँ होना जरूरी नहीं है । माँ तो मदर टेरेसा भी नहीं थी । फिर भी वह करोड़ों माताओं का दर्द समझती थी । उन्होंने कहा कि उनकी सरकार प्रदेश में किसी को भी कानून के साथ खिलवाड़ नहीं करने देगी चाहे वह गाँधी परिवार का बेटा हो या फिर किसी राजा महाराजा का । वह पूरे देश की करोड़ों माताओं के दर्द और उनकी ममता को अच्छी तरह समझती हैं, जबकि मेनका गाँधी केवल अपने बेटे के दर्द और ममता को महसूस करती है । जेल में मुलाकात की अनुमति नहीं मिलने पर मेनका गाँधी ने कहा “ यदि मायावती माँ होती तो उन्हें माँ का दर्द समझ में आता । प्रशासन के पूर्वाग्रह के कारण एक युवा का उत्पीड़न किया जा रहा है । मेरे परिवार के संस्कारों के बारे में पूरा देश जानता है । मायावती मेरे संस्कारों पर अंगुली ना उठाएँ । मायावती मदर टेरेसा से अपनी तुलना कर रही हैं । मदर टेरेसा इंजीनियरों की हत्या नहीं कराती थी । निर्दोषों को जेल नहीं भेजती थी । मदर टेरेसा हीरे नहीं लेती थी । लोगों पर रासुका नहीं लगाती थी । ” उपरोक्‍त प्रकरण से ऐसा लगता है कि वरूण-मेनका के रूप में भाजपा को मायावती एवं सोनिया दोनों पर एकसाथ हमले करने एवं युवातुर्क नेता के रूप में ब्रह्रास्त्र मिल गया है । भाजपा हिन्दुत्व के अपने नये अवतार वरूण गांधी को राहुल गांधी के मुकाबले उतारने की तैयारी में जुट गई है । वरूण उनतीस साल के हैं और उनके नाम के पीछे गांधी भी लगा है । भाजपा अपनी तमाम कोशिशों के बाव्जूद बयासी साल के आडवाणी को उनतालिस साल के राहुल गांधी की युवा छनि के सामने कारगर तरह से पेश नहीं कर पा रही है । ऐसी सूरत में भाजपा को अपने खेमे में एक युवा गांधी नजर आ रहा है । दोनों गांधी इन्दिरा गांधी के पोते हैं । वैसे भी २००४ के लोकसभा चुनाव में भी वरूण गांधी स्टार प्रचारक रह चुके हैं । पार्टी ने बेशक उनके भड़काऊ भाषण से अपने को अलग किया है । लेकिन संघ परिवार के खुल कर उनके साथ आने के बाद पार्टी में कट्‌टर हिन्दूवादी खेमे का उन्हें समर्थन मिल रहा है । सूत्रों के अनुसार पूर्व अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी, महासचिव विनय कटियार, सांसद योगी आदित्यनाथ राहुल के बचाव में आ गये हैं । इन नेताओं का मानना है कि अपने को हिन्दू कहना और हिन्दूओं की रक्षा में खड़ा होना कोई गुनाह नहीं है । इसी के मद‌देनजर चुनाव आयोग से पार्टी को वरूण गांधी प्रकरण पर जो नोटिस मिला है, उसमे वह आक्रामक तरीके से उनके बचाव में उतरने की तैयारी कर रही है । हिन्दुत्व के पोस्टर ब्यॉय नरेन्द्र मोदी का बीते विधानसभा चुनावों में उपयोग पार्टी के लिये फायदेमंद नहीं रहा । दिल्ली की जिन आठ विधानसभा सीटों में उन्होंने प्रचार किया था वहां पार्टी के सभी उम्मीदवार हार गये थे । इसलिये उन्हें गुजरात के बाहर महाराष्ट्र और गोवा तक सीमित कर दिया गया है । मोदी को लेकर गठबंधन के सहयोगी दलों जेडीयू और अकाली दल को भी ऐतराज है । ऐसे में वरूण गांधी के रूप में पार्टी को नया हथियार मिल गया है । जिनमें हिन्दुत्व के तड़के के साथ जवानी का जोश भी है । गांधी के सामने गांधी का यह मुकाबला दिलचस्प होगा । इधर संघपरिवार ने अपने कैडरों को भाजपा के पक्ष में लामबंद होने का निर्देश दिया है । उधर इंडियन जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष उदित राज देश में चल रही राजनीति से बेहद दुखी है । उनका कहना है कि यहाँ विचारों व सिद्धांतों की राजनीति करना अब बेमानी हो गई है । इस समय जहर उगलकर जातिवाद, क्षेत्रवाद व