Thursday, July 16, 2009
कैसे चुनें , किसको चुनें ?
राष्ट्रभाषा हिन्दी में समय दर्पण का अंक आपके समक्ष है । लोकसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है । हमारी कोशिश रही है कि समयानुकूल सामग्री अपने पाठकों को परोसी जाए । इसलिए प्रस्तुत अंक लोकसभा चुनाव विशेषांक है । यह अंक राजनीति खबरों से लबरेज है । देश के विभिन्न क्षेत्रों, विभिन्न पार्टियों एवं विभिन्न वर्गों से संबंधित खबरों का समागम इसमें मिलेगा । ऐसा लगता है कि अमेरिकी हाईटेक चुनाव प्रचार पद्धति का विशेष प्रभाव भारत में इस बार के लोकसभा चुनाव प्रचार पर विशेष रूप से पड़ेगा । आईटी का जलवा चुनाव प्रचार में दिख रहा है । सभी दलों ने युवा शक्ति के महत्व को समझना है । जहाँ-जहाँ युवा शक्ति को कमतर आँकने की कोशिश की गई वहाँ युवा शक्ति अपने मतों से निर्णायक जबाबदेने की तैयारी मे है । अब तक महिला आरक्षण बिल पास न होने का मलाल देश की आधी आबादी को है । किसी भी दम ने महिला आरक्षण के अनुपात में टिकट नहीं दी है । यदि सुरक्षित सीट की परंपरा नहीं होती तो दलितों की उपेक्षा कर देना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं होती इस चुनाव में जनजागरण भी जोरों पर है । व्यक्तिविशेष संस्थाओं एवं मीडिया द्वारा सुप्त मतदाताओं को जागृत किया जा रहा है । सबसे महत्वपूर्ण बात भाजपा का फिल्मी सितारों से मोहभंग होना, यूपीए का बिखराव एवं इंटरनेट के माध्यम से चुनाव प्रचार है । इन्हीं कारणों से हमने राजनीति एवं सूचना तकनीक को मुख्य स्थान दिया है । प्रसिद्ध योगाचार्य स्वामी रामदेव विमल जालान टी० एन० शेषण के साथ-साथ विभिन्न कार्टूनिस्ट एवं चुनाव आयुक्तों ने आम लोगों से अपील की है कि वे देश के व्यापक हित में साफ सुथरे छवि के सुयोग्य उम्मीदवारओं को चुनकर भेजें । सही सोच के प्रति समर्पण ही था कि उम्मीदवार का प्रचार करने कार्यकर्त्ता भुने चने खाकर गाँव-गाँव घूमा करते थे । कहीं-कहीं पैदल और कहीं-कहीं साईकिल एवं बैलगाड़ी से प्रचार किया जाता था । उस वक्त चुनाव और उम्मीदवार दोनों आदर्श होते थे । उम्मीदवार और मतदाता के बीच पारिवारिक सदस्य जैसा रिश्ता होता था । पहले चुनाव लड़ने वाले जानते थे कि उनको समाज के लिए क्या करना है । मतदान के दिन उत्साह दिखाई पड़ता था । आज की बदली परिस्थिति में चुनाव खर्चीला एवं हाइटेक हो चुका है । आज अपराधी चुनाव में खड़े हो रहे हैं जिससे मन खिन्न हो चुका है । बूथ लूटनेवाले बदमाश आज खुद नेता बन बैठे हैं । पिछले जमाने में मतदाता जागरूक और संगठित होते थे । आज आम नागरिकों में वैसी समझ नहीं दिखाई देती है । भाजपा की राष्ट्रीय सचिव अमरजीत कौर एवं वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र यादव का राजनीति में फिल्मी हस्तियों के प्रवेश पर जो वक्तव्य दिए हैं वह काफी काबिलेगौर है । सुश्री अमरजीत कौर ने कहा कि- “ मुझे इस पर एतराज नहीं कि फिल्मी अभिनेता चुनावी राजनीति में आए लेकिन टिकट देने से पहले देखा जाना चाहिये कि उसने जनता के बीच काम किया है या नहीं । वह अभिनेता या खिलाड़ी कुछ लोगों में मशहूर है सिर्फ इसलिए उसे लोकसभा के चुनाव में नहीं उतारा जाना चाहिए । इससे साबित होता है कि राजनीतिक दल अपनी भूमिका को गंभीरता से नहीं ले रहे यह समाज और राजनीति को हल्के ढ़ंग से लेने की मनसिकता को दर्शाता है । राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है कि वे तपे हुए लोगों को ही मैदान में उतारे । वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र यादव सवाल उठाते हैं कि “क्या ये फिल्मी और क्रिकेट के सितारे राजनीति के बारे में कुछ जानते भी है या नहीं ? जिंदगी भर दूसरों की भाषा बोलने वाले इन सितारों के पास अपनी भाषा भी नहीं है । राजनेताओं को ऐसे आर्ची डॉल्स यानी बोलनेवाले कठपुतलियों की बेहद जरूरत है । जो अपनी मौजूदगी से भीड़ खींचे और फिर वही बोले जो नेता बताए । मदारी के बंदरों की तरह इन्हें भीड़ इकट्ठा करने