
भारत सरकार और माफिया में क्या अंतर है? भारत सरकार को कानूनी मोहर (अधिकार) है जबकि माफिया को कानूनी अधिकार नहीं है । आज माफिया सरकार चला रही है । भारत में झूठ बोलकर वोट ले लेने को राजनीति कहते हैं जबकि विदेशों में ऐसा नहीं है । वहाँ पार्टी के घोषणा पत्र पर पूर्णतः अमल करना पड़ता है । इस समस्या के समाधान के लिए “राइट टू रिकॉल” अर्थात जनता को अपने प्रतिनिधि वापस बुलाने का अधिकार मिलने चाहिए । गवाहों की सुरक्षा की योजना बने । जाति और धर्म आरक्षण का आधार नहीं होना चाहिए बल्कि यह आर्थिक आधार पर तय होना चाहिए ।
कुछ लोग हमेशा विरूद्ध मत में होते हैं । वे बहस करते रहे हैं कि अंडा पहले आया या मुर्गी, गाय दूध देती है या हम दूध लेते हैं । जब तक वर्षा के जल को संरक्षित नहीं किया जाएगा तब तक पानी की समस्या का समाधान नहीं हो सकता है । भ्रष्टाचार का कारण जरूरत है या लालच? आप खाली पेट में उसूल नहीं सिखा सकते । टैक्स परिसीमन को भी बदलना होगा । १० करोड़ बच्चों को विद्यालय भेजना हो तो संसद को बंद कर देना चाहिए । क्योंकि संसद में जूतमपैजार, आरोप प्रत्यारोप के सिवा देश की मूलभूत आवश्यकताओं के निदान पर क्या काम होता है? भारी भरकम योजना मंत्रालय और संपूर्ण सरकारी तंत्र के बावजूद मँहगाई जिस हिसाब से बढ़ी है उससे अमीर और ज्यादा अमीर हो गए और गरीब ठीक उसी तरह और अधिक गरीब हो गए । संपूर्ण सरकारी आँकड़ा झूठ का पुलिंदा के सिवाय और क्या है? रोजगारपरक विद्यालय अत्यधिक संख्या में खोले जाने चाहिए, वह तो खुल नहीं रहे अस्पताल और पेय जल की उपलब्धता के लिए कारगर उपाय के बजाय सारी मशीनरी “कॉमनवेल्थ गेम” पर केंद्रित हो गई है । यह कैसा मजाक है? ९०% किसान कोर्ट-कचहरी में धक्के खा रहे हैं । इसके निदान हेतु चकबंदी कराना अनिवार्य हो । आज साढ़े तीन करोड़ केस विचारधीन हैं जिसकी सुनवाई में १२४ साल लगेंगे । इस समस्या के निदान के लिए कोर्ट कचहरी तीन शिफ्ट में क्यों नहीं चलाई जाती है? सेवानिवृत न्यायाधीशों को वापस बुलाकर एवं ऑनरेरी मजिस्ट्रेट की नियुक्ति कर त्वरित न्याय दिया जा सकता है । समय पर न्याय ना मिलना अन्याय नहीं तो और क्या है? आज हर कोई अलग राज्य की माँग कर रहा है । राज्य अलग करने के बजाय वे सर्वांगीण विकास की माँग क्यों नहीं करते? जब इस देश के हर नागरिक को कहीं भी रहने और काम करने का अधिकार प्राप्त है, कोई भी भाषा, कोई भी धर्म अपनाने का अधिकार प्राप्त है, फिर जाति और भाषा के नाम पर नंगा नाच क्यों हो रहा है? इस नंगे नाच को शह कौन दे रहा है? ऐसे तत्वों की मंशा क्या देश की एकता और अखंडता के लिए घातक नहीं है?वोट बैंक तुच्छ राजनीति के कारण अपराधियों को पैरोल पर छोड़ दिया जाने हेतु दिल्ली सरकार अनुशंसा करती है । महाराष्ट्र विधानसभा में मनसे विधायकों द्वारा सपा विधायक अबू आजमी के साथ अभद्र व्यवहार किया जाता है । यह संपूर्ण हिंदी समाज पर हमला है और देर सबेर इस हमले का जवाब उपद्रवी तत्वों को जरूर मिलेगा क्योंकि समय का चक्र घूमता रहता है । शांत रहने का मतलब यह नहीं कि हम चुप हैं । हम अपनी ताकत इकट्ठी कर रहे हैं, उन हमलावरों के माकूल जवाब देने हेतु ।
राजस्थान में गूजर और मीणा जाति समुदाय के वर्चस्व की लड़ाई से देश का कितना नुकसान हुआ यह आकलन क्या किसी ने किया है? आज हर किसी को आरक्षण चाहिए क्यों? यदि मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे, सबों को अपना हम मिलता रहे तो फिर आरक्षण की कोई जरूरत ही नहीं होगी, पर अभी भी जातीय वैमनस्यता, छूआछूत तथा विषमताएँ पूर्णतः दूर नहीं हुई हैं और जब तक इसका समाधान ढूँढा नहीं जाएगा विद्रोह घटने के बजाय और बढ़ेगा ।