साम्प्रदायिकता की राजनीति करनेवालों की चल रही है । मीडिया भी ऐसे लोगों के दरवाजे पर सुबह से शाम तक खड़ी रहती है । यदि ईमानदार लोग राजनीति से दूर भागेंगे तो इसमें भ्रष्टाचारियों तथा अपराधियों का एकक्षत्र राज हो जाएगा । सभी राजनैतिक दलों में कालेधन के प्रवेश ने नेता, कार्यकर्त्ता तथा जनता तीनों को भ्रष्ट कर दिया है । उन्होंने अपनी पार्टी के जौनपुर से उम्मीदवार सोनकर की हत्या का आरोप मायावती पर लगाया । वरूण पर निशाना साधते हुए कांग्रेस ने कहा कि जो काम इस गाँधी ने किया है, वह किसी गाँधी ने नहीं किया । कांग्रेस ने यह बात वरूण के उस बयान के जवाब में कही है जिसमें उन्होंने कहा था कि वह सिर्फ नाम के ही नहीं काम के भी गाँधी है । कांग्रेस प्रवक्‍ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि वरूण गांधी का काम कुछ देर पहले ही लोग देख चुके हैं । कैमरेमें दिखाई गई वरूण की भाषा और सोंच साबित करती है कि यह कोई अच्छा कर्म नहीं था । सिंघवी ने कहा इस सोंच से देश को बचाना जरूरी है और यह काम महात्मा गाँधी की विचार धारा में विश्‍वास करनेवाली कांग्रेस ही कर सकती है । केन्द्र सरकार ने वरूण गाँधी के उपर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एन एस ए) को हटाने की याचिका खारिज कर दी है । गृहमंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि इस मामले में केन्द्र सरकार के हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं हैं । वरूण पर से एनएसएन हटाने या इसमें हस्तक्षेप करने से गृहमंत्रालय का लेना-देना नहीं है । वरूण गांधी के भड़काऊ भाषण दिए जाने के बाद वह भाजपा के हीरो बन गए हैं । इस भाषण की वजह से ही जेल जाना पड़ा और सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र दिए जाने के बाद ही वे पैरोल जेल से बाहर निकलने में कामयाब हो गए पर उनपर अभी भी रासुका लगा हुआ है । चूँकि वह भाजपा के हीरो बन गए हैं इसलिए कई जगह उनकी माँग बढ़ गई है । हर जगह पार्टी उम्मीदवार चाहते हैं कि वरूण गांधी उनके इलाके में आयोजित रैली को संबोधित करें । एक अनुमान के मुताबिक केवल उत्तर प्रदेश में ३० उम्मीदवारों ने पार्टी से कहा कि उनके चुनावक्षेत्र में रैली के लिए वरूण गांधी को भेजा जाए । जबकि वरूण गांधी के लिए चुनाव आयोग की ओर से एक विशेष टीम भेजी गई जो वरूण के भाषणों और चुनाव संचालन पर नजर रखेंगी । वरूण प्रकरण पर पार्टी की किरकिरी होने पर पार्टी ने तत्काल इससे पीछा छुड़ा लिया । इस मध्य मेनका को उस स्थिति जैसा सामना करना पड़ा जिससे पिंड छुड़ाना भी मुश्‍किल हो । उस वक्‍त मेनका की अश्रुधारा फूट पड़ी थी । कुछ समय लाभ हानि का आकलन करने तथा वरूण को चुनावी मंत्र सिखाने के बाद भाजपा ने फिर एकबार अपना पासा पलटा । तब ऐसा प्रतीत हुआ जैसे पार्टी की कोई स्थायी नीति एवं राजनीति है ही नहीं । इस अवधि में ही वरूण की राष्ट्रभक्‍ति का जज्बा जोर पकड़ लिया । वरूण के मुताबिक उन्होंने उत्तर-प्रदेश में राष्ट्रभक्‍ति की जो लड़ाई शुरू की है उसमें चाहे जो कुर्बानी देनी पड़े वे पीछे नहीं होंगे । नवाबगंज की एक जनसभा में वरूण ने कहा “ मैं चुप नहीं बैठूँगा । जुल्म के खिलाफ आवाज उठाता रहूँगा । मैं चट्टान की तरह आपके साथ हूँ और हमेशा आपकी लड़ाई लड़ता रहूँगा । इसके उपरांत भाजपा के महासचिव रविशंकर प्रसाद ने कहा कि “वरूण के खिलाफ रासुका हटाने से इनकार करना देश में व्याप्त वोट बैंक की राजनीति का सबसे घृणित चेहरा है । पिछले चार