Wednesday, July 1, 2009
जूते - चप्पल की संस्कृति का नया दौर और राजनीति
अमेरिका तथा चीन के बाद भारत का नाम भी उन देशों में दर्ज हो गया जहाँ की सरकार प्रमुख पर जूता फेंका गया । अंतर सिर्फ इतना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति और चीनी प्रधानमंत्री पर उनके देश के बाहर जूते फेंके गए, जबकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर यह घटना अपने मुल्क में ही गुजरी । इसकी शुरूआत तब हुई जब पाँच माह पूर्व ( १५ दिसंबर ०८) इराक में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति पर एक पत्रकार ने जूता फेंक कर आक्रोश जताया जिसमें बाल-बाल बचे बुश । संक्षेप में कहा जाय तो भारत में जूते-चप्पल की संस्कृति विदेशों से आयातित है । अब तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृहमंत्री पी० चिदंबरम, भाजपा के पीएम इन वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी, कांग्रेस नेता नवीन जिंदल, कर्नाटक के मुख्यमंत्री और चुनाव प्रचार कर रहे अभिनेता जीतेन्द्र के साथ ऐसी घटनाएँ हो चुकी हैं । ३ फरवरी ०९ को वेनजियाबाओ (चीन के प्रधानमंत्री) के उपर कैंब्रिज वि० वि० में भाषण के दौरान एक युवक ने तानाशाह का आरोप लगाते हुए जूता फेंका । २६ अप्रैल, ०९ को भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ऊपर गुजरात के अहमदाबाद में चुनावी रैली के दौरान जूता फेंकने की असफल कोशिश की गई । प्रधानमंत्री पर जूता फेंकने की एक सुर में निंदा के साथ-साथ राजनीति भी हुई । कांग्रेस के मीडिया प्रमुख वीरप्पा मोइली ने कहा कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस घटना के लिए माफी माँगनी चाहिए । यह घटना राज्य में कानून और व्यवस्था को भी दर्शाती है । कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि वर्तमान राजनीति में व्यवहार के विकसित हो रहे इस नए ट्रेंड की केवल निंदा ही नहीं की जानी चाहिए, बल्कि सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होकर इसको समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए । कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका गाँधी बडेरा ने कहा कि “ विरोध का यह एक गलत तरीका है । यह हमारी परंपरा नहीं है, हमारी परंपरा अहिंसा है । इस तरह के व्यवहार हमारी परंपरा में सही नहीं बैठते हैं । ” वहीं भाजपा प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि “ हम इस तरीके की निंदा करते हैं और यह लोकतांत्रिक राजनीति का हिस्सा नहीं है । पुलिस को दोषी के खिलाफ कारवाई करनी चाहिए । जबकि भाजपा प्रवक्ता जावडेकर ने कहा कि पार्टी ने हमेशा इस प्रकार के घटनाओं की निंदा की है । लोकतंत्र में आप विरोध प्रकट करने की स्वीकार्य परंपराओं के जरिए अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर सकते हैं और यह लोकतंत्र में विरोध प्रकट करने की स्वीकार्य परंपरा नहीं है । कानून व्यवस्था को लेकर कांग्रेस का आरोप बचकाना है । पूर्व प्रधानमंत्री एवं जेडीएस प्रमुख एच० डी० देवगौड़ा ने कहा हम इस घटना की निंदा करते हैं । यह चलन लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है । हालाँकि हम संप्रग का विरोध करते हैं लेकिन हम ऐसे कदमों की आलोचना करते हैं । भाजपा के लौहपुरूष लालकृष्ण आडवाणी के ऊपर जूता नहीं बल्कि खड़ाऊ मध्यप्रदेश के कटनी शहर में चला । वैसे देखा जाय तो जूता झेलनेवाली हस्तियों ने पादुका प्रहार को बिल्कुल सहज भाव से लिया । बुश हँस दिए, चिदंबरम मुस्कुरा दिए और आडवाणी कुछ ऐसे लगे जैसे कुछ हुआ ही नहीं । दैनिक जागरण के संवाददाता जनरैल सिंह द्वारा पी० चिदंबरम के ऊपर जूता फेंकने का कांग्रेस पर इतना असर हुआ कि सीबीआई के क्लीनचिट के बावजूद जगदीश टाईटलर और सज्जन कुमार का टिकट अंतिम क्षण में काट दिया गया । जूते की गूँज ने राजनीतिक दलों को चौकन्ना कर दिया है । कांग्रेसियों ने तो ऐसे अप्रत्याशित