Wednesday, July 1, 2009

संकल्प, चिंता और चिंतन

लोकसभा चुनाव से पूर्व भ्रष्टाचार एवं आतंकवाद के खिलाफ पार्लियामेंट स्ट्रीट पर भारी संख्या में युवाओं ने अपनी उपस्थिति जताया । भ्रष्टाचार तथा आतंकवाद का मुँहतोड़ जवाब देने के लिए यूथ फॉर इक्वैलिटी , आर्ट ऑफ लिविंग तथा वर्ल्ड अलायंस फॉर यूथ एम्पावरमेंट ने मिलकर युवाओं को एकजुट किया । पूर्व आईपीएस अधिकारी किरन बेदी ने कहा कि अगर हमारी युवापीढ़ी अपने वर्तमान से खुश नहीं है और भविष्य को लेकर चिंतित है तो उन्हें बदलाव की शुरूआत करनी होगी और ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसमें उनका साथ देना चाहिए । ऐड गुरू प्रह्लाद कक्‍कड़ ने युवाओं का हौसला बढ़ाते हुए कहा कि यह बहुत अच्छी बात है कि युवा जागरूक हुए हैं, जो भविष्य के लिए अच्छा संकेत है । देश भर में सिर्फ एक सीट से अपनी उम्मीदवारी कर “यूथ फॉर इक्वलिटी” संगठन ने पार्टियों को उम्मीदवार चयन करने का तरीका बताया । संगठन के अध्यक्ष डॉ. कौशल के अनुसार चुनाव में बढ़ता गुंडाराज व बाहुबलियों का तांडव लोगों से छिपा नहीं है । ऐसे में ४० से ४५ प्रतिशत लोग चुनाव में हिस्सा नहीं लेते हैं । इनका मकसद लोगों को चुनाव बूथ तक लाना था । इस संगठन में डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, प्रबंधक, छात्र व देश के पढ़े-लिखे नौजवान शामिल हैं । इनके अनुसार आरडब्ल्यूए , ट्रेडर एसोसिएशन, एनजीओ व अन्य कई संस्था के सदस्य मिलकर एक नाम का चयन किए । इसके तहत चुनाव लड़ने हेतु देश का कोई भी नागरिक डब्ल्यू डब्ल्यू डॉट वाई फॉर ई डॉट इन पर अपना बायोडाटा भेज सकता था । किरन बेदी ने देश के लिए वोट देने की अपील करते हुए कहा “आज वोट देने के लिए जरूर आएँ । वोट देना इसलिए जरूरी नहीं है कि आप अपने सबसे बड़े अधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं, बल्कि इसलिए भी क्योंकि देश को स्थायित्व की सबसे ज्यादा जरूरत है । स्थायी सरकार होगी तो देश को बेहतर तरीके से चलाने की पॉलिसी बनाएगी । लोग वोट नहीं देंगे तो खिचड़ी सरकार ही बनेगी जिन्हें अपने आपको बनाए रखना ही सबसे बड़ी चिंता होती है । योग गुरू बाबा रामदेव ने बेईमान जनप्रतिनिधियों की वजह से लोकतांत्रिक व्यवस्था में गड़बड़ी पैदा होने पर अफसोस जताते हुए कहा यह विडंबना है कि तीन-तीन दौर की परीक्षा पास करनेवाले अधिकारी ‘झूठे’, बेईमान, अंगूठा छाप और मूर्ख नेताओं के निर्देश पर काम कर रहे हैं । यह लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है । राजनेताओं को सही रास्ते पर लाने के लिए रामदेव ने कहा कि देश के प्रत्येक नागरिक की राजनीति में सक्रिय भागीदारी होनी चाहिए और उन्हें चुनाव सुधारों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए । जन्म होने से मौत होने तक प्रत्येक जनता की जिंदगी में राजनैतिक दखलंदाजी बनी रहती है तो राजनीति में हमारा सक्रिय हस्तक्षेप क्यों नहीं हो सकता ? रामदेव ने कहा जन्म होता है तो जन्म प्रमाणपत्र, नौकरी होती है तो नौकरी प्रमाणपत्र, आचरण प्रमाण पत्र, शिक्षा का प्रमाणपत्र सहित तमाम प्रकार के प्रमाण पत्र और अंत में मौत का प्रमाण पत्र भी हमारे परिजनों से माँगा जाता है तो हम नेताओं से प्रमाण पत्र क्यों नहीं माँग सकते हैं । उन्होंने कहा कि बाहर से