के लिए नचाया जाता है । जबसे संसद के दोनों सदनों ने बुद्धिजीवियों का बहिष्कार किया है तब से ऐसे ही सितारे वहाँ की सीटें भरने का काम कर रहे हैं । ” देश में युवा मतदाताओं की संख्या लगतार बढ़्ती जा रही है । अधिकांश युवाओं के अनुसार उन्हें ऐसा सांसद चाहिए जो लोगों की समस्याओं पर सोचे तथा देश को विकास की रह पर ले जा सके । नई उम्र, नया काम और नई सोंच, फिर क्यों न उसे प्रतिनिधि चुने । जब विकल्प के रूप में युवा उम्मीदवार हो तो किसी ऐसे नेता को क्यों चुने जिसकी छवि खराब हो । इसमें उम्र के साथ-साथ वैचारिक सोंच को भी प्रधानता देनी चाहिए । जब सरकारी नौकरी से सेवानिवृत होने की आयु सीमा ६० वर्ष है तो फिर राजनीति में क्यों नहीं । सरकारी नौकरी में निर्धारित इस आयुसीमा से स्पष्ट है कि इस उम्र के बाद इंसान के अंदर नेतृत्व क्षमता खत्म हो जाती है । अटलबिहारी बाजपेयी और जॉर्ज फर्नाण्डीस इसके प्रत्यक्ष उदाहरण है । समाज के ईमानदार और पढ़े-लिखे लोगों को राजनीति से परहेज नहीं करना चाहिये । राजनीति की गंदगी को दूर करने का एकमात्र रास्ता है कि इसमें अच्छे लोग शामिल हों । राजनीति में युवाओ, उद्यमशीलों एवं संस्कृतिकर्मियों, विद्वानों की भागीदारी बढ़नी चाहिये । मशल्स पावर पर काफी हद तक लगाम लग चुका है, परंतु मनी पावर को रोकने में मीडिया का सहयोग अति आवश्यक है ।मेरे विचार से भाजपा के बड़े दिग्गजों (राजनाथ-जेटली) के अहं, वरूण गाँधी प्रकरण एवं आम नागरिक की मूलभूत आवश्यकताओं को किनारे कर धार्मिक भावनाएँ आहत करने के साथ-साथ ड्गुलमुल रवैया से ऐसा लगता है कि यह पार्टी दो कदम आगे और चार कदम पीछे के सिद्धांत पर चल रही है । क्या प्रचार में अव्वल रहकर ही चुनाव जीत लेने की मंशा पाल लेना दिवास्वप्न नहीं तो और क्या है ? आज सभी को रोजगार, विकास, शांति और सुरक्षा चाहिये । । बसपा ने इस लोकसभा चुनाव से पहले पिछले विधानसभा चुनाव में ही बहुजन समाज से एक कदम आगे सर्वसमाज की परिकल्पना पर कार्य किया जिसका सुंदर परिणाम आया । उ० प्र० के विगत विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत के साथ उसने अपने बलबूते पर सरकार बनाई । डपोरशंखी और खयाली पुलाव पकानेवाले राजनीतिक पंडितों की उसने हवा निकाल दी । उसने अपने अहमियत को सिद्ध कर दिखाया है । कहावत है- “युद्ध और राजनीति मे सब कुछ जायज है ।” बसपा ने इस कहावत को अपने राजनैतिक शैली में पूर्णतः चरितार्थ किया है । इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि गठबंधन की वर्तमान राजनीति में अपने अपेक्षित परिणाम और जिद की बदौलत मायावती प्रधानमंत्री बन जाए । बसपा, के बाद मैं काग्रेस की चर्चा करना चाहूँगा । राहुल गाँधी के हाथ में चुनावी कमान संभालने एवं दलित प्रेम के दिखावे का श्रेय उसे अवश्य मिलेगा । लेकिन बिना तैयारी के बिहार और उ० प्र० में आयाराम-गयाराम को ट्कट से नवाजकर उसने भारी भूल की है । गठबंधन के अतिविश्वसनीय घटक दल राजद और लोजपा ने अंतिम समय में उनसे किनारा कर अपनी अलग राजनीति अपनाई और कांग्रेस को बेचारा बनाकर छोड़ दिया । पंचमढ़ी सम्मेलन के निर्णय को एक तरफ रखकर उसने चुनाव किए है , वह उसके हित में कत्तई नहीं हो सकता है । चुनाव परिणाम में क्षेत्रीय दलों की भूमिका ही निर्णायक होगी । भयमुक्त होकर मतदान में जनता को अवश्य भाग लेना चाहिए । इस बार निश्चित रूप से मतदान प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है । लोकसभा में सुचारू, ईमानदार और बेदाग प्रतिनिधियों के आने से राजनीति में शुचिता और पारदशिता आएगी । स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह अत्यावश्यक है । इसलिए हम सबों के यह जिम्मेदारी बनती है, कि इस चुनावी महापर्व में अवश्य शामिल हों तथा अन्य को भी मतदान देतु उत्प्रेरित करें । अपने कर्तव्य को जिम्मेदारीपूर्वक वहन करके ही हम सशक्त एवं विकसित राष्ट्र की परिकल्पना कर सकते हैं ।
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