Thursday, July 16, 2009
डिजिटल सोसाईटी की दिशा में बढ़ा एक स्वागतयोग्य कदम
कहते हैं कि साधना और साधन मिले तो वह चीज आसान हो जाती है । भारत के कानून मंत्री वीरप्पा मोइली कहते हैं कि न्यायपालिका में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व तय हो । इसके लिए एक तंत्र का बनाया जाना बेहद जरूरी है । प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह न्याय, पारदर्शिता और आदान-प्रदान के मंत्र को अपने कार्यशैली के रूप में आत्मसात करना चाहते हैं । वे चाहते हैं कि संस्थात्मक व्यवस्थाओं के साथ-साथ प्रबंधन एवं तकनीकी श्रेत्र में भी आपसी आदान-प्रदान हो । राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने भी जन-प्रशासनिक सुधार को चन्हित किया है । प्रधानमंत्री ने कैबिनेट की स्वीकृति के लिए प्रस्ताव भेज दिए हैं जिसमें वे सामाजिक, भौगोलिक न्याय को कैसे प्राप्त करेंगे । उन्होंने यह भी कहा है कि योजनाओं से प्रभावित सहभागिता की बुद्धि को कैसे देख सके यह व्यवस्था होनी चाहिए । वे सामाजिक अंकेक्षण तक में भी पूरी पारदर्शिता चाहते हैं जिससे केन्द्र की योजना की पूरी राशि लाभुकों तक पहुँचे । गृह मंत्रालय द्वारा दिल्ली पुलिस को हाइटेक करने की योजना बनाई जा रही है, लेकिन आज भी दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल को अपने इलाके में चोरों व अपराधियों का पीछा करने के लिए एक साइकिल दी जाती है । यह व्यवस्था खुद अपने आप में एक प्रश्न है कि आज के समय में अपराधी अपराध करते समय १०० से २५० सीसी तक की मोटरसाइकिल का प्रयोग करते हैं । ऐसे में मानव ऊर्जा से चलनेवाली यह साइकिल कहाँ तक कामयाब हो पाएगी? आज भी अंग्रेजों के जमाने वाली सुविधाएँ ही मुहैया करवाई जा रही है । ऐसी परिस्थिति में पुलिस महकमा अपने पुलिसकर्मियों से सौ फीसदी सत्यता की उम्मीद कैसे कर सकता है? दूसरी ओर समाजवादी विचारधारा वाले नेतागण केवल आदिम जमाने की बाते करते हैं जबकि औद्योगिक घरानों की एक परिकल्पना से दीन-हीन का सपना भी हकीकत बन जाता है । जिस बाजार ने आम रिक्शेवाले के हाथ में मोबाईल थमाया था, उसी ने अब पंक्चर लगानेवालों को चमचमाती कार की चाबी सौंपकर दी है । नैनो की लॉटरी खुलने से न जाने कितने साधारण लोगों की आबरू बढ़ गई है । फरीदाबाद के चंद्रभान गुप्ता जो साईकिल मे पंक्चर लगाने का कार्य करते हैं । जैसे लोगों का सपना हकीकत में बदल चुका है । ध्यान देने योग्य बात यह है कि सपना केवल साधारण लोगों का ही पूरा नहीं हुआ बल्कि भारतीय उद्योगजगत की एक बहुप्रतिष्ठित हस्ती का भी पूरा हुआ है । रतन टाटा ने स्कूटर पर सफर करते एक परिवार को बारिश में भीगते देखने के बाद यह सपना बुना था । अब उनका सपना लाखों सपनों की आधारशिला बन गई है । अतीत के आईने में कई उद्योगपतियों का चेहरा देख सकते हैं जिन्होंने यह सिद्ध किया है कि पूँजीपति भी राष्ट्रनायक और स्वप्नदर्शी हो सकते हैं । सर्वाधिक बहुमत के साथ सत्ता में आनेवाले युवा प्रधानमंत्री स्व० राजीव गाँधी ने साहसिक निर्णय लेकर सी-डॉट और फिर राष्ट्रीय टेक्नॉलजी मिशन के प्रमुख के रूप में सैम पित्रोदा की नियुक्ति की थी । सौ से भी अधिक तकनीकी पेटेंट धारी सैम अमेरिका में अपना जमा-जमाया उद्यम छोड़कर स्व० राजीव गाँधी के आग्रह पर देश लौट आए थे । आज देश में आई दूरसंचार क्रांति की नींव रखनेवालों में उनका नाम लिया जाता है । उन्होंने पिछड़ेपन और यथास्थितिवाद में सुकून तलाशने वाली आम भारतीय मनःस्थिति को बदलने में योगदान दिया तथा यकीन दिलाया कि सूचना प्रौद्योगिकी तथा दूरसंचार जैसी तकनीकी परिघटनाएँ सिर्फ पश्चिमी विश्व के लिए ही नहीं है बल्कि उनमे हमारी भी कोई न कोई भूमिका है । राष्ट्रीय पहचानपत्र प्राधिकरण