देखने में ऐसा लगता है कि हम स्वतंत्र है लेकिन वास्तव में हम राजनैतिक रूप से स्वतंत्र नहीं हो पाए हैं । बाबा ने कहा ‘देश में तमाम प्रकार के सरकारी करों के अलावा तीन अन्य प्रकार के कर हैं जिसने हम सबको परेशान कर रखा है । हम लोगों को अन्य करों के अलावा कर वसूल करनेवाले को भी कर देना पड़ता है, राजनीतिक कर देना पड़ता है और गुंडा कर देना पड़ता है । इन तीनों करों ने देश और देशवासियों की दुर्दशा कर रखी है । उन्होंने कहा कि राजनीति से लोगों का भरोसा उठ गया है । इन भ्रष्ट और बेईमान नेताओं के कारण लोकतंत्र में खोट आ गई है । तमाम मुहिम के बाद ४५ से ४७ फीसदी मतदान होते हैं क्योंकि लोगों की रुचि अब इनमें रही ही नहीं । वरिष्ठ पत्रकार और चिंतक कुलदीप नैयर ने चुनाव के दौरान सत्ता पक्ष का आचरण दुरुस्त किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया । उन्होंने कहा कि बिना इसके चुनाव सुधार की कल्पना भी नहीं की जा सकती । केन्द्र सरकार के मंत्री हों या राज्य सरकार के मंत्री दोनों का आचरण चुनाव में ठीक नहीं दिख रहा । चुनाव के दौरान सरकारी सुविधाओं को भोगने से रोकने की बात कही । तरह-तरह के उपक्रम करके मंत्री सरकारी कर, रेल और विमान यात्राओं और सरकारी गेस्ट हाउस की सुविधा का मजा लेते रहते हैं । कभी सुरक्षा के नाम पर मौज उड़ाई जाती है तो कभी सरकारी कामकाज करने के नाम पर सुविधाओं को भोगा जाता है । राजनेताओं की यह आदत कोई नई नहीं है । इसको लेकर एक जमाने में मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा कि चुनाव में ‘पब्लिक फंड’ का इस्तेमाल हरगिज नहीं होना चाहिए । उन्होंने इस पत्र में यह हिदायत भी दी कि क्या-क्या नहीं किया जा सकता । राजनेता इससे विचलित हुए और उन्होंने बीच का रास्ता निकालकर सुविधाएँ भोगना शुरू कर दिया । जिन राज्यों में चुनाव संपन्‍न हो जाता था राजनेता उस राज्य में सरकारी कामकाज के बहाने जाने का उपक्रम करके दिल्ली या अपने मनचाहे राज्य में पहुँच जाया करते थे । यह हरकत पंडित नेहरू को बर्दाश्त नहीं हुई । उन्होंने मंत्रियों को याद दिलाया कि उनका आचरण चुनाव की भावना के खिलाफ है । पंडित नेहरू इतने कड़क इसलिए रह सके क्योंकि चुनाव के वक्‍त उसी स्थिति में विमान का इस्तेमाल किया करते थे जब यह अपरिहार्य हो । मेरा भी मानना है कि केवल प्रधानमंत्री विमान जैसी कुछ सुविधाएँ चुनाव के दौरान इस्तेमाल कर सकती हैं । बाकी मंत्रियों को चाहे चुनाव लोकसभा का हो या विधानसभा का किसी भी मंत्री को सरकारी सुविधाएँ नहीं लेने दी जांय । मंत्रियों को शर्म नहीं है, उनके ऊपर चुनाव आयोग को सख्ती दिखानी ही होगी, चाहे इसके लिए तरीका नया ही क्यों न हों । अगर मंत्री सुविधाओं का उपभोग जारी रखेंगे तो हम यह कैसे सुनिश्‍चित कर सकेंगे कि सभी उम्मीदवारों को चुनाव आयोग एक ही नजरिए से देख रहा है । अभी चुनाव आयोग की सख्ती का मंत्रियों पर कोई असर नहीं हैं । यह भी देखा गया है कि मंत्री सरकारी दफ्तर और स्टाफ का चोरी-छिपे इस्तेमाल कर रहे हैं या फिर कर पर से लालबत्ती हटाकर उसका उपयोग कर रहे हैं । उपरोक्‍त आलेख हमारे संकल्प, चिंता और चिंतन की एक बानगी है । आवश्यकता इस बात की है कि आम जनता इसे चिंतन का विषय बनाए ।

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