अपने लेख के पिछले अंश में मैंने इस बात का जिक्र किया था कि आईटी को राजीव गांधी का किस कदर समर्थन मिला । प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी पहली कुछ घोषणाओं में आईटी नीति शामिल थी । वह समय आईटी उद्योग के उभरने का दौर था । वर्ष १९८४ में आईटी नीति आने तक सरकार की नजर में हम उद्यमी ही नहीं थे । सॉफ्टवेयर के कारोबार को कोई कारोबार मानने के लिए तैयार नहीं था । इसलिए बैंक हमें लोन देने को तैयार नहीं थे । हमारी पहली पूंजी आपस में जोड़ी गई कुछ रकम ही थी । हमें एक कंप्यूटर हासिल करने तक में खासी मशक्कत करनी पड़ी । हमें अपना पहला कंप्यूटर बाहर से मंगाना पड़ा । वह भी इस नियम के तहत कि सॉफ्टवेयर निर्यातक तभी कंप्यूटर का आयात कर सकते हैं जब उसके पास ग्राहकों के ऑर्डर हों ।
वर्ष १९८२ में इन्फोसिस ने १५० एमबी का हार्ड डिस्क ड्राइव के आयात की अनुमति के लिए आवेदन किया था । (मुझे पता है कि आप हंस रहे होंगे लेकिन १५० एमबी १९८२ में एक बड़ी बात है ) । लेकिन जब तक हमें अनुमति मिली, ड्राइव बनाने वाली कंपनी ने इसकी क्षमता बढ़ाकर ३०० एमबी कर दी थी और दाम १५ फीसदी घटा दिए थे । इसका मतलब यह था कि हमें फिर से बदले हुए आयात लाइसेंस की जरूरत होती और इसे हासिल करने में छह और आठ सप्ताह का समय और लग जाता । वर्ष १९८४ की आईटी नीति में आईटी आयात से जुड़े कुछ प्रावधानों को शिथिल किया गया । इसमें आईटी क्षेत्र को पूंजी मुहैया कराने और कर नीति के सवाल पर कुछ सहूलियत दी गई । लेकिन आईटी नीति के आने के बावजूद चीजों को ठीक होने में काफी वक्त लगना था ।
जैसा कि मोटेक सिंह आहलूवालिया ने गौर किया था कि सरकार की चीजों को नियंत्रण में रखने की संस्कृति खत्म नहीं हुई थी । लेकिन आईटी और टेलीकॉम सेक्टर में हलचल दिखने लगी थी । इसके लिए राजीव की टीम के सलाहकार और कंप्यूटर ब्वॉय के नाम से जाने जाने वाले सैम पित्रोदा का शुक्रिया अदा किया जाना था । उस समय तक टेलीकॉम की तरक्की बहुत धीमी थी । दूरसंचार विभाग नौकरशाही की जकड़न में बंधा था । टेलीकॉम सेक्टर पर सरकार का एकाधिकार था । एक फोनलाइन हासिल करने के लिए बरसों इंतजार करना पड़ता था । सैम पित्रोदा ने मुझसे कहा कि जब वह अमेरिका गए तो पहली बार जिंदगी में फोन देखा । सैम बेहद उत्साही व्यक्ति हैं, जबकि १९८४ के दौर में उनके बाल सफेद होने लगे थे । हर शख्स को फोन सुलभ कराने का लक्ष्य सामने रखकर उन्होंने गांवों और शहरी इलाकों में एक के बाद एक कई एक्सचेंज खुलवाए । कुछ लोगों ने टेलीकॉम और कंप्यूटर के बीच का संपर्क ढूंढ़ लिया था । दोनों की समांतर भूमिका जीवंत और सुगठित अर्थवयवस्था के लिए जरूरी थी । विरोध के समंदर के बावजूद प्रधानमंत्री समर्थन के एक टापू की तरह थे । वामपंथियों में से कुछ ने सैम पित्रोदा पर सीईए का एजेंट होने का आरोप लगा दिया और फिर १९८४ की आईटी नीति भंवर में फंस गई ।
बैंक कर्मचारियों ने कंप्यूटर के पुतले फूंके और भारत जनता पार्टी से जुड़ी ट्रेड यूनियन भारतीय मजदूर संघ ने श्रम दिवस को कंप्यूटर विरोधी दिवस के तौर पर मनाया । गरीबी हटाने के लिए देश में इलेक्ट्रॉनिक नीति को तवज्जो देने का राजीव गांधी का दर्शन उपहास का पात्र बन गया । उनकी नीतियों का विरोध करने वालों को लगता था कि राजीव और उनके लोगों को इस देश की वास्तविकता समस्या का भान नहीं है ।
एक बड़े अधिकारी ने मुझे बताया कि जहां तक तकनीक का मामला है तो राजीव गांधी अपनी सरकार के कई लोगों से काफी आगे थे । उनके ही शब्दों में एक बार रेलवे बोर्ड की बैठक में अधिकारियों ने राजीव गांधी को कागज पर बने चार्ट दिखाए । उन्होंने कहा आप लोग स्प्रेडसीट का इस्तेमाल क्यों नहीं करते । अधिकारियों को स्प्रेडसीट के बारे में कुछ भी पता नहीं था । वे उनके पास कागज की पूरी ही सीट उठा लाए, जिस पर कई जगह आंकड़े लिखे हुए थे ।
- नंदन नीलकनी
Thursday, October 29, 2009
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