दशकों में वरूण एकमात्र नेता है जिनके खिलाफ रासुका लगाया गया । यहाँ तक कि मुंबई हमले के आरोपी कसाब के खिलाफ भी इस कानून के तहत कारवाई नहीं की गई । प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस किसी सोप ओपेरा की तरह वंशवाद की राजनीति का नाटक खेल रही है । उन्होंने कहा कि पूरी पार्टी गाँधी परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है और मनमोहन सिंह की कैबिनेट के कुछ मंत्री तो राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री बनाने की इच्छा भी जता चुके हैं । बहरहाल कुछ भी हो वरूण अब सियासी स्टार बन चुके हैं मरहूम इंदिरा गांधी के पोते वरूण गांधी ने चर्चित हाथ काटने के बयान के बाद भले ही सियासी दुश्मनों को बढ़ा लिए हो लेकिन इस विवाद से वह साइबर दुनिया में सियासी हॉट स्टार बन गए हैं । सलाखों में वरूण को रात काट रहे हों, लेकिन उनके भाषण फिर प्रदेश सरकार द्वारा रासुका लगाए जाने पर इंटरनेट यूजर दुनियाभर में पक्ष-विपक्ष में अपनी राय लिख रहे हैं । वरूण ने जो बोला वह ठीक था या गलत ! इस पर रायशुमारी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि साइबर दुनिया में २२९००० ब्लाग साइट पर लाखों लोग ‘फायर ब्रांड हिंदुत्व’ पर अपने कमेंट लिख रहे हैं । चुनावी मौसम में साइबर दुनिया में वरूण के अलावा अन्य नेता को इतने हिट्‌स और कमेंट्‌स नहीं मिले हैं । साइबर दुनिया में वरूण के भाषण पर छिड़े बहस का तापमान नापने की शुरूआत बीबीसी हिंदी न्यूज की साइट से करते हैं । बीबीसी हिंदी सेवा के राजनीतिक पंडित संजीव श्रीवास्तव ने वरूण पर रासुका लगाया जाना कितना न्यायोचित? चुनाव आयोग द्वारा भाजपा को उम्मीदवार बदलने की सलाह देना सही या गलत ? राजनीतिक सल इस मुद्‌दे को कैसे भुना रही हैं ? इन सवालों को लेकर जो तल्ख टिप्पणी की उसपर बहस छिड़ गयी । इस साइट पर वरूण के बयान की पैरवी करने के साथ उनमें भविष्य का नेतृत्व देखने वालों की संख्या ज्यादा थी । भाषण की आलोचना भी लोग किए । सैकड़ों पाठकों के बीच छिड़ी बहस में सात समंदर पार के लोगों की संख्या अच्छी-खासी है जो वरूण को सियासी सुपर स्टार बता रहे हैं । बीबीसी पर छिड़ी बहस का मजेदार पहलू यह है संजीव के ऊपर एक दल विशेष के पक्ष में लिखने और दूसरे धर्म के लोगों की कट्‌टर बातों का नजर‍अंदाज करने के भी ढ़ेरों आरोप मढ़े गए । इन आरोपों का जवाब देने के लिए संजीव अपने लेख के दूसरे खंड में वरूण पर लगे रासुका की तुलना हाथी से चींटी मारने का किया । इस साइट पर चल रहे बहस में हिंदू और मुसलिम पाठकों की राय साफ-साफ बंटी दिखी । मशहूर लेखिका शोभा डे ने वरूण को पोलेटिकल बेबी सेक्युलिरिज्म और हिंदुज्म को लेकर छिड़े बहस पर अपनी टिप्पणी की । इनकी टिप्पणी पर दुनियाभर से कमेंट्‌स पढ़ने को मिल रहे हैं । सेक्युलिरज्म को जूते तले रखने से लेकर वरूण के भाषण की बातें पटी है । शोभा के ब्लाग पर इंडियन अमेरिकन इंटलेक्चुअल फोरम एक्सूप्रेस का वरूण के पक्ष में हिंदुत्व ब्रांड बयान भी मौजूद है । संघ परिवार की साइट पर तो वरूण राष्ट्रीय गर्व का विषय बना हुआ है । हमसफर डॉट काम पर वरूण को सपोर्ट करेंगे या विरोध करेंगे ? इस पर वोंटिग चल रही है । ब्लागभारती पर तो वरूण के चर्चित बयान में देश की तकदीर देखने वाले पाठकों की लंबी कतार है । दृष्टिकोण वोट तू चेंज सहित सैकड़ों साइटें हैं जिन पर वरूण के भाषण और पढ़ने वालों के कमेंट्‌स भरे पड़े हैं । यूथ की आवाज पर वरूण को राजनीति का सुपरस्टार