वारों से बचने हेतु सेवा दल के कार्यकर्त्ताओं की तैनाती कर रही है । आडवाणी पर खड़ाऊ फेंकने वाले कटनी जिले के पूर्व अध्यक्ष पावस अग्रवाल ने मीडिया के सामने आरोप लगाते हुए कहा “ आडवाणी नकली लौह पुरूष हैं । उनकी कोई विचारधारा नहीं है । एक ओर तो वह राम के नाम पर वोट माँगते हैं, दूसरी ओर पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की तारीफ भी करते हैं । ” हिमाचल प्रदेश के कांग्रेस पार्टी के प्रदेश महासचिव अरविंद मालवीय ने कहा कि यह घटना बीजेपी के दोतरफा बात करने और जनता की भावनाओं से खेलने का ही सिला है । प्रसिद्ध गीतकार जावेद अख्तर के अनुसार इस राजनीति में आदर्श नहीं है, संस्कार नहीं है । यह चिंता की बात है । कुछ ऐसे लोग भी पावर में आ गए हैं जिनको नहीं आना चाहिए । दुनिया के इस बड़े लोकतंत्र में वर्तमान राजनीति हमें जगाने की भी कोशिश कर रही है । हमें अपनी नींद खोलनी पड़ेगी । अगर हमने चुनाव के वक्त अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग किया तो हम किसी को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं । अगर हमारी वजह से गलत लोग चुने जाते हैं तो ज्यादा दोष हमारा ही है । वोट डालना हमारा अधिकार है । मतदान के दिन हमें घर से बाहर आना चाहिए । अनपढ़ लोग तो अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए मतदान करते हैं । मगर पढ़े-लिखे लोग अनपढ़ों की अपेक्षा बहुत पीछे रहते हैं । मेरे ख्याल से उनमें चेतना जगाने की बहुत ज्यादा जरूरत है । जब हम जगेंगे तो आपराधिक प्रवृत्ति वालों को लोकतंत्र के साथ खेलने का मौका ही नहीं मिल पाएगा । वैसे लोग भी संसद में पहुंचने से रह जाएंगे जिन्होंने राजनीति को पेशा बना लिया है । आज गंदी राजनीति का ही असर है कि आतंकी हम पर हमले कर रहे हैं । मुंबई हमले के बाद जनता ने जिस तरह से गुस्सा जाहिर किया था, इससे पहले शायद ही किसी ने इस कदर का गुस्सा देखा होगा।राजनीति की खामियों को आम जनता ही मिटा सकती है । इसके लिए किसी तरह से पढ़ाई जरूरी नहीं है । आम इंसान में चेतना आ जाए तो हमारे देश में खुशियों की कमी नहीं रहेगी । हमसे ज्यादा ताकतवर और संगठित देश दुनिया में कोई दूसरा नहीं हो सकता है । लेकिन जब आप वरूण गांधी जैसों को वोट करेंगे तो क्या होगा? यह कहावत सच है जैसा बोओगे वैसा ही पाओगे । ऐसे लोगों को आप गलत वजहों से वोट कर रहे हैं । देश और समाज को जाति और धर्म के नाम पर बांटना और वोट मांगना गलत है । इंसानियत के सहारे रहना और चलना है । गुजरात में देखिए, क्या हुआ है और क्या हो रहा है? दंगों की वजह से एक बेहतर राज्य बदनाम हो गया है । एक साथ रहने वाले लोगों में नफरत के बीज बो दिए गए हैं और एक-दूसरे के प्रति भरोसा खत्म हो गया है । इस भेद को मिटाना बहुत जरूरी है । इसके लिए ऐसे लोगों को वोट देने की जरूरत है जो प्यार के पेड़, शांति की हवा बहा सके । आज इस पर जोर दिया जा रहा है कि राजनीति में युवाओं को प्रधानता देनी चाहिए । मगर इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि यह ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां पर युवाओं को कनसेशन दिया जाए । उसे इस क्षेत्र में अपनी जगह हासिल करने के लिए उसमें भी चेतना जागनी चाहिए । उसे खुद को इस लायक बनाना होगा ताकि सत्ता हस्तांतरण करने में परेशानी न हो । राजनीति की पढ़ाई कर लेना या झक सफेद कपड़े पहनकर राजनेता नहीं बना जा सकता । युवाओं में जोश होता है पर होश बरकरार रहे, स्वयं पर अंकुश रखने की भी जरूरत है । यह सच है कि आने वाला कल युवाओं का होगा । मगर युवाओं को परिपक्वता के साथ तैयार रहना पड़ेगा । ‘शू स्वागतम्’ सिंड्रोम की चपेट में नेताभाषण देते नेताओं पर जूते फेंके जाने की घटनाओं ने बड़ा दिलचस्प मोड़ ले लिया है । मनोवैज्ञानिक इसे ‘शू सिंड्रोम’ की संज्ञा दे रहे हैं । सभा में बैठा कोई व्यक्ति मंच की तरफ जूता उछाले या न उछाले, भाषण देने वाले नेता