Monday, October 26, 2009

दलितराज में दलित की हत्या

आज दलित सत्तासीन ही अनुसूचित ज़ाति जनजाति अधिनियम को ख़तम करने, रिज़र्वेशन खत्म करने हेतु निजीकरण को बढावा दे रहे हैं । निजीकरण का अर्थ है जो रिज़र्वेशन का लाभ सरकारी संस्था से मिलता है वह निजी संस्था से नहीं मिलेगा । जनसंख्या दिन पर दिन बढ़ रही है । निजीकरण भी तेजी से हो रहा है तथा विभागीय पदों की संख्या घटा‌ई जा रही है । इसका सीधा प्रभाव दलित समाज पर पद रहा है । संवैधानिक अधिकारों का हनन हो रहा है । लोकतंत्र अब राजतन्त्र से भी बदतर हो गया है । आज समाज में दलितों, पिछडो, अल्पसंख्यकों तथा गरीबों को तिरस्कृत जीवन जीने हेतु विवस होना पड़ रहा है। कैसे पुन: बाबा साहब द्वारा निर्मित संविधान पर आधारित लोकतंत्र को और दलितों के अधिकारों को बचाया जा‌ए? कैसे दलित आन्दोलन को पुनर्जीवित किया जा‌ए ? बाबा साहब डॉ . बी०आर० आंबेडकर जी द्वारा अछूत एवं शूद्र कहलाने वाली जिन जातियों को एक शब्द में दलित समाज कहकर उनके समान विकास के लि‌ए जिस दलित आन्दोलन कि आधारशिला रखी गयी थी, वह दलित आन्दोलन आज कमजोर हो रहा है । कुछ स्वार्थवादी और मनुवादी विचारधारा रखने वाले दलित सत्तासीन नेता‌ओ जिन्होंने बाबा साहब की विचारधारा और उनके बौद्ध धर्म दर्शन का उपभोग कर सत्ता पा‌ई है , के दलित समाज से मुहं फेर लेने और मनुवादियों के साथ हाथ मिला कर दलितों के अधिकारों और उनके लि‌ए बने कानून का धीरे-धीरे अंत किये जाने के कारण दलित समाज घोर निराशा और पीड़ा के साथ फिर से अपना अस्तित्व अलग- अलग बिखेर कर ढूंढ़ रहा है।
जैसा कि डॉ . आंबेडकर ने दलितों को संगठित रहने को कहा था , ऐसे में दलित संगठन का टूटना दलित समाज के लि‌ए ही नहीं बाबा साहब द्वारा निर्मित संविधान और उसपर आधारित लोकतंत्र को भी खतरा पैदा कर देगा । संगठन से ही दलितों ने अपनी सत्ता हासिल की है । यह और बात है कि वह सत्ता दलित समाज के काम की नहीं रही। यदि व्यक्ति का एक हाथ काम करने योग्य न रहे तो व्यक्ति अपने दूसरे हाथ पर दोनों हाथों दायित्व डाल देता है ताकि उसे किसी की दया का पात्र न बनना पड़े, वह स्व आश्रित रहे अर्थात यदि एक दलित नेता ने समाज को धोखा दिया है और बाबा साहब का कद कम करने का प्रयास किया हैं सो समाज को समाज का दूसरा नेतृत्व खोजना चाहि‌ए न कि किसी दूसरे मनुवादी की स्वीकारनी चाहि‌ए । आज दलित सत्तासीन ही अनुसूचित ज़ाति जनजाति अधिनियम को ख़तम करने, रिज़र्वेशन खत्म करने हेतु निजीकरण को बढावा दे रहे हैं । निजीकरण का अर्थ है जो रिज़र्वेशन का लाभ सरकारी संस्था से मिलता है वह निजी संस्था से नहीं मिलेगा और जनसंख्या दिन पर दिन बढ़ रही है निजीकरण भी तेजी से हो रहा है तथा विभागीय पदों की संख्या घटा‌ई जा रही है । इसका सीधा प्रभाव दलित समाज पर पड़ रहा है और संवैधानिक अधिकारों का हनन और लोकतंत्र का बनता राजतन्त्र आज समाज में दलितों, पिछडो, अल्पसंख्यकों तथा गरीबों को तिरस्कृत जीवन जीने हेतु विवश कर रहा है । कैसे पुन: बाबा साहब द्वारा निर्मित संविधान पर आधारित लोकतंत्र को और दलितों के अधिकारो को पुनर्जीवित किया जा‌ए । "शिक्षित बनो संगठित रहो, और संघर्ष करो" : राजनीति ही हर विकास की कुंजी है । एकता की सोच के साथ जन संगठन क्या संभव नही कर सकता?
बहादुर सोनकर एक दलित अनुसूचित ज़ाति खटीक से सम्बन्ध रखते थे जिनकी निर्मम हत्या एक कटीले पेड़ से टांग कर की गयी । शहीद बहादुर सोनकर का गुनाह इतना था कि उन्होंने बाबा साहब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर जी से मिली शिक्षा पर चलते हु‌ए दलित समाज का प्रतिनिधित लोक सभा द्वारा करने कि राह पकड़ जौनपुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी के रूप में नामांकन किया था जो दलित राज में दलितों को ही रास न आया और खुद को अम्बेडकरवादी कह कर पूरे दलित समाज को मूर्ख बनाने वाले लोगो ने मनुवादियों के साथ मिल कर जातिवादी मानसिकता में एक दलित श्री बहादुर कि ही हत्या करवा दी । कटीले पेड़ पर टांग कर पूरे दलित समाज को सन्देश दिया कि दलित अब दलितों के ही गुलाम होंगे । शहीद बहादुर सोनकर हत्या मामले में क‌ई बार सरकार से मांग किये जाने के बाद भी कार्यवाही नहीं हु‌ई उनके परिवार के लि‌ए किसी धनराशि दि‌ए जाने की भी घोषणा नहीं हु‌ई जबकि एक रैली में मरने वाले को 5 लाख दि‌ए जाते रहे हैं । शहीद बहादुर खटीक के परिवार में उनके ०७ बच्चे हैं । सबसे बड़ा बेटा पोलियो ग्रस्त है जिसकी उम्र लगभग १८ साल होगी। उच्च न्यायालय में उनकी हत्या को आत्म हत्या सिद्ध करने के खिलाफ़ लडा‌ई डॉ. उदित राज और इंडियन जस्टिस पार्टी लड़ रही है।
for help State Bank of India Account of The All India Confederation of SC/ST Organisations no-30899921752

-गोपाल प्रसाद

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