के प्रमुख के रूप में नंदन नीलेकणी की नियुक्ति बदलते हुए भारत के संदर्भ में कई महत्वपूर्ण संकेत देती है । इंफोसिस के सह-संस्थापक और सह-मालिक के रूप में वे दसियों हजार करोड़ रूपए के वित्तीय साम्राज्य के अभिभावक की श्रेणी में थे । वहाँ वे बेहद सुरक्षित एवं पेशेवर माहौल में अपने दृष्टिकोण और योजनाओं पर अमल करवाना उनके लिए अपेक्षाकृत आसान था परन्तु उन सबको त्यागकर सरकारी दायित्व को स्वीकार किया । क्या यह छोटी सी बात है? आज कितने ऐसे लोग हैं जो राष्ट्र को सर्वोपरि मानकर अपना भविष्य न्यौछावर करने को तैयार रहते है? हालांकि वे जानते हैं कि सरकारी भवनों की चारदीवारी के भीतरी जंग लगी मानसिकता वाले अधिकारियों की फौज से उनका सामना होगा लेकिन उस चुनौती से निपटने के लिए वे तैयार हैं । ऐसे स्वप्नदर्शी एवं प्रेरक व्यक्तित्व निम्नलिखित पंक्तियों की लीक पर कार्य करते है ः- “भँवर से लड़ों, तुम लहरों से उलझो कहाँ तक चलोगे तुम किनारे-किनारे । ” शुरूआती दौर में सैम पित्रोदा को अंग्रेजी मानसिकता और हवा-हवाई अफसर कहकर काफी लोगों ने मजाक उड़ाया था परन्तु यह भी एक धुव सत्य है कि एसटीडी क्रांति के माध्यम से टेलीफोन को देश के कोने-कोने तक पहुँचाने वाले पित्रोदा ने महीनों तक छोटे-छोटे गाँवों का दौरा कर जमीनी हकीकत को समझा था । वैसे उनके मन में कई बार यह प्रश्न अवश्य कौंधा होगा कि जो लोग अपने रोटियों के लिए ही संघर्ष कर रहा है उन्हें टेलीफोन की क्या आवश्यकता है, परंतु कहीं न कहीं उनके दिल में यह भावना भी पैढ कर गई थी कि शिक्षा, विज्ञान और तकनीक के आपसी सामंजस्य से रोटी की समस्या भी हल हो सकती है । आज यदि यह प्रश्न उठे कि “क्या भारत में कोई ऐसा विभाग, कार्यक्रम या परियोजना ऐसी है जो देश के हर व्यक्ति से जुड़ा हो, तो निश्चित रूप से नंदन नीलेकणी जैसे शख्सियत का नाम उभर कर सामने आएगा । एक ऐसी परियोजना जिससे आमूलचूल परिवर्त्तन होगा जो स्वयं अपने आप में संयुक्त रूप से अबलंबित है । भारत के हर व्यक्ति को एक अद्वितीय आंकिक पहचान दे जाएगी जिसका इस्तेमाल न केवल स्थायी पहचानपत्र बल्कि विभिन्न परियोजनाओं के सटीक क्रियान्वयन, राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने और ढेर सारे पहचान पत्रों की जरूरत खत्म करने में भी किया जाएगा । आजादी के बाद प्रथम बार ऐसे बहुउद्देश्यीय कार्य योजना का क्रियान्वयन संपादित हो रहा है जिसकी सबों को प्रतीक्षा थी । आखिर मतदाता परिचय पत्र से लेकर राशन कार्ड तक, पैन कार्ड से लेकर पासपोर्ट तक और ड्राइविंग लाइसेंस से लेकर शिक्षा के प्रमाणपत्रों तक न जाने कितने दस्तावेजों का प्रयोग हम अपनी पहचान सिद्ध करने के लिए कर रहे है । उसके बाद भी सारी प्रक्रिया में जालसाजी, धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार, अनियमितता के साथ-साथ मानवीय व मशीनी त्रुटियाँ आज भी देखने को मिल रहे हैं । समय की माँग है कि ऑल इन वन तथा आसान प्रक्रिया अपनाई जाए जो जनोपयोगी होने के साथ-साथ त्वरित भी हो । हर कार्य के लिए सिर्फ एक पहचान पत्र के होने से, संबंधित समस्याओं और अपराधों का ग्राफ निश्चित रूप से कम कर देगा । अब सरकार के पास देश के हर व्यक्ति का डिजिटल रिकॉर्ड होगा जिसमें लगभग १५ सूचनाएँ मौजूद होगी । अमेरिका के साथ-साथ विदेशों में कई जगह इस प्रकार की आइडेंटिटी विभिन्न रूपों में मौजूद है । दुःख की बात यह है कि हम विदेशों से अच्छी चीजों का अनुकरण नहीं कर पाते बल्कि बेकार और कुप्रभावी चीजों का नकल करने में आगे रहते है । आखिर स्वाधीनता प्राप्ति के अब तक हमारी सरकार ने इस तरह की महत्वाकांक्षी योजना की परिकल्पना क्यों नहीं की थी? हमारे नीतिनिर्माता कहाँ सोए थे? क्या उनकी सोंच में नई