Thursday, September 3, 2009
जिन्ना के जिन्न की चपेट के बाद भाजपा बनी कटी पतंग
जिन्ना के जिन्न की चपेट में भाजपा पूरी तरह से आ गई है जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ रहा है । हालाँकि जिन्ना के जिन्न को बंद बोतल से निकालने का काम आडवाणी ने किया परन्तु विवादों के बावजूद आडवाणी की पार्टी पर मजबूत पकड़ होने के कारण उसका प्रभाव ज्यादा नहीं दिखा परन्तु जसवंत सिंह भी उसी थीम पर चले । उन्होंने भी जिन्ना पर किताब लिखी और राष्ट्रीय ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय नवाज शरीफ ने जसवंत सिंह की तारीफ की । जद यू सांसद एजाज अली ने तो जसवंत सिंह को बिहार दौरे पर आने के लिए आमंत्रित कर दिया । भाजपा एक के बाद एक नए संकट से जूझ रही है । चुनाव में हार के सदमें से अभी पार्टी बाहर भी नहीं निकली है कि पार्टी को कई नए संकटों का सामना करना पड़ रहा है । भाजपा से बाहर निकाले जाने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह पार्टी के जख्मों को कुरेदने में लगे हैं । वह काफी समय से बीमार चल रहे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एवं जदयू नेता जॉर्ज फर्नांडीस आशीर्वाद लेने पहुँचे । इस बीच लोकसभा में विपक्ष के नेता आडवाणी के पूर्व राजनीतिक सलाहकार सुधीन्द्र कुलकर्णी ने भी पार्टी को अपना इस्तीफा भेज दिया । ५२ वर्षीय सुधीन्द्र कुलकर्णी पार्टी नेता आडवाणी की जून २००५ में जिन्ना पर लिखी किताब के सह-लेखक रहे हैं । कुलकर्णी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और वैचारिक मतभेद के बहाने पार्टी से अपने जुड़ाव को खत्म करने की घोषणा करते हुए कहा “पिछले १३ साल में भाजपा का पूर्ण कालिक कार्यकर्त्ता की तरह काम किया और अब उन्होंने पार्टी से अपने जुड़ाव को खत्म करने का फैसला किया है, हालाँकि एक शुभचिंतक के रूप में पार्टी से जुड़ाव बना रहेगा । कुलकर्णी ने इसके लिए ही भाजपा के लिए संकट यह कहकर बढ़ा दिया है कि “जिन्ना के प्रति आडवाणी की राय और कायदे-ए-आजम पर अपनी किताब में जसवंत सिंह की राय से उनका विरोध नहीं है । कुलकर्णी ने कहा कि जसवंत के खिलाफ की गई कारवाई असम्मानजनक और आधारहीन है । जसवंत की किताब में ऐसा कुछ नहीं है जिससे जिन्ना या सरदार पटेल का अनादर होता हो या फिर वह भाजपा की विचारधारा के विरूद्ध हो । दरअसल आडवाणी और जसवंत ने जिन्ना के संबंध में जो कहा है उनमें उन्हें कोई खास फर्क नहीं लगता । इन दोनों नेताओं की किताब में फर्क केवल इतना है कि जसवंत द्वारा लिखी गई पूरी पुस्तक जिन्नाकी आत्मकथा जैसी है लेकिन मौलिक तर्कों में कोई अंतर नहीं है । ज्ञातव्य है कि कुलकर्णी ने ही आडवाणी की पाकिस्तान यात्रा के दौरान जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बतानेवाला ऐतिहासिक अंश खोजकर उन्हें दिया था । उन्होंने ही जिन्ना के बारे में आडवाणी के भाषण को दिल्ली स्थित भाजपा के केंद्रीय कार्यालय भेजने का भी काम किया, तभी से कुलकर्णी संघ की आँखों की किरकिरे बने हुए थे । पूर्व केन्द्रीय मंत्री को बाहर करने संबंधी पार्टी के फैसले की आलोचना करनेवाले