Wednesday, July 1, 2009

मातृशक्ति को दें सम्मान और सुरक्षा


हमारे मनीषियों ने अपने संघर्षों, त्याग और तपस्या के बल पर संस्कृति को जीवित रखा है । मैं सरस्वती के साथ-साथ माँ दुर्गे अर्थात्‌ शक्‍ति की आराधना का समर्थक हूँ । सरस्वती की आराधना का अर्थ ज्ञानार्जन, ज्ञानोदय एवं ज्ञान के प्रकाश को विस्तारित करना है । दूसरी तरफ शक्‍ति की आराधना का अर्थ किसी भी कार्य को निष्पादित करने हेतु आवश्यक तत्व अर्जित करने हेतु आराधना । यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि शक्‍ति का संचय और उसका सदुपयोग किस प्रकार से हो । यही महत्वपूर्ण वह कड़ी है जहाँ विवेक, बुद्धि और चातुर्य की आवश्यकता है जो सरस्वती की आराधना से प्राप्त होता है । भारतीय दर्शन के अनुसार निराकार ब्रह्म स्वयं निष्क्रिय है और उसका स्त्री रूप, उसकी शक्‍ति ही इस सृष्टि को चलाती है । हमारे देश में लड़की को बोझ तथा लड़के को बुढ़ापे का सहारा कहने वालों की संख्या बहुतायत में है । ऐसा कहा जाता है कि संसार मर्द चलाते हैं स्त्री गृहस्थी चलाती है और वह भी मर्द के बलबूते पर परन्तु वास्तविकता यह है कि लक्ष्मी के बिना नारायण, सीता के बिना राम, पार्वती के बिना शिव की महत्ता का महत्व नहीं हो सकता है । बिना इसके ये अपूर्ण हैं । व्यावहारिक रूप में सामान्य स्त्रियाँ पुरुष की तुलना में अधिक कर्मठ और जिम्मेदार होती हैं । ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्रों में स्त्रियाँ घर और खेत खलिहान का कार्य अच्छे तरीके से संभालती हैं । अब लड़कियाँ वास्तव में कमा‌ऊ बनकर लक्ष्मी का प्रतिरूप बन ग‌ई हैं । उच्चतर शिक्षा प्राप्त कर देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी धाक जमा चुकी हैं । ये नौकरी एवं तमाम पेशों में लड़कों की तुलना में ज्यादा तेजी से तरक्‍की कर रही हैं । इसीलि‌ए भारत में बहू, बेटी को लक्ष्मी कहा जाना सर्वाधिक उचित है । क‌ई सर्वेक्षणों से यह सिद्ध हो चुका है कि बेटों की अपेक्षा बेटियाँ अपने घर-परिवार, माता-पिता एवं बच्चों की ज्यादा चिंता करती हैं । विभिन्‍न राज्यों में अनगिनत सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा की प्रतिमूर्ति महिला समाज सेविका‌एँ साक्षरता, स्व-रोजगार, सामाजिक चेतना एवं पर्यावरण के लि‌ए सक्रिय हैं । लाखों की संख्या में आँगनबाड़ी केन्द्र इन्हीं महिला‌ओं द्वारा चलाया जा रहा है । रचनात्मकता एवं संवेदनशीलता में स्त्रियाँ अग्रणी हैं । हमलोगों को देश के हर कोने में पूरे वर्ष स्त्री को आदर, महत्व एवं स्नेह दि‌ए जाने का प्रण करना चाहि‌ए एवं कन्या भ्रूण हत्या को रोकना चाहि‌ए :
बेटियाँ नहीं होंगी, तो नहीं बढ़ेगा यह समाज, कहाँ से ला‌ओगे माँ-बहन और बीवी का प्यार ?

No comments:

Post a Comment

I EXPECT YOUR COMMENT. IF YOU FEEL THIS BLOG IS GOOD THEN YOU MUST FORWARD IN YOUR CIRCLE.