बताने वाले ज्यादा है । पर ऐसा लगता है पीलीभीत वरूण को माफ कर दिया है । वरूण गांधी के कथित भड़काऊ भाषण और जहर उगलते शब्दों ने पीलीभीत के अल्पसंख्यकों को सकते में डाल दिया है । उनको विश्‍वास नहीं हो रहा है कि लंदन से पढ़े-लिखे गांधी परिवार के इस नौजवान के मुंह से समाज को बांटने की बातें निकल सकती हैं । २२ अप्रैल को पर्चा भरने के बाद वरूण ने जब हर मजहब की रक्षा करने की बात कही तो अल्पसंख्यकों ने इसका जोरदार स्वागत किया । अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधियों का कहना है कि वरूण से अब उनको कोई गिला-शिकवा नहीं है । वरूण ने जो कुछ कहा, वह नदानी में कहा । उनकी वरूण से यह गुजारिश है बेशक सांसद बनें, मगर इस तरह किसी के खिलाफ जहर उगलकर और नफरत बांटकर नहीं। जमात-ए-इस्लामी हिंद के पीलीभीत क्षेत्र के प्रमुख मोहम्मद रजा खान ने कहा कि जब यह घोषणा हुई कि वरूण गांधी यहांसे लोकसभा चुनाव लडेंगे तो मुसलमान काफी खुश थे । उनको लगा कि एक पढ़ा-लिखा युवा पीलीभीत से सांसद बनेगा तो युवाओं को रोजगार और तरक्‍की की बात करेगा । मगर वरूण गांधी ने मेनका ने कभी इस तरह की बात नहीं कही वह पिछले दो दशक से यहां से चुनी गई हैं । क्या मुसलमानों का वोट वरूण के खिलाफ जाएगा ? रजा खान का मानना है कि ऐसी बात नहीं है । मुसलमानों ने वरूण को नादान बच्चा समझकर माफ कर दिया है । उन्हें लगता है कि वरूण ने या तो नादानी में या किसी के दवाब में आकर ऐसे बयान दिए । अब मुसलमान चाहते हैं कि अगर वे यहां से सांसद चुने गए तो इंसानियत और सभी लोगों के उत्थान की बात करें । पीलीभीत में एकमात्र क्रिश्‍चियन डिग्री कॉलेज अलोसियस कॉलेज के परिचालक फादर नॉरबेट मानते है कि वरूण के सीडी प्रकरण के बाद अल्पसंख्यकों में निराशा फैल गई थी । पीलीभीत में आज तक कोई दंगा नहीं हुआ । गरीबी, बेरोजगारी और शिक्षा यहां की प्रमुख समस्या है । बेहतर होगा कि वरूण इन समस्याओं पर ध्यान देते । यह पूछने पर कि क्या वह चाहेंगे कि वरूण यहां से जीते ? फादर नॉरबेट कहते हैं, बिल्कुल । वरूण से अनजाने में गलती हुई है । सामाजिक कार्यकर्त्ता सरदार हंस पाल सिंह के अनुसार वरूण का जो सीडी प्रकरण हो, वह काफी दुखदायी है । उम्मीद है कि यह युवा नेगेटिव बातें छोड़कर पॉजिटिव बातों पर दिल लगाएगा । बाल ठाकरे ने भी वरूण गाँधी की प्रशंसा की है । कुछ दिन पहले यह सुना गया था कि ठाकरे ने आडवाणी से मिलने को मना कर दिया । इससे यह पता चलता है कि भाजपा के सबसे पुराने साथी के लिए भी आडवाणी से ज्यादा वरूण गाँधी स्वीकार्य है । परन्तु दूसरी तरफ जामा मस्जिद के इमाम बुखारी द्वारा जारी फतवों एवं साप्रदायिक भाषणों पर कांग्रेस मौन है । उसे महाराष्ट्र में क्षेत्रीयता के ठेकेदार बने मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे के कृतित्व का खयाल नहीं आता । उसके साथ दामाद जैसा बर्ताव किया जाता है जो महाराष्ट्र से पूर्वांचल के लोगों को भगाने एवं दुव्यर्वहार करते हैं । आम नागरिक भाजपा एवं कांग्रेस दोनों के दोहरे चरित्र से वाकिफ हो रही है । मीडिया के बढ़ते प्रभाव से जनता की जागृति में इजाफा हो रहा है । उसे लगने लगा है कि इस हमाम में सभी नंगे हैं । आज जरूरत भारत की सांप्रदायिक एकता की एकजुटता कायम करने, सौहार्द वातावरण बनाने एवं मौलिक अधिकारों की रक्षा करने की है । ऐसे सोंच के लोग सामने आ रहे हैं । उम्मीद है कारवाँ बनेगा ही ।

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