भारत पहला ऐसा देश है जो समस्याओं का समाधान नहीं निकाल रहा है । अंतरराष्ट्रीय प्रेरक शिव खेड़ा ठीक ही कहते हैं- “यदि आप समस्या का समाधान नहीं कर सकते तो आप अपने आपमें समस्या हैं । मान लीजिए सरकार यदि यह निर्णय कर ले कि कोई बिल्डिंग नहीं बनने देंगे जब तक “सौर ऊर्जा” प्रणाली न अपना ले । तो फिर बिजली समस्या का खुद ही समाधान मिल जाएगा । आजादी के ६२ वर्ष के बाद भी राजधानी दिल्ली में बिजली, पानी सुरक्षा सुविधा कारगर नहीं है । मंदिरों में चुन्नियाँ चढ़ाते हैं बाहर चुन्नियाँ उतारते हैं । पारदर्शिता लाने एवं भ्रष्टाचार खत्म करने हेतु RTI एक्ट को और अधिक सशक्त करने की जरूरत है क्योंकि विभिन्न क्षेत्रों से अभी भी यह सूचना आ रही है कि इस पर पूर्ण रूपेण अमल नहीं किया जा रहा है । अधिकारी गैर जिम्मेदाराना रवैया अपना रहे हैं । कहीं-कहीं तो RTI द्वारा पूछे गए प्रश्नों के सही जवाब भी नहीं दिए जा रहे हैं ।
आज उनलोगों का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए जो बेईमान हों, भष्टाचारी हों, आततायी हों । हर कोई कहता है कि भगत सिंह, सुभाषचन्द्र बोस, चन्द्रशेखर आजाद और खुद्दीराम बोस पैदा हों, पर हमारे घर नहीं । यह कैसी मानसिकता है? ज्यादातर लोग तो’ स्वयं के साथ भी अन्याय होने पर प्रतिकार करने के बजाय अन्य कंधों को ढूँढने में रहते हैं । ऐसे लोग मेरे विचार से मुर्दे ही हैं, बेशक वे चलते-फिरते हों । ऐसे लोग एवं ऐसी मानसिकता की बदौलत कभी क्रांति नहीं आ सकती । क्रांति मात्र उन धारा के विपरीत चलने वाले लोगों के द्वारा ही आएगी जिसकी संख्या तो काफी कम है परन्तु नैतिकता आत्मबल और दृढ़निश्चय के मामले में वे काफी सबल हैं । किसी ने ठीक ही कहा था- “हमें खतरा नहीं है गोरे अंग्रेजों से खतरा तो हमें अपने काले अंग्रेजों से है जो हमीं जैसे लगते हैं, फर्क बताना मुश्किल है कि कौन गद्दार है । हमारे मूर्धन्य नेता रामविलास पासवान कहते हैं कि ३ करोड़ बांग्लादेशियों को नागरिकता दे दी जाय । क्या यह माँग उचित है, गौर से सोचिए और खत्म कर दीजिए ऐसे नेताओं की नेतागिरी को जो ऐसी गैरवाजिब और देशद्रोही बयानों के बदौलत अपनी नेतागिरी चमकाने में रहते हैं । दो धारा के लोग हैं- “सकारात्मक एवं नकारात्मक” । हमें सकारात्मकता की नीति को अपनाने हुए संयम एवं शालीनता के साथ नए कीर्तिमान स्थापित करने हेतु नए मापदंड स्थापित करने होंगे । आज नकली देशभक्तों की संख्या बढ़ गई है जबकि असली देशभक्तों का मानना है कि “जो देश को चाहिए वही हम करेंगे । आजादी से जियो, जाति छोड़ो-भारत जोड़ो का नारा हमें अपनाना ही पड़ेगा । गोवा में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है, ऐसा क्यों? सिंगापुर और इजराईल में हर परिवार के एक सदस्य का राष्ट्रीय रक्षा सेवा में जाना अनिवार्य है । यह सिद्धांत हमारे देश में क्यों नहीं लागू किया जाता है? कर प्रणाली के साथ-साथ चरित्र प्रणाली और एकल कानून प्रणाली का भी निर्धारण एवम् अमल होना चाहिए । देश हर इंसान से ऊपर है । हर घरेलू कर्मचारियों के लिए पेंशन योजना हो जिसमें २०% नियोक्ता का और २०% कर्मचारियों के वेतन से कटे ।
देश के युवा पीढ़ी को इस संकल्प से राजनीति में आना चाहिए कि सरकार तोड़ देंगे मगर उसूल नहीं तोड़ेंगे । वैसे आज ज्यादातर युवा मन बना रहे हैं कि “हमें अब उतरना ही पड़ेगा । ”
प्रस्तुत संपादकीय की विषयवस्तु एक प्रमुख कवि गर्गऋषि शान्तनु की कविता ‘सोचेगा कौन’ ने स्पष्ट रूप से झलती हैं-
भीड़वाले हम अबतक.. झरना नीचे पानी पिये,
चन्द तुम- ऊपर - तब से :
मन्दिर.. पाठागार.. विद्यालय जलाते आए !
अब देश के लिए- बताओ- कौन सोचेगा?
विदेशी या विदेशिनी.. फिर.. नाना या नानी?
-गोपाल प्रसाद