Monday, October 26, 2009

नए संपूर्ण क्रांति की आवश्यकता


यह क्रांति है मित्रों ! संपूर्ण क्रांति ! जमाने की पुकार है यह । संपूर्ण क्रांति समाज और व्यक्‍ति को बदलने के लिए है । संघर्ष और रचना की दोहरी प्रक्रिया उसके लिए जरूरी है । संपूर्ण क्रांति समूची जनता की निष्ठा और शक्‍ति से ही मुमकिन है । हर गांव, हर शहर, हर स्कूल हर कारखाने में ऐसे लोग सामने आएं जो संपूर्ण क्रांति के मूल्यों को स्वीकार करते हों ।
५ जून १९७४ को पटना के गांधी मैदान की ऐतिहासिक रैली में बोलते हुए जेपी ने सहज की संपूर्ण क्रांति की बात की थी । हालांकि इसकी अवधारणा व्यापक थी, लेकिन समझा इसे सीमित अर्थों में गया । दर‍असल, इस शब्द का राजनीतिक जुमले के रूप में इतना और इस कदर दुरूपयोग हुआ कि इसका वास्तविक और सारगर्भित अर्थ पूरी तरह सामने नहीं आ सका । आज भी संपूर्ण क्रांति की बात होती है तो इसे ७४ के छात्र आंदोलन या ७७ के इंदिरा गांधी के पराभव और जनता पार्टी सरकार की स्थापना के अर्थ में ही लिया जाता है ।
अधिकतर लोग इंदिरा सरकार की तानाशाही की मुखालफत को ही इसका अंतिम उद्देश्य मान बैठे । लेकिन किसी भी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए तो सिर्फ क्रांति क्यों? संपूर्ण क्रांति इसलिए कि बाद में जो सरकार बने उसके कार्यक्रम में कैसे जनता की भागीदारी अधिक से अधिक हो, कैसे वह निरंकुश न हो, ये सारी बातें तय हो सकें । क्रांति के लिए आवश्यक है । केवल संघर्ष और विध्वंस से दुनिया नहीं चलती, उसके बाद निर्माण भी करना होता है । भविष्य का ब्लूप्रिंट जिसके पास नहीं होता वह विपक्ष में रहकर उत्साही विरोधी की भूमिका तो निभा सकता है, लेकिन मौकामिलने पर जनहित के कार्यक्रम नहीं बना सकता । संपूर्ण क्रांति का उद्देश्य ऐसी स्थिति उत्पन्‍न होने से रोकना था । जेपी ने ७४ के आंदोलन के दौरान यह भी कहा था कि जनता के पास अपने चुने गए प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का भी अधिकार होना चाहिए । यह बात आज जोरशोर से उठाई जा रही है । संपूर्ण क्रांति का मकसद शिक्षा के क्षेत्र में भी बदलाव है । १९७७ में एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में जेपी ने कहा था कि बालिग साक्षरता पर मैं ज्यादा जोर नहीं देता हूं, लेकिन जो बच्चे पैदा हो रहे हैं, उन सबकी शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए । उत्तर भारत राज्यों में आई जेपी आंदोलन के सिपाही रहे रहनुमाओं की सरकारें हर बच्चे के लिए शिक्षा कितनी सुनिश्‍चित कर सकीं?
भ्रष्टाचार रोकना, राजसत्ता के ऊपर लोकसत्ता की स्थापना, व्यक्‍तिगत स्वतंत्रता आदि ऐसे मुद्दे थे, जिन पर जेपी जीवनभर अडिग रहे । आज ऐसी राजनीति करने वालों की पौ-बारह है, मजबूत फेमिली बैकग्राउंड से आए लोग संसद और विधानसभाओं पर काबिज हैं और देश का मीडिया युवा प्रतिनिधित्व बढ़ने की बात कहकर गदगद है । ऐसे में सामान्य कार्यकर्त्ताओं के लिए कहां स्पेस है? हरेक पार्टी के अपने युवराज हैं । जीवित देवियां मूर्तियां लगवा रही हैं । दो फीसदी अंग्रेजीदां लोगों की कोशिश है कि देश कोई सीईओ चलाए । इन स्थितियों में संपूर्ण क्रांति की जरूरत फिर से है क्योंकि गांधी की तरह जेपी एक-एक आदमी में सुधार की जरूरत पर जोर देते थे ।
-नवीन कृष्ण

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