Thursday, October 29, 2009

आरटीआई से खत्म हो सकता है भ्रष्टाचार और लालफीताशाही

सरकार, सरकारी योजनाएँ और तमाम सरकारी गतिविधियाँ हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं । आम आदमी से जुड़ा कोई भी मामला हो प्रशासन में बैठकर भ्रष्ट, लापरवाह या अक्षम कर्मचारियों/अधिकारियों के कारण सरकारी योजनाएँ सिर्फ कागज का पुलिंदा बनकर रह जाती हैं ।
सन्‌ १९४७ में मिली कल्पित आजादी के बाद से अब तक हम मजबूर थे । व्यवस्था को कोसने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते थे परन्तु शायद अब हम मजबूर नहीं हैं क्योंकि आज हमारे पास सूचना का अधिकार नामक औजार है, जिसका प्रयोग करके हम सरकारी विभागों में अपने रूके हुए काम आसानी से करवा सकते हैं। हमें सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ की बारीकियों को पढ़कर समझना और सामाजिक क्षेत्र में इसको अपनाना होगा । इस अधिनियम के तहत आवेदन करके हम किसी भी विभाग से कोई भी जानकारी माँग सकते हैं और अधिकारी/विभाग द्वारा माँगी गई सूचना को उपलब्ध करवाने हेतु बाध्य होगा । यही बाध्यता/ जवाबदेही न केवल पारदर्शिता की गारंटी है बल्कि इसमें भस्मासुर की तरह फैल चुके भ्रष्टाचार का उन्मूलन भी निहित है । यह अधिनियम आम आदमी के लिए आशा की किरण ही नहीं बल्कि आत्मविश्‍वास भी लेकर आया है । इस अधिनियम रूपीऔजार का प्रयोग करके हम अपनी आधी-अधूरी आजादी को मुकम्मल आजादी बना सकते हैं ।
“भगत सिंह ने क्रांति को जनता के हक में सामाजिक एवं राजनैतिक बदला के रूप में देखा था । उन्होंने कहा था कि क्रांति एक ऐसा करिश्मा है जिससे प्रकृति भी स्नेह करती है । क्रांति बिना सोची-समझी हत्याओं और आगजनी की दरिन्दगी भरी मुहिम नहीं है और न ही क्रांति मायूसी से पैदा हुआ दर्शन ही है । लोगों के परस्पर लड़ने से रोकने के लिए वर्ग चेतना की जरूरत है । ”
भगत सिंह के इन्हीं प्रेरक वाक्यों के संदर्भ में कहें तो यह अकाट्‌य सत्य है कि सब जगह पारदर्शिता हो जाय तो आधी से अधिक समस्याएँ खुद ब खुद हल हो जाएंगी । जरूरत केवल जनजागरण की है । अभी तक आर. टी. आई. ( Right to information / सूचना का अधिकार) में ऐसा कोई मैकेनिज्म ही नहीं बनाया गया जिससे पता चल सके कि किस आवेदक को सूचना मिली या नहीं मिली और न ही संबंधित विभाग/सेक्शन माँगी गई सूचना के जवाब की प्रतिलिपि ही आर.टी.आई. सेल में देने की नैतिक जिम्मेदारी ही पूरी करते हैं । अधिकांश जगह आर.टी.आई. सेल में कर्मचारियों की भयंकर कमी है । आर.टी.आई. के तहत आवेदनों का ढेर लगता जा रहा है । लेकिन कर्माचारियों की संख्या बढ़ाने के मामले में प्रशासन उदासीन है, दूसरे आर.टी.आई. सेल की सूखी सीट पर आने को कर्मचारी तैयार ही नहीं होते और जो कर्मचारी इस सेल में आने के लिए उत्सुक भी हैं उन्हें विभिन्‍न कारणों से यहाँ लगाया ही नहीं जाता । सूचना अधिकारियों के ऊपर भी काम का अत्यधिक बोझ है । सूचना अधिकारियों को अपने दिनचर्या कार्यों के साथ-साथ आर.टी.आई. का कार्य भी देखना पड़ता है और इसी दोहरे बोझ की वजह से आर.टी.आई. कार्य भी अत्यधिक प्रभावित होता है । आर.टी.आई. सेल में कोई समन्वयक (कोऑर्डिनेटर) ही नहीं है जिससे यह सुनिश्‍चित हो सके कि आवेदक को ३० दिनों के भीतर और सही सूचनाप्राप्त हुई या नहीं ।
सामाजिक परिवर्तन सदा ही सुविधा संपन्‍न लोगों के दिलों मे खौफ पैदा करता रहा है । आज सूचना का अधिकार भी धीरे-धीरे ही सही परन्तु लगातार सफलता की ओर बढ़ रहा है । पुरानी व्यवस्था से सुविधाएँ भोगनेवाला तबका भी इस अधिनियम का पैनापन खत्म करने की कोशिश में शुरू से ही रहा है । कुछ सूचना आयुक्‍तों के रवैये से ऐसा लगता है कि कहीं इस कानून की लुटिया ही ना डूब जाए । कई महीनों इंतजार के बाद भी माँगी गई सूचनाएँ नहीं मिलतीं या फिर अधूरी और भ्रामक मिलती हैं । उसके बाद भी यदि कोई आवेदक सूचना आयोग में जाने की हिम्मत भी करता है, तब भी कोई आयुक्‍त, प्रशासन के खिलाफ कोई कारवाही नहीं करते । कुल मिलाकर मानना ही होगा, कि हम तमाम कोशिशों के बावजूद आज भी उसी जगह खड़े हैं जहाँ दर्शक पहले खड़े थे । क्या हम मान लें कि क्रांतिकारियों की कुर्बानियाँ बेकार हुईं जिनके लिए आजाद हिंदुस्तान से आजादी के बादवाला हिंदुस्तान ज्यादा महत्वपूर्ण था । प्रश्न है कि “क्या क्रांतिकारियों को दी गई यातनाएँ उन्हें झुका पाईं? ठीक उसी तरह हमारा उत्पीड़न या कोई भी असफलता हमारे इरादों को नहीं तोड़ सकती है । सूचना अधिकार से जुड़े कार्यकर्त्ता इस अधिकार का और भी मजबूती से प्रयोग करेंगे क्योंकि यह देश हमारा है, सरकार भी हमारी है, इसलिए अपने घर को साफ रखने की जिम्मेदारी भी हमारी है ।
राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने कहा है कि सरकारी व्यवस्था से भ्रष्टाचार और लाल फीताशाही दूर कर बेहतर शासन हासिल करना भारत का सपना रहा है और आरटीआई कानून के व्यापक व सजग इस्तेमाल के जरिए इसे हकीकत में बदला जा सकता है । उन्होंने कहा कि सरकार से सवाल पूछने का जो अधिकार पहले सांसदों और विधायकों को था, वह इस कानून ने हर आम नागरिक को दे दिया है ।
सूचना के अधिकार कानून के चार साल पूरे होने के मौके पर केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा आहूत सम्मेलन में राष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र में सरकार जनता की होती है । जनता जब चाहे, उसे हर योजना की तरक्‍की के बारे में सही-सही जानकारी मिलनी चाहिए । आरटीआई ने यह तो मुमकिन कर ही दिया है । इस कानून के व्यापक और सजग इस्तेमाल से देश को भ्रष्टाचार और लाल फीताशाही से मुक्‍त करने का सपना भी पूरा हो सकता है । हालांकि उन्होंने नागरिकों को जिम्मेदारी के साथ इसका इस्तेमाल करने की सलाह भी दी ।
पेंशन और जन शिकायत व प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा कि सूचना के अधिकार कानून को और प्रभावी बनाने के लिए ई-गवर्नेंस और ई-मेल के जरिये संवाद सेवा को सरकार ने सैद्धान्तिक मंजूरी दी है । उन्होंने कहा, सरकार ने आरटीआई को कारगर बनाने के लिए पिछले वर्ष केंद्र प्रायोजित पेंशन योजना पेश की थी । इसके तहत राष्ट्रीय आरटीआई प्रत्युत्तर केंद्र के गठन का कार्य शुरू किया गया था । उन्होंने कहा कि इसी प्रयास को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने आरटीआई में ई-गवर्नेंस और ई-मेल के जरिये संवाद की सेवा को सौद्धांतिक रूप में मंजूरी दी है । सूचना के अधिकार अधिनियम के वार्षिक सम्मेलन में चव्हाण ने कहा कि सूचना के अधिकार अधिनियम को प्रभावी बनाने के लिए पहले चार वर्ष में सूचना मांगने वालों, सूचना प्रदान करने वालों, स्वयंसेवी संस्थाओं, नागरिक संगठनों, मीडिया आदि सभी पक्षों ने काफी समर्थन किया है ।
अब जल्दी ही इसे लागू किया जा सकेगा । मुख्य सूचना आयुक्‍त वजाहत हबीबुल्ला ने कहा कि इस कानून ने भारत को एक आदर्श लोकतंत्र बनने की राह पर अपना सफर तेज करने में मदद की है । भारत में यह कानून लागू होने के बाद नेपाल बांग्लादेश और भूटान ने भी अपने यहां इसे लागू कर लिया है । लोकतंत्र में जनता की भागीदारी के लिए पारदर्शिता एवं जवाबदेही की माँग के अभियान को गतिशील करने हेतु प्रश्न-उत्तर के रूप में एक पुस्तक “सूचना का अधिकार” में आवश्यक जानकारियों को बड़े ही सुलभ तरीके से “दादी मां” नामक (सच्चों एवं बुर्जुगों के प्रति समर्पित स्वयंसेवी, संगठन) १४/६, सेवा नगर, नई दिल्ली- ११०००३ द्वारा प्रकाशित की गई है । जनहित में इसे अवश्य पढ़ें, पढ़ाएँ एवं प्रचार-प्रसार में योगदान दें ।
- गोपाल प्रसाद

3 comments:

  1. यदि सभी सरकारी संस्‍थाएं पारदर्शिता रखने में समर्थ हों तो आर टी आई की क्‍या आवश्‍यकता .. और यदि सरकारी संस्‍थाएं पारदर्शिता नहीं रख पा रही तो आर टी आई की क्‍या गारंटी .. आज की व्‍यवस्‍था में हर हाल में जनता को छला ही जाना है !!

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  2. दो चार दिन पूर्व ही समाचार पत्र में यह पढने को मिला कि आई आई टी अपनी इंट्रेंस परीक्षा से संबंधित प्रोसेस को आर टी आई के साथ नहीं शेयर करना चाहता .. जब भारत की सबसे बडे स्‍तर की प्रतियोगी परीक्षा में पारदर्शिता न हो .. तो छोटी छोटी जगहों के बारे में क्‍या बात करनी ?

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  3. जिन्दा लोगों की तलाश! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!

    काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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    उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।

    आग्रह है कि बूंद से सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

    हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

    इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

    अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

    अतः हमें समझना होगा कि आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

    शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-ष्भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थानष् (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

    सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

    जो भी व्यक्ति स्वेच्छा से इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
    भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
    7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
    फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

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