परिकल्पनाएँ तो दूर औरों के परिकल्पनाओं से सीख लेने की दृष्टि का भी अभाव है? बहुउद्देश्यीय पहचान पत्र का प्रयोग बैंक खाता खोलने से लेकर मोबाईल फोन लेने तक और कर्ज लेने से लेकर पासपोर्ट बनवाने तक में किया जाएगा । इससे सेवा लेने वाले और देने वाले दोनों ही लाभान्वित हो सकेंगे और इसके साथ ही अपराधियों एवं भ्रष्ट तत्वों पर अंकुश लग सकेगा । परन्तु क्या यह आसान कार्य है? कई दशकों के बाद भी हम अपने तमाम नागरिकों को पहचानपत्र नहीं दे पाए हैं । वहीं जो नागरिक नहीं हैं उन्होंने पहचानपत्र बनवाने में सफलता प्राप्त कर ली है । त्रुटीहीन पैन कार्ड देने में, हम नाकाम ही सिद्ध हुए हैं । राष्ट्रीय निलेकणी के पदभार ग्रहण करने से पूर्व पहचान पत्र परियोजना ने अपने छः साल के कार्यकाल में मात्र ३१ लाख पहचानपत्र बनाए हैं । अगले तीन साल में उसका तीन सौ गुनाकाम किया जाना संभव नहीं दिखता, परन्तु नवीनतम तकनीक से यह असंभव भी नहीं है । सवाल यह उठता है कि सरकार की ओर से नंदन नीलेकणी की टीम चुनने की आजादी और मनचाहे ढंग से कार्य करने की माँग पूरी की जा सकेगी क्योंकि हमारा पुराना अनुभव बड़ा ही कटु रहा है । आईटी शक्ति में इतनी ताकत है कि सुनियोजित योजना को समय के अंतराल में ही पूरा कर दे यह सब कुछ विधिवत प्रशिक्षण से संभव है । डेढ लाख करोड़ के खर्चवाली परियोजना को मात्र तीन वर्षों में पूरा करने की जिम्मेवारी वही व्यक्ति ले सकता है जो सूचना प्रौद्येगिकी का बादशाह होने के साथ-साथ प्रबंधन में भी माहिर हो एवं इस सबके अतिरिक्त उनमें राष्ट्रीय फर्ज पूरा करने की प्रतिबद्धता भी हो । शायद नंदन नीलेकणी के रूप में सरकार की तलाश पूरी हो चुकी है । राष्ट्रीय उद्देश्यों के प्रति समर्पण अन्य प्रतिशाली औद्योगिक नेताओं को भी प्रेरणा दे सकता है । राशि थरूर के बाद नंदन नीलकेणी संप्रग सरकार के नवरत्न कहे जा सकते हैं, जो हमारे लिए गौरव की बात है । अतीत में पूर्व राष्ट्रपति डॉ० ए० पी० जे० अब्दुल कलाम, डॉ० राजा रमन्ना एम. एस. स्वामीनाथन, सैम पित्रोदा आदि भी राष्ट्र के नीति निर्माताओं की करात में अग्रणी रहे हैं । प्रो० यशपाल, ड~० कुरियन, टी० एन. शोषन, वाई० के० अलघ, मोंटेक सिंह अहलुवालिया आदि ने भी उपरिक्त श्रेणी में आने के लिए जी-तोड़ मेहनत की है । आज इन जैसे महान हस्तियों पर गर्व करने से काम नहीं चलेगा बल्कि हम सभी नागरिकों कापुनीत कर्तव्य है कि राष्ट्रीय उत्तरदायित्व की भावना का कद्र करेंं तथा राष्ट्रनिर्माण में अपनी भूमिका निर्धारित करें । एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक एशिया प्रशांत के अधिकांश कर्मचारी मानते हैं कि नए तकनीकी उपकरणों जैसे स्मार्टफोन और लैपटॉप से उनके कार्य करने की क्षमता में बढ़ोत्तरी हुई है । कर्मचारियों से संबंधित सॉल्यूशंस मुहैया करानेवाली वैश्विक फर्म केली सर्विसेज की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार ६२ फीसदी कर्मचारियों ने कहा कि उनकी काम करने की क्षमता (प्रोडक्टिविटी) में लैपटॉप आदि तकनीकी उपकरणों से काफी ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई है । वही २४ प्रतिशत का मानना है कि इन उपकरणों की मदद से उनकी कार्यक्षमता में मामूली बढोत्तरी हुई है । वास्तव में “स्पिरिचुअल मैन डिजिटल सोसाइटी” स्लोगन का आशय यही है कि समय की माँग के अनुसार विकसित होने हेतु सभी क्षेत्रों, सभी विभागों को डिजिटल की जाने की व्यवस्था हो जिससे समाज पूर्णतः डिजिटल सोसाइटी के रूप में परिवर्त्तित हो जाय । संभावित खतरों से निबटने के लिए भारतीय संस्कृति का मूलधार आध्यात्मिकता का निर्वहन तो अपनाना ही पड़ेगा जिससे शांति सौहार्द्र बनी रहे ।
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