के मन में जूते का बिंब उछलता रहता है । मनोवैज्ञानिक की भाषा में इसे ‘एंटीसिपेटरी एंक्जाइटी’ कहते हैं यानी जेहन पर यह चिंता सवार रहती है कि जूता ये आया कि वो आया । एक बड़े नेता ने अपने मंच को तार से घिरवा कर इसी चिंता का इजहार किया था । मनोवैज्ञानिकों के अनुसार जूते फेंकने को माफ करना इस घटना से जुड़ी शर्मिंदगी से उबरने की सबसे अच्छी ‘दवा’ है । ऐसी घटना को ‘शू स्वागतम’ की तरह लें तो बेहतर । गृहमंत्री चिदंबरम की तरफ जूते उछालने की घटना ने अब जब पीएम बनने का इंतजार कर रहे लालकृष्ण आडवाणी को अपने जद में ले लिया है तो फिर इस घटना का मनोवैज्ञानिक आयाम सामने आया है । मैक्स हेल्थकेयर अस्पताल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. समीर पारिख कहते हैं कि जूते फेंकने की इस घटना ने अब शाश्वत चिंता की शक्ल अख्तियार कर ली है । कोई नेता जैसे ही मंच पर पहुंचता है, जूते का डर भी मंच पर पहुंच जाता है । इसे ‘एंटीसिपेटरी एंक्जाइटी’ कहते हैं । इस घटना को माफ कर देने से बेहतर कोई तरीका नहीं हो सकता है । इस घटना से सहानुभूति का लाभ मिलने से रहा । इसलिए माफ कर महानता का कवच ओढ़ लेना सबसे अच्छा तरीका है । जूते फेंकने वालों की मानसिकता पर उन्होंने कहा कि इनमें से कुछ तो हैं जो ‘६० सेकेंड फेम’ के सिंड्रोम के शिकार होते हैं । लेकिन इनमें कोई वाजिब शिकायत वाला भी हो सकता है । बुश पर जूते चलने की घटना के बाद कुछ लोगों को यह भी लगने लगा है कि वे इस तरीके से अपनी परेशानी बेहतर ढंग से रख सकेंगे । मनोवैज्ञानिक हल्के में जूते को लेकर पहले से एक मिलता जुलता दिलचस्प मामला है । बल्कि इस घटना ने अंग्रेजी में एक मुहावरे को जन्म दिया- ‘वेटिंग फॉर दी अदर शू टू ड्रॉप । ’ मतलब किसी संभावित घटना को होने का इंतजार । अभी तमाम नेताओं की यही स्थिति हो गई है । घोषणापत्र पर किरकरी के बाद एसपी की सफाईचुनावी घोषणापत्र में कंप्यूटरों के इस्तेमाल पर रोक लगाने और इंग्लिश मीडियम स्कूलों पर बैन लगाने संबंधी समाजवादी पार्टी के रूख पर उसे काफी आलोचना झेलनी पड़ रही है । अपनी किरकरी के मद्देनजर पार्टी नेतृत्व ने सफाई दी है कि हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं है । उन्होंने इसका ठीकरा मीडिया के सिर फोड़ा है । उधर, एसपी सुप्रीमो ने बलिया में कहा कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनवाने की हमारी कोई बाध्यता नहीं है । न्यूक्लियर डील के मुद्दे पर जब हमने कांग्रेस को समर्थन दिया था उसी वक्त हमें लग गया था कि कांग्रेस हमें धोखा देगी। बहरहाल, पार्टी महासचिव अमर सिंह ने नई दिल्ली में पत्रकारों से कहा कि हमारी पार्टी के घोषणापत्र को गलत ढंग से पेश किया गया है । इसका प्रमुख अर्थ निकाला गया है । कुछ अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जो बातें प्रकाशित प्रसारित की गईं उनमें सच्चाई नहीं है । पार्टी नेता संजय दत्त और नफीसा अली ने भी अमर सिंह के सुर में सुर मिलाते हुए कहा है कि मीडिया ने इसे तोड़ मरोड़ कर पेश किया है । ऐसा कुछ नहीं कहा गया है कि इंग्लिश मीडियम स्कूलों पर बैन लगाया जाएगा या कंप्यूटरों के इस्तेमाल पर रोक लगाई जाएगी । बीएसपी ने भ्रम फैलाने वाला बतायाउत्तर प्रदेश में मुलायम की सबसे कट्टर दुश्मन बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने उनके घोषणापत्र को ही मुद्दा बताते हुए कहा है कि एसपी देश के नौजवानों को ऊर्जाविहीन और कुंद बनाने पर आमादा है । उसकी कोई मौलिक सोच नहीं है । बीएसपी प्रवक्ता ने कहा कि एसपी का घोषणापत्र भ्रामक और आधारहीन तथ्यों का संकलन मात्र है । यह दुनिया की दौड़ में देश को हर क्षेत्र में पीछे की ओर ले जाएगा । बीएसपी ने एसपी पर कई गंभीर आरोप भी लगाए हैं । उसका कहना है कि एपी प्रदेश में जातीय उन्माद पैदा करके अल्पसंख्यकों को भयभीत करना चाहती है ।
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