कुलकर्णी ने आरोप लगाया कि अब पार्टी ‘स्टालिनवादियों’ के नियंत्रण में है । भाजपा ऐसे समय में भीतर और बाहर के हमले से जूझ रही है, जब राजनीतिक रूप से विपक्षी पार्टी का बहुत ही महत्वपूर्ण समय आया है । मनमोहन सिंह सरकार को महंगाई, सूखा और बढ़ती बेरोजगारी पर घेरने के लिए मुख्य विपक्षी पार्टी की भूमिका निभाने के बजाय भाजपा भीतर की चुनौतियों से जूझ रही है । वरिष्ठ नेताओं के आपसी झगड़े और विश्वसनीयता खोने के संकट से जूझती भाजपा सत्ताधारी दल कांग्रेस को बड़ी राहत दे रही है । भाजपा के लिए आरएसएस संकट को और गहरा कर रही है । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पार्टी के नैतिक अभिभावक के रूप में काम करती रही है लेकिन इस पूरे परिदृश्य में वह एक तरह से गुटबाजी को ही बढ़ा रहे है । पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह अपने विरोधियों से निपटने मे संघ की लाइन का सहारा ले रहे हैं । हाल ही में खत्म हुए शिमला चिंतन बैठक में घर पर भाजपा नेताओं के बीच खींचतान जारी रही । चिंतन बैठक में घर पर समीक्षा के बजाय आगामी रणनीति पर विचार होने की बात कही गई पर वास्तव में केवल आरोप प्रत्यारोप ही हुए । आडवाणी के जिन्ना प्रकरण को लेकर संघ परिवार में घमासान मचा हुआ है । एक वर्ग आडवाणी की घेराबंदी में लगा है तो दूसरा वर्ग बचाव की मुद्रा में है । आडवाणी समर्थक जहाँ लगातार यह कह रहे हैं कि जसवंत-आडवाणी प्रकरण एक तराजू पर नहीं तोला जा सकता है तो आरएसएस की ही एक लॉबी यह सिद्ध करने में लगी है कि आडवाणी ने पाकिस्तान में जिन्ना के बारे में जो कुछ कहा था वह सोंची समझी चाल थी । पाक यात्रा के दौरान आडवाणी के जिन्ना संबंधी वक्तव्य का मुख्य सूत्रधार कुलकर्णी को ही माना जाता है । चर्चा यह भी उठ रही है कि जब कुलकर्णी २००५ से पार्टी के सदस्य ही नहीं है तो उनके इस्तीफा का क्या मतलब? तेरह साल भाजपा में रहने के बाद कुलकर्णी कर रहे हैं कि वैचारिक मतभेद के चलते उन्होंने यह कदम उठाया है परन्तु वास्तव में यह मामला भी जसवंत के जिन्ना प्रकरण से जोड़कर देखा जा रहा है । इधर संघ के पूर्व प्रवक्ता एमजीवैद्य ने अपने एक लेख में जिन्ना के गुणगान के लिए आडवाणी पर भी निशाना साधा है । एक तरफ आडवाणी और उनके करीबी नेता यह सफाई दे रहे हैं कि आडवाणी ने पाकिस्तान की यात्रा के दौरान जिन्ना का महिमा मंडन नहीं किया था तो दूसरी ओर संघ के चिंतक वैद्य ने अपने लेख द्वारा यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि आडवाणी ने पाकिस्तान यात्रा के दौरान जिन्ना के बारे में जो कुछ कहा था उसके पीछे उनका मकसद अपनी कट्टरवादी छवि को बदलना था । वैद्य ने अपने आलेख में जसवंत-आडवाणी के जिन्ना प्रकरण का उल्लेख करते हुए लिखा है- “ऐसा लगता है कि भाजपा नेताओं में जिन्ना की प्रशंसा करने की होड़ लग गई है । समय दर्पण प्रतिनिधि के रिपोर्ट के अनुसार एनडीए के कार्यकारी संयोजक शरद यादव ने भाजपा से निष्कासित नेता जसवंत सिंह की जिन्ना पर लिखी विवादास्पद किताब पर प्रतिबंध लगाने की निंदा की है । उनका कहना था कि यह अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है क्योंकि किसी भी सभ्य समाज में प्रतिबंध किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है । हालाँकि उन्होंने जसवंत सिंह को भाजपा से निकाले जाने को पार्टी का आंतरिक मामला बताया । उन्होंने कहा कि हम एमएफ हुसैन की कलाकृतियों के खिलाफ विभिन्न संगठनों द्वारा किए विरोध के खिलाफ थे । उन्होंने कहा कि सामंतशाही में राजा महाराजे धर्म को लेकर खंडन मंडन करते थे पर लोकतंत्र में किताबों पर प्रतिबंध लगाना उचित नहीं है चाहे वह जैसी भी किताबे हो । उनका कहना था कि जिन्ना पर आज तक न जाने कितनी किताबें लिखी गई हैं लेकिन पाकिस्तान में एक किताब के अलावा किसी किताब पर प्रतिबंध नहीं लगा है । यशस्वी संपादक से भाजपा सांसद की सफर तय करने वाले अरूण शौरी भाजपा नेतृत्व से निराश होकर विद्रोह का झंडा उठा लिया है । जसवंत सिंह का साथ देते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा का पूरा केंद्रीय नेतृत्व नकारा ही गया है हालाँकि वे आरएसएस पर वार करने में सावधानी बरती । संघ से आशा रखते हुए उन्होंने कहा कि आरएसएस अब इस पार्टी को अपने नियंत्रण में लेकर नया नेतृत्व दे, यही एक मात्र रास्ता है जिसके माध्यम से भाजपा बचेगी शौरी ने कहा कि “भाजपा के कुछ शीर्ष नेतागण छह पत्रकारों के माध्यम से पिछले पाँच साल से अखबारों में खबरें प्लॉट कराते आ रहे हैं । विपक्ष के नेता आडवाणी और पार्टी अध्यक्ष की खुलकर आलोचना करते हुए राजनाथ को उन्होंने ‘हम्प्टी- डम्प्टी’ नेता कहा । उनके अनुसार पूरी भाजपा ‘कटी-पतंग” बन गई है । शिमला की चिंतन बैठक और जसवंत सिंह के निषकासन से पहले शौरी ने एक अंग्रेजी अखबार में कई किस्तों में लेख लिखकर भाजपा नेतृत्व की तीखी अलोचना की थी । वास्तव में वे आडवाणी, राजनाथ, अरूण जेटली जैसे शीर्ष नेताओं पर निशाना साध रहे थे । शौरी के अनुसार “जी हुजूरी करनेवाले नेतृत्व की आँख और कान बन गए हैं । जब तक वह पद पर रहते हैं, वे उनकी खातिरदारी में लगे रहते हैं लेकिन जब उन्हें पद छोड़ना चाहिए तब ऐसे लोग उन्हें इस बारे में गलत सलाह देने लगते हैं । भाजपा का एक गुट शौरी के खिलाफ सख्त कारवाई की माँग कर रहा है । उनका कहना है कि शौरी के पास कोई जनाधार या वोटबैंक नहीं है । संगठन के लिए वह उपयोगी नहीं हैं, इसलिए उन्हें निष्कासित कर देना चाहिए । दूसरे गुट का मानना है कि पार्टी में कुछ और ऐसे शीर्ष नेता हैंजो चर्चा के पक्ष में उनकी दलील है कि पार्टी अगर बुद्धिजीवियों को साथ लेकर चलने का इरादा कर चुकी है तो भाजपा के बारे में कोई आलोचना ना हो । कुछ समय पहले भाजपा की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज के बयान सही अर्थ में चरितार्थ हो रही है, जिसमें उन्होंने कहा था कि “ज्वालामुखी फटने वाला है, तो शायद उन्होंने भविष्य देख लिया था । भाजपा के लिए यह अंतहीन मुसीबतों का दौर लगता है । पार्टी के चाल, चरित्र और चेहरे के खिलाफ बगावत का झंडा बुंलद किया है अरूण शौरी ने । एक पत्रकार की कल्पना में राजनाथ को वे ऐसी एलिस की राह देख रहे हैं जो वंडरलैंड की जगह ब्लंडरलैंड में चकराई भटक रही है । शौरी ने कहा कि पार्टी प्राइवेट कंपनी की तरह चलाई जा रही है, जहाँ टॉप लीडर्स एक दूसरे को बचाने और आगे बढ़ाने में लगे हैं । बी।सी। खंडूरी और वसुंधरा राजे को हार की जिम्मेवारी लेते हुए इस्तीफा देने के लिए कहा गया पर शीर्ष नेतागण इस्तीफा नहीं देंगे क्योंकि वे घर की जिम्मेदारी पहले ही ले चुके हैं । जिन लोगों ने ये हालात पैदा किए वे पार्टी के हितों को नुकसान पहुँचा रहे हैं । शौरी चाहते हैं कि भाजपा पर संघ का कब्जा हो जाय और पूरा नेतृत्व बदल जाय । नए लोग आएँ जो राज्यों में भाजपा को बचाए हुए हैं और उनकी संख्या अच्छी खासी है । उन्होंने कहा कि मेरा नुस्खा झटका है, हलाल नहीं । मौजूदा नेतृत्व बदलाव नहीं कर सकता, पूरा बदलाव चाहिए । एक-दो से काम नहीं चलेगा । शौरी टीवी के माध्यम से अपनी बात उठा रहे हैं जो खुली बगावत ही है जिसे पार्टी कतिपय बर्दाश्त नहीं कर सकती है । ऐसा प्रतीत होता है कि उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए दबाव बनना शुरू हो गया है । भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव प्रताप रूढ़ि के अनुसार “शाउरी शहीद बनना चाहते है । हम उन्हें पॉपुलर बनने का चांस देंगे । शौरी ने संकेत में पार्टी को एक्शन लेने की चुनौती दी है । उन्होंने कहा कि यह काम संदेशवाहक को ही मारे जाने जैसा होगा । जसवंत, यशवंत, भगत सिंह कोश्यारी, वसुंधरा राजे एवं अब नंबर है अरूण शौरी और न जाने किस-किस का । इधर पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और अरूणाचल से पूर्व सांसद किरन रिजीजू के कांग्रेस में शामिल होने एवं हरियाणा में चौटाला की इंडियन लोकदल के साथ गठबंधन तोड़ने की घोषणा हरियाणा प्रभारी विजय गोयल द्वारा की जाने एवं १९८३ वर्ल्ड कप चैंपियन टीम के मेंबर रहे दरभंगा (बिहार) से भाजपा सांसद ने बुझती आग में थी डाल दिया था । आजाद ने दिल्ली क्रिकेट सिलेक्शन में धांधली से आगे बढ़कर ‘लड़कियाँ’ सप्लाई करने’ तक का इल्जाम जड़ दिया है । एक अंग्रेजी अखबार में दिए गए साक्षात्कार में कीर्ति आजाद ने अरूण जेटली को दिल्ली के अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर सरीखा “वीक एंड पावरलेस” प्रेजिडेंट करार दिया है । उधर जसवंत सिंह की विवादित किताब पर गुजरात सरकार की ओर से लगाई गई पाबंदी का विरोध करते हुए अहमदाबाद के गाँधीवादी प्रो। प्रकाश शाह और कवि लेखक मनीषी जानी ने गुजरात हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि “जिन्ना, इंडिया पार्टीशन इंडिपेंडेस’ नाम की किताब पर राज्य सरकार की ओर से पाबंदी लगाना गलत है लिहाजा यह पाबंदी तत्काल हटाई जाए । याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वह भी सरदार वल्लभ भाई पटेल का बेहद सम्मान करते हैं लेकिन किताब पर पाबंदी से जानकारी पाने के उनके अधिकार का हनन होता है । इसलिए यह पाबंदी गलत है और अदालत सरकार को रोक वापस लेने का निर्देश दे । ( - गोपाल प्रसाद )
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment
I EXPECT YOUR COMMENT. IF YOU FEEL THIS BLOG IS GOOD THEN YOU MUST FORWARD IN YOUR CIRCLE.